ब्लाग लिखन में गुन बहुत हैं,लिखते रहिये ब्लाग,
इन्टरनेट पर लाइये, मन में सुलग रही जो आग!
सुलग रही जो आग,प्रेम की गाने भी गा लो जी,
हो जाये मतभेद तो जमकर कुश्ती खूब जमा लो जी!
मन उचटे तो कुछ दिनन को ले लो ब्लाग बैराग,
लोग मना ही लेंगे फ़िर लिखन लगो जी ब्लाग!
ये ब्लागिंग का सहज परिचय है। कल की चर्चा में नीलिमाजी ने लिखा-
सैलेब्रिटी ब्लॉगरों के द्वारा ब्लॉगिंग की शुरुआत अच्छा लक्षण है ब्लॉग के लिए ! मेरे खयाल से ब्लॉगिंग अंतत: एक जन - माध्यम ही रहेगी ! जन मंच पर जन भाषा में ! इसे साहित्यकारों या सैलिब्रिटीज़ के द्वारा कभी हस्तगत नहीं किया जा सकेगा ! सबके पास बराबर तौर पर तकनीक मौजूद होगी कोई राजा होगा तो अपने घर का यहां वो अनेक ब्लॉगरों में से एक ब्लॉगर ही होगा !
उनकी यह बात बड़ी अच्छी और मन को खुश कर देने वाली लगी कोई राजा होगा तो अपने घर का यहां वो अनेक ब्लॉगरों में से एक ब्लॉगर ही होगा ! दिल खुश कर दिया जी। अनायास बोले तो भड़ से कृष्ण बिहारी नूर साहब का शेर याद आ गया!
मैं कतरा सही लेकिन मेरा वजूद तो है,
हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में हैं।
दो दिन पहली पल्लवीजी की पोस्ट आप लोगों ने न पढी हो तो पढ़ें। एक उपन्यास में पढ़ी हुई पंक्तियां जिंदगी इतनी खूबसूरत है कि मौत इससे प्यार करने लगी से अपनी बात शुरु करते हुये उन्होंने बड़ी खूबसूरती से बताया है कि कैसे अवसाद उनको घेरता है और कैसे वे उससे उबरती हैं:
पहले मुझे समझ नहीं आता था की बचपन से ही अगर मैं दोपहर में सो जाऊं और शाम को अँधेरा होने के बाद उठूँ तो क्यों एक अनजानी सी उदासी मुझे घेर लेती थी! हांलाकि ये दौर बहुत छोटा होता था...शायद दो घंटे या इससे कुछ ज्यादा का! आज भी ये होता है इसलिए जब भी मैं दिन में सोती हूँ तो इस अवसाद से बचने के लिए अलार्म लगा लेती हूँ ताकि अँधेरा होने से पहले उठ जाऊं! अगर कभी गलती से सोती रह गयी तो अब तक मैं जान चुकी हूँ की क्या करना है! तुंरत तैयार होकर मार्केट का एक राउंड लगा लेती हूँ! वहा आइसक्रीम का कोन हाथ में पकडे हुए लखनवी चिकन के कुरते या जंक ज्यूलरी की दुकाने देखते हुए याद भी नहीं रहता की थोडी देर पहले उदासी ने मुझे जकड रखा था!
पूरी पोस्ट पठनीय है। अधिकतर लोगों ने अपनी टिप्पणियों में लिखा है कि अवसाद से बचने का सबसे कारगर उपाय है काम में डूब जाना! व्यस्त रहो, मस्त रहो!
शाम को उदास होने की बात पढ़ते हुये यह लगा कि शायद दिन बीत जाने का एहसास उदासी का कारण रहता हो! अंसार कंबरी की कविता याद आई:
फ़िर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो
शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना।
तात्कालिक अवसाद तो व्यस्त होकर दूर किया जा सकता है। लेकिन जब अवसाद का दौर लम्बा चलता होगा तो क्या हाल होते होंगे? तब शायद सबेरे से ही दिन बीत जाने का एहसास मन को जकड़ लेता होगा:
सबेरा अभी हुआ नहीं है,
पर लगता है
कि
यह दिन भी सरक गया हाथ से
हथेली में जकड़ी बालू की तरह।
अब फ़िर
सारा दिन इसी एहसास से जूझना होगा।
मानसी के अनुसार बहुत प्यारी, डा.अनुराग के मुताबिक आज की.....अभी तक की सबसे बेहतरीन पोस्ट और मेरी समझ में बेहतरीन! अद्भुत! पोस्ट बारिश, बर्फ़ और ड्यूटी... पर गौतम राजरिशी की बेहद संवेदनशील पोस्ट आप उनके ब्लाग पर ही पढ़िये। आपको ताऊ की बात सच लगेगी:
बहुत ही शानदार तरीके से आपने फ़ौजियों के मानविय जज्बातों को उकेर दिया है. विषय तो बहुत ही मार्मिक है और उस पर से आपकी भाषा शैली ने कमाल कर दिया.
मुझे अक्सर ऐसा लगता रहा है कि फ़ौजी मानविय मुल्यों के बहुत ज्यादा करीब होते हैं. आज पहले बार गजल से अलावा आपका लेखन पढा..पर मुझे तो इसमे भी एक फ़ौजी की कविता नजर आई.
विधु जी की इस पोस्ट को पढ़ने की संस्तुति डा.अनुराग ने की है। पिछले सप्ताह से एक लेख के शीर्षक के रूप में मैं कई बार उधौ मन न भये दस-बीस को दोहरा चुका हूं। लेख तो न लिखा गया लेकिन विधुजी की इस पोस्ट में इस पद को देख अच्छा सा लगा। विधुजी लिखती हैं:
सच मन ना भये दस बीस ..अब ये सच भी आईने के पास है ..शाम गहराने से पहले आधा घंटा टहल कर लौटना है,वो खूबसूरत धाकाई जामदानी के पल्लू को कमर के गिर्द लपेटती गर्दन तक ले आती है .कंधे से थोडा ऊपर तक दायीं तरफ नन्हा तिल ..पहले तो नही था उसे आश्चर्य होता है ..इसकी उपस्थिति आत्मा की गंध पहचानती है जैसे उस समय पर गेरू पुते स्वास्तिक सी इकछाओं का आलोप हो जाना किसी के बिछुड़ने पर किया जाने वाला सवाल -लेकिन ना कोई सवाल था ना कोई जवाब मिला प्रेम सौन्दर्य और आस्था के चरम के साथ जिए सच को अस्वीकार कर जीना क्या इतना आसान है...फिर भी एक निर्गुणी भाव अनायास पनप उठता है ...उसके लिय मन में एक करूणा उपजती है...कोई दोषी हो तो माफ किया जाय
आलोक नंदन हिटलर की आत्मकथा पढ़ने के बाद अपनी सोच में आये बदलाव को को याद करते हुये लिखते हैं:
हिटलर की आत्मकथा को पढ़ने के बाद कई तरह के सवाल दिमाग में कौंधते रहे, जैसे भारत को मां क्यो कहा जाता है, पिता क्यों नहीं ? हिटलर पितृ भूमि की बात करता है, और हमलोग मातृभूमि की। बचपन में पढ़ाया गया था कि भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा...मेरी समझ में यह नहीं आता था कि फिर भारत माता कैसे हो गई। मैं भारत को पितृ भूमि के रूप में देखने लगा था...मीन कैंफ को पढ़ने के बाद अपने देश और जमीन की प्रति मेरा परसेप्शन चेंज हो गया था... वाइमर गणतंत्र दुनिया का सबसे मजबूत गणतंत्र, जिसका हिटलर ने कबाड़ा निकाल दिया...यानि हिटलर उस गणतंत्र से भी मजबूत था।
अल्बर्ट आइंसटीन सबसे महान वैज्ञानिकों में से एक माने जाते हैं। उनके काम करने के उपकरण क्या थें? अंदाजा लगाइये!
जबाब यहां है-उनका दिमाग उनकी प्रयोगशाला थी और फाउंटन पेन उनका उपकरण!
हम बहुत दिन से कहते आ रहे हैं कि समीरलाल उत्ते भले हैं नहीं जित्ते वे दिखते हैं (कम ज्यादा का निर्णय करने के लिये आयोग बैठाना पड़ेगा)अब बताओ अनिल ने जो मंत्रीमंडल बनाया उसमें उनको प्रधानमंत्री बनाया। उनको फ़ट से शपथ ले लेनी चाहिये काहे से कि आजकल चुनाव में खड़ा हर अगला प्रत्यासी तो टेलर के यहां सूट की नाप देकर आया है जिसको पहन के १५ अगस्त को लालकिले पर झंडा फ़हराने का ख्बाब है उसका। लेकिन उनको पड़ी है अनूप शुक्ल’फ़ुरसतिया’ को लोकसभा का अध्यक्ष बनाने की। वे चाहते हैं कि हमारी भी गति सोमनाथ जी की तरह हो। लोकसभा में रोने लगें। पार्टी से निकाल दिये जायें। हमें लगा शायर लोग भी कभी-कभी सही बात कह जाते हैं:
मेरे सहन में उस तरफ़ से पत्थर आये
जिधर मेरे दोस्तों की महफ़िल थी।
जबलपुर वाले भी लगता है समीरलाल के जाने का इंतजार ही कर रहे थे। जैसे ही वे कनाडा पहुंचे वैसे ही जबलपुर में दो दिनी ब्लागिंग कार्यशाला प्रारम्भ हो गयी।
भूखे भजन न होय गोपाला आप पहले भी सुन चुके हैं लेकिन अमित इसे अनुभव करके बता रहे हैं! देखिये।
कई बार कही बात एक बार से दोहरा दूं कि शुरुआती दिनों में ब्लागजगत के तमाम लोगों को ब्लाग के बारे में जानकारी अभिव्यक्ति में छपे रविरतलामी के लेख अभिव्यक्ति का नया माध्यम : ब्लॉग से मिली। मैं और मेरे तमाम दोस्त इसी लेख के झांसे में आकर ब्लागिंग में आ फ़ंसे आ धंसे।
दस दिन पहले अपने लेख ए टू जैड ब्लॉगिंग : हिन्दी ब्लॉगिंग की पहली कट-पेस्ट किताब में इरशाद जी के द्वारा लिखी हिंदी ब्लागिंग के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। इस लेख में ब्लागर साथियों की टिप्पणियां भी पढनीय हैं। देखियेगा।
एक आदर्श शहरी परिवहन प्रणाली की जानकारी के लिये तो आपको रतनसिंह सेखावत के यहां जाना पड़ेगा।
जीवन का गणित क्या होता है समझते चलिये श्यामल सुमनजी से:
कहने को तो साँसें चलतीं हैं यात्रा-क्रम भी प्रतिपल बढ़ता जाता है।
मैंने तो देखा सौ बर्षों में मुश्किल से कोई एक दिवस जी पाता है।।
ये फ़ार्मूला न समझ पाये हों तो इसे आजमायें:
जिन्दगी धड़कनों की है गिनती का नाम।
फिर जो बैठे निठल्ले है उनको प्रणाम।।
येल्लो गणित से मुक्ति पाये नहीं कि ताऊ की शनीचरी पहेली आ गयी। अब दीजिये जबाब!
एक लाइना
- अगले चुनाव में समीर लाल प्रधानमंत्री बनें :पांच साल कैसे कटेंगे इंतजार में?
- अथ हिंदीभाषी कथा इन चेन्नई :कथा सुनकर पांडिचेरी में पकर गये
- मैंने रंजू की कविता चुराई : लोग दे रहे हैं बधाई! कमाल है भाई!!
- क्या हमारे बच्चे पिटने के लिए स्कूल जाते हैं ? :घर में सब सुविधायें कैसे मिल सकती हैं?
- जीवन का गणित:अपन के पल्ले तो न पड़ा जी
- आप लिखते रहे , क्रांति अपने आप आयेगी.. : आपके लिखना बंद करने के तुरंत बाद
- उसने चिट्टी इस प्रकार लिखी : और हिमांशु को थमा दी
- क्या जूते मारना समस्या का हल है? :इसका जबाब तो व्हाट एन आइडिया सरजी! वाले सर्वे से ही मिल सकता है
और अंत में
फ़िलहाल इतना ही। आप मौज करें। सप्ताहांत का आनन्द उठायें। हंसे, खिलखिलायें। न हो कोई शेर ही गुनगुनायें! कविता लिख मारें। पोस्ट कर डालें। जो होगा देखा जायेगा।
और कुछ न समझ में आये तो व्यस्त रहें, मस्त रहें।
ठीक है न जी!
पोस्टिंग विवरण: पोस्ट शुरू की सुबह 0615 बजे, निपट गये 0819 पर! दो कप चाय अलग से पिये। एक लाइना और लिखने का मन था लेकिन डा.अमर कुमार और मुये आफ़िस की याद ने रोक लिया। जा रहे हैं!
सुंदर चर्चा .
जवाब देंहटाएंhaay haay ye apne kya khe diya hamse, itnee umdaa charchaa kee ki man khus ho gaya aur kamaal kee baat rahee ki sirf ek laaeen mein, ajee aadhee kahein , mein hamaree beijjatti kharab kar dee. ha ha ha....
जवाब देंहटाएंbahut khoob aapkee mehnat aapkee charchaa mein saaf dkihyee detee hai, bhaut maja aayaa.
अनुराग जी की अनुशंसा और यहाँ लिंक देखकर विधु जी की पोस्ट पढ़ी । उत्कृष्ट लेखन है । एक लाइना की संख्या दस तो कर ही देनी चाहिये थी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंऔर आपने भी एक और चर्चा निपटाई ! वैसे अच्छी है !
जवाब देंहटाएंachi charcha
जवाब देंहटाएंअभी न जाओ छोड़ कर ... अभी तो लिंक दिया नहीं
जवाब देंहटाएंवैसे एक दुःखद सूचना है, कि " डाक्टर की छोकरी सब विषयों में गोल है.."
अब इसमें हम आप क्या कर सकते हैं ?
यह आखिरी लाइन तो रह ही गया..मालिक,
डा. अमर कुमार को लकड़बग्घे की तरह क्यों प्रोज़ेक्ट किया जा रहा ?
लकड़बग्घे तो ज़ेड सेक्यूरिटी में चलते हैं... बस थोड़ा ब्लागर से डरते हैं !
सुधार लें
जवाब देंहटाएंबस थोड़ा = अलबता
यह भी चलेगा
लकड़बग्घे ज़ेड सेक्यूरिटी में चलते हैं...
पर, ब्लागर से क्यों डरते हैं ?
बहुत बढ़िया चर्चा है. चर्चा पर्यवक्षण से तो यही लगता है.
जवाब देंहटाएंलीजिये, हमने भी टिप्पणी कर दी.
जो होगा देखा जायेगा.
:)
जवाब देंहटाएंचर्चा १० बजकर ९ मिनट पर शुरू की थी.. १० ३८ पर कमेन्ट लिख रहा हु.. बीच में कोई चाय नहीं आई है.. बहुत ही व्यवस्थित चर्चा लगी मुझे.. एक लाईनों का अनुपात सटीक था चाहे अमर कुमार जी के डर से ही सही.. (स्माइली लगाने की आवश्यकता ?)
जवाब देंहटाएंगौतम राजरिशी जी वाली पोस्ट बहुत बढ़िया है.. यहाँ तो टिपिया दिया अब तनिक वह भी टिपिया कर आते है..
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह फ़ुरसतिया अंकल, मैं तो आज पहली बार ही यहां आई. बहुत ही बढिया लगी आपकी चर्चा. अच्छा अंकल नमस्ते अब मुझे खेलने जाना है.
जवाब देंहटाएंडा.अनुराग के मुताबिक आज की.....अभी तक की सबसे बेहतरीन पोस्ट....
जवाब देंहटाएं...और मेरी समझ के मुताबिक भी
शुक्रिया अनूप जी ... आप उन लोगो में से है जो पढने में भी उतना ही यकीन करते है जितना .लिखने में .....कभी कभी सोचता हूँ काश कोई ऐसी जगह होती जहाँ हरेक का बेहतरीन लिखा जमा करके रख देता ... देखिये न इस मुए कम्पूटर में कितनी क्रान्ति ला दी है ....शायद कोई हल निकल जाये ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा , बहुत अच्छे लेख पढ़ने को मिले
जवाब देंहटाएं"लेकिन उनको पड़ी है अनूप शुक्ल’फ़ुरसतिया’ को लोकसभा का अध्यक्ष बनाने की। वे चाहते हैं कि हमारी भी गति सोमनाथ जी की तरह हो। "
जवाब देंहटाएंआपको सोमनाथ बनाने पर ही तो ना वो मनमोहन बन सकेंगे, वर्ना आप लालू या पावर की तरह गद्दी के काम्पाटीसन में आ गए तो टेंसन बढ़ न जाएगा:)
वाकई में आज की चिट्ठा चर्चा बहुत मजेदार रही। टिप्पणियाँ तो और भी बढ़कर! पूरे पाँच-सितारा रेटिंग! :)
जवाब देंहटाएंभाई अनूप जी, कभी कभार ही सही...कार्टूनों का ज़िक्र भी चिट्ठाचर्चा में कर दें तो बुरा नहीं लगेगा. चिट्ठाजगत के कार्टूनिस्ट केवल कार्टून ही नहीं बनाते... अपने कार्टूनों के माध्यम से नियमित बहुत कुछ कहते भी रहते हैं :-)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसबसे बड़ा ब्लॉगिंग गुण
जवाब देंहटाएंलिखने में स्याही नहीं लगती
लिखा बेछपा नहीं रहता
छपने में पैसा नहीं लगता
इसलिए छपने के बाद
पैसा नहीं मिलता।
मिलने के नाम पर
सबसे मिलता जुलता।
मरहूम नूर साहब का .. मेरा वज़ूद तो है,
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लाग कुछ तो की पँच लाइन भी है
उनसे अग्रिम क्षमा माँगते हुये..
मैं कजरौटा ही सही, पर मेरा ढिठौना तो है
हुआ करे जो एन्टीबायटिक उनके पास है
काजल कुमार से सहमत..
इंक-ब्लागिंग जैसी सपाट विधा की अपेक्षा एक कार्टूनिस्ट में कवि की कल्पना, व्यँग्यकार का तीखापन,
और कुशल चितेरे जैसा युगबोध निहित रहता है.. लगभग दो माह से टँगे हुये ’ ब्लाग न लिखने के बहाने ’ की अपेक्षा आज का / सप्ताह का कार्टून देना प्रासंगिक रहेगा ! नेट पर सँजोने के लिये प्रख्यात अग़्रेज़ी कार्टूनिस्टों के बनाये कार्टूनों का हिन्दीकरण मैं स्वयँ भी कर रहा हूँ, वर्डप्रेस पर के इस ब्लाग को अभी सामने आने में विलम्ब है !
अब मुझे लकड़बग्घे से ऊपर प्रोमोट करने पर विचार किया जा सकता है !
तमाम बातों के अलावा मुझे पोस्टिंग विवरण ज्यादा अच्छी लगी:)
जवाब देंहटाएंडा. अमर कुमार जी, आपके स्नेहपूर्ण शब्दों के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंआज तो बडे कमाल की चर्चा है. लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम.
डो घण्टे में ही मस्त चर्चा कर दी आपने।
जवाब देंहटाएंक्या केने क्या केने...।
शुक्रिया।
बहुत बढिया चर्चा की अनूप जी ! टाइटिल भी बढिया और समस्यापूर्ति वाला है !:)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया देव
जवाब देंहटाएंनिठ्ठ्लों ने प्रणाम स्वीकार किया ..
जवाब देंहटाएंलेकिन डा.अमर कुमार और मुये आफ़िस की याद ने रोक लिया।
वैसे मुए आफिस और डा. अमर कुमार भी याद कर लेते ,तो शायद और रोचक रहता ..
कुछ एक लाईना और आ जाती तो और अच्छा होता