बुधवार, अगस्त 21, 2013

लड़कियाँ, अपने आप में एक मुक्कमिल जहाँ होती हैं


जईसा कि हम बताये थे कि अगडम-बगड़म बाबू के इशरार पर चर्चा करना शुरु किये थे -एक बार फ़िर दुबारा। शर्त यह थी कि ऊ भी अपना कुछ  बयान बाजी करेंगे। लिखेंगे। हम उसकी चर्चा करेंगे। लेकिन ऊ हमको दौड़ा के खुद आरामफ़र्मा हो गये रेफ़री की तरह। फ़िर हमने उलाहनियाया कि भाई ऐसे त न चलेगा। लिखना तो पड़ेगा कुछ न कुछ। फ़िर उन्होंने मारे ब्लॉग लिहाग के एक ठो पोस्ट लिख ही डाली-१५ अगस्त का तोड़ू-फोड़ू दिन !!!  

पोस्ट साथी  ब्लॉगरों से मिलन-जुलन वाली थी। फ़र्रूखाबाद की सोनल , अलीगढ़ की शिखा और उन्नाव/आजमगढ़ की आराधना और प्रेम कथा लिख्खाड़ अभिषेक के साथ बेचारे देवांशु। कहने को तो पंद्रह अगस्त का दिन झण्डा फ़हराने का होता है। लेकिन इन धाकड़ ब्लॉग लेखिकाओं के बहुमत की बलिहारी कि सबने मिलकर बेचारी देवांशु को ही झंडे जैसा फ़हरा दिया। क्या -क्या नहीं कराया? बेचारे से ट्रे उठवायी, नाश्ता लगवाया और करेला ऊपर से नीम  चढ़ा कि उसकी निजता का उल्लंघन करते हुये फ़ोटू भी सटा दी। यह सब तब हुआ जब देश आजादी के तराने गा रहा था। ब्लॉगिंग  जो न कराये। किस्सा आप तसल्ली से यहां पढ़ सकते हैं जिसके सबसे मार्मिक अंश देखिये:
DSC01458शिखाजी ने अपनी नयी किताब “मन के प्रतिबिम्ब" हम लोगो को गिफ्ट की | अभी पढ़ नहीं पाए हैं , उसके बारे में फिर कभी  | आजकल “ट्यूसडेज विध मोरी” पढने में टाइम निकला जा रहा है | ये किताब पिछली मुलाकात में अनु जी ने सजेस्ट की थी | पहली बार कोई किताब पढ़ रहे हैं जो हर पन्ने पर अपना समय मांग रही है  | बहुत बढ़िया किताब है   |
 
 कभी पन्द्रह अगस्त को  अंग्रेजों के लंदन वापस जाने की खुशी की में लड्डू बंटते थे। बताओ आज हाल यह हुआ कि लंदन पलट   ब्लॉगर ने कविताओं की किताब बांट दी।  अब ये भले पढ़ें न पढ़ें लेकिन सबको समीक्षा जरूर लिखनी पड़ेगी। समीक्षा मतलब तारीफ़। लेकिन देवांशु भी कम समझदार नहीं हैं। अगले ने बता दिया कि अभी वो अंग्रेजी की किताब पढ़ रहा है। उसको हर पन्ने की जगह हर लाइन को टाइम देना चाहिये। और जब कभी समीक्षा करनी भी पड़े कविताओं की तो रविरतलामी द्वारा सुझाये कविता मीटर पर करनी चाहिये। कोई टोक भी न पायेगा। कह दे साफ़्टवेयर कहिस है हम का करें। वैज्ञानिक समीक्षा है।

देश कहां जा रहा है।  किधर जा रहा है । अक्सर लोग पूछते हैं। हम भी पूछ चुके हैं एक बार। लेकिन जब यही सवाल सुखी होने की पड़ताल में जुटे प्रमोद जी पूछते हैं तो जबाब नहीं सूझता। लगता है कोई कड़क हेडमास्टर किसी रट्टेबाज से उसका कडक के उसका नाम भर पूछे तो हकबका के लड़का सॉरी बोलने लगे। देखिये :

लोग कमा रहे हैं. तेल-साबुन लगा रहे हैं. गांव से छूट-छूटकर शहर आ रहे हैं. हैसियत बनती है तो गोल बना रहे हैं, वर्ना खाने की पुरानी आदत है लात खा रहे हैं. जो थेथर हैं जमे हुए हैं (ज़्यादा थेथर ही हैं, ज़िंदगी ने बना दिया है); हाथ में रोटी आने पर अब भी जिनकी चमकती है आंखें, ऐसे बकिया ग़लत गा‍ड़ि‍यों पर चढ़कर वापस गांव भी आ रहे हैं! गांव की धरती ‘सोना उगले, उगले हीरा-मोती’ की लीक पर उबल रही है. बहुत सारे गांववाले जल रहे हैं. ज़मीनों के भाव बढ़ रहे हैं. पूरी दुनिया का यही हाल है. लात खायी दुनिया के मूर्ख, ज़ाहिलों, गंवारों की ज़मीनें कौड़ि‍यों के मोल खरीदी जा रही हैं. देश सही जा रहा है.

ये कहानी सुनाई थी प्रमोद जी ने पांच साल पहले । इस बीच वो वाली बाजा कंपनी दिवालिया होकर फ़ूट ली जिसमें अपना आवाज चढ़ाये थे। कंपनी संग में आवाज भी ले गयी। लेकिन ये कोई कोयला मंत्रालय का फ़ाइल त नहीं है न जो गया त गया। प्रमोद जी ने फ़िर से अपना आवाज प्रदान किया और पूरा किस्सा फ़िर से उसई आवाज में सुनाया कि देश किधर जा रहा है। सुनिये तनि इहां।  सुनते हुये इसको बांचते भी रहियेगा त किस्सा अच्छे से समझ में आयेगा। देखिये सु्निये क्या हाल है हो रहा है देश का कि नहाने का पानी, नींद और सपना तक बाजार में उपलब्ध है:

सब स्‍वस्‍थ है. मेडिकल इंश्‍युरेंस हैज़ बीन टेकेन केयर ऑफ़. वी बाइ ऑल अवर बेदिंग वॉटर. यू हर्ड ऑफ़ दैट अमेज़िंग गुड शॉप व्‍हेयर दे सेल स्‍लीप? सम वन जस्‍ट मेंशन्‍ड दे आर गोइंग टू स्‍टार्ट सेलिंग शिट. आई अम गोइंग टू बाइ इट! बाइ इन माई सपना, बाइ इन माई स्‍लीप. बाइ बाइ बाइ. टिल आई डाय. ओह, सो मेसमैराइजिंग, आई कांट टेल हाऊ हाई आई फ्लाई. आई डोंट रिमेंबर व्‍हेन वॉज़ द लास्‍ट टाईम आई आस्‍क्‍ड व्‍हाई. व्‍हाई बॉदर, गेट वेस्‍टेड एंड ट्राई? देश सही जा रहा है. बच्‍चे ज़्यादा समझदार हो गए हैं, मां-बाप के यार हो गए हैं. लड़कियां भी धारदार हो गई हैं. सेक्‍स वॉज़ नेवर सो एक्‍साइटिंग बिफोर. व्‍हॉटेवर वॉज़ सो एक्‍साइटिंग अर्लियर, यू बगर, रिटार्डेड, बास्‍टर्ड? हंसते-हंसते आप मुझे गालियां दे सकते हैं, चलती रेल से ठेल कर गिरा सकते हैं, गिराने का कैसा दु:ख हुआ है उसपर फिर टीवी के लिए एक शो भी बना सकते हैं. हाथ-पैर पटकूं तो ताज्‍जुब कर सकते हैं, घर के अंदर बनायी अपने मंदिर में ओम जय जगदीश गा सकते हैं. आपके इरादे नेक़ हैं. आप दायें बायें कहीं भी दे सकते हैं हमें फेंक. सब सही होगा. क्‍योंकि देश सही जाता होगा..

देश का बात करते हुये फ़िर देश की तरफ़ लौटना पड़ेगा जी। आज रक्षाबंधन है। सो कई लोगों ने इस मौके वाली पोस्टें सटाई हैं। अमित यादों के पिटारे से राखियां  लाये हैं:
उस समय राखियाँ स्पंज वाली और बहुत बड़े बड़े फूल वाली होती थीं । उन पर सुनहरे रंग के प्लास्टिक के विभिन्न डिजायन वाले आकृतियाँ लगी होती थीं और राखी के अगले दिन हम लोग उसे हाथ में बांधे बांधे स्कूल जाया करते थे । कुछ बच्चों के हाथों में कलाई से लेकर ऊपर बांह तक राखियाँ बंधी होती थीं । मै सोचता था कितनी बहने हैं इसके और मेरी एक भी नहीं । बाद में पता चला ,वो बच्चे खुद ही इतनी सारी  राखियाँ अपने हाथों में बाँध लेते थे । उस समय राखियों की गिनती से समृद्धता का एहसास होता था ।











रश्मि रविजा ने भाई-बहन के निश्छल स्नेह के कुछ अनमोल पल संजोये हैं। संजय दत्त का किस्सा पढिये:
एक प्रोग्राम में उनकी बहन प्रिया बता रही थीं. संजय दत्त सबसे बड़े थे,इसलिए दोनों बहनों को हमेशा इंतज़ार रहता कि राखी पर क्या मिलेगा,वे अपनी फरमाईशें भी रखा करतीं.पर जब संजय दत्त जेल में थे,उनके पास राखी पर देने के लिए कुछ भी नहीं था. उन्हें  जेल में कारपेंटरी और बागबानी  कर दो दो रुपये के कुछ कूपन मिले थे. उन्होंने वही कूपन , बहनों को दिए. जिसे प्रिया ने संभाल कर रखा था और उस प्रोग्राम में दिखाया. सबकी आँखें गीली हो आई थीं.
सतीश सक्सेना 19 अगस्त से ही भावुक हो लिये और  रक्षा बंधन के दिन पर, घर के दरवाजे बैठ कर गुनगुनाने लगे:
पहले घर के,  हर कोने  में ,
एक गुडिया खेला करती थी
चूड़ी, पायल, कंगन, झुमका 
को संग खिलाया करती थी
जबसे गुड्डे संग विदा हुई , हम  ठगे हुए से बैठे हैं  !
कौवे की बोली सुननें को, हम  कान  लगाये बैठे हैं !

पहले इस नंदन कानन में
एक राजकुमारी रहती थी
घर राजमहल सा लगता था
हर रोज दिवाली होती थी !
तेरे जाने के साथ साथ ,चिड़ियों ने भी आना  छोड़ा !
                                    चुग्गा पानी को लिए हुए , उम्मीद  लगाए बैठे    हैं !

सतीश जी जिस छंद में अपने गीतों की रचना करते हैं यह तो वे ही जानते होंगे या फ़िर सुधी साहित्यकार। अगर कोई हमसे कहे तो हम कहेंगे कि ये पारिवारिक छंद है। पारिवारिक छंद इसलिये कि इसमें चार छोटी लाइनें होती हैं दो बड़ी लाइने। चार छोटी लाइनें मतलब मियां, बीबी, दो बच्चे। दो बड़ी लाइनें मतलब मियां-बीबी के मां-बाप। अपनापे और भाईचारे का मजबूत सीमेंट  भावुकता के साफ़ पानी में घोलकर सतीश जी चकाचक पारिवारिक छंद में रचनायें रचते रहते हैं। 

सतीश जी इत्ते अच्छे गीतकार हैं। एक  ठो किताब भी आ गयी उनकी। लेकिन अभी तक उन्होंने अपना कोई उपनाम बोले तो तखल्लुस नहीं रखा। अगर रखा होगा भी तो अपन को पता नहीं। बिना तखल्लस के शायर बिना घपले की सरकारी योजना सरीखा लगता है। सो सतीश जी को  भी तखल्लुस रख ही लेना चाहिये। हमने आज ही फ़ेसबुक में देखा कि वे मूलत: बदायूं के रहने वाले हैं।  अगर वे ठीक समझें तो शकील बदायूंनी की तर्ज पर अपना गीतकार के लिये नाम सतीश बदायूंनी रख सकते हैं।


 मनीष कुमार को  इंडीब्लॉगर इनाम से नवाजा गया। उनको बधाई। देश नामा के लिये खुशदीप को भी इनाम मिला उनको भी बधाई। खुशदीप से किसी ने पूछा कि क्या करोगे इनाम का तो उन्होंने जो बताया वो आप यहां देख सकते हैं। खैर यह तो हरेक का  अधिकार है कि वह मनचाही हरकत करे। लेकिन हमारी याद में  खशदीप सबसे ज्यादा सक्रिय ब्लॉगर रहे हैं। तीस दिन में तीस पोस्ट। वह कारनामा भी कभी दिखाते रहें।

My Photoमनीष कुमार 2006 से नियमित ब्लॉगिंग करने वाले लोगों में हैं। फ़िल्मों, गीतों, किताबों के अलावा सैर-सपाटे माने कि यायावरी के किस्से नियमित लिखते रहे। वार्षिक संगीतमालायें आयोजित करते रहे। बिना किसी विवाद लफ़ड़े के सात साल नियमित ब्लॉगिंग करते रहना अपने आप में एक उपल्ब्धि है। मनीष ने कुछ दिन चिट्ठाचर्चा भी है और संगीत से जुड़ी पोस्टों की चर्चा की है। उनकी  द्वारा की गयी चर्चायें  देखिये:
 मनीष को हर तरह से इंडीब्लॉगर पुरस्कार पाने के सुपात्र हैं। उनके ब्लॉग एक शाम मेरे नाम को इंडीब्लॉगर द्वारा सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग के पुरस्कार से नवाजा गया इसके लिये उनको बधाई।


ये इनाम हिन्दी को क्षेत्रीय भाषा का ब्लॉग मान के दिया गया। इस पर मिसिरजी ने आह्वान किया कि  विरोध स्वरूप लोगों को इनाम ठुकरा देने चाहिये। इसपर खुशदीप का कहना है कि मिला क्या जो ठुकरा दें। अब इतनी अकल तो इनाम देने वालों को होनी चाहिये कि हिन्दी क्षेत्रीय भाषा नहीं है। राजभाषा है। लेकिन दक्षिण भारतीय लोगों द्वारा चलाया /दिया जाने वाला इनाम अगर उन्होंने हिन्दी को क्षेत्रीय भाषा कहकर दिया तो उनको समझाना /बताना चाहिये था तब जब नामांकन चल रहा था। अब घोषणा के बाद यह आह्वान कि लोग इनाम ठुकरा दें  यह कुछ जमी नहीं बात। विरोध करके अगली बार के सुधरवा लें मामला वह अलग बात।

मेरी पसंद

लड़कियाँ,
तितली सी होती है
जहाँ रहती है रंग भरती हैं
चाहे चौराहे हो या गलियाँ
फ़ुदकती रहती हैं आंगन में
धमाचौकड़ी करती चिडियों सी

लड़कियाँ,
टुईयाँ सी होती है
दिन भर बस बोलती रहती हैं
पतंग सी होती हैं
जब तक डोर से बंधी होती हैं
डोलती रहती हैं इधर उधर
फ़िर उतर आती हैं हौले से

लड़कियाँ,
खुश्बू की तरह होती हैं
जहाँ रहती हैं महकती रहती है
उधार की तरह होती हैं
जब तक रह्ती हैं घर भरा लगता है
वरना खाली ज़ेब सा

लड़्कियाँ,
सुबह के ख्वाब सी होती हैं
जी चाहता हैं आँखों में बसी रहे
हरदम और लुभाती रहे
मुस्कुराहट सी होती हैं
सजी रह्ती हैं होठों पर

लड़कियाँ
आँसूओं की तरह होती हैं
बसी रहती हैं पलकों में
जरा सा कुछ हुआ नही की छलक पड़ती हैं
सड़कों पर दौड़ती जिन्दगी होती हैं
वो शायद घर से बाहर नही निकले तो
बेरंगी हो जाये हैं दुनियाँ
या रंग ही गुम हो जाये
लड़कियाँ,
अपने आप में
एक मुक्कमिल जहाँ होती हैं
-----------------------------------------
मुकेश कुमार तिवारी

और अंत में

आज के लिये बस इत्ता ही। आप सबको रक्षा बंधन मुबारक हो।
चलते-चलते दो ठो कार्टून देखते चलिये। एक काजल कुमार का और दूसरा राजेश दुबे का।

 



 

 

 

 



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शनिवार, अगस्त 17, 2013

दीदी...ऊ सूट को पहन के तुम कितनी अच्छी लगती हो तुम्हें मालूम है

Photo: बउआ-बउनी.. मीना कुमारी की 'छोटी बहू' में इनकी कास्टिंग न हो सकती थी.. चेहरे पर की क्रमश: खुशीआइल और मुरझाइल उसी के प्रतिक्रिया में है..कल चर्चा क्या की हमने शुक्रवार का रंग काला हो गया।  सोना उचक गया, डालर और भड़क गया। इधर अभी देख रहे हैं कि पाकिस्तान में एक सिरफ़िरे ने नशे में बवाल काटा। AK-47 लहराते हुये पाकिस्तान में शरीयत कानून लागू करने की मांग करता रहा। दुनिया में जाने क्या-क्या हो रहा है। लेकिन धरती  घूम रही है सूरज के चारो ओर इस सब से बेखबर। उसके बासिंदों पर क्या बीत रही है उसको कोई फ़िकर नहीं।

कल प्रमोद जी के कुछ पॉडकास्ट आपने सुने। जिन्होंने सुने उनका भला , जिन्होंने नही सुने उनका डबल भला। इस बीच अपने खजाने से उन्होंने कुछ और  पॉडकास्ट निकाले हैं और धर दिये हैं अपने ब्लॉग आंगन में। जिसको सुनना हो सुने आकर।

पहले उन्होंने तीन ठो रिकार्डिंग लगाई । उनमें से एक के बारे में जो दीदी के लिये लगाया गया है और जिसमें बाबू कहते हैं दीदी से  -कि दीदी तुमने बाल कटा के अच्छा नहीं किया पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये पूजा मने पूजा उपाध्याय  लिखती हैं-

दीदी...ऊ सूट को पहन के तुम कितनी अच्छी लगती हो तुम्हें मालूम है. और इसके पीछे बजता हारमोनियम...शाम में अचानक कितना अच्छा लगता है. लगता है जैसे पटना के घर में पहुँच गए वापस. भाई के साथ रियाज़ कर रहे हैं. आज भाई को राखी कुरियर किये हैं. मन कैसा कैसा भीज गया है.

दीदी...चलो न.
---
थैंक यू. बहुत बहुत बहुत सारा.

उनका ’टिपरी’ बांचकर कुछ मन का भीगाभागी  का खबर आता है और बताया जाता है कि :
शुक्रिया, पूजा, तुमरे मिठास से कुछ हमरो मन तरा. कौन-सी चीज़ कहां छू जाती है, क्‍यों छू जाती है यह भी जीवन का अनोखा प्रसंग है..

अब  भाई ई भी एक संक्रमण है। जब पॉडकास्ट लगने लगा तो लोग कहने लगे कि ऊ वाला सुनाइये ऊ वाला सुनाइये। सागर बाबू बोले कि मकान मालिक किरायेदार वाला लगाइये। लगा दिया गया मकानो वाला। लगाया नही गया ’चरा’  दिया गया।  सुनिये आप भी जीवन छूटता है मकान नहीं छूटता जिसमें किरायेदार पूरी जिम्मेदारी से कहता है:

"जब तक हम आपका एक-एक प‍इसा नहीं चुका देंगे तबतक आपके घर से नहीं निकलेंगे।”
अब जैसे कोई कवी देख लेता है कि ’सरोता’ कब्जे में आ गया तो दू-चार अपनी पसंद की भी सुना देता है तो इहां भी ब्लॉगर ठेल देता है अपना रैपिडेक्स इंगलिश  स्पीकिंग का रियाजी कोर्स। अंग्रेजी में किसी का रूमाल खोया किसी का जाने कौन रंग वाला अंतरवस्त्र। सुनिये। अंग्रेजी है लेकिन बुझायेगा। जुगलबंदी में है- लर्निंग इंग्लिश इन  अ फ़ैमिली काइंड ऑफ़ वे, वाया रुमाल एंड द अदर वूमन.. 

ई सब अव्वल दर्जे के आवाजी नगमें इस अंतरजाल सिंधु के नायाम रत्न हैं। जो दिखाई सुनाई दे रहे हैं उसको सुनकर उनकी याद करिये जो निर्मोही नेट के नखरे के चलते बिला गये। मुफ़्तिया साफ़्टवेयर जिनमें वे ’चरे’थे वे मेले में अपना सामान बेंचकर ठेला बड़ा ले गये।

आज आगे हम और कुच्छ बात न करेंगे। करने को वैसे बहुत है लेकिन ऊ सब फ़िर कभी। फ़िलहाल आप ई पांच ठो पाडकास्ट सुनिये। तब तक हम दफ़्तर बजा के आते हैं।

ठीक है न। और ई ऊप्पर वाला स्केच भी बनाइन हैं वही सुखी कैसे हों की तकलीफ़देह पड़ताल में जुटे प्रमोद सिंह की नोटबुक.. वाले। 

चलते-चलते सोच रहे थे कि आपको बेचैन आत्मा की कविता पढ़वायेंगे लेकिन ऊ जाने काहे के बदे अपने ब्लॉग पर ताला लगाये हैं। त खाली टाइटलै टाइप कर रहे हैं अनुप्रास हो न टाइटल टाइप में? शीर्षक है -चलो यार आंख लड़ाते रहें। 

फ़िलहालआपको कट्टा कानपुरी का एकदम सामयिक सुनाते हैं। अधुनिक त नहीं है लेकिन है ताजा। सुनिये। सुनिये नहीं जी परिये।

सोना उचका, डालर भड़का,
नेता मेढक ,काक्रोच हुये।

डूब गयी पनडुब्बी सिंधु में,
सीमा पे कोशिश नापाक हुई।

प्याज के नखरे जारी हैं जी,
उचका उचका घूम रहा है।

ठेले-ठेले नंगा फ़िरता था ,
अब जाने कहां फ़रार हुआ।

देश बेचारा हलकान हुआ है,
घपले,विकास में लटक गया।

पानी रिमझिम बरस रहा है,
मौसम क्यूट-स्वीट सा है।

चाय पी रहे हैं सुबह-सुबह जी,
आपका कहिये स्टेटस क्या है?

-कट्टा कानपुरी

अब हम सच्ची में फ़ूटते हैं नहीं त ई सब पर के कोई ’हमारा प्रमुख समाचार’ कर देगा।

आप मस्त रहिये। शनीचर देव आप पर मेहरबान रहें। 

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शुक्रवार, अगस्त 16, 2013

रूपाली जी, आप मेरे बारे में ऐसा सोच कैसे सकती हैं?


Photo: a new sketchy sketch of an old blastin' affair..बाबू देवांशु की बहुत दिन से अगड़म बगडम मांग है  कि चिट्ठाचर्चा होती रहनी चाहिये। उनका पक्का मानना है कि यह पवित्तर काम न करके हम देश और समाज के साथ जो नाइंसाफ़ी कर रहे हैं उसको पूरा देश भले माफ़ कर दे लेकिन वे न माफ़ कर पायेंगे क्योंकि इधर वे आजकल जरा बिजी टाइप चल रहे हैं सो अपना ब्लॉग तक लिखने के लिये समय नहीं ’नोच-निकाल’ पा रहे हैं तो माफ़ करने के लिये निकालने की तो बातै छोड़िये।


हां तो जी बात ब्लॉग की हो रही थी। ब्लॉगिंग के कम होने की बात दनादन होती रहती है और लोग लौट-लौट के इस घाट आते जा रहे  हैं। नये -नये प्रयोग कर रहे हैं। देखिये कल ही जे एन यू से पढे और अब कोरिया में आगे पढ रहे सतीश चन्द्र सत्यार्थी ने एक फ़ोटू का बेफ़ोर एंड आफ़टर कर डाला। वैज्ञानिक चेतना संपन्न डॉ अरविन्द मिसिर को कविताई का  शौक चर्राया तो झेला दिहिन अपने विगत की जीवन्तता   । अच्छा किया कि कविता के मोहर में मोहर प्रौढ़ता की ही लगी है। कवीता बांचकर कोई सोच सकता है कि जब प्रौढ़ के यहां इत्ती "अनगिन स्वर्णरेखी इच्छाएं" मचल रही हैं तो जवानी के काउंटर पर एकदम मामला एम्मी एम्मी होगा।

बात कबीता की चली तो सुनिये आप प्रमोद सिंह जी के यहां जाकर कबीता। ऐसा कबीता बनाये हैं कि आप बार बार मने कि अगेन अन्ड अगेन सुनना चाहेंगे। दू टाइप का कबीता है इसमें एक ठो तो मार्मिक टाइप का है जिसमें कभी-कभी टाइप वाला बात है और कवि कहता है:

कभी-कभी लगता है जीवन
लेटलतीफ़ी का लमका पसींजर गाड़ी है।
कभी कभी लगता है जीवन
विकट घाम में
टेरीलीन का बहुतै गड़ रहा साड़ी है।
कभी कभी लगता है जीवन
चार दिन का मेहराइल, मुर्झाइल
बासी सिंघाड़ा है
कभी कभी लगता है जीवन
भोरे उठके नहाये वाला
काठ मार जाये वाला जाड़ा है।
दूसरका कविता जरा अधुनिक है। अज्ञेय वाला। उसमें घोड़ा है , उसके कान का फ़ुंसी है गदहा है और  बहुत कुछ मने कि अधुनिकता का कम्प्लीट पैकेज है। आप सुनियेगा तो खुदइये समझ जाइयेगा। ई दू ठो कविता तो आपको सुनाई देगा - एक ठो चिरकुट और दूसरका अधुनिक। लेकिन तीसरा जो आपको सुनाई नहीं देगा ऊ वाला सबसे मार्मिक है। अब आप कहेंगे कि जो सुनाई नहीं देता वो मार्मिक कैसे हो सकता है। लेकिन है जी। वहिऐ तो सुनना है। ऊ उत्तरआधुनिक है। सुनिये जाइये इस लिंक को खोलिये  जिसका टाइटिल जिसे रीजनल लैंगुयेज में शीर्षक कहते हैं है-सिडनी बेशे का ट्रंपेट और जीवन की रेल..  ।बस 6.42 मिनट का कविता है। सुनिये जिसकी शुरुआत होता है खैनी के खतम होने के मार्मिक भाव से। ताली-वाली बजाने को बोलता है कवी लेकिन जरूरी नहीं आप ऊ सब पचड़े में पड़ें। निकल लीजिये आपको दूसरका सुनायेंगे। उसमें लव इस्टोरी है।

अब जब कवि कविता लिखेगा त प्रेम भी करेगा। लेकिन प्रेम आजकल करना बहुत डिफ़िकल्ट काम हो गया है। जमाना ऐसा आ गया है कि आदमी को रोटी, प्याज मिल जाता है लेकिन प्यार नहीं मिलता।आदमी मेहनत करता है लेकिन नायिका माइंड कर जाती है। देखिये इहां रूपाली जी माइंड कर जाती हैं और नायक रूपाली जी को अपनी बात कैसे कहता है पहिले पढ लीजिये जरा :

रूपाली आपने ऐसे सोच कैसे लिया?

मने आप मुझसे एक बार पू ऊ छ तो स क ती थीं न! आई वास आई वास देयर देयर ओनली। दिलीप या सुभाष की तरह मैं ऐसा कुछ विहेव करूंगा आपके साथ ! कल्पना दीदी मुझे जानती हैं। फ़िर आपके पड़ोस में और कौन वो शर्मा आन्टी भी मुझे जानती हैं।मैं क्लास सेवेन में था तब मैंने उनके यहां ट्यूशन किया है। तब आप लोग तब यहां नहीं थे। बोकारो में थे। सब सब मेरी एक स्टैंडिंग है इतना आप एक्सेप्ट करती हैं न! स्टैंडिंग है मेरी। मेरी कुछ रेपुटेशन है। थोड़ा मैं नहीं कह रहा हूं कि मैंने सारे बेस्ट ब्वाय वाले ही सारे काम किये हैं बट फ़िर भी किसी लड़की ने आपकी क्लास में मेरे बारे में कोई शिकायत की है? अनवारन्टेड शिकायत की है आप आप बताइये! ....



आगे आप खुद सुन लीजिये। सुनने का मजा पढ़ने में कभी नई आयेगा। अद्भुत प्रस्तुति है प्रमोद सिंह जी की। सुनने के लिये इस पोस्ट पर जाइये-
तुमि केमन करे गान करो हे गुनी..

ये  अद्भुत पॉडकास्ट ब्लॉगिंग के जरिये ही सुन पाये। कल सुने न होते तो आज देवांशु की मांग पूरी न करते। मटिया दिये होते। कल इनको दुबारा सुना तो मन किया आपको भी सुनायें। सुनिये और बताइये कैसे लगे।

अच्छा आप चाहते हैं हम भी कुछ सुनायें। तो सुनिये कट्टा कानपुरी की आज की प्रस्तुति:

निकल लिया 15 अगस्त कल,
अब 16, 17 की आई बारी है।

कल देश प्रेम के खूब दगे पटाखे,
सब धुंआ आसमान में तारी है।

कल तक प्याज के हल्ले थे जी,
देखें आज कौन नयी तरकारी है।

देश का इंजन भड़भड़ चालू है,
देखो आज किधर की तैयारी है।

चाय चकाचक चुस्त चुस्कियां ,
एक कप के बाद दूजे की बारी है।

-कट्टा कानपुरी


आज के लिये बस इतना ही। कल का कोई भरोसा नहीं। मस्त रहिये। व्यस्त रहिये। दुनिया में प्याज के अलावा भी बहुत कुछ बिकता है। :)

ऊपर वाला स्केच प्रमोद सिंह द्वारा । उनके और स्केच देखिये चिट्ठाचर्चा में। बकिया और देखने हैं तो चलिये  देखिये , खंगालिये - सुखी कैसे हों की तकलीफ़देह पड़ताल में जुटे प्रमोद सिंह की नोटबुक..

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