इतिहास और भूगोल कभी भी न तो मेरे पाठ्यक्रम में शामिल थे न मेरे पसंदीदा विषयों की सूची में, लेकिन अब मुझे लगता है कि ये दोनों महत्वपूर्ण विषय अगर मैंने पढे होते तो समाज के बारे में, दुनिया के बारे में मेरी समझ बहुत बेहतर होती। तब शायद अफगानिस्तान मेरे लिए पाकिस्तान की सीमा से लगा एक मुश्किल भौगोलिक परिस्थितियों वाला, अलकायदा को पनाह देने वाले एक मुसलिम देश के अलावा कुछ और भी होता। तब शायद मैं जान पाती कि वहां पारदर्शी पानी से भरी नदियां भी हैं और लहलहाते खेत भी थे। इतिहास मुझे बताता कि कैसे ताकतवर देश अपनी बादशाहत के लिए किसी दूसरे देश को बरबादी की किस हद तक ले जा सकते हैं। कट्ठरवादिता कैसे मासूम बच्चों को तालिबान बना देती है, मुजाहिदीन बना देती है, जिंदा बम बना देती है यह सब मुझे बेहतर तरह से मालूम हो पाता।
अफ़गानी लेखक खालिद हुसैनी की किताबों ’द काइट रनर’ और ’ए थाउजैन्ड स्प्लेन्डिड सन’ का जिक्र करने के पहले वे लिखती हैं:
वहां कट्ठरपंथियों की दहशत तले भी लङकियां प्यार करती हैं, परिवार बनाती हैं। वहां भी लाल-लाल गालों वाले खूबसूरत बच्चे गलियों में वही खेल खेलते हैं जो सारी दुनिया के सारे बच्चे खेलना जानते हैं। शायद तब ये सोचना ज़्यादा स्वाभाविक लगता कि वहां भी बच्चे मां की आंख का तारा होते हैं और जब वो किसी और की लङाई कि ज़िहाद समझ कर लङते हुए जवान होने से पहले ही मर जाते हैं तो उस मां का दुख दुनियां में किसी भी मां के दुख जैसा होता है।
संयोग से आज ज्ञानजी ने भी अफ़गान चिंतन किया है। वे कहते हैं:
गर आतिश-ए-दोज़ख बर रू-ए-जमीं अस्त।
हमीं अस्तो हमीं अस्तो हमीं अस्त!
अमित अपने यायावरी के किस्से सुनाते हुये आज बुडापेस्ट घुमा रहे हैं। बताओ वहां इनको साधारण बेल्ट मिली 2400 रुपये की। माल में आधे पानी की बोतल 170 रुपये की। अरे हम गप्प नहीं मार रहे-आप खुद पढ़ लो भाई:
एक बात जो नोटिस की वह यह थी कि मॉल में प्राय: हर चीज़ महँगी थी। मॉल में आधे लीटर पानी की बोतल छह सौ फोरिन्ट (तकरीबन एक सौ सत्तर रूपए) में मिल रही थी जबकि दीआक टर्मिनल से बाहर आकर बाजू की एक फलों की दुकान से मैंने उसी ब्रांड की दो लीटर की पानी की बोतल ढाई सौ फोरिन्ट (तकरीबन सत्तर रूपए) में खरीदी।
अनिलकांत की प्रेमाभिव्यक्तियां जारी हैं। आज वे लिखते हैं अरे भैया क्या बतायें क्या लिखते हैं यहां मोहब्बत में कापी-प्रोटेक्टेड का ताला लगा है। आप उधरिच देख लो नजारा।
पूजा आज सेंटी बोले तो भावुक होने के मूड में हैं। अपनी व्यथा-कथा बताते हुये वे लिखती हैं:
अपना तो ये हाल है कि ब्लॉगर पहले हैं इंसान बाद में तो समझ सकते हैं कि ब्लॉग्गिंग नहीं करने पर कितना गहरा अपराध बोध होता है...लगता है कोई पाप कर रहे हैं, हाय राम पोस्ट नहीं लिखी, कमेन्ट नहीं दिया, चिट्ठाचर्चा नहीं पढ़ी, ताऊ कि पहेली का जवाब नहीं ढूँढा...ऐसे ही चलता रहा तो जो भगवान के दूतों ने ब्लॉग्गिंग पर डॉक्टरेट कि डिग्री दे ही वो भी कहीं निरस्त ना हो जाए। अब हम कोई दोक्टोरी पढ़े तो हैं नहीं कि भैया एक बार पढ़ लिए तो हो गए जिंदगी भर के लिए डॉक्टर...हमारा तो दिल ही बैठ जाता है मारे घबराहट के चक्कर आने लगते हैं।
आदित्य अब चलना सीख गये हैं। आप खुदै देखिये उनकी चलती हुयी फ़ोटो। बुखार भी अब कम हो गया है आप सबके प्यार के चलते।
रचनासिंह जी ने अपने ब्लाग लेखन के दो साल पूरे किये और अपने ब्लागिंग अनुभव बताये। दो साल पूरा करने पर उनको बधाई!
नवगीत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर , गज़लकार एवं काष्ठशिल्पी नईम लंबे समय से बीमार थे । वे इंदौर के एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान आज दिनांक ९.०४.२००९ को इस दुनिया में नहीं रहे । हम सभी की तरफ़ से नईमजी को श्रद्धांजलि।
बीती रात हिन्दी के बुजुर्ग साहित्यकार विष्णुप्रभाकर जी का 97 वर्ष की अवस्था में दिल्ली में निधन हो गया। शरतचन्द्र की जीवनी आवारा मसीहा के उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मानी जाती है। उनके उपन्यास अर्धनारीश्वर पर उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। विष्णुप्रभाकर जी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
एक लाइना
- सेंटी ब्लॉग पोस्ट...जुगाडू ब्लॉग्गिंग : का ही घरेलू नाम है
- जूते के पीछे क्या है, जूते के पीछे?:उसका प्राइज टैग है
- लो चला मैं:अब बस दौड़ना बाकी है
- आपकी अदालत में ...... :आर्डर-आर्डर हो रहा है
- पिता को लेना पड़ा चश्मा तब भी नहीं दिखीं बच्चियाँ:चश्मे का पावर गड़बड़ होगा चेक करायें
- भक्तो अब सचित्र जूता पुराण :कथा सुनिये कलयुग के पाप कटेंगे
- उससे जुदा हो गया मैं... :दस लाइन लिखने के बाद
- राष्ट्रभाषा बोलो, जल्द ही पिटने का योग बनेगा : अपने दुश्मनों को राष्ट्रभाषा सिखायें, मजे से पिटवायें!
- एसईएज उर्फ साला ईकोनोमिक जोन :पीछा नहीं छोड़ता
- सब मवाली... गजनी से मिर्ची तक :अजित जी के ब्लाग पर जमे हैं आज
- मेरे बाप ने घी खाया, मेरा हाथ सूंघों : सूंघते रह जाओगे
मेरी पसंद
बाप,
जिसने देखी होती है
कम से कम बच्चे से ज्यादा दुनिया
और वह,
यह भी जानता है कि
जिन्दा रहने की जंग में
घर से बाहर निकलना ही पड़ता है
चाहे-अनचाहे
वही, बाप
जब किसी शाम बच्चा कहता है कि
मैं आया, थोड़ी देर में
तो, दागता है सवालों की बौछार
क्यों? जरूरी है क्या?
पैर घर में टिकते नही
क्या रखा है चौराहे पर?
तब, यह भी नही सोचता कि
अपने हिस्से की जंग में
उसे भी निकलना ही होगा
कभी ना कभी
बस यही उम्र है
जब तक बाहर नही निकलेगा तो,
सीखेगा क्या?
पूरी दुनिया,
नाप लेने वाला शख्स
जब बदलता है बाप में
तब उसे दिखनी लगती है
सड़कों पर भागती जिन्दगी
बेखौफ भागते ट्रैफ़िक से बचती हुई /
सड़कों पर जन्म लेते गड्ढे /
किसी मोड़ पर लूटे जाते हुये राहगीर /
ऐक्सीडेंट की दिल बैठाने वाली खबरें
तब वह,
बुनने लगता है एक दुनिया
घर की चारदीवारी में
अपने बच्चों के लिये
और,
ओढ लेता है अपने बच्चों के हिस्से की दुनिया
सुकून से सोने के लिये!
मुकेश कुमार तिवारी
और अंत में
मसिजीवी ने दो साल पहले फ़ैक्टल के बारे में जानकारी दी थी:
हम प्रकृति को जानना चाहते हैं, इसलिए नहीं कि वह उपयोगी है वरन इसलिए कि वह खूबसूरत है।
प्रकृति खूबसूरत है क्योंकि वह लीनीयर नहीं है, वह व्यवस्था व गैर व्यवस्था (केओस) का मिला जुला रूप है। मसलन एक बागीचे में कतार से लगे पौधों में व्यवस्था है पर इन पौधों की विविधता एक प्रकार के केओस से उपजती है।
ब्लागिंग का तो पता नहीं लेकिन चिट्ठाचर्चा आजकल व्यवस्था और गैरव्यवस्था( अव्यवस्था?) का मिला जुला रूप हो रही है। कल की चर्चा हो न पायी। मसिजीवी परिवार व्यस्त है फ़िलहाल। रात को जब मैंने करना शुरू किया तो नेट इतना धीमा था कि कुछ हुआ ही नहीं।
आज मनीष कुमार पटना में पाये गये। वहां नेट कनेक्शन नहीं है लिहाजा वे गीत संगीत की चर्चा न कर पायेंगे। शायद सागर समय निकाल कर करें।
चिट्ठाचर्चा से जितने भी चर्चाकार हैं वे अपनी-अपनी व्यस्तताओं और मन:स्थिति के चलते कभी-कभी नियमित चर्चा नहीं कर पाते। विवेक सिंह जून तक इम्तहान की छुट्टी पर हैं। कुश नियमित रूप से अनियमित हैं। समीरलाल का -चर्चा जारी रखें का साधुवादी सहयोग ही मिल पाता है। आलोक कुमार अपनी कारस्तानियों की प्राथमिकतायें तय करते हुये चर्चा के लिये समय नहीं निकाल पाये हैं। रविरतलामीजी और देवाशीष तो काफ़ी पहले से ही चर्चा-विरत हो चुके। अन्य साथियों के साथ भी कुछ इसी तरह का होगा।
नियमित चर्चा में अगर विविधता न हो तो यह पढ़ने वालों के लिये बोरिंग और करने वाले के लिये थका देने वाला/उबाऊ काम है। पता नहीं चर्चा को लोग कितनी गम्भीरता से लेते हैं लेकिन मुझे लगता है केवल एकलाइना पेश करना पाठक के साथ अन्याय है। एकलाइना पढ़कर मजा आता होगा लेकिन शायद ही बहुत कम ही लोग लिंक से पोस्ट तक जाते होगे!
बहरहाल देखिये आगे कैसे,क्या होता है लेकिन शायद आगे के दिनों में आपको चर्चा नियमित रूप से अनियमित पढ़ने को मिले जब तक हमारे साथी ब्लाग वैराग्य, इम्तहान की छुट्टियों और अपनी कारस्तानियों से वापस नहीं आ जाते।
आपका दिन शुभ हो। मस्त रहें, व्यस्त रहें। अगर यह पसंद न आये तो व्यस्त रहें ,मस्त रहें।
मुझे, विष्णुप्रभाकर जी के देहावसान के बारे में चिटठाचर्चा से ही पता चला. विनम्र श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंचर्चा जारी रहे,आप भी मस्त रहें,व्यस्त रहें॥
जवाब देंहटाएंविष्णुप्रभाकर जी को विनम्र श्रद्धांजलि!!
जवाब देंहटाएंअनूप जी आपने सही कहा कि
जवाब देंहटाएं"नियमित चर्चा में अगर विविधता न हो तो यह पढ़ने वालों के लिये बोरिंग और करने वाले के लिये थका देने वाला/उबाऊ काम है। पता नहीं चर्चा को लोग कितनी गम्भीरता से लेते हैं लेकिन मुझे लगता है केवल एकलाइना पेश करना पाठक के साथ अन्याय है। एकलाइना पढ़कर मजा आता होगा लेकिन शायद ही बहुत कम ही लोग लिंक से पोस्ट तक जाते होगे!"
अमूमन तो ज्यादातर चर्चित चिटठा की ही चर्चा की जाती है, उस पर यह एक लाईना. शुरू शुरू में प्रयोगात्मक तौर पर अच्छा लगा. अब लगता है जैसे निपटाया जा रहा है.
फिर भी चर्चा सार्थक रही.
बहुत दिनों से ऐसी चर्चा पढ़ने को नहीं मिली जो दिल लगा कर की गई हो।
जवाब देंहटाएंबहुत मस्त चर्चा की है आपने ...मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंविष्णु प्रभाकर जी नहीं रहे? ओह!
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि।
vishanu parbhaakar ji ke baare me apke is lekh se pata chala bahut dukh hua vinamr shardhanjali
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअवसन्न हूँ। पिताजी के साथी रहने के कारण पितृतुल्य थे। अन्तिम बार हैदराबाद में ही भेंट हुई थी, ‘विश्वम्भरा’ में हमने उनका सम्मान समारोह रखा था। व्यक्तिगत जीवन में उच्च आदर्श वाले चरित्र के लेखक होने की परम्परा इन्हीं के साथ समाप्त हुई।
जवाब देंहटाएंहम अपने ऐसे शीर्ष लेखकों के लिए कुछ नहीं कर पाते हैं,धिक्कार है हम पर। और ऐसे गैरे टुच्चे लोग कलम हाथ में पकड़ते ही अपने को कालिदास समझने लगते हैं। हतभाग्य हमारा!!!
परमात्मा उनकी पवित्र आत्मा को चिर शान्ति प्रदान करे।
विष्णुप्रभाकर जी को विनम्र श्रद्धांजलि परमात्मा उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे।
जवाब देंहटाएंregards
नियमित रूप से अनियमितता को तोड़ने का प्रयास करेंगे.. आपका आना भी ज़रूरी है क्योंकि एक समय ऐसे आ गया था जब आपकी चर्चा देखने को ही नहीं मिल रही थी.. हिंदी ब्लोगिंग में नए ब्लोगर्स जुड़ते ही जा रहे है... बेहतर होगा ब्लॉग कि साइड बार में चिटठा चर्चा से जुड़ने हेतु एक सन्देश लगाया जाना चाहिए.. जिस से कि नए लोग या फिर ऐसे लोग जो चर्चा करना चाहते हो, ब्लॉग से संपर्क कर सके..
जवाब देंहटाएंअनूपजी, पुरानी अखबारों का कलेक्शन जैसे पुस्तकालय में बहुत कीमती दस्तावेज़ माना जाता है वैसे ही चिट्ठाचर्चा ब्लॉगजगत के आभासी पुस्तकालय का कीमती दस्तावेज़ है जिसे समय मिलने पर सभी पढ़ना चाहेगे, बढ़ते ब्लॉग्ज़ और कम होते समय में टिप्पणी दे पाना शायद मुश्किल होता जाएगा.
जवाब देंहटाएंविष्णुप्रभाकर जी को सादर श्रद्धाजंलि ..
विष्णुजी को श्रंद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंपद्मभूषण विष्णु प्रभाकरजी के निधन का समाचार आप ही के माध्यम से जान पाया। उनके जन्मदिन पर जब भी बधाई देता वे नियमित रूप से उत्तर देते। कुछ वर्षों से पत्र लिखाकर हस्ताक्षर कर देते।...
जवाब देंहटाएंईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।
विष्णुप्रभाकर जी को श्रद्धांजलि!!
जवाब देंहटाएंविष्णुप्रभाकर जी को श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंविष्णुप्रभाकर जी को श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंउनके परिवार के राज माँगलिक जी
मेरे शहर मेँ रहते हैँ कभी उनसे बातचीत की जायेगी --
- लावण्या
दिनों बाद अपने रूप ..अवतार में दिखे हो देव..
जवाब देंहटाएंहटकर चरचा डटकर चरचा
अच्छी रही
बहुत ही दुखद, विष्णुप्रभाकर जी को अति विनम्र श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंरामराम.
विष्णुप्रभाकर जी को श्रद्धांजलि
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