जगजीत सिंह की गायी हुई एक गजल की लाईनें हैं, "अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफर के हम हैं, रूख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं"। इसी तर्ज में हिमाँशु का अपने बारे में कुछ यूँ कहना है -
चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफिर का नसीब सोचते रहतें हैं किस ओर किधर के हम हैं।पढ़ने सुनने के मामले में हिमाँशु जिस तरह का शौक रखते हैं वैसा ही उनके लिखे में दिखता भी है। इनके चिट्ठों में से एक है, सच्चा शरणम्। जिसमें उनकी ताजातरीन पोस्ट है - गाने आया जो अनगाया है अब तक वो गीत रे। ये दरअसल भावानुवाद है रविन्द्रनाथ की गीतांजलि से और इसे हिमाँशु ने नही बल्कि उनके पिताश्री प्रेम नारायण 'पंकिल' जी ने किया है -
गाने आया जो अनगाया है अब तक वो गीत रेलेकिन इस भावानुवाद से पहले जो उन्होंने पोस्ट किया था वो उनका खुद का ही लिखा था। क्या आपने कभी कुछ महसूस किया है कुछ और वो क्या लगा आपको। महसूस करने के मामले में हिमाँशु का कहना है, महसूस करता हूँ, सब तो कविता है -
वीण खोलते कसते वासर गये अमोलक बीत रे ।
देखा बदन न उसका उसके स्वर न सुन सके कान
उसकी पगध्वनि का ही बस कर पायी श्रुति संधान
गृह समीप पथ से निकला जब मंथर गति मनमीत रे
वीण खोलते कसते वासर गये अमोलक बीत रे ।
मैं रोज सबेरे जगता हूँउनके चिट्ठे को और बाँचता हूँ तब यही लगता है कि लेखन कला उन्हें विरासत में ही मिली है। हमारे साथ कई बार होता है कंप्यूटर खोलते तो ब्लोग लिखने के लिये हैं लेकिन फिर गेम खेलने लग जाते हैं। वैसा ही कुछ जरूर उनके बाबूजी के साथ हुआ होगा तभी तो पंकिल जी लिख बैठे, दिया राहु लिख चन्द्रमा लिखते-लिखते -
दिन के उजाले की आहट
और तुम्हारी मुस्कराहट
साफ़ महसूस करता हूँ ।
चाय की प्याली से उठती
स्नेह की भाप चेहरे पर छा जाती है ।
फ़िर नहाकर देंह ही नहीं
मन भी साफ़ करता हूँ,
फ़िर बुदबुदाते होठों से सत्वर
प्रभु-प्रार्थना के मंद-स्वर
कानों से ही नहीं, हृदय से सुनता हूँ ।
अगरबत्ती की नोंक से उठता
अखिल शान्ति का धुआँ मन पर छा जाता है ।
पथिक पूर्व का था चला किन्तु पश्चिमउनके क्षेत्र के नेता भी बड़े निराले हैं, ऐसे ही एक नेता गधे में बैठ, जूते की माला धारण किये नामांकन भरने गये और जनता इनसे देश के उद्धार की आश लिये इनके पीछे पीछे। कोई आश्चर्य नही ये चुनाव जीत भी जायें। इसी घटना पर लिखी इनकी पोस्ट में विश्लेषण की भरमार देखिये -
दिया राहु लिख चन्द्रमा लिखते-लिखते ।
यह बुढ़िया स्वयं खा रही है ढमनियाँ
सिखाती है औरों को सदगुण ही सुख है
लबालब भरेगा सलिल कैसे ’पंकिल’
जो औंधा किया अपनी गागर का मुख है,
चिकित्सक बना भी तो कैसा अनाड़ी
दिया टाँक मिर्गी दमा लिखते-लिखते ।
स्वनामधन्य ये महानुभाव गधे पर क्यों बैठे ? गधा तो शीतला मइया का वाहन है, अतः भागवत जी तो महामारी लेकर आ गये । भोली जनता को गधा बनाने वाला ऐसा गधा (माफ करें) कहाँ मिलेगा ? यदि निरीह प्राणी की ही बात है तो गधा तो ’रजक’ (धोबी) वर्ग का सम्मानित जीव है । खुर भी चलाता है, दाँत भी चलाता है, भार भी ढोता है । सेवक है, सुशील है, सत्कर्मी है । अच्छा होता ’भागवत जी’ मेमने पर बैठ गए होते ! अंग्रेजी कवि ’विलियम ब्लेक’ ने मेमने (लैम्ब ) को सबसे निरीह माना है - न पूँछ, न सींग । कोई भेंड़ भी चुन सकते थे, समयानुसार भोजन कर लेते, जैसे नेता जनता का कर लिया करते हैं । जूते की माला की जगह कुर्सी लटका लेते - कुर्सी भी तो चलती है संसद में; चला भी लेते, उस पर बैठ भी जाते । ऐसी अभद्रता किस लोकतंत्र की धरोहर है ? जनता तुम्हारा जूता देख रही है जिसे गले से निकालकर किसी के गाल पर चला सकते हो । ऐसी सुबुद्धि को शत-शत बार प्रणाम ।हिमाँशु अक्सर ही कविता लिखते रहते हैं लेकिन फिर भी कई बार उन्हें कहना पड़ता है, मैंने कविता लिखी -
मैंने कविता लिखीदुनिया में तो देखते आये थे अक्सर हिंदी ब्लोग जगत में भी सुनने में आ ही जाता है, आप सोच रहे हैं क्या? यही पात-पात में हाथापायी बात-बात में झगड़ा, इसी शीर्षक में वो लिखते हैं -
जिसमें तुम न थे
तुम्हारी आहट थी
और इस आहट में
एक मूक छटपटाहट
मैंने कविता लिखी
जिसमें इन्द्रधनुष नहीं था
हाँ, प्यासे कुछ लोग थे
क्योंकि उसमें बादल था
गांव गिरे औंधे मुंहहिमाँशु को SMS भी आते हैं, एक दिन ऐसा ही एक आया -
गलियां रोक न सकीं रुलाई
’माई-बाबू’ स्वर सुनने को
तरस रही अंगनाई,
अब अंधे के कंधे पर
बैठता नहीं है लंगड़ा
पूजा के दिन गंगाजल की
घर-घर हुई खोजाई
दीमक चाट रहे कूड़े पर
मानस की चौपाई,
कट्टा रोज निकाल रहे हैं
बन कर पिछड़ा-अगड़ा ।
एक आदमी मंदिर गयाअपने बाबूजी की लिखी रचनाओं के लिये हिमाँशु ने एक ब्लोग बनाया है, नाम है अखिलं मधुरम्। इस पर लिखी रचनाओं को समझने के लिये हमारी जैसी साधारण समझ से नही चलेगा। उसके लिये हिंदी का अच्छा खासा ज्ञान चाहिये। कुछ बानगियाँ देखिये -
रोने लगा-
"हे राम’ मेरी बीवी खो गयी है" .
राम जी बोले,
"बाजू वाले हनुमान मंदिर में जा के बोल,
क्योंकि मेरी भी उसी ने ढूंढी थी"....
गहन तिमिर में दिशादर्शिका हो ज्यों दीपशिखा मधुकरकुछ और देखिये -
मरु अवनी की प्राण पिपासा हर लें ज्यों नीरद निर्झर
तथा मृतक काया में पंकिल भर नव श्वाँसों का स्पंदन
टेर रहा है नित्य नूतना मुरली तेरा मुरलीधर।।16।।
“पिंडलि पर आँकू”, कहा श्याम “लतिका दल में खद्योत लिये।हिमाँशु ने एक नया प्रयत्न भी किया है और वो है अपनी लिखी कविताओं का गान और इनके कविता गान को आप सुन सकते हैं - नया प्रयत्न में, आवाज भी कविता जितनी ही मधुर है। नया प्रयत्न में उनकी लिखी काफी सारी खुबसूरत कवितायें हैं। अगर आप काव्य प्रेमी है तो जाईये वहाँ और खुद ही रसपान कीजिये।
नव कदलि-खम्भ मृदु पीन-जघन पर पुष्पराग दूँ पोत प्रिये!
विरॅंचू नितम्ब पर नवल नागरी व्रजवनिता बेचती दही।
पदपृष्ठप्रान्त में अलि-शुक-मैना मीन-कंज-ध्वज-शंख कही्।
फिर बार-बार बाँधू केहरि-कटि पर परिधान नवल धानी।
अन्तर्पट पर रच दूँ लिपटी केशव-कर में राधा रानी।”
हो चतुर चितेरे! कहाँ, विकल बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥54॥
हिमाँशु, अंग्रेजी में भी कवितायें लिखते हैं और ये आप इनके चिट्ठे Literary Look में पढ़ सकते हैं।
अब हिमाँशु से की गयी सवालों की त्रिवेणी -
तरूण: आप के प्रोफाइल से पता चलता है कि आप अध्यापन से जुड़ें हैं, तो क्या बतायेंगे कि किस विषय से? क्या आपके छात्र आपके ब्लोगस के बारे में जानते हैं। कभी स्कूल के समारोह में अपनी कोई कविता पढ़ी क्या आपने?
हिमाँशु: अपने ही कस्बे के डिग्री कॉलेज में एक साल से हिन्दी साहित्य पढ़ाता हूँ । बहुत से छात्र मेरे इण्टरनेट प्रेम को जानते हैं । कुछ एक पढ़ते भी हैं, जिनके पास सुविधा हो । अपने कस्बे का अकेला ऐसा उपयोक्ता हूँ जिसने इण्टरनेट केवल ब्लॉगिंग जैसी किसी वस्तु के लिये लिया हो, अन्यथा यहाँ इण्टरनेट परीक्षा परिणाम जानने के साधन के सिवा कुछ समझा नहीं जाता । बहुतों ने तो शुरु-शुरु में पूछा भी, "कितना रिजल्ट देखना है आपको कि घर पर इण्टरनेट ले आये ?" मैं निरुत्तर हूँ अभी तक।
कुछ मित्रों के साथ बैठकी में कविता पढ़ लिया करता था, लोग इसके प्रति सीरियस नहीं थे । छात्रों को खूब कविता सुनायी है, पर समारोह में नहीं, व्यक्तिगत - आफिस में या घर पर जब वह कुछ पूछने आते हैं, और कविता का जिक्र चल जाया करता है । आजकल हिन्द-युग्म से जुड़े ’मनीष वन्देमातरम’ मेरे कस्बे के पास ही रह रहे हैं, उन्हें सुनाता हूँ।
तरूण: अखिलं मधुरम् में एक स्क्रोल बार दौड़ता रहता है जो उस ब्लोग को शुरू करने की वजह बताता है। श्री प्रेम नारायण पंकिल जी के बारे में थोड़ा कुछ बताईये।
हिमाँशु: श्री प्रेम नारायण ’पंकिल’ मेरे पिता जी हैं । स्थानीय इण्टर कॉलेज में अंग्रेजी के प्रवक्ता थे, पिछली साल अवकाश प्राप्त कर लिया । पिता जी ने अपने शिक्षा व अध्यवसाय से स्वयं को एक विद्वान और श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में निर्मित किया, परन्तु प्रदर्शन से दूर रहे । लगातार लिखते रहे, आस-पास की पत्रिकाओं में अपने आप किसी ने छाप दिया तो ठीक, नही तो अपना समस्त काव्य-कर्म उसी चिरन्तन के सम्मुख परसते रहे और संतुष्ट हो लिये । एक निर्विकार स्वरूप । मेरी अपनी जिद से मैंने ’अखिलं मधुरम’ पर उनकी रचनायें देनी शुरु कीं । बहुत लिखा है उन्होंने, आज भी लिख रहे हैं ।
तरूण: आपकी कविताओं में दर्शन शास्त्र का असर साफ दिखता है लेकिन अगर मल्लिका शेरावत (या आपकी कोई फेवरिट) आपको प्यार का दर्शन समझाने की जिद करे तो आप इसे कहाँ (किस जगह) सीखना चाहेंगे?
हिमाँशु: मेरा एक बैठका है । उसी में अतिथियों के आने जाने से लेकर अपने सभी सम्बन्धियों/ प्रियजनों के बीच मैं क्षुद्र-मति अपने कम्प्यूटर के साथ विहार करता हूँ । यहीं रोज की दिनचर्या के बीच, जीवन की आपाधापी में समय का एकांत ढूंढ़ता हूँ ( ठीक उसी तरह जैसे दो शब्दों के बीच छुपा अर्थ ) और अपना एक फलसफा बनता जाता है ( अगर कोई फलसफा है ) । कविता भी मेरे जीवन के इसी संस्कार से जन्म लेती है । कोशिश करुंगा, कि मल्लिका शेरावत यहीं पधारें - यहाँ भीड़ में बहुत कुछ समझने की जिद रहती है मेरी ।
अंत में, इतना ही कहूँगा कि हमेशा हंसते रहिये क्यूँकि एक तो ये फ्री है और दूसरा कई बिमारियाँ दूर रखता है। और अगर ये बातें काफी नही है हंसने के लिये तो इतना ही कहूँगा कि जीव जंतु और जानवर ही हैं जो नही हँसते, सिर्फ इंसान ही हैं जिन्हें हँसना आता है। और आपमें से जो हसँते रहते हैं उनके लिये हिमाँशु की लिखी ये कविता पेश किये जाता हूँ - आपका हँसना
आपके हँसने मेंकुछ देर के लिये इसे हमारे ही भाव समझिये, अगली बार फिर मुलाकात होगी एक दूसरे ब्लोगर और उसकी अनेक पोस्टस के साथ।
छ्न्द है
सुर है
राग है,
आपका हँसना एक गीत है।
आपके हँसने में
प्रवाह है
विस्तार है
शीतलता है,
आपका हँसना एक सरिता है।
आपके हँसने में
शन्ति है
श्रद्धा है
समर्पण है,
आपका हँसना एक भक्ति है।
आपके हँसने में
स्नेह है
प्रेम है
करुणा है,
आपका हँसना एक भाव-तीर्थ है।
आपके हँसने में
आपका विचार है
अस्तित्व है
रहस्य है,
आपका हँसना स्वयं आप हैं।
मेरे जीवन में
आपकी तरलता है
स्निग्धता है
सम्मोहन है,
मेरा जीना आपका हँसना है।
- तरूण
हिमांशु पर चर्चा कर आप तो हिमांशु से भी अच्छे हो गए !
जवाब देंहटाएंहिमांशु जी से बेहतर परिचय हुआ. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंहिमांशु जी से परिचय करवाने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
पढ़ा है उनको. उनके पिता जी के लेखन पर टिप्पणी तो संभव नहीं है, हाँ यह अवश्य है कि हिमांशु जी आने वाले समय में एक स्वनामधन्य हस्ताक्षर बन कर उभरेंगे.
जवाब देंहटाएं-कौतुक
अच्छा लगा हिमांशु जी के विषय मे जानकर,आभार आपका।
जवाब देंहटाएंhimanshu ko nirantar padhtee hun , bloging mae apni raay "nispaksh" raktey haen .
जवाब देंहटाएंbloging kavita kehani gaaney sae upar haen isliyae vishay aadharit blogs par aksar unkae kament daekhnae ko mil jaatey haen
yahaan unkae upar likha daekh kar achcha lagaa
अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंइंटरव्यू अच्छा है ! थोड़े में ही पूरा समेटने का प्रयास सुन्दर है !
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंट्विटर पर ज़नाब को देखा.. खदेड़ता हुआ ब्लागर पर आया...
फिर तो, मैंने इनके संग ( इनके लेखन के संग ) ही पूरी रात गुज़ार दी..
इस अभिसार का अंत सुबह होने पर ही हुआ..
हालाँकि , एक वरिष्ठ ब्लागर ने सांकेतिक टिप्पणी भी थी..
कि, काश वह भी बाईस वर्ष के आयु वाली फोटो लगा कर एक आई. डी. बना पाते,
ऎसे विघ्नसंतोषी जीव पर यहाँ लिखना अप्रासंगिक है !
मेरे लिये तो इनको पाना मेरी उस सप्ताह की उपलब्धि रही ।
आज चर्चा में इन्हें देख मन में थोड़ा सा हर्ष तो थोड़ी सी कचोट दोनों ही द्वँद मचाये हैं..
१. हर्ष : अच्छे लेखन की पहचान होती है.. देर से सही
हिमाँशु ने बड़े आत्मविश्वास से किसी टिप्पणी में लिखा है..
अभी न सही.. कभी तो लोग जान पायें, इससे अधिक कुछ नहीं चाहिये
२. कचोट: यह कि तरुण भाई मेरा निजी गुड़ जैसे यहाँ बाँटे दे रहे हैं,
चर्चा में इन्हें मान मिला.. बड़ा भला लग रहा है
जलकुकड़ों को इससे क्या कि पिता जी ने लिखा या पूरे परिवार ने मिल कर लिखा..
नेट पर अच्छा साहित्य मिलना किसी के लिये दुर्घटना हो सकती है, निश्चय ही यह कौतुक का विषय है !
तरुण जी, आप... आप.. आप औचक ही जोर का झटका .. धीरे से दे जाते हैं, भई वाह , भई वाह !
तरुण जी ने मुझ-से तरुण चिट्ठाकार को उसके लिखने का संतोष दिया । अच्छा लग रहा है । अमर जी की टिप्पणी से आह्लादित हूँ । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंकवितामय चर्चा की तरुणाई देखी
जवाब देंहटाएंचिट्ठाचर्चा में तरुण की लिखाई देखी :)
हिमांशु जी पर अच्छा लिखा। मेरे जाने, वे विषयों के प्रति गम्भीर व साफ़गोई वाले व्यक्तित्व के हैं.
जवाब देंहटाएंउन्हें बधाई!
अच्छा लगा हिमांशु जी के बारे मे जानकर.
जवाब देंहटाएं.... आभार
हिमांशु जी के बारे में विस्तार से बताने का धन्यवाद। हम तो इन्हें पहले से ही पसन्द करते हैं। अब और नियमित पढेंगे।
जवाब देंहटाएंहिमांशु के बारे में चर्चा अच्छी जमी। बधाई!
जवाब देंहटाएंहिमांशु जी से परिचय करवाने का शुक्रिया तरून जी
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