सोमवार, अगस्त 30, 2010

सोमवार (३०.०८.२०१०) की चर्चा

नमस्कार मित्रों!

मैं मनोज कुमार एक बार फिर सोमवार की चर्चा के साथ हाज़िर हूं।

आज एक ब्लॉग को थोड़ा गौर से देखा। वह भी इस लिए कि कन्ट्रीब्यूटर्स या योगदान कर्ता के लिए जिस शब्द का प्रयोग किया वह मुझ बंगालवासी को खींच ले गया साइड बार में और फिर बड़े गौर से सारे शीर्षक (साइड बार के) पढ़ डाले। ये क्रिएटिविटी भाती है। देखिए

१. कुछ दूर साथ चलें...  = ई-मेल से सब्सक्राइब करने के लिए।

२. एइ पाथेर बंधू = योगदान कर्ता (पोथेर)

३. अंजुमन की रौनक = समर्थक (फॉलोअर)

४. अपनी बानी प्रेम की बानी.. = ट्रांशलेशन

५. ये तो खिड़की है... = ताज़ी टिप्पणियाँ

६. सैर के वास्ते... = कुछ पसंदीदा साइट्स के लिंक

७. बाज़ार से गुजरें तो... = बाज़ार हालचाल के लिंक

८. मंडप = इनके पसंद के ब्लॉग्स इसमें भी क्रिएटिविटी है देखिए = ज्ञान भाई की छुकछुकिया = मानसिक हलचल

९. तक्षदक्षम =

१०. अंदाज़-ए-बयां = लेबल

११. मालखाना = आर्काइव

१२. लेखा-जोखा = ब्लॉग के हिट्स

१३. चलो दिलदार चलें...

१४. ये दुनिया गोल है... = विजिटर्स

१५. फिलहाल साथ

इस ब्लॉग (इयत्ता) पर आज की पोस्ट  बेरुखी को छोडि़ए (इयत्ता) में रतन जी कहते हैं

प्यार है गर दिल में तो फिर
बेरुखी को छोडि़ए
आदमी हैं हम सभी इस
दुश्मनी को छोडि़ए

सही कहा भाई रतन आपने। कहीं पढा था “नफ़रत की तो गिन लेते हैं, रुपया आना पाई लोग। ढ़ाई आखर कहने वाले, मिले न हमको ढ़ाई लोग।” ऐसे में आपका यह निवेदन लोगों पर असर करे यही दुआ है,

जानते हैं हम कि दुनिया
चार दिन की है यहां
नफरतों और दहशतों की
उस लड़ी को छोडि़ए

My Photoइसके लिए सकारत्मक सोच को विकसित करने की ज़रूरत है। हमारा एप्टीटय़ूड हमें औरों से अलग करता है। हमारे शिक्षामित्र  भाषा,शिक्षा और रोज़गार पर कहते हैं एप्टीटय़ूड से किसी व्यक्ति की रचनात्मक क्षमता का आकलन किया जाता है। उसमें कलात्मक रुझान व रुचि का पता लगाया जाता है। उनका मानना है कि

एप्टीटय़ूड जन्मजात होता है। किसी का संगीत के प्रति तो किसी का पेंटिंग, नृत्य या लेखन के प्रति। किसी में इंजीनियर बनने का एप्टीटय़ूड है तो किसी में मैकेनिक।

साथ ही यह भी बताते हैं कि टैस्ट के बाद उन्हें उस क्षेत्र में ट्रेनिंग देकर उन लोगों से बेहतर बनाया जाता है, जो उस या क्षेत्र के प्रति जन्मजात एप्टीटय़ूड से लैस नहीं होते।

एक बहुत ही सारगर्भित और उपयोगी आलेख है। अवश्य पढें।

[y_50_front[3].jpg]एक और बड़ा ही उपयोगी लिंक दे रहा हूं। यह है जगदीश भाटिया जी का आइना http://aaina.jagdishbhatia.com/। इस पर हिन्दी टाइपिंग संबंधी बहुत सी जानकारियां हैं। खास  कर बरह में कैसे टाइप करें। इससे जुड़ीं कुछ प्रविष्ठियां नीचे दिए हैं, ज़रूर पढ़ें।

बरह में हिंदी टाइपिंग कैसे करें How to type in Hindi with Baraha

माइक्रोसॉफ्ट का हिंदी टाइपिंग टूल Hindi Typing Tool by Microsoft

गूगल क्रोम में हिंदी टाईप करने का आसान तरीका

गूगल ट्रांस्लिट्रेशन अब बना हिंदी का वर्ड प्रोसेसर

Google Script Converter-भारतीय लिपियों के लिये उपहार

एक क्लिक से हिंदी टाईपिंग How to type in Hindi

एक क्लिक से हिन्दी टाईपिंग - कैसे काम करता है

  • अब हिंदी में क्वर्टी कीपैड मोबाईल Mobile with Hindi qwerty key pad
  • भारतीय भाषाओं के लिये एपिक ब्राउज़र Epic Browser for Indian Languages
  • मनीकंट्रोल डॉट कॉम अब हिंदी में
  • कुछ और हिंदी वेब पते और उनके लिंक Hindi Sites and Links
  • हिंदी वेब पते और उनके लिंक Hindi Sites and Links
  • बरह में हिंदी टाइपिंग कैसे करें How to type in Hindi with Baraha
  • माइक्रोसॉफ्ट का हिंदी टाइपिंग टूल Hindi Typing Tool by Microsoft

    इसके अलावे भी कई खूबियां हैं, जैसे, हिन्दी पंजाबी साहित्य से कुछ चुने संकलन का होना।

    साहित्य

    पंजाबी साहित्य

     

    सपने जब टूटते हैं तो इंसान जड़वत्‌ हो जाता है। उसकी भावनाएं समय के क्रूर थपेड़ों की चोट से पत्थर की तरह हो जाती हैं। कुछ इन्ही भावनाओं को समेटे संगीता स्वरूप जी कह रही हैं पत्थर हो गयी हूँ ......!

    डूब गयी नाव मेरी

    ऐसी नदी में  जो थी जलहीन ...

    बिना  पानी के आज  मैं खो गयी हूँ

    पत्थर तो नहीं थी पर आज हो गयी हूँ ...

    कई बार ऐसा होता है कि हमारा अस्तित्‍व अपने अतीत, वर्तमान और भविष्‍य से जूझता हुआ खुद को ढूंढता रहता है। स्मृतियों और वर्तमान के अनुभव एक-दूसरे के सामने आ खड़े होते हैं। ऐसे में यह समझना कठिन हो जाता है कि हम जीवन जी रहे हैं या जीवन हमें जिए जा रहा है। या हमारी तरल संवेदना पत्थर-सी हो गई है।

    My Photoअनामिका जी एक कवियित्री के तौर पर भीतर-बाहर से बहुत साधारण इंसान हैं। इतने साधारण कि इनका साधारण जीवन अपने लगभग सारे रूपों के साथ इनकी कविता/नज़्मों/ग़ज़लों की दुनिया मे अपने आप आ जाता है। यही कारण है कि बोलचाल के ढेरों अंदाज इनकी रचना तो कुछ और कहूँ...  में है। कभी सवाल के अंदाज में पूछती हैं ......

    अपने दिल की उदासी को छुपा लूँ तो कुछ और कहूँ

    अपने लफ़्ज़ों से जज्बातों को बहला लूँ तो कुछ और कहूँ.

    कभी व्‍यंग्‍य कसती बात....

    अपनी साँसों से कुछ बेचैनियों को हटा लूँ तो कुछ और कहूँ

    धूप तीखी है, जिंदगी को छाँव की याद दिला दूँ तो कुछ और कहूँ

    एकाकी, जीवन की दुरूह परिस्थितियों का सच्‍चा लेखा-जोखा सामने रखती इस रचना को पढते हुए रोमांच, प्रेम, उदासी और प्रसन्‍नता से होकर गुजरना पड़ता है ! बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति।

    मेरा फोटोपिछले दिनों दिल्ली में किसानो ने अपनी जमीनों के अधिग्रहण को लेकर प्रदर्शन किया। यह खबर पूरे मीडिया में छाई हुई थी। किसान अपनी जमीन पर आपने अधिकार खोने से नाराज है। यह सूचना दे रघी हैं प्रज्ञा पाण्डेय एक गली जहाँ मुडती है से। आलेख विकास और असंतोष में कहती हैं देश में विकास के नाम पर बन रही सड़के ,बहुमंजिली इमारतो और सेज इत्यादि जैसे बड़ी परियोजनाओ के दौरान किसानो की जमीने बड़े पैमाने पर अधिग्रहित की जाती है .इस अधिग्रहण से विकास की राह तो आसान हो जाती है या यूँ कहे कि हमारे चमचमाते इंडिया कि तस्वीर बनी रहती है लेकिन उन गरीब किसानो का क्या जिनकी जमीने कम दामो पर खरीद ली जाती है।

    साथ यह विचार भी व्यक्त करती हैं कि न समस्याओं से निपटने के लिए सरकार को पुराने भूमि अधिग्रहण कानून १८९४ में परिवर्तन कर नया भूमि अधिग्रहण कानून लाना चाहिए .यह कानून किसान की हालिया परेशानीयों को ध्यान में रख कर बनाया जाना चाहिए।

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी का गद्यात्मक काव्य की दुनियां मे सरस कविताओं का अनवरत पेशकश ज़ारी है और आज वो कह रहे हैं, "करते-करते यजन, हाथ जलने लगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") ।

    उम्र भर जख्म पर जख्म खाते रहे,
    फूल गुलशन में हरदम खिलाते रहे,
    गुल ने ओढ़ी चुभन, घाव पलने लगे।
    करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।। 

    कहते हैं जब संसार प्रचण्‍ड तूफान का रूप धारण कर ले, तब सर्वोत्‍तम आश्रय स्‍थल ईश्‍वर की गोद ही है। पर जब यज्ञ करते ही हाथ जले तो उसे कौन बचाए!

    एक बहुत ही अच्छी पोस्ट डाली है अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने छंद-प्रकरण [ १ ] : 'छंद' शब्द का अर्थ और आशय ।

    'छंद' का व्युत्पत्तिमूलक अर्थ : बताते हुए कहते हैं इस शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। छंद शब्द संस्कृत के छंदस् शब्द का अर्द्ध-तत्सम रूप है। छंद शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के छद् धातु से मानी जाती है जिसका अर्थ परिवेष्टित करना , आवृत करना या रक्षित करने के साथ-साथ प्रसन्न करना भी है। प्रसन्नताप्रद अर्थ में छद् धातु निघंटु में भी मिलती है। स्पष्ट है कि अपने व्युत्पत्तिमूलक अर्थ में छंद 'बंधन' की रुढ़ि से मुक्त है।

    चर्चा को निष्कर्ष देते हुए बताते हैं छंद वाणी के प्रस्तुतीकरण का वह सुव्यवस्थित रूप है जिसमें वाणी की अन्तर्निहित ऊर्जा सशक्त और दिक्-काल से परे अपनी पहुँच को स्थापित करने का भूरिशः यत्न करती है। इसमें मात्राओं और वर्णों की संख्या किसी रूढ़ि को पालित/पोषित नहीं करती बल्कि उस गेय-धर्म के निर्वाह की तरह है जिसमें कोई भाव ( 'भू' धातु के अर्थ में , 'जो है' वह ) रुचिर हो जाता है, शक्तिवान हो जाता है, कालातीत हो जाता है, स्वतंत्र हो जाता है, 'बंधन'-रहित हो जाता है!

    और चलते चलते ये पढिए आओ न कुछ बात करें भड़ास blog पर  baddimag की प्रस्तुति

  • किसका घूंसा - किसकी लात, आओ न कुछ बात करें...
    होती रहती है बरसात, आओ न कुछ बात करें।

    अगर मामला और भी है तो वो भी बन ही जाएगा,
    छोड़ो भी भी ये जज्बात, आओ न कुछ बात करें।

    नदी किनारे शहर बसाना यूं भी मुश्किल होता है,
    गांव के देखे हैं हालात, आओ न कुछ बात करें।

    बूंद-बूंद ये खून बहा कर क्यों प्यासे रह जाते हो,
    बांटे जीवन की सौगात, आओ न कुछ बात करें।

    नींदों को पलकों पर रख कर छत पर लेटे रहते थे,
    फिर आई वैसी ही रात, आओ न कुछ बात करें।

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    रविवार, अगस्त 29, 2010

    समाचार ब्लॉग या ब्लॉग समाचार?

    (सभी से क्षमा याचना - ब्लॉगर की डेट सेटिंग में हुई भूल से यह पोस्ट कल की बजाए आज प्रकाशित हो गई है. इसे कल के लिए रीशेड्यूल तो किया है, पर पुरानी डेट पर प्रकाशित रीशेड्यूल्ड ब्लॉगर पोस्टें हटती नहीं.)
    ओह! कितने सारे समाचार ब्लॉग... और, नीचे तो सिर्फ नमूना भर है-
    संबंधत ब्लॉग की कड़ियाँ स्क्रीनशॉट पर ही हैं. संबंधित ब्लॉग में जाने के लिए उस चित्र पर क्लिक करें.
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    शनिवार, अगस्त 28, 2010

    ये शम्मह का सीना रखते हैं, रहते हैं मगर परवानों में

    मेरा मानना है नये नये प्रयोग करते रहने चाहिये इससे जिज्ञासा और कुछ नया पाने की उम्मीद बंधी रहती है और कहने वाले कह गये हैं, उम्मीद में दुनिया कायम है या यूँ कह लीजिये उम्मीद में भारत टिका है और अनुराग के शब्द उधार लेकर कहूँ तो उम्मीद के सहारे ही पैसे वाले भारतीय एसी में मस्त तान के बिना चिंता के सो जाते हैं।

    आज जिस प्रयोग की बात कर रहा हूँ उसके तहत चिट्ठा चर्चा करने की सोच रहा हूँ, अब आप कहेंगे ये तो सभी करते हैं और रोज करते हैं लेकिन मैं "चिट्ठा चर्चा" की बात कर रहा ,हूँ यू नो, चिट्ठा चिट्ठा ना कि चिट्ठे चिट्ठे। सीधे सरल शब्दों में अब से शनिवार के दिन सिर्फ और सिर्फ किसी एक चिट्ठे या चिट्ठेकार की चर्चा की जायेगी। जाहिर हैं चर्चा अब हम करेंगे तो चिट्ठे का चुनाव भी हम करेंगे और उसे अपने नजरिये से ही बाँचेंगे। समझ लीजिये जब तक आप का नंबर नही आता आप कतार में हैं। इसी क्रम में आज का चिट्ठा या चिट्ठेकार हैं, खैर जाने दीजिये आप पढ़कर खुद समझ जाईये।

    इन जनाब की टिप्पणियों का अंदाज सबसे जुदा है, इसलिये शुरूआत इनके द्वारा (चि.च. में) की गयी टिप्पणियों के नमूनों से ही करते हैं -

    १. आज की चर्चा को पूरे तौर पर पढ़ते समय यदि पूर्वाग्रह की जगह पर आग्रह पढ़ा जाये, तो तस्वीर और भी साफ़ होती है॥ पूर्वाग्रह से एक हठवादी कठोरता का भान होता है । चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो, स्त्रीलिंग को हम परँपरागत वर्ज़नाओं से अलग नहीं कर पाये हैं । उसने अपनी ऊर्ज़ा और मेघा से एक ऊँचा मुकाम भले हासिल कर लिया हो, पर वह अपने पर सदियों से थोपी हुई अस्पृश्यता से आज़ाद नहीं कर पायी है।

    २. " झिलमिली भाषा का वाग्जाल " फैला कर पाठकों को आकर्षित करने में बतौर लेखिका वह सफल रही हैं, किन्तु विमर्शात्मक लेखन के स्तर पर उनके इस एकतरफ़ा नज़रिये को सिरे से ख़ारिज़ किये जाने की तमाम गुँज़ाइशें हैं।

    ३. तू स्पैम ठहराये या माडरेट करे / हम तो हैं तेरे दीवानों में / हम शम्मह का सीना रखते हैं / रहते हैं मगर परवानों में

    आप नोट करेंगे कि टिप्पणियों की गंभीरता भी चर्चा की गंभीरता के हिसाब से कम ज्यादा होती रहती है। हमारे व्यक्तिगत चिट्ठे में ये शख्स कभी सँपेरा शेखीबाज के नाम से टिपियाता है तो कभी कम-पिटऊ-कर के नाम से लेकिन टिप्पणी का मजमून छद्म नाम की पोल खोल कर रख देता है।

    अपने पिछले आलेख "झूठ पकड़ने वाला रोबट" में हिंदी ब्लोगिंग के एक सच को दारू से नहला धुला कर पेश करने की कोशिश कुछ इस तरह से करते हैं -
    सच है यारों, ब्लॉगिंग में शायद दँगाईयों की ही ज़्यादा सुनी जाती है । हम भी अभी दँगा करने का मूड बनाय के आय थे, पर इन सूनी गलियों में दँगा करने का भी भला कोई मज़ा है ? फिर यह भी सुना है कि, दँगा करने वास्ते माइकल को दारू पीना पड़ता है..
    और झूठ बोलने वाले रोबोट की टेस्टिंग के लिये क्या कमाल की कोड़ी ढूँढ कर लाते हैं - तुम्हारा नेता लोग इतने वैराइटी का झूठ उगलता है कि अपने नेता पर टेस्ट करोगे तो जो मशीन बनेगा, वह परफ़ेक्ट होगा, और नेता के साथ साथ इसमें पुलिस को भी नही बख्शते - इँडियन पुलिस वर्ज़न है सो तुमको मार खाने से हमहूँ नहीं रोक पायेंगे

    हम बहुविकल्प सवाल अभी तक सिर्फ परीक्षा में ही सुनते आये थे या किसी पोल में लेकिन इन जनाब ने बगैर शिर्षक की पोस्ट लिख पढ़ने वालों के सामने विकल्प छोड़ दिये, चुन लो जो भी पसंद आये। अपनी इस बिना सिर वाली पोस्ट में इनकी मेनका की भी एंट्री कुछ इस तरह से होती है - अच्छा सुनों, जब 140 आतँकी देश में घुस आये हैं.. तो ब्लॉगिंग में भी 20-30 घुसे होंगे?

    आज जब देश और पड़ोस दोनों ही हाय इतना पानी कितना पानी कहते हुए इसकी मार से तड़प रहें हैं, ये अपने एक दूसरे चिट्ठे में आँखों में भरे पानी का कौतुक का हवाला कुछ यूँ देते हैं -
    हम्मैं क्या, ऊपर वाले ( दिल्ली वालों ) की दया से आज पूरा देश घायल पड़ा कराह रहा है! एक दिन के लिये इस रोती आत्मा को स्वतँत्रता दिवस का बिस्कुट थमा कर कब तक फुसलाओगे?
    इसी पोस्ट से -
    किस्स-ए-अज़मते माज़ी को ना मुहमिल समझो,
    क़ौमें जाग उठती हैं अकसर इन्हीं अफ़सानों से।

    किस्स-ए-अज़मते — महानता की कहानियाँ, माज़ी — अतीत! मुहमिल — व्यर्थ का !

    इन जनाब को फिल्म का भी थोड़ा बहुत शौक मालूम होता है तभी तो बात करते हैं उसकी जो ताउम्र अज़ीब आदमी ही रहे, अरे वही आदमी जो बिछड़े सभी बारी बारी कहते हुए खुद भी बिछड़ गया। वो याद कर रहे हैं उनके पसंदीदा गुरूदत्त की, गुरूदत्त को पसंद करने के लिये उनके दौर का होना बहुत जरूरी है। लेकिन याद करते और कुछ लिखने का सोचते सोचते उन्हें याद आता है कि उनके पास इतना वक्त ही नही -
    ज़ल्दबाज़ी में गुरुदत्त पर कुछ लिखना सँभव ही नहीं, नृत्य-निर्देशक से कहानीकार, डायरेक्टर, निर्माता अभिनेता तक का उनका सफ़र बहुत सारी पेंचीदगियों से भरा पड़ा है । किसी फ़िल्म को देख कर यदि मैं पहली बार और आख़िरी बार रोया हूँ तो मुझे याद है वह थी काग़ज़ के फूल.. मन को समझाने को यह ख़्याल अच्छा है कि, ” पगले, वह तो तुम इसलिये रो पड़े थे कि हॉस्टल से कोई भी तुम्हारे साथ यह फ़िल्म देखने को तैयार भी न हुआ था।
    और फिर ये कह के सच में ज़माने के हिसाब से गुरुदत्त दुनिया के लिये अज़ीब आदमी ही रहे!, एक पुरानी पोस्ट की रीठेल कर आफिस को सटक लिये गोया डाक्टर का नुस्खा हो सप्ताह में एक पोस्ट ब्लोग की हलक में डालते रहना वरना ब्लोग का ब्लडप्रेशर बढ़ सकता है

    अगर आप इनकी लिखी पोस्ट और टिप्पणी पढ़ेंगे तो पायेंगे कि इनके लिखने का एक अलग ही अंदाज है और हो सकता है पहली नजर में यानि कि पहले पहल आप सोचें ये बुढ़बक क्या लिखे जा रहा है, पल में तोला पल में गोला टाईप, कोई कोई पोस्ट पढ़ते पढ़ते हो सकता है आपको ये भी आभास हो कि आप इंडियन क्रिकेट टीम की पारी देख आज का गीतः दादा समेत आप सब की नजर है आज ये गीत - एक चमेली के मंडवे तले, मयकदे से जरा दूर उस मोड़ पर। चमेली की खुशबू आप तक शायद पहुँच ही जायेगी।
    रहे हैं जो कई बार शुरू में लुढ़कते फुढ़कते रहने के बावजूद मैच जीत जाती है तो कभी कभी अच्छी खासी स्ट्रोंग खेलते खेलते अंत में लुढ़क जाती है। लेकिन एक बार आदत लग जाये तो हो सकता है कुछ यूँ कहें, छूटती नही काफिर, मुँह से लगी हुई

    बात कलेवर की: अब अंत में एक बार इनके ब्लोग की सुंदरता की बात भी हो जाय, ब्लोग को आकर्षक बनाने में इन्होंने कोई कसर नही छोड़ी और ये अपनी कोशिश में कामयाब भी रहे हैं। ब्लोग में फालतू का मैकअप नही जिनसे रोम छिद्र बंद होने की संभावना के तहत मुहांसे बने रहने का खतरा रहे यानि कि फालतू का तामझाम नही। ब्लोग में अलग अलग कैटगरी और सेक्शन कायदे से तो लगे ही हैं, चित्रों का भी तरीके से उपयोग किया गया है।

    तो ये थी आज की चर्चा क्या आप इस शख्श को पहचान पाये, अगर नही तो बताना ही पढ़ेगा ये हैं इसी हिंदी ब्लोग जगत के दूसरे निठल्ले, डा अमर कुमार। आप क्या सोचने लगे, ये दूसरे हैं तो पहला कौन है? अब वो हम अपने मुँह से क्या कहें आप खुद ही समझ लीजिये। अगली बार फिर किसी और के साथ मुक्कालात करवायेंगे तब तक आप अपनी टिप्पणियों का थोबड़ा थोड़ा दुरस्त करके रखिये वरना कहीं ऐसा ना हो जब आपकी खुबसूरती का जिक्र हो तो टिप्पणियों के जूड़े में सिर्फ सार्थकता के फूल गूँथे नजर आये। :D ;)

    नोटः आपको हिंट देते चलें कि ब्लोगरस का शिकार चिट्टा चर्चा या हमारे व्यक्तिगत चिट्ठों में छोड़े कदमों के निशान का पीछा करते हुए किया जायेगा। अपने जंगल में भुखमरी की नौबत आने पर ही दूसरे जंगलों की ओर रूख किया जायेगा।

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    बुधवार, अगस्त 25, 2010

    "हम सब अपने पूर्वाग्रहों का एक्सटेंशन है"


    कभी कभी मन में ये सवाल    उठता था  के   उर्दू में तमाम बंदिशों  ओर  सो काल्ड संकीर्णता के बावजूद इतना खुलापन क्यों है .....क्यों हिंदी में कोई इस्मत चुगताई पैदा नहीं होती ...क्यों हिंदी   ब्लॉग में भी महिलाये लिखते वक़्त अपने आप को "एडिट' कर लेती है .....तो क्या भाषा में भी एक हिंसा होती है . जो कभी कभी किसी  विचारात्मक  विकास को रोक देती है .... कंट्रोवर्सी ओर इमेज का .भय उनकी लेखन प्रक्रिया में जानबूझकर   कुछ तटस्थता की ढिलाईया लाता है ... .....सच की  आकृतियो  में अपना पुरुष दृष्टिकोण रोपते कुछ बुद्धिजीवियों से अनामिका  जी   अपने लेख "पूरा स्त्री शरीर एक दुखता टमकता हुआ घाव है '  अपना विरोध जाहिर करती है ......"बौद्धिक छल" के इस खेल के विरोध में उनकी प्रेसेंस  भ्रमित करने वाले कई संदर्भो की पड़ताल अपने तरीके से करती है ...



    कौन माई का लाल कहता है कि स्त्री आत्मकथाकारों के यहां दैहिक दोहन का चित्रण पोर्नोग्राफिक है? घाव दिखाना क्या देह दिखाना है? पूरा स्त्री-शरीर एक दुखता टमकता हुआ घाव है। स्त्रियां घर की देहरी लांघती हैं तो एक गुरु, एक मित्र की तलाश में, पर गुरु मित्र आदि के खोल में उन्हें मिलते हैं भेड़िये। और उसके बाद प्रचलित कहावत में रोमको रूमबना दें तो कहानी यह बनती नजर आती है कि ऑल रोड्स लीड टु अ रूम।


     ...आगे वे कहती है


    चतुर बहेलिया वाग्जाल फैलाता है और चूंकि भाषा एक झिलमिली भी है, एक तरह का ट्वालाइट जोनभी, कुछ हादसे घट भी जाते हैं! अपने ही भीतर से संज्ञान जगा या किसी और ने सावधान किया तब तो पांव पीछे खींच लिये जाते हैंवरना धीरे-धीरे देह के प्रति एक विरक्ति-सी हो जाती है और उसकी हर तरह की दुर्गति-मार-पीट से लेकर यौन दोहन तक इस तरह देखती है लड़की जैसे छिपकली अपनी कटी हुई पूंछ! देह जब मन से कट जाए भाषा में दावानल जगता है और जिसे लिखना आता है, वह दावानल की ही स्याही बनाकर धरती सब कागद करूंकी मन:स्थिति में पहुंच जाता है। यह एक थेरेपी भी है और आगे इस क्षेत्र में असावधान कदमों से आने वाली बहनों या मानस-पुत्रियों को दी गयी सावधानी भी, संस्मरण मीरा की इन पंक्तियों का उत्तर-आधुनिक पक्ष : जो मैं ऐसा जानती, प्रीत किये दुख होय / नगर ढिंढोरा पीटती, प्रीत न करियो कोय।


    .लेकिन जिस सत्य से हम परिचित है ....उसे सिर्फ वे याद दिलाती है 


    इस तरह से देखा जाए तो हर स्त्री-आत्मकथा आगे आनेवालियों की खातिर एक उदास चेतावनी है। इसमें मीरा का मीठा विरह नहीं बोलता, एक हृदयदग्ध जुगुप्सा बोलती है पर बोलती है वही बात। आदर्शवाद स्त्रियों को घुट्टी में पिलाया जाता है। पहले स्त्रियां तन-मन से सेवा करती थीं और सिर्फ अपने घर के लोगों की, आदर्शवाद के तहत सेवा अब भी करती हैं सिर्फ तन-मन से नहीं, तन-मन-धन से करती हैं और सिर्फ घर की नहीं, ससुराल-मायका, पड़ोस, कार्यक्षेत्र, परिजन-पुरजन सबकी। दुर्गा के दस हाथों का बिंब आगे बढ़ाएं तो दस दिशाओं में फैले दस हाथों में अस्त्र-शस्त्र नहीं, दस तरह के काम रहते हैं।

    इस बहस के कई मतान्तर हो सकते है कई सन्दर्भ ....हम सबके भीतर एक जिद होती है ....अपने साथ हुए असहमतो से असहमत होने की जिद  ....
    क़्त के किसी  एक हिस्से की व्याख्या सब अपनी समझ ओर बूझ से करते है .....यूँ भी असहमतिया कभी कभी किसी विकास प्रक्रिया का एक हिस्सा होती है ....कुछ असहमतिया हद दर्जे की ईमानदार भी होती है ...उन्हें आप यूँ ही निर्वासित नहीं कर सकते ..

    लम्बी विमर्शो बहसों के दौर में प्रियंकर जी अपने अपने लेख "साहित्य का  पर्यावरण यानि भाषा छुट्टी पर " इस द्रश्य को  यूँ ..देखते  है


    दार्शनिक विट्गेंस्टाइन कहते हैं, “दार्शनिक समस्याएं तब खड़ी होती हैं जब भाषा छुट्टी पर चली जाती है.यानी भाषा के बेढंगेपन का विचार के बेढंगेपन से गहरा संबंध है. कवि लीलाधर जगूड़ी भी अपनी एक कविता में यही पूछते दिखते हैं कि पहले भाषा बिगड़ती है या विचार’ . एक काल्पनिक प्रश्न के उत्तर में कन्फ़्यूसियस अपनी प्राथमिकता बताते हुए कहते हैं यदि भाषा सही नहीं होगी तो जो कहा गया है उसका अभिप्राय भी वही नहीं होगा; यदि जो कहा गया है उसका अभिप्राय वह नहीं है,तो जो किया जाना है,अनकिया रह जाता है; यदि यह अनकिया रह जाएगा तो नैतिकता और कला में बिगाड़ आएगा ; यदि न्याय पथभ्रष्ट होगा तो लोग असहाय और किंकर्तव्यविमूढ़ से खड़े दिखाई देंगे. अतः जो कहा गया है उसमें कोई स्वेच्छाचारिता नहीं होनी चाहिए. यह सबसे महत्वपूर्ण बात है.



    अंत में प्रियंकर जी बात से जैसे हिंदी का एक  आम पाठक अपनी सहमति  दर्ज करता है

    किसी को हटाने-बिठाने और उखाड़ने-स्थापित करने के व्यवसाय/व्यसन में पूर्णकालिक तौर पर संलग्न महाजन भले ही इस तथ्य से मुंह फेर लें पर सच तो यह है कि आम हिंदीभाषी को इन दुरभिसंधियों से कोई लेना देना नहीं है. हिंदी समाज में साक्षरता और शिक्षा के स्तर तथा साहित्य के प्रति सामान्य उदासीनता को देखते हुए कुल मिला कर यह छायायुद्ध अब एक ऐसे घृणित प्रकरण में तब्दील हो गया है जो भारतेन्दु के सपने और हिंदी जाति के एक नव-स्थापित अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय को उसके शैशव काल में ही नष्ट कर देने की स्थिति निर्मित करने का दोषी है. श्लेष का प्रभावी प्रयोग करते हुए भारतेन्दु ने हिंदी जाति के दो फल फूटऔर बैरगिनाए थे. नियति का व्यंग्य यह है कि उनका सुंदर सपना भी इन्हीं आत्मघाती फलों की भेंट चढने जा रहा है.
    सदाचार को तो हम पहले ही मार चुके हैं, यह भाषा-साहित्य से सामान्य शिष्टाचार की विदाई का बुरा वक्त है .
    किसी रचनाकार की केन्द्रीय चिंता कई है ....साहित्य  में संघर्ष  से इतर कुछ कवी चेतना के कई स्तरों को छू कर लौट आते है ...ऐसे ही एक कवि नरेश सक्सेना जी एक कविता "समुद्र  पर हो रही बारिश  ' के माध्यम से   सुशीला पूरी जी परिचय कराती है 



    कैसे पुकारे
    मीठे पानी मे रहने वाली मछलियों को
    प्यासों को क्या मुँह दिखाये
    कहाँ जाकर डूब मरे
    खुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
    समुद्र पर हो रही है बारिश


    नमक किसे नही चाहिए
    लेकिन सबकी जरूरत का नमक वह
    अकेला ही क्यों ढोये



    कभी कभी हम किसी रचना प्रक्रिया से गुजरते वक़्त  जब   आक्रोशित होते है तो शायद अपना बेहतर देते है .....यूँ भी कुछ कविताएं कभी कभी खुद का प्रतिनिधित्व करती है.दर्पण ऐसे ही किसी बगावती तेवर लिए समय से रूबरू होते है



    कविता,
    मुहावरों में ऊँटों के मार दिए जाने का कारण जानने की 'उत्कंठा' है.
    कविता जीरा है...
    ..जब वो भूख से मरते हैं.
    अन्यथा,
    पहाड़.

    पहाड़...
    ...चूँकि खोदे जा चुके हैं,
    ...गिराए जा चुके हैं, ऊँटों के ऊपर.
    इसलिए दिख जाती है,
    पर समझी नहीं जा सकती.
    'कविता लुप्त हुई लिपि का जीवाश्म है.'


     
    पूरी कविता "कविता उम्मीद से है ! पर चटका लगा कर पढ़ी जा सकती है
    उसका क्षेपक 
    उसे यूँ समराइज़   करता है
    कविता ज़ेहन में अचानक रिंग टोन सी नहीं बज सकती,क्यूंकि उसका अस्तित्व 'शब्द' है.
    वो ज़ेहन में पड़ी रहती है अब बस....अनरीड मेसेज की तरह कभी डिलीट कर दिए जाने के लिए.
    अलबत्ता मुझे ये तमाम कविताओ पर फिर बैठता मालूम पड़ता  है 
    मसलन मुकेश कुमार  की ये कविता ....सड़क
                  काले कोलतार व रोड़े पत्थर के मिश्रण से बनी सड़क
    पता नहीं कहाँ से आयी
    और कहाँ तक गयी
    जगती आँखों से दिखे सपने की तरह
    इसका भी ताना - बाना
    ओर - छोर का कुछ पता नहीं

    कभी सुखद और हसीन सपने की तरह
    मिलती है ऐसी सड़क
    जिससे पूरी यात्रा
    चंद लम्हों में जाती है कट!
    वहीँ! कुछ दु: स्वप्न की तरह
    दिख जाती है सड़कें
    उबड़-खाबड़! दुश्वारियां विकट!!
    पता नहीं कब लगी आँख
    और फिर गिर पड़े धराम!
    या फिर इन्ही सड़कों पर
    हो जाता है काम - तमाम!!

    .
    १५ अगस्त बीते शायद एक हफ्ता हुआ है....देशभक्ति  वापस दराजो में बंद हो चुकी है ...अगली .२६ जनवरी तक ....कश्मीर में सिखों ने  एक बूढ़े नेता के यहाँ फ़रियाद रखी हुई  है के उन्हें अपने देश में रहने दिया जाए ....पाकिस्तान ने  अंतत भारत की आर्थिक  सहायता जो करोडो डालर में है स्वीकार कर  ली है .. किसी महिला मैगज़ीन ने एकता कपूर को महिलाओ के लिए काम करने के लिए पुरुस्कृत किया है ... उड़ीसा के किसान .यू. पी   के किसान  भूमि अधिग्रहण मसले पर सडको पर उतर आये है.. ..पूरी दुनिया के शायद  सबसे बड़े लोकतंत्र के नुमाइंदो ने अपनी तनख्वाहे तय कर  'असल लोकतंत्र " की परिभाषा पे मुहर लगा दी है ...  ....पीपली लाइव के  यथार्थ   पर रीझे….. हम तमाम बौद्धिक जमावड़ो में  अपनी हिस्से की  साझेधारी  रख अपने कर्तव्य का स्लाट पूरा कर...."दुनिया फिर भली होगी" लिखकर . ए सी में सो जाते है ...




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    सोमवार, अगस्त 23, 2010

    सोमवार (२३.०८.२०१०) की चर्चा

    नमस्कार मित्रों!

    मैं मनोज कुमार एक बार फिर चिट्ठा चर्चा के साथ हाज़िर हूं। आज श्रावण का अंतिम सोमवार है, भोलेबाबा के भक्तों के लिए पूजा-अर्चना का महत्वपूर्ण दिन।

    कल रक्षा बंधन का त्योहार है।

    इस पुनीत पर्व के उपलक्ष्य पर

    मैं आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

    तो आइए चर्चा शुरु करें।

     

    मेरा फोटोरक्षा बंधन के दिन रक्षा सूत्र बांधा जाता है, ताकि भाई अपनी बहन की रक्षा करे। पर हम सब जिस परिवेश में जी रहे हैं, उस प्रकृति को नित दिन विनाश के कगार पर ले जा रहे हैं। तो ल्या हम इस रक्षा बंधन के दिन कुछ संकल्प ले सकते हैं? शब्द-शिखर पर~आकांक्षा जी हमें बता रही हैं वृक्षों को रक्षा-सूत्र बाँधने का अनूठा अभियान। पिछले कई वर्षों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर रही एवं छत्तीसगढ़ में एक वन अधिकारी के0एस0 यादव की पत्नी सुनीति यादव सार्थक पहल करते हुए वृक्षों को राखी बाँधकर वृक्ष रक्षा-सूत्र कार्यक्रम का सफल संचालन कर नाम रोशन कर रही हैं।

    उनके इस अभियान के पीछे एक रोचक वाकया है। जब एक पेड़ को उसके भूस्वामियों ने काटने की ठानी तो किस चातुर्य से उन्होंने इसे बचाया आप वह पूरा वाकया उनके पोस्ट में पढें पर इतना बताता चलूं कि इस सराहनीय कार्य के लिए उन्हें ‘महाराणा उदय सिंह पर्यावरण पुरस्कार, स्त्री शक्ति पुरस्कार 2002, जी अस्तित्व अवार्ड इत्यादि पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।

    इस रक्षा बंधन के पर्व पर आइए धरती पर हरियाली को सुरक्षित रखकर हम जिन्दगी को और भी खूबसूरत बनाएंगे, कच्चे धागों से हरितिमा को बचाएंगे। आइए, रक्षाबंधन के इस पर्व पर हम भी ढेर सारे पौधे लगाएं और लगे हुए वृक्षों को रक्षा-सूत्र बंधकर उन्हें बचाएं।

    डा. महाराज सिंह परिहारडा. महाराज सिंह परिहार अपना विचार-बिगुल बजाते हुए पूछ रहे हैं अन्नदाता पर गोलिया: किसानों पर अत्याचार क्यों ? कहते हैं एक ओर तो हम किसान को अन्नदेवता कहते नहीं थकते। वहीं दूसरी ओर किसान को समाप्त करने का कुचक्र जारी है। विभिन्न सरकारी अथवा गैरसरकारी योजनाओं के लिए किसानों की भूमि का जबरन अधिग्रहण किया जा रहा है। जब किसान इस अधिग्रहण का विरोध अथवा उचित मुआवजे की मांग करता है तो उसे गोलियों से भून दिया जाता है।

    यह एक क्रूर सत्य है। यह रचना किसानों की विभिन्न समस्याओं के विभिन्न पक्षों पर गंभीरती से विचार करते हुए कहीं न कहीं यह आभास भी कराती है कि स्थिति बद से बदतर हो रही है।

    मेरा फोटोबुढ़ापा : ‘ओल्ड एज’ - सिमोन द बउवा एक अंग्रेज़ी पुस्तक है जिसका अनुवाद अभी तक हिंदी में देखने में नहीं आया है। इस पुस्तक का सार-संक्षेप हिंदी पाठकों के बीच रखते हुए  कलम पर चंद्रमौलेश्वर प्रसाद कहते हैं भारतीय संस्कृति में वृद्धों का विशेष सम्मान होता था। समय के साथ परिस्थियाँ बदल गई और आज यह स्थिति हो गई है कि बुढ़ापा एक श्राप लगने लगा है। एक फ़्रांसिसी महिला चिंतक एवं साहित्यकार सिमोन द बुउवा ने इस विषय पर चिंतन करने के लिए कलम उठाई थी। सिमोन को लोग समझाने में लगे रहे कि बुढ़ापा कोई यथार्थ नहीं है। लोग युवा होते हैं - कुछ अधिक युवा या कुछ कम, पर कोई बूढ़ा नहीं होता।

    बड़े ही रोचक ढंग से इस समीक्षा में प्रसाद जी ने विभिन्न पहलुओं पर बात की है। निष्कर्ष के तौर पर कहते हैं बुढ़ापे को एक नई दृष्टि से देखने की आवश्यकता है, एक ऐसी दृष्टि से जिसमें संवेदना है और बूढ़ों के लिए आदर व सम्मान का जीवन देने की आकांक्षा है।

    इस आलेख में सार्थक शब्दों के साथ तार्किक ढ़ंग से विषय के हरेक पक्ष पर प्रकाश डाला गया है। विषय को गहराई में जाकर देखा गया है और इसकी गंभीरता और चिंता को आगे बढ़या गया है।मेरा फोटोसरोकार पर arun c roy लेकर आए हैं गीली चीनी! अरे इस चीनी का स्वाद चख कर देखिए, आंखें नम हो जाएंगी। कवि अरुण जब गीली चीनी को कल्पित करता है तो जैसे गीली चीनी के साथ मां को नहीं, खुद को भी उदास पाता है । इस संदर्भ में ही गीली चीनी कविता को देखा जा सकता है। कहते हैं

    चीनी का
    गीला होना
    ए़क अर्थशास्त्र की ओर
    करता है इशारा

    यह कविता देशज-ग्रामीण और हमारे घर-परिवार की गंध से भरी हुई है। लीजिए इस गंध की सूंघ

    वर्षो से नहीं बदल सकी
    चीनी वाली डिब्बी
    जो अब
    हवाबंद नहीं रह गए
    हवा खाते चीने के डिब्बे
    गवाह हैं
    हमारे बचपन से
    जवा होने तक के

    इस कविता में भाषा की सादगी, सफाई, प्रसंगानुकूल शब्‍दों का खूबसूरत चयन, जिनमें ग्राम व लोक जीवन के व्‍यंजन शब्दो का प्राचुर्य है। ये कवि की भाषिक अभिव्‍यक्ति में गुणात्‍मक वृद्धि करते हैं। कविता में भावुक करते शब्दों के प्रासंगिक उपयोग, लोकजीवन के खूबसूरत बिंब कवि के काव्‍य-शिल्‍प को अधिक भाव व्‍यंजक तो बना ही रहे हैं, दूसरे कवियों से उन्‍हें विशिष्‍ट भी बनाते हैं।

    जब माँ ने
    बेचे थे अपने गहने
    हमारे परीक्षा शुल्क के लिए
    गीली चीनी की मिठास
    कुछ ज्यादा ही हो गई थी
    माँ के चेहरे के उजास से
    वर्षों बाद अब
    चीनी तो गीली नहीं रहती
    लेकिन
    गीली रहती है
    माँ की आँखें
    गीला रहता है
    माँ के मन का आसमान

    यह कविता एक संवेदनशील मन की निश्‍छल अभिव्‍यक्तियों से भरा-पूरा है। जमीनी सच्‍चाइयों से गहरा परिचय, उनके कवि व्यक्तित्व की ताकत है।

     

     

    आगे की चर्चा आज शॉर्टकट में …

    अब आगे चर्चा शॉर्टकट में ही।

    पोस्ट

    एक लाइना

    ब्लॉग / प्रस्तुतकर्ता

    तन्हाई, रात, बिस्तर, चादर और कुछ चेहरे,....

    खींच कर चादर अपनी आँखों पर ख़ुद को बुला लेती हूँ

    काव्य मंजूषा पर 'अदा'

    फिगर मेन्टेन करें हस्तपात मुद्रा से

    किसी आरामदायक स्थान पर बैठ जाएं।

    स्वास्थ्य-सबके लिए पर कुमार राधारमण

    हरिशंकर परसाई के लेखन के उद्धरण

    इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं,पर वे सियारों की बरात में बैंड बजाते हैं.

    नुक्कड़ पर प्रमोद ताम्बट

    मुंबई से उज्जैन रक्षाबंधन पर यात्रा का माहौल और मुंबई की बारिश १ (Travel from Mumbai to Ujjain 1)

    यहाँ के इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाने वाले कभी सुधर ही नहीं सकते।

    कल्पनाओं का वृक्ष पर Vivek Rastogi

    Geetnuma Ghazal

    बेपरवाह- नशीली जुल्फें!

    भीगा चेहरा,गीली जुल्फें!!

    vilaspandit - a ghazal writer पर vilas pandit

    जफा के कौर...

    जो भी तूने दे दिया खाती रही अनामिका की सदायें ... पर अनामिका की सदायें ......

    बोकारो में भयमुक्‍त होकर जीने में मुझे बहुत समय लग गए !!

    वैसे तो बोकारो बहुत ही शांत जगह है और यहां आपराधिक माहौल भी न के बराबर है!

    गत्‍यात्‍मक चिंतन पर संगीता पुरी

    चल रहें दे !

    आज रात भी है काली बहुत चाँद से भी तो चांदनी की सिफारिश  नहीं की है.

    स्पंदन SPANDAN पर shikha varshney

    रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर ***********

    माँ के सारे गहने-कपडे तुम भाभी को दे देना

    डॉ.कविता'किरण'( कवयित्री) Dr.kavita'kiran' (poetess) पर Dr. kavita 'kiran' (poetess)

    वॉन गॉग

    पेंटिंग की क़ीमत पाँच करोड़ डॉलर आंकी गई है!

    Fine Arts पर चित्रकला विभाग एम्.एम्.एच. कालेज गाजियाबाद

    बूँद बूँद से सागर....

    अपनी कामवाली बाई को गुसलखाने धोने से मना कर देती हैं!

    simte lamhen पर kshama

    क्या आदमी है

    बीबी की नजर में तो , नकारा है! गठरी पर अजय कुमार

    तृप्त कामनाएं हैं ! चौमासै नैं रंग है !

    करेंगे तृप्त या घन श्याम लौट जाएंगे !

    शस्वरं पर Rajendra Swarnkar

    नारी मन की थाह

    खामोशी के सन्नाटे में, बस तुम्हारी ही आवाज़!

    गीत.......मेरी अनुभूतियाँ पर संगीता स्वरुप ( गीत )

    चन्दन वन में

    अपने ह्रदय पुष्प बिछाती हूं मैं! कदम बढाओ तुम!!

    मेरे भाव पर मेरे भाव

    सर्कस की कलाबाजियां .....

    सब तुम्हारी आँखों के सामने लाइव देखने को मिलेगा!

    ज्ञानवाणी पर वाणी गीत

    नेता जैसा पेट

    देश तरक्की कर रहा है! सुधीर राघव पर सुधीर

    ‘लफंगे’ परिन्दे

    इंसान बनना कुछ चाहता है और बन जाता है कुछ और!

    राजू बिन्दास! पर rajiv

    पीपली से रूबरू : कुछ बेतरतीब नोट्स-पहली किस्‍त

    पीपली लाइव देख कर नहीं जी कर आए हैं।

    गुल्लक पर राजेश उत्‍साही

    बस! आज इतना ही। राखी पर एक बार फिर से शुभकामनाएं!

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    रविवार, अगस्त 22, 2010

    कुछ ब्लॉगरोल

    बहुत से चिट्ठाकारों ने अपने चिट्ठों पर अपनी पसंदीदा चिट्ठा-सूचियाँ टांग रखी हैं. इससे उनके पसंद और विचार का आभास तो होता ही है, साथ ही उन  चिट्ठों में पहुँचने का आसान लिंक भी मिलता है. 

    ऐसे ही 2 चिट्ठों के ब्लॉगरोल नमूनार्थ पेश हैं. ब्लॉग रोल कहाँ से उठाए हैं ये महत्वपूर्ण नहीं हैं, महत्वपूर्ण ये है कि देखिए कि कुछ चिट्ठे इन ब्लॉगरोलों में रिपीट क्यों हो रहे हैं – सार्थक सामग्री या शीयर गुटबाजी?

    ब्लॉग रोल 1

     

    ब्लॉगरोल 2

    चिंतन मेरे मन का

    आवाज़

    ज्ञान दर्पण

    एक आलसी का चिठ्ठा

    अमीर धरती गरीब लोग

    राजू बिन्दास!

    बतंगड़ BATANGAD

    कर्मनाशा

    क्वचिदन्यतोअपि..........!

    काव्य मंजूषा

    मेरी शेखावाटी

    मेरे मन की

    समय के साये में

    नुक्कड़

    उच्चारण

    Daily Hindi News सागर समाचार

    अनलाइन खसखस

    कबाड़खाना

    सफ़ेद घर

    शिव ज्ञान मंडल

    बना रहे बनारस

    देशनामा

    रामपुरिया का हरयाणवी ताऊनामा !

    अज़दक

    चिट्ठा चर्चा

    तीसरा खंबा

    मेरी छोटी सी दुनिया

    मानसिक हलचल

    अनवरत

    सच्चा शरणम्

    अंतर्मंथन

    अविनाश वाचस्पति

    हरी मिर्च

    स्वप्नलोक

    फुरसतिया

    कवि योगेन्द्र मौदगिल

    उन्मुक्त

    Kafila

    नया जमाना

    नई बात

    कुश की कलम

    Raviratlami Ka Hindi Blog

    घुघूतीबासूती

    मुझे शिकायत हे.

    फिलहाल

    यही है वह जगह

    बर्ग वार्ता - Burgh Vaartaa

    उडन तश्तरी ....

    सबद...

    UDAY PRAKASH

    कस्‍बा qasba

    नारी

    Hindi Science Fiction

    रिजेक्ट माल

    संवेदना संसार

    समाजवादी जनपरिषद

    वीर बहुटी

    जोग लिखी

    अनुनाद

    हृदय गवाक्ष

    DIL KI BAT

    Harkirat Haqeer

    वागर्थ

    काकेश की कतरनें

    Art By Aarohi

    जोग लिखी संजय पटेल की

    प्रेम का दरिया

    चोखेर बाली

    आरोही

    दिशाएं

    नीरज

    Hindi Blog Tips

    आदित्य (Aaditya)

    लिखो यहाँ वहां

    मुक्तिबोध

    Darvaar दरवार

    ताना-बाना

    Albelakhatri.com

    सुख़नसाज़

    निर्मल-आनन्द

    लहरें

    आवारा बंजारा

    विनय पत्रिका

    KISHORE CHOUDHARY

    व्योम के पार......

    विनीत उत्पल

    मसिजीवी

    मुझे भी कुछ कहना है.....

    किस से कहें ?

    mera samast

    Sehar

    "प्रेम ही सत्य है"

    behtar duniya ki talaash

    डॉ. चन्द्रकुमार जैन

    रेडियो वाणी

    मुक्ताकाश....

    अंतर्ध्वनि

    लावण्यम्` ~अन्तर्मन्`

    ठुमरी

    उपस्थित

    टूटी हुई बिखरी हुई

    शिखा दीपक

    आरसी

    ज़ख्म, परेशां है चुप्पी से...

    मुझे कुछ कहना है

    सत्यार्थमित्र

    ओझा-उवाच

    पहलू

    मानसी

    माझी माय सरस्वती

    रचनाधर्मिता

    आलोक

    दिल एक पुराना सा म्यूज़ियम है

    संचिका

    क़ासिद

    प्रत्यक्षा

    Meri Katputliyaan

    सारथी

    अमृता प्रीतम की याद में.....

    इंद्रजाल कॉमिक्स का स्वप्नलोक

    चाय-चिंतन

    मनको कुरा

    प्रभाकरगोपालपुरिया

    वैतागवाड़ी

    Yayawar Ki Diary

    मोहल्ला

    ॥दस्तक॥

    today's CARTOON

    एक हिंदुस्तानी की डायरी

    देसी पंडितजी

    नन्ही कोपल

    विज्ञान » चर्चा

    कुछ हम कहें

    हिन्दुस्तानी एकेडेमी

    प्राइमरी का मास्टर

    Kumauni Culture

    रमता जोगी बहता पानी....

    मदिरा ज्ञान

    कछु ह‍मरी सुनि लीजै

    लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से.....

    अर्थात

    राही मासूम रज़ा

    बाल किशन का ब्लॉग

    RD Saxena : Spreading fragrance of Malwa

    वाणी

    सस्ता शेर

    खेती-बाड़ी

    जुनून: कोई भी सफलता मंजिल नहीं होती

    पर्यानाद्

    कुन्दकुन्द कहान

    Pratham

    Samayiki

    अनामदास का चिट्ठा

    बिना वजह

    Sharing is Exploring.

    राज़ की बातें

    http://www.tanhaazad.com

    HINDI VANGMAY ALIGARH हिन्दी वाडमय

    पुरातत्ववेत्ता

    स्वर सृजन

    Dakshin Bharat

    नव तकनीक - अपनी भाषा में

    कुछ तो है.....जो कि ! * HINDI

    ●๋• लविज़ा ●๋•

    सलाम ज़िन्दगी सलाम जिंदादिली

    जयहिंदी

    ब्लॉगर पहचान पहेली

    वीणापाणी

    हरा कोना

    राष्ट्रचिन्तन

    मित्र-धन

    Life's Just A Play......

    मसि कागद

    प्रयास

    KHABARI ADDA

    Pratham

    हिन्दी साहित्य .....प्रयोग की दृष्टि से

    चिट्ठे सम्बंधित कार्टून

    गुलाबी कोंपलें

    भूतनाथ

    एकोऽहम्

    ब्लॉग बुद्धि

    अछूत कौन थे?

    विज्ञान विश्व

    बात पुरानी है !!

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