शनिवार, जनवरी 31, 2009

बसंत की गुमशुदगी की रपट थाने में लिखाओ

एकेडेमी में पुस्तक-लोकार्पण और सम्मान समारोह सम्पन्न:

आज बसंत पंचमी है। न जाने कितनी कवितायें बसंत पंचमी पर लिखी गयीं हैं। मुझे याद है काशी्विश्वविद्यालय की स्थापना बसंत पंचमी के ही दिन हुई थी। यह बात मुझे तीन साल पहले अफ़लातून जी की पोस्ट से मिली थी। राजेन्द्र राजन की कविता इसी बात को याद करती है शायद जब वे लिखते हैं:
यही है वह जगह
जहां नामालूम तरीके से नहीं आता है वसंतोत्सव
हमउमर की तरह आता है
आंखों में आंखे मिलाते हुए
मगर चला जाता है चुपचाप
जैसे बाज़ार से गुज़र जाता है बेरोजगार
एक दुकानदार की तरह
मुस्कराता रह जाता है
फूलों लदा सिंहद्वार

बसंत निरालाजी बसंत पंचमी को अपना जन्मदिन मनाते थे। डा.कविता वाचक्नवी की निराला काव्य पर केंद्रित पुस्तक समाज भाषाविज्ञान रंग शब्दावली:निराला काव्य का लोकार्पण इलाहाबाद में पिछले दिनों हुआ और उनको सम्मानित किया गया।

कविताजी को एक बार फ़िर से बधाई!

सीमा गुप्ता
आज ताऊ पत्रिका का शनीचरी अंक निकला। पिछली विजेता सीमा गुप्ताजी का साक्षात्कार भी प्रकाशित हआ। सीमाजी ने एक सवाल के जबाब में कहा:
सवाल है : लोग आपको लेडी गालिब कहते हैं. कैसा लगता है आपको लेडी गालिब कहलाना?
जवाब : इस पर सीमाजी ने बडी विनम्रता पुर्वक कहा- मै तो सपने मे भी ऐसा नही सोच सकती.......इतनी महान हस्ती की पावँ की धूल बराबर भी नही हूँ मै....न ही इस जीवन में कभी हो पाउंगी....इतनी योग्यता और काबलियत नही है मुझमे ....ये मै जानती हूँ....."


दीप्ति ने आज अपने ब्लाग पर साधना गर्ग के बारे में लिखा। साधनाजी के बारे में लिखते हुये उन्होंने लिखा:
साधना दिल्ली में रहती है। वो दिल्ली के सरकारी दफ़्तरों में फ़र्नीचर रिपेयरिंग और ड्रायक्लीनिंग का काम करती हैं। साधना नेत्रहीन हैं। बचपन में एक लंबी बीमारी के चलते उनकी आँखों की रौशनी चली गई। लेकिन, साधना से मिलने पर ये ज़रा भी महसूस नहीं होता है कि वो देख नहीं सकती हैं। अपना हर काम वो खुद करती है। किसी भी बात के लिए वो दूसरों पर निर्भर नहीं।

ब्रेल लिपि में अपना काम करने वाली साधना जी ने कई किताबें भी लिखीं हैं। उनके बारे में और विस्तार से दीप्ति लिखती हैं:
साधना के पति भी नेत्रहीन हैं। साधना ने प्रेम विवाह किया है। ये उनकी मर्ज़ी ती कि वो नेत्रहीन से शादी करे। उनका कहना हैं कि क्या पता आंखोंवाले को कोई और भा जाती। साधना को व्यवस्थित और अच्छे से रहना पसंद हैं। वो एक से बढ़कर एक साड़ियाँ और ज्वेलैरी की शौकीन हैं। साधना से घर पर बातचीत के बाद जब मैं उनके साथ उनके काम करनेवाली जगहों पर गई तो मुझे और भी आश्चर्य हुआ। साधना पूरे रास्ते मोबाइल पर बातें करती रही। साधना ने दफ़्तर पहुंचते ही मोबाइल पर बात की और उनका एक वर्कर आ गया। वो उन्हें अंगर लेकर गया। उन्होंने ऑफ़िसर से बिल की बात की। हाथों से छूकर वर्कर का किया काम महसूस किया और उसे निर्देश दिए।



 रवीश कुमार
मुझे सिर्फ़ एक दोस्त चाहिये कविता में रवीश कुमार अपनी इच्छा बताते हैं:
ऐसे तमाम झूठे मुलाकातियों से हर रोज
हाथ मिलाने का मन नहीं करता
लगता है लात मार कर भगा दूं
और ढूंढ लाऊं अपने उन दोस्तों को
जो फिक्र करते थे कभी मेरी,
कभी मेरे लिए चाय बना देते थे
फिल्म जाने से पहले किचन में
छोड़ जाते थे तसले में थोड़ी सी खिचड़ी


वो तो भला हो उनके दोस्तों का जो रवीश कुमार अपने मन की बात को कार्यरूप में नहीं बदलते वर्ना लफ़ड़ा हो जाता।

राजेन्द्र राजन
अफ़लातून उनको अपनी टिप्पणी में संकेत से बताते हैं कि ये सारे दोस्त मनुष्यता के मोर्चे
पर हैं:एक छोटा-सा टापू है मेरा सुख
जो घिर रहा है हर ओर
उफनती हुई बाढ़ से

जिस समय काँप रही है यह पृथ्वी
मनुष्यो की संख्या के भार से
गायब हो रहे हैं
मनुष्यता के मोर्चे पर लड़ते हुए लोग ।


पता नहीं कि अगर रवीश कुमार को उनके सारे पुराने दोस्त मिल भी जायें तो भी वे वैसे ही आपस में व्यवहार करेंगे कि कुछ अलग होगा मामला। मुझे अखिलेश की कहानी चिट्ठी का अंत याद आता है!:

हम दोस्तों ने अलग होते हुये तय किया कि हममें से जो भी सुखी होगा वो दूसरे दोस्तों को चिट्ठी लिखेगा।
अभी तक मेरे पास कोई चिट्ठी नहीं आई है।


एक लाइना


  1. यह सब आप ही का किया धरा है : वाह बबुआ, करो तुम भरे हम?

  2. मुझे सिर्फ एक दोस्त चाहिए : बनावटी बता के लिये लतियाने के लिये

  3. ये आदमी मरता क्यूँ नहीं है : मर्जी है जी!क्या कल्लोगे आप कविता सुनाकर!

  4. धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी :शब्द सफ़र की आज की सवारी

  5. देश का क्या होगा..? : हमारी सोच सुरक्षित है

  6. नेताओं की डगर पे चमचों, दिखाओ चल के :यह देश है तुम्हारा खा जाओ इसको तल के

  7. ...पब....अब.... : .....नहीं तो कब?

  8. मोलभाव या विश्वास ? :का चाहिये जी?

  9. वसन्त की गुमशुदगी:की रपट थाने में लिखाऒ

  10. हौले से चढ़ता सा एक नशा :आराम से ही उतरेगा

  11. लो बसंत आया...! : चाय बना के लाओ,इसको पिलाओ

  12. अब न अरमान हैं न सपने हैं : एक बार करवट बदल लेव भैया अरमान भी दिखेंगे और सपने भी !

  13. कल्चर के नाम पर गुण्डागर्दी ही तो है :तब क्या यही तो कल्चर है जी!

  14. ख़ाब सब ख़ाब हैं आँखों में बिखरे हुए:सब समेट के एक जगह धरो जी

  15. दुलारी के बहाने एक अतिथि पोस्ट...!: बहानेबाजी नहीं चलेगी,रागिनी-रचना नियमित लिखेंगी

  16. डामेन खरीद लीये हैं तो क्या करें की खूब चले : कुछ लिखा जाये उस डोमेन पर। मिठाई सिठाई खिलायी जाये।

  17. बस जागरण का इंतजार है : इसके बाद सोयेंगे दबाकर

और अंत में



  • आज तरुण ने सुघड़ चर्चा करी। स्लिम-ट्रिम। खूबसूरत। ज्यादा बड़ी चर्चा न कर पाने का तरूण का निठल्ला अफ़्सोस दूर करने के लिये ये चर्चा ठेली गयी। अगर इसमें कुछ अखरा हो तो दोष तरुण को दें!


  • विवेक सिंह
    आज विवेक ने अपनी सौंवी पोस्ट लिखी। अगस्त माह में शुरू करके पांच महीने में सौ पोस्ट लिखी। बीस का औसत बनता है। बीच में इम्तहान और दिन-रात पाली में बदलती नौकरी। इसके अलावा मंगली चर्चा जिसका कि सबको इंतजार रहता है।

    आशु कविता विवेक की खासियत है। चलते-चलते में चुटकी लेते हुये अपनी बात कहने का अंदाज शानदार है। एक खासियत विवेक की है जो उनकॊ दूसरे लोगों से जरा अलग करती है। वे मुंहदेखी टिप्पणी कम करते हैं। कम शब्दों में मौज लेने की कला घणी आती है। जित्ती भोली शक्ल के दिखते हैं लेखन उत्ता भोला नहीं है। नटखटपन और चुहलबाजी का मजेदार घालमेल रहना है विवेक में।

    स्वाभाविकता और सहजता विवेक की खासियत है। अपने इस अपराध को वे कुबूल भी करते हैं:

    ब्लॉगिंग में मैंने हमेशा अपना स्वाभाविक खेल खेलने का प्रयास किया है । शायद इसीलिए यहाँ भी निजी जिन्दगी जैसे अनुभव हो रहे हैं । गलतफहमियाँ हुईं । रूठना मनाना हुआ । कभी हम रूठे आपने मनाया । कभी आप रूठे हमने मनाया । बडों ने हडकाई भी की और प्यार भी बरसाया ।
    यहाँ पर बहुत सारे लोगों से जान पहचान भी हुई । फोन पर बात हुई पर आमने सामने मिलने का अवसर अभी नहीं मिला । मुझे लगता है कि मिझे जो नए लोग मिलते हैं उन्हें मेरा स्वभाव कुछ अजीब लगता होगा । मगर समय बीतते बीतते मुझे हमेशा स्वीकार किया गया है । और अच्छे अच्छे मित्र भी मिले हैं । ऐसा ही ब्लॉगिंग में हुआ । यहाँ भी मुझे सब लोगों का आशातीत प्यार मिला ।
    चिट्ठा चर्चा करने के लिए मिला आमंत्रण पाकर मैंने बहुत सम्मानित अनुभव किया ।


    इस मौके पर विवेक को मेरी शुभकामनायें। आशा है कि वे अपना अंदाज बनाये रखेंगे और इसी रफ़्तार से लिखते रहेंगे।


  • अभय तिवारी ने काफ़ी दिन बाद माउस घुमाया और खोजी पत्रकारिता वाले अंदाज में ये लेख सामने आया है| यह लेख किताब की समीक्षा के बहाने लिखा गया है। शुक्रिया उस लेखक को जिसने अभय को लिखने को मजबूर किया।



  • लसंथा विक्रमातुंगा
    देबाशीष की शिकायत है और जायज शिकायत है कि सामयिकी की पोस्टों का जिक्र चिट्ठाचर्चा में कम होता है। सब बिसर सा जाता है जी। आज सामयिकी में देखिये श्रीलंकाई अखबार द संडे लीडर के दिवंगत संपादक का अंतिम संपादकीय जिसे उन्होंने अपनी हत्या किये जाने पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया था मरने से पहले लिखे संपादकीय में जाबांज संपादक लिखता है:
    जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मुझे यह सन्तुष्टि है कि मैं सीना तान कर चला और किसी के सामने झुका नहीं। और इस सफर पर मैं अकेला नहीं चला। मीडिया की अन्य शाखाओं में मेरे सह-पत्रकार मेरे साथ चले हैं - उन में से अधिकांश अब या तो मृत है, बिना मुकदमे के कारावास में हैं, या कहीं दूर देश-निकाले पर हैं। कुछ और हैं जो मौत की उस छाया में जी रहे हैं जो तुम्हारी हुकूमत ने उन आज़ादियों पर डाली है जिन के लिए कभी तुम स्वयं लड़े थे। तुम्हें यह भूलने नहीं दिया जाएगा कि मेरी मौत तुम्हारे रहते हुई।



  • कल की चर्चा जरा हटकर होगी। हमारे आर्यपुर आलोक कुमार की पोस्ट पठनीय च सोचनीय होगी। सुबह का इंतजार करिये।


  • फ़िलहाल इत्ता ही। शुभरात्रि।
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    आओ विचारें मिलकर सभी

    सोच रहा हूँ कहाँ से शुरूआत करूँ, कहीं ये विचारों का मर जाना तो नही। कह नही सकता शायद इसकी वजह ३-४ दिन से कुछ ना पढ़ पाना हो। सपनों का मर जाना, हो सकता है खतरनाक हो लेकिन आजकल उससे कहीं अधिक खतरनाक है नौकरी का चले जाना, कम से कम अमेरिका में तो ऐसा ही लगता है।

    फिर सोचता हूँ कि मैंगलौर के उस पब में जिसका पता हमें अभी अभी चला है अगर घंटी होती तो क्या कोई बजाने जाता? घंटी का तो पता नही लेकिन सालों पहले गोडसे ने जो एक ट्रिगर दबाया था उसकी गूँज आज तक सुनायी देती है जिसमें अहिंसा के पुजारी की हिंसात्मक मौत हुई थी।

    हिंसा की बात चली तो मुझे तालिबानी याद आ गये, बेचारे हो सकता है कहीं बैठे बदनामी का घूँट पी रो रहे होंगे। जो अमेरिकी सेना नही कर पायी वो भारतीय मीडिया और ब्लोगरस ने कर दिखाया। क्योंकि जिस हिंसा को तालिबानी नाम दिया वो वैसा ही है जैसे ऊँट के मुँह में सामने जीरा।

    खैर ये बेतरतीब विचार तो यूँ ही फैले रहेंगे, इस बार चर्चा की फोरमेलिटी करके जा रहे हैं, फुरसतिया को फुरसत में ना होने की भी नही बता पाये। चलते चलते स्कूल के वक्त पढ़ी मैथिलीशरण गुप्त की ये कविता आर्य आपके लिये पोस्ट कर जाते हैं -

    हम कौन थे, क्या हो गये, और क्या होंगे अभी
    आओ विचारें मिल कर, यह समस्याएं सभी।

    भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
    फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
    संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
    उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है।

    यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं
    विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं
    संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े
    पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े।

    वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे
    वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे
    वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
    परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा।

    संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी
    निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी
    फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में
    जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में।

    वे मोह बंधन मुक्त थे, स्वच्छंद थे स्वाधीन थे
    सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे
    मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे
    विख्यात ब्रह्मानंद नद के, वे मनोहर मीन थे।

    अगले शनिवार फिर मिलेंगे लिखते लिखते, तब तक हंसते रहें मुस्कुराते रहें, फासलें कम करें और पास आते रहें।

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    शुक्रवार, जनवरी 30, 2009

    ब्‍लॉगपठन तालीबानी समय में

    न जी हम श्रीराम सेना में भरती नहीं हो गए हैं अगर खुद श्रीराम भी अपनी सेना का भरती दफ्तर हमारे पड़ोस में खोल लें तब भी मुश्किल ही है कि वो हमें रंगरूट बनाना चाहेंगे। बिना श्रीराम सैनिक हुए भी हम चर्चा को तालीबानी कह रहे हैं क्‍योंकि सारा ब्‍लॉगपठन तालिबानमय हो रहा है। इतना विज्ञापन तो खुद मुल्‍लाउमर और फजीजुल्‍लाह नहीं कर पाए तालिबान का जितना ब्‍लॉग की दुनिया में हो रहा है। पहले तो मीडिया ही तालिबान है कांग्रेस, गहलोत, उलेमा, तिलेमा तो हईंए तालिबान-

    आज एनडीटीवी में एक खबर आ रही थी कांग्रेसी तालिबान। अशोक गहलोत कुछ कह गये और हो गये तालिबान इससे पहले कर्नाटक में श्रीराम सेना द्वारा किये करतब को तालिबान की संज्ञा दी गयी। यानि कैसे न्यूज बिके इस चीज पर ध्यान है। समाचारों में इतना हल्कापन। अफसोस है इलैक्ट्रानिक मीडिया पर जो इस प्रकार के मुहावरे गढ़ने में माहिर हो गया। क्या मीडिया के लोगों को तालिबान के कारनामे पता हैं यदि पता होते तो कभी भी इस प्रकार के शब्द नहीं गढ़ते

    कथित तालिबान एक्‍सप्रेस की भी बात करनी ही होगी...आजमगढ़ से चली कुछ हजार वोट भरकर और हिला दी दिल्‍ली इनकी बराबरी धोती टोपी वाले तालिबानियों से-

    बाटला हाउस एनकाउंटर मामले में आतंकवादियों की कारगुज़ारियों पर पर्दा डालने के लिए मौलाना अमर सिंह और अर्जुन सिंह के बोये बीज अब पनपने लगे हैं । उलेमाओं का जत्था दिल्ली पहुंचकर मामले की एक महीने में न्यायिक जांच का दबाव बना रहा है । उन्होंने सरकार को आगाह भी कर दिया है कि जल्दी जांच रिपोर्ट नहीं आने पर मुसलमान कांग्रेस को एक भी वोट नहीं देंगे । ये लोग कौन हैं ...? क्या ये वाकई इस देश के नागरिक हैं ...? अगर जवाब हां है , तो कैसे नागरिक हैं ,जिन्हें अपने शहर के लडके तो बेगुनाह और मासूम नज़र आते हैं , मगर दहशतगर्दी के शिकार लोगों के लिए इनके दिल में ज़रा भी हमदर्दी नहीं

    इतना तो तय है कि आदि ने जन्‍म लेने के कोई बहुत एप्रोप्रिएट समय नहीं चुना है चारों ओर तालिबान...;बहुत से शुभकामना संदेशों की जरूरत पड़ेगी बालक को-

    new member

     

    धर्म, मुल्‍ला उल्‍ला से ही जुड़ा है मसला हिन्‍दू से मुसलमान हुई फिजा का, माया मिली न राम। 

    आईये फिज़ा की बात करते हैं..चांद को भी देखा लोगो ने और फिज़ा को भी कहीं से दोनो का कोई मेल नही था ..जो मेल था वो इतना की एक के पास दौलत थी और दूसरे का पास सुदरता.. फिर वो ही हुआ जो होता आया है दौलत ने हुसन जीत लिया..एक इतने अच्छे धर्म का ग़लत इस्तमाल कर दोनो दुनिया को दिखाने के लिये एक हो गए..चाहत दोनो की थी ऐश के दोनो तलबदार थे .

    वैसे जिन्‍हें अभी भी तालिबान पहचानने में कठिनाई हो वे जान लें कि आजकल इनकी कर्मभूमि हो गई है पब और इनका विजयघोष है भारतमाता की जय।

    ' भारतमाता की जय ' का नारा लगा कर कुछ माह पहले ओड़िशा में एक नन का बलात्कार किया गया था । मंगलूर में भी यही नारा लगाने के बाद स्त्रियों के साथ अभद्र आचरण किया गया , उन्हें मारा - पीटा गया । ओड़िशा और मंगलूर से जुड़े सिपाहियों की बुजदिली का इतिहास है । राष्ट्रीय आन्दोलन के दरमियान लाखों लोग जब लाठी - गोली खाते थे , जेल जाते थे और ' भारत माता की जय' का घोष करते थे तब यह बुजदिल वाइसरॉय की कार्यकारिणी में शामिल होते थे

     

    खैर हम क्‍यों तालिबान को अपने लिखने का एजेंडा तय करने दें। इसलिए चलते हैं ढेर सी और पोस्टों पर आमने सामने के साथ-

    कुतिया का जनाज़ा है जरा धूम से निकले   -   रंग लाएगी फ़ाक़ामस्ती एक दिन…

    ब्लागर सिर्फ़ ब्लागर ही नही होता बल्कि रिश्तेदार भी होता है    - एक झगडा रोजाना...

    पद्मश्री का बनता मजाक...    -   अफसोस के कुछ क्षण

    अरविन्द का खेत     -    ट्रैफिक जाम में फंस गया

    हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मों का अपमान..  -  कुछ कहूँ..?

    आई पॉड कौन सा लूं (अविनाश वाचस्‍पति)  -  छोटी छोटी बातें

    धोती- टीके वाले भी होते हैं तालिबानी    -  अहिंसा का पुजारी ,हिंसा का शिकार हो गया

    दरोगा ने किया अपराध    -   ठलुए पहरेदार

    विद अलाटमेंट, पर बिना फ्लैट सुदामा    -  पिछला कुछ भी बदला नहीं जा सकता  

    सूरज की तलास में    -     आवारा मन

    देख महेंद्र भाई....अब कब्र में हो रही है शादियां       -        नुक्कड़ निमंत्रण

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    गुरुवार, जनवरी 29, 2009

    मंथ...मंथन...मन्थरा...मट्ठा....जड़ में डालने के लिए.

    हमारे अनूप जी इतने चर्चित हैं कि एक दिन में दो-दो चर्चायें कर डालते हैं. कर के डाल देते हैं. पहले धिनचक चर्चा उसके बाद पिंचक चर्चा. तुकबंदी का तकाजा ये है कि आज की चर्चा को मैं बमचक चर्चा बता डालूँ लेकिन ऐसा करने में खतरा है. खतरा यह है कि......खैर..

    शायर भाइयों की माने तो दोस्त बहुत खतरनाक होते हैं. शायर भाइयों ने अपने शेर में हमेशा यही लिखा है कि उनके दोस्त उनकी पीठ में जब-तब छूरा-वूरा घुसा देते हैं. मतलब यह कि दोस्त चाहे जो हो, पुलिस हो या चोर, हमेशा दगा ही देता है. आप किसी भी शायर का लिखा हुआ पढ़ लें, दोस्तों द्बारा पीठ में खंजर वगैरह घुसेड़ने के ऊपर हर शायर ने कम से कम दस शेर तो पक्के तौर पर लिखे होंगे.

    वहीँ दूसरी तरफ़ जानकार टाइप लोग भेद खोलते हुए कहते हैं; "पुलिस वालों की दोस्ती और दुश्मनी, दोनों बुरी." मतलब यह कि बाकी के प्रोफेशन वालों से डरो या न डरो, लेकिन पुलिस वालों से ज़रूर डरो. इन जानकारों की मानें तो ब्लॉगर तक से उतना डरने की ज़रूरत नहीं जितना पुलिस वालों से है.

    लेकिन शायद व्यंगकार को इन जानकार टाइप लोगों पर भरोसा नहीं है. इसीलिए वो पुलिस वालों से दोस्ती कर बैठता है. लेकिन इस दोस्ती के क्या नतीजे हो सकते हैं?

    ये बात आज अलोक जी ने अपनी पोस्ट में बताई है. अलोक जी लिखते हैं;


    पुराना मित्र है यू पी पुलिस में, कल आकर कहने लगा-अबे प्लीज, गुंडे के तौर पर तुझे वालात में बंद करना चाहता हूं, हो जा,कसम दोस्ती की।

    दोस्ती की कसम दिलाकर लोग हवालात में बंद करने पर उतारू हैं! कसम से, ऐसा पहली बार सुना.

    अपनी पोस्ट में आलोक जी बता रहे हैं कि किस तरह से टारगेट-पूर्ति के लिए पुलिस वाले दोस्तों तक को हवालात में बंद होने के लिए राजी कर रहे हैं. आलोक जी आगे लिखते हैं;


    अब तक टारगेट साबुन बेचने वालों को मिलते थे, अब पुलिस थाने वालों को भी टारगेट
    मिलने लगे हैं। इस हफ्ते सौ, अगले हफ्ते दो सौ। पुलिस कारपोरेट हो रही है।

    पुलिस कारपोरेट हो रही है! बताईये, लोग घपला वगैरह करने के लिए कारपोरेट-गति को प्राप्त करते हैं. लेकिन अब पुलिस कारपोरेट हो रही है. अपने किए गए घपलों से सतुष्ट नहीं होगी.

    पुलिस की इस कारपोरेटता की वजह से कैसे-कैसे सीन दिखाई पड़ सकते हैं?

    आलोक जी तमाम सीन दिखाते हैं. एक नमूना देखिये;


    एक ही बंदा कई थानों के टारगेट पूरे करवा रहा है। रिपोर्ट यह बनेगी, रात में कमलानगर थाने में जेबकटी के बाद मुजरिम ने थाना छत्ता का रुख किया और वहां राहजनी की वारदात को अंजाम दिया फिर वहां से मुजरिम आगरा कैंट चला गया, और वहां जाकर वारदात की। इस तरह से एक मुजरिम ने तीन थानों का टारगेट पूरा कर दिया।

    अलोक जी की पोस्ट को लेकर तमाम लोगों ने शंका व्यक्त की. कई लोगों को ये लगा कि मामला कुछ और ही है. मतलब यह कि आलोक जी को थानेदार किसी और 'जुरम' में हवालात में बन करना चाहता था लेकिन आलोक जी टारगेट वाला रीजन देकर मामले को घुमा रहे हैं.

    समीर भाई ने अपनी टिप्पणी में लिखा;


    मन्ने तो लागे है कि कोई लफड़ा हो लिया है और आप बदनामी बचाने के लिए यह लेख लिख मारे हो ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आवे.

    सनद के तौर पर ब्लॉग पोस्ट से बढ़िया क्या हो सकता है? ब्लॉग पोस्ट वक्त पर काम आएगी. आख़िर हर ब्लॉग पोस्ट में वक्त लिखा रहता है. तारीख के साथ-साथ समय भी.

    अलोक जी के अनुसार पुलिस द्वारा टारगेट-पूर्ति के लिए किए जा रहे प्रयास समस्या के रूप में सामने आयेंगे. लेकिन हमें चिंता करने की ज़रूरत है नाही. कारण?

    कारण यह है कि हमें समस्या को समूल नष्ट करने का औजार मिल गया है. जी हाँ, अजित भाई ने आज मट्ठा शब्द के सफर के बारे में लिखा है. वे लिखते हैं;

    मट्ठा यूं तो दही से बना स्वादिष्ट पेय होता है पर यह इतना प्रभावी है कि किसी
    वनस्पति की जड़ों में इसे पानी की जगह डाला जाए तो वह समूल नष्ट हो जाती है।

    मट्ठा दही से बनता है. दही मंथन से तैयार किया जाता है. वैसे समूल से नष्ट करने की बात पर पता नहीं क्यों मुझे अमुल की याद आ गई. पता नहीं अमुल वाले मट्ठा बनाते हैं या नहीं. वे दही बनाते हैं. मक्खन बनाते हैं. मैंने अभी तक उनका बनया हुआ मट्ठा नहीं देखा. शायद नहीं बनाते.

    शायद इसलिए नहीं बनाते कि अगर वे मट्ठा बनाते और उसका नाम अमुल रख देते तो उसकी बिक्री होती ही नहीं. कैसे होती? जिस प्रोडक्ट की पहचान 'समूल' के साथ जुड़ी हो, उसका नाम अगर अमुल रहेगा तो कौन खरीदेगा?

    वैसे तो मट्ठा एक तरल पदार्थ होता है लेकिन अपनी पोस्ट में अजित भाई मट्ठा के धातु की बात करते हुए लिखते हैं;


    मट्ठा बना है संस्कृत की मथ् या मन्थ धातु से जिसमें आघात करना, हिलाना, घुमाना,
    रगड़ना, मिश्रण करना जैसे अर्थ हैं। संस्कृत का मन्थनः या हिन्दी का मन्थन/मंथन शब्द इससे ही बना जिसमें यही सारे भाव समाहित हैं। मन्थ् से बने मन्थर शब्द का अर्थ
    होता है धीमा, मन्द, विलंबित, टेढ़ा, वक्र, जड़, मूर्ख आदि। कैकेयी की कुब्जा का नाम कूबड़ की वजह से ही पड़ा था। उसका दूसरा नाम था मन्थरा जो इसमें शामिल वक्रता या टेढ़ेपन के भाव के चलते ही उसे मिला होगा।

    मट्ठा शब्द के बारे में पढ़कर आपको ज़रूर लगेगा कि शब्दों का सफर भी अद्भुत होता है. अब मंथ को ही ले लीजिये. कहाँ-कहाँ से गुजरते हुए कहाँ तक जा पहुँचा है. बीच में न जाने किन-किन को अपने साथ लपेट लिया है.

    इतने अद्भुत सफर के बावजूद शब्दों को न दिन में चैन और न रात में आराम. पता नहीं कितनी दूरी और तय करनी होती है.

    मंथ शब्द के बारे में अजित जी आगे लिखते हैं;

    मन्थ् का एक अन्य अर्थ है क्षुब्ध करना। अगर दही बिलोने की प्रक्रिया देखें तो मथानी की उमड़-घुमड़ से तरल में जिस तरह का झाग उत्पन्न होता है, जैसी ध्वनि पैदा होती है उससे क्षुब्ध करने का भाव भी स्पष्ट हो रहा है। मन्थन का अर्थ हिन्दी में आम तौर पर विचार-विमर्श होता है। भाव वही है कि किसी मुद्दे पर समग्रता के साथ विचार-विमर्श करना ताकि निष्कर्ष रूपी रत्न प्राप्त हो सकें।

    आज समझ में आया कि अपने ब्लॉग जगत में ही न जाने कितने विमर्शों के पीछे ये मंथ यानी मट्ठा ही है. कई विमर्श वास्तव में लोगों को क्षुब्ध कर देते हैं. लेकिन एक बात और है. ब्लॉग जगत में शायद बहस, विचार-विमर्श वगैरह चलाकर उसकी जड़ में मट्ठा डाल दिया जाता है. नतीजा ये होता है कि सारे विमर्श समूल नष्ट हो जाते हैं. और हम दूसरे विमर्श की खोज में निकल पड़ते हैं.

    खैर, अजित जी की इस पोस्ट से समीर भाई को जो ज्ञान प्राप्त हुआ उसके लिए उन्होंने अजित जी की जय-जयकार की. उनकी जय-जयकार सुनकर लगा जैसे उन्होंने ज्ञान के बदले गुरुदक्षिणा में जय-जयकार देने की थान ली थी. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

    दही बिलोने से घी मिलता है। इसी तरह वैचारिक मन्थन से सत्य की प्राप्ति होती है।
    --जय हो स्वामी अजित जी की. ज्ञान प्राप्त कर लिया.

    एक ब्लॉगर को क्या चाहिए? टिप्पणियां?

    शायद केवल टिप्पणियों से काम नहीं चलता. उसे सबकुछ चाहिए. टिप्पणियां आयें. टिप्पणियां उसके पोस्ट के समर्थन में हों. उसके लिखे को अद्भुत बताया जाय.

    आज प्रताप जी ने यही लिखा है. उनके लिखने का मतलब यह कि अपने ख़िलाफ़ टिप्पणियां पाकर ब्लॉगर बिदक जाता है. प्रताप जी लिखते हैं;

    मैं अपने ब्लॉग पर दुनिया भर के लोंगो पर ऊँगली उठाता हूँ ..मैं राय कायम करता
    हूँ ...घटनाओं के बारे में ...लोगों के बारे ...लोगों के विचारों के बारे में ...लोगों के फैसलों के बारे में । जो मुझे नही पसंद आता मैं सबका प्रतिकार करता हूँ अपनी लेखनी से और सदा यही चाहता हूँ कि मैं जो कुछ भी सोचूँ ...जो कुछ भी कहूं...जो कुछ भी लिखूं .... मुझे पढने वाले हमेशा उससे सहमत हों...उसे सराहें...हमेशा मेरे सुर में सुर मिलाएं ।

    सच लिखा है उन्होंने. हममें से ज्यादातर की हालत यही है. प्रताप जी की पोस्ट पर समीर भाई ने अपनी टिप्पणी में लिखा;


    अरे, आप तो सच्चे और कठोर ब्लॉगर निकले. हम तो यूँ ही हल्के में ले रहे थे. अभिनन्दन साहेब!! अब से संभल कर आयेंगे आपके सामने..तारे जमीं पर..टाईप. :)

    समीर भाई को अगर संभलने की ज़रूरत पड़ जाए तो समझिये कि मामला गंभीर है. और दूसरी बात ये कि समीर भाई को अधिकार है कि वे ब्लॉग हलके के किसी भी सदस्य को 'हल्के' में ले सकते हैं. मेरा मानना है कि समीर भाई जितने 'विशाल' हैं, अगर वे किसी को हल्के में नहीं लेंगे तो और कौन लेगा....:-)

    वैसे इस पोस्ट के बहाने ही सही, अपने ब्लॉगर-गुणों पर एक बार हमें मंथन करने की ज़रूरत है. मट्ठा डालकर हाथ झाड़ लेने से काम नहीं चलेगा.

    चुनाव नज़दीक हैं. ऐसे में नेता और जनता, के पल्टी मारने का समय नज़दीक आता जा रहा है. लेकिन आज हमारे ज्ञान भइया गंगा के पल्टी मारने की बात लिख रहे हैं. उनके शहर इलाहाबाद में गंगा मैया ने पलती मार दिया है.

    वे लिखते हैं;


    अब गंगा विरल धारा के साथ मेरे घर के पास के शिवकुटी के घाट से पल्टी मार गई हैं
    फाफामऊ की तरफ। लिहाजा इस किनारे पर आधा किलोमीटर चौड़ा रेतीला कछार बन गया है। यह अभी और बढ़ेगा। गंगा आरती लोग अब गंगा किनारे जा कर नहीं, शिवकुटी के कोटितीर्थ मन्दिर के किनारे से कर रहे हैं।

    गंगा की आरती मन्दिर के किनारे से हो रही है. गंगा जी स्लिम हो गई हैं. वे आगे लिखते हैं;

    फिर भी इलाहाबाद से वाराणसी दक्षिण तट से पैदल होते हुये उत्तर तट पर बाबा विश्वनाथ
    के दर्शन कर लौटने का सपना है। शायद कभी पूरा हो पाये!

    उनके इस पदयात्रा के सपने में कई ब्लॉगर बन्धुवों ने अपने सपनों को जोड़ लिया है. अनूप जी की माने तो उनका सपना तो और विकट था. वे तो गंगोत्री से गंगासागर तक पैदल नापने की सोच रहे थे. लेकिन फिलहाल वे इलाहबाद से बनारस तक की यात्रा पर राजी हो गए हैं. अपनी टिप्पणी में वे लिखते हैं;

    अईला! हम तो गंगोत्री से गंगासागर पैदल नापने की सोचे बैठे हैं। चलिये इस गर्मी में
    चला जाये इलाहाबाद से वाराणसी!

    उनके इस आह्वान पर तमाम लोग राजी हो गए हैं. मतलब ये कि अब के बरस गरमी में पदयात्रा पर न जाने कितनी पोस्ट पढने को मिलें. भाग एक से भाग...... तब तक पढ़ते रहे जबतक आप ख़ुद भागने के लिए तैयार न हो जाएँ.

    संगीता पुरी जी ने बताया कि किस तरह से गत्यात्मक ज्योतिष ने पाठकों का विश्वास जीत लिया है. उन्हें ब्लॉगर बन्धुवों ने बधाई दी. हमारी तरफ़ भी संगीता जी को बधाई. यही कामना है कि गत्यात्मक ज्योतिष देश और समाज के भले के लिए प्रयासरत रहे.

    ज्योतिष की शायद इसी बात से प्रभावित होकर अपने आदित्य ने आज अपनी जन्म कुंडली सबके साथ शेयर की.

    उसकी जन्म कुंडली पढ़कर आप जान सकते हैं कि आदित्य के केस में शनि, बुध, शुक्र वगैरह कहाँ-कहाँ कौन से भाव में हैं. किसका क्या भाव है. पढ़कर हमें पता चला कि आदित्य का प्रवासी योग बना है क्योंकि;

    "शनि छटेश सप्तमेश व्यय भाव में केतू के साथ है......"

    प्रवासी योग की बात पर हमें याद आया कि आदित्य के ब्लॉग पर सबसे ज्यादा टिप्पणियां अपने समीर भाई ने की हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि प्रवासी योग में केवल शनि वगैरह का हाथ नहीं है. कोई इस बात आगे न बढाए, शायद इसीलिए शायद आज समीर भाई ने आदित्य की पोस्ट पर अभी तक टिप्पणी नहीं की.

    वैसे प्रशांत ने आदित्य को सलाह दी कि जन्म कुंडली वगैरह के चक्कर में पड़ने की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

    ना बिटवा.. अपना जनमपत्री खुद बनाना.. इससे भी बढ़िया..(मेरे जन्मपत्री में जो भी लिखा था उसमे कुछ भी सही नहीं निकला.. :D)

    चलिए अब कविताओं की तरफ़ रुख करते हैं.

    इंदिरा अग्रवाल जी की कविता पढिये. वे लिखती हैं;

    जब भी तुम

    उंगली उठाकर

    लगाते हो दोष

    मुझ पर

    तुम्हारी

    मुड़ी हुई उंगलियां

    करती हैं इशारा

    तुम्हारी ओर

    कि.... तीन गुना

    कलुष भरा है

    तुम्हारे अंदर

    मुझसे ज्यादा॥


    डॉक्टर महेंद्र भटनागर की कविता पढिये. वे लिखते हैं;

    घबराए
    डरे-सताए
    मोहल्लों में / नगरों में / देशों में
    यदि -
    सब्र और सुकून कीबहती
    सौम्य-धारा चाहिए,
    आदमी-आदमी के बीच पनपता
    यदि -
    प्रेम-बंध गहरा भाईचारा चाहिए
    ........

    आज के लिए इतना ही. अगले वृहस्तिवार को फिर से मिलेंगे. पहले भी मिल सकते हैं. कोई बाटा के जूता का दाम थोड़े न है कि पंचानवे पैसा लगा ही रहेगा. न उससे कम न ज्यादा.

    पहिले ही मिलेंगे.

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    ढिंचक चर्चा के बाद पिंचक चर्चा

    कार्टून:-भारत में औसत आयु बढ़ने का राज़.


    कल सबेरे हमने चर्चा कर डाली तो लगता है कि वे सवाल लिये तैयारै खड़े थे। उन्होंने छूटते ही सवाल छोड़ दिया।

    विवके उवाच:पहले अनुजा जी एक व्यक्ति का नाम तो बताएं जिसने स्त्रियों को प्रयोग करने के लिए मना किया हो :)
    और ये 27 और 28 नम्बर क्या खाली रहने के लिए बनाए थे हमारे गणितज्ञों ने ?

    अब भाई विवेक सवाल के पहिले हिस्से का जबाब तो अनुजा जी ही दे सकेंगी। पता नहीं वे इस पोस्ट को बांच भी पायेंगी या नहीं। वैसे उनके ब्लाग पर कापी प्रोटेक्शन वाला ताला लगा था वर्ना हम उससे कुछ भाग कापी करके भी पढ़वाते। रही बात 27 और 28 नम्बर खाली रखने की बात तो वो इसलिये छोड़ दिया था कि एक तो दफ़्तर भागने की जल्दी थी और दूसरे ये कि इसी बहाने लोग कुछ पूछेंगे तो हमें बताने का मौका मिलेगा। आपके सवाल से हमारे विश्वास की रक्षा हुई!


    उड़नतश्तरी वाले साहब जो आजकल खंडित टिप्पणी देते पाये जाते हैं टेस्ट टिप्पणी के बाद कहते हुये पाये गये:
    समीरलाल उवाच:बेहतरीन चर्चा के लिए बधाई इन्क्लूडिंग मुण्डली के लिए. :)
    वेंकटरमण जी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि!
    अब मिश्रा जी के दरबार में अर्जी लगाये इन्तजार करेंगे.

    मान्यवर बधाई और इन्क्लूसिव तो हम ग्रहण कर लिये।
    वेंकटरमण जी की श्रद्धांजलि उन तक पहुंच गई होगी!
    अब मिश्रा जी के दरबार में अर्जी लगाने की फ़र्जी बातें तो न ही करो जी। आप आराम से सो रहे होगे और बातें मिश्राजी की कर रहे हैं। कोई तो कह रहा था कि आप गाना गाते हुये पाये गये- मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग!


    नवविवाहवर्षगांठिते शिवकुमार मिश्रजी कहने लगे:

    शिवकुमार उवाच: बहुत बढ़िया चर्चा. एक लाइना तो गजब हैं.

    कल की चर्चा शानदार होगी, ई कैसे पता चला? हमें प्रेशराइज कर रहे हैं का?

    शिव प्रसाद जी की सहायता के लिए मैं तैयार हूँ. चूंकि बहुत बड़ी समस्या भाषा और शिव प्रसाद जी के कलकत्ते आने-जाने की है तो मैं कोशिश करूंगा कि कुछ अपनी कोशिश से और कुछ अपने संपर्क से उनकी समस्या का समाधान किया जा सके.

    मान लिया जी
    चर्चा धांसू है। एक लाइना गजब के हैं! कलकी चर्चा शानदार होगी ये कहने में हर्जा क्या? हम आशावादी हैं! प्रेशराइज करने को अब क्या रह गया? दो दिन आपकी शादी की सालगिरह के पहले आपकी पत्नी की फोटॊ अलग कर दी गयी और कुछ बोले नहीं- हमारे ढेर उकसाने के बावजूद! जो महापुरूष उकसाने में न आयेगा वो दबाने में कैसे आ जायेगा? बताइये भला!

    शिवप्रसादजी अगर इस पोस्ट को किसी तरह बांचें तो शायद आप तक अपनी समस्या भेंजे! या फ़िर साथी ब्लागर कुछ करें इस बारे में ताकि जानकारी शिवबाबू तक पहुंच सके।


    रंजनाजी कहने लगीं:
    एक लाइना बहुत बढ़िया रही .और आज तो हमारी पोस्ट का फोटोमय ज़िक्र हो गया धन्यवाद जी :)
    हम आपको भी धन्यवाद कर देते हैं रंजनाजी! हिसाब बराबर न!



    रंजन उवाच: बढीयां चर्चा.. काफी कुछ लपेट लिया..
    शुक्रिया रंजनजी!। वैसे हम लपेटे नहीं! अपने आप लपिट गया!



    डा.अमर कुमार उवाच:ठिक्कै लिखते हैं, जितू भाई..
    अब समय हाथ पर हाथ बाँध कर बैठने का नहीं है..
    आइये, हम एकजुट ( ? ) होकर पुनःब्लागिंग आरंभ करें !
    "छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी... एट्सेट्रा एट्सेट्रा !"

    पर ठहरिये पँचों,
    मेरा खटारा ब्लाग तो बिना धक्के के चलताइच नहीं,
    फ़र्स्ट हैण्ड उच्च टिप्पणी-पावर की पोस्ट न सही,
    पर, कुछ तो.. धक्का-उक्का लगाइये, जो कि गाड़ी खिसके..
    दू दिन से सुनते हैं न, बाऊ जी के..
    "छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी... एट्सेट्रा एट्सेट्रा !"

    मुला आपकी चर्चा तो चुस्त ढिंचक टुर्रा चर्चा है !

    डा.साहब आपने जरूर यह टिप्पणी रात के तीन बजे नहीं लिखी इसीलिये मजेदार भी है ठिंचक टाइप भी!



    संजय बेंगाणी का सवाल:शिवजी चर्चा करने वाले है?! हनीमून पर नहीं गए का? :)
    जबाब: शिवजी इस कोहरे के मौसम में कहीं जाने की बजाय चर्चा करना और चर्चित होना पसंद कर रहे हैं। चर्चित तो २६ को हो लिये अब जस्ट फ़ार अ चेंज चर्चा भी कर डालेंगे कर के डाल देंगे।


    ताऊ उवाच! वाह वाह ये हुई ना फ़ुरसतिया जी बिल्कुल ढिंचक चर्चा. बेहतरीन और लाजवाब.

    रामराम.
    जबाब: ताऊ रामराम! आप इधर आते रहो की कित्ती चर्चा होगी आपकी!


    महेन्द्र मिश्र उवाच:चर्चा. बेहतरीन और लाजवाब.
    भाई आपके चिट्ठाचर्चा का कोई जबाब नही . ये चर्चा करना तो कोई आपसे सीखे. धन्यवाद.

    महेन्द्र भाई कोई सीखने की छोड़ो जो सीखे हैं वे भी जाने कैसे -कैसे बहाने बनाये जबलपुर में पड़े हैं। चर्चा करने का नाम ही नहीं लेते।


    हिंमांशु उवाच:विस्तृत चर्चा के लिये धन्यवाद. एक लाईना की २७वीं और २८वीं लाइन नहीं दिख रही. कुछ अदृश्य तो नहीं उसमें.

    हिमांशुजी इस २७/२८ का जबाब तो सबसे पहिले ही जबाब में दे दिया। बकिया चर्चा के लिये धन्यवाद। सब हमारे साथियों में बांट लेगें।



    सीमा गुप्ता: इ चर्चा तो कुछ फुर्सत में लिखी गयी है.....शानदार .. और जानदार भी...Regards
    सीमा गुप्ताजी: चर्चा तो हड़बड़ाते हुये लिखी थी। अब जबाब फ़ुरसत में लिख रहे हैं! Regards



    विनय: वाह,वाह
    जबाब: आह,आह! अश-अश!


    कार्तिकेय उवाच:उड़ी बाबा... बड़े प्रयोग किए जा रहे हैं. गाँधी बाबा तो सही टाइम पर निकल लिए, तबतक स्त्रियों ने हको-हुकूक की बात ही न की.. आज के जमाने में होते तो.......???

    मुंडलिया किंग समीर जी की जय हो... हाँ ये २७.: २८. : वाला फंडा हमहूँ को समझ न आया..

    जबाब: गांधीजी होते तो नये प्रयोग करते। २७/२८ बता दिया भाईजी



    रतन सिंह शेखावत उवाच:बेहतरीन चर्चा
    जबाब: शरमाता हुआ शुक्रिया।



    शास्त्रीजी उवाच:दो हफ्ते के बाद आपकी चर्चा पढने का मौका मिला. मन को बडा सकून मिला.

    सब को ब्लागेरिया से इन्फेक्ट करने के तमाम तरीके हैं आपके पास. करते रहिये, चिट्ठाजगत के लिये यह बीमारी उतनी ही जरूरी है जितना अस्पताल के चलने के लिये रोगी जरूरी हैं

    सस्नेह -- शास्त्री
    जबाब: शास्त्रीजी मौके तो निकालने पड़ते हैं। मौका कोई इनीशियल एडवांटेज तो है नहीं कि बाद में उसके न मिलने के लिये परेशान हुआ जाये। चिट्ठाजगत का बीमारी नहीं स्वस्थ अदाओं के रूप में प्रचार हो तो कित्ता अच्छा होगा! है न!



    लड़कियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा : - एक कार्टून


    ये सब सवाल-जबाब तो हम ऐसे ही कर दिये काहे से कि शिवकुमारजी भले ही हनीमून मनाने न गये हों लेकिन घर में तो हैं। हनीमून के मुकाबले आदमी घरमून में ज्यादा व्यस्त हो जाता है। दोपहर तक वे चर्चा कर पायेंगे लिहाजा तब तक आप इसे ही बांच लीजियेगा है न!

    अब देखिये शिवकुमारजी ने एक पोस्ट लिखी जिसमे कुछ ब्लागिंस स्लागिंग का जिक्र है। विश्वामित्र के माध्यम से बताया गया है कि आदमी अगर ब्लाग लिखने लगे तो अपने आप व्यस्त हो जाता है। उसके पास टाइम ही नहीं बचता कि वो बेचारा रंभा.मेनका उर्वशी वगैरह से डिस्टर्ब हो सके। वह डिस्टर्बेन्स में आत्मनिर्भर होकर तपस्या रहित स्थिति को प्राप्त होता है।

    इसी पोस्ट को बाद में शिवजी के भक्त विवेक सिंह जनता-जनार्दन के हित में सरल भाषा में लिखकर छाप दिया:
    आज सुनाएं एक कहानी ।
    अभी याद है मुझे जुबानी ॥
    मेरे गुरु कहा करते थे ।
    सूकरखेत रहा करते थे ॥
    विश्वामित्र इन्द्र से रूठे ।
    रहे सहे सम्बन्ध भी टूटे ॥
    विश्वामित्र ऋषि थे ज्ञानी ।
    सोच समझकर मन में ठानी ॥


    आखिर में होता क्या ये देख लीजिये बस्स:
    विश्वामित्र सभी भूलेंगे ।
    सिर्फ बिलागिंग में झूलेंगे ॥
    याद रहेगी नहीं तपस्या ।
    कर डालो बस देख रहे क्या ॥
    विश्वामित्र लुटे बेचारे ।
    एक बार फिर से वे हारे ॥
    कुछ भी ब्लॉगिंग में न मिला था ।
    किंतु इन्द्र को चैन मिला था ॥


    अब आप देखिये ब्लागिंग क्या हाल बना के छोड़ता है। उधर विश्वामित्र को इंद्र ने मामू बना दिया इधर ब्लागिंग के चलते समीरलाल को क्या हुआ कि कहने लगे- मुझसे पहली सी मोहब्बत! हमको पक्का पता है कि समीरलाल इसके बाद लिखने वाले थे - एक बार फ़िर से मांगो न! लेकिन ऐन टाइम पर बचा गये। और बात को गोलमोल जबलपुर जलेबी बना दिया। बहरहाल वो जाने उनका काम। उनकी मोहब्बत का हिसाब हम कहां तक रखेंजी!

    लेकिन छोड़िये अब आप भी इसे। चलिये मैनपुरी षडयंत्र के बारे में कुछ जान लें।

    एक लाइना:



    1. एक वीर्यवान और पौरुष से लबरेज समाज का नामर्द राष्ट्रपिता :अब जैसा भी है निभाना ही है! वैसे भी पिता और राष्ट्रपिता चुनने में हमारा कोई अधिकार तो है नहीं!

    2. क्या यह हिन्दुस्तान में संभव है? : काहे नहीं?

    3. क्या श्रीराम सेना ने जो किया उसकी निंदा उचित है? :बुराई क्या है निंदा करने में, कुछ खाना ही पचेगा!

    4. विश्वामित्र लुटे बेचारे : ब्लागिंग के चलते गये काम से बेचारे

    5. पगला हुआ :तो कहां ले जाओगे ?आगरा कि रांची?

    6. क्योंकि औरत हो जाना कोई महान काम नहीं है :अरे ! बहुत महान काम है जी!

    7. सविता भाभी के बहाने स्‍त्री विमर्श! राम ही राखै!! : राम कैसे स्त्री विमर्श कर सकते हैं जी?

    8. मुझसे पहली सी मुहब्बत.. :मेरे महबूब एक बार फ़िर से मांग!


    और अंत में



    चलिये एक और चर्चा ठेल दिये। वैसे मैंने सोचा कि शायद लोग पूंछे कि आप कैसे चर्चा कर लेते हैं लेकिन फ़िर काम में फ़ंस गये लोग तो ई सब नहीं पूछे।

    अब आप सो जाइये। हम भी सो रहे हैं। बत्ती बन्द करके। आपको शुभरात्रि। जो लोग सुबह-सबेरे नेटदर्शन करेंगे उनके लिये शुभ प्रभात।

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    बुधवार, जनवरी 28, 2009

    चाहे कुछ मत काम करो लेकिन पीटो ढोल मियां

    यार विवेक दिखे बाजार में, भागत सरपट जांय,
    मिले लपक हम धाय के, पूछा इधर किसलिये भाय,
    बोले विवेक अब क्या कहें, बात भई बहुतै है गंभीर,
    हम निंदा करने को कह दिये,सो भई निंदकन की भीर,
    कहते सब निंदक लोग हैं, अब कुटी छवाओ दो-चार,
    न नुकुर करी जो जरा भी, तो फ़िर झेलोगे यार!



    ई जो ऊपर लिखा गया उसको हमारे जमाने में मुंडलिया कहते थे। इसके खोजकार के रूप में समीरलाल का नाम लिया जाता है। तमाम इस तरह की कवितागिरी के चलते समीरलाल मुंडलिया किंग के रूप में बदनाम रहे। अब कुछ दिन से समीरलाल शरीफ़ बनने का अभ्यास कर रहे हैं सो मुंडलिया से पल्ला झाड़कर आजकल छोटी बहर, बड़ी बहर के चक्कर में पड़ गये हैं। इसीलिये कहा गया है सफ़ल आदमी किसी का सगा नहीं होता। कनपुरिये कम से कम इस मामले में ईमानदार तो हैं तो हैं जो कहते हैं- ऐसा कोई सगा नहीं,जिसको हमने ठगा नहीं! बहरहाल, जैसे उनके दिन बहुरे, वैसे सबके बहु्रें।


    एक तारा बोले
    रंजू भाटिया अपने ब्लाग के माध्यम से अमृताप्रीतम और उनकी रचनाओ के बारे में जानकारी देती रहती हैं। बेवदुनिया के नये अंक में उनके ब्लाग का परिचय दिया गया। इस पर वे लिखती हैं:
    अमृता पर अब तक जितना लिखा वह अपनी नजर से अपने भाव ले कर लिखा ..पर जब उस लिखे पर कोई दूसरी कलम लिखती है तो लगता है ...कि हम जिस दिशा में जा रहे हैं वह सार्थक है ..उनके लिखे ने मुझे इस राह में और अधिक लिखने का होंसला दिया


    रंजू भाटिया आपको केवल अमृता प्रीतम से ही रूबरू नहीं करातीं वे आज आपको सैर करा रही हैं अंटार्कटिका के मैत्री स्टेशन की।

    सैर तो ममताजी भी करा रहीं हैं आपको सांप और घड़ियालों के पार्क की।

    प्रभुजी ब्लागेरिया रोग से पीडि़तों की पीड़ा का बखान करते हैं विस्तार से।

    विवेक जानते हैं कि लेन-देन के जमाने में बिना निंदा किये कोई निन्दा नहीं करता। अगर आप किसी की निन्दा नहीं करते तो वो क्यों करेगा? परसाईजी का मिशनरी निन्दकों का जमाना अब गया। इसीलिये विवेक अपने भक्तों का आवाहन करते हैं-भक्तगणों निंदा करिए

    सुनामी के समय में ब्लागिंग उपयोग सूचना माध्यम के रूप हुआ था। कल अक्षत विचार की यह पोस्ट सवाल करती है कि कलकत्ते में पेंशन का मामला फ़ंसा है श्री मुरलीधर शर्मा ग्राम सकंड‚ नन्दप्रयाग‚ जिला चमोली‚ उत्तराखंड निवासी का। क्या उनको कोई सहायता दे सकता है? ये मामला दौड़-धूप का है। कोई कलकतिया ब्लागर बताये!

    एम.सी.ए. फ़ेयरवेल में अनिलकान्त इत्ता तो भावुक हो गये कि कविता लिख मारे:
    जब याद करेंगे इन लम्हों को
    आँखों में आंसू भर आयेंगे

    ये संग बिताये खूबसूरत पल
    हम कैसे भूल पायेंगे



    अनिल रघुराज समझाइश देते हैं:
    लेकिन नैतिकता भी काल-सापेक्ष होती है। स्थिर हो गई नैतिकता यथास्थिति की चेरी बन जाती है, सत्ताधिकारियों का वाजिब तर्क बन जाती है। जड़ हो गई नैतिकता मोहग्रस्तता बन जाती है जिसे तोड़ने के लिए कृष्ण को गांडीवधारी अर्जुन को गीता का संदेश देना पड़ता है। मेरा मानना है कि हर किस्म की ग्लानि, अपराधबोध, मोहग्रस्तता हमें कमजोर करती है। द्रोणाचार्य एक झूठ में फंसकर, पुत्र-मोह के पाश में बंधकर अश्वथामा का शोक करने न बैठ होते तो पांडव उनका सिर धड़ से अलग नहीं कर पाते। हम जैसे हैं, जहां हैं, अगर सच्चे हैं तो अच्छे हैं।

    एक तारा बोले
    डा.प्रवीन चोपड़ा अपने बचपन में सुने एकतारा के लुप्त हो जाने पर दुखी हैं
    और इसे बेचने वाली महान आत्मा की बात ही क्या करें ---- यह फ़िराक दिल इंसान इसे बजाने की कला भी खरीदने वाले हर खरीददार को सिखाये जा रहा है। लेकिन मुझे इस यंत्र होने के धीरे धीरे लुप्त होने के साथ साथ इसे बेचने वाले उस गुमनाम से हिंदोस्तानी की भी फिक्र है क्योंकि मुझे दिख रहा है कि उस की खराब सेहत उस की निश्छल एवं निष्कपट मुस्कुराहट का साथ दे नहीं पा रही है , लेकिन साथ में सब को गणतंत्रदिवस की शुभकामनायें तो कह ही रही हैं।


    माले मुफ़्त दिले बेरहम शायद बैरागीजी की पोस्ट की मूल भावना है इसीलिये वे बधाइयां बांट रहे हैं क्योंकि ये उनकी नहीं हैं। लेकिन बधाइयां शुद्ध हैं इसीलिये ले लीजिये। बैरागीजी बताते भी हैं कि उन्होंने कोई मिलावट नहीं की है इन बधाइयों में:

    बरसों बाद ऐसा उल्लास भरा, जगर-मगर करता, उजला-उजला गणतन्त्र दिवस अनुभव हुआ है मुझे। उस अबोध बच्चे ने मुझे जिस अयाचित अकूत सम्पत्ति से मालामाल कर दिया है, वह सबकी सब मैं आप सबको अर्पित करता हूँ।

    अपनी भावनाएँ मिला दूँगा तो बधाई दूषित हो जाएंगी। सो, इस गणतन्त्र दिवस पर आप सबको, मेरे जरिए उस अपरिचित, अबोध बच्चे की, बिना मिलावटवाली, शुध्द बधाइयाँ।


    लेकिन भाई आपको बतायें कि ये ताऊ मिलावटी सा हो गया है। चोरी-चकारी तो करता ही था सिखाता भी था (आज ही सोनू सुनार से कुछ लफ़ड़ा हुआ इसका) लेकिन दो दिन पहले ऐसी हरकत करी कि लगा कि ताऊ जो दूसरों को बरबाद करने चला था अब खुद हिल्ले लग गया। दो दिन पहले ताऊ ने ऐसी कवितागिरी करी कि मन्ने सरोजनी प्रीतम याद आ गयीं:
    विवाह से पहले
    आर्ट
    विवाह के बाद
    कामर्स
    और बच्चों के बाद

    हिस्ट्री....
    समझ ना आए ऐसी है
    मिस्ट्री....

    अनुजा एक मौजूं सवाल उठाती हैं- जब गांधी सत्य के प्रयोग कर सकते हैं फिर स्त्री क्यों नहीं!


    पीटो ढोल मियां
    नीरज गोस्वामी आवाहन करते हैं:
    चाहे कुछ मत काम करो
    लेकिन पीटो ढोल मियां

    किन रिश्तों की बात करें
    सबमें दिखती पोल मियां

    बातें रहतीं याद सदा
    उनमें मिशरी घोल मियां

    जो भी आता हाथ नहीं
    लगता है अनमोल मियां


    कमलेश्वरजी की पुण्यतिथि पर उनको याद कर रहे हैं कृष्ण कुमार यादव!

    राधिका बुधकर का सवाल है- क्या शांभवी को मर जाना चाहिये?

    मीत अपने भाई को याद करते हैं जो असमय सबको छोड़ गया!:
    भाई
    ये मेरे भाई का दो साल पहले republic day के दिन परेड में शामिल होने का फोटो है....इस साल उसकी जगह कोई और था...क्योंकि वो तो चला गया...सोचा आपसे बाँट लूँ...
    २ दिन में हर उस जगह गया जहाँ वो और में स्कूल के बाद पूरे दिन घूमा करते थे, एक ही सायकल पर दोनों यहाँ वहां घुमते रहते थे...मेरठ के केंट इलाके में... एक-एक रोड पर उसका एहसास बसा है...पेडों पर, दीवारों पर, वहां की हवा में उसकी हँसी अब भी सुनायी देती है... मैं कोई ना कोई ऐसी बात कहता था, जिससे उसे हँसी आए और वो देर तक खिलखिलाता रहता था...


    कल भूतपूर्व राष्ट्रपति वेंकटरमणजी का 98 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। वे जिस समय राष्ट्रपति थे उस समय लघु संस्करणीय सरकारों का दौर था। विश्वनाथ प्रताप सिंह , चंद्रशेखर सिंह उसी समय में प्रधानमंत्री बने। वेंकटरमण जी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि!

    एक लाईना



    भाई

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    4. भक्तगणों निंदा करिए : अरे निन्दा के लिये कुछ कर्म भी तो करो

    5. एम सी ए फेयरवैल पर सुनायी गयी कविता :फ़िर से सुनाओगे?

    6. "चिट्ठो में लोग कितनी मेहनत करते है" : जित्ती एक नटखट बच्चा अपने नटखटपन में करता है।

    7. डिस्काऊंट का गणतंत्र: बोले तो छुट्टियों की साझा सरकार

    8. यमराज का व्हीकल :दिल्ली की सड़कों पर, अमेरिका नतमस्तक

    9. इन के लुप्त होने का मुझे बहुत दुःख है !! : दुखी मत हो डाक्टर साहब वर्ना हमें भी होना पड़ेगा

    10. गोटू सुनार चढा ताऊ के हत्थे : अब ताऊ उससे पहेलियां बुझवायेगा


    11. भाई

    12. जब गांधी सत्य के प्रयोग कर सकते हैं फिर स्त्री क्यों नहीं! :हां, हां क्यों नहीं! यही तो आज के स्वयंसेवक चाहते हैं

    13. लेकिन पीटो ढोल मियां: सोचो मत फ़ौरन शुरू हो जा

    14. किस्सा कुर्सी का!!:सुनाने लगे शास्त्रीजी!

    15. हिंदुओं और मुसलमानों को यहूदियों से सीखना चाहिये: लेकिन यहूदी पाठयक्रम की डिग्री किधर मिलेगी जी!

    16. ख्वाहिशों का आँगन
      : में चांद,सूरज,बारिश और फ़ूल में बतझड़

    17. दिल्ली से वीरता पुरस्कार और गांव में दुत्कार : अपने यहां ऐसाइच होता है यार!

    18. बंबई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को सलाम करो : वाह, अब ससुर सलामी भी आउटसोर्स हो गई

    19. व्यंग्य - दुनिया में कैसे कैसे लोग होते है जिनका काम है फूट करो और राज करो ? :मतलब राज करने के लिये भी मेहनत करती पड़ती है जी!

    20. देश का ६० वाँ और मेरा पहला: साल!

    21. गणतंत्र, नेतातंत्र या परिवारतंत्र? : इनमें गजब का भाईचारा है जी

    22. किसने बाँसुरी बजायी:सामने काहे नहीं आता सुगंध की तरह छिपा है

    23. झांको खूब झांको :अरे कुछ छिपाओ तो यार

    24. किस जन-गण-मन अधिनायक की स्तुति करें..? किस भाग्यविधाता के आगे झंडी लहरायें..? : ये सवाल आउट आफ़ कोर्स है

    25. आज हुआ मन ग़ज़ल कहूँ........ : कहो भाई लेकिन एक-एक कर कहो!


    26. गणतंत्र दिवस परेड में झाँकियों की जरूरत अब नहीं है
      : क्योंकि अब गणतंत्र बीत गया

    27. टीवी पत्रकारिता बनाम प्रिंट पत्रकारिता:आपस में भिड़े पत्रकार : अरे भिड़ने में क्या अपना क्या पराया!

    28. :

    29. :


    और अंत में


    आज की चर्चा का दिन कुश का है। वे व्यस्त हैं और मस्त हैं इसीलिये आपको इस पस्त चर्चा से काम चलाना पड़ रहा है। आशा है जल्द ही कुश जल्दी ही फ़िर चर्चा-वर्चा के लिये खर्चा करने के लिये कुछ समय निकाल पायेंगे।

    कल तरुण ने मेरा पन्ना वाले जीतेंन्द्र चौधरी और मेरे बारे में जानकारी अपने ब्लाग में दी। ब्लागिंग जैसे तुरंता माध्यम में अजीब बात नहीं कि कल तक सबसे सक्रिय ब्लागर जीतेंन्द्र चौधरी का नाम आने पर कल को लोग पूछें कौन जीतेन्द्र चौधरी। इसलिये बालक को अब फ़िर से सक्रिय हो जाना चाहिये।

    कल ही कविताजी की किताब का लोकार्पण हुआ इलाहाबाद में। जब हमने फ़ोनियाया तब उसी समय उनका कार्यक्रम निपटा था। वो बोलीं हमारी फ़ोन जस्ट इन टाइम आया। यह बात तब जब कि हम सन १९९२ से घड़ी बांधना छोड़ चुके हैं यह मानते हुये कि हमारे देश में काम कैलेन्डर के हिसाब से होते हैं। घड़ी यहां काम नहीं करती। कविता जी को फ़िर से बधाई। सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी वहां मौजूद थे। वे शायद इस लोकार्पण समारोह के बारे में कुछ लिखें।

    फ़िलहाल इतना ही। कल की शानदार चर्चा के लिये इंतजार करिये शिवकुमार मिश्र का।

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    मंगलवार, जनवरी 27, 2009

    बधाई, बधाई और बधाई !

    नमस्कार !मंगल-चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है .
    कल ब्लॉग जगत में बाढ आगई ! सब कुछ बह गया ! यह बाढ थी गणतंत्र दिवस की बधाइयों की . कल के दिन जिसने गणतंत्र दिवस से कुछ हटकर पोस्ट लिख दी वह मारा गया . बेचारे की मेहनत बरबाद हो गई . आलम यह था कि हमने बेटे के जन्मदिवस की पोस्ट लिखी उस पर भी कुछ टिप्पणियाँ यूँ थीं ,
    " अच्छी पोस्ट और गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई , आपको एवं आपके
    परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं एवं बधाई.,गणतंत्र दिवस की हार्दिक
    शुभकामनाएँ . "
    यही हाल सभी जगह था ज्ञान दत्त जी जैसे कुछ संयमी ही अपने पर संयम रख पारहे थे . और पोस्ट पढ रहे थे .
    लिखने वालों में जो अनुभवी लोग हैं उन्होंने या तो कुछ लिखा ही नहीं या टिप्पणियों के अनुरूप ही लिखा जिससे पोस्ट और टिप्पणियों का मिस-मैच न हो . इसीलिए कल गणतंत्र दिवस से सम्बन्धित लेखों का ताँता लगा रहा .यह तो मैच फिक्सिंग हुई ना ! इन सबकी एक लिस्ट बनाकर इतिहास में दर्ज़ कर देते हैं पढेंगे तो आप खैर क्या ! आप तो पहले ही ऐसे स्वाद से गर्दन तक भर गए होंगे . बधाई !
    1. सलाम गणतंत्र
    2. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
    3. यौमे-जम्हूरियत [गणतंत्र-दिवस]
    4. गणतंत्र दिवस पर सभी भारतीयों को बधाई।
    5. अधूरा है गणतंत्र हमारा
    6. गणतंत्र दिवस की सभी भारतवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं
    7. गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं
    8. चुनाव प्रणाली बदलेगी तब बचेगा गणतंत्र
    9. गणतंत्र दिवस पर शर्मिंदगी......... (लाल-एन-बवाल)
    10. गणतंत्र दिवस की मनोरम झाँकियों के साथ आप सभी को शुभकामनाएं
    11. दिल्‍ली की झांकी : गणतंत्र दिवस परेड से बाहर : पढ़ें जीवंत प्रसारण - अविनाश वाचस्‍पति
    12. !! गणतंत्र दिवस चिरायु हो !!
    13. गणतंत्र दिवस के मौके पर कुछ गीत
    14. गणतंत्र दिवस के वालपेपर्स
    15. लोकतंत्र
    16. संसद पर हमला [ गणतंत्र दिवस पर विशेष प्रस्तुति] - साहित्य शिल्पी द्वारा आयोजित प्रेरणा उत्सव में कार्टून प्रदर्शनी। [नीरज गुप्ता के कार्टून]
    17. लहराता रहे हमारा तिरंगा झंडा प्यारा
    18. आज १५ बार सर उठा कर गर्व से सुनें-गुनें - राष्ट्रीय गान
    19. २६ जनवरीः जूते चमकाने का दिन( कथामाला-१)
    20. भारत के राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर आप सभी को अनेकानेक हार्दिक शुभकामनाएँ ।
    21. गणतंत्रदिवस 09
    22. पहली बार बिना पीएम के मनाया गया गणतंत्र दिवस
    23. गणतंत्र दिवस पर कुछ पुष्प
    24. गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं
    25. ऐ मेरे वतन के लोगो
    26. कैसा गण और कैसा तंत्र?
    27. भारतीय गणतंत्र का ६० वें वर्ष में प्रवेश , मुबारक हो मेरे देश !
    28. एक दिन का गणतंत्र
    29. हिंदी और हिंदुस्तान का सिर मत झुकाओ !!!!
    30. २६,जनवरी - गणतंत्र दिवस पर विशेष - 'प्रणाम'
    31. हार्दिक बधाईयां
    32. भविष्य के सम्मान
    33. गणतंत्र : घूंघट से निकले एक चेहरे के बहाने
    34. जिस दिन हमारा सर गर्व से ऊंचा होना चाहिये था की एक महिला राष्ट्रपति सलामी ले रही हैं उस दिन हम शर्म से आँखे नीची किये सोच रहे हैं की धर्म को बचाया जा
    35. आज गणतंत्र दिवस
    36. गणतंत्र की जय हो .


    कहीं ऐसा तो नहीं कि हम देशभक्ति का पाखण्ड कर रहे हैं . जो भी अब स्थितियाँ तेजी से सामान्य होती जा रही हैं . गणतंत्र दिवस की बाढ उतर गई है . कल ज्ञान जी ने जो संयम की बात की तो नीरज जी ने कविता लिख डाली " पहले मन में तोल मियां फ़िर दिल की तू बोल मियां " . बधाई!

    धीरू जी की मानें तो हिन्दुस्तान प्रयाग के माघ मेले में सिमट गया . अब उसी अनुपात में स्वयं के सिमटने की कल्पना करिए . कैसा लगा ? बधाई !

    जब सब लोग बधाइयों के मोह में फँसे थे तो हिमांशु मास्साब सोच रहे थे कि कैसे मुक्ति हो ? बस वही हाल हुआ धुआँधार बधाइयाँ मिल गईं .

    रतन सिंह शेखावत जी ने पूरे पन्द्रह दिन ब्लॉगिंग से दूर रहकर नया विश्वरिकॉर्ड कायम किया है . बधाई ! प्रशांत ने ने सुसुप्तावस्था में ब्लॉग पर टिप्पणी करने का कारनामा कर दिखाया है ! उन्हें भी बधाई ! ताऊ जी ने ताऊगीरी छोडकर कविगीरी करने का मन बना लिया है . उन्हें भी बधाई !

    दोपहर होने को है . आज इतने से ही काम चलाइए . बधाई !

    चलते-चलते :
    पर उपदेश कुशल बहुतेरे , आस पास रहते हैं मेरे ।
    जो जी चाहे लिख देते हैं, हमसे संयम को कहते हैं ।
    जल्दी बुरा मान जाते हैं, हमें धैर्य पर सिखलाते हैं ।
    स्लोब्लॉगिंग नारा देते , अपनी पोस्ट रोज लिख लेते ।
    अच्छा अब आज्ञा चाहेंगे, अगले मंगल फिर आयेंगे ॥

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    सोमवार, जनवरी 26, 2009

    आज तो दनादन बधाइयों का दिन है जी

    राष्ट्रीय ध्वज
    आज तो दनादन बधाइयों का दिन है जी।

    सबसे पहले तो देखिये कि सबसे पहले तो पता चला , अरे पता क्या चला सारे देश को उनसठ साल पहले से पता है कि हमारे देश का संविधान आजै के लिये लागू हुआ। सो सबको गणतंत्र दिवस की बधाई। देश भर में झण्डा फ़हराया गया। अच्छा आपको तो पता ही होगा कि देश में पिछले दिनों तमाम लोगों की खिंचाई हुई राष्ट्रध्वज को लेकर। किसी ने इसे गलत फ़हरा दिया किसी ने गलत तरीके से लपेट लिया।

    आपको बताते चलें कि राष्ट्रीय ध्वज आई.एस. स्पेशीफ़िकेशन के अनुसार बनाया जाता है। ब्यूरो आफ़ इंडियन स्टैन्डर्ड का सबसे सबसे पहला आई.एस.स्पेशीफ़िकेशन जो बना था वह राष्ट्रीय ध्वज का ही था।
    सनत

    दूसरे हमारे चर्चाकार आज के ही दिन अपनी खुशियों का इंतजाम किये। विवेक के यहां सनत का जन्मदिन है। अब एक सनत जयसूर्या के बारे में आप जानते ही हैं। भाईसाहब ऐसन धुंआधार खेलते हैं कि अच्छे-अच्छन का धुंआ निकल जाता है। वैसाइच पराक्रम सनत बबुआ अपने जीवन में दिखायेंगे ऐसा विश्वास है। बालक को आशीर्वाद। आशा है बालक लिखा-पढ़ी में भी अपने पिता के कान काटता हुआ उनकी नाक ऊंची करे।

    अब बधाई जुगल-जोड़ी शिवकुमार मिश्र और पामेला मिश्र को। आज के ही दिन उनकी शादी का सालगिर गया था सो आज के ही दिन सालगिरह मनाते हैं। कोई कह सकता है दोनों की साजिश रही होगी ताकि हर्र लगे न फ़िटकरी वाले अंदाज में पूरे देश के अपनी शादी की वर्षगांठ मना सकें। उनकी शादी के चौदह साल पूरे हो गये और आज तक तस्वीरों में अलग-अलग हैं। वैसे इस बारे में ज्ञानजी ने जो पोस्ट करी ,फ़ोटॊ सटाई उसके लिये तो वे बधाई के पात्र हैं लेकिन वे एक और बात के लिये बधाई के पात्र हैं। उनकी इस पोस्ट से पर उपदेश कुशल बहुतेरे वाला मुहावरा एक बार फ़िर अपना जलवा दिखा गया।

    पामेला मिश्रा
    शिवकुमार मिश्र

    अब आप पूछेंगे कि वो कैसे ? तो हम कहेंगे कि वो ऐसे कि आज ही सुबह ज्ञानजी ने लेख पोस्ट किया-अपनी तीव्र भावनायें कैसे व्यक्त करें? में ज्ञानजी कहते भये:
    तीव्र भावनायें व्यक्त करने में आनन-फानन में पोस्ट लिखना, उसे एडिट न करना और पब्लिश बटन दबाने की जल्दी दिखाना – यह निहित होता है।


    इसी पोस्ट में उपदेशामृत का पान कराते हुये उन्होंने लिक्खा:
    अपनी तीव्र भावनायें व्यक्त करने के लिये लिखी पोस्टों पर पब्लिश बटन दबाने के पहले पर्याप्त पुनर्विचार जरूरी है। कई बार ऐसा होगा कि आप पोस्ट डिलीट कर देंगे। कई बार उसका ऐसा रूपान्तरण होगा कि वह मूल ड्राफ्ट से कहीं अलग होगी। पर इससे सम्प्रेषण का आपका मूल अधिकार हनन नहीं होगा। अन्तर बस यही होगा कि आप और जिम्मेदार ब्लॉगर बन कर उभरेंगे।


    लेकिन ज्ञानजी ने मिसिर दम्पति को अलग-अलग फोटो में सटा के पब्लिश का बटन दिया। किता तो अच्छा होता कि ज्ञानजी मिसिर युगल की हम बने तुम बने एक-दूजे के लिये टाइप फोटॊ लेकर सटाते तो कित्ता तो क्यूट लगते दोनों। अभी आप देखिये कि शिवबाबू कैसे तो सहमें से दूर खड़े दिख रहे हैं। ध्यान से देखिये तो ऐसा भी लगता है जैसे शिवकुमार मिश्र अपने फ़ोटॊ फ़्रेम से निकलकर अपने परिचय के नीचे सीना फ़ुलाकर खड़े हो गये हैं। एक सहमा-सहमा सा पति एक बहादुर ब्लागर होता है का मुजाहिरा टाइप करते हुये। भाई हमें तो पसंद न आयी ज्ञानजी के अदा। चौदह साल के शादी शुदा दम्पति के फ़ोटॊ शादी के दिन अलग-अलग दिखाना अच्छी बात नहीं है।


    तीसरी बधाई कविताजी को। कल उनकी पुस्तक समाज-भाषाविज्ञान रंग-शब्दावली : निराला-काव्य का लोकार्पण होगा। हिंदी शोध में अपनी तरह का यह अनूठा काम है। इस अध्ययन पर कविताजी को स्वर्णपदक मिला था। यह पुस्तक हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित की जा रही है। लोकार्पण कार्यक्रम हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद सभागार में दिनांक २७.०१.२००९ दिन मंगलवार को अपराह्न ४:०० बजे होगा।

    सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि माननीय मंत्री उच्च शिक्षा डा० राकेश धर त्रिपाठी जी होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता माननीय न्यायमूर्ति श्री प्रेमशंकर गुप्त जी करेंगे।

    इलाहाबाद के समस्त ब्लागर बंधुओं से गुजारिश है कि वे अधिक से अधिक संख्या में लोकार्पण कार्यक्रम में पहुंचकर कार्यक्रम का आंखों देखा हाल बयान करें।

    इसके अलावा आज इमरोज का भी जन्मदिन हैं। आप मनविन्दर जी की पोस्ट पर उनके जन्मदिन की बधाईयां दे सकते हैं।

    रणथम्भोर का किला


    अब इत्ती सारी बधाईयां देने के बाद ताऊ को बधाई न दें तो अच्छा नहीं लगता। है न! ताऊ इसलिये काबिले तारीफ़ हैं कि आज उन्होंने अपनी पत्रिका का साप्ताहिक अंक निकाला। इस छ्ठवें अंक में ताऊ ने पिछली सभी टिप्पणियों को भी दिखाया है। एकदम राजाबेटा ब्लागर की तरह नियमित लेखन करके ताऊ लोगों के पसंदीदा ब्लागर बन गये हैं। लोग उनके खूंटे पर आते हैं, मजा पाते हैं फ़िर आते हैं। उनकी पहेलियां लोगों का ज्ञानवर्धन करने का प्रयास करती हैं और उनको पेश करने का अंदाज ताऊ का ऐसा है कि लोग बार-बार आते हैं उनके ब्लाग पर।

    आज ताऊ ने ब्लाग पर टिप्पणियां तिरंगे रंग में रंगी हैं। उनका ब्लाग घणा खूबसूरत लग रहा है। उनके बारे में समीरलाल ने हमारा कमेंट चुरा के लिख मारा है।

    ताऊ

    ये जो कार्य आप कर रहे हैं और जिस तरह का समर्थन इस कार्य का बढ़ता जा रहा है, यह चिट्ठाकारी के इतिहास का एक स्वर्णिम पहल के रुप में हमेशा दर्ज रहेगा.

    ऐतिहासिक धरोहरों से अन्तरजाल के माध्यम से खेल खेल में रुबरु कराने, उनके विषय में उम्दा जानकारी उपलब्ध कराने का इस बेहतर शायद ही कोई तरीका हो.

    आप साधुवाद के पात्र हैं और मेरी बधाई एवं शुभकामनायें सदैव आपके साथ है.

    आपसे बातचीत होना और आपके मन में अपने प्रति स्नेह देखना, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है. बनाए रखिये.

    अब आपको, ताई को और सैम एवं बीनू फिरंगी को गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं.



    और अंत में

    आज सुबह गणतंत्र दिवस मनाने निकले तो ऐसा निकले कि अभी तक मनाते ही रहे। अब लौटे तो देखा कि इत्ती मंगलघटनायें हो गयीं।

    अब इत्ती देर हो गयी और बात क्या बढायें। आप भी आराम करो। हमें भी सब जगह बधाई देनी है जी। ब्लागर व्यवहार निभाना है। :)

    पुनश्च: जब पोस्ट कर चुके तो पता चला कि २६ जनवरी के ही दिन ताऊ के बच्चे का भी जन्मदिन पड़ता है। सो ताऊ को भी बधाई उसके बच्चे को आशीर्वाद। ताऊ के लिये जुर्माना ब्लागर पब्लिक तय करे कि वे यहां आये और फ़िर भी बताया नहीं। वो तो कहो कि हम दुबारा ताऊ के ब्लाग पर गये वहां अल्पना वर्माजी के कमेंट से पता कि ताऊ ने विवेक के ब्लाग पर कमेंट करके बताया है कि उनके बच्चे का जनमदिन है। बहरहाल अब फ़िर से बधाई!

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    रविवार, जनवरी 25, 2009

    २६ जनवरी के पहले एक दूरदर्शन समाचारीय चर्चा

    ठहरो यार अभी तक कुछ दिलचस्प मिला नहीं है। क्या है न कि लोग गणतन्त्र दिवस की छुट्टी मना रहे हैं तो लिखने वाले कम हैं।
    इसलिए शुरू करते हैं दूरदर्शन।

    अचरज की बात है न कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया आने से कोई फ़र्क नहीं पड़ा, अनशन अब भी वैसे ही होते हैं जैसे लाट साहब के ज़माने में होते थे? पर पढ़े अनपढ़े सभी को वोट देने दोगे तो यही होगा न।

    अक्षत विचार वाले गूढ़ चिंतन कर रहे हैं अपने संविधान पर, यानि की हारा या जीता?

    उसी लय में पासपोर्ट का फ़ार्म ऑन्लाइन होने की सूचना भी दी जा रही है।

    और राजसमंद में सार्वजनिक पुस्तकालय का शिलान्यास हो गया।

    जनसत्ता अखबार की भाषा के बारे में रोचक लेख छापा कारवाँ वालों ने

    जयपुर में साहित्य सम्मेलन हुआ। पैमाना पैमाना।

    लेकिन लल्ला लल्ली चले गए अमेरिका बसने। जवाहरलाल नेहरू के शरीर पर सिफ़्लिस के चकत्ते पाए गए।

    चीनी के भाव कम होने की आशंका है। लेकिन स्थिति गंभीर किंतु नियंत्रण में है।

    मुसाफ़िर जी बता रहे हैं कि वे २६ जनवरी कैसे मनाते थे। लेकिन सपने पर हँसे तो खैर नहीं। हाँ सपने में हँस सकते हैं। क्या इतवार के अलावा दारू नहीं पी जा सकती? कंचन पंत जी आपकी बात दिल को छू गई

    माउथ ऑर्गन तो अच्छा बज रहा था, अच्छा प्रयासचाँदनी चौक टु चाइना तो पिटी हुई फ़िल्म है, ज़रा राज़ द्वितीय की समीक्षा भी पढ़ लें।

    हापुड़ के पास है चीलों का गाँव। पंचायती राज है क्या वहाँ?

    सोनीपत के कलट्टर बरी हो गए हैं।

    कुछ व्यापार समाचार - बाप सत्यम् तो बेटा मेटास। दुर्योधन और धृतराष्ट्र की याद दिला दी।

    अंत में खेल समाचार। हॉकी में भारत आर्जेंटीना से २-० से हार गया।

    समाचार समाप्त हुए।
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    जय हिंद!

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    शनिवार, जनवरी 24, 2009

    हम हैं इस पल यहाँ, जाने वो हैं कहाँ

    आप जरूर सोच रहे होंगे कि ये 'वो' है कौन? बताते हैं लेकिन उससे पहले स्कूल के वक्त छत्रपति शिवाजी से जुड़ी इतिहास में पढ़ी एक बात याद आ रही है - गढ़ आया सिंह गया। शायद अब आप समझ ही गये होंगे हम किस तरफ जा रहे हैं। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं उन शहीदों की जो देश की रक्षा की खातिर शहीद हो गये। ये वो 'वो' हैं जो देश के भीतर भी देशवासियों की रक्षा करने के लिये अपनी जान की बाजी लगा गये। २ दिन बाद २६ जनवरी है यानि गणतंत्र दिवस, आइये उन शहीदों को पहले अपनी एक विनम्र श्रद्धांजलि देते हैं और देते हैं एक जोरदार सैल्यूट - जय जवान, जय हिंद

    चर्चा की शुरूआत में पकड़ते हैं चुंगकिंग एक्सप्रेस, इसमें प्रत्यक्षा टिकट की जगह कहती है -
    मैं बेतहाशा हँसती हूँ। इसलिये कि मुझे रोना नहीं आता।
    ये तो अच्छी बात है, कई लोग तो सिर्फ इसलिये ही नही रो पाते क्योंकि रो रो कर उनके आँसू सूख गये। लेकिन अच्छा है अगर सब लोग यूँ ही हँसने लग जाये तो - हंसते हंसते कट जायें रस्ते।

    हंसने से किसी का कल्याण हो ना हो लेकिन कमलकांतजी के कल्याण के सिद्धांत पढ़कर किसी का कल्याण तो जरूर होना चाहिये। अब ये भी बताने की बात है क्या कि "उनके भाग्‍य में पीएम इन वेटिंग होना ही लिखा है, पीएम होना नहीं।" किसके लिये कहा गया होगा। कमलकांत बुधकरजी राजनीति के ऊपर लिखते हैं -
    बार बार साबित होता है कि राजनीति वेश्‍या है और वह किसी भी कोठे पर बैठ सकती है या किसी को भी अपने कोठे पर बुला सकती है। अब देखिये न, कभी के कटखने आज एकदूसरे की पप्‍पी लेने पर उतारू हैं और वह भी सरेआम। कह रहे हैं कि दोस्‍ती हो गई है। मस्जिद गिराने का श्रेय लेनेवाले उतावले अब मुल्ला मुलायम की गोद में हैं
    ।ऐसा नही है कि बात राजनीति में आकर ही चिपक गयी हो, बल्कि दोस्ती के लिये भी तारीफ के दो शब्द उनकी लेखनी से कुछ यूँ निकले -
    लोग समझ लें कि यह दो विपरीत मगर सिद्धांतवादियों की दोस्‍ती है। दोस्‍ती का आधार तीन और छह के ही अंक हैं। अब तक के छत्‍तीस अब त्रेसठ होकर दोस्‍त बन गए हैं। यह एक ही प्रदेश के दो पूर्व मुख्‍यमंत्रियों की दोस्‍ती है यानी सेम स्‍टेटस। यह दो पूर्व अध्‍यापको की दोस्‍ती है और यह दोस्‍ती है दो धोतीवालों की। यानी अगेन सेम स्‍टेटस। और सबसे बड़ी बात यह है कि यह दो होनहार पुत्रों के स्‍नेहबद्ध पिताओं की दोस्‍ती हैा इस दोस्‍ती की जयजयकार होनी ही चाहिये। धिक्‍कार है इस दोस्‍ती को धिक्‍कारने वालों पर।
    पीएम की वेटिंग का तो हमें समझ नही आया लेकिन विवेक गुप्ता जो पेंटिंग पेंटिंग कह रहे थे वो थोड़ी समझ जरूर आ गयी। वो पेंटरानी (स्त्री लिंग के लिये यही कहेंगे क्या?) पुष्पा द्रविड़ की बात कर रहे हैं जो क्रिकेटर राहुल द्रविड़ की माँ भी हैं। वो बताते हैं -
    देश के प्रसिद्ध चित्रकारों में शामिल, कर्नाटक की लोकप्रिय चित्रकार डॉ. पुष्पा द्रविड़ के लैंडस्केप, पोट्रेट और वॉश के फिगरेटिव पेंटिंग्स भी देशभर में सराही जाती हैं।
    यही नही इनके बारे में पढ़कर एक बात और क्लियर हो जाती है कि पढ़ने के लियेकोई उम्र नही होती, देखिये तो 58 वर्ष में पीएचडी -
    कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही मेरा मन पीएचडी करने का था, लेकिन उस समय संभव नहीं हुआ। बाद में भी किसी न किसी कारण से यह टलता रहा। रिटायरमेंट के अंतिम वर्षो में मुझे लगा कि अब परिवार की जिम्मेदारियां पूरी हो गई हैं, तो सोचा कि यही समय है और बस पीएचडी कर ली।

    पंकज अवधिया अपनी प्रतिक्रिया इस बार कुछ इस तरह से दे रहे हैं -
    "अरे, यह तो भ्रमरमार है। एक नही दो-दो है।" मै लगभग चीख पडा। मेरी खुशी का ठिकाना नही रहा। ऐसा लगा जैसे मुझे अनमोल रत्न मिल गये हो।
    क्या है ये भ्रमरमार, जाकर आप खुद देखिये

    पौराणिक कथायें भी बड़ी अगड़म बगड़म होती हैं अगर हमारी बात पर यकीन नही आ रहा तो ओडेपस की ये कथा को ही ले लीजिये जिसमें ओडेपस ने अपनी माँ से शादी की थी बताया जा रहा है -
    ग्रीस जिसे हम यूनान कहते हैं, के पौराणिक कथाओं में ओडेपस (Oedipus) नामक एक राजकुमार की कथा मिलती है. लगभग ईसा पूर्व ७वी शताब्दी में लाईअस (Laius) नाम का एक राजा थेबेस नगर राज्य का शासक था. उसकी पत्नी का नाम था जोकस्ता (Jocasta). इन्हें एक पुत्र होता है ओडेपस (Oedipus). राजा लाईअस ने , डेल्फी के पुरोहित, तिरेसियस, जो भविष्य वक्ता था (ओरेकल) से बच्चे के भविष्य की जानकारी चाही. ओडेपस स्फिंक्स के प्रश्न का उत्तर देते हुए उसने यह बता दिया कि बच्चा बड़ा होकर अपने पिता की हत्या करेगा और अपनी माँ से शादी कर लेगा.
    और कमाल ऐसा कि ये हो भी गया। इस पर लावण्या जी ने एक सही टिप्पणी की - फ्रोइड महाशय ने इसीलिये तो "ओडीपस कोम्प्लेक्स " की थियरी प्रतिपादीत की थी - Truth is stranger then fiction !!धरोहर में अभिषेक नेताजी सुभाष चंद्र बोस को याद करते हुए लिखते हैं -
    अपने विद्रोही स्वाभाव से ब्रिटिश साम्राज्य को झकझोर देने वाले सुभाष चन्द्र बोस का मानना था कि किसी भी युग में युवाओं कि बुनियादी सोच समान होती है। उन्हें अंजान राहें ज्यादा लुभाती हैं, जबकि समाज उन्हें अपनी आजमाई हुई लकीर की ओर ही खींचना चाहता है।
    हमने भी बचपन में ये गीत प्रभात फेरियों में खूब गाया था, आप भी गुनगुना लीजिये -
    कदम-कदम बढाये जा, खुशी के गीत गए जा;
    ये जिंदगी है कौम की, तूँ कौम पर लुटाये जा।
    शहीद तो शहीद ही होता है, उसका कोई सर नेम नही होता और ना धर्म ना जाति और ना ही ओहदा, हमें ऐसा ही लगता है और इसी से इत्तेफाक रखते हुए राम त्यागी पूछते हैं, मुंबई के कुछ ही शहीदों को सलाम क्यूं ?? -
    क्यूं हर रोज केवल चुनिन्दा पुलिस वालो को ही बार बार शहीद बताया जा रहा है, सिर्फ़ इसलिए की वो उच्च पदों पर आसीन पदाधिकारी थे या फिर इसलिए की वो तथाकथिस शहरी वर्ग से आते थे, क्यों महानगरीय ठप्पे वाले लोग जैसे हेमंत जी, सालसकर जी को ही हम अशोक चक्र या वीरता चक्र देने की बात कर रहे है? क्या वो पुलिस वाले जो तीसरे विस्वयुद्ध की बंदूको से लड़ रहे थे या फिर अपने डंडे से ही कुछ कमाल दिखा रहे थे, शहीदी का तमगा नही लगा सकते ? मेने आज तक किसी भी टीवी चैनल पर साधारण पुलिस वालो का नाम या लिस्ट नही देखी , मेने अपने ज्ञान के अनुसार वेब पर भी इधर उधर नजर दौडाई पर कही भी मुंबई के ३ अफसरों के अलावा किसी और का नाम नही दिखा, ये क्या मजाक है?
    ये तो पहले भी हुआ है आजादी से पहले और बाद सिर्फ किरदार बदल गये हैं, हम तो देश के हर शहीद के लिये नमन करते हैं। बात फर्क की चली ही तो आजादी से पहले की ये बात भी देख लीजिये -
    सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी की इच्छा के विरुद्ध जब कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिए गए, तो कांग्रेस में बवाल हो गया था। रामगढ़ कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस ने अध्यक्ष पद के चुनाव में पट्टाभि सीता रमैया को हराया था। इस पर महात्मा गांधी ने कहा था कि पट्टाभि की हार मेरी हार है। फिर क्या था, पूरी कांग्रेस कार्यसमिति ने इस्तीफा दे दिया। हार कर सुभाषचंद्र बोस ने भी अध्यक्ष पद छोड़ दिया।इसमें सुभाष की नैतिक जीत और गांधी की नैतिक हार हुई।
    नेताजी को साहित्य शिल्पी में भी याद किया जा रहा है -
    “दिल्ली चलो” और “तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूँगा.. खून भी एक दो बुंद नहीं इतना कि खून का एक महासागर तैयार हो जाये और उसमे मै ब्रिटिश सम्राज्य को डूबो दूँ” का नारा देकर स्वाधीनता संग्राम मे नई जान फूँकने वाले सुभाष चन्द्र बोस
    बाल-उधान में शोभा बच्चों को बता रही हैं - सुभाष चंद्र बोस से सीखो


    अब कुछ कविताओं में नजर डालते हैं
    दिल इक पुराना सा म्यूजियम है में रोशन नेता सुभाष चंद्र बोस को उनके जन्मदिवस पर याद करते हुए उनपर गोपाल दास व्यास की लिखी ये कविता 'ख़ूनी हस्ताक्षर' समर्पित करते हैं -
    उस दिन लोगों ने सही-सही, खूं की कीमत पहचानी थी।
    जिस दिन सुभाष ने बर्मा में, मॉंगी उनसे कुरबानी थी।
    बोले, स्‍वतंत्रता की खातिर, बलिदान तुम्‍हें करना होगा।
    तुम बहुत जी चुके जग में, लेकिन आगे मरना होगा।

    आज़ादी के चरणें में जो, जयमाल चढ़ाई जाएगी।
    वह सुनो, तुम्‍हारे शीशों के, फूलों से गूँथी जाएगी।
    आजादी का इतिहास कहीं काली स्याही लिख पाती है
    इसको लिखने के लिए खूनकी नदी बहाई जाती है।
    .........
    सारी जनता हुंकार उठी- हम आते हैं, हम आते हैं!
    माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्‍त चढ़ाते हैं!
    सीमा सचदेव भी नेताजी पर नन्हें मनों के लिये एक बड़ी प्यारी सी कविता पढ़वा रही हैं -
    सुभाष चन्द्र जी बोस महान
    थे बच्चो वो गुणों की खान
    तीक्ष्ण बुद्धि उन्होंने पाई
    देते थे अंग्रेज दुहाई
    बचपन से ही थे महान
    सभ्य,सुसंस्कृत और विद्वान
    अपने देश से करते प्यार
    प्रभु मे आस्था भी अपार
    महा-विचारों को अपनाया
    अपना जीवन लक्ष्य बनाया
    लडेंगे देश के हित मे लडाई
    नव-युवकों की सेना बनाई
    दिया एक जन-जन को नारा
    है यह हिन्दुस्तान हमारा
    खून दो मुझको मै फरियादी
    बदले मे दूंगा आजादी
    वहीं मुक्ति बड़ी होती हुई लड़की के बारे में अपने ख्यालों को अल्फाजों में कुछ इस तरह से सिमेटती है -
    अपने ही घर में वह डरती है /और अंधेरे में नहीं जाती /हर पल उसकी आँखों में /रहता है खौफ का साया /जाने किस खतरे को सोचकर /अपने में सिमटी रहती है /रास्ते में चलते -चलते /पीछे मुड़कर देखती है /बार -बार /और किसी को आता देख /थोड़ा किनारे होकर /दुपट्टे को सीने पर /ठीक से फैला लेती है /गौर से देखो /पहचानते हो इसे /ये मेरे ,तुम्हारे /हर किसी के /घर या पड़ोस में रहती है /ये हर घर -परिवार में /बड़ी होती हुयी लड़की है /... ... आओ हम इसमें /आत्मविश्वास जगा दें /अपने हक के लिए /लड़ना सिखा दें /हम चाहे चलें हों /झुक -झुककर सिमटकर /पर अपनी बेटियों को /तनकर चलना सिखा दें .
    अल्पना ने पहले हाइकू की कल्पना की उड़ान भरी थी आज त्रिवेणी में हाथ दे मारा, हाईकू तो समझाये थे लेकिन त्रिवेणी कैसे लिखते हैं नही बताया लेकिन जो भी है पहली कोशिश शानदार रही -
    हर दिन तलाशती हूँ जीवन -परिभाषा के शब्द ,
    मेरा शब्द कोष अधूरा है या तलाशना नही आता ?
    वह परिभाषा जो तुमने ही तो बतलायी थी मुझे.

    टूट कर जुड़ती रही नीर भरी गगरी,
    रिसता रहता है खारा पानी ,
    फिर भी छलका जाते हो 'तुम ' आते -जाते!
    हम सोच रहे हैं क्यों ना थोड़ा हाथ हम भी आजमा लें, अरे रे रे ब्राउजर क्लोज करने कहाँ चले, छोड़िये इस बार बख्श देते हैं।


    अब हमको दीजिये इजाजत, हम हैं राही प्यार के फिर मिलेंगे चलते-चलते लिखते-लिखते लेकिन उससे पहले आप सभी लोगों को गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई, और अंत में माखन लाल चतुर्वेदी की ये प्रसिद्ध कविता देश के तमाम शहीदों के नाम -

    चाह नहीं मैं सुरबाला के
    गहनों में गूँथा जाऊँ
    चाह नहीं, प्रेमी-माला में
    बिंध प्यारी को ललचाऊँ
    चाह नहीं, सम्राटों के शव
    पर हे हरि, डाला जाऊँ
    चाह नहीं, देवों के सिर पर
    चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ
    मुझे तोड़ लेना वनमाली
    उस पथ पर देना तुम फेंक
    मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
    जिस पर जावें वीर अनेक ।।

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    शुक्रवार, जनवरी 23, 2009

    जब मोदी की चरितावली ने हमें मुदित किया

    नरेन्द्र मोदी पर लिखी दो पोस्टें जब ब्लॉगवाणी की हिट – लिस्ट में सबसे ऊपर चढी देखीं ! देखकर लगा कि अपने छात्रों को ब्याजनिंदा और ब्याजस्तुति अलंकार पढाने के लिए ये उदाहरण हार्डकॉपी पर ले जाऎंगे ! नरेन्द्र मोदी के दस अवगुण गिनाते हुए संजय बेंगाणी जी ने एक महान नेता के छिपे हुए / अनदेखे चारित्रिक पहलुओं से अवगत कराकर गहरा रिसर्चात्मक आलेख लिखा है ! इसके प्रति शोधात्मक आलेख में एक सच्चे हिंदुस्तानी ने मोदी जी का सिर्फ एक गुण लिख कर सौ सुनार की एक लुहार की वाला मुहावरा भी चरितार्थ कर दिखाया ! हिंदी ब्लॉग लेखक की नजर राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय नेताओं पर भी है !

    ओबामा के डे वन से ही हिंदी ब्लॉग जगत ने उनसे उम्मीदें बांधते हुए घोषित किया है कि ओसामा का तोड है ओबामा !  कुछ पोस्टों को देखकर लगता है कि ओबामा का नाम गीतों और पोस्टों के टाइटिल लिए काफी सार्थक है इसके उच्चारण मात्र से आतंकवाद का भूत भाग जाएगा ! अविनाश वाचस्पति लिखते हैं -

    क्या आप जानते हैं कि ओबामा का एक नाम बैरी भी है। जो कि आतंकवाद के दुश्मन के रूप में सामने आ रहा है। अमेरिका का राष्‍ट्रपति बनते ही ओबामा प्रशासन ने आतंकवाद के विरुद्ध जो जंग छेड़ी है। जंग जो अभी नीतियों के तौर पर है। पर इससे ओबामा के आतंकवाद बैरी के रूप में एक सख्ती छवि दिखलाई दे रही है। जो कि उनके सदा दिखाई देने वाले खिलखिलाते चेहरे के बिल्कु‍ल विपरीत है।

     

    काश !! ऎसा ही हो ! अजदक ब्लॉग में आतंकियों और युद्ध अपराधियों को सज़ा दिलवाने की विज्ञप्ति पर दस्तख्त करने की अपील की है ! हिंदी ब्लॉगिंग को अनाम होकर निजी वार करने का एक बेहद गैरजिम्मेदार माध्यम मात्र मानने वाले ऑफलाइन तबके की निष्क्रियता और वैचारिक निरुद्देश्यता के लिए इस तरह की पोस्टें अच्छा जवाब हो सकतीं हैं!

     

    चुराई हुई डायरियां और चुराई हुई कलाकृतियां और उनके खुलासे ! रवीन्द्र व्यास के ब्लॉग हरा कोना पर कैनवास के कारोबार के काले कारनामों पर रोशनी डाली गई है ! अपने ब्लॉग अजदक में प्रमोद जी  हिंदी लेखकों की चुराई हुई डायरी का एक असंपादित अन्यतम संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं अवश्य पढिएगा ! सजग पाठकों और श्रोताओं की कमी आज हर कला माध्यम के सामने है ! दिनेश्वरराय जी का प्रेरक संस्मरण - कविता आगे पढी तो कवि सम्मेलन यहीं समाप्त इस लिहाज से बेहद पठनीय है !संस्मरण सुनाने की उनकी कला की तारीफ करते हुए अजित वड्नेरर्कर जी लिखते हैं-

    बहुत प्रेरक प्रसंग...ऐसे सजग श्रोता ही नहीं, सजग नागरिक भी चाहिए...जो जनप्रतिनिधियों को भी यूं ही आड़े हाथों लें...
    बेहद स्तरीय पोस्ट वकील साब...आपके संस्मरण सचमुच रंजक तो होते ही हैं, सीख से भरपूर भी।

    हिंदी ब्लॉगिंग में अपनी वैचारिक और दिशा संबंधी स्पष्टता के प्रति खूब समर्पित है - हिंद युग्म ! पुरानी यादों को ताज़ा करने वाले पॉडकास्टों और नई प्रतिभाओं को मंच दिलाने के दोहरे लक्ष्य के लिए जुटा यह ग्रुप निश्चय ही अलग और सराहनीय है ! इस बार यहां सुनिए - मन्ना डे की आवाज़ !  इस बार लिखते हुए ब्लॉग पर कविताएं कम दिखाई दीं कविताओ की चर्चा ज्यादा दिखी ! विवेक जी की कविता में बुश की महानता पर प्रशस्ति अवश्य पढिए -

    सही थे बुश के सारे काम ।

    स्वयं को करके भी बदनाम ॥

    राष्ट्र को रखा सदा आश्वस्त ।

    स्वयं जूते खाकर भी मस्त !!

    पूर्णिमा बर्मन जी की कविता में भीड में खो गए वसंत की तलाश और पीडा दिखाई देती है !

    वक्त कम है चिट्ठे कई हैं ! चर्चा ज्यादा नहीं हो पाई है सो टिप्पणियों में आप सबकी ओर से छोटी चर्चा की शिकायत का भय  भी लग रहा है ! किस पोस्ट को लूं किसको छोड दूं के प्रश्न ने वैसे ही थका डाली हैं मुट्ठियां ! जो मुझसे छूट गए हैं वे मुझे मुआफ करेंगे ऎसी उम्मीद बिना किसी आश्वासन के पाल लेने के अलावा कोई चारा नहीं है ! :)  लीजिए ये किया पब्लिश .... !

    आज की तस्‍वीर सुनीलजी के कैमरे से:

    धकधक, धकधक, रात को सोते सोते भी, सुबह उठते ही. "यह करना है, वह करना है", फिरकनी की तरह घूमने लगो तो रुका नहीं जाता. चिट्ठे में कुछ लिखना तो दूर की बात है, कुछ भी पढ़े हुए सप्ताह बीत जाते हैं. सुबह अँधेरे निकलो, रात को अँधेरे थके हारे घर आओ, लगता है कि यह अंतहीन शीत कभी बीतेगा ही नहीं

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    गुरुवार, जनवरी 22, 2009

    ओबामा ओबामा ओबामा बजा.....

    हम भारतीय चुनाव और शपथ-ग्रहण समारोह के इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि अपने देश में चुनाव और शपथ-ग्रहण समारोह न हो तो किसी और देश का चुनाव और शपथ-ग्रहण समारोह को देखकर खुश हो लेते हैं.

    अब देखिये न, ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत गए. जीत गए तो राष्ट्रपति भी बन गए. बन गए तो शपथ-ग्रहण कर लिया. शपथ ग्रहण कर लिया तो अब अमेरिका को वही चलाएंगे. लेकिन उनके राष्ट्रपति बनने से हम भारतीय भी बहुत खुश हैं. पिछले कई दिनों से समाचार चैनल, अखबार, रेडियो पर ओबामा छाये हैं.

    ब्लॉग पर भी वही छाये हैं. बादल की तरह. उनके ऊपर पोस्ट की बरसात हो रही है.

    आज तो अनूप जी ने भी ओबामा के ऊपर पोस्ट लिख दी है. वे लिखते हैं, एक ठो ओबामा इधर भी लाओ यार.

    अब ये बात उन्होंने किससे कही है, ये अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है. 'इधर भी लाओ यार' से उनका मतलब ये तो नहीं कि वे कानपुर या लखनऊ के लिए ओबामा मांग रहे हैं. नहीं, ये बात मेरे मन में इसलिए आई कि अगर वे कानपुर और लखनऊ के लिए मांग रहे हैं तो ठीक नहीं.

    आख़िर मायावती जी और उनके प्रशंसक उनकी तुलना ओबामा से पहले ही कर चुके हैं. खैर, अनूप जी अपनी पोस्ट में लिखते हैं;


    अपने देश में भी लोग कहने लगे हैं यार एक ठो ओबामा इधर भी चाहिये। यहां भी आये तो कुछ काम बनें। ओबामा का मतलब अगर अल्पसंख्यक, अश्वेत, वंचित समुदाय से आने की बात है तो भारत में ऐसे कई ओबामा टुकड़ों-टुकड़ों में आये और कालांतर में अपनी गति को प्राप्त हुये। एक नहीं कई।

    भारत में ओबामा अगर टुकड़े-टुकड़े में आयेंगे तो अपनी गति को प्राप्त होंगे ही. टुकड़े की गति क्या हो सकती है? टुकड़ा ख़तम हो जाता है. साबुत आते तो कुछ होता भी. टुकड़ा चाहे एक हो या कई, उसकी गति यही होनी है.

    अनूप जी आगे लिखते हैं;


    यह संयोग है कि आज अमेरिका की हालत पतली सी है। सेनायें फ़ंसी हैं। बैंको को डुबा या मिलके उनके लालों नें। अमेरिका धिरा है तमाम बवालों में। सो उनको ऐसा आदमी चाहिये जो फ़ालतू की फ़ूं-फ़ां में टाइम वेस्ट की बजाय अपनी हालत ठीक कर दे।

    शब्दों के संयोजन पर ध्यान दीजिये.

    बैंकों को डुबो दिया मिलके उनके लालों ने
    अमेरिका घिरा है तमाम बवालों में

    मेरे कहने का मतलब ये कि न चाहते हुए भी अनूप जी पोस्ट लिखते-लिखते कविता की तरफ़ चले थे. वो तो कोई ध्यान न दे इसके लिए इन दो लाइनों को पैराग्राफ का हिस्सा बना दिया.

    वैसे कोई छायावादी विद्वान यह बात आसानी से साबित कर सकता है कि पहली लाइन में 'लालों' का मतलब कम्यूनिस्ट लोगों से है. अगर ऐसा हो गया तो अमेरिका के साम्राज्यवादी छायावादी विद्वान के हवाले से कह सकते हैं कि; "हमारे बैंक ठीक-ठीक चल रहे थे. 'लालों' ने उन्हें डुबो दिया.

    अनूप जी का कहना है कि भारत और अमेरिका एक मामले में एक जैसे हैं. और वो है 'अभिमन्यु' का इंतजार करने के मामले में. इस बात को बताते हुए उन्होंने एक कविता लिख डाली है.

    मैं कह रहा था न कि कविता की तरफ़ पहले ही मुड़ चुके थे. शायद उस मोड़ से सुस्त कदम रस्ते जाते थे इसलिए ठिठक गए और वापस आ गए. लेकिन बाद में कविता लिख ही डाली. आप यहाँ पर कविता के अंश और उनकी पोस्ट पर पूरी कविता पढ़िये.

    वे लिखते हैं;

    लेकिन अभिमन्यु पैदा करने के भी
    एक कायदे का बाप चाहिये।
    ऐसा बाप जो कायदे सेउसकी मां को चक्रव्यूह भेदन की
    कहानी सलीके से सुनाये।
    ऐसे कि मां बोर न हो
    जम्हुआकर सो न जाये।
    सातों दरवाजे तोड़ने की कथा पूरी सुने फ़िर आराम से सो जाये
    ताकि अभिमन्यु आये तो चक्रव्यूह के अंन्दर ही न मारा जाये।

    कायदे का बाप चाहिए? तो फिर पहले अर्जुन का इंतजार करना पड़ेगा. वैसे भी ज्यादातर चांस यही है कि आज का अभिमन्यु (अमिताभ बच्चन की फिलिम आज का अर्जुन के तर्ज पर) चार द्वार तोड़कर बोलेगा; "पाँच बज गए. हमारी ड्यूटी ख़तम. अब कल दस बजे वापस आऊंगा तो आगे के द्वार तोडूंगा."

    वैसे ओबामा को 'इधर' लाने के आह्वान से दिनेश राय द्विवेदी जी सहमत नहीं दिक्खे. उन्होंने तो अपनी टिप्पणी में एलान कर दिया कि;


    हमें नही चाहिए ओबामा। हम अपना कुछ खुद बना लेंगे।

    ये भी सही है. अभी डॉलर का भाव रूपये के मुकाबिले बहुत ऊपर है. ऐसे में नीति यही कहती है कि इंपोर्ट अभी बहुत मंहगा पड़ेगा. अपने देश में ही कुछ तैयार करना पड़ेगा.

    अच्छा, ओबामा जी अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो ज्यादातर लोगों ने कहा कि ओबामा जी ने इतिहास रच दिया. लोगों की इस बात से एक बार फिर से साबित हो गया कि कविता-कहानी की तरह इतिहास भी रचा जाता है.

    खैर, ओबामा जी ने इतिहास रचा इस बात को स्वीकार करने में एस एन विनोद जी को संकोच हो रहा है. वे लिखते हैं;


    इतिहास रचा गया! बिल्कुल ठीक! इतिहास बराक ओबामा ने रचा, इसे स्वीकार करने में मुझे संकोच है. यूं भारत के प्राय: सभी समाचार-पत्र और टेलीविज़न चैनल पिछले दो दिनों देश को शिक्षित करते देखे गए कि 'ओबामा ने इतिहास रचा.

    समाचार पत्र और न्यूज़ चैनल देशवासियों को शिक्षित कर रहे हैं और हम हैं कि उनके शिक्षक बनने के ख़िलाफ़ जब-तब उतर आते हैं. अपने संकोच के बारे में बताते हुए विनोद जी आगे लिखते हैं;


    मैं समझता हूं ये अतिरेकी उद्गार है. अति उत्साह में ऐसा ही होता है. गुब्बारे के पिचक जाने के बाद ऐसे उत्साही कलमची स्वयं ही संशोधन को आतुर हो उठेंगे.

    वैसे मेरा मानना है कि कलमची लोगों के जब उनके उद्गार को संशोधित करने का समय आएगा तो वे किसी और के द्बारा इतिहास रचवा रहे होंगे. पचास बहाने हैं इतिहास रचने के. और भी भ्रम है ज़माने में ओबामा के सिवा...

    अपने संकोच को जिगासा में परिवर्तित कर विनोद जी आगे लिखते हैं;


    हमारे भारत में मौजूद विदेशी मामलों के विशेषज्ञ 'ओबामा-उदय' को भारत के लिए हितकारी मान रहे हैं. इस बिन्दु पर सहज-जिज्ञासा यह कि क्या सचमुच अमेरिका, भारत का मित्र साबित होगा?

    अमेरिका किसका मित्र साबित हुआ है आजतक? मित्रता बहुत बलिदान मांगती है. और अमेरिका बलिदानी हो जाए ऐसा होने का चांस कमे है.

    विनोद जी की इस पोस्ट पर द्विवेदी ने अपनी टिप्पणी में लिखा;


    इतिहास हमेशा जनता ही रचती है।

    जनता भी गजब 'चीज' है. जो चाहे इसे खा जाता है. वैसे मेरा मानना है कि कविता रचते-रचते जब बोर हो जायेगी तो इतिहास भी रच ही डालेगी एकदिन. बस वो दिन कब आएगा, ये नहीं पता.

    खैर, अमेरिकन ओबामा से आते हैं भारतीय अभिमन्यु पर. कुछ लोग नरेन्द्र मोदी को अभिमन्यु समझते हैं. इनमें से कुछ उद्योगपति भी हैं.

    बड़ी बात है कि नहीं. आज संजय जी ने उनके राज्य के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के दस अवगुण गिनाने के बहाने नेता के गुणों पर प्रकाश डाला. हम तो सोचकर पोस्ट पढ़ें गए कि नरेन्द्र मोदी के अवगुण क्या-क्या हैं, ये पढ़ेंगे लेकिन संजय जी ने झांसा दे दिया.

    उन्होंने नेता के गुण गिनाये. वे लिखते हैं;


    नरेन्द्र मोदी के वे खास अवगुण जिनकी वजह से वे प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है. और जिन्हे लायक माना जा रहा है, उनमें यह मौजूद है….

    इतना लिखने के बाद उन्होंने असली नेता के दस गुण गिनाये. ये गुण हैं;

    1.नेता ऐसा हो जो भाई समान हो
    2.नेता ऐसा हो जो जाति का कल्याण करे:
    3.नेता ऐसा हो जो पानी-बिजली-सड़क देने का वादा करे और करता रहे:
    4.नेता ऐसा हो जो जवाँ मर्द हो:
    5.नेता ऐसा हो जो अपने परिवार से प्रेम करे:
    6.नेता ऐसा हो जो दोनो हाथों से दान करे:
    7.नेता ऐसा हो जो वफादार हो:
    8.नेता ऐसा हो जो अल्पसंख्यको का हितेशी हो:
    9.नेता ऐसा हो जो शान्तचीत हो:
    10.नेता हो तो गाँधी हो:


    संजय जी ने हेडिंग्स डालकर विवेचना भी लिखी है. ठीक वैसे ही जैसे हम परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर लिखते थे. विवेचना तो आप उनकी पोस्ट पर जाकर पढ़ लें.

    संजय जी की ये पोस्ट शाश्वत जी की समझ में आ गई. उन्होंने अपनी टिप्पणी में एलान किया;

    हम तो समझ गए, एक बार देश की साड़ी जनता भी समझ जाए तो मजा आ जाए

    वैसे मेरा मानना है कि जनता कुछ समझती है तो भी और कुछ नहीं समझती तो भी, मज़ा ही आता है.
    संजय जी की ये पोस्ट पढ़कर सूमो जी को लगा कि मोदी जी के जितने अवगुण संजय जी ने गिनाये, वे कम हैं. उन्होंने अवगुणों की लिस्ट आगे बढ़ाते हुए अपनी टिप्पणी में लिखा;

    मोदी टेलीविजन वालों और मीडिया को आलतू फालतू देकर पालतू नहीं बनाता.
    मोदी बहुत भ्रस्टाचारी है, दो दर्जन कुरते है इसके पास.

    मोदी जी के अवगुण के बारे में जानकारी लेने गए केवल हमही निराश नहीं हुए. अनिल रघुराज जी भी निराश हो गए. जैसे हम निराश होकर चिट्ठाचर्चा में लिख बैठे कि हम निराश हुए वैसे ही अनिल जी चिटठा में लिख बैठे. उन्हें लगा कि अवगुण नहीं जान पाये तो सद्गुण की ही बात कर ली जाय.

    इसलिए उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के हवाले से बताया कि मोदी जी में एक सद्गुण है. वो क्या है? वे लिखते हैं;

    संजय भाई ने नरेन्द्र मोदी के पाँच अवगुण गिनाये तो मुझे लगा कि क्यों न उनका एक सद्गुण गिना दिया जाए। आज ही इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट छपी है जो बताती है कि वे झूठ बोलने में ज़बरदस्त महारत रखते हैं। उनके सत्य की कलई ख़ुद उन्हीं के सरकारी विभाग ने खोली है। आप भी यह रिपोर्ट पढ़ें और उनके इस सद्गुण की दाद दें। शुक्रिया।

    अच्छा, जिन्हें भ्रम हो कि ऊपर दिया गया पैराग्राफ पोस्ट की झलक है, मैं उनका भ्रम कोसों दूर फेंकते हुए ये बताना चाहता हूँ कि ये केवल एक पैराग्राफ नहीं है. ये पूरी पोस्ट है.

    अनिल जी की ये पोस्ट पढ़कर मुझे अपने सीए के शुरुआती साल की ट्रेनिंग की याद आ गई. हुआ ये कि हम नए-नए ऑडिटर बने थे. एक चाय कंपनी की ऑडिट करने गए. रूटीन ऑडिट थी. डेबिट साइड में एक फिगर वाऊचर में तो था, कैशबुक में नहीं था. हमें लगा कि मैं नया आर्टिकिल क्लर्क हूँ. ऐसे में 'ऑडिट नीति' ये कहती है कि अपने सीनियर से सलाह लूँ. सीनियर फर्म के पार्टनर भी थे.

    मैंने अपने सीनियर से कहा; " सर, ये फिगर कैशबुक में डेबिट साइड में दिखाई नहीं दे रहा है." उन्होंने फट से कहा; "तो क्रेडिट साइड में चेक कर लो."

    मतलब ये कि अवगुण पढने को नहीं मिले तो सद्गुण पढ़ लो. लेकिन कुछ पढ़ो ज़रूर.

    अनिल जी की इस पोस्ट पर पंगेबाज जी ने टिप्पणी में लिखा;

    अरे वाह आपकी तो लाटरी निकल आई .. मोदी गरियाऊ समीती के चेयर मैन को और क्या चाहिये बधाई हो जी . वैसे आपको कसम है कभी भि ये अंधो वाला चशमा उतार कर किसी और मुख्यमंत्री या देश के केंद्रीय मंत्रियो की करतूते ना देखना. अगर दिख भी जाये तो गांधी के बंदरो की प्रतिमूर्ती बने रहने का आपका इत्ते साल का अनुभव किस काम आयेगा लगे रहो चिढनखोरी मे :)

    इस टिप्पणी को लिखने के बाद पंगेबाज जी को लगा कि उन्होंने छोटी टिप्पणी लिखी है. इसलिए वे लौटकर आए और इससे भी बड़ी एक टिप्पणी लिख डाली. आप टिप्पणी अनिल जी के ब्लॉग पर जाकर पढ़ लें.

    संजय भाई को ये बात अच्छी नहीं लगी कि उन्होंने तो मोदी जी के दस अवगुण गिनाये और अनिल रघुराज जी ने अपनी पोस्ट में उनकी संख्या पाँच बताई. उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा;

    यार आप भी ना...जितना होता है उससे कम कर देते हो. मैने मात्र दस कारण बताए और आपने उसके भी कम कर पाँच कर दिये.

    उनकी इस टिप्पणी पर अनिल रघुराज जी ने कुशल मीडिया-कर्मी की तरह अपनी गलती मानी और अपनी पोस्ट में दिए गए नम्बर ऑफ़ अवगुण में सुधार किया.

    वैसे एक बात मैं बता चलूँ. संजय जी और अनिल जी की पोस्ट पढ़कर मुझे लगा कि व्यंगकारों की संख्या में बढोतरी होती जा रही है. ये अच्छा है.

    कुछ कवितायें पढ़िये.

    बसंत आने को है. हर साल जब बसंत के आगमन का समय नज़दीक आता है, कवि-कवियित्री कवितायें लिखते हैं. सही बात भी है. सावन और बसंत अगर कवियों से कवितायें न लिखवा ले तो दो कौड़ी का सावन और ढाई कौड़ी का बसंत.

    लेकिन ऐसा क्यों है कि हाल के सालों में बसंत पर लिखी गई कवितायें पढने से लगता है जैसे उसके आने पर लिखी गई कविताओं में शिकायत ही रहती है. लगता है जैसे ज्यादातर कवियों और कवियित्रियों ने इस बात पर सहमति भर ली है कि बसंत अब बसंत नहीं रहा.

    आप पूर्णिमा बर्मन जी की कविता पढ़िये. हमें उनकी कवितायें बहुत पसंद हैं. पूर्णिमा जी ने बसंत की तीसरी कविता लिखी है जो उनके अनुसार;


    पिछले साल दूसरी व्यस्तताओं के चलते रह गई, इस बार वसंत बीतने से पहले प्रस्तुत है-

    हरी घास परग
    दबदी टाँगों से कुलाचें भरता
    कोयल सा कुहुकता
    भँवरे सा ठुमकता
    फूलों के गुब्बारे हाथों में थामे
    अचानक गुम हो गया वसंत
    मौसमों की की भीड़ में बेहाल परेशान
    बिछड़ा नन्हा बच्चा
    जैसे मेले की भीड़ में खो जाए माँ

    तो क्या अब बसंत ऋतुराज नहीं रहे? वे आगे लिखती हैं;

    मौसम तो सिर्फ छे थे
    जाने पहचाने
    लेकिन भीड़ के नए मौसम
    वसंत बेचारा क्या जाने
    .....................................
    .....................................
    वसंत
    नन्हा दो माह का बच्चा
    इस भीड़ में गुम न होता तो क्या होता?

    डॉक्टर अमर ज्योति जी की गजल पढ़िये.

    बाग़बां बन के सय्याद आने लगे;
    बुलबुलों को मुहाजिर बताने लगे।

    भाईचारा! मुहब्बत! अमन! दोस्ती!
    भेड़ियों के ये पैग़ाम आने लगे।

    आपसे तो तक़ल्लुफ़ का रिश्ता न था;
    आप भी दुनियादारी निभाने लगे!

    दर्द वो क्या जो गुमसुम सा बैठा रहे!
    दर्द तो वो है जो गुनगुनाने लगे।

    शैलेश जैदी जी की गजल पढ़िये. वे लिखते हैं;


    तत्काल कोई बीज भी पौदा नहीं बना.
    दुख क्या अगर प्रयास सफलता नहीं बना.

    माना कि लोग उससे न संतुष्ट हो सके,
    फिर भी वो इस समाज की कुंठा नहीं बना.

    वो है सुखी कि उसके हैं ग्रामीण संस्कार,
    वो अपने गाँव-घर में तमाशा नहीं बना.

    आज बस इतना ही. सोचा था कि आज चर्चा जल्दी करूंगा. लेकिन आज बंगाल बंद होने के कारण आफिस में कर्मचारियों की कमी है. लिहाजा काम करने की वजह से वक्त नहीं मिला. इसलिए चर्चा करने में और देर हो गई. आज फिर से साबित हो गया कि;

    मैन प्रपोजेज
    नेता डिस्पोजेज

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