रविवार, दिसंबर 31, 2006

इस वर्ष की अंतिम चिट्ठा चर्चा

लो जी जनाब! २००६ कब आया और कब चला गया, पता ही नही चला। यूं तो प्रत्येक वर्ष अपने साथ कुछ ना कुछ नया जरुर लाता है। यही हुआ भी हमारे चिट्ठा जगत के साथ। २००६ मे हमारे परिवार मे ४० से ज्यादा चिट्ठाकार शामिल हुए है। इन नये चिट्ठाकारों की लेखन शैली भी कमाल की है। ऊर्जा और जोशोखरोश तो हम बुजुर्गों से ज्यादा तो है ही। तो भई इस वर्ष तरकश वाले संजय जी के आह्वान पर हिन्दी चिट्ठाजगत तीन उदीयमान चिट्ठाकारों को सम्मानित करने जा रहा है। पूरी तैयारियां हो गयी है, बिगुल बज चुका है, आप भी शामिल हो जाइए, चिट्ठाकारों को चुनने में। पूरी जानकारी इधर है

आइए पहले हम अपना दिहाड़ी वाला काम निबटा लें, दिन शनिवार, दिनांक ३० दिसम्बर, २००६, साल खतम होने की तरफ़ बढ रहा था। लोग बाग, छुट्टियां मनाने, इधर उधर हो लिए,लेकिन अपने रवि भाई अपना तकनीकी ज्ञान बदस्तूर बाँटते नजर आए। रवि भाई जमजार के बारे मे बता रहे है, रवि भाई कहते है:

जमजार - वैसे तो एक ऐसा ऑनलाइन दस्तावेज़ परिवर्तक है जिसके जरिए आप कई किस्म के दस्तावेज़ों को कई अन्य किस्म के दस्तावेज़ों में मुफ़्त में परिवर्तन कर सकते हैं, परंतु यह हिन्दी भाषा के वर्ड फ़ाइलों को बखूबी पीडीएफ़ फ़ॉर्मेट में बदलता है.


अभी कुछ दिन पहले पता चला था कि चिट्ठाकारों को लैपटाप बाँटे जा रहे है तो हम भी खुश हो लिए, चेहरा साफ़ सूफ़ करके,इमेल का इन-बाक्स खोलकर, फोन के पास बैठ गए कि पता नही कहाँ से कॉल आ जाए, कि आओ भैया अपना लैपटाप ले जाओ। लेकिन मार पर इस उन्मुक्त को अब इ खबर दे रहा है कि लैपटाप वापस लिए जा रहे है। इसे बोलते है, सपनो पर कुठाराघात, इसी सदमे से हम आज की चिट्ठा चर्चा देर से किए।

गिरिन्द्र याद कर रहे है मरहूम मिर्जा ग़ालिब को। गिरिन्द्र लिखते है:
गालिब का जन्मोत्सव जोश के साथ दिल्ली मे मनाया गया.पुरानी दिल्ली से लेकर निजामुद्दीन तक गालिब के नज्म महकते रहे.देश और विदोशो से आए शायर दिल्ली की वही रोनक लौटाने की कोशिश करते नज़र आए जैसा गालिब चचा किया करते थे.पाकिस्तान के मशहुर शायर फरहाज़ अहमद ने समां को बनाये रखा.वही विख्यात डांसर उमा शर्मा ने गालिब की गज़लो और शायरी के साथ बेले डांस पेश किया तो गालिब की ये चंद लाईने जुबां पे आ गयी-
इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के....


मिर्जा ग़ालिब का जन्म आगरा मे हुआ था, आगरा मे उनके मकान के बारे मे प्रतीक लिखते है:

ग़ालिब से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम १९६० तक बाक़ायदा वहीं आयोजित किए जाते रहे हैं। ट्रस्ट द्वारा बड़े पैमाने पर की गई तोड़-फोड़ और निर्माण के चलते अब भवन काफ़ी बदल चुका है। विख्यात शायर फिराक़ गोरखपुरी और अभिनेता फ़ारुक़ शेख़, जिन्होंने ग़ालिब पर एक फ़िल्म का निर्माण किया था, भी इस इमारत को देखने आए थे। ऐतिहासिक तथ्य पुख़्ता तौर पर इशारा करते हैं कि वही भवन मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्मस्थल है, जहाँ आज एक गर्ल्स इंटर कॉलेज चल रहा है। हालाँकि इस बारे में अभी और शोध की ज़रूरत है कि क्या वही इमारत ग़ालिब की पुश्तैनी हवेली है।



रचनाकार मे पढिए, रवीन्द्र नाथ त्यागी की रचना, किस्से अदालतों के। शशि भाई सबको नववर्ष की बधाई दे रहे है तो उधर प्रमेन्द्र सद्दाम हुसैन को फांसी दिए जाने से दु:खी है। इसी विषय पर संजय भाई लिखते है:
सद्दाम को मरना तो था ही. ऐसे नहीं तो किसी इराकी की गोली का निशाना बनता. तानाशाहो का यही अंजाम होता रहा है.
पर यहाँ फाँसी देने वाले तथा खाने वाले दोनो ही कायर लग रहे है. असल बहादुरी यह होती की सद्दाम लड़ते हुए मरता. लेकिन जैसा की कहते है तानाशाह कायर होते है, सत्ता के लिए शंकास्पद लोगो पर अत्याचार करते हुए एक दिन खुद फाँसी के तख्ते तक पहूँच जाते है. आज इराक में एकता व शांति सबसे महत्वपूर्ण है. क्या सद्दाम को मार कर इसे प्राप्त किया जा सकेगा ?

मनीषा बता रही है मिस इन्डिया यूएसए के बारे में। साथ ही बता रही है जर्मनी की गर्भवती महिलाएं क्यों अपने बच्चे को २००७ मे जन्म देना चाहती है। उधर सागर चन्द नाहर भाई से हम पतियों की खुशियां बर्दाश्त नही हो रही है इसलिए सभी औरतों का आहवान करते हुए कहते है "पति से झगड़ो, लम्बी उम्र पाओ" । अमां सागर भाई, मुसीबत जितनी छोटी हो उतनी ही अच्छी, आप तो उनकी लम्बी उम्र की दुवाएं कर रहे हो। जस्ट किडिंग...

देबाशीष लाए है इस हफ़्ते के जुगाड़, उधर अमित निकल लिए, नये साल के नए सफ़र पर
भाई अफलातून से सुनिए बापू की यादें। इधर मास्साब के बन्दर को फोटू खिंचवाने का शौंक चर्राया है। आज का कार्टून देखिए, देसीटून्स पर । सुख-सागर मे खांडव वन का दहन पढिए। इसके अतिरिक्त मन की बात , समीर लाल की उड़नतश्तरी और कानपुर ने नवोदित चिट्ठाकार अनिल सिन्हा द्वारा नववर्ष की मंगल कामना पढिए। तुषार जोशी की कविता तुम्हारा ख्याल देखिए।


आज का चित्र शशि के ब्लॉग से:




आज की टिप्पणी :डा. प्रभात टन्डन द्वारा, महाशक्ति पर:
अगर सद्दाम को 148 शियायों की हत्या के एवज मे फ़ांसी दी जा सकती है तो बुश को लाखों अफ़गानी और तमाम निर्दोष इराकियों के कत्लेआम का भी सजा झेलने के लिये तैयार रहना चाहिये। - डा. प्रभात टन्डन


अब दुकान बढाने का समय हो गया, जिन मित्रों का उल्लेख छूट गया हो वे मेरी गलती को नज़रान्दाज करते हुए, अपने नववर्ष को मनाने मे कोई कमी ना रखें। जाने से पहले, हिन्दी चिट्ठाकारों के परिवार की तरफ़ से आपको और आपके परिवार को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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शनिवार, दिसंबर 30, 2006

संभावनाओं का बिगुल

वर्ष 2006 हिन्दी चिट्ठाजगत के लिये 2007 की संभावनाओं का बिगुल बजाते हुये जा रहा है। यह साल हिन्दी के जाल पर फैलाव की नींव का पत्थर साबित होगा, मेरा अनुमान है कि चिट्ठाकारों की संख्या इस साल करीब 60 प्रतिशत बढ़ी जो जाल पर भारतीय भाषाओं के प्रयोग की कथित मुश्किलातों के मद्देनज़र उल्लेखनीय संख्या है।

पिछले साल तक ब्लॉगमंडल पर चर्चा होती थी कि युनीकोड की राह न चलने के कारण कितने ही हिन्दी जालस्थल, जिनमें प्रमुखतः प्रोपायटरी या अन्य ट्रूटाइप फाँट्स प्रयोग करने वाले समाचार साईट हैं, डायनोसार होने की कगार पर हैं पर पद्मा और मेधास जैसे प्रयासों से अयूनिकोडित जालस्थलों के युनीकोड स्वरूप को देखना अब संभव है। हालांकि ये जानकारी आन दी फ्लाई यानि तुरतफुरत परिवर्तित हो कर दिखती है और यदि यूनीकोडित सामग्री को ये परिवर्तक स्टोर कर भी रखें तब भी मुझे अनुमान नहीं कि ये जुगाड़ लंबी दूरी की कवायद में कहाँ आ रुकेंगें और गूगल इस यूनीकोडित सामग्री को खोज पायेगा कि नहीं। पर जैसा की बांगला में कहावत है, नहीं मामा से काना मामा अच्छा। यूनीकोड के जाल पर उपयोग और समाचार माध्यमों की इस पर निर्भरता को देखते हुये उनका इस ओर बढ़ना ज़रुरी है और इस पर किया जाने वाला खर्च लाभप्रद ही साबित होगा।

जाल पर हिन्दी में लिखना अब कहीं आसान है, अनुनाद के चिट्ठाकार समूह पर समय समय पर प्रेषित कड़ियों से यह यात्रा दिखती है, ढेरों उपाय हैं, और अब अगर कोई ये कहे कि पर्याप्त जुगाड़ नहीं हैं तो मैं इसे महज़ बहानेबाज़ी ही मानुंगा। वर्डप्रेस जैसे माध्यमों में सीधे हिन्दी में टिप्पणी लिखने के लिये प्लगईन आ गये हैं शायद कुछ दिनों में पोस्ट सीधे लिखने के हिन्दी संपादित्र का भी आ जाय। ब्लॉगर, जिसका अब भी अधिकांश लोग प्रयोग करते हैं और वर्डप्रेस की ५० एमबी की डेटा सीमा के मद्देनज़र आगे भी करेंगे, के लिये अगर कोई ऐसा सीधा जुगाड़ बन सके तो कितना अच्छा हो।

तरकश निश्चित ही चिट्ठाजगत की शान में इज़ाफा करने वाले प्रकल्पों में से है। उभरते चिट्ठाकारों के पोल में नामांकित चिट्ठाकारों की सूची देखकर खुशी होती है, इनमें से कई न केवल अच्छा लिखते हैं वरन नियमित लिखते हैं और दुसरे का लिखा टिप्पणियों से सराहते भी हैं।

गाँधी पर चिट्ठामंडल पर जो बहस हुई वह स्वस्थ चिट्ठामंडल का परिचायक है और आगे भी ऐसी चर्चायें जारी रह सकें इस लिये ज़रूरी है कि व्यक्ति नहीं विचारों की बात हो, आक्षेप निजी स्तर पर न हों और समर वैचारिक हों। अच्छा यह भी हो कि परिचर्चा जैसे फोरम में होने वाली बहसों को चिट्ठों के द्वारा भी उठाया जाय ताकि ये संवाद केवल चिट्ठाजगत ही नहीं एग्रीगेटरों के माध्यम से हिन्दी चिट्ठाजगत के बाहर भी गुंजायमान हों। ग्लोबल वायसेस आनलाईन की एक प्रतिनिधि से हाल ही में चर्चा हुई और यह पता चला कि वे भारतीय भाषाओं के संवाद में रुची रखते हैं पर यह मानते हैं कि ये समुदाय बाहरी ब्लॉगमंडल से जुड़े नहीं है। मैं और अनूप यह प्रयास कर रहे हैं कि जीवी जैसे माध्यमों से हम हिन्दी चिट्ठा जगत की उल्लेखनीय चर्चाओं को कुंयें के बाहर भी परोंसे। जीवी जैसे माध्यम भले हमें खास हिट न दे सकें पर मुख्यधारा का मीडिया ऐसे समाचार श्रोतों पर नज़र रखता है और हमे इसका लाभ लेना चाहिये।

किंचिंत व्यक्तियों पर आधारित प्रकल्पों की आयु अधिक नहीं हो सकती, निरंतर के साथ मैंने यह महसूस किया है और चिट्ठाचर्चा के साथ अनूप ने यह साबित कर दिखाया है कि भागीदारी की ईंट से चिट्ठाचर्चा जैसी भव्य और टिकाउ ईमारत खड़ी की जा सकती है। हालांकि हर प्रकल्प के साथ रिंगमास्टर की उपस्थिति और रुचि चाहिये भी और अनुगूँज के लिये हमें ऐसे रिंगमास्टर की तलाश है जो इसे अपना कर समृद्ध कर सके। देसीटून्ज़ भी ऐसा एक प्रयास रहा जिसमें हम आपकी भागीदारी की भी उम्मीद करते हैं, अगर आप गंभीर या औपचारिक लेखन में रुची रखते हैं तो बुनो कहानी, निरंतर और तरकश जैसे माध्यम भी हैं।

हिन्दी चिट्ठे बाँचने के लिये और नवीनतम चिट्ठों की जानकारी के लिये अब अनेक माध्यम हैं और यह सूची शायद् 2007 में भी आपके काम आयेः

http://narad.akshargram.com
http://chitthacharcha.blogspot.com
http://groups.google.com/group/charcha
http://www.hindiblogs.com
http://hindi-blog-podcast.blogspot.com
http://hindi-b-h.blogspot.com/
http://www.technorati.com/faves/Indiblogger
http://www.myjavaserver.com/~hindi/ (फिलहाल बंद है)
http://feedraider.com/u/debashish/r/dpf9x/

आप सभी के लिये नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनायें!

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गुरुवार, दिसंबर 28, 2006

सफाई का काम एक कला है

आज जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूं तो साल का आखिरी हफ्ता चल रहा है। एक तरह से मेरी नियमित चर्चा की यह आखिरी पोस्ट है। साल की समापनी पोस्ट जीतेंद्र लिखेंगे क्योंकि उस दिन उनकी ही बारी है।

चर्चा की शुरुआत जब हुयी तो इसे नियमित जारी रख पाना मुश्किल लग रहा था। लेकिन फिर साथियॊं के सहयोग से ऐसा हुआ कि अब नियमित चर्चा हो रही है। सच पूछा जाये तो चर्चा का आलम यह है कि पोस्ट कम पड़ जाती हैं जिनकी चर्चा की जाये। लिखने वालों में अतुल और देबाशीष कभी-कभी देर कर देते हैं(हमारी देरी, देरी थोड़ी मानी जायेगी) । अतुल कुछ अपने काम के सिलसिले में व्यस्त हैं। जबकि देबाशीष निरन्तर, इंडीब्लागीस के अखाड़े को सजाने में लगे हैं।

राकेश खंडेलवाल जी का कविता में चर्चा करने का मेरे ख्याल में अनूठा है। बीच में समीर जी की कुंडलियामय चर्चा का बेसब्री से इंतजार होता रहा। हालांकि कुछ साथियों ने यह शिकायत भी की कि हर जगह कविता धंसी है। लेकिन मुझे लगता है विविधता इस चर्चा की खाशियत है और इसे बने रहने चाहिये। तुषारजोशी कुछ ठंडे से पड़ गये मराठी चर्चा से और पंकज को लगता है चुनाव ने बुखार ने जकड़ लिया इसीलिये गुजराती चिट्ठाचर्चा भी कुछ ढीली है। निठल्ले साथी अब देखते हैं आगे कितनी जल्दी-जल्दी लिखना शुरू करते हैं।

चिट्ठाचर्चा में अभी तक कोई मानक अंदाज नहीं बन पाया। अतुल, जीतेंद्र और अभी रविरतलामीजी की केबीसी-III स्टाइल में पेश की गयीआखिरी पोस्ट के पेश करने का अंदाज लोगों ने बहुत पसंद किया। संजय के हाथ में काफ़ी का मग लिये चिट्ठादंगल के किस्से का लुत्फ लेने का अलग ही मजा है। लेकिन कभी-कभी मुझे यह भी लगता है कि इस शानदार अंदाज में पोस्ट जिसका किया जा रहा है वह गौड़ सी हो जाती है। शायद आगे आना वाला समय इसका व्याकरण तय करे लेकिन यह मेरी फिलहाल की सोच है।

एक बात कभी-कभी इस बारे में उठती है कि मेरी चर्चा के लिये चिट्ठे नहीं हैं या मेरा चिट्ठा छूट गया। पहले चिट्ठा छूट जाने की बात। आम तौर पर चर्चा करने वाले साथी देखते हैं कि नारद में जिस चिट्ठे तक कवरेज हो गया है उसके बाद के चिट्ठे के बारे में लिखा जाये। लेकिन अक्सर होता है कि चिटठे की वह पोस्ट दिखती नहीं। यह या तो इसलिये होता है कि नारद में ब्लाग है नहीं या फिर इसलिये कि आपने जब अपनी पोस्ट लिखनी शुरू की तबसे और पोस्ट पोस्ट करने में एकाध दिन का समय हो जाता है। और इसी चक्कर में जब आपकी पोस्ट आती है तो वह दूसरे पेज पर चली जाती है। इसलिये यह अच्छा रहेगा जब आप अपनी कोई पोस्ट लिखें तब अपने ड्राफ्ट को फाइनल करके नयी पोस्ट में ही डालें!ड्राफ़्ट को ही प्रकाशित करने से पोस्ट पुरानी पोस्टों में चली जायेगी। खासतौर से ब्लागस्पाट वाले साथी इस पर ध्यान दें।

चर्चा के लिये चिट्ठे न होने की बात भी पर भी मुझे यह लगता है कि अगर चर्चा के लिये पर्याप्त पोस्ट नहीं हैं तो अगर ठीक समझें तो उस पोस्ट की चर्चा विस्तार से की जा सकती है जिसे किसी चर्चा में अपेक्षित महत्व नहीं मिल पाया या किसी कारण वश वह छूट गयी। जीतेंद्र ने पिछले साल की पोस्ट भी लिखनी शुरू की थी।

तो ऐसे में जबकि आज के अधिकांश चिट्ठों की चर्चा हो चुकी हैं हम साल के इस आखिरी सप्ताह की अपनी चर्चा पोस्ट पेश करने जा रहे हैं। कुछ और लिखने के पहले बता दें कि वर्ष २००६ के सबसे अच्छे चिट्ठाकार के चुनाव नजदीक आ गये हैं। कुल ३० चिट्ठाकारों के नामांकन आ चुके हैं। उसमें से १० अच्छे चिट्ठों का चयन निम्न लोग करेंगे:-
१.रवि रतलामी
२.अनूप शुक्ला
३.जीतेंद्र चौधरी
४.संजय बेंगाणी
५.प्रतीक पांडेय

इसके बाद वोटिंग का दौर शुरू होगा। तब तक आप अपने सबसे अच्छे चिट्ठाकार के बारे में निर्णय लेने का काम शुरू कर दीजिये।

आज की पोस्टों में सबसे चर्चित रही श्रीश जी पोस्ट जिसमें उन्होंने शहीद उधम सिंह को याद किया है। शहीद उधम सिंह के बारे में लिखते हुये श्रीश लिखते हैं:-
आज फैशन है कि गांधीवाद का, गांधीगिरी का भगवान को गाली दो लेकिन गांधी की जरा भी आलोचना न करो। अब आप कहेंगे कि इसमें गांधी का क्या कसूर है, है कसूर लेकिन उसकी बात कभी बाद में अलग से करुँगा। हमें पढ़ाया जाता है, बताया जाता है यही सब। गांधी जी ने अफ्रीका से आने के बाद अंग्रेजों की कभी एक लाठी भी न खाई।

मजे की बात है कि इतने के बावजूद जब आशीष लिखते हैं :-
लेकिन मेरी समझ मे ये नही आता कि उधमसिंह की महानता गांधी नेहरू की आलोचना करने से कैसे बढ जायेगी ? क्या किसी भी शहीद को महान सिद्ध करने के लिये उसे किसी और से तुलना करना(किसी और की आलोचना) जरूरी है ?

तो पंडितजी बड़े आत्मविश्वास से कहते हैं:-
आशीष भाई, पोस्ट ध्यान से पढिए। मेरा निशाना गांधी नहीं उनके तथाकथित चेले हैं जो जानबूझकर अन्य शहीदों का अपमान करने पर तुले हैं। इसका एक सामान्य उदाहरण था अंडमान-निकोबार में वीर सावरकर का चित्र हटाया जाना।

अब जब तक आशीष ध्यान से पढ़ें तब तक आप शहीद उधमसिंह के बारे में जानकारी प्राप्त कर लें:-
क्रांतिवीर उधम सिंह का जन्म पंजाब-प्रांत के ग्राम सुनाम (जनपद - संगरुर) में २६ दिसंबर १८९९ को हुआ था। इनके पिता का नाम टहल सिंह था। वर्ष १९१९ का जलियांवाला बाग का जघन्य नरसंहार उन्होंने अपनी आँखों से देखा था। उन्होंने देखा था कि कुछ ही क्षणों में जलियांवाला बाग खून में नहा गया और असहाय निहत्थे लोगों पर अंग्रेजी शासन का बर्बर अत्याचार और लाशों का अंबार। उन्होंने इसी दिन इस नरसंहार के नायक जनरल डायर से बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी। प्रतिशोध की आग में जलते हुए यह नर-पुंगव दक्षिण-अफ्रीका तथा अमरीका होते हुए वर्ष १९२३ में इंग्लैंड पहुँचा। वर्ष १९२८ में भगतसिंह के बुलाने पर उन्हें भारत आना पड़ा। १९३३ में वह पुनः लंदन पहुँचे। तब तक जनरल डायर मर चुका था, किंतु उसके अपराध पर मोहर लगाने वाला सर माइकल-ओ-डायर तथा लॉर्ड जेटलैंड अभी जीवित था।

आगे शहीद उधमसिंह की वीरता और बलिदान का जिक्र करते हुये श्रीशजी ने लिखा:-
आज जिस लोक में वे हों क्या उन देशभक्तों को उनकी उपेक्षा पर दुख हो रहा होगा ? बिल्कुल नहीं क्योंकि उनका जीवन गीता के निष्काम कर्म का जीवंत उदाहरण था। उनकी खासियत ही यही थी कि उन्हें बस सरफरोशी की तमन्ना थी बदले में कुछ चाहते होते तो कांग्रेसियों की तरह धरने-सत्याग्रह करते और नेता बनते।

आज की दूसरी उल्लेखनीय पोस्ट है शैशव में सफाई के महत्व को रेखांकित करती हुयी पोस्ट! इसमें गांधीजी कहते हैं:-
'मेरा बस चले तो उस रास्ते को झाड़ू लगाकर साफ-सुथरा कर दूँ। इतना ही नहीं, बल्कि वहाँ फूल के पौधे लगा दूँ। रोज पानी दूँ और आज जहाँ घूरा है , वहाँ सुन्दर-सा बगीचा बना दूँ। सफाई का काम एक कला है, कला।’


अफलातूनजी आगे बताते हैं:-
बापू ने जिन संस्थाओं की स्थापना की , उनका मुख्य दफ्तर उस क्षेत्र की एक प्रयोग-शाला ही बन जाती थी। मगनवाड़ी में एक तरफ तेल घानी चलती थी , तो दूसरी तरफ हाथ - कागज बन रहा था। वाड़ी में जगह - जगह मधुमक्खी - पालन की पेटियाँ दिखाई दे रही थीं। विविध प्रकार की आटा पीसने की चक्कियों के प्रयोगों में खुद बापू भी भिड़ जाते। इन उद्योगों के साथ-साथ ग्रामोद्योगों की तालीम देने के लिए विद्यालय भी चलाया जा रहा था। देश - विदेश में अर्थशास्त्र की विद्या पढ़ने के बाद , ‘ भारत के अर्थशास्त्र की कुंजी तो ग्रामोद्योगों में ही है
संजय बेंगाणी बाजार की ताकत के बारे बताते हुये कहते हैं:-
बाजारबाद धन्य है, जो काम ईसाई मिशनरीयाँ शताब्दीयों तक काम कर नहीं कर पाती वह बाजार ने कर दिखाया. जो रौनक दीपावली-ईद पर नही दिखती वह एक ब्लॉगर को क्रिसमस में दिखी. मुझे किसी धर्म से कोई बैर नहीं, बस जो देखा वह लिखा.बाजार का ही प्रभाव है जो, सेलिब्रिटी लोग जिन्हे कम से कम हिन्दी तो नहीं ही आती या फिर अपने स्टेटस को बनाए रखने के लिए उन्हे हिन्दी को भूलने जैसे बलिदान करना पड़ता है वे भी हिन्दी में बोलने पर मजबूर है. कैसे?

इस पोस्ट की तारीफ़ करने के साथ-साथ यह भी कहना चाहूंगा कि अगर संजय भाई साल के शुरूआत में कुछ प्रण-षण करने के चोचले में पड़ते हों और समझ न आ रहा हो कि क्या करें इस साल तो यह सोचें कि लिखने में वर्तनी की अशुद्धियां कम करने का प्रयास करेंगें। तब तक चला लेंगे और 'बाजा़र' की जगह 'बजार', 'मिशनरियाँ' की जगह 'मिशनरीयाँ' और 'शताब्दीयों' की जगह 'शताब्दियों' से काम चला लेंगे। इसमें हम मुस्कराहट के निशान के चक्कर के चोचले में नहीं पड़ रहे हैं।
कविता रीतेश जी लिखी है। कुछ प्रेम से संबंधित है। लेकिन भाव अस्पष्ट से हैं। शायद मुझे ही ऐसा लगा हो। आप लोग भी देखें:-
बस नाम के ही प्रेम हैं मिलते यहाँ पर
नहीं मिलता रामसेवक और कर्मवीर यहाँ
नाम से छोटे हुए आज मेरे कर्म भी
है हमें विस्तार की जरूरत
यह सुकुड़ते नाम का युग है

हालांकि इसका जिक्र हो चुका है लेकिन यदि किसी ने न पढ़ी हो तो समीरलाल जी की गीता सार वाली पोस्ट पड़ ले। मजे की बात यह हल्की-फुल्की मौज-मजे की पोस्ट हमने अभी-अभी पढ़ी। जिसमें समीरलाल कहते हैं:-
एक पोस्ट पर ढ़ेरों टिप्पणियां मिल जाती है,
पल भर में तुम अपने को महान साहित्यकार समझने लगते हो.
दूसरी ही पोस्ट की सूनी मांग देख आंख भर आती है और तुम सड़क छाप लेखक बन जाते हो.

टिप्पणियों और तारीफों का ख्याल दिल से निकाल दो,
बस अच्छा लिखते जाओ... फिर देखो-
तुम चिट्ठाजगत के हो और यह चिट्ठाजगत तुम्हारा है.

यह सरलता से मौज लेने का अंदाज समीर भाई की खाशियत है। उन्मुक्तजी ने पंत-बच्चन विवाद की आखिरी पोस्ट लिखी। अपने विचार बताते हुये उन्होंने लिखा:-
मैंने इस विवाद के बारे में संक्षेप में लिखा। इस भाग में, इस विवाद के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। जिसे न मैं उचित समझता हूं, न ही उसका इससे अधिक जिक्र करना - पढ़ने के बाद दुख हुआ। शायद बड़ा व्यक्ति होने के लिये केवल बड़ा साहित्यकार होना जरूरी नहीं, इसके लिये कुछ और होना चाहिये।

चलते-चलते आप रतलामी के द्वारा पेश किये गये आज के देशी कार्टून देख लें और महाभारत कथा में जी के अवधिया जी के माध्यम से द्रौपदी स्वयंवर की कथा सुन लें।
दफिलहाल चिट्ठाचर्चा में इतना ही। आगे की चर्चा अतुल करेंगे अगर पिछली बार की तरह व्यस्त नहीं रहे। इसके बाद देबाशीष और जीतू इस साल की चर्चा करेंगे। बेंगाणी बन्धु भी साल के जाते-जाते कुछ लिखेंगे ही। यह बात तुषार जोशी जी से भी कह सकता हूं।

आज की टिप्पणी:-


1.गीता की नवीनतम व्‍याख्‍या के लिये श्री श्री श्री 007 समीर लाल जी महाराज के चरणो मे उनके भक्‍त श्री 420 प्रमेन्‍द्रानन्‍द के द्वारा उनके चरण कमलो मे उनके ज्ञान द्वारा एक तुच्‍छ व्‍यायाख्‍या........

तुम क्‍यो खडे हो किसके लिये खड़े हो।
यहॉं तुम्‍हारा कौन है। कभी खुद से चिन्‍तन किया कि कभी किसी को टिप्‍पणी की नही दूसरे से क्‍या अपेक्षा रखते है। कभी अपने घर का वोट पाया है, क्या तुम्‍हारी बात को तुम्‍हारे सगे सम्‍बन्धियों ने तुम्‍हारा सर्मथन किया है तो बीच बाजार आ कर वोट मागने खडे हो गये हो। अपने आप को देखो तुम्‍हे नही लगता कि अपनी कविताओं को सुना कर तुमने कितने अनगिनत पाप किये है। कितने अबोध विद्याथियों का श्राप (अपना तो लिख गये, और हमारे सिर पर मढ गये)तुम्‍हारे सिर उठाये हुये हो, उनके मुँह से निकली एक एक आह तुम्‍हे चैन से नही मरने देगी।
प्रेमेन्द्र

२.इस 'चिट्ठा-गीता' ने मन के दर्पण पर जम रही सारी धूल पौंछ डाली . प्रवचन से समझ पाया कि यह 'चिट्ठा-जगत' आभासी है और 'चिट्ठा-जीवन' नश्वर . अपने चिट्ठे के प्रति माया-मोह के सारे बंधन कट गये . अब ज्ञान की मुक्तावस्था में विचरण कर रहा हूं . गुरु उड़नस्वामी को प्रणाम!
प्रियंकर

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बुधवार, दिसंबर 27, 2006

मध्यान्हचर्चा दिनांक 27/12/2006

संजय एक लम्बे अंतराल के बाद कक्ष में कदम रख रहे थे. धृतराष्ट्र का नाराज होना स्वभाविक था. धृतराष्ट्र कोफी का घूँट लेते लेते रूके.
धृतराष्ट्र : तुम लम्बी-लम्बी छुट्टियाँ मारने लगे हो.
संजय : क्या फर्क पड़ता है, महाराज? आपने देखा होगा मैं आँखे फाड़ फाड़ कर हाल सुनाता हूँ, पर कोई टिप(णी) नहीं देता. वे अगर कह दे की आज नहीं फिर कभी लिखेंगे तब भी वाह-वाह करते हुए टिप(णी) दी जाती है.
धृतराष्ट्र : पर तुम्हारा जो काम है, वह तो करना ही है.
संजय : सही है. पर जब कोई यह लाँछन लगा कर की सारा काम तो इसने निपटा दिया, हम क्या करते. इसलिए नहीं लिखा. और टिप(णी) पर टिप(णी).....
धृतराष्ट्र : देखो संजय, अभी अपना स्तर ठीक करने पर ध्यान दो.... जब तुम अनुप, समीर, जीतु, खंडेलवाल.... इनके आस-पास भी पहुँच गए सबसे पहले मैं टिप(णी) दुंगा. अभी मेहनत करो, सिखो...
संजय : आप शायद सही कह रहें है.
धृतराष्ट्र : तो अब राजी मन से चिट्ठा-दंगल का हाल सुनाओ.
संजय : महाराज यहाँ आकर सब नत-मस्तक हो रहे हैं. पण्डितजी याद दिला रहें है शहीद उधमसिंह की. अफ्लातुनजी भी अपने शैशवकाल को याद करते हुए महानायक की प्रयोगशाला को याद कर रहे हैं.
धृतराष्ट्र : राष्ट्र-नायको को नमन.
संजय : महाराज, चाहे कुछ भी हो जाए हम क्रिकेट को नहीं भूल सकते. एक मैच हुआ अधिवक्ताओं का, और हाल सुना रहें हैं महाशक्तिजी.
इधर वर्तमान घटनाक्रम पर बड़ी उम्मीदों से कार्टून बनाया है, रविजी ने और भविष्य की सम्भावनाओं पर कार्टून पेश किया है राजेशजी ने.
बात भविष्य की है तो, हिन्दी का भविष्य बाजार के हाथो उज्जवल दिख रहा है जोगलिखी पर.
धृतराष्ट्र : अच्छी बात है, अब जरा कवियों को टंटोलो.
संजय : महाराज नए साल का स्वागत हाईकु से कर रही हैं पूनमजी. तापसजी आत्म-संवाद में लीन मन को रणभूमि बनाये हुए हैं तो, राजेशजी जिन्दगी की वेदना से जूझ रहे हैं.
धृतराष्ट्र ने कोफ़ी का घूँट भरा. संजय ने आँखे उठाकर देखा फिर अपना ध्यान लैपटोप की स्क्रीन पर लगा दिया.
संजय : महाराज सुख सागर में आज द्रोपदी का स्वयंवर हो रहा है.
वर्षांत में फिल्म देखने का कोई कार्यक्रम हो तो काबुल एक्सप्रेस तथा भागम-भाग की समीक्षा पढ़ कर जाना श्रेयकर रहेगा. रोचक विज्ञापन देखने की इच्छा हो रही हो तो यहाँ आपका स्वागत है.

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हम होंगे कामयाब




अब लो कर लो बात, हमारे ई-पंडित जी अपने होनहार छात्रों से आपका परिचय करवाने लाये हैं, पूरी उत्तर पुस्तिका के साथ. बालक बड़े ही होनहार हैं और इन हाथों में देश का भविष्य उज्जवल दिखाई दे रहा है. आप भी देखें:


प्रश्न: रंगीन काँच किस प्रकार बनाया जाता है ?
उतर: रंगीन काँच बनाने के लिए काँच को पिघलाकर उसमें अनेक प्रकार के रंग मिलाकर रंगीन काँच बनाया जाता है।
(इटस सो सिम्पल यार)


बाकि की उत्तर पुस्तिका तो पंडित जी पाठशाला में ही देखें. जबाब पसंद आयेंगे, न आये तो पाठशाला की फीस माफ और साथ में फ्री जुगाड़ी लिंक की व्यवस्था आपके लिये अलग से की जायेगी.

अरे भई, आप तो सिरियस हो गये कि फीस माफ कराओ अब!! अरे, ऐसा क्या बिगड़ गया जो इतना हल्ला मचाते हो, क्या लाये थे जो लुटा आये इतनी सी १० लाइन पढ़ने में. पूरी गीता तुम्हें यही समझाने के लिये लिखी गई और तुम हो कि समझते नहीं. यह देखो, फिर से गीता सार, सिर्फ तुम्हारी इन्हीं हरकतों की वजह से उड़न तश्तरी ने इतनी वजनी किताब का सार निकाला गया है ताकि थोड़ा पढ़ो ज्यादा जानो की तर्ज पर कुछ तो समझ ही जाओगे:

कल टिप्पणी नहीं मिली थी, बुरा हुआ.
आज भी कम मिली, बुरा हो रहा है.
कल भी शायद न ही मिले, वो भी बुरा होगा.

व्यस्तता का दौर चल रहा है...


बाकी वहीं जाकर पढ़ो, फायदा करेगा यह ज्ञान, इसी चिट्ठाजगत के लिये है. जब पढ़कर आप ज्ञानी हो जायें तब राजीव जी की प्रेम के प्रति आस्था देखने पहूँचें. तभी ठीक से समझ आयेगी. ज्यादा गहराई में उतरना हो तो पढ़ो सृजन शिल्पी की पेशकश शमशेर की कवितायें और फिर टटोलें, रंजु जी का बंजारा दिल वो भी तन्हा तन्हा. वैसे नया कम्बो स्पेशल है बंजारा दिल और तन्हा तन्हा.

खैर, गहराईयों की कमी नहीं है, चाहिये मात्र एक बेहतरीन गोताखोर. तो देखिये हमारे डिप गोता एक्सपर्ट डॉ प्रभात टंडन, दवाखाना छोड़ ओशो के प्रवचनों में डूबे बैठे हैं और ज्ञान गंगा का पूरा पानी, डैम फोड कर बहा रहे हैं. संभल कर जाना, करंट बहुत तेज है, कहीं बह ही न जाओ. जाने के लिये अगर रेलगाडी से जाना हो, तो रास्ते के लिये कुछ चुटकुले लेते जाओ, जीतू भाई से.

रवि रतलामी के देसीटून्ज़ का मजा लो और जब मजा आ जाये, तो हँसी मजाक छोड़ थोड़ा ज्ञान भी वहीं से उठा लो ब्याज में-मॅड्रिवा लिनक्स पर हिन्दी.

सुनामी की विभीषिका की याद अभी भी एकदम ताजी है हर दिल दिमाग पर, तो सुने रचना जी दो वर्ष पूर्व इससे व्यथित हो क्या लिखा था.

उन्मुक्त जी के बच्चन-पंत विवाद और तपस की रणभूमि से दूर राकेश खंडेलवाल जी अपना ही एक अलग गीत गुनगुनाने में व्यस्त हैं-बस एक नाम, वह नाम एक


वह चेतन और अचेतन में
वह गहन शून्य में टँगा हुआ
विस्तारित क्षितिजों से आगे
है रँगविहीन, पर रँगा हुआ
जीवन पथ का वह केन्द्र बिन्दु
जिसके पगतल में सप्त सिन्धुव
ह प्राण प्रणेता, प्राण साध्य
वह इक निश्चय, अनुमान एक

बस एक नाम वह नाम एक



और शैशव पर देखें बापू की प्रयोगशाला का भाग ८ और दिल्ली से मनीषा जी कह रही है कि अगले साल भी रहेगी निवेशकों की मुस्कान. हम तो सभी यही चाहते हैं कि अगले साल ही क्यूँ-यह सिलसिला तो हर साल कायम रहे.

अब चलते चलते रत्ना जी को भी ढ़ेरों शुभकामनायें उनके इस दृढ़ प्रतिज्ञा के लिये कि हम होंगे कामयाब.

अब चलने की तैयारी. सभी को नमन.

आज की टिप्पणी:

संजय बेंगाणी -डॉ प्रभात टंडन के चिट्ठे पर:

साधूवाद. उम्दा लिखा है.
परिवार नियोजन का विरोध खुदा की मर्जी का वास्ता देकर करने वाले, बिमार पड़ने पर या दूर्घटना होने पर दवाईयाँ न ले कर दिखाए. आखिर खुदा की मर्जी जो तुम्हे बिमार किया, बचाना होगा तो बच जाओगे. दवाई लेकर खुदा के काम में टाँग काहे डाल रहे हो?

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मंगलवार, दिसंबर 26, 2006

क्रिसमस, चिट्ठे और................

क्रिसमस का दिन समय बहुत कम,चिट्ठा चर्चा करनी है
यही सोचकर आया, लेकिन चिट्ठाकार नदारद थे
इधर नजर दौड़ा कर देखा, और उधर नजरें डालीं
लेकिन केवल तीन संदेसे लेकर आये नारद थे

सबसे पहले,खुशी नहीं है महाशक्ति ने बतलाया
यद्यपि तिहरा शतक एक उनके ही हिस्से में आया
ढूँढ़ रहे चेतना, कल्पना में दिव्याभ व्यस्त होकर
लोकतेज ने बेघर होने का इक किस्सा बतलाया

इसके बाद घिरी जो बदली,उससे बून्द नहीं टपकी
घिरा अँधेरा और न कुछ भी चिट्ठों पर आकर बरसा
अब छुट्टी के बाद लिखेंगे उड़नतश्तरी के तेवर
उनको ही अंबार मिलेगा चिट्ठों का रत्नाकर सा

आज का चित्र: वाशिंगटन डीसी में २००६ का राष्ट्रीय क्रिसमस वॄक्ष


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सोमवार, दिसंबर 25, 2006

केबीसी – 3: पृथ्वी का सर्वाधिक खूंखार जानवर कौन है?

(चित्र- दर्पण)

चिट्ठाकारों को, पता नहीं कैसे, किंग खान द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले केबीसी -3 के कुछ एपीसोड के सवाल जवाब हाथ लग गए. प्रश्नोत्तरी आपके लाभार्थ निम्नानुसार प्रस्तुत की जा रही है.

केबीसी: पृथ्वी का सर्वाधिक खूंखार जानवर कौन है?

उत्तर : ...

बंदरो के वंशज मनुष्य ...। इसके पास न तेज दांत, न जहर, न पंजे, न मजबूत शरीर है। पर फिर भी पृथ्वी पर कोई अन्य प्रजाति इसके कहर से मुक्त नहीं। यह अन्य प्रजातियों के लिए ही नहीं स्वयं अपनी ही प्रजाति को मारने, बंदी बनाने और पीड़ा देने से नहीं कतराता। यह भूख और सुरक्षा के लिए ही नहीं मज़े और विश्वास के लिए भी मारता है। सिर्फ यह ही एक ऐसा प्राणी है जो एक साथ हजारो, लाखों को मारने की शक्ति रखता है। इसके कहर की कोई सीमा नहीं। कोई ईश्वर पृथ्वी को मनुष्य से नहीं बचा सकता।

केबीसी: मनुष्य कौन है?

उत्तर:

अब इक्कीसवीं सदी में सुपर कंप्यूटर की सहायता से प्रमाणित हुआ है कि वास्तव में मनुष्य के ९८.८ प्रतिशत जीन्स चिम्पांजी (बन्दर जाति का सदस्य) के समान है, ६० प्रतिशत जीन्स चूहे के और 0.5 प्रतिशत जीन्स बैक्टीरिया के समान है।

केबीसी : आज का आह्वान क्या है?

उत्तर: बहुत आसान है:

चल उठा तलवार फिर से,ढूंढ फिर से कुछ वजह

धर्म का फिर नाम ले तोड़ो इमारत बेवजह

फिर मचे कोहराम और फिर आग उठे हर गली

डूबने पाये शहर का, नाम फिर न इस तरह.

केबीसी: हाथी और आदमी में क्या समानता है?

उत्तर: पूरी समानता है:

....न्यायमूर्ति डॉ. कोठारी ने हथिनी को मानव के समकक्ष होने का निर्णय दिया....

केबीसी: रोग भगाने का सबसे मजेदार उपाय क्या है?

उत्तर : गाना सुनिए.

केबीसी: तोप के गोले कितने मिमी आकार के होते हैं:

उत्तर :

आजकल विश्व में जिन गोलों का सबसे ज्यादा चलन हैं वे १५५ मिमी व्यास के होते हैं। पुरानी तोपों के लिये १०५ मिमी,१२५ मिमी, १३० मिमी के गोले भी बनते हैं। सारी दुनिया धीरे-धीरे १५५ मिमी तोप की तरफ बढ़ रही है।

केबीसी : गूगल की टक्कर का सर्च इंजिन कौन सा है?

उत्तर :

टक्कर का अभी तो नहीं है, पर भविष्य की कौन कहे?

केबीसी : कूड़े का ढेर का दूसरा अर्थ क्या है?

उत्तर : धूम - 2

केबीसी : सर्वज्ञ के लिए एंटीपिक्सेल बटन किसने बनाया?

उत्तर :

मिर्ची सेठ को मालूम होगा.

केबीसी : किसी व्यक्ति के हस्तरेखा को देख कर क्या पता लगाया जा सकता है?

उत्तर :

उसकी हथेली की रेखाओं को देखकर यह बता पाना कि उस व्यक्ति की शादी कब होगी, वह कितनी शादियां करेगा, कितने बच्चे होंगे, या नहीं होंगे। यह सब बता पाना नामुमकिन है। यह सब भी ढकोसला है।

दूसरे राउंड का रेपिड फ़ायर सवाल- जवाब:

केबीसी : अंतिम पंक्ति में खड़े होने का साहस कौन कर सकता है?

उत्तर : नीरज दीवान

केबीसी : किसी भी चुनाव में भाग लेने वाले प्रत्याशियों के उत्साह का क्या राज होता है?

उत्तर : मैं भी सोचने को मजबूर हूँ...

केबीसी : दिल में कसक कब जगती है?

उत्तर : जब बारिश की बूंदें टपकती हैं

केबीसी : किस किताब के जरिए उस्ताद को जान सकते हैं?

उत्तर : इस किताब के जरिए.

केबीसी : हाइकु दिवस समारोह कब मनाया जाता है?

उत्तर : कब का तो पता नहीं, पर यहाँ मनाया जाता है.

केबीसी : सर्वोपरि क्या है?

उत्तर : मानवता

केबीसी : गुरुओं का गुरु कौन है?

उत्तर : ओये गुरू

केबीसी : जयपुर में किसकी शादी का निमंत्रण है?

उत्तर : कुत्तों की.

केबीसी : बापू की गोद में क्या बीता?

उत्तर : शैशव

केबीसी : लोग समय कहाँ नष्ट करते हैं?

उत्तर : ऑरकुट में

**-**

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रविवार, दिसंबर 24, 2006

चिट्ठा चर्चा: बदलते समय के त्योहार

चुनावों के इस दौर मे २३ तारीख का चिट्ठा लेकर हम हाजिर हूँ। अरे इ का? हम तनिक लेट हुई गए तो देबाशीश ने दन्न से २४ तारीख की चिट्ठा चर्चा भी कर दी। अरे दादा! इत्ती जल्दी का थी, क्रिसमस मनाने जा रहे हो का? खैर हम तो अपनी दिहाड़ी मजबूत करें, नही तो शुकुल दनदानाते हुए तगादे का फायर कर देंगे।

तो भैया शुरुवात करते है, मिसरा जी के क्रिसमस पूर्व भोज की तस्वीरों से, मिसरा जी, जम के माल छान रहे है, तनिक देखा जाए। हमरी तरफ़ से भी सबको सुर में मैरी क्रिसमस बोला जाए। अरे इ का, इधर बबुआ अमित बदलते समय के बदलते त्योहारों से नाराज होइ गवा है, हम पर नही रे, हम पर होता तो हम का चर्चा करने लायक रहते? ये तो इन ससुरी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर नाराज है। बहुत देर धकापेल नाराजगी जताने के बाद, कहता है:
मुझे क्रिसमस पर कोई आपत्ति नहीं है, त्योहारों का मकसद खुशियाँ मनाना होता है, और खुशियाँ किसी एक संप्रदाय या धर्म आदि की जाग़ीर नहीं। उन पर सभी का अधिकार है। इसलिए चाहे दीपावली हो या ईद या क्रिसमस, अपन तो हर वक्त खुशी मनाते हैं। लेकिन यह बर्ताव थोड़ा अजीब सा लगा कि ये तथाकथित हाई-फ़ाई बड़ी दुकानें केवल पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करते हैं। जिस बाज़ार में हैं वहाँ के लोकल ज़ायके का भी ख़्याल रखना चाहिए।


अरे अमितवा नाराज ना हो, इ तो पूंजीवाद है, ससुरा जो चीज बिकने वाली होगी, बिकबै करि। का तीज त्योहार, राष्ट्रीयता, धर्म, समाज, जो कुछ भी होगा, उस पर बाजार लग जाएगा। तुम अपन स्वास्थ्य का खयाल रखो, इत्ता मत सोचों, कही चिन्ता मे अपना वजन कम कर दोगे, तो तकलीफ़ हो जाएगी, ऊ का है कि वजन बहुत जरुरी है। इधर महाशक्ति वाले प्रमेन्द्र बबुआ फिर लोगो से माफी मांग रहे है काहे? आप खुदैई पढ लो

चुनाव के दौर मे घोषणा पत्रों का दौर चालू है, जनप्रतिनिधि, राजनीतिक समीकरणो के गणित लगाकर, देश की जनता से राम और अल्ला के नाम पर वोट मांगते है। ऊपर से आशवासान भी देते है कि कि बुनकरों के दिन फिरेंगे, आखिर रोजगार देने मे भारत सबसे आगे है। ना ना, ये चुटकुला नही था, ये तो खबर थी, चुटकुला तो इधर मुन्ना भाई सुना रहे है, तो इधर ससुरी मुर्गी बदलचल निकली, मुर्गा अब सनम बेवफ़ा का गाना गाएगा। अब बेचारा मुर्गा आखिर कब तक, अपने बीते हुए पलों के एहसास मे जिए। आज पौराणिक कथाओ मे बकासुर वध पढिए और हास्य व्यंग के लिए राग-दरबारी का अगला अंक। देबाशीष आपके लिए स्वादिष्ट पुस्तचिन्ह लाए है तो रवि भाई सवाल ठोक दिए कि, बूढी गइया किसके काम की होती है? आप भी जवाब दे दीजिए। शशि के अभी भोजपुरी लोकगीत चल रहे थे उधर से भोजपुरी कहावतों का जवाबी कीर्तन भी चालू है।

आज की तस्वीर का शीर्षक है खाना कब चालू होगा?


आज की टिप्पणी : उड़नतश्तरी द्वारा, उन्मुक्त के ब्लॉग पर
आप चुनाव में विजयी हों-हमारी शुभकामनायें. और यदि प्रतिद्वन्दी की शुभकामना पाकर दिल भर आया हो, आँखें नम सी लगें या गला रुँध जाये, तो नाम वापस ले लेना. मन हल्का लगेगा.
:)

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कस्मे वादों से गूँज रहा है गली मोहल्ला

रवि परेशान हैं कि मोबाइल कंपनियों मोबाइलें तो बेचती हैं मगर यूजर्स मैनुअल में दो पन्ने मोबाइल मैनर्स के लिए नहीं रखतीं
आपका कोई पुराना मित्र, जिसके दर्शन महीनों से नहीं हुए होते हैं, अचानक-अकारण आपसे बे-वक्त मिलने आ पहुँचता है. यूँ ही आपके दर्शन करने. उसके हाथ में नया, चमचमाता हुआ, लेटेस्ट वर्जन का मोबाइल फ़ोन होता है. आपको देर से ही सही, समझ में आ जाता है कि दरअसल, आपके मित्र को नहीं, आपके मित्र के नए, कीमती, नए-फ़ीचर युक्त मोबाइल को आपसे मिलने की आवश्यकता थी.
मनीषा बता रही हैं कि भारत में रोजगार का बाजार उछाल भर रहा है, केवल सूचना प्रोद्योगिकी ही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी
वर्ष 2007 की पहली तिमाही में यहां रोजगार के अवसरों में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी की संभावना है। वहीं, चीन में इस दौरान रोजगार में महज 18 प्रतिशत का इजाफा होगा यानी भारत इस मामले में एशिया में सबसे आगे है।
भागमभाग देख कर भाग खड़े हुये शशि फिल्म से नाखुश हैं पर फिर भी कहते हैं
जिस तरह मरा हाथी भी सवा लाख का होता है उसी तरह प्रियदर्शन की बुरी फिल्म भी दर्शकों के लिए हमेशा से पैसा वसूल हैं. तीन घंटे अगर आप अपने दिमाग के बगैर गुजारा कर सकते हैं तो इस समीक्षा को भूलकर सिनेमाघर की तरफ रूख किया जा सकता है.
तरकश के उभरते चिट्ठाकार पुरस्कार आयोजन के लिये सरगर्मी तेज़ है। सब प्रचार पर निकले हैं,
चुनाव का दौर है, देखो चारों ओर
सफेद कपडे पहन के घूम रहे हैं चोर।
घूम रहे हैं चोर, मचा रहे हैं हल्ला गुल्ला
इनके कस्मे वादों से गूँज रहा है गली मोहल्ला।
इन रेलमपेल में भी नायाब पोस्ट लिख बैठै शुकुल जी, उनके हर पोस्ट की हर लाईन पर वाह वाह करने को दिल करता है, कुछ उल्लेखनीय कथन
  • जैसे कि असफल लेखक श्रेष्ठ आलोचक की कुर्सी हथिया लेता है वैसे ही कभी इनाम न पाया हुआ व्यक्ति हमेशा बढ़िया तरह से बंटबारा कर सकता है।
  • इंडीब्लागीस में जो लोग अभी तक इनाम पाये हैं उन लोगों ने इनाम पाने के बाद सबसे पहला काम यह किया है कि लिखना छोड़ दिया या कम कर दिया। आलोक, अतुल, शशिसिंह इसके गवाह हैं। डर यही है कि उभरता हुआ चिट्ठाकार कहीं उखड़ता हुआ चिट्ठाकार न बन जाये!
  • अब मुन्ने की अम्मा हैं, मुन्ने के बापू हैं लेकिन मुन्ना कहीं दिखता नहीं। ये तो ऐसे ही है कि किसी विकास और शील रहित देश को कोई कहे कि वो विकासशील देश है।
  • मजाक क्या पद और गोपनीयता की शपथ है जो हम इसे खाकर भूल जायें। बिना मौज लिये तो हम सांस भी नहीं ले पाते। इहै हमार इस्टाइल बा!
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    शनिवार, दिसंबर 23, 2006

    मध्यान्हचर्चा दिनांक: 23-12-2006

    संजय खस्ताहाल अवस्था में कक्ष में कदम रखा, आज वे दिन भर खुब व्यस्त रहे थे. अब हिम्मत नहीं थी की स्क्रीन पर आँखे गड़ाये. पर बॉस का आदेश हुआ की इन दिनो काम में ढ़िलाई आ गई है, तत्काल हाजिर हो.
    संजय : महाराज आँखे थक गई है, ज्यादा दूर तक नहीं देख पाऊँगा, पर चर्चा सुनी न रहे इसलिए थोड़ा भ्रमण कर लेता हूँ.
    धृतराष्ट्र : ठीक, मुझे भी बिना चर्चा सुने कोफी में आनन्द नहीं आता.
    संजय : महाराज चुनावों को लेकर नए ब्लोगर उत्साहित है. घोषणापत्र जारी किये जा रहे हैं. जहाँ पंकजजी, समीरलालजी तथा श्रीशजी ने अपने घोषणापत्र जारी किये थे, सागरचन्दजी , उन्मुक्तजी तथा शुएब ने भी अपना घोषणापत्र जारी किया है. चुनावों को लेकर कोई संशय हो तो इसे दूर करने के लिए यहाँ जा सकते हैं. लगे हाथ महाशक्ति ने भी चिट्ठाजगत में अपनी वापसी की घोषणा कर दी है.
    धृतराष्ट्र : लागी छूटे ना....
    संजय : सही कहा आपने. भोजपुरी के गीत ले कर आएं हैं शशीसिंह तथा कहावते लाएं हैं प्रभाकरजी.
    धृतराष्ट्र : कवियों का क्या हाल है?
    संजय : महाराज एक कि खबर तो है की वे उड़नतश्तरी पर सवार हो सैर पर चले गए हैं बाकि रंजूजी कुछ उदास-सी है. बिते हुए पल में आखिर कब तक उनका अहसास पाती रहें.
    रविजी इंटरनेट के फ़िशिंग हमलों से सचेत कर रहें है, तो हिन्दू जागरण देश पर हो रहे सांस्कृतिक हमलो को चुनौती दे रहे है.
    महाराज आज इतना ही अब अनुमति दे, मैं होता हूँ लोग-आउट. अगली चर्चा विस्तार से होगी. छूट गए चिट्ठो के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.

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    शुक्रवार, दिसंबर 22, 2006

    रूकावट के लिये खेद है!

    कनाडा से माननीय समीर लाल जी का अनुरोध था कि उनकी पोस्ट भी शामिल कर ली जाये। साथ ही अपनी व्यस्तता भी चिठ्ठा चर्चा करने मे बाधक बन गयी। अतः कृपया शुक्रवार तक का इंतजार करें। गुरूवार को लिखे गये समस्त चिठ्ठे का समीर लाल जी की पोस्ट के फुल स्टाप तक यही हाजिर होगी अगर मिडिल आर्डर के बैट्समैन से अगर बच गई तो।

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    गुरुवार, दिसंबर 21, 2006

    मध्यान्हचर्चा दिनांक: 21-12-2006

    संजय ने कक्ष में कदम रखा तब धृतराष्ट्र पेपरवेट से खेलते हुए काफी की चुस्कियाँ ले रहे थे. संजय को मुस्कान चिपकाए तथा सभी को नमस्ते-नमस्ते करते देख धृतराष्ट्र ने घूरा तो संजय ने मुस्कान को और चौड़ा कर लिया.
    संजय : महाराज चुनाव के माहौल का असर है, अनुपजी ने बताया ही हैं की इंडीब्लोगीज़ तथा तरकश पर चुनाव हो रहे हैं.
    धृतराष्ट्र : पर तुम क्यों उम्मीदवारों की तरह दुआ सलाम करते फिर रहे हो? और कल कहाँ थे?
    संजय तब तक लैपटोप की स्क्रीन में खो गए थे.
    संजय : महाराज, चुनावी टंटो में फस गया था. और यह देखिये पहला घोषणापत्र भी आ गया है, ई-पंडितजी का.
    इधर शत शत नमन करते हुए गिरिराजजी चुनावी माहौल पर चिट्ठाकारों की मौज ले रहे है. कृपया अन्यथा न ले.
    धृतराष्ट्र : अब यहाँ से बाहर भी निकलो.
    संजय : (झेंपते हुए) महाराज शुएब खुदा का वास्ता दे कर सागरजी को हँसाने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं ओशो के हँसते हुए धर्म के लतिफे सुना कर हँसा रहे हैं मटरगशती करते प्रभातजी.
    धृतराष्ट्र : सभी मटरगशती कर रहें हैं या कोई अनुशासन भी है?
    संजय : स्नेह और अनुशासन दोनो है, बापू की गोद में. देखें अफ्लातूनजी के शैशव के संस्मरण.
    वहीं सृजन शिल्पी के साथ पाँच वर्ष बाद के भारत को देखते हुए वैकल्पिक दिशा में सोचें.
    या फिर नितिन बागलाजी के साथ बैठ कर अवलोकन करे साल 2006 का तथा प्रतिक्षा करें की नए साल में पायरेटेड किताबे नहीं खरिदेंगे.
    कहीं आपका यह साल बिहारी बाबू की तरह पहेलियों में तो बीता नहीं जा रहा है?.
    धृतराष्ट्र : अभी हमने अवलोकन नहीं किया, करेंगे तो बता भी देंगे.
    संजय : क्षमा करें महाराज, घूम कर उसी विषय पर लौटना पड़ रहा है. चुनाव सम्बन्धी जरूरी सुचना जोगलिखी पर लिखी गई है, तथा तरकश पर पुरस्कारों की सूची रखी गई है. इसलिए बताना जरूरी हो गया था.
    धृतराष्ट्र : ठीक है.
    धृतराष्ट्र ने कोफी का अंतिम घँट भरा.
    संजय : महाराज मैं जहाँ तक देख पा रहा था आपको हाल सुना दिया, अब आप जुगाड़ी लिंको का आनन्द लें और मैं होता हूँ लोग-आउट.

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    हम कहा बड़ा ध्वाखा हुइगा

    कल समीर लाल जी की लिखी पोस्ट उड़ गयी वो इतने में ही रोने लगे। हमने कहा, ब्लाग से पोस्ट उड़ने पर इतना रोना! जिनके हाथ के तोते उड़ते होंगे उनका क्या हाल होता होगा! पहली बार उड़ने पर ऐसा ही होता है। हमारे साथ तो ये अक्सर होता है। पता नहीं समीरलाल जी के साथ ऐसा पहली बार कैसे हुआ? जरूर कुछ गड़बड़ है। इसकी जांच करानी पड़ेगा!
    एक तरफ़ इंडीब्लागीस का सरगर्मी शुरू हो गयी है। इनाम देने के लिये स्पांसर्स की खोज होने लगी है। आपका भी मन करे तो एकाध इनाम की घोषणा कर दीजिये। दूसरी तरफ़ तरकश टीम भी कह रही है कि वो ब्लागर को इनाम दे के ही मानेगी! इनाम वो भी नये ब्लागर को। हम अपने को कोस रहे हैं क्या जरूरत थी हड़बड़ी करने की! साल-डेढ़ साल रुक जाते तो आज कम से कम नामीनेशन की हालत में तो होते! लेकिन अब बीता हुआ समय वापस आ नहीं सकता! रोने से क्या फायदा यह सोच कर चर्चा शुरू करते हैं।

    चर्चा की शुरुआत आदि चिट्ठाकार कबीरदास से। समीरलाल जी ने तमाम शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि कबीरदास जी ने तमाम दोहे लिखे वे चिट्ठाकारों के लिये थे:-
    अब जब उस जमाने में कबीर दास ने अपने सारे दोहे हिन्दी चिट्ठाकारों के लिये लिखे, तो हिन्दी चिट्ठाकार तो रहे ही होंगे नहीं तो क्या उन्हें उस समय सपना आया था? इसका अर्थ यह हुआ कि भक्तिकाल में ही चिट्ठाकाल की भी शुरुवात हुई या उससे भी पहले.
    वो तो कतिपय चिट्ठा विरोधी ताकतों ने उन्हें सामाजिक कवि का दर्जा दे दिया कि सब समाज के लिये लिखा गया. सही कहा मगर चिट्ठा समाज के लिये कहते तो बिल्कुल सही होता.


    अपनी बात के सबूत में समीरलाल जी के कबीरदासजी के सात दोहों का चिट्ठार्थ बताया है। एक अर्थ यहां पर दिया जा रहा है:-
    बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
    पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर


    भावार्थ: चिट्ठालेखन में कोई उम्र से छोटा बड़ा नही होता. उम्र भले ही ८० साल हो मगर यदि आप अच्छा नहीं लिखेंगे तो न तो कोई पढ़ेगा और न ही टिप्पणी मिलेंगी. तो आपका लिखना भी बेकार, आपका समय जो खराब हुआ सो तो हुआ ही (खैर जब ऐसा लिखोगे तो वो तो कौडी का नहीं होगा) और अगर किसी ने गल्ती से पढ़ लिया तो उसका समय और आपकी छ्बी भी खराब. अतः भले ही उम्र से कम और छोटे हो, मगर अगर अच्छा लिखोगे तो पूछे जाओगे. सिर्फ उम्र में बड़ा होने से कुछ नहीं होता है.
    बाकी के दोहों के अर्थ आप समीरलाल जी के चिट्ठे पर पढ़ें। हम तो इंतजार कर रहे हैं कि आगे महिला दिवस के अवसर पर हरि मेरे पीव मैं राम की बहुरिया या दुलहिनि गावहु मंगलचार का सहारा लेकर उनको पहली महिला चिट्ठाकार घोषित करें और इंडीब्लागीस अवार्ड में लाइफ टाईम अचीवमेंट का इनाम दिला दें और जिसे उसके बनारसी वंसज अफलातून परिवार का एकमात्र सद्स्य होने का झांसा देकर झफट ले जायें।

    इधर जब समीरलाल की पोस्ट उड़ रही थी तब श्रीष के होश उड़ रहे थे काहे से कि वे नेट से दूर रहे तीन दिन! अपना दुखड़ा रोते हुये ई-पंडितजी फरमाते हैं:-
    तीन दिन ऑफलाइन जिंदगी कैसे गुजरी मैं ही जानता हूँ। कुछ तो पहले से ही इंटरनेट किए बिना खाना हजम नहीं होता था ऊपर से आजकल सुबह शाम चिट्ठे पढ़े बिना नींद भी नहीं आती। नारद जी की याद सताती थी। सोचता था परिचर्चा, चिट्ठा-चर्चा में क्या चल रहा होगा आदि-आदि।

    जब पंडितजी डायल अप कनेंक्शन को कोश रहे थे तब हम अपने एकमात्र कनेक्शन डायल अप को अपने पहले प्यार की तरह सहलाते हुये अपनी ही कविता दोहरा रहे थे:-

    ये दुनिया बड़ी तेज चलती है
    बस जीने के खातिर मरती है।
    पता नहीं कहां पहुंचेगी!
    वहां पहुंच कर क्या कर लेगी?


    लगे हाथों पंडितजी जो बता रहे हैं की बोर्ड के बारे में वह भी समझ लें तो कोई 'नुसखान' नहीं होगा!

    अब पंडितापे से बात का रुख मोड़ते हैं कुछ घरेलू बातों की तरफ़ जिसमें आपको मुरब्बा बनाने की तरकीब बतायी जायेगी। मुरब्बा बनाया जा रहा है पति का और बताने वाली हैं गीता शा पुष्प! जगह है रचनाकार जो कि रविरतलामी की चौपाल है। कुछ बानगी देखी जाये तरकीब की:-
    यदि आपके पास पति है, तो कोई बात नहीं. न हो तो अच्छे, उत्तम कोटि के, तेज-तर्रार पति का चुनाव करें. क्योंकि जितना बढ़िया पति होगा, मुरब्बा भी उतना ही बढ़िया बनेगा. दागी पति कभी भी प्रयोग में न लाएँ. आवश्यकता से अधिक पके का चुनाव करने से भी मुरब्बा जल्दी खराब हो सकता है. नए ताजे पति का मुरब्बा डाल देने ठीक होता है. नहीं तो मौसम बदलते ही, अन्य सुन्दरियों के सम्पर्क में आने से उसके खराब होने की सम्भावना है.


    इसमें सावधानियां भी बतायी गयीं हैं:-
    बीच-बीच में नाराजगी की धूप गर्मी दिखाना जरूरी है, नहीं तो फफूंदी लग सकती है. पड़ोसिनों और सहेलियों की नज़रों से दूर रखें. यदा-कदा चल कर देखती रहें. अधिक चीनी हो गयी हो तो झिड़कियों के पानी का छिड़काव करें. कभी-कभी ज्यादा मिठास से भी मुरब्बा खराब हो जाता है. चीटिंयाँ लग सकती ह


    अब इसके बाद बंदा आपसे कविता-कानन में विचरण करने के लिये आपकी अनुमति चाहता है। आप भी मेरे साथ चलें तो अच्छा लगेगा। अगर कोई परेशानी हो तो अपना मन बनाने के लिये आप कुछ चुटकुले पढ़ लें, बिगबास की अगली कहानी देख लें इसके बाद भी न मूड ठीक हो तो जीतू के जुगाड़ देख लें और देख लें कि कैसे ब्लागर प्लेटफार्म बीटा से बाहर आ गया है। और अब भी कुछ असहज हों तो आइये आपको ले चलते हैं आपके विद्यार्थी जीवन में। दीपक मोदी की यह पोस्ट पढ़कर आप बिना टिकट, बिना खर्चे के बचपन में लौट जायेंगे जब आप बिंदास थे और तमाम हरकतें कमोबेश ऐसी ही करते थे कैसे दीपक ने बतायीं। आप देखिये परीक्षा के बाद का नजारा:-
    "ये भी सिलेबस में था क्या?""अच्छा!! ये ऐसे होता है क्या....?"" पहले में ३ मार्क्स , दूसरे में ज़ीरो, तीसरे में २, ...गया.....पक्का फेल इस बार.....""यार नोटिस लगते ही फाड देना...........वो क्या सोचेगी मेरा मार्क्स देखकर......"
    कविता में सबसे पहले हैं पंकज तिवारी। वे और तमाम बातें लिखने के अलावा लिखते हैं:-
    हमने की एक शरारत, चेहरे को भाँपकर।
    पर हाय, अंदाज़ा गलत निकला, हम बदनाम हो गये।।

    यह खेल तो शुरू था एक अर्से से जानेमन।
    यह बात और है कि ख़बर देर से हुई।।


    जानेमन, शरारत और बदनामी से अलग रजनी भार्गव जी नये वर्ष का स्वागत करते हुये लिखती हैं:-
    जब फ़सल कटने के दिन आयें,
    धान के ढेर लगे हों घर द्वार ,
    लोढ़ी, संक्राति और पोंगल
    लाये पके धान की बयार,
    बसंत झाँके नुक्कड़ से बार-बार,
    तुम सुस्ताने पीपल के नीचे आ जाना,
    मेरी गोद में अपनी साँसों को भर जाना ।
    नव वर्ष के कोरे पन्नों पर भेज रही हूँ गुहार,
    आगे वे और भी चोरी-चोरी, चुपके-चुपके वाली कामनायें करती हैं नये साल के उपलक्ष में:-

    जब भी भीड़ में चलते-चलते कोई पुकारे मुझे
    और मैं पीछे मुड़ कर देखूँ ,
    तुम मेरे कंधे पर हाथ रख कर,
    कानों में चुपके से कुछ कह कर,
    थोड़ी देर के लिये अपना साथ दे जाना,
    भीड़ के एकाकीपन में अपना परिचय दे जाना ।

    नव वर्ष के कोरे पन्नों पर भेज रही हूँ गुहार.


    मानसी अक्सर कहती रहती हैं कि उनके अनूपदा रजनी भाभी की रचनायें अपने नाम से छपवाते हैं। पहले तो हम इसे गलत मानते थे लेकिन देख रहे हैं कि जब से रजनी जी ने लिखा है तब से अनूप जी अपनी पसन्द की कवितायें पोस्ट करने लगे हैं। अपनी खुद की बंद/कम कर दी हैं। आज भी उन्होंने यू ट्यूब में कुछ दिखाया है देखिये। हम तो देख न पाये डायल अप कनेक्शन के धामे पन के कारण!

    लक्ष्मी नारायण गुप्ता जी अपने बचपन की यादों से रमई काका की कवितायें सुना रहे हैं। रमई काका का परिचय देते हुये वे लिखते हैं:-
    हिन्दी जगत में हास्यकवि काका हाथरसी के नाम से सभी परिचित हैं किन्तु एक और काका थे जिनसे बहुत से लोग परिचित नहीं हैं। ये थे रमई काका जिनका असली नाम था चन्द्रभूषण त्रिवेदी। आप बैसवाड़ी अवधी के उत्तम हास्य कवि (किन्तु केवल हास्य नहीं) थे। इनका जन्म सन् १९१५ में उत्तरप्रदेश के उन्नाव ज़िले के रावतपुर नामक गाँव में हुआ था। आपने आकाशवाणी लखनऊ-इलाहाबाद में सन् १९४० से १९७५ तक काम किया था। मेरे बचपन में इनका देहाती प्रोग्राम आता था जिसको गाँव के लोग बड़े चाव से रेडियो को घेर कर सुना करते थे। इस प्रोग्राम में कभी कभी एक प्रहसन आटा था जिसमें रमई काका 'बहिरे बाबा' का रोल अदा करते थे।
    इनकी प्रकाशित पुस्तकों के नाम हैं:
    बौछार, भिनसार, नेताजी, फुहार, हरपति तरवार, गुलछर्रे और हास्य के छींटे।

    आगे रमई काका की तमाम प्रसिद्ध कवितायें उद्धत करते हुये वे उनके बारे में बताते हैं। एक बानगी है:-
    तहमत पहिने अंडी ओढ़े
    बाबू जी याकैं रहैं खड़े
    हम कहा मेम साहेब सलाम
    उइ झिझकि भखुरि खौख्याय उठे
    मैं मेम नहीं हूँ, साहब हूँ
    हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा।

    इसमें आखिरी की दो पंक्तियां शायद ऐसे हैं:-

    उइ बोले-चुप बे डैमफूल
    मैं मेम नहीं हूं साहब हूं
    हम कहा,फिरिउ ध्वाखा हुइगा!


    जिन साथियों के पास रमई काका की किताबें हों उनसे अनुरोध कि वे उनको नेट पर उपलब्ध कराने कष्ट करें।
    मनीष का आज का दिन चांद के नाम रहा। वे चांद, चादनी के पीछे चकोर बने रहे। वेलिखते हैं:-
    शायद उन लोरियों से....जो बचपन में माँ हमें निद्रा देवी की गोद में जाने के पहले सुनाया करती थी ।चंदा मामा दूर केपूए पकायें बूर केआप खायें थाली मेंमुन्ने को दे प्याली में

    चांद आया तो चांदनी कितने दिन दूर रह सकती है:-
    चाँदनी रात के हाथों पे सवार उतरी है
    कोई खुशबू मेरी दहलीज के पार उतरी है
    इस में कुछ रंग भी हैं,
    ख्वाब भी, खुशबुएँ भी
    झिलमिलाती हुई ख्वाहिश भी,
    आरजू भी इसी खुशबू में कई दर्द भी,
    अफसाने भीइ सी खुशबू ने बनाए कई दीवाने भी
    मेरे आँचल पे उम्मीदों की कतार उतरी है
    कोई खुशबू मेरी दहलीज के पार उतरी है

    इस ललित लेख नुमा प्रविष्टि को पढ़कर हमें भी बचपन में रटी हुयी पंक्तियां याद आ गयीं:-

    हठ कर बैठा चांद एक दिन
    माता से यह बोला
    सिलवा दे मां मुझे ऊन का
    मोटा एक झिंगोला।

    सन-सन चलती हवा रात भर
    जाड़े से मैं मरता हूं
    ठिठुर-ठिठुरकर किसी तरह से
    यात्रा पूरी करता हूं।

    आसमान का सफर और यह
    मौसम है जाड़े का
    न हो तो मंगवा दो
    कोई कुर्ता ही भाड़े का।

    फिलहाल हमारी चर्चा यहीं तक। कल आगे इसको जारी रखेंगे अतुल । परसों मिलेंगे देबाशीष और फिर जीतेंद्र पहलवान!

    आज की टिप्पणी

    १.“नारद जी की याद सताती थी। ”
    -अब जब तक कनेक्शन चालू है, नारद की एक फोटो तो कम्प्यूटर पर उतार ही लो, ताकि बुरे वक्त में काम आये. इस मुए कनेक्शन का क्या भरोसा. :)समीरलाल
    २.Lakshmi narayan ji,Ramayi kaakaa jan kavi aur jan kavitaa ke sachche prateek hain. Unnao jile ke baisavaara kshetra ka hone ke karan unkaa bahut naam sunaa, bahut kavitayein suni, ghar valon se, bade buudhon se.Pustakon me bas Bauchaar hi padhi hai, jan kavi ko itna to bhugatana hee paegaa ki uski kavita padhi kam suni jaydaa jaati hai.Unki hasya kavitaon ka to ye alam tha ki ham apne school me sunaate the, desh bhakti geeton ki tarah yaad rakhe jaate the. "ham kaha bada dhvaakha hoegaa", to blockbuster tha aur haan vo bhee "jab pachpan ke ghar ghaat bhaye, tab dekhuaa aaye bade bade...".Aur fir padhi Bauchaar(halanki puraa arth samajhne ke liye maa se kafi kuch puchana pada tha), par ekaaek hasya kavi ki kshavee tuut gayi. "deen ke pahun" aur dhartee "tumkaa teeri rahi" padh kar to lagaa ki shabd bhi mahak sakte hain, dharti ki gandh... geeli mitti ki sondhi mahak, pahli baar vahin se mahsuus ki...Apne baisvaare ki mahak.Apkaa bahut bahut dhanyavaad Ramayi kaka ko web par laaye. Is baar unnao jaungaa to unki aur pustakein dundunga....
    उपस्थित

    आज की फोटो


    आज की फोटो जीतेंद्र के ब्लाग से दुबई का सबेरा दुबई का सबेरा

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    चिट्ठागिरीः समझो हो ही गया

    आज से निठल्ले ने भी चिट्ठागिरी शुरू कर दी है, इसकी भूमिका के लिये या ये जानने के लिये कि ये है क्या बला एक नजर यहाँ मार लें

    हाँ भाई निठल्ले ये बताओ चिट्ठागिरी में करना क्या होता है सर्किट ने पूछा। अब हमें पता होता तो बताते पहला दिन था, इतना पता था कि नारद को ऊपर से लेकर नीचे टटोलना होता है जैसे आजकल एयरपोर्ट में करते हैं। तभी सर्किट चिल्लाया, भाई दुबई! मुन्ना भाई बोले, अबे चुप, हर जगह बस दुबई दिखायी देता है। कसम से भाई, वो देखो कोई जीतू है जो दुबई दिखा रहा है अपनी नजर से। चलो ना भाई हम भी देखते हैं।

    लगता है हमने चिट्ठागिरी करने का मन क्या बनाया हमें बापू की आवाज भी सुनायी देने लगी हो सकता है किसी दिन दिखायी भी देने लगे। बापू कह रहे थे, मुन्ना अपने इस दोस्त को बोलो कि धुंधलकों में छिपा सच देखने की आदत डाल ले कही जेल हो गई तो सिर्फ प्रतिक्षा करते रह जायेगा। मुन्ना ने बात सर्किट को दोहरा दी, सर्किट उल्टा खुश होके बोला, भाई अपने को जेल हो गयी तो टीवी वाले आयेंगे ना अपना भी साक्षात्कार लेने। उसके बाद चाहे तो आप लोग भी हमें टीवी में आने के लिये अपना जुगाडी लिंक समझ लेना।

    हम बोले, अब तुम दोनो ही बोलते रहोगे क्या। वो देखो कोई रमई काका भी कुछ कहने की कोशिश कर रहे हैं। सर्किट बोला जब हम जैसे असली बाबा घर के अंदर आ गये हैं तो बाकि सब सिर्फ कोशिश ही कर सकते हैं, बोलेंगे तो तभी जब मुन्ना भाई चाहेंगे, क्यों भाई बरोबर बोला ना। मुन्ना भाई बोले, सुशार्न्तिभवतु! ये क्या बासमती चावल की तरह झगड रहे हो, चांद और चांदनी का ये सुन्दर नजारा देखो और फिर प्यार से बोलो गुड मार्निSSSSSग मुम्बई।

    बापू बोले, अब मैं नही देख सकता ये सब उमर हो गयी है ना। मुन्ना बोला, कोई नही बापू आप तब तक शक और प्यार का ये लफडा सुनो हम नववर्ष से पहले एक बार रेगिस्तान से सूर्यास्त देख के आते हैं।

    हम बोले वाह! ये भी खूब रही तुम लोग इधर उधर कट लोगे तो हम अकेले बैठ ये चंद शेर नही सुनने वाले। हाँ निठल्ले भाई, मैं रहूँगा ना तुम्हारे साथ और साथ में ये पति का मुरब्बा खायेंगे सर्किट बोला। ओये चुप, खुश तो ऐसे हो रहा है जैसे तीन दिन की आफॅ लाईन कैद से मुक्ति मिली हो। चल जल्दी से ये विद्यार्थी जीवन के सुपरहिट संवाद याद करले बाद में पब्लिक को धमकाने के काम आयेंगे। और सुन बाद में माइक्रोसोफ्ट फोनेटिक इनपुट में इनका विवरण डालना मत भूलना।

    सर्किट उखड गया, देखलो भाई! ये सीधी दादागिरी है। इसने बोला था सब कुछ ये संभाल लेगा और हम सिर्फ खडे रहेंगे, यहाँ तो उल्टा ही हो रहा है। हमें बोलना पडा, धैर्य सर्किट धैर्य जो तुम कह रहे हो समझो हो ही गया।

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    बुधवार, दिसंबर 20, 2006

    चुनाव आ गये

    अस्वीकरण (Disclaimer): पहले तो यह बता दूँ कि शाम को पूरी चर्चा लिखी, सेव भी करी और फिर देखता हूँ कि सारी गुम. कुंडली भी. पूरा मूड खराब हो गया और उसी खराबी में फिर से लिख रहा हूँ और मूड की खराबी के दर्शन आपको लेखनी में जगह जगह हो सकते हैं, कृप्या कोई अन्यथा न ले. हालांकि मै संयम बरतने की पूरी कोशिश करुँगा.

    क्या विडंबना है भाई. एक तरफ तो हमारे मनीष भाई को कुछ दिख नहीं रहा. कहते हैं चराग दिल में जलाओ, बहुत अँधेरा है तो मेरे कवि मित्र राजीव रंजन जी कहते हैं उजालों ने डसा. अब किसकी सुनें? यूँ तो दोनों की ही न सुनें तो बेहतर. एक तो बाहर ही दिन दिन भर बिजली गायब रहती है और न ही मिट्टी का तेल मिल रहा है, और इन्हें दिल में चराग जलाने है. और जब जला दिये तो राजीव जी को बच कर चलना चाहिये थी. अब डस लिया न!! साँप के डसे का तो मंतर हमें मालूम है, अब ये उजाला डसे तो कैसे उतारते हैं, किसी को मालूम तो उनका बताये दो, भईया!! इन्हीं सब चक्करों में शैलेश भारतवासी भी फंसे और लिखते लिखते उनके शब्द भी पहुँच गये अंतहीन अभीष्ट तक. पक्का, यह अंधेरों उजालों के चक्कर में आँखें चौंधिया गई होंगी. इनकी भी और रन्जु जी की भी-उनके तो ख्वाब ही बिखर गये. इतना सब लफड़ा करवा कर मनीष जी कट लिये और फिर आये तो पूरा हफ्ता चाँद चाँदनी के नाम करने. यार पहले से डिसाइड किया करो. कभी कहते हो अंधेरा है, फिर चांदनी है. अब क्या सही मानें?

    अब अंधेरा हो कि उजाला- हमारे फुरसतिया जी को इससे कोई फरक नहीं पड़ता. वो तो बस सायकिल उठाये और चल पडे कलकत्ता से खड़कपुर. सुने उनकी उनकी यायावरी की कहानी उन्हीं की जुबानी-देश का पहला भारतीय नकनीकी संस्थान

    अब इतने सारे कवि तो चिट्ठाजगत में ही बैठे बैठे रोज कविता सुनाते हैं , आज भी जिनका जिक्र उपर किया है उनके अलावा राकेश भाई भी सुना रहे हैं और अभिजीत शक और प्यार का गीत सुना रहे हैं. सब तो सुना रहे हैं,कभी लिख कर, कभी गाकर, कभी हंसकर, फिर भी संजय भाई को कवि सम्मेलन का इंतजार लगा है, तो हम क्या कर सकते हैं. अब यहाँ से टेलिफोन पर तो सुनाने से रहे. कभी गुगल चैट पर सुना देंगे, मौका लगा तो. वैसे मै आपको बता दूँ कि कविता से ज्ञानार्जन अपनी जगह है बाकि भी तो ज्ञान की नदियां बह रही हैं, वहाँ भी डुबकी लगाईये न!! देखिये, सुखसागर जी द्रुपद द्रोण का बंदी और लाल्टू जी राम गरुण का छौना के द्वारा ज्ञानवर्षा कर रहे हैं तो मिडिया युग वाले “पापुलर न्यूज इन्ट्रेस्ट” के विषय में. तरुण भाई भी एक प्लगईन बनायें है, थोड़ा तकनिकी ज्ञान भी अर्जित किजिये.

    जब सब अपनी अपनी बिसात बिछायें तो पंकज काहे पीछे रह जायें. तुरंत आये भागते हुये और पहले तो २००६ की बेहतरीन तस्वीरें दिखाये और फिर लगे चुनाव करवाने “२००६ का हिन्दी चिट्ठाकार”. अब भरो सब नामिनेशन. चुनाव अधिकारी कौन है, यह नहीं बताया गया है, तो जुगाड़ कहाँ लगायें. सब ऑन लाईन होना है, नहीं तो बूथ कब्जा वगैरह करते, सो वो भी गया हाथ से. अब तो सिर्फ़ निवेदन से ही काम बनेगा. सो, उड़न तश्तरी का निवेदन भी प्रस्तुत है, उड़न तश्तरी और छोटू की चर्चा के माध्यम से. हमारा तो उड़न तश्तरी के अंदर कुट कुट कर भरी समाज सेवा की भावना को देखकर सर श्रृध्दा से झुक गया. क्या समाज सेवा की भावना है कि पूरे चिट्ठाजगत के खुद ही नामिनेशन फार्म बनाकर अपने चिट्ठे पर उपलब्ध करायें हैं. नमन करता हूँ.

    अब इन सब चुनावी हलचलों से दूर शशी भाई कहे कि काबुल एक्सप्रेस देखो तो जगदीश भाई पहुँच गये, देखने. अब देखा है, पैसे लगाये हैं तो विचारेंगे भी और जब विचारेंगे तो लिखेंगे भी और जब लिखेंगे तो हम पढ़ेंगे भी और जब पढेंगे तो पढ़ने का ठिठोना, टिप्पणी भी जरुर बिठायेंगे कि पढ़ लिये भाई और बस लिखना सफल. मगर शशी भाई फिर से आ गये, अबकी बार हाई टेक कल्चर की हँसी का फव्वारा लेकर और रवि भाई कहे कि अक्खा इंडियाइच दुकान बन गयेला है.

    अच्छा हँसाये मगर प्रतीक तो किसी और ही मूड में है और पुराने गीत सुने चले जा रहे हैं और लिंक भी दे दिये कि आपको सुनना हो तो आप भी सुनें. वो तो गीत में गुम हैं और उनको प्रमेन्द्र जी राधा और कृष्ण के संबंधों की पवित्रता का संपूर्ण पुराण पढ़ाने के लिये लेकर हाजिर खड़े हैं.

    हम तो खैर गीत में रम गये मगर पटना से दिव्याभ आर्यान जी को इंतजार लगा है “प्रतिक्षा”-वो भी ऐसी वैसी नहीं, बात इतनी बढ़ गई है कि कह रहे हैं कि कहीं उस तस्वीर की लकीर मिल जाए जिसपर मैं अपनी आध्यात्मिक उन्नति को लुटा सकूँ और अपनी आवरगी को जाम दे सकूँ...। वाह भाई, लुटाओ तो कुछ ऐसे!! यहाँ लुटाया जा रहा है, तो वहाँ बासमती चावल के पेटेंट का झगड़ा निपटाने में उन्मुक्त जी लगे है और सबको बिजी देखकर रचना जी भी एक गरीब नौजवान से खास मुलाकात और साक्षात्कार में लग गयीं.






    जरुरी सूचना

    तरकश.कॉम पर एक पोल रख रहे हैं "2006 का हिन्दी चिट्ठाकार", इसमें हमारा परिवार यानि कि आप और हम चुनेंगे 2006 के श्रेष्ठ हिन्दी चिट्ठाकार को जिसने 2006 से लिखना शुरू किया हो।
    अब आपको नोमिनेशन देने हैं। कम से कम दो ब्लोगर का नोमिनेशन दिजीए... आप खुद अपने आपको नोमिनेट नही कर सकते हैं। :)
    ध्यान रखिए उसी ब्लोगर को नोमिनेट करना है जिन्होने 2006 से लिखना शुरू किया हो।
    नोमिनेशन 22-12-2006 तक भेजा जा सकता है।

    नोमिनेशन सिर्फ इमेल (contact@tarakash.com) के द्वारा दिया जा सकता है।



    चलते चलते जीतू भाई की नजर से दुबई देखें.

    आज की तस्वीर:
    पंकज बेंगानी के चिट्ठे से :



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    मंगलवार, दिसंबर 19, 2006

    मुद्दे की बात

    कवियों का सम्मेलन करें जब चिट्ठाकार
    ढेर सारे कवियों की भीड़ का जुगाड़ था
    ताल कोई ठोक रहा, ताव कोई मूँछ् पे दे
    कोई वहां अपने को कहे कविराज था
    कोई तो प्रवासी रहा, लोई देशवासी रहा
    हर कोई भ्रम में था डूबा हुआ, कवि है
    दोहे को गज़ल कहे, सवौये को कहे नज़्म
    और हमें पढ़ते हुए चढ़ रहा बुखार था

    एक अनुभूतियों का, एक था विभूतियों का
    एक चिट्ठाकार कहे, मेरे कवि मित्र हैं
    कोई रचनाकार का था, कोई गीतकार का था
    और कोई कोई कहे इसमें सिर्फ़ चित्र हैं
    यूएफ़ओ भी यहां मिले और खुदा की भी गली
    और एक लिखा गया फ़ुरसत के पल में
    एक चिट्ठा नामी मिला, एक रतलामी मिला
    बाकी सारे बोतल के उड़े हुए इत्र हैं

    कवियों के पितामह कहें जिन्हें जीतू भाई
    खो गये हैं आजकल कुंडली के फेर में
    उड़नतश्तरी दिखी नहीं एक हफ़्ते से
    सांझ में न दोपहर में और न सवेर में
    प्रत्यक्षा की प्रतीक्षा में जाल, जाल डाल रहा
    रस खोजें देवाशीष चुस चुकी गंड़ेर में
    रवि लिखें जीतू लिखें, संजय लिखें दनादन
    बाकी सब खो गये हैं लगता अंधेर में

    फ़ुरसतियाजी ढूँढ़ें मिलें फ़ुरसत के चार पल
    छिट्ठे लिखने का नहीं वक्त मिल पाता है
    और उधर जिसे देखें वही चर्चा करने को
    सुबह भी, दुपहरी और शाम नजर आता है
    चिट्ठे तो दिखें ही नहीं,चर्चा करें जो हम
    लिखने का मूड बार बार बिदक जाता है
    चिट्ठे न भी हों तो भी हम लिखेंगे बदस्तूर
    जिम्मेदारी को निभाना हमे खूब आता है

    बात अब चिट्ठे की एक शाम मेरे नाम
    दिल के चिराग को जलाईये अंधेरा है
    अपना नजरिया क्या है बतलाते हैं हमें क्षितिज
    वैसे ये नजरिया न तेरा है न मेरा है
    शेर शायरी में लाये राही जी की गज़ल राज
    प्रेयसी की आत्मा को ढूँढ़े लोकतेज हैं
    चिट्ठा चर्चा पूरी हुई,अब दिन बीत चला
    थोड़ी देर बाद होने वाला अब सवेरा है

    और अब


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    सोमवार, दिसंबर 18, 2006

    कैसे हो भाई, जैसे भी हों, कृपया अन्यथा न लें

    ( आज की चिट्ठा चर्चा भाई रवि रतलामी द्वारा की गयी है, प्रकाशन मेरे द्वारा किया गया है, किसी भी प्रकार की जूता लात के लिए रवि भाई से ही सम्पर्क किया जाए. नोट: बीच बचाव करने/कराने वाले हैलमेट पहन कर आएं, हैलमेट शुकुल की दुकान से ही खरीदें। - जीतेन्द्र चौधरी )

    चिट्ठाचर्चा बमार्फत उड़नतश्तरी

    (दरअसल यह पोस्ट समीर ने चिट्ठाचर्चा के लिए कड़ियों युक्त लिखा था, मगर, यह सोचकर कि लोग अन्यथा ले लेंगे, उसे संपादित कर, उसकी कड़ियाँ हटाकर अपने चिट्ठे पर प्रकाशित कर दिया. कड़ी युक्त पोस्ट उनके कम्प्यूटर पर सेंध लगाकर प्राप्त कर ली गई है, जो कि लाल रंग में असंपादित अंश सहित यहाँ प्रस्तुत है.)

    सन २००६ तो अब बीता ही समझो. बड़ा ऐतिहासिक वर्ष रहा हमारे लिये. इसी वर्ष हमारी उड़नतश्तरी ने चिट्ठा जगत में प्रवेश किया, चिट्ठा चर्चा लिखना शुरू किया और अन्य चिट्ठाकारों का असीम स्नेह भी पाया. इतने कम समय में ऐसा लगने लगा कि न जाने हम कब से इस हिन्दी चिट्ठा परिवार के सदस्य हैं.

    इतने कम समय में ही कितनी नई पहचानें बनीं, कितनी नई मुलाकातें हुई. बहुत ही आनंद कारी रहा यह अबतक का सफर. इस बीच काफी नियम सीखे, काफी नियम बदलते देखे और काफी नियम बनते देखे.

    अब २००६ को धन्यवाद करने को तो बहुत सारी चीजें है, सब तो लिख पाना संभव नहीं है और २००७ के स्वागत का रोमांच भी है कि न जाने क्या क्या ला रहा है अपनी झोली में भर कर.

    वैसे जब २००६ पर चिट्ठा जगत के नजरिये से नजर डालता हूँ तो पाता हूँ कैसे हमने पोस्ट लिखना सीखा और कैसे लोगों ने हमारा लिखा पढ़ना सीखा. कैसे हमने औरों के लिखे पर टिप्प्णियां करना सीखा और कैसे लोगों ने हमारे लिखे पर. देखते देखते टिप्प्णियों के तरीके में भी बदलाव देखे. कुछ नये रिवाज भी देखें. कुछ टिप्पणियों को पोस्टों में बदलते देखा तो कुछ पोस्ट रुपी टिप्पणियां देखीं. कुछ पोस्टों पर पंगे होते देखे तो कुछ टिप्पणियों पर दंगे होते देखे. कहीं दिखीं ज्ञान की बातें तो कहीं हास्य और फिर कहीं गीत संगीत कहीं लोगों को सद्बुद्धि बंटते देखा. सब देखा, देख रहा हूँ और लगता है कि देखता रहूँगा. लोगों को खुश होते देखा, दम देते देखा और गम पीते देखा. किसी की भविष्यवाणियां की और इसी बहाने अपना वर्तमान सुरक्षित करने का प्रयास किया, कभी टिप्पणी के तरीके बखाने, कुछ विधायें सीखीं तो कुछ सिखायी. कभी चित्रों के माध्यम से बादलों के उस पार गये, उत्तरांचल घुमे फिर कभी खंडहरी किलों में, तो कभी इस पार पचमढ़ी फिर अहमदाबाद फिर गुजरात का डैम और कभी गयाना और न जाने कहाँ कहाँ. इतना सब कुछ बस अपने लेपटाप के सामने बैठे बैठे होता चला गया, एक अजूबा सा लगता है.

    कितने जाने अनजानों के बारे में जाना, कितना साहित्य के बारे में जाना. कभी तकनीकी के बारे में, कभी देश विदेश की जानकारी, कभी पुराणों में तो कभी गीता-रामायण में. कभी दंगा प्रधान शहर का और कभी पंगा प्रधान परिवेश का ब्यौरा. कभी जाना कि गीत और गीत का अर्थ क्या होता है तो कभी जाना कि आवारा भीड़ का खतरा क्या होता है. किसी ने बताया कि लड़कियां क्या चाहें तो कोई बता गया कि भैंस के पेट में दर्द क्यूँ होता है. कितने कवि सम्मेलन सुनें, कितनों में बुलाये गये और कितनों में बुलाये जाने की आस लगाये घर में बैठे रहे. न जाने कितने चिट्ठे नये खुले, कितने खुलते ही बंद हो गये, कुछ दम खा कर और कुछ बिना कुछ खाये बंद कर गये तो कुछ ने स्थान बदल लिये. कितने चिट्ठों पर चर्चा हुई और कितनी चर्चा चिट्ठों पर हुई. अथाह सागर में गोते लगा रहे हों जैसे और बस, लगाते ही चले जा रहे हैं.

    इसी जगत में अभी अभी एक नया फैशन आया-बुरा मानने का. मगर जैसे ही कोई नया फैशन आता है, नये नये परिवेश और उनकी काट भी तुरंत निकाल लेते हैं हम सब. तो इस नये फैशन के साथ भी नये तरीके दिख रहे हैं. लोग कुछ कहना भी चाह रहें हैं, कह भी रहे हैं और पहले से बढ़ चढ़ कर कह रहे हैं. सहनशीलता नये समय के साथ साथ खत्म होती जा रही है. कतिपय लोग एक दूसरे की टांगे खींच रहे हैं गोया चिट्ठा लेखक, लेखक नहीं कोई सांसद हों. जो उर्जा सार्थक लेखन में लगना चाहिये, वही उर्जा समय के साथ साथ एक दूसरे की खिंचाई में और परनिंदा की गंदी नाली में बहने लगी है और अनेकों उस नाली में कुद कर छपाक छपाक स्नान का आन्नद ले रहे हैं. वैसे तो खिंचाई मौज मजे में, सदभावनापूर्वक करना एक स्वस्थ परंपरा है और मनोरंजक और आन्नददायक भी मगर व्यक्तिगत आक्षेप और द्वेषवश की गई खिंचाई देखकर क्षोब भी होता है और खेद भी.

    ऐसे ही माहौल में कुछ और तरीके दिखे कि कुछ भी कहना हो, कह जाओ, सोचो मत और अपना लिखा कथन दुबारा मत पढ़ों (अपने लिखे में वज़न के लिए नुक़्ता लगाओ या न लगाओ, बस लिखते जाओ). भूल जाओ कि सामने वाले को अच्छा लगेगा कि बुरा. या जो आप कहना चाह रहे हैं वो वाकई आपके शब्द भी कह रह हैं कि नहीं. बस शुरुवात कुछ यूँ करो कि कृप्या अन्यथा न लें और शुरु हो जाओ जो कहना है कि आप बेवकूफ हैं, नालायक है.. और जब बात खत्म करो तो एक स्माईली लगा दो ताकि सनद रहे और बात बढ़े तो आप कह सकें कि मै मजाक कर रहा था, वो देखो स्माईली. यह स्माईली दिखने में जरुर छुटकु सा है मगर मौके पर बजरंगी पहलवान से ज्यादा जबरी और बेहतरीन अंग और चरित्र रक्षक. मुफ्त में अंतरजाल पर उपलब्ध अनेंकों जुगाड़ों का बेताज बादशाह.

    आने वाले साल २००७ में तो हमेशा ख्याल रखना होगा और टिप्पणियों का स्वरुप शायद और भी बदले मगर अभी तो कुछ इस तरह का आसार लगता है:

    -कृप्या अन्यथा न लें मगर आपकी कविता बहुत अच्छी लगी. :)

    -कृप्या अन्यथा न लें मगर आप क्या वाहियात बात करते हैं, बेवकूफी भरी। आशा है आप बुरा नहीं मानेंगे। :)

    आदि आदि...यानि तारीफ में भी और गरियाने में भी, हर जगह -कृप्या अन्यथा न लें का प्रयोग संस्कारों का हिस्सा बन जायेगा. क्या मालूम कब कौन किस बात का बुरा मान जाये. आपकी कौन सी सिरियस बात को मजाक और मजाक को सिरियसली ले लिया जाये. समय बदल रहा है, आप जिसे रोता हुआ समझ रहे हैं दरअसल वो हंस रहा है और जिसे आप हंसता देख रहे हैं वो रो रहा है और जो चुपचाप बैठा है उसका तो क्या-क्या मालूम हंस दे कि रो दे या यूँ ही तटस्थ बना रहे (यानी कि सबकुछ खिचड़ी है). वैसे तो श्यूर शाट पंगे वाली टिप्पणी में एक से ज्यादा स्माईली लगाने का प्रचलन भी है.

    खैर, अब यह सब यहीं छोडें और २००६ को खुशी खुशी एक और वर्षीय अनुभव के खिताब के रुप में अपनी कमीज पर टांक लें और स्वागत की तैयारी करें २००७ की.

    यह सब तो नियम है, सब परिवर्तनशील है. समय के साथ आ रहे बदलावों को न हम रोक सकते हैं न आप. बस साक्षी बने इनका स्वरुप देखते रहें (अब यह एफ़िल टॉवर की तरह बढ़ता है या नियाग्रा फ़ॉल की तरह गिरता है क्या पता) और अपने आपको इनके अनुरुप ढ़ालते चलें.

    चलते-चलते:

    "कृप्या अन्यथा न लें मगर हम तो सोच रहे हैं कि २००७ में हर बार दो टिप्पणी किया करेंगे (पैसे भले बचा लें, क्योंकि संकट में हैं अन्नदाता, परंतु टिप्पणियाँ नहीं). एक तो तारीफ वाली और दुसरी एक दम सही सही-अब अगर पंगा हुआ, तो दूसरी से मुकर जायेंगे कि ये कोई और कर गया हमारे नाम से. और बता दें यह तरीका कोई हमने नहीं ईज़ाद किया है, यह दूसरी टिप्पणी का प्रचलन हमने इसी २००६ में कहीं कहीं देखा है, अब याद नहीं आ रहा- कहाँ- कहाँ? :) :)"

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    मध्यान्हचर्चा दिनाकं 18-12-2006

    धृतराष्ट्र संजय को ताक रहे थे, और संजय लैपटोप की स्क्रीन को. धृतराष्ट्र प्रतिक्षा में थे की संजय चिट्ठादंगल का हाल सुनाना शुरू करे और संजय कोफी की प्रतिक्षा में थे की पहले एक आध घूँट कोफी के ले फिर शुरू करे. तभी दो कप कोफी लिए चपरासी ने कक्ष में कदम रखा.
    धृतराष्ट्र ने कोफी का घूँट भरा, इधर संजय भी अब सजग हो कर संजाल पर विचरण करने लगे.
    धृतराष्ट्र : संजय जगह जगह पर इतनी भीड़ क्यों जमा है?
    संजय : महाराज यहाँ कुछ विचित्र से प्राणी उठा लाए हैं, लाल्टूजी, तथा हाथ उठा उठा कर सबको दिखा रहे हैं. बस इन्हे देखने के लिए लोग जमा हो रहे है.
    दुसरी तरफ इधर-उधर से शुद्ध हिन्दी लिखने के तरीके जुटा कर लाये हैं, रमणजी, सिखा रहे है नुक़्ते या फिर नुक्ते या जो भी हो... अब लोग-बाग को रोक तो सकते नहीं, सभी नुक्ते लगाना सिख रहे हैं.
    यहाँ लादेन के मारे जाने की खबर लेकर आएं हैं जितूभाई. एफ.बी.आई. वालो ने मेरा-पन्ना को घेर लिया और भीड़ जमा हो गई. अब जीतूजी अपनी बात से मुकर रहे हैं. कहते हैं जो मरा वह हाथी था.
    अब इधर पार्टी चल रही है, इसलिए भीड़ है, सुन्दरी को बचा लिया गया है. जीतूभाई खुश है, सबको कुछ न कुछ मिला है, पार्टी चल रही है. भैंस नोट चर रही है.
    धृतराष्ट्र : हम आगे चलते हैं. इन्हे पार्टी का मजा लेने दो.
    संजय : महाराज मजा तो अमित का किरकिरा हो गया. समय बदला तो तन्दूरी चिकन का स्वाद भी बेस्वाद हो गया.
    धृतराष्ट्र : बुरा हुआ, पर यह कौन गुनगुनाता हुआ जा रहा है.
    संजय : महाराज, मुम्बई वाले शशि सिहं है, इन्हे कबुल-एक्सप्रेस फिल्म खुब पसन्द आयी तथा घर लौटते समय मस्ती में भोजपुरी गीत गुनगुना रहे हैं.इन्हे गुनगुनाते देख राज भी शेरो-शायरी के मूड में आ गए तथा गाने लगे “मौला मेरे.. मौला मेरे..मेरे मौला..
    धृतराष्ट्र : गाने ही क्यों किस्से कहानियाँ भी खूब चल रही है, इन दिनो.
    संजय : हाँ महाराज, अफ्फातुनजी अपने शैशवकाल के किस्से सुना रहे हैं, तो सुखसागर में आज कर्ण-अर्जुन की कथा है. वहीं महमूद गज़नी के हाथो भारत के लुटते रहने की कथा सुना रहे हैं तरकश पर संजय.
    महाराज आप भारत के नियाग्रा प्रपात को निहारीये तथा यहाँ चिट्ठाकार रवि कामदार को उनके जन्मदिवस की बधाई दिजीये. मैं होता हूँ लोग-आउट.

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