मंगलवार, नवंबर 27, 2007

बोलो कटर कट की जय


ज्ञानजी अपनी इमेज सुधारना चाहते हैं ऐसा मुझे लगा। आज उन्होंने अपनी पोस्ट के आखिरी में लिखा-
हत्या/मारकाट/गला रेत/राखी सावन्त के प्रणय प्रसंग/आतंक के मुद्दे पर लपेट/मूढ़मति फाउण्डेशन की निरर्थक उखाड़-पछाड़ आदि से कहीं बेहतर और रोचक है यह!

लगता है कि वे अपने साथ राखी सावन्त का जिक्र को आधुनिक कार के जिक्र से रफ़ा-दफ़ा करना चाहते हैं। लेकिन आलोक पुराणिक ने अभी अभी फोन करके बताया- सच्चाई तो यह है भाईजी कि ज्ञानजी इस कार में राखी सावन्त के साथ घूमने जायेंगे। लेकिन हम यह सबको बता नहीं सकते। आप भी अपने तक ही रखना।

पंकज बेंगाणी का अभी-अभी जन्मदिन गुजरा। और वे राजा बेटा की तरह एक सफ़लता की कहानी सुनाने लगे-
और यह सबकुछ हकिकत है. आज समाचार पत्र में देसाई के बारे मे पढकर लगा कि यदि इंसान के मन मे कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो कोई भी राह कभी मुश्किल नही हो सकती है. बकौल देसाई उन्होने अपनी चाय की टपरी दस पहले शुरू की, तब उनकी मासिक आय 1500 रूपये के करीब थे और वे इतनी कम आय से जाहिर तौर पर संतुष्ट नही थे. फिर उन्होने चाय की टपरी शुरू की और फिर कभी पीछे मुडकर नही देखा.


अभय तिवारी के व्यक्तित्व के कई हिस्से हो गये। लेकिन वे इधर-उधर नहीं गिरे। सब इसी पोस्ट में समा गये। सबसे ऊपर दिख रहा है नीत्से का यह वाक्य-
राक्षसों से लड़ने वालों को सावधान रहना चाहिये कि वे स्वयं एक राक्षस में न बदल जायं क्योंकि जब आप रसातल में देर तक घूरते हैं तो रसातल भी पलट कर आप को घूरता है..

ब्लाग में ब्लागर में शिवकुमार मिश्रजी ने कुछ मजेदार जुगाड़ी वाक्य लिखे। लेकिन अनूप शुक्ल को ऐसा लगा कि ये उनका ही महकमा है। सो मारे जलन के मिसिर जी के लिखे पर अपनी कहानी लिख मारी। यह जबरियन अपने को आगे दिखाने की छुद्र मनोवॄत्ति से न जाने कब उबर पायेंगे ये मूढ़मति। कभी उबर भी पायेंगे क्या। हमें तो नहीं लगता।

अनिल पुरोहित काफ़ी दिन बाद फिर से लौट कर आये और दनादन शुरू हो गये। पिछ्ली पोस्ट में उन्होंने लिखा-
लेकिन एक बात है कि सफर और दिल्ली प्रवास के दौरान इंसानी फितरत के बारे में काफी कुछ नया जानने का मौका मिला। कुछ मजबूरी और कुछ आदतन होटल में नहीं रुका। हिसाब यही रखा था कि जहां शाम हो जाएगी, वहीं जाकर किसी परिचित मित्र के यहां गिर जाएंगे। हालांकि कुछ मित्रों ने ऐसी मातृवत् छतरी तान ली कि कहीं और जगह रात को ठहरने ही नहीं दिया। फिर भी जिन तीन-चार परिवारों के साथ एकांतिक लमहे गुजारे, वहां से ऐसी अंतर्कथाएं मालूम पड़ीं कि दिल पसीज आया। लगा कि हर इंसान को कैसे-कैसे झंझावात झेलने पड़ते हैं और उसके तेज़ बवंडर में अपने पैर जमाए रखने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है। कहीं-कहीं ऐसे भी किस्से सुनने को मिले, जिनसे पता चला कि दिल्ली के तथाकथित बुद्धिजीवी और क्रांतिक्रारी कितने ज्यादा पतित और अवसरवादी हो चुके हैं।
इसी पोस्ट में सृजन शिल्पी की तारीफ़ भी है लेकिन हम उसे दे नहीं रहे। अपने अलावा किसी की भी तारीफ़ से जल-भुन कम राख हो जाते हैं और राख से लैपटाप खराब हो जायेगा। हमें यह भी डर नहीं कि सृजन गदा प्रहार से हमारा तियां-पांचा कर देंगे।

मामाजी के किस्सों में आलोक पुराणिक का मन रम सा गया है। हमें भी मजा आ रहा है। ज्ञानजी तो फ़रमाइश भी कर दिये-यह मामाजीब्लॉग का डेट ऑफ ओपनिंग पता करें। आलोक पुराणिक आगे किस्साये मामा-मामी बताते हुयेलिखते भये-
एक दौर था, जब पत्रकार हाथ से लिखता था। फिर वह टाइप होता था। हरिद्वार से अगर अर्जैंट मैटर दिल्ली भेजा जाना है, तो प्रेस तार के जरिये जाता था।



प्रेस तार भेजने का सिलसिला यूं होता था कि पहले हरिद्वार का तार दफ्तर उस पूरे मैटर को अपनी मशीन पर लेता था। एक पुरानी मशीन होती थी, जो कटर-कट, कटर-कट की आवाज के साथ चलती थी और मैटर को आत्मसात करती चलती थी।
फिर इस तरह का कटर-कटीकरण दिल्ली के डाक दफ्तर में होता था।
दो बार की कटर-कट के बाद फाइनल कापी अखबार के दफ्तर में पहुंचती थी।
एक दिन अखबार में मामाश्री की भेजी खबर छपी-
कांग्रेस प्रत्याशी के 33 कार्यालय बंद।
कैंडीडेट का तो विकट कटर-कट हो लिया।
भागा-भागा आया मामाश्री के पास –कहां 33 बंद हुए हैं।
मामाश्री ने बताया तीन दफ्तर तो बंद हो गये हैं। मैंने उसी की खबर भेजी थी, मशीन ने तीन नंबर पर दो बार कटर कट मार दिया और तीन का तैंतीस हो गया।
पर कैंडीडेट का विकट कटर-कट हो गया।
बोलो कटर-कट की जय।

चलते-चलते कुछ एक लाइना पेश हैं-
१.टाटा, क्रायोजेनिक तकनीक, हाइड्रोजन ईंधन और मिनी बस : सब राखी सावंत से पीछा छुड़ाने के मासूम बहाने हैं।
२. असली आतंकवादी!: आतंकवादियों को निपटा रहे हैं।
३.ब्लॉग सुधारक च निखारक गीत : लेकिन हम नहीं सुधरेंगे।
४. और यूनिवर्सिटी के दरवाजे सदा के लिये बंद हो गये :बच्चन की जन्मशती पर विशेष तौर पर
५. देश भर में फैलने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की ‘माया’:बातों-बातों में शुरू होती बतंगड़ है यह और कुच्छ नहीं।
६.याद है, तुमहें...:मेरे हंस जाने पर आप ही झेंपना!
७.आंधी ये हकीकत की :ले जायेगी उड़ा कर जाने कहां कुछ पता भी नहीं!
८. एक ओर नया दिन: 'ओर' नहीं 'और'। जो भी हो अब शाम हो चुकी है।
९. गोवा जोगर्स पार्क में खंबे को थामे एक तार अड़ा है:चलो उसे धकिया के गिरा दें और फिर एक पोस्ट और लिखें।
१०. उनसे उपयुक्त भगवान कोई नहीं:हे भगवान, अब तू कट ले इनको चार्ज देकर!
११.तो भई, भड़ास ने भी बात थोड़ी आगे बढ़ाई :फिलहाल इतना ही....बाकी फिर!
१२.गलती हमारी ही थी :अब पछताये होत क्या!
१३. शेख़जी थोड़ी-सी पीकर आइये: वर्ना मजा नहीं आयेगा!
१४.मोबीन भाई और अताउल्ला पेलवान :की पतंगबाज़ी चलती रहती थी।
१५.समकालीन जादुई यथार्थ जी रहा हूं... :क्या यह लाईन ज़्यादा बौद्धिक लग रही है? अब हम अपने मुंह से क्या कहें? क्या गुस्ताख बन जायें!
१६.पिता, समाज और पद-प्रतिष्ठा के मामले में ज्योतिष : बड़े काम की चीज है।
१७. ग्लोबल वार्मिंग: कपड़े उतार कर विरोध : करने से क्या होगा? ग्लेशियर पिघलना बंद कर देंगे?
१८.बच्चन परिवार द्वारिकाधीश के द्वार में : फोटो खिंचा रहा है, अच्छी आई हैं।
१९.खूबसूरत बनने का खतरनाक शगल : बेताल उवाच-सावधान हो जाएं!
२०.फायरफाक्स पर ब्लॉगिंग टूल :ये कौन बोला तुमको लिखने को जी। टाइम खोटी कर दिया।
२१.कृपया पिटारा के संपूर्ण हिंदीकरण में सहायता दें : अपील सुनते ही मुन्ना भाई जमानत पर रिहा।

मेरी पसंद



गर पेच पड़ गए तो यह कहते हैं देखियो
रह रह इसी तरह से न अब दीजै ढील को


“पहले तो यूं कदम के तईं ओ मियां रखो”
फिर एक रगड़ा दे के अभी इसको काट दो।

हैगा इसी में फ़तह का पाना पतंग का।।

और जो किसी से अपनी तुक्कल को लें बचा
यानी है मांझा खूब मंझा उनकी डोर का
करता है वाह वाह कोई शोर गुल मचा
कोई पुकारता है कि ए जां कहूं मैं क्या
अच्छा है तुमको याद बचाना पतंग का ||

(नज़ीर अकबराबादी साहब की ‘कनकौए और पतंग’ का एक हिस्सा)

लपूझन्ना ब्लाग से

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सोमवार, नवंबर 26, 2007

मोको कहां ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में।




आज मिशीगन में पढ़ने वाली प्रिया का ब्लाग पहली बार देखा। उन्होंने अपने परिचय में लिखा है- मैं अभी पढ़ रही हूं। ये मेरी पहली हिंदी क्लास है। इसलिये स्पेलिंग में अभी बहुत गलतियां हैं। उन्होंने आज की पोस्ट में लिखा-
डिज्नी से एक ऐसी फिल्म जिसमे राजकुमारी लड़के को बचाती है। जो सब को संभालती है। यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इससे तमाम लड़का लड़कियों को पता चलेगा कि लड़कियाँ भी लड़ सकती है। सिर्फ दिमाक से ही नहीं बल्की बल के साथ भी। यह एक अपवाद नहीं है।
इसके पहले की एक पोस्ट में अपने मन की बात कहती हैं
मुझे लगता हैं कि मैं कर्तव्य का पालन कर रहीं हूँ। आख़िर बच्चे का भी तो कुछ कर्तव्य बंता है। हम छोटे हो यह बडे जितना कर सकते हैं उतना तो हमे करना ही चाहिए। मैं इस बात से बिल्कुल सहमत नही हूँ कि हमे सिर्फ अप्ना कैरियर सुधारना चाहिए।
यह देखकर अच्छा लगा कि आलोक यहां उनकी स्पेलिंग सुधारने के लिये मौजूद हैं।

कबाड़खाना देखते-देखते यह जानना मजेदार रहा कि दीपा पाठक को सबसे अच्छा लगता है खाली बैठे रहना।

यही खाली बैठना प्रमोदजी से तमाम खुराफ़ातें करवाता है। कभी वे हड़बड़ बेचैनी में अपनी फोटो बनाते हैं और कभी न जाने कैसी-कैसी उत्तर-आधुनिक हरकतें करते हैं।

कल अविनाश ने अपने पुराने दिन याद करते हुये भिखारी ठाकुर की ओरिजनल आवाज़ में उनका काव्यपाठ पेश किया। इस पर इरफ़ानजी की टिप्पणी थी-
भाई आपने तो इतिहास के एक टुकड़े को यहां जीवित कर दिया. बेहद मार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का काम.भूरि-भूरि प्रशंसा की जाने चाहिये आपके इस पॊडकास्ट की. बधाई.


बच्चन शताब्दी के अवसर पर प्रख्यात गीतकार स्व.पं.नरेन्द्र शर्माजी की सुपुत्री लावण्या कुछ अंतरंग यादें शेयर कर रहीं हैं अपनी तेजी आंटी के साथ की।

अनूप शुक्ल को आज कुछ समझ में नहीं आया तो अपनी अम्मा की लोरी सुनाने लगे। बताते हुये-
कभी-कभी बहुत दिन हो जाते हैं कायदे से अम्मा से बतियाये हुए। चलते-चलते गुदगुदी कर देना, गाल नोच लेना और उठा के इधर-उधर बैठा देना चलता रहता है। समय के साथ , तमाम बीमारियों के चलते, अपने अशक्त होने की बात उनको कष्ट कर लगती है। पहले वे हमारे यहां की सबसे एक्टिव सदस्य थीं। इधर उनको काम करने की सख्त मनाही है लेकिन जरा सा ठीक होते ही अपनी तानाशाही फिरंट में शुरू हो जाती हैं।


अम्मा इस बीच हमको आफ़िस जाने का समय याद दिलाकर गई हैं। इसलिये हड़बड़ चर्चा करते हुये कुछ वन लाइनर पेश हैं:-

१.मैं चिट्ठा पुलीस नहीं हूं! : वह तो हमें पता है लेकिन ई बतायें प्रभो कि आप हैं क्या!
२.जीवन मूल्य कहां खोजें? : मोको कहां ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में।
३. आदरणीय को ये, और फादरणीय को वो: अपना हिस्सा बताओ सादरणीय।
४.नारी मन के कुछ कहे , कुछ अनकहे भाव ! :अब तो कह ही दिये न!
५. मेरा पता:सुबह से शाम से पूछो, नगर से गाम से पूछो। मतलब हमसे न पूछो।
६.कोई तो बताये तस्लीमा की गलती क्या है? : ये अन्दर की बात है। किसी को पता नहीं।
७.संगीत का धर्म, सुर की जाति : किसी को पता नहीं है, सब गोलमाल है भई सब गोलमाल है।
८.जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 4 जीवनसाथी मिलने के बाद कोई कुछ करने वाला रहता नहीं क्योंकि इंडिया में मुफ़्त की एड्वाइस बहुत मिलती है।
९. भीड़ से नहीं निकलेंगे शेर जब तक: तब तक उनको पकड़ना मुश्किल है भाई!
१०.मौसेरे भाईयों का दुख- अजी सुनिये तो! : यहां अपना दुख सुनने का टेम नईं है और आप भाइयों का रोना रो रहे हैं वो भी मौसेरे।

११.आखिर वही हुआ... हेमन्त ने कविता पोस्ट कर दी।

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शनिवार, नवंबर 24, 2007

खेद , माफ़ी और मूढ़मतियों का दिन




आज चिट्ठाजगत में खेद , माफ़ी और मूढ़मतियों का दिन रहा। अविनाश ने नाहर के षडयन्त्र का खुलासा करते हुये जानकारी दी- अनूप शुक्ला मूढ़मति हैं। कुछ लोगों ने इस पर एतराज किया लेकिन अविनाश अपने मत पर पक्के रहे। विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि लोगों का एतराज इसलिये था कि अनूप शुक्ला जैसे 'बेअक्ल' को 'कम अक्ल' बताकर अविनाश ने उदारता दिखाई और अनूप शुक्ला की पौ-बारह हो गयी। :)

ब्लाग जगत में एक तरफ़ प्रमेन्द को ये अखरा कि सुनील दीपकजी ने उनसे माफ़ी मांग कर अच्छा नहीं किया वहीं पाण्डेयजी दिन भर निन्ने मुंह 'माउस पांवड़े' बिछाये इंतजार करते रहे कि संजय बेंगाणी आयें और खेद प्रकट करें। संजय बेंगाणी आये भी और सरे आम माफ़ी मांगकर चले गये और पाण्डेयजी की गलतफ़हमी दूर हो गयी। ये होती है चरित्र की ताकत। :)

यही सारे लफ़ड़े देखकर अभय तिवारी सोचने लगे :
मैं लगातार अपने आप से यही सवाल करता रहता था कि मैं इतना बड़ा बेवकूफ़ क्यों हूँ और अगर दूसरे लोग भी बेवकूफ़ हैं, और मैं पक्की तौर पर जानता हूँ कि वे बेवकूफ़ हैं तो मैं ज़्यादा समझदार बनने की कोशिश क्यों नहीं करता? और तब मेरी समझ में आया कि अगर मैंने सब लोगों के समझदार बन जाने का इंतज़ार किया तो मुझे बहुत समय तक इंतज़ार करना पड़ेगा.. और उसके भी बाद मेरी समझ में यह आया कि ऐसा कभी नहीं हो सकेगा, कि लोग कभी नहीं बदलेंगे, कि कोई भी उन्हे कभी नहीं बदल पाएगा, और यह कि उसकी कोशिश करना भी बेकार है। हाँ ऐसी ही बात है! यह उनके अस्तित्व का नियम है.. यह एक नियम है! यही बात है!


वैसे इस माफ़ी-वाफ़ी और वरिष्ठ-कनिष्ठ के लफ़ड़े में आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार का मानना है:-
१. लेखकों को वरिष्ठ और कनिष्ठ के खाँचों में न डालें। लेखक की (प्रकाशित) आयु का लेखन से बहुत कम लेना देना होता है।
२. यदि किसी अन्य द्वारा छेड़े गए विषय पर चर्चा करनी हो तो विषय को संबोधित करते हुए चर्चा करें, लेखक को संबोधित करते हुए नहीं।


अनूप शुक्ल को प्रत्यक्षाजी की पोस्ट कुछ समझ में नहीं आई। समझ में प्रमोदजी को भी उतनी ही आयी जितनी प्रत्यक्षाजी को आई होगी लिखते समय लेकिन वे अपनी समझ और ज्यादा साबित करने के लिये सवाल पूछने लगे-
क्‍या अनूपजी, रसप्रिया गीत समझ में आता है, रसतिक्‍त आधुनिकताभरा बोध नहीं? सठिया आप रहे हैं और बूढ़ा हमको बता रहे हैं? व्‍हाई? पंत के साथ-साथ ल्‍योतार्द और नंदलाल बोस की संगत में कैंडिंस्‍की और मुंच का अध्‍ययन करने से डाक्‍टर ने मना किया था? कि माध्‍यमिक के माटसाब ने? बोलिये, बोलिये!
सवाल सुनते ही अनूप शुक्ला की बोलती बन्द हो गयी। और वे अपने वनलाइनर पेश करने लगे। :)

1. ये रहा नाहर के षड्यंत्र का खुलासा!: अनूप शुक्ला मूढ़मति हैं।
2.यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र न हो --- : तो काम नहीं चलेगा। चलिये संजय बेंगाणी जी खेद प्रकट करें। :)
3. वरिष्‍ठ चिट्ठाकारों से एक अनुरोध: माफ़ी मांगकर शर्मिन्दा न करें।
4.मैंने अपनी प्रेमिका से झूठ बोला है : सबको बोलना पड़ता है। इसमें कौन नयी बात है?
5. सभी चिट्ठा भाईयों से विनम्र प्रार्थना.....:पिछले दो दिनों से जो चल रहा है वह ठीक नहीं है, यह सब बंद होना चाहिए!
6. मनुष्य हर पल बदल रहा है..:इसी बीमारी के चलते नक्सल आंदोलन के अठहत्तर फाँके हो गईं।
7. राह दिखाती है भूल-भुलैया:इसी बात पर चलें कौनहारा....सोनपुर मेला घूम आएं
8.सल्‍फर का रोगी चीथड़ों में रहकर भी खुद को धनवान समझता है : धनवान बनने का सबसे सुगम उपाय, सल्फर का रोग पालें।
9. लेखकीय अधिकार से लिखें अनुयायी बनकर नहीं:वर्ना पाठक न मिलेंगे।
10.एकता बड़े काम की चीज :सही है। यही लिये एकता के सीरियल चल रहे हैं।
11.जब नर तितलियां ले जाए प्रणय उपहार : तो मादा तितलियां कहें लाओ जल्दी देर मत करो यार!
12. ये है सभ्य ब्लागर हिंदी समाज : जो आपस में मां-बहन करता है।
13.मैं कैसे पढ़ूं:जैसे सब पढ़ते हैं।
14.यह समय है धान से धन कमाने का न कि उसके नुकसान के दुष्प्रचार का : वैसे भी अफ़वाह फ़ैलाने वाले देश के दुश्मन होते हैं।
15.कहां गायब हुए वो लोग :सारे गायब हुये लोग बतायें।
16.मैं इस घर को आग लगा दूंगा :क्योंकि हम इश्क में बरबाद हो गये। फ़ायर ब्रिगेड बुला लो।
17.मोबाइल पर फोकट में बात होगी :जिसका मुझे था इंतज़ार ....जिसके लिये दिल था बेकरार...वो घडी आ गयी....आ गयी..|
18.सही जगह पर होना जरूरी :चलिये पहुंचिये अपनी जगह पर।
19.ओह ब्लेम इट ऑन द डीएनए बडी :रानी मधुमक्खी बैठी है अपने छत्ते के बीच में ।
20.बर्गर की तरफ, गद्दे की तरफ :कौन उतारे अपनी आफीशियल ड्रेस, जब सामने हो अलां-फलां मेट्रेस।
21.दो घंटे में ही चार मेंबर बने, संख्या पहुंची 54 : अब इसे एक बार फिर से बंद किया जाये क्या। :)

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मंगलवार, नवंबर 20, 2007

खेत खायें गदहा, बांधें जायें कूकुर!



पाण्डेयजी कल कार की बात किये थे। आज साइकिल पर उतर आये। यही हो रहा है अपने देश में। बात खेत की करेंगे अगले क्षण खलिहान में मिलेंगे। अनीताजी को कौनौ दोस्त नहीं मिला तो किताबों से बोलीं-मुझसे दोस्ती करोगी। लुच्चई करें
आलोक पुराणिक और डंके की चोट कहें भी लेकिन भाई लोग हमको बता देते हैं वही जो आलोक पुराणिक कहते हैं। इसे कहते हैं खेत खायें गदहा, बांधें जायें कूकुर!

कहां तक सुनायें यार! ये देखो आज की परसादी।

१. कहां से कसवाये हो जी! पांड़ेजी की दुकान से। ऊहां सब कसता है, फोटो सहित।
२. थर्टी परसेंट बनाम हंड्रेड परसेंट: जोड़ लेव दोनों मिलाकर एक सौ तीस हो गया।
३. ब्लॉग समाज के सदस्यों से अपील- सचिन को रास्ता दिखाये: इंडिया में मुफ़्त के रास्ते दिखाने वाले बहुत मिलते हैं।
४.
लाल झंडे का असली रंग
:...हे प्रभु जी, बचालो !!!!!
५.मधुमेह, विस्तृत रपट और नये अनुभव : मधुमेही होइये आइये फ़िर आपका इलाज करें।
६.कादम्बिनी में भड़ास :अभी तक बची है!
७.नैनीताल पहली बार :सन ८२ में याद अभी तक है।
८.तो :आप किताबों से दोस्ती करना चाहती हैं। करिये!
९. सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं.....:हर हंगामेबाज यही कहता है।
१०. ब्लाग पर त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाने वालों का आभार:लेकिन अब मैं उनको ठीक कर दूंगा।
११.उसे सामने लाओ ज़रा :इधर कबाड़खाने में।

आज की टिप्पणी:
1.बहुत बढ़िया है जी। आलोक पुराणिक का सिर्फ चश्मा नहीं, वो तो समूचे ही लुच्चे हैं जी।
सही पकड़ा है जी।
इसे रेगुलर क्यों नहीं करतेजी।
कम से कम साप्ताहिक तो कर ही दीजियेजी। आलोक पुराणिक

2.

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सोमवार, नवंबर 19, 2007

लुच्ची नजर, चुनिंदा नजारे- चश्मा आलोक पुराणिक का



अभय तिवारी की तमाम हसरतें पूरी होने को बेचैन रहती हैं। कानपुर में मिले तो बताइन कि उनके कोट पहनने की तमन्ना अधूरी रह गयी। एक दिन पाण्डेयेजी के ब्लाग में बोले -आप फ़ीड पूरी नहीं देते, आप तो ऐसे न थे। और आज सबसे नया दुखड़ा उनका यह सुना कि मनीषाजी ने उनको जीजू न कहा कभी। मनीषाजी ने तड़ से उनकी मांग पूरी कर दी यह कहते हुये:
अरे अभय, मुझे नहीं पता था कि आप इस बात को लेकर सेंटी हो जाएंगे। अभी भी क्‍या बिगड़ा है, अभी बुलाए देती हूं, जीजू। ठीक ना.....
वैसे अभय बोलना ज्‍यादा अच्‍छा लगता है। लगता है बड़ी हो गई हूं, बड़े लोगों के बराबर। इतनी कि सबको नाम लेकर बुलाती हूं।
लेकिन जीजा जी से यह न हुआ कि शरमाते हुये शुक्रिया कह दें।

इस बीच पुनीत ओमर जो हमारे कान्हैपुर के हैं ने पूना के किस्से लिखने शुरू किये हैं। आज उन्होंने पूना डायरी के किस्से बयान किये-
आसमानी रंग की सलवार, सुर्ख गुलाबी रंग का बूटी दार कुर्ता, और उसपर आसमानी रंग का ही दुपट्टा जिसपर हलके गुलाबी रंग के सितारे जड़े हुए हैं। अपने लंबे खुले बालों को आगे की ओर कुछ इस तरह से डाला हुआ है मानो की जैसे कुछ छिपाने की कोशिश हो. एकदम रंग पर जाती बिंदी, लंबे झुमके, और घुंघरू वाली चूडियाँ आसमानी-गुलाबी के इस "परफेक्ट गर्ली कौम्बीनेशन" पर और भी गजब ढा रही थीं.
आगे हम क्या बतायें। आप खुदै बांच लो।

कल पांडेयजी इतवार के दिन कोर्ट पहुंच गये और आज कार बनाने लगे। जुगाड़ू वाहन है यह।

सागर कभी रहे होंगे बात-बात पर टीन-टप्पर की तरह गर्म हो जाने वाले। लेकिन आजकल बड़े ज्ञानी हो गये हैं। पुलकोट लगाने का तरीका सिखाया कल। जिसे ज्ञानजी अमल में भी ले आये।
नीचे के एक-लाइना बांचने के पहले अर्चनाजी का ये पहला पाडकास्ट सुनेंगे!
आसमानी रंग की सलवार, सुर्ख गुलाबी रंग का बूटी दार कुर्ता, और उसपर आसमानी रंग का ही दुपट्टा जिसपर हलके गुलाबी रंग के सितारे जड़े हुए हैं। अपने लंबे खुले बालों को आगे की ओर कुछ इस तरह से डाला हुआ है मानो की जैसे कुछ छिपाने की कोशिश हो|
1.: इस पर भी न काम बने तो धीरे से दायरा बढ़ा लें|
2.
सवाल नंदीग्राम ही है..: सवाल तो समझ गये लेकिन जवाब क्या है?
3.लड़की की दिखाई रवीश कुमार के ब्लाग पर हो रही है।
4.ओह! तो अब ताजमहल नहीं रहेगा... अच्छा तो आप उस लिहाज से कह रहे हैं।
5. दुनिया के 200 अच्छे विश्वविद्यालयों में एक भी भारत का नहीं है: का जरूरत है। वहीं जाके पढ़ लेंगे।
6.बस जिये जाना! :अभय तिवारी ने नितान्त मूर्खता में ऐसा सोचा है।
7.बढ रहा देह व्यापार :और बड़ी तादाद में लड़कियां इस कारोबार की आ॓र आकर्षित हो रही हैं।
8. "भारत एक बिकाऊ और गया गुज़रा देश है, ये सच है": आओ इस सच को झुठला दें! एक पोस्ट लिखकर!
9.अपने लेख को अखबारी लेख की शक्ल दें : कौन से अखबार की शक्ल दें? फ़ुरसतिया टाइम्स!
10. आज रात होगी उल्का पिण्डों की बारिश:सबेरे उठकर बटोर लेना!
अभय तिवारी की तमाम हसरतें पूरी होने को बेचैन रहती हैं। कानपुर में मिले तो बताइन कि उनके कोट पहनने की तमन्ना अधूरी रह गयी। एक दिन पाण्डेयेजी के ब्लाग में बोले -आप फ़ीड पूरी नहीं देते, आप तो ऐसे न थे। और आज सबसे नया दुखड़ा उनका यह सुना कि मनीषाजी ने उनको जीजू न कहा कभी।

11. खिचड़ी उपदेश कुशल बहुतेरे: जे बनावहिं ते ब्लागर न घनेरे।
12. क्या सारथी एक खिचडी चिट्ठा है?: हां , लेकिन बीरबल कहां निकल लिये!
13.हार का जश्न:हार के बादशाह ने महाशक्ति पर मनाया!
14.$2500 की कार भारत में ही सम्भव है!(?) : हम हर सम्भव को असम्भव बना देंगे।
15.लुच्ची नजर, चुनिंदा नजारे : आलोक पुराणिक के चश्मे से देखो। न दिखे तो बताओ, टिपियाओ।
16.क्रांति से ईश्वरों की गुहार : फ़ायर-फ़ाक्स पर दिखती नहीं हो जी!
17. कोहरा या अम्बर की आहें !: ये क्या है जरा देखकर बतायें, मुझे दिख नहीं रहा है पांच मीटर से।
18.सिसकते भाव : खिसक गये कोहरे में।
19. यात्रा ए हवाई: आइये तीसरी बार यात्रा पर चलें।
20.ब्लागिंग के साइड इफ़ेक्ट… : साईड इफेक्ट्स….और वाईड इफेक्ट्स तो इतिहास तय करेगा आप तो मौज लीजिए|

आगे अब आपके लिये छोड़ दिया मौज कीजिये। मौज लीजिये। जरा सा मुस्कराइये देखिये कित्ते हसीन लग रहे हैं आप। ये भी ब्लागिंग का एक साइड इफ़ेक्ट है।

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शुक्रवार, नवंबर 16, 2007

हिन्दी का पहला ब्लॉग गीत और ब्लॉग गान...

आज जब ये ब्लॉग गान पढ़ने में आया तो हिन्दी का पहला ब्लॉग गीत याद आ गया.

ब्लॉगिंग बिना चैन कहाँ रे....

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