रविवार, मई 01, 2005

ज़रा सा कठिन है, नया लिखना

  • रमन बी ने शोभा डे की किताब का रोचक समीक्षानुमा विवरण दिया। जैसे किताब का सार ही निचोड़ दिया।
  • लाइलाज आशावादी रमन कौल का संदेश है:-
    "भविष्य की योजना ऐसी बनाओ जैसे सौ साल जीना हो, काम ऐसे करो जैसे कल मरना हो।" चलते चलते यह बता दूँ कि मेरे लिए आशा के बिना बिल्कुल जीवन नहीं है, चाहे लड़े, चाहे मरें, आशा के साथ अग्नि के सात फेरे जो लिए हैं।

  • स्वामीजी ने बताया दिशा वो जिधर चल पड़ो। हेगेल के डायलेक्ट के अलावा एक खासियत इस पोस्ट की थी कि इसमें कमेंट सीधे हिंदी में किये गये। लगता है सजाने संवारने के लिये स्वामीजी ने इसे हटा लिया बाद में। हिंदी में लिखने के बारे में आलोक के लेख पर चौपाल में सिर्फ आलोक-स्वामी संवाद देखकर थोड़ा अचरज हुआ। आशा ही जीवन के बजाय स्वामीजी मानते हैं -प्रपंच ही जीवन है। हिंदी ब्लागर से सूचना अपेक्षाओं के बारे में कह रहे हैं स्वामी।

  • मुनीश के कविता सागर में कुछ और नायाब मोती निकले।
  • हिंदी के दिन कब बहुरेंगे पूछते हुये रवि रतलामी आशा ही जीवन है लिखते हुये बताते हैं अपना किस्सा जिसे सुनकर आशावाद बढ़ जाता है। इंटरनेटजालसाजी के बारे में बताया विस्तार से। हिंदी फान्ट दुनिया की सैर, जानकारी से भरी है।

  • ज्ञानविज्ञान में लेखों की विविधता बढ़ती जा रही है। खड़कपुर आई.आई.टी के लोगों ने जूट की सड़कें विकसित की हैं जो भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल हैं तथा सस्ती हैं। इसके पहले शून्य की महत्ता तथा पुरुषों के लिये परिवार नियोजन पर आये।
  • सूचना क्रान्ति के दौर में पत्र नदारद होते जा रहे हैं । विजय ठाकुर इसके बारे में पड़ताल करते हैं। यह भी कि सूचना क्रांति के क्या नकारात्मक पक्ष हैं।
  • हाइकू की बहती गंगा में देवाशीष भी डुबकी लगाने से नहीं चूके।
  • भारतीय लिपियों को देवानागरी में कैसे बदल बदल सकते हैं यह आलोकबताते हैं गिरगिट की बात करते हुये।
  • अमेरिका की खुशी में भारत की खुशी खोजने वाले अनुनाद को आशा है कि भारतीय भाषाओं का सर्च इंजन जल्द ही आयेगा।
  • अतुल अरोरा ने बकरमंडी से नई कहानी को टेम्पो पर बिठा दिया है। टेम्पोवाला कुछ नखरे कर रहा है। देखो कौन इसको आगे ले जाता है?
  • विजय ठाकुर के स्कूल के बच्चे दिन पर दिन समझदार होते जा रहे हैं। असल में ब्लाग शायद यही लिख रहे हैं।

  • तीन पीढ़ियों के सहित १००वां जन्म-दिवस मना रही महिला से मिलवाते हैं महावीर शर्मा। इसके पहले वे लंदन में वैसाखी उत्सव के बारे में बताते हैं।
  • दुआ मे तेरी असर हो कैसे
    सिर्फ़ फूलों का शहर हो कैसे
    यह बात पूछते-पूछते मानोशी फुटपाथ पर पहुंच जाती हैं तथा उनके आराम से सो जाने के बारे में लिखती हैं।
  • सरदार, जो दारु के पैसे बेहिचक मांगता है, की साफगोई से प्रभावित हो गये जीतेन्द्र। अपने पुराने लेख भी सहेज के रखे।
  • रिश्तों की बारे में रति जी बताती हैं:-
    रिश्ते
    ऐसे भी होते हैं
    चिनगारी बन
    सुलगते रहतें हैं जो
    जिंदगी भर
  • आउटसोर्सिंग की संभावनाओ का विस्तार तांत्रिकों -ओझाओं तक हो चुका है बताते हैं अतुल। अमेरिकी जीवन के अनुभव से रूबरू कराते हुये बता रहे हैं कि कैसे वहां गाड़ी 'टोटल' होती है।
  • शंख सीपी रेत पानी में कमलेश भट्ट फिर-फिर अपनी जमी-जमी जमायी कवितायें पढ़ा रहे हैं:-
    कौन मानेगा
    सबसे कठिन है
    सरल होना.

    फूल सी पली
    ससुराल में बहू
    फूस सी जली
    लिखने का मन होता है:-
    कौन मानेगा
    ज़रा सा कठिन है
    नया लिखना।
  • पंकज मिले गुरुद्वारे में फिर कहते हैं - पूछो न कैसे रैन बिताई?
  • हरीराम बता रहे हैं हिंदी में बोलकर लिखाने की तकनीक के बारे में।
  • डा.जगदीश व्योम आवाहन करते हैं:-
    बहते जल के साथ न बह
    कोशिश करके मन की कह
    कुछ तो खतरे होंगे ही
    चाहे जहाँ कहीं भी रह।
  • मुंगेरीलाल के हसीन सपनों से आप परिचित होंगे। मुंगेरीलाल की कहानी सुना रहे हैं तरुण। जीवन-आशा पर भी हाथ साफ किया गया।
  • फुरसतिया ने कानपुर में हुये कवि सम्मेलन के माध्यम से बताया कि कविता के पारखी अभी भी मौजूद हैं। जीवन में आशा ही सब कुछ नहीं नहीं है यह बताते हैं। इसके पहले कविताओं तथा हायकू पर भी हाथ आजमाये।

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