शुक्रवार, मार्च 03, 2006

नवांकुरित चिट्ठे

फिर बात कुछ नवांकुरित चिट्ठों की। पहले पहल बर्लिन स्थित क्षितिज कुलश्रेष्ठ का "एक और नज़रिया"। शायद जर्मनी की हवा ने क्षितिज को अपनी सेक्सुअल पसंद की खुलेआम चर्चा करने का साहस दिया है। क्षितिज आपकी साफगोई की प्रशंसा करते हुए हम उम्मीद करेंगे कि समलैंगिक संबंधों के विषय पर और लिखेंगे। ग्रेग गोल्डिंग का चिट्ठा स्टिलिंग स्टिल ड्रीमिंग विविध विषयों पर आधारित चिट्ठा है जिनमें कविताएँ भी शामिल हैं। आखिर में बंगलौर के विजय वडनेरे की कुलबुलाहट की चर्चा। विजय ने शुरुआत की हनुमान चालीसा से और आ पहुंचे चचा तक। आगे क्या रंग लाता है उनका चिट्ठा इसकी कुलबुलाहट तो बनी रहेगी!

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