ये अपने बाप्पी दा इश्टाईल में:
ब्लॉगिंग बिना चैन कहां रेSSS
कॉमेन्टिंग बिना चैन कहां रेSSS
सोना नहीं चांदी नहीं, ब्लॉग तो मिला
अरे ब्लॉगिंग कर लेSSS
..ये कुछ अल्ताफ राजा की शैली:
तुम तो ठहरे बलॉगवाले
साथ क्या निभाओगे।
सुबह पहले मौके पे
नेट पे बैठ जाओगे।
तुम तो ठहरे बलॉगवाले
साथ क्या निभाओगे।
और ये जॉनी वॉकर का बयानः
जब सर पे ख्याल मंडराएं,
और बिल्कुल रहा ना जाए।
आजा प्यारे ब्लॉग के द्वारे,
काहे घबराए? काहे घबराए?
सुन सुन सुन, अरे बाबा सुन
इस ब्लॉगिंग के बड़े बड़े गुन
हर बलॉगर बन गया है पंडित
गूगल भी थर्राए।
काहे घबराए? काहे घबराए?
हिंदी ब्लागिंग के शुरुआती दौर में सबसे ज्यादा सक्रिय योगदान देने वाले और ब्लागिंग बिना चैन कहां रेSSS कहने वाले देबू ने पिछले साल भर में करीब पांच पोस्टें लिखीं हैं। समय और अन्य कारणों के चलते ब्लागिंग बंद सी है। एक ब्लागर का जीवन चक्र कुछ ऐसा होता है कि ब्लाग पढ़ना,लिखना, उसमें रमना शुरू करता है। इसके बाद वह अनेक दौर से गुजरता है। ब्लागिंग छोड़ना और फ़िर शुरू करना भी इनमें से एक हैं। ई-स्वामी ने भी अपने एक लेख में बताया था कि:
चिट्ठाकारी एक सिरखपाऊ और समयखाऊ शौक है और जितनी मेहनत और समय लगता है चिट्ठा लिखने में, व्यव्हारिक रूप से चंद टिप्पणियों के अलावा उसका कोई प्रतिफ़ल हासिल नहीं है - ये अधिकतर चिट्ठों का सच है. और ये एहसास कोई सुखकर नहीं है पाठकों की दूसरे विषयों में रुचि, ब्लागमंडलों कि चिल्ल-पों और गैरजरूरी मुद्दों को मिलने वाली तवज्जो अच्छे ब्लागर्स को पीछे धकेलने में महती भूमिका निभाती है. ये हर भाषा और क्षेत्र के ब्लागर्स पर लागू है. मन अगर ब्लागिंग में रमा हो तो दूसरी व्यस्तताएं लेखन पर कम असर डालती हैं लेकिन अगर ब्लागिंग से अधिक दिलचस्प कुछ हाथ लग जाए तो फ़िर ब्लागिंग हाशिये पर डल जाती है. मसलन ब्लागर की शादी हो जाए, मनपसंद नौकरी लग जाए, पैसा कमाने का भूत सवार हो जाए या कोई नई जिम्मेदारी आ जाए या लेखक अपने आपको अपने पाठकों से उपर का ही जीव मान ले!
यहां यह सब बताने का उद्देश्य आपको आतंकित करना नहीं है कि ब्लागिंग बड़ी लफ़ड़े वाली चीज है। सिर्फ़ यह संकेत देना चाहता हूं कि आपको कभी ब्लाग उदासीनता घेरती है तो उससे आतंकित होने की कौनौ जरूरत नहीं है। यह अस्थाई दौर हो सकता है।
ब्लागिंग के शुरुआती दौर में ही हम अपने साथी ब्लागरों के बारे में भी काफ़ी कुछ लिखते हैं। पसंदीदा ब्लागरों के बारे में लिखते हैं। ब्लागिंग के बारे में लिखते हैं। कुछ लोगों को यह दौर इतना ज्यादा पसंद आता है कि वे इसी दौर में बने रहना चाहते हैं!
कल चर्चा में रविरतलामी ने सूचना दी कि ब्लागर अमित वर्मा भारत के 50 सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों में शामिल हुये। एक ब्लागर की हैसियत से अमित वर्मा को बधाई! ब्लागिंग की बढ़ती स्वीकार्यता का प्रतीक है अमित वर्मा का भारत के प्रभावशाली लोगों में चुना जाना।
एक पाठक की हैसियत से अमित वर्मा से मैं उतना प्रभावित नहीं हो पाया। शायद इसके पीछे मेरा पूर्वाग्रह भी रहा हो जिसे मैंने चार साल पहले पहली चर्चा में व्यक्त किया था:
अग्रेजी ब्लागदुनिया की सफर की तो ज्ञान चक्षु खुले.हमने वो ब्लाग खासतौर से देखे जो इंडीब्लागर अवार्ड के लिये नामांकित हुये हैं.ज्यादातर ब्लाग अपना 'कटपेस्ट'तकनीक अपनाते हैं.हमारा कम लिखने का अपराधबोध खतम हो गया.
अमित वर्मा ने अपने ब्लाग पर कमेंट की सुविधा बहुत पहले बंद कर दी थी। एक तरफ़ा संवाद है उनका ब्लाग लेखन। पाठकों की प्रतिक्रियायें आप नहीं जान सकते।
राजीव जैन ने अपनी टिप्पणी में लिखा है- अगली बार कोई हिंदी चिटठाकार इस मुकाम पर पहुंचे । कुछ ऐसी ही आशा दर्पण शाह की है-hindi chittakaron ke recognise hone ka intzaar....
आप निश्चिंत रहें ऐसा निकट भविष्य में नहीं होने वाला। इस तरह के नामांकन लेखन से कम नेटवर्किंग और अन्यान्य कारणों से अधिक होता है। जब तक इस तरह के सर्वे/आयोजन अंग्रेजी माध्यम के अखबार करते रहेंगे किसी हिंदी ब्लागर के सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों में शामिल होने की कोई संभावना नहीं दिखती।
आज अनिल पुसदकर ने अपनी चिट्ठाकारी का एक साल पूरा किया। अनिल पुसदकर का लेखन ईमानदार और संवेदनशील लेखन लगता रहा मुझे। उनकी पोस्ट के शीर्षक देखकर लगता है कि वे अपने शहर के कवि/उपन्यासकार विनोदकुमार शुक्ल से बहुत प्रभावित हैं। विनोदजी के उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी की तर्ज पर अनिलजी की पोस्टों के शीर्षक लम्बे रहते हैं। उनकी कई पोस्टों के शीर्षक ही अपने आप में इतने सम्पूर्ण होते हैं कि अगर वे केवल शीर्षक ही लिख दें उसी से बात पूरी समझ में आ जाती है। अनिलजी इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों के समाचार पेश करने के अंदाज पर लिखी पोस्ट का शीर्षक (याद से लिख रहा हूं) -वह ऐसे चीख-चीखकर समाचार पढ़ रहा था जैसे साण्डे का तेल बेच रहा हो मुझे अक्सर याद आ जाता है।
चिट्ठाकारी के साल पूरा करने पर अनिलजी को बहुत-बहुत बधाई! आगे के शानदार सफ़र के लिये शुभकामनायें।
शान का कहना है कि नरेन्द्र मोदी जी डरे-डरे से हैं।
शनिवार को खुशवंत सिंह का एक लेख छपा था। उसमें उन्होंने कुछ फ़ायर ब्रांड महिलाओं के बारे में अपना मत जाहिर किया था। उनका कहना है कि
इस तरह के बर्ताव के लिये शायद कोई मेरी थ्योरी न मानें। मेरा यह मानना है कि यह सब सेक्स से जुड़ा है। उसे लेकर जो कुंठायें होती हैं ,उससे सब बदल जाता है। अगर इन देवियों ने सहज जिंदगी जी होती तो उनका जहर कहीं और निकल गया होता। अपनी कुंठाओं से निकलने में सेक्स से बेहतर कुछ नहीं है।खुशवंत सिंह के लेख पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये सुमीत के झा ने लिखा:
महिलाओं पर अभद्र ,गैरमर्यादित टिप्पणी के लिये खुशवंत सिंह कुख्यात रहे हैं। 93 साल की उम्र में अपनी सेक्स कुंठा किसी और पर थोपने की यह चाल इस बात की ओर इशारा करती है कि अब खुशवंत सिंह पूरी तरह से मानसिक रूप से दीवालिया हो गये हैं।
अभी तो आप अपना नया ब्लाग झट से तीन चार क्लिक में बना लेते हैं। भुवन का मानना है कि अब तो वोटर आई कार्ड, राशन कार्ड, मैट्रिक का प्रमाणपत्र और चरित्र प्रमाणपत्र हो.. तभी बनेगा ब्लॉग
भारतीय पुरुषों के बारे में एक अमेरिकी महिला की राय है कि .... अब हम अपने मुंह से क्या बतायें आप खुद देख लो भाई अनिल के हिंदी ब्लाग पर जाकर!
पाण्डवों के बारे में तमाम अच्छी-अच्छी बातें कही जाती हैं। लेकिन गगन शर्मा ने कुछ अलग सा मत रखते हुये सवाल किया है-क्या पांडव स्त्री दुर्बलता के शिकार थे ?
मानसी गीत/गजल और अपनी स्कूली दुनिया के अनुभव लिखती रहीं हैं। ले्किन आज उन्होंने कहानी लिखी है। एक प्रवासी लेखकों की किताब के लिये लिखी गयी इस कहानी को पढ़ें और अपने विचार बतायें।
पूजा अपने नये आफ़िस की कथा सुना रही हैं तो पीडी अपने भतीजे बेटूलाल का पहला कदम दिखा रहे हैं। सुनिये,देखिये,सराहिये! इसके अलावा और किया भी क्या जा सकता है।
जूता चलकर थम चुका है लेकिन ब्लागजगत में जूते की धमक अभी तक सुनाई दे रही है। सुनिये!
कुछ सवाल-जबाब
डा.अनुराग ने लिखा कभी कभी सोचता हूँ काश कोई ऐसी जगह होती जहाँ हरेक का बेहतरीन लिखा जमा करके रख देता ... देखिये न इस मुए कम्पूटर में कितनी क्रान्ति ला दी है ....शायद कोई हल निकल जाये ....
अनुराग जी ऐसा हम भी बहुत पहले से सोचते रहे। यह भी सोचा कि हर ब्लागर से उसकी पसंद की पांच पोस्टें पूछकर उनका संकलन किया जाये लेकिन बात बनी नहीं। अब यही सोचकर सांत्वना दे लेते हैं कि अपने समय की बेहतरीन पोस्टों में कुछ का संकलन तो चिट्ठाचर्चा के बहाने हो जाता है।
काजल कुमार ने लिखा:भाई अनूप जी, कभी कभार ही सही...कार्टूनों का ज़िक्र भी चिट्ठाचर्चा में कर दें तो बुरा नहीं लगेगा. चिट्ठाजगत के कार्टूनिस्ट केवल कार्टून ही नहीं बनाते... अपने कार्टूनों के माध्यम से नियमित बहुत कुछ कहते भी रहते हैं :-)
भाई काजल कुमार हम बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि चिट्ठाजगत के कार्टूनिस्ट केवल कार्टून ही नहीं बनाते बल्कि अपने कार्टूनों के माध्यम से नियमित बहुत कुछ कहते हैं। कार्टून पोस्ट करना हमेशा अच्छा भी लगता है। करते भी रहे हैं हम लोग। आगे भी करते रहेंगे। लेकिन होता यह है अक्सर समय की कमी के चलते कार्टून का जिक्र छूट जाता है। आगे शायद यह शिकायत हम दूर कर सकें।
डाक्टर अमर कुमार ने अपने अठारह सूत्री कार्यक्रम में अपनी राय जाहिर करते हुये लिखा था-टिप्पणीकार के लिये अपनी टिप्पणी में एक पढ़े हुये पोस्ट का लिंक और उसके साथ उस पोस्ट पर अपनी मात्र दो पंक्तियाँ जोड़ कर देना अनिवार्य समझा जाये .. अन्यथा उनकी टिप्पणी हटा दी जायेगी
मेरी समझ में यह विचार गैरव्यवहारिक है। किसी पाठक को टिप्पणी और फ़िर लिंक के लिये बाध्य करना मुझे किसी भी तरह से सही नहीं लगता। यह जबरिया टिपियाने के लिये बाध्य करने जैसा है। ऐसे टिपियाओ वर्ना भाग जाओ की सोच मुझे किसी भी तरह से तार्किक नहीं लगती।
डा.अमर कुमार ने यह भी लिखा यहाँ पर मैं श्री अनूप शुक्ल से खुल्लमखुला नाराज़ हूँ.. किसी के ऎतराज़ पर कुछ भी हटाया जाना.. नितांत गलत है ! कीचड़ में गिरने को अभिशप्त या संयोगवश, मैं उस रात धुर बारह बजे पाबला-प्रहसन देख रहा था
आपकी नाराजगी मेरे सर माथे लेकिन अगर मेरी किसी बात से किसी को कष्ट पहुंचता हो और उसको हटाने न हटाने से कोई वैल्यू एडीशन/नुकसान न होता हो तो उसे हटा देने को मैं अनुचित नहीं मानता। अड़ने वाली और संसोधित कर लेने वाली बातों में फ़र्क करने की अपनी-अपनी समझ पर निर्भर करता है। मैं अच्छी तरह से जानता था और अभी भी मानता हूं कि पाबलाजी के तर्क कहीं से सही नहीं थे और उनके एतराज का जबाब देते हुये मैं उसे बनाये रख सकता था लेकिन अगर उसे हटाने से पोस्ट पर कुछ फ़रक नहीं पड़ता और किसी का अहम संतुष्ट होता है और खुशी हासिल होती है तो उसे हटा देने में मुझे कोई गलत बात नहीं लगती।
यह मेरा अपना मत है। आप हमसे असहमत हो सकते हैं और एक बार फ़िर से नाराज भी। सही को सही और गलत को गलत मानने वाले और बिना झिझक नाराज हो सकने वाले दोस्त दुर्लभ होते हैं। एक बार फ़िर से दोहारता हूं- वह व्यक्ति बड़ा अभागा होता है जिसे कोई टोकने वाला नहीं होता। कम से कम इस मामले में मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझसे खुल्लमखुल्ला नाराज होने वाले लोग ब्लाग जगत में हैं।
तमाम सुझाव साथी लोग अपनी समझ से देते हैं। वे सब अनुकरणीय होते हुये भी हम अक्सर उनको अमल में नहीं ला पाते। कारण समय का अभाव होता है। एक ठीक-ठाक चर्चा करने में लगभग तीन घंटे लग जाते हैं। उसके बाद तमाम लिंक/फ़ोटो और दूसरे तामझाम के लिये और समय चाहिये। शानदार चर्चा एक दिन करना आसान है लेकिन नियमित उतने ही विस्तार से चर्चा करते रहना शौकिया ब्लागर के लिये मुश्किल काम होता है। आठ घंटे अगर सोने के निकाल दें तो नौकरी पेशा व्यक्ति के लिये सोलह घंटे में तीन घंटे (सक्रिय जीवन का लगभग पांचवा हिस्सा) चर्चा के लिय नियमित निकाल पाना कठिन काम होता है।
अनुरोध है कि सच बताने की इस कोशिश को मेरी निराशा न समझा जाये।
और अंत में
आज ब्लाग/ब्लागर/ब्लागिंग पर कुछ ज्यादा ही बात हो गयी। समय समाप्त हो गया। बाकी फ़िर कभी।
आपका हफ़्ता शानदार शुरू हो।
व्यस्त रहें, मस्त रहें।
कल की चर्चा मे एक जानकारी और भी दी गयी थी
जवाब देंहटाएं" "भारत के अन्य प्रसिद्ध चिट्ठाकारों की एक सम्यक सूची आप यहाँ देख सकते हैं।"
वो लिस्ट मात्र एक
एक ब्लॉग directory हैं
या उसका कोई आधार भी हैं ???? अगर आधार हैं तो कृपा कर स्रोत बताये
आभार आपका अनूप जी। आपको मेरा लेखन ईमानदार लगा यही पढकर लगा कि मेरा ब्लाग लिखना सफ़ल हो गया।रहा सवाल विनोद जी से प्रभावित होने का तो ये मेरा सौभाग्य है कि मेरे शीर्षक उनसे प्रभावित लगते है,वर्ना हम तो लिखने के मामले मे उनके चरणो की धूल भी नही है।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार चर्चा .
जवाब देंहटाएंव्यस्त रहें, मस्त रहें।
चर्चा का शानदार होना जरुरी नही है..परन्तु बेहतरीन पोस्टों का संकलन मायने रखता है.यह बात मैंने चिठ्ठाचर्चा में हमेसा पाई है.
जवाब देंहटाएं---------
और इसे मैंने आपकी निराशा नही समझा :-)
आज की चर्चा स्टार्ट टू एंड की तर्ज़ पर पढ़ी.. बहुत मज़ा आया.. एक लाईना नहीं थी इस बात का पता भी नहीं चला.. सवाल जवाब का सेशन दमदार था आगे भी रहे तो बढ़िया रहेगा.. पुरानी प्रविष्टिया पढाने के लिए धन्यवाद्.. कार्टून वाली पोस्ट तो कई बार आती है.. शायद काजल कुमार जी देख नहीं पाए होंगे.. अन्यथा कई बार चर्चा में हमें कार्टून वाली पोस्ट की चर्चा मिल ही जाती है..
जवाब देंहटाएंतीन घंटे में चर्चा???
हमसे तो कभी नहीं हुई.. हर बार छ सात घंटे तो लग ही जाते है.. पता नहीं इतने पारंगत कब हो पाए जब तीन घंटे में चर्चा कर सके.. :)
ओवरऑल आज की चर्चा को सौ नंबर
यहाँ " ऎसे विघ्नसंतोषी तत्वों को " आख़िर इतना महत्व ही क्यों दिया जा रहा है ?
जवाब देंहटाएंकाशी साधे नही सध रही, चलो कबीरा मगहर साधें
सौदा सुलुफ कर लिया हो तो, चलकर अपनी गठरी बाँधें ।
जैसा " लिखने वाले श्री मिश्रा जी " अब हमारे बीच नहीं रहे !
धन्यवाद !
अनिल पुसदकर जी के शीर्षकों का मैं भी प्रेमी हूँ! बहुत बढ़िया चर्चा, गागर में सागर हो गया! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा .... देबाशीष जी से मिलने का कार्यक्रम धरा का धरा ही रह गया. :( समय मिलते ही उनको परेशान करता हूँ.
जवाब देंहटाएंजीवन की आपा धापी में ब्लोगिंग शायद अपने आप को रिचार्ज करने की कोशिश.भर है .या बरसो से उस अनकहे को बाहर निकलने की कोशिश जो कब से आपके भीतर जमा पड़ा है ..... सूचनायो के इस विस्फोटक युग में .रोजी -रोटी की जद्दो जेहद में गुम हुआ इन्सान .कम्पूटर की इस मायावी दुनिया में अपने अपने कारणों को ढूंढता है ...अपने अपने कारण रखता है ..वास्तविक जीवन की प्राथमिकताओ से संतुलन बैठाना भी अनिवार्य शर्त है ....जैसे आप सुबह बेडमिन्टन खेलने या जोगिंग के लिए वक़्त निकलते है वैसे ही ब्लोगर वक़्त निकालता है ...कभी कभी तालमेल मुश्किल होता है ...कभी कभी ठहराव भी. जरूरी होता है .........हम इसे आधुनिक समय का स्ट्रेस बस्टर भी कह सकते है ...
जवाब देंहटाएं@अनिल जी इसी उर्जा की निरंतरता ओर अपने तेवर बरकरार रखेगे ऐसी आशायो के साथ उन्हें बधाई
@अनूप जी . ...बावजूद शानदार अग्र्रिगेटर के ....हमारे यहाँ एक पोस्ट की कुल उम्र २४ घंटे से ज्यादा नहीं रहती...इस कारण कुछ बेहतरीन पोस्ट कई बार पढने से वंचित रह जाती है ...उदारहण के लिए पूर्व के कई ब्लोगर के शायद ऐसे लेख होगे जो दिलचस्पी के पायदान पे आज भी अपनी उपस्थिति ठोक बजा रहे होंगे पर उन तक पहुंचे कैसे ?
तो फिर क्या किया जाये कुछ पोस्ट के संग्राह के लिए ?यक्ष प्रश्न है ?
@असहमतिया पढने लिखने दोनों के लिए एक अलिखित अनिवार्य शर्त है .....दिमाग के इंजिन को फिट रखने के वास्ते जरूरी भी......
@"एक ठीक-ठाक चर्चा करने में लगभग तीन घंटे लग जाते हैं। उसके बाद तमाम लिंक/फ़ोटो और दूसरे तामझाम के लिये और समय चाहिये। शानदार चर्चा एक दिन करना आसान है लेकिन नियमित उतने ही विस्तार से चर्चा करते रहना शौकिया ब्लागर के लिये मुश्किल काम होता है। आठ घंटे अगर सोने के निकाल दें तो नौकरी पेशा व्यक्ति के लिये सोलह घंटे में तीन घंटे (सक्रिय जीवन का लगभग पांचवा हिस्सा) चर्चा के लिय नियमित निकाल पाना कठिन काम होता है।"
सौ फीसदी सहमत !!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बढ़िया लगी यह चर्चा ..बहुत बेहतरीन
जवाब देंहटाएं''जैसा " लिखने वाले श्री मिश्रा जी " अब हमारे बीच नहीं रहे !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !''
bhai mishraji to jivit hain apni naukari kar rahe hain.
बहुत बढिया ...
जवाब देंहटाएंमैं अनिल जी से मिला हूँ। वाकई बेहतरीन और ईमानदार व्यक्तित्व है। और जो सोचते हैं वही लिखते भी हैं। चर्चा वाकई बहुत अच्छी बन पड़ी है।
जवाब देंहटाएंआज तो आदि अनादि काल के चिट्ठाकार कवर हो लिए. :)
जवाब देंहटाएंअनिल जी को बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
अनूप जी,धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंकुश भाई, सही बात है, मैं सहमत हूँ.
सचमुच बहुत समय लगता है आपको
जवाब देंहटाएंभारी भरकम काम है! इतने ब्लॉगर्स को झेलना
सहमत हूँ, " प्रेमलता पांडे जी " ! श्री भारतेन्दु जी को ईश्वर लम्बी एवं सार्थक आयु दे , उनकी पोस्ट का यह लिंक
जवाब देंहटाएंरावण ही रह गये आज प्रभु को उपासने
रुई बंद कर दी देना देशी कपास ने
प्रभु चोरों का भाग्य विधायक
ये कहते हैं ,वो कहते हैं।
लिखने वाले नईम जी के लिये " श्रृद्धांजलि लेख " का ही है.. शब्दों का फेर केवल और केवल इस पोस्ट पर ध्यानाकर्षण की उपादेयता जाँचने के लिये ही किया गया था । और.. यह देख भी लिया गया ! इसके लिये मैं भारतेन्दु जी को पहले ही ई-मेल कर चुका हूँ !
बढ़िया चर्चा. सवाल-जवाब सेक्शन बहुत अच्छा लगा. संवाद होना आवश्यक है. अनिल जी हमारे भी बहुत फेवरिट हैं. एक साल पूरा करने के लिए अनिल जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंब्लॉगर प्रभावशाली हो रहे हैं. वाह!
आप भी चिट्ठाजगत के आदि पुरुषों में से रहे हैं आपने तो नहीं छोडी ब्लागिंग ! छोड़ भी देते को आपकी सेहत को कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता -पर कहीं न कहीं कोई कमिटमेंट है ! कुछ अभी भी अनकहा रह गया है ! इसलिए अपने तमाम निजी समस्याओं के बाद इस माध्यम को भी अपना अन्गुलि बल देते चल रहे हैं और विनिमय में आपको जो सम्मान मिल रहा है यद्यपि वह आपके समर्पण की भरपाई नहीं कर सकता मगर लोगों को कुछ नसीहत तो देता ही है ! लोग कई कारणों से इस अछूते चारागाह की और लपकते आ रहे हैं और अन्यान्य कारणों से फूट भी रहे हैं ! बात बहुत साफ़ है या हो जानी चाहिए -यह भी समाज सेवा
जवाब देंहटाएंका एक आधुनिकतम रूप है जो इस मूल भाव को अन्तस्थ कर लेगा यहाँ टिकेगा नहीं तो चल बे हट यह घर है ईश का खाला का घर नाही वाली बात ही चरितार्थ होगी !
यहाँ दो मानसिकताएं हमेशा रही हैं -एक तो जब तक देखब सीता मीता तब तक खनब अढाई बीता वाली चालाक लोमडी की जिसने राम को टका सा जवाब दे दिया था और भवसागर के प्रपंचों में लीन हो गयी थी , दूसरी पर हित सरिस धरम नहि भाई वाली सर्व जन सुखाय की मानसिकता ! यहाँ भी इन दोनों वैचारिक ध्रुवों के बीच कहीं अपनी नाव टिकानी है ! और वही यहाँ तिकेणगें जो इस कला को साध लेंगें ! नहीं तो हम हो या आप -कोई भी चल खुसरो घर आपनो का रास्ता नापेंगें !
आज तो आपकी पोस्ट अलग अंदाज मे दिखी. शुरु से ही आपने ऐसा संवाद बना लिया कि पढते पढते पोस्ट खत्म हो गई. आज की पोस्ट कई मायने मे लाजवाब है. आपको बहुत बधाई और अनिल पूसदकर जी को भी बहुत हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बाप्पी दा इश्टाईल मज़ेदार है. अनिल जी को ब्लॉग की सालगिरह मुबारक....
जवाब देंहटाएंलेकिन अगर ब्लागिंग से अधिक दिलचस्प कुछ हाथ लग जाए तो फ़िर ब्लागिंग हाशिये पर डल जाती है.
जवाब देंहटाएं---------
बिल्कुल किसी काम की चीज के होने का इंतजार है!
तो देबू दा ब्लॉगगीतकार भी हैं :) गजब के हैं ये ब्लॉगगीत।
जवाब देंहटाएंअनिल पुसदकर जी को चिट्ठे की सालगिरह पर बधाई।
ब्ळॉग लेखन के कई प्रश्नों को समेटती हुई बढि़या चर्चा। घायल की गति घायल जाने.... इसी तर्ज़ पर चर्चाकार की गति चर्चाकार ही जाने। भारत में बीमार को हर कोई नुस्खा थमा देता है,अब अगर डॉ. अनुराग जी व डॉ. अमरकुमार जी से पूछा जाए तो वे अवश्य सबको सलाह देंगे की नीम हकीम खतरा-ए-जान। चर्चाकारी के बीमारों को उनकी वह सलाह मानने में कोई हर्जा नहीं। बाकी का आपने बता ही दिया है।
जवाब देंहटाएंऔर हाँ,चर्चा के मेरे दिन पर इस सहयोग के लिए आभारी हूँ। पुस्तक के प्रोजेक्ट को पूरा करने का यह कठिन समय है। ऊपर से दिल्ली यात्रा पर निकल रही हूँ। सो,आभार स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंगूगल गोंसाँई की दया से यहाँ टिप्पणियों में बढ़ोत्तरी होती रहे ..
जवाब देंहटाएंआज पहली बार " क़ाफ़ी का कप " देखने गया ।
पाया कि उड़ी बाबा, अनूप जी जनता को मेरे लिये पहले से ही चेता चुके हैं
" चिट्ठाचर्चा के मामले में उनके रहते यह खतरा कम रह जाता है कि इसका नोटिस नहीं लिया जा रहा । वे हमेशा चर्चाकारों की क्लास लिया करते हैं ।"
क्या मैं ऎसा डैंज़र थिंग हूँ ? लोकतंत्र में अपोज़िशन का होना ज़रूरी होता है, शायद इसीलिये वह आगे यह भी फ़रमाते हुये पाये जाते हैं..
" डा.अमर कुमार की उपस्थिति ब्लाग जगत के लिये जरूरी उपस्थिति है ! "
अब मुझे रोने की मोहलत तो देयो,
धन्यवाद अनूप भाई, आपसे पार पाना मुश्किल है !
वह व्यक्ति बड़ा अभागा होता है जिसे कोई टोकने वाला नहीं होता...
जवाब देंहटाएंक्या बात कह दी देव...
बेमिसाल चर्चा आज की
आप नियमित इतना समय दे रहे हैं यह तो आपने अच्छी तरह से समझा ही दिया है
जवाब देंहटाएंबधाई
ब्लोगिंग की विविध अवस्थाओं का अच्छा आंकलन है। आप से हमने ये तो अक्सर सुना है कि लो्ग ब्लोगिंग से क्युं सन्यास ले लेते हैं लेकिन ब्लोगिंग में लोग आते ही क्युं हैं इस पर आप के विचार जानना चाहेगें हांलाकि कुछ कारण डा अनुराग जी ने बताये हैं लेकिन फ़िर भी आप के सोच इस पर क्या है?
जवाब देंहटाएंआप की चिठ्ठाचर्चा की नियमत्ता के हम हमेशा से कायल रहे हैं, अपनी सारी व्यस्ताओं के बावजूद आप कैसे इतने लंबे समय से नियमत्ता बनाये हुए हैं उसका राज भी बताइए?
अनिल पुसादकर जी को बधाई। बहुत से ऐसे अच्छे चिठ्ठे हैं जिनके बारे में हमें चिठ्ठाचर्चा पर ही पता चल पाता है, इन चिठ्ठों के बारे में लिंक देने के लिए हम चिठ्ठाचर्चा के आभारी हैं, लेकिन आप कैसे इन चिठ्ठों को खोज लेते हैं वो तो बताये, अग्रेगेटर के पास आये सारे चिठ्ठे खोल कर पढ़ना तो संभव नहीं है।