शुक्रवार, अक्तूबर 26, 2007

कितने निर्मम और निराले हैं राजनीति के खेल!

पुरानी रामलीला नया अंदाज
हमें पता ही न था कि अनिल रघुराज का नाम अनिल सिंह है। सच में। यह बात हमको पता चली आज बेवदुनिया में छपे उनके ब्लाग के परिचय से। अभी उनकी पहली कहानी भी अभिव्यक्ति में छपी है। आजकल उनका लेखन धड़ल्ले से चल रहा है। सबेरे कुत्ते का ब्रह्मज्ञान दिया तो शाम को स्टिंग आपरेशन का स्टिंग आपरेशन किया यह कहते हुये-
तहलका के जिस रिपोर्टर आशीष खेतान ने संघ परिवार के दंगा सेनानियों से बात की, उसने उन्हें बताया कि वह खुद हिंदूवादी है और हिदुत्व के उभार पर शोध कर रहा है। सारे सेनानियों को पता था कि वह एक ऐसे शख्स से बात कर रहे हैं जो इस जानकारी का कहीं न कहीं इस्तेमाल करेगा। तकनीक के जानकार लोग बताते हैं कि स्टिंग ऑपरेशन में जुटाई गई फूटेज की ऑडियो-वीडियो क्वालिटी देखकर यही लगता था कि खुलासा करनेवालों को खुद पता था कि उनकी बातों को रिकॉर्ड किया जा रहा है। उफ्फ, ये राजनीति कितनी बेरहम और जालसाज़ है!!


इस कलंक आपरेशन के बारे में राजेश कुमार का मत है कि
जो भी आज तक ने दिखाया वो अधूरा सच था और आधा सच कई बार झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होता है।
उनकी यह चिंता भी है कि ऑपरेशन कलंक कहीं टीवी पत्रकारिता के लिये ही कलंक न बन जाये।

आज प्रत्यक्षाजी का जन्मदिन था। उनके बारे में लेख यहां पढिये। बधाई दीजिये। :)

पुरानी रामलीला नया अंदाज देखिये पल्लव क. वुधकर के चाय चिंतन में।

एक लेख जो कि अभी छपने वाला है का शीर्षक है बेटियों की जिस्मफरोशी से जिंदा समाज|

१.दो प्रजातियों में बंट जाएगा इंसान : एक ब्लागर दूसरा नान-ब्लागर!

२.कितने निर्मम और निराले हैं राजनीति के खेल! : और बहौत पापुलर भी हैं।

३.रिमोट के कुछ और करीबी इस्तेमाल : अपने रिस्क पर अपनायें, दूर से बता रहे हैं।

४. लोग अपराधी क्यों बनते हैं:यही पता चल जाये तो क्या बात है!

५. आप इसे देख कर हस पड़ेंगें: फिर सोचेंगे बेफिजूल हंसे।

६.चाणक्य नीति:मुर्गे, कुत्ते और कौवे से गुण ग्रहण कर :इसके बाद अपने ब्लाग् में पोस्ट करें।

७.जब फूलों को देखने के लिए पैसे देने होंगें : जबकि भौंरे बिन पैसे मजा मारेंगे।

८.सबूत लपेटकर फांसी पर लटकाया : ताकि सनद रहे।

९.कौन बनाएगा मीडिया का कोड ऑफ कंडक्ट : बोलो,बोलो कुछ् तो बोलो!

१०.काम के हिंदी फीड : हमारे किस काम के?

११.दोस्ती और विश्वासघात में अन्तर होता है : इसीलिये अलग-अलग तरह से लिखा जाता है।

१२.फीड एग्रेगेटर - पेप्सी या कोक? : कुछ भी हो अति सर्वत्र वर्जयेत!

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गुरुवार, अक्तूबर 25, 2007

अंग्रेजी न् जानने का अर्थ खुदकशी है!

चिट्ठों की बात् करने के पहले कुछ समाचार सुर्खियां:-
१. अमर उजाला कानपुर् की खबर है -हत्यारे हदस गये। कल कुल् साठ लोगों को उम्रकैद् की सजा सुनाई गयी। इसमें उप्र के बहुचर्चित मधुमिता हत्याकांड के आरोपी, पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और् उनकी पत्नी भी शामिल् हैं। १५ उन लोगों को भी उम्रकैद् मिले जिन्होंने सन १९९२ में अयोध्या का विवादित् ठांचा टूटने के बाद् कानपुर् में हुये दंगों में ११ लोगों को जिन्दा जला दिया था।

२.स्काटलैंड में एक भारतीय मूल के व्यक्ति को किसी ने अंग्रेजी न बोलने पर वर्ना गर्दन उड़ा देंने की धमकी दी। कोर्ट ने धमकी देने वाले को तीन् माह् की सजा सुनाई।

३. पोलैंड् में हिंदी के प्रति जबरदस्त् झुकाव।

४.अंतरिक्ष में एक् गर्भवती तिलचट्टी मां बनी।

५.अंग्रेजी न् जानने का अर्थ खुदकशी है।

ये जो अंतिम् समाचार है वह एक् लेख का शीर्षक है। इसी मुद्दे पर कल आशीष कुमार के ब्लाग पर बरखा दत्त का एक विचारणीय् लेख पढ़ा । इसमें बताया गया है कि किस तरह एक् टापर बच्ची को एक अंग्रेजी स्कूल् में दाखिले से मना कर दिया गया क्योंकि उसका अंग्रेजी उच्चारण् ऐं-वैं टाइप् था। बालिका ने उसे चुनौती के रूप् में लेते हुये दूसरे स्कूल् में दाखिला लिया यह् तय करते हुये-
लेकिन आहत होने का किंचित भी आभास दिए बगैर उसने दृढ़ता से कहा कि अब तो उसका लक्ष्य दिल्ली पब्लिक स्कूल को यह बताना मात्र है कि वह अपने किसी भी विद्यार्थी से बेहतर हो सकती है।


कल् बीबीसी में शशिसिंह् का हिंदी ब्लागिंग् के बारे में छपा लेख भी हिंदी ब्लागिंग् के लिये उल्लेखनीय् घटना है। इसमें शशि ने लिखा-
जानकार मानते हैं कि इंटरनेट के तेज़ी से हो रहे विस्तार में हिंदी चिट्ठाकारों का उज्ज्वल भविष्य छिपा है क्योंकि अब नेट पर अंगरेज़ी का एकछत्र राज नहीं रह गया है.

शब्दों का सफ़र वाले अजित वडनेरकर् को हम शब्द् चौधरी कहते हैं। बहुत् जल्द् ही अपनी पोस्टों का दूसरा शतक् पूरा करने जा रहे अजितजी ने एक् नयी योजना के बारे में आपकी राय् मांगी है। वे कहते हैं-
'सफर' पर एक नई पहल कर रहा हूं। इसमें हर हफ्ते एक शब्द पहेली होगी जिसमें आपको एक शब्द का रिश्ता दूसरे से बताना होगा। आधार धातु , ध्वनिसाम्यता अथवा अर्थ साम्यता - कुछ भी हो सकती है। मुझे लगता है कि 'सफर' को आपकी हरी झण्डी तो मिल चुकी है। आपका जुड़ाव भी इससे हो चुका है ऐसा मैं मानने लगा हूं। कई साथी यह ज़ाहिर भी कर चुके है। गुज़ारिश है, ये प्रयास कैसा लगा ज़रूर बताएं । ये सिर्फ आपके लिए है। आपकी प्रतिक्रियाओं से यह अनुमान मैं लगा सकूंगा कि इसे जारी रखना है या नहीं।
इस् पर् रविरतलामी हमारे मन की बात अपनी टिप्पणी करते हुये कहते हैं-
हमारे ज्ञान की पोल खोलती पोल तो वाकई लाजवाब है. और इस सफर को समाप्त करने का मन न बनाएँ अब कभी भी नहीं तो हमें बहुत सफ़र होगा. यदि किसी हिन्दी चिट्ठे को मैं हमेशा जिन्दा देखना चाहूंगा, तो वो यही होगा - शब्दों का सफर.


आई.आई.टी. कानपुर् से अपनी पी.एच्.डी. कर रहे अंकुर् वर्मा ने भी आखिरकार् अपना चिट्ठा शुरू कर् ही दिया। नाम् है-
निंदा पुराण्। शुरुआत् नैनो टेक्नालाजी से करते हुये उन्होंने लिखा-
नैनोटेकनोलॉजी के बारे में सर्वाधिक प्रचलित भ्रांतियों में से एक है कि नैनोमीटर में होने वाली सभी क्रियायें नैनोटेकनोलॉजी के अंतर्गत आती हैं जो कि वास्तविकता से कोसों दूर है | दरअस्ल जब हम किसी वस्तु का आकार छोटा करते जाते हैं तो एक आकार के बाद उसके किसी विशेष गुण जैसे कि रंग, चुम्बकीयता, वैद्युत अथवा रासायनिक गुणों में अनियमित बदलाव देखने को मिलता है यदि इसी अनियमितता का प्रयोग करते हुए एक टेकनोलॉजी विकसित की जाती है तो उसे नैनोटेकनोलॉजी कह सकते हैं | लघुरूपण (miniaturization) मात्र ही नैनोटेकनोलॉजी नहीं है |


अनिल रघुराज् की कहानी अभिव्यक्ति में छपी है। अब् वे फ़क़त् हिंदुस्तानी ही न् रहे। कहानीकार भी गये हैं। देखिये कैसी है कहानी! बतायें।

कुछ् समय पहले मैंने शहीद् चंद्र्शेखर् के बारे में बताया था। उनकी मां के खत भी पढ़ाये थे। अनिल् रघुराज् शहीद् चंद्र्शेखर् की मां के उद्गार् बताते हैं-कभी-कभी तो मुझे अपने बेटे की हत्या में पार्टी का हाथ नजर आता है।

फिलहाल् इतना ही। आप् भी सतोंषम् परमम् सुखम् मानकर खुश हो लें।

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बुधवार, अक्तूबर 24, 2007

ब्लागिंग भ्रष्टाचार का अनुपम उदाहरण है।

माया सभ्यता
माया सभ्यता

मैंने टिप्पणी न कर पाने के कुछ मासूम बहाने जब लिखे थे उस समय चिट्टाचर्चा करना बंद था वर्ना एक बहाना और लिखता कि चर्चा करने के कारण चिट्ठे पर टिप्पणी करना हो नहीं पाता। पढ़कर यहां लिखने के कारण अलग से लिखना हो नहीं पाता। वो कहते हैं न फिराक साहब-
वो पास भी हैं,करीब भी,
मैं देखूं कि उनसे बात करूं।


आज जब संजीत त्रिपाठी की पोस्ट पढ़ रहा था जो उन्होंने अनाथाश्रम के बारे में लिखी तो उसके बारे में उसके बारे में कुछ वनलाइनर सूझा नहीं। बालाश्रम के बारे में पत्रकारीय अंदाज में बताते हुये उन्होंने लिखा-
इसका मूल उद्देश्य अनाथ, निराश्रित बच्चों का पालन पोषण कर , शिक्षा देकर उत्तम नागरिक बनाना। 1948 मे स्वतंत्रता के पश्चात इस अनाथालय का नाम बदलकर "बाल आश्रम" रखा गया। मध्यप्रदेश सरकार प्रति बच्चे सौ रुपए के हिसाब से इस संस्था को मदद करती रही फ़िर बाद में जैसे-जैसे संस्था स्वावलंबी होती गई नियमों के तहत वह सरकारी मदद बंद हो गई।


आज जब तमाम मीडिया पत्रकारों की तमाम ताकत नये-नये बने प्रेम संबंधों की ट्रेकिंग करने में लगती है तब इस तरह के लेख यह जाहिर करते हैं कि कुछ लोग और जगह भी लगे हैं। इस पोस्ट पर आलोक पुराणिक की धांसू टिप्पणी है-
मार्मिक है जी, जो अच्छे काम दिल में आ रहे हैं फौरन कर गुजरिये।
अच्छा मैने नोट यह किया है कि जब आप नजर का चश्मा लगाकर फोटू पेश करते हैं, तो पोस्ट बहुत सात्विक होती है।
जब धूप का चश्मा लगाकर पोस्ट लिखते हैं, तो खासी आवारगी भरी होती है। अगर चश्मे से इस तरह मनस्थिति में बदलाव आता हो, तो क्या कहने, यार ऐसे चार-चश्मे अपन को भी भिजवाओ ना।


टिप्पणी की बार चली तो बमार्फ़त टिप्पणीकार ही कुछ और मजेदार बात। भूपेन की पोस्ट पर लोगों की टिप्पणियां देखकर निर्मलानंद अभय तिवारी बोले- टिप्पणी करने वाले भाई लोग इतना फलफला क्यों रहे हैं.

देबाशीष ने काफ़ी दिन लिखा ब्लागिंग के बारे में। बेबदुनिया जैसे बड़े पोर्टल भले ही ब्लागिंग की शुरुआत करने वाले हैं लेकिन उनकी ब्लागिंग के बारे में उनकी समझ ऐसी है कि
अपनी प्रेस विज्ञप्ति में उन्होंने “प्लेटफार्म” की बजाय “ब्लॉग” लिखना उचित समझा जिससे ये समझ आता है कि बड़े समूहों को भी ब्लॉगिंग की वो बात समझ नहीं आ रही जो सामान्य चिट्ठाकारों को आ रही है और वजह वही पुरानी है, शाकाहारी लोग दूसरों के लिये मटन पका रहे हैं, इन लोगों के पास शायद एक भी ऐसा बंदा नहीं जो ब्लॉगिंग के बारे में जानता हो और इसे महसूस करता हो


कालेजियेट किस्से और विद्यार्थी जीवन के सुपर हिट संवाद अगर आपको फ़िर से याद करने हों तो बड़ी मुफ़ीद पोस्ट है दीपक की। इन्हीं सुपर हिट संवादों पर अपनी संवाद सेवा जारी रखते हुये प्रत्यक्षाजी ने लिखा- जो वर्ड समझ में आ रहा है वो लिख,...जो नहीं आ रहा उसकी ड्राईंग कर दे...." कल उन्होंने पट्ना की दुर्गा पूजा को याद करते हुये बयान किया-

नयी नवेली लड़कियाँ , कुछ पहली बार साड़ी में । माँ से गिड़गिड़ा कर माँगी , फटेगी नहीं , सँभाल लूँगी के आश्वासन के बाद , भाभी के ढीले ब्लाउज़ में पिन मार मार कर कमर और बाँह की फिटिंग की हुई और भाई से छुपाके लिपस्टिक और बिन्दी की धज में फबती , मोहल्ले के लड़कों को दिखी कि नहीं , इसे छिपाई नज़रों से ताकती भाँपती लड़कियाँ , ठिलठिल हँसती , शर्मा कर दुहरी होतीं , एक दूसरे पर गिरती पड़ती लड़कियाँ । ओह! ये लड़कियाँ ।

बात ओह! ये लड़कियां तक ही नहीं सीमित है भाई! लड़कों के डायलाग भी हैं-

लड़कों की भीड़ । बिना काम खूब व्यस्त दिखने की अदा , खास तब जब लड़कियों का झुँड पँडाल में घुसे ।
अबे , ये फूल इधर कम क्यों पड़ गये ,
अरे , हवन का सब धूँआ इधर आ रहा है , रुकिये चाची जी अभी कुछ व्यवस्था करवाते हैं
अरे मुन्नू , चल जरा , पत्तल और दोने उधर रखवा
जैसे खूब खूब ज़रूरी काम तुरत के तुरत करवाने होते । जबकि पंडिज्जी ने जब कहा था इन के बारे में तब सब उदासीन हो एक एक करके कन्नी काट गये होते ।


फिलहाल इतना ही। आप मौज करो। ये देखते जाइयेगा!

१.मनमोहना बड़े झूठे… : सांची कहूं मैं तोसे री गुंइयां!

२.मेघ और मड की रिश्तेदारी : दोनों गंदगी फ़ैलाते हैं।

३.रद़दी पेपरवाला ! अखबारों का कद्र्दान/शरणागत रक्षक!

४.जीवन ही मृत्यु है फिर जीने के लिये क्या मरना!

५.हमहूँ स्‍टूप डाउन करूंगा :कि ब्‍लॉगिंग भष्टाचार का अनुपम उदाहरण है।

६. कार्बन डाई ऑक्साइड कम सोख रहे हैं महासागर: हर जगह कामचोरी का माहौल है।

७.....मिलजुल कर एक सपना देखें :जय हिंदी---जय हिंद---जय गांव!

८.खाना, पीना, सोना कम्प्यूटर के साथ!:हम सोते हैं लेकिन बेचारा कम्प्यूटर जागता रहता है।

९.पुलिस,बच्चे ऒर लुच्चे-लफंगे : सब एक से बढ़कर एक हैं।

१०.क्या अफ़लातून गंदे गाने सुनना चाहते हैं? : जबाब दो भाई अफ़लातूनजी। चुप काहे हैं?

११.'मैं झूठ के दरबार में सच बोल रहा हूँ..' : अपने-अपने कान बंद करके सुनिये।

१२.गुलाबी शहर :में निशानेबाजी।

१३.कितने आदमी हैं? : गिनने पड़ेंगा बास!

१४.कल्लोपरी की आसिकी :तिल बनाना चाहा था स्याही बिखर गई!

१५.सरकारी मास्‍टर के रूप में मेरा सीटीसी क्‍या है? :जिसे बंगला, नौकर, अर्दली, सैलून कुछ नहीं मिलता।

१६.मैं खुद शर्मिंदा हूँ : कि मैं भी अभी ज़िंदा हूँ।

१७.जटिल लोकतंत्र में तो टिप्‍पणीकार अकारण फलफलाएंगे ही :टिप्पणी करने वाले भाई लोग इतना फलफला क्यों रहे हैं!

१८. विद्यार्थी जीवन के सुपरहिट संवादआपने कभी ऐसे संवाद बोले या नहीं?

१९.उंचाई नैनोमीटर में बताना है : अपने आप बढ़ जायेगी।

२०.सफल चिट्ठाकारी की गारंटी : फ़ैशन के दौर में गारंटी की बात करके शर्मिंदा मत हों।

२१.एक पुरानी पोस्ट का री-ठेल : आप तो ऐसे न थे।

निशाना चूक न जाये
निशाना चूक न जाये

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मंगलवार, अक्तूबर 23, 2007

आलोक जी का रावण अपने मोबाइल के बिल बाँच रहा है

हड़बड़ी में गड़बड़ी होती है ऐसा लोग कहते हैं। कहते तो हम भी हैं लेकिन मानते नहीं हैं। हमें तो लगता है कि हर धांसू काम हड़बड़ी में ही होते हैं जैसे कि यह गुटका चर्चा। है कि नहीं? बतायें, शरमायें नहीं।

१.आलोक जी का रावणज्ञानद्त्त जी के सैलून जैसे ड्ब्बे में सफ़र करते हुये अपने मोबाइल के बिल बाँच रहा है।

२.कृप्या दो जूते की सुरक्षित दूरी बनाये रखें... :वर्ना दोनों पड़ेंगे और चार लोग हंसेंगे।

३.व्योमकेश शास्त्री और बेनाम ब्लॉगरी : दोनों की भूमिकायें ज्ञानदत्त पाण्डेय जी निभायेंगे।

४.शास्त्रीजी आपका आह्वान अधूरा है! :लेकिन आप कानून की कहानी सुना रहें हैं!

५. लक्ष्मण को लंकेश की दीक्षा:सफलता प्राप्त करने के लिए चरणवंदना परम आवश्यक है।

६.पापा नंबर तीन : एस.एम.एस. से चुनें।

७.मेरे घर आना उडन तश्तरी टिप्पणियों की तोप चलाना उड़नतस्तरी।

८.अम्मा में समाई दुनिया... : बाप का पत्ता कटा!

९.आगे चुकता करें :क्योंकि यहां तो एक ढूंढो तो हजा़र मिलते हैं ।

१०.मीडिया से गायब हुए लोक के मुद्दे : मैत्री घर में बरामद।

११.एक प्रिंटर की शहादत!
सब कुछ आफिस के सहकर्मियों द्वारा किया गया।

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ये बनिये के बिल हो लेंगे

एक मास तक चिट्ठा चर्चा अब शायद न कर पाऊंगा
अगले शनि को वाशिंगटन में करवाना है कवि सम्मेलन
उसके दो दिन बाद निकलना अपनी भारत की यात्रा पर
कोई और करे चर्चायें, सब से करता नम्र निवेदन

हां समीर दिल्ली में होंगे, जिस दिन, उस दिन मैं भी हूंगा
मुम्बई से मैं ग्यारह की संध्या को आ दिल्ली पहुंचूंगा
सोच रहा हूँ अगर सभी से मिलना हो तो अति उत्तम है
उन लम्हों को याद बना कर अपनी सुधि में संजो रखूंगा

अब चर्चा है,:- गीतकलश पर वे सब ही धूमिल हो लेंगें
उड़नतश्तरी क्या कहती है जूते की गाथायें जाने
पंकज जी के चिट्ठे पर जा सीखें गूढ़ अदब की बातें
गज़लों की क्या शर्तें होतीं उनको थोड़ा सा पहचानें

अगड़म बगड़म ने बतलाया रावण ने सुसाईड कर ली
संजय क्या कहते हैं जाकत आप स्वयं ही यहाँ देखिये
जो न कह सके, वही बात फिर से कहते सुनील दीपकजी
किसे करें संजीव सारथी याद, उन्ही से पूछ देखिये

एक बार फिर प्रश्न उठाया है गंभीर शास्त्रीजी ने
पहले मिलता था कबीर, अब रावण मिलता बाज़ारों में
शर्मनाक किस कदर पुलिस है,भेद खोलते रवि रतलामी
बतलाते रघुराज कहानी जिसका चर्चा अखबारों में

प्रत्यक्षा ने शब्द चित्र से यादों की मंजूषा खोली
फ़ुरसतिया जी जाने कैसे दिखे नहीं मुझको नारद पर

यूनुसजी लाये बटोरकर जो प्रसंग वे बहुत अनूठे
बहुत दिनों के बाद एक सुन्दर रचना पढ़ने में आई
इस कविता में हिन्दुस्तानी कहते दर्द आज दुनिया का
अब ये देखें गीतकार की कलम साथ क्या लेकर आई



और चित्र यूनुसजी के चिट्ठे से





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रविवार, अक्तूबर 21, 2007

तुम मुझे यूं जला न पाओगे

रावण

रावण

आज के देश भर में जब रावण दहन हो रहा है और कुछ रावण ऐंठते हुये कह रहे हों कि तुम मुझे यूं जला न पाओगे तब चिट्ठाचर्चा करना अपने आप में अहमकपने का काम है। लेकिन करने में हर्ज भी क्या है? सो करते हैं! भले ही आप कहें -तुम मुझे यूं झिला न पाओगे।

लेकिन पहले बात कल की। कल दनादन क्रिकेट में जब भारत आस्ट्रेलिया को पटरा कर रहा था और उत्थपा 'बिस्क वाकिंग'सी करते हुये ली की गेंदों को उड़ा रहा था तब हमें गत्यात्मक ज्योतिष में कल के मैच के बारे में की गयी भविष्यवाणी याद आ रही थी। उसमें भारत की हार की भविष्यवाणी की गयी थी। ज्योतिष वाले बतायें कि ऐसा कैसा हुआ कि उनकी भविष्यवाणी वाइड हो गयी? क्या पत्रा गलत हो गया था?

कल अनीताजी की पोस्ट बड़ी धांसू टाइप की रही। वे कन्फ़्यूज्ड थीं कि
पता नहीं मैं कौन सी सदी में जी रही हूँ , क्या मैं पिछ्ड़ गयी हूँ और मुझे पता भी नहीं चला कि जमाना कितना आगे निकल गया है।
साथी लोग उनको अपने हिसाब से सलाह देते पाये गये। दुर्गाप्रसाद जी ने टिपियाते हुये कहा:
अनिता जी, आपने कार्यक्रम की सूक्ष्मताओं को बहुत बढिया तरह से शब्द बद्ध किया है. बधाई. ज़माना वाकई बदला है. कम से कम समाज के एक हिस्से के लिए. दर असल हमारा भारत एक साथ ही कई काल खण्डों में जीता है. एक तरफ ये चन्द सन्नारिया6 हैं जो बूगे-बूगी के मंच पर नाच कर अपना जन्म सार्थक् करती हैं तो दूसरी तरफ ऐसी भी अनेक अभागी महिलाएं होंगी जो अपनी सासों ससुरों की इज़ाज़त के बगैर सर से पल्लू भी नहीं हटने दे सकती. उनकी तो बात ही मत कीजिए जिनके लिए ये सारी बातें कल्पनातीत हैं. लेकिन, मुझे तो इस बात की खुशी है कि चलिए भारतीय महिला समाज का एक बहुत छोटा-सा वर्ग ही सही, अपने मन की दबी-छिपी तमन्नाओं को ज़ाहिर और पूरा तो कर पा रहा है.


बेजी की कल की कविता की ये लाइने देखिये-
जाना कहाँ
किसको है क्यों
यह तो कुछ भी पता नहीं
उड़ान का मज़ा लूटने
पँख पहन कर उड़ गये

प्रसन्न खानाबदोशों का एक झुण्ड
प्रसन्न खानाबदोशों का एक झुण्ड


आपको शायद पता हो कि आज शम्मी कपूर का जन्मदिन है। शम्मी कपूर सिनेमा जगत के ऐसे शक्स हैं जो सबसे ज्यादा इन्टरनेट का इस्तेमाल करते हैं। वे नेट की शुरुआत से ही इसके शौकीन बने। 'याहू' ने जब अपनी दुकान भारत में खोली थी तब उनको खास तौर से बुलाया था। आज वे शम्मी कपूर ७७ वर्ष के हो गये। इस अवसर पर खुशी का खुशनुमा पाडकास्ट सुनिये और आनन्दित होइये।

साम्यवाद वैसे तो बड़ा जटिल दर्शन वाला माना जाता है लेकिन संजय बेंगानी एक आम भारतीय की तरह इसकी सुगम व्याख्या भी करते हैं:
जब इंजिन बनाने वाले और उसे चलाने वाले को एक ही धरातल पर तौला जाता है समझो साम्यवाद स्थापित हो गया. मैंने कहा अरे! तब तो समझो साम्यवाद का सपना सच हो गया.


अभयतिवारी ने अपनी माताजी का ब्लाग बनाया था। पहले पता कुछ और दिया था अब श्रीश जैसे ज्ञानियों की संगत में उनको पता चला कि पता सरल सा होना चाहिये। सो सरलीकरण की सूचना दे दी। आपौ ग्रहण करें।

आलोक पुराणिक जैसा कि आपको मालुमै है कि हमेशा अगडम-बगड़्म बात करते हैं। आज बोले कि रामायण में सीधा पन है। ब्लैक एंड व्हाइट टाइप का जबकि महाभारत कलरफ़ुल है। वे महाभारत की तारीफ़ करते हुये करते हैं-
महाभारत कांपलेक्स है, जिंदगी की तरह।
महाभारत के पात्र उन सब ऊहापोहों से गुजरते हैं, जिनमें हम सभी को गुजरना होता है।
अदरवाइज अच्छे कर्ण के अपने अंधेरे हैं, पर इसमें उसके चरित्र की रोशनी भी साफ दिखायी देती है। मामला कुछ-कुछ ग्रे कैरेक्टर का हो जाता है। कोई पूरा अच्छा नहीं है, कोई पूरा खराब सा भी नहीं है। धर्मराज भी जुएबाजी में पत्नी को हार रहे हैं। कृष्ण द्रोणाचार्य को मारने के लिए जो कर रहे हैं, उसे फरेब के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता है। भाई-भाई का हक मारने में जुटा है।
गौर से देखें, आसपास महाभारत कथाएं बहुत आसानी से मिल जायेंगी।


रावण
रावण

महाभारत का समर्थन करने के तुरंत बाद हमसे बोले- हमको वनलाइनर मांगता। जिसका आदर्श महाभारत हो उसकी बात मान लेने में ही भलाई है। यह विचार करते हुये यहां प्रस्तुत हैं कुछ ब्लाग पोस्ट का जिक्र।

1.प्रसन्न खानाबदोशों का एक झुण्ड :करछना स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहा है। "भित्तर आवइ द हो!"

२. पाकिस्तान: जब-तब पटरी से उतरा लोकतंत्र:एक फ़ौजी बैठ गया।

३. जुमलों की झुमरी-तलैया बन गया साम्यवाद: और तलैया में पूजीवादी भैंसे लोट लगा रहे हैं।

४.125 साल पुरानी मांग है शिक्षा का अधिकार : हम तो कहते हैं डबल सेंचुरी हुई के रही।

५.छोटे लेखों का जादू : शास्त्री जी के सर पर चढ़ा। 'नयनो टेक्नालाजी' का जमाना है।

६.प्राग में -- दो साल पहले ! :खरीदा कप कबाड़खाने में मिला।

७.रावण बनाम ग्रे कैरेक्टर :आलोक पुराणिक का रोल माडल!

८. मेरे सीने अपना सिर रखकर :दिन दहाड़े वो डाका डालेगा ! कोई तो पुलिस को बुलाये!

९.मोदी का पानी मांगना..क्या संकेत देता है :यही कि मोदी को भी प्यास लगती है और उनको बाहर का पानी जमता नहीं।

१०. "ट्रांसफ़र का काम है" कहना पर्याप्‍त नहीं है _:जगह भी बताओ और पैसे भी लाओ!

११.दर्द बनकर समा गया दिल में : लगता है कुछ दिन टिकेगा।


१२.समाचारपत्रों में गन्दगी : साफ़ करने के लिये जागरुकता का साबुन लगायें।

१३.संघर्ष निखारता है आदमी को :और आदमी को आरामदायक पायजामा बना के छोड़ देता है।

१४.अल्लाह जानता है : कि कितने स्वार्थी हो गए हैं रिश्ते!

१५. रावण का इंटरभ्यू:देख लो हर चैनल पर कराइम शो चलता है, इंसानियत पर शो चलते कभियो देखा है!

१६.सैकडों रावण सज-धज कर तैयार हैं दहन के लिए : गिन-गिन के जलाइये कोई बच के जाने न जाये।

१७.लंकेश को एक खुली चिठ्ठी.... : लंकेश तक पहुंचने के पहले ही लीक!

१८.मुझे भी तो जीवन से प्यार है : सच्ची! लेकिन जीवन में प्यार की क्या दरकार है!

१९.विज्ञापन कैसे-२ : देख कर मुस्कराते रह जायेंगे।

२०.इस तरह बनना : कि कहीं कुछ छूट न जाये।

२१.क्या पाठक का लाभ अखबारों की चिन्ता है ? : ऐसे ही अखबारों की चिन्तायें क्या कम हैं जो पाठक के लाभ की चिंता करें।

*कार्टून बामुलाहिजा से साभार

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गुरुवार, अक्तूबर 18, 2007

वाशिंगटन में कवि सम्मेलन

चिट्ठों की चर्चा तो अक्सर करता हूँ पर आज नहीं है
आज सूचना भर देनी है सब मित्रों औ’ सुधी जनों को
इस महिने की सत्ताईस को कवि सम्मेलन का आयोजन
शिल्पित करने को कवियों की आंखों में बुनते सपनों को

आयेंगे अनूप, रजनीउड़नतश्तरी वाले लाला
आप अगर हैं वाशिंगटन के आस पास तो आप आइये
और अगर यदि लिखते भी हैं तो मुझको दें आप सूचना
मंच यहां पर हम देते हैं, अपनी रचना आन गाइये

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मंगलवार, अक्तूबर 16, 2007

कोई शिकायत ???

समीर ने करी शिकायत, न ही शानू ने कुछ बोला
और रहे काकेश मौन हो व्यस्त स्वयं की मधुशाला में
कोई शिकवा नहीं किसी का चर्चा से क्यों दूर हुए हम
उलझे रहे च्यस्तताओं की पल पल पर ढलती हाला में

घुघुत्र्र बासूतीजी अपना खोया बचपन ढूँढ़ रही हैं
जो न कह सके वो थी शायद सिले हुए होठों की ही स्मित
यह निश्चित ही व्यंग्य नहीं है कहते हैं आलोक पुराणिक
एक सोच का दॄष्टिकोण है, हम भी हुए सोच कर ही चित

ई पंडित जी ने खोले हैं नये ज्ञान के नूतन पोथे
गर्दिश में भी रहा दीप्तिमय, वो बस एक चरागे दिल है
दिल का दर्पण सिखलाता है नये पाठ कुछ नई विधा में
गीतकलश में जो भी कुछ है, एक तुझी पर आधारित है

नारद पर कुछ पूरा दिखता नहीं न जाने क्या कारण है
न समीर का चिट्ठा दिखता नहीं दिखे हैं रवि रतलामी
ये है निश्चित सभी लिख रहे, सोषी संभव मेरी नजर है
चलो हो चुकी चर्चा अब स्वीकारो मेरी एक सलामी

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