शनिवार, अप्रैल 25, 2009

सांगीतिक चुनावी चिट्ठा चर्चा : सब ताज उछाले जाएंगे सब तख्त गिराए जाएंगे

तकरीबन महिने भर बाद आप सबसे इस मंच पर मुलाकात हो रही है। पिछली बार माहौल था होली का और अब इन झुलसाती गर्मियों मे चुनावी हवाएँ जोर मार रही हैं तो फिर इस बार की इस सागीतिक चर्चा का रंग चुनावी क्यूँ ना हो। आम भारतीय की प्रवृति गाने गुनगुनाने और बात बात पर जुमले बनाने की रही है फिर चुनाव का मौसम भला इनसे अछूता कैसे रह जाए। अगर ये बात नहीं होती तो जन जनार्दन को लुभाने के लिए कांग्रेस पार्टी जय हो .. जैसे गीतों का सहारा नहीं ले रही होती और उस विज्ञापन के तुरंत बाद बाद आप भाजपा की पैरोडी भय हो.. नहीं सुन रहे होते। खैर, इन गीतों और जुमलों से वोटिंग ट्रेंड पर क्या प्रभाव पड़ता है ये तो पता नहीं पर चुनाव में चुनावी माहौल पैदा करने में ये जरूर सफ़ल होते हैं।

माँ बताती है कि जब वो कॉलेज में थीं तो नारायण दत्त तिवारी के पक्ष में कुछ इस तरह के नारे लगा करते थे

नर है ना नारी है , नारायण दत्त तिवारी है

अब आज के युग में कोई ऍसा नारा लगाए तो पता नहीं रासुका के आलावा क्या क्या लग जाए :)। तो इससे पहले कि मैं इस सांगीतिक चुनावी चिट्ठा चर्चा को आगे बढ़ाऊँ चुनावी जुमलों से जुड़े एक किस्से को आप के साथ जरूर बाँटना चाहूँगा जिसे हाल ही में मैंने एक पुस्तक में पढ़ा था। बात १९७७ के चुनावों की है जहाँ पर एक क्षेत्र के उम्मीदवार थे कोई रामदेव। कहते हैं कि वोटरों को उनसे शिकायत थी की नसबंदियों की ज्यादतियों के दौरान उन्होंने जनता की कोई मदद नहीं की। बस फिर क्या था लोगों ने बना दिया जुमला

जब कट रहे थे कामदेव, तब तुम कहाँ थे रामदेव !

तो आइए इस हफ्ते चिट्ठाजगत में पेश किए गए कुछ गीतों को इस चुनावी माहौल में एक वोटर की नज़र से देखें। सबसे पहले चलें पुराने गीतों की इस महफिल में जहाँ सागर नाहर आशा ताई की आवाज में मीराबाई का ये मधुर भजन सुना रहे हैं

फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥
बिन करताल पखावज बाजै अनहद की झंकार
बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥

पर भाई अगर मीराबाई आज हमारे बीच होतीं तो टीवी चैनलों में चल रहे विज्ञापनों की तरह वोटरों को यही संदेश देतीं।

चुनावन के दिन चार वोट दे दे मना रे
बिना काज के नेता बाँचें वादों की झंकार॥
चुनावन के दिन चार वोट दे दे मना रे


अफ़लू भाई तो ठहरे फुल टाइम चुनावी कार्यकर्ता तो आगाज़ पर चुनावी गीत तो बजना ही है। सो वो उम्मीदवारों के स्वागत में आँधी फिल्म का गीत लेकर आए हैं।
सलाम कीजिए .. जनाब आए हैं

हिंदी युग्म ने इस हफ्ते हमें पुराने गीत भी सुनाए, शक्ति सामंत की फिल्मों के गीतों की चर्चा भी की पर मुझे सबसे ज्यादा लुत्फ दिया विश्व दीपक तनहा के गुलज़ार पर लिखे लेख ने।

अब गुलज़ार की इन पंक्तियों को लोकतंत्र के परिपेक्ष्य में देखें तो हर पाँच सालों बाद हमारा ये आम वोटर आशाओं के भँवर में डूबते उतराते हुए भी अपने मताधिकार का प्रयोग करता है। कितनी बार उसकी आशाओं पर तुषारपात होता है पर तरह तरह की बाधाओं को पार कर वो फिर पहुँचता है अपना वोट देने। इन हालातों में गुलज़ार यूँ भी कहते तो गलत नहीं होता ना..

वोटर बुलबुला है पानी का
और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है,
फिर उभरता है, फिर से बहता है,
न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है,
वक्त की मौज पर सदा बहता - वोटर बुलबुला है पानी का।


पिछले हफ्ते राँची में पीनाज़ मसानी का आगमन हुआ तो मैं भी जा पहुँचे उनका कार्यक्रम सुनने। पर ग़ज़लों की रंगत की जगह सिर्फ फिल्मी गीतों का तड़का मिला। हार कर श्रोताओं को ही बोलना पड़ गया कि अब कुछ ग़ज़लें भी सुना दीजिए। फिर आज जाने की जिद ना करो से लेकर यूँ उनकी बज़्म ए खामोशियाँ सुनने को मिलीं। पीनाज़ की गाई इस ग़ज़ल कहाँ थे रात को हमसे ज़रा निगाह मिले को अगर आज के नेताओं से पूछे जाने वाले प्रश्न में बदलें तो मतला कुछ ऍसा नहीं होगा क्या...

कहाँ थे आज तक हमसे जरा निगाह मिले
अब तक की कारगुजारियों का कोई तो हिसाब मिले


इस सांगीतिक चुनावी चर्चा को अंत करने से पहले विख्यात ग़ज़ल गायिका इकबाल बानों के देहांत पर विनम्र श्रृद्धांजलि। इस सिलसिले में हिंद युग्म, इरफान भाई और कबाड़खाना पर फ़ैज की लिखी और उनकी गाई मशहूर नज़्म हम देखेंगे,लाजिम है कि हम भी देखेंगे को पेश किया गया। कबाड़खाने पर अशोक पांडे ने उन पर लिखा

इक़बाल बानो का ताल्लुक रोहतक से था. बचपन से ही उनके भीतर संगीत की प्रतिभा थी जिसे उनके पिता के एक हिन्दू मित्र ने पहचाना और उनकी संगीत शिक्षा का रास्ता आसान बनाया. इन साहब ने इक़बाल बानो के पिता से कहा: "बेटियां तो मेरी भी अच्छा गा लेती हैं पर इक़बाल को गायन का आशीर्वाद मिला हुआ है. संगीत की तालीम दी जाए तो वह बहुत नाम कमाएगी."
ठुमरी, दादरा और ग़ज़ल के लिए उनकी आवाज़ बेहद उपयुक्त थी और
उन्होंने अपने जीवन काल में एक से एक बेहतरीन प्रस्तुतियां दीं.मरहूम इन्कलाबी शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहब की नज़्म "हम देखेंगे" की रेन्डरिंग को उनके गायन कैरियर का सबसे अहम मरहला माना जाता है. ज़िया उल हक़ के शासन के चरम के समय लाहौर के फ़ैज़ फ़ेस्टीवल में उन्होंने पचास हज़ार की भीड़ के आगे इसे गाया था.
प्रस्तुत है इस उत्प्रेरक नज़्म का एक हिस्सा
हम देखेंगे
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहल-ए-सफा, मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे

बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो नाज़िर भी है मन्ज़र भी
उट्ठेगा अनल - हक़ का नारा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
और राज करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो


लोकतंत्र में ऍसी नज़्म लिखने वालों की सख्त जरूरत है जो आवाम में अपने शब्दों के तेज़ से जन जागृति की मशाल को जलाए रखें।

तो अब दीजिए मुझे इस चुनावी सांगीतिक चर्चा को खत्म करने की इजाजत। फिर आपसे मुलाकात होगी अगले महिने। तब तक के लिए राम राम !

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11 टिप्‍पणियां:

  1. नीले रंग से आपका ये रहस्मय प्रेम यहाँ भी बरकरार रहा .......कुल मिलाकर दिलचस्प है ये अंदाज भी चर्चा का....विश्व दीपक तनहा साहब ऑरकुट के जमाने के दोस्त है....

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  2. कामदेव...हाँ, यह नारा इमरज़ेन्सी के बाद वाले चुनाव में रायबरेली जिले के सताँव क्षेत्र में काँग्रेस विधायक रामदेव के विरुद्ध गढ़ा गया था !

    @ डाक्टर अनुराग : नीला विशेष तौर पर आसमानी स्वप्निल शीतल एवं स्थिरता के मूड का परिचायक है, रहस्यमयता का प्रतीक तो यह है, ही !

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  3. अनुराग भाई ये प्रेम शाश्वत है इसलिए हर जगह दिखेगा। शायद आपने यहाँ मेरि पिछली पोस्ट नहीं देखी होगी :)

    अमर जी रामदेव जी के बारे में जानकारी में इज़ाफा करने के लिए धन्यवाद।

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  4. "नर है ना नारी है , नारायण दत्त तिवारी है"

    नारायण, नारायण... कभी दासपुत्र का नाम सुना करते थे पर तिवारीजी के कार्यकर्तापुत्र की चर्चा अभी हाल ही में चल पडी़ थी। सच क्या है यह तो वे जाने या वह कार्यकत्री!!

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  5. चुनाव के रंग में रंगी संगीत चर्चा पसंद आई !

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  6. sangeet charcha to pasand hi aai. magar neela to bhai hamara bhi pasandeeda rang hai, jaane kyo jab neele shade ka kuchh bhi dikhata hai to aur kahi nazar thaharti hi nahi.

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  7. सुन्दर चर्चा। चुनावी अंदाज का मजा ही कुछ और है।

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  8. संगीत चर्चा का यह थोड़ा बदला और मजाकिया तरिका मनभाया। मजेदार लगी यह चर्चा।
    भाई अगर मीराबाई आज हमारे बीच होतीं तो टीवी चैनलों में चल रहे विज्ञापनों की तरह वोटरों को यही संदेश देतीं।
    क्या मीराबाई, क्या महात्मा जी और क्या कबीर सभी को आज के माहौल में इस तरह के संदेश देने पड़ते।
    :)

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