हिंदी ब्लॉगिंग आज एक वैकल्पिक मीडिया माध्यम का रूप लेती जा रही है ! एक कंप्यूटर और नेट का कनेक्शन हमें मूक और निष्क्रिय पाठक से बडबोला आलोचक बना देता है ! सेर के लिए सवा सेर ! अखबारें और इलेक्ट्रानिक मीडिया की हरकतों पर जी भर कर निंदालोचना इस नए माध्यम से संभव हुई है ! हमें अखबारों के पाठकों की चिट्ठी चौपालों पर भी अब ज़्यादा विश्वास नहीं रहा ! वे भी नियंत्रित हैं ! ब्लॉग पर गलत को गलत कहने में डर नहीं , सो खुल के बोला जा रहा है ! अभिव्यक्ति के माध्यम के इस विकल्प का इस्तेमाल हिंदी ब्लॉगर कर रहे हैं ! कितनी ज़िम्मेदारी से यह एक दीगर बात है ! अफलातून जी की पोस्ट में पारम्परिक मीडिया की अति व्यावसायिकता और गैरज़िम्मेदारी पर खुल कर लिखा गया है !
पर बिग बी को विकल्पों की ज़रूरत क्यों ? अपनी बात कहने के लिए मीडिया के बाकी सब माध्यम क्या काफी न थे जो वे ब्लॉगिंग में भी आन कूदे ? चवन्नी चैप जी के ब्लॉग पर पढिए अमिताभ जी ब्लॉगिंग क्यों करते हैं
दूसरे माध्यम मुझे वह अनन्यता नहीं देते, जो कई बार मैं चाहता हूं। लोगों तक पहुंचने के लिए मैंने उनका इस्तेमाल किया है, लेकिन उन पर मेरी निर्भरता सीमित है। ब्लॉग पर कोई अड़चन नहीं है।
सैलेब्रिटी ब्लॉगरों के द्वारा ब्लॉगिंग की शुरुआत अच्छा लक्षण है ब्लॉग के लिए ! मेरे खयाल से ब्लॉगिंग अंतत: एक जन - माध्यम ही रहेगी ! जन मंच पर जन भाषा में ! इसे साहित्यकारों या सैलिब्रिटीज़ के द्वारा कभी हस्तगत नहीं किया जा सकेगा ! सबके पास बराबर तौर पर तकनीक मौजूद होगी कोई राजा होगा तो अपने घर का यहां वो अनेक ब्लॉगरों में से एक ब्लॉगर ही होगा ! जिस अनन्यता की तलाश में अमिताभ यहां आए वह इसी घुल - मिल जाने में होगी ! एकसारता जिसे आप कह सकते हैं ! दूसरे माध्यमों का वनवे ट्रैफिक ये नहीं टू वे ज़ोन है यह ! तभी अमिताभ जी को कहते हैं -
संक्षेप में, यह अनुभव आह्लादक रहा है। अपने प्रशंसकों और शुभेच्छुओं से जुड़ पाना उद्घाटन रहा। इस माध्यम ने बगैर किसी बिचौलिए के मुझे स्वतंत्र संबंध दिया है। इसमें मीडिया से होने वाली भ्रष्ट प्रस्तुति की संभावना नहीं है। इस संबंध से मैंने बहुत कुछ सीखा है। मेरे ब्लॉग पर आने वाले हमारे बीच विकसित हुए व्यक्तिगत समीकरण को महसूस करते हैं और वह बहुत प्रीतिकर है।
मीडिया के तमाम चैनलों की सनसनीखेजता बडबोलेपन और मूल्यहीनता से आहत महाशक्ति तो कह बैठते हैं -
मैने नही सोचा था कि अन्य ब्लागरों की तरह जूता पुराण का लिखने का हिस्सा बनूँगा, किन्तु इसका मुख्य कारण मीडिया का बड़बोला पन है। जो अपनी बेहुदगी से बाज नही आ रही है। आज कल तेज न्यूज के दौर में ये समाचार वाले इतनी गिरी स्थिति में पहुँच गये है कि कहीं बलात्कार भी हो रहा होगा तो वे सबसे तेज के दौर इसका भी सजीव प्रसारण कर रहे होगे। क्योकि सच दिखाना मीडिया काम है और वे इसे कई ऐगेल से दिखायेगे।
चुनाव क्या आए जूते चप्पल खडांऊ खाने वाले नेताओं की तो इज़्ज़त का फलूदा ही बनाया गया ! कोई पूजनीय , अनुकरणीय , उद्दरणीय नेता नहीं बचा क्या ? कौन हो प्रधानमंत्री ? कौन हो संतरी ? क्या फर्क पडता है - कोउ नृप हो ? हमें तो जूते ही मारने हैं ! वे हैं ही इस लायक ! मजबूर , घाघ , बेशर्म , मतलबी ! ब्लॉगर उबल पडे हैं ! गंदों में काना राजा कौन होगा ? मजबूरों में कम मजबूर कौन होगा ? चोट्टों में कम चोट्टा कौन होगा ? जहां मीडिया उनके जूते चाट रहा है वहीं आम लोग और ब्लॉगर जूते मार रहे हैं ! हम कहते हैं कि पिछले जन्म के हत कर्मों से वे जूता खाने वाले नेता बने ! और वे कहते हैं कि हम गत जन्म के सत कर्मों से ( जूता चाटने वाले ) नेता बने ! पुण्य प्रसून वाजपेयी की पोस्ट पढिए ! उनका मानना है कि घायल ताज की छांव ने बदल दी तस्वीर चुनाव की !
मजबूर नहीं मजबूत प्रधानमंत्री चाहिए - किसी की मजबूरी का मजाक उडाना अच्छी बात नई है !
चोट्टी के नेता - और नेताओं की चोट्टी
बीजेपी के सिपाही ने आडवाणी पर चप्पल फेंकी - जूता- चप्पल कंपनियों की बल्ले बल्ले
कैसे कहें उन्हें मजबूत प्रधानमंत्री - हमारे मजबूत या कमजोर कहने से उनको भला क्या फर्क पडता है ?
घाघ नेताओं के जमघट में बेबस आयोग - मैं गाउं तुम सो जाओ ........
मजबूरी का महिमामंडन - माया मेमसाब ! लेडीज़ फर्स्ट !
पड रहे हैं जूते ,चप्पल और खंडाऊ - हमने तो सुना था कि सिर्फ आशिक ही जूते चप्पल खाते हैं
वैसे इतनी सारी जूतमपैजार के बाद हमें सबकी पोस्टों ने कंफ्यूज़ भर किया ! असल काम तो अनिल जी ने कर दिखाया ! अनके यहां पूरी भारत सरकार का भावी बढिया पैकेज तैयार है जाकर अपना वोट आप भी डाल आएं -
प्रधानमंत्री: समीर लाल
कानून मंत्री: दिनेशराय द्विवेदी
विदेश मंत्री: ताऊ रामपुरिया
यातायात मंत्री: ज्ञानदत्त पांडे
महिला और बाल विकास मंत्री: रचना
युवा विकास मंत्री: कौतुक
तकनीक मंत्री: रवि रतलामी
शिक्षा मंत्री: दीपक भारतदीप
प्रेम मंत्री: अनिल कांत
अगड़म-बगड़म मंत्री: आलोक पुराणिक
एवरी थिंग इज़ फेयर इन वार लव एंड पॉलिटिक्स एंड इन ब्लॉग टू ! इतनी सारी गाली और इतना सारा मजाक नेताओं का ई तो हमारा हक ठहरा और काम भी ! बिग बी पास आ रहे हैं हमारे और नेता दूर जा रहे हैं ! आह क्या विरुद्धों का सामंजस्य है !
चलते चलते चित्ठाजगत की नई कलियों का भंवरों रूपी कमेंटों से स्वागत करते रहिए
1. चिट्ठी- पाती (http://chitthipaati.blogspot.com/)
2. Who am i ... Rahul K. Maurya (http://rahul-thebond.blogspot.com/)
3. anuraglekhak (http://anurag-lekhak.blogspot.com/)
4. जो गुज़र गई, कल कि बात थी. (http://jogujargai.blogspot.com/)
5. SUMAN-SATISH (http://satishchandramishra.blogspot.com/)
6. कर्ण कायस्थ चिठ्ठी (http://karna-kayastha.blogspot.com/)
7. देख कबीरा (http://subhashinmedia.blogspot.com/)
8. जीवास्व (http://jeevaswa.blogspot.com/)
9. surat'e haal (http://suratehaal.blogspot.com/)
10. kalam ki aawaz (http://sunilchitrakooti.blogspot.com/)
11. sarangarh (http://indiasarangarh.blogspot.com/)
12 दिविक रमेश http://divikramesh.blogspot.com/
बडी बढिया चर्चा रही. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएं"हिंदी ब्लॉगिंग आज एक वैकल्पिक मीडिया माध्यम का रूप लेती जा रही है" - मैं सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंएक अच्छी चर्चा.. पर अमिताभ यहाँ ज़बरदस्ती ठँसे हुये लगते हैं..
जवाब देंहटाएंताज़ा हालात तो यह हैं, कि
उधर एक ज़ूता चलेगा.. अगला ज़ूता चलने तक मीडिया इसे ही चलाता रहेगा । अनजाने में ब्लागर एक ज़ूते का ज़वाब सैकड़ा ज़ूतामय पोस्ट लिख कर देगा..
यानि ज़ूतामय हम भारतखँडे जानि.. पर ऎसा क्यों है.. ज़ूते खाने से नेता कद रातों रात बढ़ जाता है !
" ऐसा क्यों होता है...ये सवाल है... " " ऐसा क्यों होता है...ये सवाल है...कल तक वरुण गांधी अपना अस्तित्व ढूंढ़ रहे थे। हाथ-पैर मार रहे थे, लेकिन 'सफलता' कोसों दूर थी। आज वह खुश हैं और अपने साथियों से कह रहे हैं कि अब 'डिमांड' बढ़ गई है। आखिर जिम्मेदार कौन है...।
.... तब आखिर ऐसा क्या किया जाए कि हम सभी बच जाएं इस तरह के नेताओं के पैदा करने के लिए जिम्मेदार होने के अपराधबोध से। कुछ नहीं...बस थोड़ी सी सावधानी बरतने की जरूरत है। जब भी ऐसा महसूस हो कि कोई हमें 'ठगने' की कोशिश कर रहा है, हम सतर्क हो जाएं। कोई भी ऐसी प्रतिक्रिया न दें जिससे 'उसके' द्वारा लगाई जा रही आग को हवा मिले। संयम रखें खुद पर। न गलत ठहराएं उसे न सही... बस करने दें उसे कोशिश...। यकीनन, थक जाएगा वह थोड़ी ही देर में...आग लगाते-लगाते...और ढूढ़ते-ढूढ़ते अपने लिए उपयुक्त राजनीतिक दल। और हम बच जाएंगे ऐसे ही एक और नेता को ढोने से..."
इस सबसे धुर अलग मेरे पड़ोसी की चिन्ता अपने बेटे के लिये अलग तरह की है " बाहर मत जाना अकेले......। " बाहर मत जाना अकेले......।
अकेले दरवाजा मत खोलना।
पार्क में किसी अनजान आदमी के पास न जाना।
प्रसाद ही क्यों न हो पुजारी का दिया, बाहर किसी से लेकर कुछ न खाना।
सीखा रहा हूं अपने बेटे को रात दिन।
लेकिन
किसी को दरवाजे पर देखकर दरवाजा खट से खोलना
दरवाजा खुला देख कर फट से बाहर निकलना।
इंसान को देखकर, भले ही अनजान हो मुस्कुराना।
तीन साल की जिंदगी में ही सीख चुका है वो इतनी बाते।
जो उसकी जिंदगी को आसान नहीं मुश्किल कर देंगी।
उसको सीखना है किसी भी तरह से जिंदा रहना।
उसे फरिश्तों में नहीं इंसानों में रहना है।
इधर एक राहतभरी खबर यह है, कि कल निट्ठल्ला भी एक ज़ूता-पोस्ट लिखते लिखते भी लिखने से बच गया !
पर,, एक अच्छी समसामयिकी चर्चा से आज रूबरू हैं, हम !
भंवरों रूपी कमेंटों
जवाब देंहटाएंdhyanvaad dhynavad bhasha ko shaii karnae kaa ab kament shabd itna bhi bura nahin haen ki tippani banaa diya
कल एक चिट्ठी सरहद से मिली ....पहाडो के बीच से ..कितने केबल के वायरो से गुजर कर कम्पूटर पे आकर गिरी..आप भी पढिये ....
जवाब देंहटाएंएक फौजी का ख़त
"कौन हो प्रधानमंत्री ? कौन हो संतरी ? क्या फर्क पडता है - कोउ नृप हो ? हमें तो जूते ही मारने हैं ! वे हैं ही इस लायक ! मजबूर , घाघ , बेशर्म , मतलबी ...."
जवाब देंहटाएंअब हमें ऐसे नेता खोजने चाहिए जिनका जनता आदर करना सीखे, वे अपना सम्मान अर्जित करें और जनता सही दिल से उन्हें चाहें। पर... सवाल एक करोड का यही है कि कहां खॊजें :)
मंत्री मंडल में अनूप शुक्ल ’फुरसतिया’ जी ’लोक सभा अध्यक्ष का पद नहीं दर्शाया गया है. बहुत बखूबी अंजाम देंगे वो इस काम को. :)
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा है, लगता है डाक्टर अमर को अमिताभ जी से कुछ चिढ़ है। अमिताभ एक सामान्य व्यक्ति हैं लेकिन कलाकार वे अनूठे हैं। वे ब्लाग पर कुछ लिखते हैं तो कभी कभी उस की चर्चा होनी चाहिए। आलोचना ही क्यों न हो।
जवाब देंहटाएंजूता कांड कब होगा
जवाब देंहटाएंरावण कांड की तरह।
अभी तो जो बज रहा है
वो जूताराग, जूतासाज या जूता राग .......
नीलिमा जी, आपकी चर्चा शैली सादगी भरी है जो सकून देती है। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंये ‘कमेन्ट’ और ‘टिप्पणी’ की तुलना समझ नहीं पाए हम। कोई मदद करेगा?
मंत्रिमंडल शानदार है । आपकी चर्चा के लिये धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमेरे खयाल से ब्लॉगिंग अंतत: एक जन - माध्यम ही रहेगी ! जन मंच पर जन भाषा में ! इसे साहित्यकारों या सैलिब्रिटीज़ के द्वारा कभी हस्तगत नहीं किया जा सकेगा ! सबके पास बराबर तौर पर तकनीक मौजूद होगी कोई राजा होगा तो अपने घर का यहां वो अनेक ब्लॉगरों में से एक ब्लॉगर ही होगा !सत्यवचन! जय हो!
जवाब देंहटाएंब्लाग अब स्थाई तौर पर अभिव्यक्ति के लिए एक खुला माध्यम बनता गया है ! प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता भी कम हो रही है और गुणवता भी ! केवल जोडू तोडू जुगाडिया साहित्यकार ,पत्रकार मुद्रण माध्यमों से चिपके रहेंगें /रहेंगीं जो पूजीपतियों को सब्जबाग दिखाकर मलाई चाटने की आदत पाले हैं ! या वे जो अपनी जड़ता के कारण पी सी पर बैठना नहीं चाहते ! इनके दिन बस अब गिने गिनाये ही हैं -देखते चलिए !
जवाब देंहटाएंजिस दिन बड़े घरानों को लगा कि ब्लॉग भी कामधेनु हैं इन चारणों -चाटुकारों के दिन लद जायेंगें या ये मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगें !
नेता क्या क्या खाते हैं, यह अन्वेषण का विषय हो सकता है. फिलहाल तो जूते खा रहे हैं. अमिताभ क्या आज कल तो हर सेलेब्रिटी ब्लॉग लिख रहा है. -कौतुक
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