शुक्रवार, जुलाई 31, 2009

उपन्यास सम्राट, आलोचना सम्राट, टिप्पणी सम्राट और हास्य सम्राट


प्रेमचंद
आज उपन्यास सम्राट कथाकार मुंशी प्रेमचंदजी का जन्मदिन है। इस मौके पर कई साथियों प्रेमचंदजी को याद करते हुये उनपर पोस्टें लिखीं। उनमें से कुछ के लिंक ये हैं:
  1. 'मजबूरी' है इसीलिए तो प्रेमचंद को याद करते हैं

  2. हम और हमारे आसपास प्रेमचंद की मौजूदगी

  3. ’गमी’ - प्रेमचंद के जन्मदिवस पर

  4. उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के जन्म-दिवस पर विशेष

  5. हेडमास्टर प्रेमचंद

  6. प्रेमचंद: एक परिचय - [आलेख] अभिषेक सागर

  7. डाककर्मी के पुत्र थे प्रेमचंद

  8. बॉलीवुड में मुंशी प्रेमचन्द ने कहा था

  9. प्रेमचंद : प्रासंगिकता के सवाल

  10. गोदान-भारतीय किसान की आत्मकथा

कबाड़खाने पर हर्षवर्धन ने कहा:प्रेमचंद का लिखा अगर थोड़ा सा भी खींचे रहे तो, समझिए हमारी उत्सवधर्मिता सार्थक हो गई।
वहीं राजेश जोशी का कहना है:प्रेमचंद के साथ शायद सबसे अच्छा न्याय यही होगा कि उन्हें समारोहों और गोष्ठियों से निकालकर गुटके की तरह प्रचारित प्रसारित किया जाए.
अरे वो गुटका नहीं यार. बाबा तुलसीदास का गुटका यानी मानस!



नामवर सिंह
तीन दिन पहले हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह जी ८३ वर्ष के हो गये। इस मौके पर जे एन यू में उनका हैप्पी बर्ड डे मनाया गया। २८ जुलाई को उनका हैप्पी बर्थडे दिल्ली में ही त्रिवेणी सभागार में मान्य गया, वहां उन्होंने कम से कम दो साल और जीने का संकल्प लिया और जनता ने उनसे कम से कम सौ साल जीने की गुजारिश की।

नामवर जी बातचीत करते हुये उनके भाई काशीनाथ सिंह ने एक बार पूछा था-आपको कैसे लोगों से ईर्ष्या होती है?
जो वही कह या लिख देते हैं जिसे सटीक ढंग से कहने या लिखने के लिये मैं बेचैन रहा
- नामवरजी का जबाब था।
नामवर जी को उनके जन्मदिन की बधाई देते हुये उनके शतायु होने की कामना करता हूं।

समीर लाल
समीरलालजी ने दो दिन पहले पैदा लिया था। भाई लोगों ने उनको इत्ती हैप्पी बड्डे बोली कि उनका ब्लडप्रेशर बढ़ गया और वे भगवान से शिकायत करने लगे-हे प्रभु, ये तेरी माया... अल्लाताला ने इत्ता हसीन बनाया है। रंग भी क्या लाजबाब दिया है कि अगर जरा सा खूबसूरत हों कोई तो कहें- ब्लैक ब्य़ूटी। समीरजी तो ब्यूटी के साथ क्यूटी भी हैं। फ़िर भी आदत है शिकायत करने की सो कर रहे हैं। कोई कुछ कह भी तो नहीं सकता न इससे। जरा सी बात में तो भावुक हो जाते हैं।

हमने जब ये वाकया ताऊजी को बताया तो उन्होंने समीरजी को उठा के (कह रहे हैं तो मान लो भाई) रामप्यारी की क्लास में डाल दिया। ताऊ आजकल न जाने क्यों सब काम रामप्यारी से करवाने लगे हैं। उनको न जाने यह बात क्यों नहीं समझ में आ रही है कि अगर कहीं समीरजी ने रामप्यारी को झांसे में लेकर गाना-ऊना सुना दिया तो क्या होयेगा?


रामकृष्ण ओझा
ज्ञानजी हमसे दो दिन से नाराज से हैं कि समीरलालजी के जन्मदिन के मौके पर उनकी तारीफ़ करते हुये उनकी खिंचाई क्यों नहीं की गयी। नाराजगी में ही वे गंगा किनारे चले गये और रामकृष्ण ओझा से हाथ मिला लिया(समीरलालजी की खिंचाई के लिये?)। ओझाजी का परिचय भी जान लीजिये:
(वे)शिवकुटी में रहते हैं। मैडीकल कालेज में नौकरी करते हैं। इसी साल रिटायर होने जा रहे हैं। उन्होने मुझे नमस्कार किया और मैने उनसे हाथ मिलाया। गंगा तट पर हमारा यह देसी-विलायती मिक्स अभिवादन हुआ। … रामकृष्ण ओझा जी को मालुम न होगा कि वे हिन्दी ब्लॉगजगत के जीव हो गये हैं। गंगा किनारे के इण्टरनेटीय चेहरे!


गौतम राजरिशी के बारे में टिपियाते हुये ने पूजा उपाध्याय ने लिखा था:

गौतम राजरिशी
पहली बार किसी फौजी की जिंदगी का ये हिस्सा देख रही हूँ, ग़ज़ल, वजन, मात्रा, बहर...कितना कुछ का ख्याल रख लेते हैं आप और भाव भी कमाल के होते हैं...शायद फौज में जो precision सिखाया गया है आप यहाँ भी काम ले लेते हैं. अच्छा लगा आपको पढ़ना.
आज गौतम राजरिशी ने अपनी ब्लागिंग का पहला साल पूरा किया और अपनी पचासवीं पोस्ट लिखी। उनको खूब सारी बधाईयां।

पूजा सवाल पूछती हैं

पूजा
हमेशा मुझसे ही क्यों खफा होते हैं
चाँद, रात, सितारे...पूरी रात
अनदेखे सपनों में उनींदी रहती हूँ
नींद से मिन्नत करते बीत जाते हैं घंटे
सुबह भी उतनी ही दूर होती है जितने तुम


कहावतें कित्ती भी पुरानी हो जायें लेकिन उनके मतलब तो नहीं न बदल जाते हैं भाई। अब विवेक कहते हैं कि उनको फ़ुरसत-उरसत मिले तो वे न जाने क्या-क्या कर डालें। अब आप बताइये कि इस पर वो वाली कहावत लागू होती है कि नहीं- खुदा गंजो को नाखून नहीं देता खैर ये आप बाद में बताइयेगा कौनौ ताऊ की पहेली तो है नहीं जो पिछड़ जायेंगे पहिले देख तो लीजिये कि फ़ुरसत से कौन सा अचार डालेंगे विवेक भाई:

विवेक
यारों के संग ताश खेलकर,
खुलकर हँसने की बारी ।
अट्टहास कर शोर मचायें,
होती हो ज्यों बमबारी ॥
अब बताओ भला ये वाली फ़ुरसत कहीं मांगे मिलती है। ये तो निकाली जाती है- जैसे खली से तेल! जित्ता निकाल सको निकाल लेव।
प्रमोदजी का गद्य पढ़ने का मजा ही और है। आप देखिये। हम खाली नमूना दिये दे रहे हैं। सब पढ़िये! आराम से कौनौ हड़बड़ी नहीं है। उनकी पोस्ट कौनौ भागी नहीं जा रही है:

प्रमोदजी

  • सिंधु ने एकदम से बुरा मानकर जवाब दिया- लिपस्‍टि‍क लगाती हूं छोटी नहीं हूं, अब?

  • कौमा को यकीन नहीं होता, गुस्‍से में आंख चढ़ाये मेरी साहित्यिकता के सात पुश्‍तों को मां-बहन में तौलता है, विराम खौरियाया मुंह से खखारने की जगह कहीं और से कराहता है क्‍या गुरु, इस तरह तो हम जनम-जनम के एसिडिक हुए, तुम्‍हारी मुहब्‍बत के भरोसे तो पूरे भांगधाम प्‍लैटोनिक हुए?

  • लिखने से समाज बदलता है ऐसा हमें मुगालता नहीं, लिखते-लिखते हमीं कहीं ज़रा सा बदल जायें वही हमारी आत्‍मा का शोभित लालता होगा

  • हिन्‍दी का कमरकसे साहित्‍यकार इस लिहाज से महाबरगदी राजनीतिक समझ की ऊंचाइयों की फुनगियां छूता रहता है. छूता क्‍या रहता है बरगदमाल गरदन में डारे मदहोश अश्‍लील परगतशील हिचकियां लेता रहता है.

  • लालित्‍य के यही रंग हैं, गंवार अक्षरदीक्षित अर्द्धशिक्षितों के यही ढंग हैं, फिर भी जाने क्‍यों है लिखने को अकुलाया रहता हूं, हिन्‍दी में ही लिखूंगा जानता हूं उसकी मुर्दनी में भक्क काला होने की जगह ललियाया रहता हूं?

  • बात-बात पर जैसे अनजाने हो रहा है, उसका हाथ टच करता रहा था तब बास्‍टर्ड को मेरी हाईट से दिक्‍कत नहीं हो रही थी?

  • प्रत्यक्षाजी को समझ में नहीं आ रहा है क्या बात करें? फ़िर भी वे बहुत कुछ कर गईं। देखिये उनके यहां ही जाकर। जाना इसलिये पड़ेगा कि उनके ब्लाग पर कापी ताला लगा हुआ है।

    संजय बेंगाणी पूना गये तो देबाशीष से मिलकर आये। किस्सा और फोटो इहां देखिये। फोटो देबू के बच्चे ने खींचा है और इसीलिये अच्छा भी आया है।

    निशांत बता रहे हैं नोबले पुरस्कार विजेता वर्नर हाइज़ेनबर्ग के गेटकीपर से नोबल पुरस्कार विजेता बनने का सफ़र के बारे में।


    अलबेलाजी खत्री
    अलबेलाजी खत्री जी बड़े तेज चैनेल वाले ब्लागर हैं। तीन महीने में पांच सौ पोस्ट ठोक चुके हैं। मंच पर आजकल जैसे द्विअर्थी डायलाग वाले चुटकुले और तुकबंदियां सुनी-सुनाई जाती हैं वैसी ही एक कविता ( labels: sex सम्भोग यौनाचार बलात्कार शीलभंग लगाकर) उन्होंने पेश की। रचनाजी ने इस पर अपना एतराज जताया अलबेलाजी ने अपनी पोस्ट तो हटा ली लेकिन रचना और अन्य ब्लागरों को अपने बारे में बताते हुये लिखते हैं-मेरी कवितायें पढ़ने के लिए और समझने के लिए तो एक/मानसिक, आत्मिक, आध्यात्मिक और साहित्यिक स्तर की/ज़रूरत पड़ेगी अब लेव ससुर चुटकुले समझने के लिये भी मानसिक, आध्यात्मिक और साहित्यिक स्तर चाहिये तब तो हो लिया जी। अलबेलाजी की पोस्टों पर वीनस केसरी ने अपना जायज एतराज दर्ज किया है। तबसे अलबेलाजी अपने ब्लाग पर लगातार अपनी तारीफ़ में आत्मनिर्भर बने होये हैं और अपने बारे में सच्ची जानकारियां दे रहे हैं। समझ लें भाई लोग अलबेलाजी को ऐसा-वैसा न समझा जाये। वे टेपा सम्मानित हैं, वे पैरोडी किंग हैं, वे हास्य सम्राट हैं और उनका अन्दाज अलबेला है।

    यह सब तो ठीक है अलबेलाजी लेकिन यह मानने में कौनौ बुराई नहीं है कि आपने अपनी पोस्ट में जो सस्ती भाषा प्रयोग की थी भले ही उससे भद्दी भाषा और लोग प्रयोग करते रहे हों लेकिन वो कोई ऐसी भाषा नहीं थी कि जिस पर सरस्वती का कोई तथाकथित साधक गर्व कर सके। मान जाइये न! अच्छा लगेगा।

    बधाई

    शशि सिंह हिन्दी के बहुत दौड़-धूप वाले ब्लागर रहे हैं।दौड़-धूप वाले मतलब लिखा कम चर्चित ज्यादा रहे। उन्होंने खुद माना था कि वे सबसे कम लिख कर सबसे ज्यादा चर्चित होने वाले ब्लागर हैं। तीसरे इंडीब्लागर के विजेता रहे शशि एक बच्ची के पिता बने। बच्ची की फोटो भेजी है और मिठाई का डब्बा भी। बच्ची की फ़ोटो तो हम लगा दिये यहां मिटाई हजम कर गये। शशि के फ़ोटो और उनका कच्चा चिट्ठा यहां देखें। शशि को पिता बनने की बधाई। बच्ची को आशीष और मंगलकामनायें।

    मेरी पसंद



    लड़की जो बड़ी हो गई है
    घबरा कर खींच दिया उसने
    खिड़की का परदा,
    गली से गुजरते एक लड़के ने
    बजाई थी सीटी
    उसे देख कर।

    बचा कर माँ की नजर
    उसने चुपके से देखा आईना
    और संवार लिए अपने बाल।

    अर्चना सिन्हा कवितायें चोखेरबाली से साभार

    और अंत में


    आज जुमे की ब्लाग नमाज पढ़वाने का जिम्मा मास्टर परिवार (मसिजीवी, नीलिमा या फ़िर सुजाता में से कोई एक) का होता है। लेकिन लगता है वे कहीं फ़ंस गये। या तो एडमिशन में या क्लास में। इसलिये हम ही हाजिर हो गये कहीं टोटल अब्सेन्ट न लग गये चर्चा की।

    फ़िलहाल इतना ही। आपको शुभकामनायें।

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    गुरुवार, जुलाई 30, 2009

    सुगर क्यूब्स पिक्चर प्रजेंट्स पापाजी....और अरहर महादेव

    मनोज बाजपेयी जी तेलुगु निर्देशकों की कसौटी पर खरा उतर गए और खुश हो गए. मनोज जी के मित्र आशीष विद्यार्थी जी मानते हैं कि आंध्रप्रदेश में बचपन से ही बच्चों को कड़ी मेहनत करना सिखाया जाता है. अच्छी बात है. बिना कड़ी मेहनत किये कुछ भी हासिल करना मुश्किल है.

    मनोज बाजपेयी जी और किन बातों का जिक्र कर रहे हैं, यह तो आप उनकी पोस्ट बांचकर ही जान पायेंगे.

    हर्षवर्धन जी ने सच का सामना टाइप सवालों से आज पोस्ट की शुरुआत की है. बता रहे थे कि ये सवाल किसी कश्मीरी नेता ने दूसरे कश्मीरी नेता से विधानसभा में पूछा है. हर्षवर्धन जी के अनुसार नेता लोग गिरते जा रहे हैं लेकिन सच का सामना जैसे कार्यक्रम की खिलाफत भी करते हैं.

    आप हर्षवर्धन जी की पोस्ट पढ़ें और जानें कि सच क्या है?

    आजकल शर्म-अल-शेख नामक जगह की बड़ी चर्चा हो रही है. बड़ा धाँसू नाम है, शर्म-अल-शेख. शायद किसी शेख को इस जगह पर शर्म आ गई होगी इसलिए ये नाम पड़ा होगा. लेकिन इस शर्मीली जगह पर पिछले दिनों हमारे प्रधानमंत्री और पकिस्तान के प्रधानमंत्री ज्वाइंट तौर पर स्टेट्समैन हो लिए.

    आज एलिया जी ने इस मुद्दे पर लेख लिखा है. शीर्षक है; "शर्म मगर हमको नहीं आती..." आप एलिया जी का लेख पढ़ें और जानें कि वे किसकी बेशर्मी की बात कर रहे हैं.

    लेख पढने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये.

    क्या हमारा देश एक दलाल-प्रधान देश है?

    इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश की है रंजन ऋतुराज सिंह इंदिरापुरम वाले ने. प्रस्तुत किया है मुखिया जी ने.

    आप लेख पढिये और जानिए कि चुन्नू सिंह दलाल क्यों बनना चाहते थे.

    सावन के महीने में दो बातें होती हैं. एक तो पवन शोर करता है और दूसरी बात है भगवान शिव का पूजन. पूजन में क्या चढाया जाय? चीनी इतनी मंहगी हो गई है कि मिठाइयाँ अब आम आदमी तो क्या, भगवान शिव के भी पहुँच से बाहर दीखती हैं. यही कारण है कि भगवान शिव अब दाल तक खाने के लिए तैयार बैठे हैं. लेकिन अफसोस कि कोई भक्त अब दाल भी अफोर्ड नहीं कर पा रहा.

    इस घोर दालीय समय में जब पी सी गोदियाल जी ने भगवान शिव के सामने हरहर महादेव का नारा लगाया तो क्या हुआ? यह जानने के लिए आप उनका लेख पढ़ें. पढ़ें पढ़ें. यहाँ क्लिक करें और डायरेक्ट लेख पर पहुँच जायेंगे.

    कुश की कलम बहुत दिनों बाद आज फिर से चली है. उन्होंने एक फिल्म प्रस्तुत की है. बड़े उम्दा अंदाज़ में. लिखा है;

    "सुगर क्यूब्स पिक्चर प्रजेंट्स पापाजी"

    पढ़कर आपको अच्छा लगेगा. कुछ सोचने पर आप मजबूर हो जायेंगे और शायद यही कुश के लेखन का कमाल है. ज़रूर पढिये.

    कभी-कभी हम ब्लागर्स भी हिंदी न्यूज़ चैनल की तरह बर्ताव करते हैं. शिवम् मिश्रा जी ने कल शेयर बाज़ार में आई गिरावट के बारे में पोस्ट लिखी और शीर्षक लिखा; "चीन की दीवार गिरने से दबी दलाल स्ट्रीट."

    इसे कहते हैं सनसनी लपेटर ब्लागिंग?

    सलीम खान साहब हैं. उनका मानना है कि वे उनलोगों को इस्लाम के बारे में जानकारी दे सकते हैं जिन्हें इस्लाम के बारे में नहीं पता और जो आये दिन तरह-तरह के ऊट-पटांग सवाल पूछते रहते हैं. अपनी इसी कोशिश के तहत उन्होंने आज लिखा;

    "एक और सवाल जो हमारे नॉन-मुस्लिम भाईयों के ज़ेहन में हमेशा से आता रहता है और वो अक्सर ये पूछते हैं कि इस्लाम में मर्दों को तो एक से ज़्यादा विवाह करने का, एक से ज़्यादा बीवियां रखने की अनुमति तो है, मगर औरतो को क्यूँ नहीं यह छुट मिली कि वह भी एक से...."


    इसका जवाब उन्होंने बड़ी मेहनत करके लिखा है. अगर आप 'नॉन-मुस्लिम' हैं और आपके मन में भी ये सवाल उभरते हैं
    तो उनका जवाब ज़रूर पढ़ें और इस्लाम के बारे में बताने के उनके प्रयास की सराहना करें.

    सलीम साहब का यह प्रयास बहुत अच्छा है. हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि उनका यह प्रयास बेकार नहीं जाएगा.

    डॉक्टर मनोज मिश्र जी ने जौनपुर के महाकवि स्वर्गीय रूप नारायण त्रिपाठी की रचना प्रस्तुत की. त्रिपाठी जी लिखते हैं;

    चैन सन्यास ले लिए होगा
    पीर टाले न टल रही होगी |
    तुम चिता देख कर न घबराओ
    आत्मा घर बदल रही होगी||


    पूरी रचना आप मिश्र जी के ब्लॉग पर पढ़ें और और साधुवाद दें.

    जयपुर की महारानी गायत्री देवी नहीं रहीं. मुनीश जी ने आज मयखाना में महारानी को विनम्र श्रद्धांजलि दी है.

    वीनस केसरी जी ने अलबेला जी से शर्म करने का सुझाव दिया. ऐसा सुझाव देते हुए उन्होंने लिखा;

    "महोदय आप कह रहे है की आपने लेखिकाओ द्वारा फैलाई जा रही गंदगी को देख कर वो पोस्ट लिखी थी मगर इस विषय में मेरी आपत्ती ये है की आपने भी तो वही किया "एक बेहद भद्दा टाइटल लगाया और लेबल्स के तो क्या कहने" labels: sex सम्भोग यौनाचार बलात्कार शीलभंग (ऐसे लेबल लगा कर आप कौन सी गंदगी फैला रहे है आप भी अच्छी तरह जानते हैं)"


    अलबेला जी जानते हैं? खैर, अब ऐसे 'लेबल' पर क्या कहा जाए?

    वैसे लगता है वे जानते ही होंगे. शायद इसीलिए उन्होंने अपनी पोस्ट में तमाम लोगों की टिप्पणियों का स्वागत करते हुए लिखा;

    "__________________________अरे सज्जनों !
    किसके विरुद्ध आँखें तरेर रहे हो ?
    उसके विरुद्ध ?
    जिसके अन्दाज़-ए-सुखन का आपको अलिफ़ बे तक का
    पता नहीं .............."


    अलबेला जी के अंदाज़-ए-सुखन को जाने बगैर टिप्पणी करना कहाँ की नैतिकता है?

    ब्लॉग-जगत को इस महत्वपूर्ण प्रश्न का सामना करना चाहिए और उनके अंदाज़-ए-सुखन को समझने की एक घनघोर कोशिश करनी चाहिए. ऐसा करने से शायद अगली बार 'आँख-तरेर' कार्यक्रम करने का अधिकार मिल जाए.

    आज आकांक्षा यादव और महावीर बी सेमालानी का जन्मदिन है. उन्हें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं.

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    बुधवार, जुलाई 29, 2009

    बबुआ समीर पैदा भये, और लगे तुरत टिपियान


    समीर लाल
    आज समीरलालजी का जन्मदिन है। कल सबेरे से जीतन्द्र चौधरी हमसे जिद किये हुये हैं कि समीरलाल की खिंचाई होनी चाहिये वर्ना समीरलाल को बुरा लगेगा। अब जीतेन्द्र की बात टालना , वह भी समीरलाल की खिंचाई करने का अनुरोध, हमारे लिये उतना ही मुश्किल है जितना मुश्किल स्विस बैकों से भारतीयों का काला धन वापस भारत लाना। लेकिन फ़िर भी हमने सोचा कि कम से कम आज तो यह सब नहीं करना चाहिये इसलिये हम जीतेन्द्र की बात को न मानते हुये सिर्फ़ समीरलालजी को जन्मदिन की बधाई देना चाहते हैं। आप भी साथ हो लीजिये जी।

    जैसा कि समीरलाल के बारे में सबको पता है वे हिन्दी ब्लाग जगत के सबसे ज्यादा लोकप्रिय ब्लागर हैं। लोकप्रिय मतलब सबसे अधिक टिप्पणी का लेन-देन करने वाले वाले। मतलब उनकी टिप्पणी एटीएम मशीन बहुत धांसू है। इधर आपने अपनी पोस्ट डाली उधर उनकी टिप्पणी आ गयी। कुछ लोगों ने तो शिकायत की है कि उनकी पोस्ट बाद में आती है, समीरलाल टिपिया पहले जाते हैं। इस चक्कर में उन लोगों को अपनी पोस्टें समीरलाल की टिप्पणी के अनुसार लिखनी पड़ती है। इसीलिये लोग उनको टिप्पणी सम्राट भी कहते हैं।

    नये-पुराने ब्लागरों का उत्साह वर्धन करने के मामले में समीरजी ( एक ऐसा सवाल हैं जिस)का कोई जबाब नहीं है। उनके उत्साह वर्धन की प्रवृत्ति के चलते उनके समय को, जो कि अभी जारी है, साधुवादी युग के नाम से व्याख्यायित किया गया।

    लेखन के मामले में समीरलाल खुद अपने बारे में खुलासा करते हुये लिखा था-आप गदहा लेखक हैं। उनके गुरु सुबीरजी का मानना है कि समीरलाल जी को अब गम्भीर होकर गजल लिखने में जुट जाना चाहिये। इसका असर उन पर यह हुआ कि आजकल वे नारेबाजी भी बहर में करते हैं।

    बकौल अरविन्द मिश्र उनकी महिला ब्लागर मित्र समीरजी को क्यूट कहती पायीं गयीं( क्या बीती होगी मिसिरजी के दिल पर! बताओ मित्र मिसिरजी की और क्यूट कहें समीरलालजी को। बहुत नाइन्साफ़ी है जी) । समीरलाल जी अपने को हिन्दी का अदना सेवक कहते हैं लेकिन लोग हैं कि मानते नहीं और उनको महान बताने में लगे रहते हैं। समीरलाल रोने-गाने का बेहद शौक है। रोने के शौक से मतलब वे भावुक व्यक्ति हैं और जरा-जरा सी बात पर संवेदनशील होने की वजह से उनका गला रुंध जाता है। उनकी भावुक होने में गजब की महारत हासिल है। भाभीजी बता रही थीं कि समीरलाल जब कम्प्यूटर पर बैठते हैं, तौलिया साथ लेकर बैठते हैं। जो भी भावुकता निकलती रहती है, पोंछते रहते हैं। गाने के शौक के बारे में तो कहना ही क्या? वे कभी भी किसी भी मौके पर गाने के लिये प्रस्तुत हो सकते हैं। अद्भुत गला है! जानकार लोगों का मानना है कि उनसे बेसुरा गाने वाले एकाध ही लोग हैं उनमें से एक अनूप शुक्ल उर्फ़ फ़ुरसतिया हैं। अनूप शुक्ल ने समीरलाल का जिक्र करते हुये खुलासा भी किया है - वे (समीरलाल)हमसे बहुत जलते हैं कि जित्ता बेसुरा वो मेहनत करके पसीना बहाकर गा पाते है उत्ता तो हम बायें हाथ से गा देते हैं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि बार मध्यप्रदेश और उत्तर भारत में पानी न बरसने के पीछे भी समीरलालजी के गले का हाथ है। उन्होंने इस बार अपने भारत प्रवास के दौरान इतना गानों का रियाज किया कि सुनकर बादल भाग खड़े हुये। वे यहां आने को तैयारिच नहीं हैं। डरे हुये हैं कि जहां पहुंचे गाने सुनाई देने पड़ेंगे। उनको समझाया बुझाया जा रहा है- डरो मत समीरलालजी कनाडा वापस जा चुके हैं।

    लिखने में समीरलाल गुटनिरपेक्ष नीति के समर्थक हैं। किसी विवाद के बीच में नहीं पड़ते। किनारे से खड़े-खड़े मौज लेते हैं। इसका कारण बताते हुये एक बार उन्होंने बताया था कि विवाद का कोई भरोसा नहीं है आज उछल रहा है कल थम जाये तो ऐसी क्षण भंगुर बातों पर टिप्पणी के अलावा और क्यों वक्त जाया किया जाये।

    ब्लागिंग में टंकी पर चढ़ने की शुरुआत भले सागर चंद नाहर( यह लिंक उनसे मिली ताजी धमकी के बाद लगाया गया) ने की हो लेकिन उसे हवा देकर स्थापित करने वालों में समीरलाल का नाम प्रमुख है। टंकी पर चढ़ने को समीरलाल ने इतनी सहजता प्रदान कर दी है कि लोग-बाग महीने दो महीने में एक बार तो चढ़ ही जाते हैं। समीरलाल इस बात से बहुत नाराज और दुखी बताये जाते हैं कि जब पिछली बार वे टंकी पर चढ़े थे तो अनूप शुक्ल ने उनको नीचे उतरने को नहीं कहा था।

    हिंदी ब्लाग जगत का ऐसा कोई इनाम नहीं है जिसपर समीरलाल कब्जा न कर चुके हों। प्रतियोगिता जीतने के लिये वे कमरकस कर मेहनत करते हैं (तब भी वो कम नहीं होती)। लोगों का यह मानना है कि समीरलाल इनाम ही इसीलिये जीतते हैं ताकि इसीलिये वे इसी बहाने अपनी कमर कुछ कस सकें। कुछ लोगों ने इस पर मांग की है कि हर प्रतियोगिता में दो पहले इनाम रखे जाने चाहिये। एक समीरलाल के लिये और दूसरा किसी (और)जेनुइन कंडीडेट के लिये।

    कुंडलिया की तर्ज पर समीरलाल मुंडलिया लिखने लगे थे और अब थे ही बने हुये हैं बहुत दिनों से। कुंडलिया किंग की मानद उपाधि भी लोगों ने दी।

    समीरलाल में न जाने कित्ती खूबियां हैं। अब सब गिनायेंगे तो तारीफ़ बहुत हो जायेगी और समीरलाल शर्मा जायेंगे। शर्म से लाल-बैंगनी हो जायेंगे इसलिये बात इत्ते पर ही।

    हम इस मौके पर समीरलालजी को जन्मदिन की शुभकामनायें देते हैं और दुआ करते हैं कि वे हमेशा ऐसे ही स्वीट-क्यूट बनें रहें। टंकी पर चढ़ने की न सोंचे काहे से उसके जीने कमजोर हो गये हैं। उनके लिये और टंकी के नीचे रहने वालों के लिये खतरा है ऊपर चढ़ने से। सुबीर जी की बात मानकर गजल लिखते रहें, टिपियाते रहें लेकिन गद्य लेखन भी करते रहें। टिप्पणी सम्राट का उनका रुआब गालिब रहे। मुंडलिया लिखने का क्रम फ़िर से शुरू करें। शर्माने का रियाज भी करते रहें और थोड़ा कभी-कभी जायज बात पर गरमाना भी सीखें। चिट्ठाचर्चा करने की जिम्मेदारी फ़िर से निभाना शुरु करें। अच्छे बच्चे अपने जिम्मेदारियों से नहीं भागते।

    बबुआ समीर पैदा भये, और लगे तुरत टिपियान,
    बिनु टिपयाये न चैंन लें, घर वाले सब हलकान,
    घर वाले सब हलकान,न सुधि है खाने-पीने की है,
    चेहरा खिला देखकर ,जो टिप्पणी अभी माडरेट करी है,
    सब ब्लागरों की इस मौके पर तो है यही दुआ,
    बने रहो बस क्यूट औ ब्लागिंग करत रहो तुम बबुआ।


    ब्लाग मानस चरित विवेक सिंह से उधारी लेकर


    बादल को कस के गया है डांटा। बरसो झट से नत लगिहै चांटा॥
    रायता पर रायता फ़ैलाइन। वीर कबाड़ी कुछ शेर सुनाइन॥
    लप्पूझन्ना फ़िर सामने आये। मुछलमान घर स्वीटडिश खाये॥
    विधि का लिखा को मेटनहारा। पेंसिल का इरेजर से हो निपटारा॥
    आलोक पुराणिक मारिन छापा। अरहर को जौहरी संग चांपा॥
    पांडेयजी लगेमौलिकता मांगन। विवेक सिंह झट तौलन लागे॥

    डाक्टर पहुंचे कैनवास पर रहे ईगोमीटर हैं खोज।
    समीरलाल वंदना करें देखकर नारियों की फ़ौज॥


    आर्य कहें सुन लेव सब कोई। बिनु तन्हाई जियब न होई॥
    रामकथा के गावन हारा। तुलसीजी की जयजय कारा।
    आदि बबुआ बड़े हो रहे अब। पटरी ट्रेन की वे तोड़ रहे सब।
    चोंच आकाश धरा अब ऐसे। यादें बचपन की सब जैसे॥
    शादी को जो गाली देगा । बालक प्रमेन्द्र उससे निपटेगा
    समीर हैं ज्यों चांद अमावस के। जन्मदिन शुभ हो अब कस के॥

    सच का सामना कर रहे, अब लाइव विद मोचीराम।
    इसे जो समीर से जोड़ दे, उसको न चैन मिले न आराम॥


    और अंत में


    फ़िलहाल इतना ही। आज इंतजार करते रहे कि शायद मीनाक्षीजी चर्चा करें। लेकिन शायद वे अभी व्यस्त हैं। मीनाक्षीजी के बच्चे का पिछले हफ़्ते दिल्ली में आपरेशन होना था। उसी के चलते वे व्यस्त हैं। उनके बच्चे और परिवार के लिये हमारी शुभकामनायें।

    आज समीरलालजी का जन्मदिन है। उनको हमारी शुभकामनायें। आज चर्चा में उनके बारे में जो लिखा वो अपने ब्लाग पर लिखने की योजना थी लेकिन सोचा चर्चित ब्लागर की चर्चा चिट्ठाचर्चा में ही की जाये। यहां हमने समीरलाल के बारे में सब अच्छी-अच्छी बातें ही लिखीं हैं। सच्चा दोस्त होने के नाते उनके तमाम सच सामने नहीं रखे काहे से उनका नमक खाया है जबलपुर में।

    जीतेन्द्र चौधरी की कलम से लिखा हुआ जन्मदिन बधाई विवरण भी पढ़ लीजिये -उड़नतश्तरी अवतरण का दिन । क्या हुआ इत्ता समय बरबाद किया, थोड़ा सा और सही।

    आपका समय चकाचक बीते। दिन का क्या है -बीत ही जायेगा बीतते-बीतते।

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    मंगलवार, जुलाई 28, 2009

    ब्लॉग चरित मानस


    नमस्कार ! चिट्ठा चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है ।

    शेक्सपियर दादा बहुत गलत कह गए कि नाम में क्या रखा है । आज लगता है कि नाम में ही सब कुछ रखा है बाकी तो कुछ हईये नहीं ।

    समीर लाल 'समीर' 'उड़नतश्तरी वाले' उर्फ़ स्वामी समीरानन्द बाबा के नाम से कौन परिचित नहीं होगा ? आखिर सब हिन्दी ब्लॉगर उन्हें अपना आदर्श मानते हैं । हम भी उनके भक्त हैं । पर एक ब्लॉगर जो अपना ब्लॉग YUVA नाम से चलाते हैं । पूछते हैं कि "समीर लाल उड़नतश्तरी वाले" : आख़िर इस नाम का राज क्या है ? आगे वे कहते हैं :
    सबसे पहले तो गुस्ताखी माफ़! पर जब से मैंने 'समीर लाल उड़न तश्तरी वाले' का नाम ब्लॉगवाणी पर देखा तभी से मेरे पेट में दर्द शुरू हो गया। वैसे तो मैंने भी बाबा समीरानंद को इस नए नाम की बधाई आनन-फानन में दे डाली ताकि कोई और पहले से इसका कॉपीराइट लेने के बारे में विचार शुरू न कर सके। पर अब तक नहीं समझ पाया कि आखिर इस नाम की जरूरत क्यों पड़ी - 'समीर लाल उड़न तश्तरी वाले'!
    हमें यह मामला प्रथम दृष्टया टिप्पणी पर्याप्त संख्या में न पहुँचने का लगता है । बाकी तो जाँच समिति अपनी रिपोर्ट देगी तो सच से सामना हो ही जायेगा ।

    सच का सामना करने से कुछ लोग बुरी तरह भयभीत हैं । बस चाहते हैं कि यह बला किसी तरह सिर से टल जाय तो जान में जान आये । उन लोगों की तसल्ली के लिए बता दें कि अभी किसी को जबरदस्ती सच का सामना कराने की सरकार की कोई योजना नहीं है । सब अपने अपने राज छुपाकर रख सकते हैं । योगेश समदर्शी जी पूछते हैं यह कैसा सच! और किसका सच?

    रवि रतलामी जी आज विष्णु बैरागी का आलेख : सामना नहीं, सच का साथ पढ़वा रहे हैं ।

    नुक्कड़ वालों को अखबार में अशुद्ध शब्दों की भरमार से ऐलर्जी है । हाँ थोड़े बहुत अशुद्ध शब्द हों तो शायद चल जायें ।

    अरविन्द मिश्रा जी आज लोगों को कनफ़्यूज करने में लगे हैं । कटोरी में कुछ भरकर पूछते हैं कि इसे बूझिये ! पर लोग फ़र्श का डिजाइन देख रहे हैं । आप कुछ बता सकें तो ट्राई कर सकते हैं ।

    राजस्थान की धरती ने बहुत से देश पर मर मिटने वाले वीरों को जन्म दिया है । आज रतन सिंह शेखावत से जानिये राव जयमल के बारे में । बड़ी इण्ट्रैस्टिंग स्टोरी है । अठे क उठै ( यहाँ कि वहाँ )

    अब रात बहुत हो गई है । हमें सुबह जल्दी नौकरी करने जाना है इसलिए ज्यादा भाषण नहीं देंगे । हम पहले ही एक भाषण दे चुके हैं । समीर जी के समर्थन में ( कृपया नारियाँ न पढ़ें ) । पुरुष चाहें तो वहाँ जाकर पढ़ सकते हैं ।

    चलते-चलते : आज प्रस्तुत है : ब्लॉग चरित मानस

    ब्लॉग चरित मानस मिलि गावा । विवेक सिंह कृत कथा सुनावा ॥
    पुनि-पुनि कितनेहु पढ़े पढ़ाएं । बार- बार टिप्पणि टपकाएं ॥
    ब्लॉग जगत के द्वार पर, कुर्सी एक जमाय ।
    बैठ गए आराम से, आसन लिया लगाय ॥
    ब्लॉगर भीतर आवत देखे । पोस्ट हाथ में लावत देखे ॥
    सबहीं द्वार तलाशी दीन्हा । सबका पोस्ट भेद हम लीन्हा ॥
    वाचस्पति अविनाश पधारे । माँगत रहत सलाह बिचारे ॥
    मुफ़्त सलाह लोग टपकावें । वाचस्पति मन में हरषावें ॥
    कविता एक सदा लिखि डारीं । तन नश्वर इति गिरा उचारीं ॥
    सुकुल अनूप कानपुर बारे । चिट्ठा चर्चा सहित पधारे ॥
    नीरज गोस्वामी का परचा । लिखा किताबन का कछु चरचा ॥
    सच जैसा कछु कहत मनीषा । तारा-धन चैनल कर टीसा ॥
    दरिया-कतरा अदा बखाना । कविता भावपूर्ण हम जाना ॥
    बालसुब्रमण्यम चलि आवा । शांतिदूत इति कथा सुनावा ॥
    छप्पर फाड़ फीड जब डारी । पी डी भये मन तृप्त सुखारी ॥
    पीछे की सब कसर निकाली । माह जुलाई मनी दिवाली ॥
    टूर्नामेण्ट सानिया जीतीं । ये जूली कोइन को पीटीं ॥
    डॉलर जीत पचास हज़ारा । आलोचकन्ह जवाब करारा ॥
    ताऊ ने पत्रिका छपाई । कछु रहस्यमय बात बताईं ॥
    समीर जी कछु सलाह दीन्हे । आशय भली भाँति हम चीन्हे ॥
    इतना ही है आज तो, अब करिये इंतजार ।
    फ़िर आयेंगे मिलन को, अगले मंगलवार ॥

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    सोमवार, जुलाई 27, 2009

    कारगिल,नागपंचमी और सच का सामना


    रश्मि स्वरूप
    ये फोटो रश्मि स्वरूप की है। रश्मि ने नन्ही लेखिका के रूप में ब्लाग लेखन की शुरुआत की है। अपने परिचय में रश्मि लिखती हैं:
    मात्र 9 वर्ष की आयु में चौथी कक्षा से सीधे दसवीँ प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की और 11 वर्ष की आयु में 12वीं जीव विज्ञान (biology) और 15 वर्ष में विज्ञान स्नातक (B.Sc.) करके राजस्थान की सबसे कम उम्र 16 वर्ष में M.Sc. करने वाली पहली छात्रा बनी
    इतनी कम उम्र में एम.एस.सी. करने वाली रश्मि अपने बारे में बताते हुये लिखती हैं:
    मै एक छोटी सी लड़की हूँ
    सुबह की पहली किरण सी उजली हूँ
    छा जाउंगी नभ पर,यही ख्वाब बुनती मै पली हूँ
    मै एक छोटी सी लड़की हूँ

    यूं तो अकेले ही अपनी मंजिल की और बढ़ी हूँ
    पर कुछ सपने और जोड़ लिए हैं खुद से
    और सबको साथ लेके चल पड़ी हूँ
    मै एक छोटी सी लड़की हूँ

    मैं दुआ करता हूं कि रश्मि के नभ पर छा जाने इरादे पूरे हों।


    नागपंचमी
    कल नागपंचमी के अवसर पर साथियों ने कुछ पोस्टें लिखीं। पहले ज्ञानजी ने सुबह सुबह नाग दर्शन कराये। अरविन्द मिश्र जी ने नागपंचमी क्यों मनायी जाती है यह बताने के लिये कहानियां सुनाईं। सोनालिका ने इंसानी सांप दिखाये और पा.ना. सुब्रमणियन ने सर्पों की एक और क्रीडा स्थली की जानकारी दी। बालसुब्रमण्यम ने सापों के बारे में जानकारी दी है:
    हमें चिंतित करनेवाले केवल चार सांप हैं--नाग, करैत, फुर्सा और दबोइया--जो बड़े खतरनाक हैं और मानव बस्तियों के आसपास पाए जाते हैं। गनीमत है कि इन चार मुख्य सांपों का प्रत्येक दंश घातक नही होता। दंश की तीव्रता दंशित व्यक्ति के स्वास्थ्य, उसके शरीर के आकार और शरीर में गए विष की मात्रा आदि पर निर्भर करती है।

    नागपंचमी
    दीपक भारतदीप का कहना है कि पर्यावरण के लिये सांप और नाग की रक्षा जरूरी |सकलडीहा बाजार उत्तरप्रदेश से फ़ोटोग्राफ़र धीरज शाह भी नागपंचमी की कथा सुना रहे हैं। ऐसा क्यों न कुछ कर जायें हम, चले जाने पर बहुत याद आयें हम जैसी बहुत सेन्टीमेन्टल विचारधारा वाली शेली जबलपुर की नागपंचमी के किस्से सुनाती हैं। विवेक रस्तोगी उज्जैन के चंद्रमौलेश्वर मंदिर से जुड़ी यादें साझा कर रहे हैं। अजय सक्सेना इस मौके पर जो कार्टून पेश करते हैं वो बगल में है। इसे देखकर यही लगता है कि कहीं कोई नाग अपनी मानहानि का दावा न पेश कर दे।

    कारगिल युद्ध के दस वर्ष हो गये। इस मौके पर तमाम ब्लागर साथियों ने संस्मरणात्मक, वीरतापूर्ण, सावधानीपरक और चेतावनी वाली पोस्टें लिखीं हैं। उनमें से कुछ के लिंक ये हैं:
    1. करगिल विजय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

    2. कारगिल के शहीदों को प्रणाम ' आंसु जो कविता बन गये '

    3. स्मृति के झरोखों से: कारगिल विजय दिवस



    4. करगिल विजय दिवस
    5. कागगिल दिवस पर द्रास वॉर मैमोरियल

    6. किया कारगिल वार

    7. कारगिल के १० वर्ष

    8. बोल पाकिस्‍तान तेरे साथ क्‍या सलूक किया जाए

    9. कारगिल विजय अभियान

    10. 'विजय दिवस' पर 'सच का सामना'

    11. हमको तुम पर नाज़ है

    12. मेरे देश से मत लो पंगा

    13. कारगिल शहीदों को नमन

    14. कारगिल युद्ध की विजय की दसवीं वर्षगाँठ पर शहीदों को शत-शत प्रणाम -शरद आलोक

    15. कारगिल शहीद बीरो को सत सत नमन .

    16. क्या उनका कोई अरमान न था

    17. करगिल से मुंबई तक

    18. कारगिल शहीदों, हमें माफ करना

    19. कारगिल के शहीदों को श्रद्धांजलि, ये मेरे वतन के लोगो जरा याद करो कुर्बानी

    20. कारगिल शहीदों के लिए

    21. ऐ मेरे वतन के लोगों

    22. आर्मी कभी मत ज्वाइन करना

    23. एनडीटीवी पर खास कार्यक्रम, दस साल बाद करगिल में बरखा दत्त और जंग की यादें

    24. जरा आंख में भर लो पानी (विजय दिवस पर विशेष) (व्यंग्य/कार्टून)



    बरमूडा त्रिकोण के बारे में न जाने कितने किस्से सुने-सुनाये जाते हैं। वीरूभाई से जानिये दानवी त्रिकोण बरमुडा :मिथ या यथार्थ ?

    शमीम मोदी पर प्राण घातक हमला हुआ इसलिये क्योंकि उन्होंने मध्य प्रदेश की पिछली सरकार में मन्त्री रहे जंगल की अवैध कटाई और अवैध खनन से जुड़े माफिया कमल पटेल के कारनामों के खिलाफ़ सड़क से उच्च न्यायालय तक शमीम ने बुलन्द आवाज उठाई ।इस मसले पर पूरी रिपोर्ट पढ़िये अफ़लातूनजी के ब्लाग पर।

    आजकल टेलीविजन पर चल रहे चर्चित धारावाहिक सच का सामना के बहाने प्रख्यात उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा के उपन्यास रेखा की नायिका के द्वन्द की पड़ताल करते हुये अर्चना राजहंस लिखती हैं:
    जब मैने इस उपन्यास को पढ़ना शुरू किया, ठीक इसी समय स्टार प्लस पर एक प्रोग्राम शुरू हुआ सच का सामना...दोनो की विषयवस्तु एक, समाज का शारीरिक सच...
    रेखा और सच का सामना में हिस्सा ले रही प्रतियोगियों की सच्चाई में फर्क सिर्फ इतना कि रेखा में भगवती चरण वर्मा जी ने जब-जब रेखा को शरीर के लिए कमजोर होते हुए दिखाया है...उसके तुरंत बाद रेखा के तर्क रखे हैं...रेखा क्यों बार-बार किसी पुरुष से संबंध बना लेती है, इसका कारण भी बताया जाता है...हालांकि हर दूसरे पल रेखा को लगता है कि वो गलत कर रही है लेकिन हर अगले पल वो वही करती है...हालांकि, सच का सामना के प्रतियोगी जब-जब सच को बयां करते हैं तब-तब वो बड़े भावुक हो जाते हैं...उन्हें पश्चाताप होता है या नहीं ये पता नहीं...लेकिन चेहरे पर ऐसी लकीरें जरूर खिंच जाती है कि जैसे अगर पैसे का मोह न हो तो वो कभी इस सच को बयां करे ही नहीं...अमूमन समाज में ऐसे सच को बयां करता भी कौन है???
    वैसे जीवन की कईएक ऐसी सच्चाई होती है जिसे हम कभी बयां नहीं करना चाहतें...और करते भी नहीं हैं.

    इस मसले पर उठे हल्ले पर अपनी राय व्यक्त करते हुये अर्चना कहती हैं:

    पश्चिम की नकल बताई जा रही इस धारावाहिक को बंद करने की मांग उठ रही है...संभव है कि इस प्रोग्राम का पर्दा गिर जाए...अगर ऐसा हुआ तो ये ठीक वैसे ही होगा जैसे कूड़े को बुहार कर दरी के नीचे छिपा देना...


    सच का सामना के बारे में दीपक कुमार भानरे का कहना है- ऐसा सच सामने लाया जाए जो देश और समाज हित मैं हो !

    सूर्य ग्रहण को आलोक पुराणिक अगड़म-बंगड़म अंदाज में देखते हैं:
    आम तौर पर दूसरे की छत पर तांका झांकी पर प्रतिबंध होता है। पर सूर्यग्रहण के टाइम ऐसी ताका झांकी अलाऊ हो जाती है। और कई बालकों का इस चक्कर में भला हो जाता है। ऐसे बालक भी यही प्रार्थना करते हैं कि सूर्यग्रहण जल्दी से जल्दी आया करे।


    समीरलाल आज हाय-हाय कर रहे हैं और नारी शक्ति के सामने माफ़ीनामा पेश कर रहे हैं। बहर है -फालुन फालुन फालुन फालुन!

    विवेक आज जनसंख्या कम करने के तरीके बता रहे हैं। आजमाइये!

    अजित वडनेरकर आपके सामने पेश कर रहे हैं बालकवि बैरागी जी की कहानी- विकल्प!

    नक्सली समस्या के बारे में कनक तिवारी मुख्यमंत्री को एक खुला खत लिख रहे हैं। पत्र लंबा है और सुझाव क्रांतिकारी।

    आने वाले समय के बारे में तमाम भविष्यवाणियां की जा रही हैं। डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल भी अपनी धारणा व्यक्त करते हैं-आने वाला समय मुफ़्त का है

    आप काफ़ी कुछ लिखना चाह्ते होंगे और लिख नहीं पाते होंगे इससे परेशान होते होंगे। इस परेशानी से बचने के लिये शायद आपकी कुछ मदद कर सकें -न लिखने के खूबसूरत बहाने !

    और अंत में



    फ़िलहाल इतना ही। आपका नया सप्ताह शुभ हो। मस्त-टिचन्न!

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    रविवार, जुलाई 26, 2009

    चर्चा में कलाकारी

    पिछले हफ़्ते फेल ब्लॉग की चर्चा पता नहीं कितनी फेल हुई या पास, पर चलिए इस हफ़्ते कलाकृतियों के ब्लॉगों की चर्चा करते हैं.

    कला जगत में वैसे तो भाषा कोई मायने नहीं रखती, मगर फिर भी बहुत से हिन्दी ब्लॉग कला जगत के प्रति समर्पित हैं.

    विजेन्द्र एस विज अपनी कलाकृतियों के साथ ब्लॉग जगत में अर्से से मौजूद हैं. उनकी ताजा पेंटिंग तैयब मेहता को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित है –

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    कोई सालेक भर से हिन्दी ब्लॉग जगत् में सक्रिय उत्तमा अपने ब्लॉग कलाजगत वैसे तो कई विषयों को उठाती हैं, पर प्रमुखत: वे कलाजगत् से संबंधित ही होते हैं. जैसे कि उन्होंने अपनी पोस्ट – आंखों में धूल में लिखा है कि राष्ट्रीय महत्व की तमाम ऐतिहासिक पेंटिंग्स को राजा रविवर्मा के जन्मस्थल – किलिमनूर पैलेस से चोरी कर लिया गया!

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    (राजा रवि वर्मा की एक कलाकृति)

    उत्तमा की कलाकृतियों की ऑनलाइन गैलरी पिकासा http://picasaweb.google.com/uttama.dixit पर भी है.

    कलाकार लोकेंद्र सिंह अपने ब्लॉग में अपनी गतिविधियों व कलाकृतियों को प्रदर्शित करते रहते हैं

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    लोकेन्द्र सिंह द्वारा पेस्टल पर बनाई एक और सुंदर कला कृति देखें –

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    अभिज्ञात वैसे तो पत्रकार-रचनाकार हैं, परंतु साथ ही वे कलाकार भी रहे हैं. लोकनायक जयप्रकाश नारायण का पोर्ट्रेट उन्होंने कोई 30 साल पहले बनाया था उसे न सिर्फ दिखाया है, बल्कि उससे जुड़े संस्मरण की भी चर्चा की है.

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    अमी चरण सिंह साहित्य के साथ साथ कलागतिविधियों के आयोजन में भी शामिल रहते हैं. अपने ब्लॉग के एक पोस्ट में कलाश्रुति राष्ट्रीय कला शिविर का विवरण दिया है तो एक और पोस्ट में मधुबनी लोक कला की महान चितेरी यशोदा देवी के बारे में एक फ़िल्म प्रदर्शित किया है.

    भारतीय चित्रकला के नाम से एक ब्लॉग 2007 में बनाया गया था, मगर ये कुल जमा चार सारगर्भित पोस्टों के बाद मृतप्रायः सा है.

    धरोहर ब्लॉग में यदा कदा चित्रकारों-कलाकारों पर बातचीत की जाती है. मंजीत बावा पर श्रद्धांजलि स्वरूप एक पोस्ट तब आई थी जब उनका निधन हुआ था –

    भारतीय चित्रकला की धरोहर- मंजीत बावा

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    भारतीय चित्रकला के सशक्त हस्ताक्षर मंजीत बावा, जिन्हें आदर से लोग बाबा भी कहते थे नहीं रहे. ३ साल तक कोमा में रहने के पश्चात 29 दिसम्बर की सुबह उनका निधन हो गया.
    पंजाब के धुरी में 1941 में जन्मे बाबा ने दिल्ली आर्ट कॉलेज और लन्दन स्कूल ऑफ़ प्रिंटिंग से चित्रकारी के गुर सीखे. 'प्यार और शान्ति', 'बांसुरी' , 'कृष्ण' आदि उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ थीं. काली और शिव को वो भारत के प्रतीक के रूप में देखते थे. उनकी कला सूफी दर्शन, आध्यात्म और भारतीय मिथकों से प्रभावित रही. कैनवास पर तीखे रंगों की स्याही से उकेरी गई कला उनकी विशिष्टता थी. अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय चित्रकला को प्रसिद्धि दिलाने में उन्होंने अहम् भूमिका निभाई थी. हाल ही में लगभग १.५ करोड़ में नीलाम की जाने वाली अपनी एक पेंटिंग के लिए भी वो चर्चा में रहे थे.
    कला के इस अथक साधक को हमारी और से श्रद्धांजली.

    वैसे तो चित्रों को उकेरने के लिए रंग, एक अदद कैनवस और एक कूंची की आवश्यकता होती है. परंतु इससे कला के इतनी विधाएँ, इतने आयाम बन सकते हैं कि उन्हें पारिभाषित करना कठिन होता है. ऐसी ही एक विधा वारलि चित्रकला को समर्पित है वारलि चित्रकला ब्लॉग. एक वारलि चित्रकारी आप भी देखें –

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    इसीतरह, मैथिल आर मिथिला में मिथिला चित्रकला के भी अद्भुत उदाहरण दिए गए हैं –

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    और अंत में –

    हरा कोना के कलाकार-पत्रकार रवींद्र व्यास अपने ब्लॉग में कला जगत् से संबंधित मुद्दों को तो उठाते ही हैं, कविता और चित्रकारी का अद्भुत नमूना पेश करते हैं. एक उदाहरण –

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    ***

    अद्यतन : रविकुमार का चिट्ठा भूलवश रह गया था. निशांत को धन्यवाद इस चूक की ओर इशारा करने के लिए. रविकुमार रचनाओं और कलाकृतियों की जबर्दस्त जुगलबंदी पेश करते हैं. उनके एक पोस्ट पर छपी उनकी कलाकृति -

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    शनिवार, जुलाई 25, 2009

    गंगूबाई हंगल : क्या शास्त्रीय गायिकाओं को पंडित या उस्ताद के समकक्ष पदवियों से पुकारे जाने का हक़ नहीं ?

    शास्त्रीय संगीत जगत की जानी मानी गायिका गंगूबाई हंगल नहीं रहीं। अधिकांश शास्त्रीय संगीत समीक्षक इस बात पर एक मत हैं कि छोटे कद काठी और व्यवहार में सीधा सपाट व्यक्तित्व रखने वाली किराना घराने की इस गायिका की आवाज़ में एक अलग तरह की गहराई और दम था जिसे सुधी श्रोता कई वर्षों तक याद करेंगे।

    हाल ही में उनके बारे में हिंदू अखबार में एक लेख पढ़ रहा था जिसे शास्त्रीय गायिका शन्नो खुराना ने लिखा है। शन्नो लिखती हैं कि गंगूबाई को इस बात का मलाल रहा कि स्वतंत्रता के पश्चात भी महिला शास्त्रीय गायकों के लिए अभी तक सम्मान सूचक उपाधियाँ जैसे पंडित , उस्ताद आदि के सामानांतर कोई पदवी नहीं बनी है जिसे उनके नाम के साथ लिया जा सके।

    गंगूबाई का प्रश्न वाज़िब है और संगीत के मठाधीशों को इस बारे में गहन चिंतन की आवश्यकता है कि इस स्थिति में बदलाव क्यूँ नहीं आ रहा?


    वैसे गंगूबाई का नाम गंगूबाई की क्यूँ पड़ा इसके पीछे भी एक कहानी है। उनका वास्तविक नाम गान्धारी था पर उनके संगीत को जनता के सामने पहुँचाने का जिम्मा जिस कंपनी ने पहले पहल लिया उसके अधिकारियों का मानना था कि उस ज़माने का श्रोता वर्ग सिर्फ नाचने गाने वाली बाइयों के ही रिकार्ड खरीदता है। इसीलिए उन्होंने गान्धारी हंगल जैसे प्यारे नाम को बदल कर चलताऊ गंगूबाई हंगल कर दिया।

    चिट्ठाजगत में भी गंगूबाई हंगल पर कई लेख लिखे गए पर एक जिद्दी धुन पर असद ज़ैदी का ये आलेख मुझे उनके व्यक्तित्व के ज्यादा करीब ले जा पाया। असद ज़ैदी उनके बारे में कहते हैं।

    सवाई गन्धर्व की इस किस्मतवाली शिष्या ने अब्दुल करीम खां, भास्करराव बाखले, अल्लादिया खां, फैयाज़ खां को चलते फिरते देखा और गाते हुए सुना था. उन्होंने बचपन और जवानी के आरंभिक दौर में घोर ग़रीबी, सामाजिक अपमान और भूख का सामना किया. किसी कार्यक्रम में उस्ताद अब्दुल करीम खां ने उनका गाना सुना, उनका हुलिया अच्छी तरह देखा, फिर पास बुलाकर उनके सर पर हाथ फेरकर बोले: "बेटी, खूब खाना और खूब गाना!" बालिका गंगूबाई सिमटी हुई सोच रही थी : गाना तो घर में खूब है, पर खाना कहाँ है!


    वहीं राधिका बुधकर जी ने भी उनकी गाई कुछ रिकार्डिंग्स का यहाँ एक संकलन पेश किया। वैसे शास्त्रीयता के रंग में कई सांगीतिक चिट्ठे इस महिने डूबे रहे। भाई संजय पटेल ने तो हमारी मुलाकात ऍसे साधक से करवा दी जो कमाल का गायक भी है। इनके बारे में संजय जी लिखते हैं..

    आसमान में बादल छाए हैं.आइये गोस्वामी गोकुलोत्सवजी के स्वर में सुनें राग मियाँ मल्हार. बंदिश उनकी स्वरचित है. यह गायकी उस रस का आस्वादन करवाती है जो किसी और लोक से आई लगती है और जब कानों में पड़ती है तो उसके बाद कुछ और सुनने को जी नहीं करता.

    वैसे शास्त्रीय संगीत या फिर शास्त्रीय रंगत में रंगे कुछ फिल्मी गीत सुनना चाहें तो इन लिंकों का रुख करें ...

    शास्त्रीय संगीत से चलें पुराने गीतों के आंगन में। इस महिने हिंदी चिट्ठा जगत ने संगीतकार मदन मोहन, रौशन और गायिका गीता दत्त को शिद्दत से याद किया। गुजरे ज़माने की मशहूर गायिका गीता दत्त की पुण्यतिथि पर दिलीप जी ने उनके गीतों द्वारा श्रृद्धांजलि देते हुए कहा..

    गीता दत्त , या गीता रॊय… एक अधूरी सी कविता , या बीच में रुक गयी फ़िल्म , जो अपने मंज़िल तक नहीं पहुंच पायी. क्या क्या बेहतरीन गीत गाये थे .. दर्द भरे भाव, संवेदना भरे स्वर को अपनी मखमली मदहोश करने वाली आवाज़ के ज़रिये.

    गीता दत्त रॉय, पहले प्रेमिका, बाद में पत्नी.सुख और दुःख की साथी और प्रणेता ..अशांत, अधूरे कलाकार गुरुदत्त की हमसफ़र..

    आवाज़ पर सुजॉय चटर्जी ने फिर कुछ सदाबहार पुराने नग्मे सुनाए और उनसे जुड़ी जानकारियाँ बाँटी। पर उनके चुने गए गीतों में मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया मुकेश का गाया जब गमे इश्क़ सताता है तो हँस लेता हूँ.....। इस गीत के कम चर्चित गीतकार न्याय शर्मा के बारे में सुजॉय लिखते हैं..
    जयदेव की धुन और संगीत संयोजन उत्तम है, मुकेश के दर्द भरे अंदाज़ के तो क्या कहने, लेकिन उससे भी ज़्यादा असरदार हैं शायर न्याय शर्मा के लिखे बोल जो ज़हन में देर तक रह जाते हैं। ऐसे और न जाने कितने फ़िल्मी और ग़ैर फ़िल्मी गीतों और ग़ज़लों को अपने ख़यालों की वादियों से सुननेवालों के दिलों तक पहुँचाने का नेक काम किया है न्याय शर्मा ने।

    पुराने गीतों का शौक है तो इन लिकों पर भी नज़र डालिए


    ऍसा नहीं कि नई रचनाएँ असर नहीं डाल रहीं। इस बार नए गीतों में मेरी पसंद के इन दो गीतों को सुनना ना भूलिए

    • पहली आवाज़ पर गुलज़ार का अपने ही दिल को धिक्कारता ये कमीना गीत
    • और दूसरे एक शाम मेरे नाम पर राहत फतेह अली खाँ का गाया प्रेम की चाशनी में डूबा सूफ़ियाना नग्मा हाल-ए-दिल. और हाँ इन दोनों ही गीतों के संगीतकार हैं विशाल भारद्वाज

    लोकवाद्य में अगर आपकी रुचि है तो झारखंड के वाद्य यंत्रों के बारे में प्रीतिमा वत्स का ये आलेख बेहद ज्ञानप्रद रहेगा।


    तो ये थी इस महिने हिंदी चिट्ठा जगत पर प्रस्तुत गीत संगीत की यात्रा। तो अब चलते चलते कुछ शेर-ओ-शायरी भी हो जाए। मोहब्बतों के शायर क़तील शिफाई जिनकी पुण्य तिथि इसी ग्यारह जुलाई को थी, की एक ग़ज़ल के चंद शेर देश के आज के हालातों को बड़े करीब से छूते हैं। मिसाल के तौर पर रहर दाल की आसमान छूती कीमतों पर उनका ये शेर याद आता है..

    हौसला किसमें है युसुफ़ की ख़रीदारी का
    अब तो मँहगाई के चर्चे है ज़ुलैख़ाओं में

    (जनाब यूसुफ़ हजरत याकूब के पुत्र थे जो परम सुंदर थे और जिन्हें उनके भाइयों ने ईर्ष्यावश बेच दिया था। आगे चल कर इन पर मिश्र की रानी जुलैख़ा आसक्त हो गईं थीं और वे मिश्र के राजा बन गए। )

    तमाम भविष्यवक्ता इस साल भी ठीक ठाक मानसून की घोषणा कर रहे थे। अब पाते हैं कि कहीं अकाल है तो कहीं बाढ़ ऍसे में देश का आम किसान तो यही कहेगा ना

    जिस बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है
    उस को दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में

    क़तील की आवाज़ में ये पूरी ग़ज़ल आप यहाँ सुन सकते हैं।

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    शुक्रवार, जुलाई 24, 2009

    एक नीतिपरक पोस्ट की स्त्रीवादी समीक्षा

     

    कल्पतरू पर एक पोस्ट पढी - नई बहू के ससुराल के प्रति दायित्व के बारे में ! इस नीतिपोस्ट में व्यक्त विचार हमारे अबतक के स्त्रीवादी विमर्श को उलटकर रख दे रहे हैं ! चोखेरबाली और नारी जैसे ब्लॉगों पर निरंतर चलने वाले तीखे विमर्शों से जो भूमिका तैयार होती है उसके विपरीत स्त्री की रीतिकालीन छवि को प्रस्तुत करने वाले ब्लॉग लिखे जा रहे हैं ! इस पोस्ट के रचयिता कहते हैं -

    ससुराल में बहू को कुछ समय इसीलिये ही बिताना चाहिये कि वह सभी घरवालों को भली भांति समझ लें और घरवाले अपनी नई बहू को जान लें और अपने अनुकूल ढाल लें, जो संस्कार और जिन नियमों में उन्होंने अपने लड़के को पाला है बहू उन नियमों से भली प्रकार परिचित हो जाये जिससे नई दंपत्ति को असुविधा न हो। लड़के को क्या क्या चीजें खाने में पसंद हैं क्या नापसंद हैं। कैसे मूड में उससे कैसा व्यवहार करना है यह तो केवल ससुरालवाले ही बता सकते हैं। ससुराल में रहने से उसका घरवालों के प्रति अपनापन पैदा होता है, नहीं तो अगर वो कुछ दिनों के लिये ही ससुराल जायेगी तो केवल मेहमान बनकर मेजबानी करवाकर आ जायेगी,  अपनेपन से सेवा नहीं कर पायेगी।

    बेशक इस पोस्ट के लेखक एक आदर्श परिवार और समाज की कल्पना करते हुए अपने इन विचारों को व्यक्त कर रहे हैं किंतु इस आदर्श का सारा जिम्मा एक अकेली दूसरे परिवार से आई स्त्री पर डाल रहे हैं ! नए परिवार में स्त्री का सम्मान और जगह इस बात से तय होगा कि वह कितने लोगों का कितना दिल जीत पाती है ! ऎडजस्टमेंट उसे ही करनी है ! परिवार के सदस्यों के मूड के आरोह अवरोह को जानकर व्यवहार करना है ! उसे अपनेपन से सेवा करनी है ! उसे उन नियम कायदों और संस्कारों को अपना लेना है !

    बेचारी की ज़िंदगी मानो भाडे की हो ! एक कुशल सेविका की आदर्श भूमिका निभाकर जिसे पति के दिल और नए परिवार की टेरिटेरी में ग्रीन कार्ड हासिल करने के लिए पुरजोर अपनी पात्रता साबित करनी है ! पोस्ट के लेखक यहाँ क्यों नहीं बताते कि उस परिवार के सदस्यों को क्या क्या करना चाहिए जिसमें नई बहू आई हो ! परिवार और पति को किन किन बातों , नियमों को जान लेना चाहिए ताकि वे नई बहू का दिल जीत सकें ! उसे अपनत्व का अहसास करवा सकें !

    इसमें चोखेरबाली समाज को संदेह नहीं कि हमारी पारिवारिक और सामाजिक संरचनाओं में स्त्री का दर्जा दोयम है ! उसे गर्भ में आने से लेकर मृत्यु पर्यंत अपने जीने की पात्रता को खोजते और जताते रहना पडता है ! कल्पतरू जी , आप चोखेरबाली समाज का कोई भला नहीं कर सकते तो और कुछ भी न कीजिए !

      हैरत की बात यह है कि जिस गुडी  गुडी कवर में आदर्श , नैतिकता और नियमों की बात कही है उस कवर की चमक में आठेक टिपैये भी वहां जा पहुंचे और हां हां सहमत , ठीक बात मार्का कह आए ! टिप्पनी धर्म का जो कायदा ब्लॉग जगत में अक्सर दिखाई दे जाता था उसका पालन यहां न हो पाया और कोई कंफ्रटेशन न होने पाया !  जिस अपनेपन की दुहाई में इस तरह के तर्क दिए जाते हैं उनको डिकोड करने वाले लोग ब्लॉग जगत से बाहर से थोडी ही आएंगे ? हम स्त्रियों में कई इसे डिकोड कर पाती हैं पर ज्यादातर स्त्रियां देवी , प्रेम- सेवा और शर्तों पर मिलने वाले अपनत्व को अपने जीवन की एकमात्र थाती मानती हैं ! परिवारों में इकतरफा ऎडजस्ट्मेंट के नाम पर चलने वाली शोषण व्यवस्था को दुरुस्त करना तो बाद की बात है इसे पहचानने की पहल  की पहल तो अब नेट जगत पर हो ही जानी चाहिए !

    नेट पर फेमेनिज्म के स्वरों के बीच उठते हुए इस प्रकार के मंद्र स्वर भी बहुर खतरनाक हैं ! ये हमारी कलेक्टिव कॉंशियसनेस को चुपके से प्रभावित कर जाती हैं ! ब्लॉग के बहाने स्त्री मुक्ति , मानव मुक्ति और समाज मुक्ति के जो स्वर उठ रहे हैं वे निश्चय ही सराहनीय हैं ! परंतु अपनी और अन्यों की वैचारिक भटकन पर टॉर्च लाइट डालना हमारा परस्पर दायित्व है ! यहां आलोचना या निंदा हमारा काम नहीं है ! स्वस्थ प्रतिवाद करना ध्येय है ! मुझे लगता है हमारे भीतर खासकर हमारी भाषा से टपकते जातीय , नस्लवादी और स्त्री विरोधी संस्कारों को पकडने भी खासी ज़रूरत है ! जैसे दलित को चमार कहना अब कानून दंडनीय है वैसे ही स्त्री को बेचारी ,दोयम दर्जे की या उपेषिता सिद्ध करने वाली भाषिक अभिव्यक्तियां भी दंडनीय अपराधों की कोटि में आने लगेंगी -  ऎसी अपेक्षा करने की अभी आवश्यकता नहीं है हो सकता है इससे पहले ही हम चेत जाएं ! कमसे कम उत्तर आधुनिक ब्लॉग माध्यम से रीतिकालीन स्वरों की उम्मीद हमें नहीं करनी चाहिए !

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    गुरुवार, जुलाई 23, 2009

    खानापूर्ती वाली एक चर्चा

    सूर्यग्रहण आया और चला गया. न जाने कितने दिनों की तैयारी चार-पांच मिनट में खतम. कुछ-कुछ वैसे जैसा फिल्मों में दिखाई देता है. जेल में बंद हीरो से मिलने उसकी माँ पहुँचती है. माँ-मिलन चार मिनट का हुआ नहीं कि सिपाही आ पहुंचा. यह कहते हुए कि; "मिलने का वक़्त ख़त्म हुआ."

    हीरो की माँ न चाहते हुए भी वहां से चली जाती है.

    लेकिन सूर्यग्रहण का ख़त्म होना टीवी पत्रकारों के लिए शुभ रहा होगा. बेचारे निदियाये, भकुआए से जगह-जगह से हमें सूर्यग्रहण दिखाने में जुटे थे.

    विनीत कुमार जी की मानें तो;

    "अपने रवीश ने सूर्यग्रहण के चक्कर में अपना क्या हाल बना रखा है? बिखरे हुए बाल, चेहरा उड़ा हुआ, आंखें ऐसी कि बेमन से खोल-बंद कर रहे हों, पलकों के उठने-गिरने में जबरदस्ती करनी पड़ रही हो, ताक़त लगानी पड़ रही हो। बोलने का उनका मन ही नहीं हो रहा। कभी हंसते हैं, कभी टेलीविजन प्रोफेसर बन कर ग्रहण के नाम पर पाखंड फैलानेवालों को रगेदते हैं..."


    टीवी पत्रकारों की दशा से दुखी विनीत आगे लिखते हैं;

    "यकीन मानिए, देश का कोई भी संवेदनशील ऑडिएंस टेलीविजन पर अपने इन पत्रकारों की ये दशा देखकर गिल्टी फील किये बिना नहीं रह सकेगा। वो इनसे एक ही सवाल करेगा कि हमें लाइव कवरेज दिखाने के लिए आपको इतनी मशक्कत करने की क्या ज़रूरत पड़ गयी? हम आपकी नींद और चैन हराम हो जाने की शर्तों पर सबसे तेज नहीं होना चाहते। भाड़ में जाए सूर्य ग्रहण के वक्त हीरे-सा दिखनेवाला छल्ला। जाने दीजिए 123 साल बाद दिखे तो दिखे ये अजूबा दृश्य। इसके पहले भी कई अजूबा हुए, हम नहीं देख पाए तो क्या जिंदा नहीं हैं, क्या कोई असर पड़ रहा है हमारी सेहत को।"


    सही बात है. हम अक्सर इन पत्रकारों को तमाम और बातों के लिए कोसते रहते हैं. लेकिन जब इनकी तारीफ की बात आती है तो पीछे हट जाते हैं.

    जतिंदर परवाज जी की रचना पढिये. वे लिखते हैं;

    यार पुराने छूट गये तो छूट गये
    कांच के बर्तन टूट गये तो टूट गये

    सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं
    तीर कमाँ से छूट गये तो छूट गये

    शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थे
    मेरे सपने टूट गये तो टूट गये

    इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोये
    भाग किसी के फूट गये तो फूट गये

    छोड़ो रोना-धोना रिश्ते-नातों पर
    कच्चे धागे टूट गये तो टूट गये

    अब के बिछड़े तो मर जाएँगे 'परवाज़'
    हाथ अगर अब छूट गये तो छूट गाये


    सच का सामना नामक टीवी कार्यक्रम की बड़ी चर्चा है. इस कार्यक्रम पर आज अंशुमाली रस्तोगी का लेख पढिये. अंशुमाली लिखते हैं;

    "पहले सच कड़वा होता था, अब डराने लगा है। डराने वाला सच कड़वे सच से कहीं अधिक खतरनाक होता है। कड़वे सच में हमारा चरित्र ही पतित होता है, लेकिन डरावने सच में तो हमारा जीवन ही संकट में पड़ जाता है।"


    पूरी पोस्ट आप उनके ब्लॉग पर पढिये.

    एक अलग नजरिये से इस कार्यक्रम को देखने की उनकी कोशिश.

    राखी सावंत भारत में स्वयंवर रचा रही हैं. तमाम शहरों में घूमती हुई प्रतियोगियों के परिवार जनों से मिल रही हैं. कुछ से नाराज़ दिखाई देती हैं. कुछ से खुश. अभी वे ऐसा कर ही रही हैं कि अलोक तोमर जी ने आप ब्रेकिंग न्यूज़ दी है कि;

    राखी सावंत ने एनआरआई दूल्हा पटाया.

    सच क्या है? पता नहीं. लेकिन यह खबर उनलोगों के लिए ठीक नहीं जो अभी भी स्वयंवर में वाइल्ड कार्ड एंट्री मारने का मन बना रहे होंगे.

    आप अलोक तोमर जी की पोस्ट उनके ब्लॉग पर पढिये. यहाँ क्लिकियाइये.

    बलात्कार का दलित मतलब.

    बड़ा अजीब सा शीर्षक है न? शीर्षक चाहे जो हो, यह पोस्ट पढिये. आवेश जी इस पोस्ट की शुरुआती पंक्ति में लिखते हैं;

    "ये मेरे अखबारी जीवन का शायद सबसे खराब दिन था."


    उन्होंने यह लाइन क्यों लिखी, इसे जानने के लिए आप उनकी पोस्ट पढिये.

    अब्राहम लिंकन का पत्र पढिये जो उन्होंने अपने पुत्र के शिक्षक को लिखा था. लिंकन ने लिखा था;

    मै जानता हूँ की उसे सीखना है कि
    सभी लोग न्याय प्रिय नहीं होते
    सभी लोग सच्चे नहीं होते
    लेकिन उसे यह भी सिखाएं कि
    जहाँ एक बदमाश होता है
    वहीं एक नायक भी होता है

    पूरा पत्र आप इस ब्लॉग पर जाकर ही पढिये.

    'दाल-रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ' नामक गाना सुनते थे. लेकिन निखिल आनंद गिरि पूछ रहे हैं दाल कैसे खाएं? इतनी मंहगी दाल?

    दालशास्त्र समझने के लिए यह पोस्ट पढें.

    अनूप जी ने आज इन्द्र के दरबार का स्टिंग ऑपरेशन कर डाला है. कर के डाल दिया है. जिन्होंने नहीं पढ़ा हो, ज़रूर पढें और जाने कि इन्द्र के दरबार की हालत दिल्ली दरबार जैसी क्यों हो गई है?

    क्या कहा? ट्रेलर देखना चाहते हैं? देखिये;

    "दूसरा बादल अपनी परेशानियां बताता है कि उसके साथ की बदली उसको छेड़ती है और रास्ते भर कहती है- तुम तो बादल लगते ही नहीं हो। कित्ते क्यूट हो। कहां बरसने के लिये पानी लिये जा रहे हो। ये पानी मुझे दे दो न! हमें अपना मेकअप छुड़ाना है।

    इन्द्र भगवान उसको समझाते हैं- असल में वो वाली बदली शापग्रस्त अप्सरा है। मेकअप करने और छुड़ाने के अलावा उसे और कुछ आता नहीं। तुम्हारे साथ इसीलिये लगाया कि तुम जैसे रूखे-सूखे के बादल के साथ रहेगी तो कुछ बरसना भी सीखेगी। वैसे भी वो एक साल के लिये ही शापित है। इसके बाद फ़िर उसे महफ़िलों में सजना है। न जाने कितने देवताओं को प्रिय है। कईयों की मुंहलगी है। उससे कुछ कहते भी नहीं बनता।"


    नेट पर हिंदी इस कदर फ़ैल रही है कि पूछिए ही मत. आज बालसुब्रमण्यम जी ने इसकी जानकारी देते हुए बताया;

    अब तो नाइजीरिया के फरेबी भी हिंदी बोल रहे हैं.

    कहने का मतलब यह कि अब हम भारतीय केवल अंग्रेजी भाषा में ही लॉटरी नहीं जीतते. अब हमने हिंदी में भी लॉटरी जीतना शुरू कर दिया है.

    जयहिंदी.

    नैनो की डिलिवरी शुरू हो चुकी है. आज आदित्य को उसकी नैनो मिल गई. आदित्य ने इसके बारे में बताते हुए कहा;

    "आपने पढ़ा होगा की नैनो की डिलीवरी शुरु हो गई.. तो लगे हाथ पापा मेरे लिये भी नैनो ले आये.. yellow कलर की.. वैसे होंडा सिटी भी मिल रही थी.. पर वो तो बहुत कॉमन है न.. पापा-मम्मी ने सोचा आदि के लिये कुछ 'exclusive' कार ले जाते है.. और नैनो से बढ़कर भला और क्या हो सकता है.. बिल्कुल छोटी सी प्यारी सी नैनो.."


    आदित्य की नैनो देखिये और उससे मिठाई की मांग कीजिये. नई कार आई और आदित्य ने मिठाई नहीं खिलाई. ऐसे चलता है क्या?

    अनामदास जी ने बहुत दिनों के बाद आज लेख प्रकाशित किया. उन्होंने लिखा;

    आर्यभट मस्ट बी प्राउड


    ऐसा उन्होंने क्यों लिखा, यह जानने के लिए उनके ब्लॉग पर पधारे. ज़रूर पधारें. वे कभी-कभी ही तो लिखते हैं.


    ताऊ जी के ब्लॉग पर आज पारुल जी का परिचयनामा पब्लिश हुआ है. ज़रूर पढें.

    आज अलबेला खत्री जी का जन्मदिन है. उन्हें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं.

    आज की चर्चा में बस इतना ही.

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    बुधवार, जुलाई 22, 2009

    सूरज चाँद से मिला और बोला - स्मार्टी आई लव यू!!

    एक लाईना



      अपमान
    1. बिजली और विवेक ने तुड़वाई पंखे की सगाई : बिजली के झटकों से हिलेगा तो और क्या होगा भाई!!

    2. ताऊ गया बाबा समीरानंद के हिमालय आश्रम में :बाबा समीरानन्द ताऊ को राग दरबारी में गाना सिखायेंगे

    3. दारागंज का पण्डा :आज ज्ञानजी के ब्लाग पर चढ़ बैठा

    4. कुछ कुछ कुछ कुछ कह जाता:उसमें से कुछ सुनना तो नहीं पड़ेगा ?

    5. टूटी मेरी सगाई :बाल-बाल बचे भाई

    6. बारिश की फुँहारें, लीची का शरबत, गरमागरम खस्ता पकौड़े और अनीता जी का साथ :एक साथ इत्ते बवाल!!

    7. स्कोर कार्ड - समीर अंकल : 201* :बहुत बच्चा स्कोर है जी!!

    8. क्यों भाई चन्दा ! किससे सीखा ये धन्धा ? :चाहे जितनी हीरोइनों के मुखड़े समान मुझे बताओ लेकिन मैं नहीं मुंह खोलने वाला

    9. मैं, आप, सब...:टिप्पणी का ही इंतजार करते रहते हैं

    10. यह यथार्थ का जादू है कि मैं योगी के साथ खड़ा हूं :लेट लो, पैर सीधे कर लो सुबह से थक गये होगे भाई!!

    11. सूरज चाँद से मिला ! :और बोला -स्मार्टी आई लव यू!!

    12. फिर चाहे वो "राखी का स्वयम्बर " हो या "सच का सामना " या "मुझे इस जंगल से बचाओ " मकसद सिर्फ़ इतना हैं कि पैसा हो ताकि जिंदगी आसान हो । :अपनी बारी की प्रतीक्षा करें आप कतार में हैं

    13. सूर्यग्रहण के बहाने :एक ठो पोस्ट ठेल दी

    14. ज्योतिषी अक्सर बदहाल क्यों होते हैं? :पार्वती जी का शाप उनको मालामाल नहीं होने देता

    15. खाना बनातीं स्त्रियाँ:खाना ही बनाती जा रही हैं

    16. अमर उजाला में 'शब्द-शिखर' ब्लॉग की चर्चा :बिना किसी तिकड़म बिना कोई खर्चा

    17. आपको चॉकलेट अच्छी लगती है क्या ?:खिलाती तो हो नहीं फ़ालतू में ललचवाती हो!!

    18. बेडरूम का सच और एक करोड़ रुपए :आफ़त जोते हैं

    19. शादी के बाद...:दूल्हा अचानक अंग्रेजी में बतियाने लगा...

    20. अहमदाबाद में भुखमरी :चिंताजनक बात है

    21. पता नहीं क्यों?:डा. साहब आजकल टिपिया नहीं रहे हैं

    22. और मगरमच्छ आ गया तो..?. :तो क्या होगा ??- आंसू बहायेगा!!

    23. इस सूर्य ग्रहण पर शर्म तो आ रही है :अरे अब इसमें क्या शरमाना भाई!!

    24. इतनी जल्दी क्या है!:बबुआ फ़ांसी पर चढ़ जाने की

    25. आप मेरी वेब - साईट देख रहे हो इसका मतलब :आप भी फ़ालतू हो हम भी फ़ुरसतिये हैं!!!

    26. मेरे आंखे कहती है :मेरे नहीं बाबा- मेरी!!!

    27. लो टपकने लगी 72 करोड़ में बनी विधानसभा :यह पारदर्शिता है जी, जो पानी छत पर आया नीचे पेश कर दिया!!!

    28. मात्र कानूनों से जानें नहीं बचती:कानून पालन करने में जान लगाने से जान बचती है

    29. निगौडा सूचना का अधिकार :कहां-कहां घुसपैठ करेगा?

    30. हम भी देखेंगे एनडीटीवी :क्यों भाई क्या पाप किया है एनडीटीवी ने??

    31. यों तो बिना वजह ही सारे दिन हम व्यस्त रहे :महानगर के छल छंदों से तन मन त्रस्त रहे

    32. मुझे आराम चाहिये :इसके पास मुकाम,पैगाम और फ़िर जाम का इंतजाम चाहिये

    33. हिंदी- एक बीमारी??? :कह दो यह झूठ है!!!

    34. गिर सकती है सच का सामना पर गाज : देख लो जित्ता हो सके ये कार्यक्रम आज

    35. रितिक ने अपनी कलाई पर पत्नी का नाम गुदवाया:गर्ल फ्रेंड्स के दौर में पत्नी प्रेमी को सलाम !

    36. स्टूल पर बैठी ज़िन्दगी :कभी गिरती है, कभी लडखडाती है! इसके लिये कुर्सी मंगवाओ

    37. भकुआए टीवी पत्रकार आज आप हमें गरिआइए : वो आपकी मांग कब्भी पूरी नहीं करेंगे!! समझ गये? निकलिये, जाइये!!




    और अंत में

    सबेरे ग्रहण के चक्कर में चर्चा हड़बड़ा के कर दिये। उसमें एक लाईना नहीं लिख पाये। अभी सोचा कि पेशे खिदमत कर दिया जाये। उदयप्रकाशजी के बारे में खबरों का लिंक देते हुये हमने चर्चा की तो अभी चैटियाते हुये एक मित्र ने पूछा- ये उदयप्रकाशजी कौन हैं? अब जो लोग साहित्यकार और ब्लागर के पचड़े में पड़े हैं वे इस घटना को संज्ञान में लें और इस बात को बूझें कि आप चाहे ब्लागर हों या साहित्यकार आपका होना तभी होना माना जायेगा जब आपके बारे में लोगों को पता होगा।

    बहरहाल आप इस एक लाईना का मजा ले ही लिये होंगे इसलिये अब और क्या कहें? सिवाय इसके कि आपको अच्छा नींद आये। सोने के लिये हम वीनस केशरी से नहीं कहेंगे क्योंकि उनके यह जागने का समय है।

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    बिजली और विवेक ने तुड़वाई पंखे की सगाई


    सूर्यग्रहण
    भारत और आसपास के देशों के हाल मासाअल्लाह टाइप हैं। नेता लोग बल भर और अकल भर कोशिश कर रहे हैं अपने-अपने देश को आगे ले जाने की लेकिन देश लोग हैं कि मानते ही नहीं हैं। बैक गियर में चले जा रहे हैं। जिनका पटरा बैक गियर में जाने से भी नहीं हो रहा है वे साइड गियर और ऐंड़े-बैंड़े में देश गाड़ी को घुसा दे रहे हैं। लेकिन देश के लोग अपने नताओं की कोशिशों से उदासीन उनकी मौज लेने पर उतारू हैं। नेताओं की मजाक उड़ाते रहते हैं। इस बात पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरदारी जी ने एलान कर दिया है कि जो उनकी खिल्ली उड़ायेगा उसको सजा मिलेगी। बरोबर मिलेगी। अब इस पर हम क्या कहें? आप खुद समझदार हैं। लेकिन आप देखिये कि जरदारी जी और गिलानी जी में काहे के लिये ठन गयी!

    लेकिन मौज लेने वाले आई मौज फ़कीर की/दिया झोपड़ा फ़ूंक वाली इस्टाईल के होते हैं। लेनी होती है तो ले ही लेते हैं। उदयप्रकाशजी अपनी बात के समर्थन में कुछ बातें कह चुके हैं और कई किश्तों में माफ़ी की बात कह चुके हैं लेकिन हर बार सच कुछ डिग्री अलग खड़ा दिखता है। आज डाट डाट डाट (.......) के माध्यम से उदयप्रकाशजी के बारे में लिखते हुये अनिल यादव ने लिखा:

    उदयप्रकाशजी
    लेकिन खुद योगी ने ... ... को "राजनीतिक संदर्भ" समझाने की कोशिश की थीः
    यहां मैं तमाम वैचारिक विरोध के बावजूद योगी की सदाशयता, साफगोई, दूरदर्शिता और ... ... की खास लेखकीय इमेज की गहरी समझ की प्रशंसा करता हूं। उसे बचाने की फिक्र की तो और भी ज्यादा।

    "इस समारोह में जाने से पहले मैने खुद आगाह किया था कि ... ... जी को कठिनाई हो सकती है लेकिन एक निजी (संदर्भ किसी परिवार का नहीं, गोरखनाथ पीठ के अपने कालेज का) समारोह मानकर चला गया था।"


    अखबार में छपी खबर के अनुसार इस मामले पर हो रही बयानबाजी से क्षुब्ध योगी आदित्यनाथजी नेतल्ख लहजे में कहा-इस देश के वामपंथियों ने कभी इस देश की परंपराओं, रीति-रिवाजों और यहां तक कि अच्छी बातों और विचारों का समर्थन नहीं किया।

    आज सूर्यग्रहण था। इस मौके पर कई लोगों ने अपने अनुभव लिखे हैं। किसी ने चित्र लगाये हैं तो किसी ने कहानी बताई है। कुछ पोस्टे हैं:

    सूर्यग्रहण
    1. सूर्यग्रहण के बहाने

    2. कुछ ऐसा रहा नज़ारा हमारे यहाँ सूर्य ग्रहण का

    3. सबसे बड़ा सूर्यग्रहण

    4. जब सूर्यग्रहण के चक्कर में फंसे हनुमान जी

    5. वाराणसी में सूर्य ग्रहण : रूपम यथा शान्त महार्णवस्य

    6. सूर्यग्रहण का नज़ारा

    7. दारागंज का पण्डा

    8. आपने न्यूज चैनलों पर देखा सूर्यग्रहण? नहीं देखा तो यहां देखिये

    9. सुर्य और चन्द्र का मिलन

    10. सदी का सबसे लंबा सूर्यग्रहण खत्म

    11. सूर्य ग्रहण देख रोमांचित हो उठे देशवासी

    12. ग्रहण और मैं ...

    13. कुदरत के करिश्मे पर नजर

    14. सूर्य ग्रहण से एक दिन पहले

    15. सूरज चाँद से मिला !

    16. सूर्यग्रहण और मेरा तजुर्बा

    दुनिया भर के लिये सूर्यग्रहण भले वैज्ञानिक घटना हो लेकिन पी सी गोदियल के लिये यह आशिक-माशूक (चांद-सूरज)मिलन का लफ़ड़ा है। पुराने ख्याल का होने के कारण मिलते समय अंधेरा कर लेते हैं:
    ये आशिक अभी भी
    पुराने ख्यालातों के है,
    इनपर अभी तक,
    पश्चिम का जादू नहीं चला !
    वरना इसतरह,
    रोशनी बुझाकर क्यों
    अँधेरे मे एक दूसरे को,
    प्यार करते भला ?

    स्वामीजी सूर्यग्रहण के मौके पर कहानी सुनाते हुये समझाइस देते हैं:
    मैं इन (शायद सांकेतिक) कथाओं को बहुत दिलचस्प पाता हूं! ये संदेश को ठिकाने पहुंचा देती हैं. तो अगर आपने तपोबल को वेस्ट ना करें तो ईश्वर भी भविष्यवाणी ना कर सकें .. पार्वती देवी ने, (प्रकृति पर्सोनिफ़ाईड ने) सिस्टम में सारे मायावी चेक्स लगा रखे हैं. टटपूंजिये मानवों की तो क्या ही बिसात कर लें सही भविष्यवाणी!


    छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमनसिंह अपने पुलिस बल का मनोबल बढ़ाने के लिये नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पहुंच गये। उनके साहस की तारीफ़ करती पोस्ट पर कई बेनामी टिप्पणियां भी हैं जो कहती हैं:
    रमन सिंह का नक्सली घटना स्थल पर जाना वाकई साहसिक है। उनके इस काम के लिए तो दुश्मनों को भी उनको सलाम करना चाहिए।


    सच का सामना के सच को सामने रखने की कोशिश कर रहे हैं-निखिल आनन्द गिरि-बेडरूम का सच और एक करोड़ रुपए । इसी कार्यक्रम की नकल उडा़ते हुये नटखट बच्चा भी सवाल पूछने लगा है:
    तीसरा सवाल -क्या आप कुछ महिलाओं को उनकी झूठी तारीफ़ करके अपने पक्ष में करते है ?
    ब्लोगर -हाँ
    ये आईडिया कहाँ से आया .
    ब्लोगर -मेरे भांजे ने मुझे ये आईडिया दिया पुरुष भी इसके झांसे में आते है ,तीन चार नामी ब्लोगर ने अपनी तारीफ़ साइड में लगा रखी है पर हर पुरुष नहीं आता हाँ महिलाए आसानी से इसकी शिकार हो जाती है
    चौथा सवाल - क्या आपने कभी किसी महिला /पुरुष ब्लोगर का गाना सुना है ?
    ब्लोगर -नहीं
    कुछ बताये
    ब्लोगर -सबका नहीं एक बार एक का सुना था ,उनसे अच्छा तो मै बाथरूम में गाता हूँ
    पांचवा सवाल -क्या अपने बेटे से कम उम्र की ब्लोगर की कविता की आपनी झूठी तारीफ की है
    ब्लोगर -हाँ


    भूतपूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब की अमेरिकन एअरलाइन्स वालों बेइज्जती कर दी। सुरक्षा जांच के लिये उनके जूते उतरवा लिये , मोबाइल धरवा लिया। इस पर अपना आक्रोश व्यक्त किया है ब्लागर साथियों ने।

    विवेक सिंह की कल्पनाशीलता के जलवे आजकल झकास दिख रहे हैं। आज देखिये बिजली के पंखे की सगाई तुड़वा दी।

    सूर्यग्रहण
    पंखा एक डॉक्टर के घर
    जाकर यूँ फ़रमाया ।
    कर दें मेरा भी इलाज
    बिजली ने मुझे सताया ॥
    घूम गया मेरा दिमाग
    जैसे ही बटन दबाया ।
    लटका था चुपचाप हवा में,
    लेकिन अब लहराया ॥
    हलचल सी मच गयी, हवा के
    कण कुछ समझ न पाये ।
    एक दूसरे को भगदड़ में
    लतियाये, धकियाये ॥
    हुई शिकायत घर मेरे,
    अम्मा ने डाँट लगायी ।
    बोले लोग, " इसे मिर्गी है "
    टूटी मेरी सगाई ॥

    कविता कोश की स्थापना के तीन वर्ष पांच जुलाई को हुये। आज कविता कोश ने अपने संग्रह में बीस हजार कवितायें पूरी होने की सूचना दी:
    आपको यह सूचित करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि कविता कोश में उपलब्ध पन्नों की संख्या अब 20,000 के ऊपर पँहुच गयी है। अभी दो सप्ताह पहले ही कोश की स्थापना के तीन वर्ष पूरे हुए हैं। इतने कम समय के दौरान 20,000 पन्नों का संकलन अपने आप में एक उपलब्धि है। यह उपलब्धि इसलिये भी विशेष है क्योंकि कोश में संकलित रचनाकारों का चयन एक कठिन प्रक्रिया के ज़रिये किया जाता है।
    कविता कोश को हम सबकी बधाई! आगे और अधिक सार्थक काम करने के लिये शुभकामनायें।

    मेरी पसंद



    मुकेश कुमार तिवारी
    तुम,
    जब मुस्कुराती हो
    और मेरे कंधे पर सिर टिकाते हुये
    बात करती हो
    कुछ शिकायत भी
    अच्छी लगती हो


    तुम,
    जब शाम से ही
    मेरा इंतजार करती हो
    और मेरे आते ही
    समा जाती हो
    मेरी बांहो में
    अच्छी लगती हो

    तुम,
    जब बिलखने लगती हो
    नाराज किसी बात पर
    और मेरी किसी भी बात को
    नही सुनती हो
    बच्ची लगती हो

    तुम,
    जब उदास होती हो तो
    पैर पटकते हुये
    घूमती हो आँगन में
    या सिर पर पट्टी बांधे
    सिमटी होती हो बिस्तर पर
    क्या कहूँ .............?
    कैसी लगती हो ?
    मुकेश कुमार तिवारी

    और अंत में

    आज चर्चा करने मीनाक्षीजी का दिन था। पहले यह चर्चा कुश और उसके पहले के वुधग्रह समीरलाल थे। कल कुश ने कहा- खबरदार जो किसी ने वुध की चर्चा की। वुध की चर्चा हम करेंगे। हम खुश होकर सो गये। सुबह आठ बजे मोबाइल की जामा तलाशी से कुश का मेसेज मिला कि मुई बिजली के न रहने वे चर्चा नहीं कर पाये। लिहाजा हमें देर से आपके रूबरू होना पड़ा। आप फ़िर एक क्लासिक चर्चा से वंचित रह गये। बहरहाल जैसा है आपके सामने इसे पेश किया। अब आप मौज करिये।
    ऊपर के कार्टून क्रमश हरिओम तिवारी और काजल कुमार के हैं।

    बिजली और विवेक ने तुड़वाई पंखे की सगाई

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    मंगलवार, जुलाई 21, 2009

    प्रभु जी मोहे साहित्यकार कहौ


    साहित्य
    नमस्कार !

    चिट्ठा चर्चा साहित्य में आपका हार्दिक स्वागत है । चर्चा के साथ साहित्य शब्द के इस्तेमाल पर आप अवश्य चौंके होंगे । पर आपने अगर टिप्पणी में यह कह दिया कि चर्चा साहित्य नहीं है तो आपसे ज्यादा हम चौंक जायेंगे । कोई हमें बताये कि जब सस्ता साहित्य होता है, अश्लील साहित्य होता है, और मस्तराम साहित्यकार हो सकते हैं तो क्या हम साहित्यकार नहीं हो सकते ? जी हाँ आज से हम साहित्यकार हैं और घोषणा की जाती है कि हमारे द्वारा जो भी लिखा जायेगा वह साहित्य कहलायेगा । और तो और हम अपने ऑफ़िस में जो लॉग लिखेंगे वह भी साहित्य होगा । हम संप्रभु साहित्यकार हैं और हमें किसी से सर्टिफ़िकेट लेने की आवश्यकता नहीं है । जो साहित्य की परिभाषा पूछते-पूछते थक गये उन्हें लोगों ने ब्लॉगर कह दिया । बात हो रही है समीर जी की । कहते हैं :


    जिसको देखो बस एक लाईन बोल कर भाग जाता है कि साहित्य नहीं रचा जा रहा है ब्लॉग पर। मगर कोई ये बताने तैयार ही नहीं कि आखिर साहित्य होता क्या है, क्या है इसकी परिभाषा और हमें क्या करना होगा कि साहित्य रच पायें। बहुत बार और बहुत जगह जाकर पूछा, रिरिया कर पूछा, गिड़गिड़ा कर पूछा मगर जैसे ही पूछो कि आखिर साहित्य है क्या, भाग जाते हैं। बताते ही नहीं॥मानो सरकार बता रही हो कि भारत का विकास हो रहा है। पूछो कहाँ, तो भाग जाते हैं? आप खुद खोजो।

    पर शिवकुमार मिश्र भी मोम के नहीं बने थे लिहाजा नहीं पिघले । दुखद टिप्पणी कर ही दी । कहते हैं :


    बेहतरीन पोस्ट है। कार्टून तो गजबे है। विकास और साहित्य, दो बिलकुल अलग विषय एक ही जगह....ऐसा एक ब्लॉगर ही कर सकता है।

    विश्वामित्र की कथा याद आती है कि उन्होंने ब्रह्मर्षि कहलाने के लिये बहुत तपस्या की थी । हम होते तो खुद को ब्रह्मर्षि घोषित कर दिये होते । बात खतम । चर्चा अभी बाकी है, जाइयेगा नहीं ।


    बात करते हैं सुरेश चिपलूणकर जी की जो आज जमकर बरसे हैं । हालाँकि कॉपी सुविधा न होने के कारण हम उस लेख के अंश यहाँ नहीं दिखा पा रहे हैं पर इतना कह सकते हैं कि आज जिसने यह लेख नहीं पढ़ा उसने कुछ नहीं पढा़ ।


    ब्लॉग जगत के अब तक ज्ञात ब्लॉगरों में सबसे भारी धीरू सिंह जी शेर सिंह के पीछे लग गये हैं । भारी ब्लॉगर हैं लिहाजा इनकी बात में भी वजन है ।


    कल सूर्यग्रहण है । भारत में सूर्यग्रहण हो या चन्द्रग्रहण ये किसी त्योहार से कम नहीं होते । इनके बारे में लोगों के मन में कई तरह की भ्रांतियाँ होती हैं । अरविंद मिश्रा जी बड़े रोचक ढंग से सूर्यग्रहण की गहराइयों को नाप रहे हैं । एक झलक देखिये :


    आख़िर सूर्यग्रहण क्यों लगता है ? यह सवाल जब हजारो साल पहले लोगों ने गुनी जनों /तत्कालीन बुझक्कडो से पूंछा होगा तो अपने तब के ज्ञान और कल्पनाशीलता के मुकाबले उन्होंने लोगों की जिज्ञासा शान्त करने के लिए जो कुछ कहानी गढी होगी वह विश्व के मिथकों का एक रोचक दास्तान बनी -भारत में यह कथा अदि समुद्र मथन से जुड़ती है जिसमें मंथन से निकले कई रत्नों मे से एक अमृत के बटवारे में राहु का छुप कर
    देवताओं के बीच आ धमकना सूर्य और चन्द्रमा से छिपा नही रह गया तो उन्होंने विष्णु को इशारे से इस घुसपैठिये राक्षस के बारे में बता दिया और उन्होंने झटपट सुदर्शन चक्र से राहु का सर काट दिया , धड केतु बन गया -अब चूंकि वह अमृत पान तब तक कर चुका था इसलिए जिंदा रह कर आज भी सूर्य और चन्द्रमा को रह रह कर मुंह का ग्रास बना लेता है ! अब यह कहानी आउटडेटेड हो गयी है -आज हमें पता है की सूर्य की परिक्रमा के दौरान धरती और चन्द्रमा जो ख़ुद धरती की परिक्रमा करता है ऐसे युति बना लेते हैंकि सूरज के प्रकाश को देख नही पाते तब सूर्य ग्रहण लग जाता है ! दरअसल राहु केतु का कोई अस्तित्व नही है ! यह महज कपोल कल्पना है -हाँ ज्योतिषीय गणनाओं की परिशुद्धि के लिए इन्हे छाया ग्रह मानकर काम चलाया जाता है !

    इस लेख पर Ghost Buster जी की टिप्पणी है :


    काफ़ी सारा सीज़न तो लगभग सूखा बीत गया पर अब सूर्य ग्रहण के पास आते आते सावन को अपने कर्त्तव्य का स्मरण हो आया है। दो-तीन दिनों से घटाएँ छाई हैं और बूंदा-बांदी चालू है। हमारे यहां तो सूर्य ग्रहण खुद ग्रहण की चपेट में है। ईश्वर करे कि स्थिति
    बने और हम लोग भी इस दुर्लभ घटना के साक्षी बन सकें। वैसे आप तो किस्मतवाले हैं,
    वाराणसी में पूर्ण ग्रहण है। हम कुछ किलोमीटर से चूक गये। पूर्ण ग्रहण वाली पट्टी थोड़ा नीचे से गुजर रही है।

    ज्योतिष के क्षेत्र में ब्लॉग जगत की जानी मानी हस्ताक्षर संगीता पुरी जी ने भी ज्योतिष के दृष्टिकोण से सूर्यग्रहण के बारे में जानकारी दी है । एक झलक :


    वास्‍तव में ज्‍योतिषीय दृष्टि से अमावस्‍या और पूर्णिमा का दिन ही खास होता है। यदि इन दिनों में किसी एक ग्रह का भी अच्‍छा या बुरा साथ बन जाए तो अच्‍छी या बुरी घटना से जनमानस को संयुक्‍त होना पडता है। यदि कई ग्रहों की साथ में अच्‍छी या बुरी स्थिति बन जाए तो किसी भी हद तक लाभ या हानि की उम्‍मीद रखी जा सकती है। ऐसी स्थिति किसी भी पूर्णिमा या अमावस्‍या को हो सकती है , इसके लिए उन दिनों में ग्रहण का होना मायने नहीं रखता। पर पीढी दर पीढी ग्रहों के प्रभाव के ज्ञान की यानि ज्‍योतिष शास्‍त्र की अधकचरी होती चली जानेवाली ज्‍योतिषीय जानकारियों ने कालांतर में ऐसे ही किसी ज्‍योतिषीय योग के प्रभाव से उत्‍पन्‍न हुई किसी अच्‍छी या बुरी घटना को इन्‍हीं ग्रहणों से जोड दिया हो। इसके कारण बाद की पीढी इससे भयभीत रहने लगी हो। इसलिए समय समय पर पैदा हुए अन्‍य मिथकों की तरह ही सूर्य या चंद्र ग्रहण से जुड़े सभी अंधविश्वासी मिथ गलत माने जा सकते है। यदि किसी ग्रहण के दिन कोई बुरी घटना घट जाए , तो उसे सभी ग्रहों की खास स्थिति का प्रभाव मानना ही उचित होगा , न कि किसी ग्रहण का प्रभाव।

    सूर्यग्रहण से सम्बन्धित और लेख पढ़ने के लिए भूपेन्द्र सिंह जी के ब्लॉग पर जा सकते हैं । अपने ब्लॉग पर भूपेन्द्र जी कहते हैं :


    भारतीय खगोलविद आर्यभट्ट ने तारों की गति के अध्ययन के लिए लगभग एक हजार वर्ष पूर्व जिस स्थान पर शिविर लगाया था, उसी गांव में 21वीं सदी के सबसे लंबे सूर्य ग्रहण के दर्शन के लिए बुधवार को कई लोग एक बार फिर जुटेंगे। वह स्थान है बिहार की राजधानी
    पटना से 30 किलोमीटर दक्षिण में तरेगना। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी इस ऐतिहासिक खगोलीय घटना को देखने के लिए इसे सबसे उपयुक्त स्थान करार दिया है। गांव
    के नाम का अर्थ निकालने पर लगता है कि तारों की गिनती के कारण ही इसका यह नाम पड़ा होगा।

    आगे बढ़ते हैं, आज मुम्बई हमलों के दोषी कसाब ने अदालत में अपना जुर्म कुबूल कर लिया । लो मान गया कसाब... अब सुनाओ सज़ा । मंथन ब्लॉग पर कहा गया है :


    अब संसद पर हमले के आरोपी अफज़ल गुरु को ही ले लीजिये... १३ दिसम्बर २००२ को संसद पर हुए हमले के आरोपी अफज़ल गुरु को २००६ में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन आज भी अफज़ल गुरु सही सलामत सरकारी मेहमान बनकर सरकारी आरामगाह यानी जेल में बैठा है... संसद पर हमले को लेकर जितनी चर्चा नहीं हुई थी उससे ज्यादा चर्चा तो अफज़ल गुरु की फंसी को लेकर होती रही है... सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी उसे फांसी नहीं दी गयी है...

    आगे कहा गया है :शायद हमारे देश की यही बात है जो कसाब और अफज़ल गुरु जैसे गुनहगारों को हम पर बार बार हमला करने के लिए बढ़ावा देती है... क्योंकि वो अच्छी तरह जानते है की अगर हम पकडे भी जायेंगे तो भारत का कानून हमें ज़िंदा रखने में हमारा पूरा साथ देगा... और कानून अगर सजा सुना भी दे तो भी क्या... सज़ा के हुक्म की तामिल तो हिन्दुस्तान में होगी नहीं, तो फिर डर किस बात का जी भर कर हिन्दुस्तान की धज्जिया उडा सकते है... और ये हिन्दुस्तानी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे... आज काव्य मंजूषा ब्लॉग पर अदा जी की कविता शूर्पनखा... पढ़कर दिल भर आया । आपका भी दिल भर जाये इसलिए पूरी कविता ठेले दे रहे हैं ।



    शूर्पनखा...



    शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,


    किस दुविधा में गवाँ तू अपना मान-सम्मान


    स्वर्ण-लंका की लंकेश्वरी, भगिनी बहुत दुलारी


    युद्ध कला में निपुण, सेनापति, पराक्रमी राजकुमारी


    राजनीति में प्रवीण, शासक और अधिकारी


    बस प्रेम कला में अनुतीर्ण हो, हार गई बेचारी


    इतनी सी बात पर शत्रु बना जहान


    शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,



    क्या प्रेम निवेदन करने को, सिर्फ मिले तुझे रघुराई ?


    भेज दिया लक्ष्मण के पास, देखो उनकी चतुराई !


    स्वयं को दुविधा से निकाल, अनुज की जान फँसाई !


    कर्त्तव्य अग्रज का रघुवर ने, बड़ी अच्छी तरह निभाई !


    लखन राम से कब कम थे, बहुत पौरुष दिखलायी !


    तुझ पर अपने शौर्य का, जम कर जोर आजमाई !


    एक नारी की नाक काट कर, बने बड़े बलवान !


    शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,



    ईश्वर थे रघुवर बस करते ईश का काम


    एक मुर्ख नारी का गर बचा लेते सम्मान


    तुच्छ प्रेम निवेदन पर करते न अपमान


    अधम नारी को दे देते थोड़ा सा वो ज्ञान


    अपमानित कर, नाक काट कर हो न पाया निदान


    युद्ध के बीज ही अंकुरित हुए, यह नहीं विधि का विधान


    हे शूर्पनखा ! थी बस नारी तू, खोई नहीं सम्मान


    नादानी में करवा गयी कुछ पुरुषों की पहचान


    और अंत में बात कलम की । कम्प्यूटर के युग में कलम में लिखने वाले चन्द्रमौलेश्वर जी खबर लाये हैं :


    पटना विश्वविद्यालय की सिंडिकेट ने तीन वर्ष तक गौर करने के बाद अब यह फैसला लिया है कि मटुकनाथ ने गुरु-शिष्य के सम्बंध को बट्टा लगाया है जिससे विश्वविद्यालय की छवि आहत हुई है। विश्वविद्यालय के प्रो-वाइस चांसलर एस।ऐ।अहसन ने सिंडिकेट की सिफ़ारिश पर मटुकनाथ को नौकरी से निकाल दिया है।

    इन्हीं शब्दों के साथ हम अगले मंगलवार फ़िर मिलने का वादा करके निकलते हैं । आप सब दुआ करिये कि अगले मंगल तक कहीं ठन जाय ताकि चर्चा आल्हा में हो सके ।


    चलते-चलते


    प्रभु जी मोहे साहित्यकार कहौ,


    मेरे शब्दन पै मत जाऔ, इनकौ अर्थ गहौ ।।


    कब तक मोहि रखौगे ब्लॉगर सदियाँ बीत गईं ।


    'ब्लॉगर' कहि-कहि सखा खिजावें इनकी मौज भईं ॥


    कुण्डलियाँ, मुण्डलियाँ कितनी यूँ ही लिखत रह्यौ ।


    ब्लॉगर-साहित्यकार भेद में सब साहित्य बह्यौ ॥


    टंकी पै भी चढ़्यौ न फ़िर भी साहित्यकार भयौ ।


    पूछत रहत लोग-वागन सौं भेद न मोहि दयौ ॥


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