मंगलवार, सितंबर 30, 2008

ब्लागिंग आनलाइन चौपाल है

आलोक पुराणिक

  • आज की चर्चा की शुरुआत एक गुलगुली खबर से। खबर ये है कि अगड़म-बगड़म लेखक आलोक पुराणिक आज के दिन ही पैदा हुये थे। यहां वनलाइनर जो आप देखते हैं उनको जारी रखवाने और लगातार लिखवाने के पीछे आलोक पुराणिक की ही साजिश है। उन्होंने यह भ्रम हमारे मन में बैठा दिया कि आगे केवल वनलाइनर ही चलेंगे और सब बैठ जायेगा। इसी झांसे में फ़ंसकर यहां वनलाइनर पेश किये जाते हैं। पिछले सत्ताइस साल से लगातार लिख रहे आलोक पुराणिक को जन्मदिन की मंगलकामनायें। उनसे इस मौके पर बातचीत हुई। आप इस बातचीत का फ़ुल मजा लेना चाहें तो पढिये- ब्लागिंग मस्ती की पाठशाला है -आलोक पुराणिक


  • कूड़े को रिसाइकल करके उसका दुबारा उपयोग किया जाता सकता है और तमाम समस्यायें हल हो सकती हैं। कूड़ा प्रबंधन के बारे में जानकारी देती हुई विवेक गुप्ता की पोस्ट पढ़कर शायद आप भी कह उठें- कूड़ा कितना सोणा है


  • चवन्नीचैप सिनेमा से जुड़ी खबरों, समीक्षाओं का बेहतरीन ब्लाग है। इस बार अपने संस्मरणात्मक लेख में चवन्नी गुरू चंडीदत्त शुक्ल से लिखवाये हैं उनकी सिनेमाई यादें- हमका सलीमा देखाय देव. इस संस्मरणात्मक लेख पर लोगों की कम प्रतिक्रियायें देखकर ब्लाग पर टिप्पणी ब्लागर की नेटवर्किंग के समानुपाती होती है सिद्दांन्त की पुष्टि सी होती है।



  • एक लाइना



    1. औंधे मुंह गिरा शेयर बाजार:और उसकी बत्तीसी हाथ में आई


    2. भ्रष्टाचार या शिष्टचार ? : कुछ भी कहो लेकिन अगर ये न हों अदालतों का काम न चले


    3. ढ़पोरशंखी कर्मकाण्ड और बौराये लोग : ज्ञानदत्त पाण्डेय के ब्लाग पर काबिज


    4. हलवाईगिरी से निपटेंगे :दही बड़े कड़े बनाने का एलान


    5. उबासी के बीच कोई उदासी :पोस्ट


    6. तू डाल डाल मै पात पात ! :बस इसी में निपट गई सब बात


    7. सारे मुसलमान पहन लें जनेऊ...सारे हिंदू करवा लें खतना.. बस झगड़ा खत्म ! : सबके जनेऊ होते होते तो मुसलमान बनते कहां से भैये?


    8. प्रेम गली से खाला के घर तक: मामला लबालब लवमय है


    9. केले के चिप्स :खाकर ब्लाग लिखने से हाजमा दुरुस्त रहता है


    10. भविष्य के कंप्यूटर :देखते ही आंखे फ़टीं


    11. एक शाम दोस्तों के नाम : कुछ और नहीं था अच्छा काम?


    12. माता स्वरूप देवी की महिमा : का वर्णन सुनते ही ब्लागिंग की सारी बाधायें दूर हो जाती हैं


    13. अर्जुन सिंह रोये क्यूं : क्योंकि उनको अंदाज हो गया था कि वे ब्लाग पर पोस्ट होने वाले हैं


    14. कितनी ही कोशिश कर लो दिल्ली झुकने वाली नहीं दहशतगर्दों : तुमको पता होना चाहिये सिस्टम में गठिया होने के कारण दिल्ली चाहकर भी नहीं झुक सकती


    15. एक अमूल्य उपहार :अखबार में काव्यपाठ का समाचार


    16. मेरा मन एकाग्र नहीं होता, उपाय बताईये :हर ब्लाग पर जाकर निस्वार्थ भाव से टिप्पणी करें


    17. इस शहर मे रिक्शा नही चलते: बताओ भला ऐसे कैसे चलेगा?


    18. लिख सतीश तू बिना सहारे गाने वाले मिल जायेंगे : वही फ़िर तुम्हारे गीत का मतलब भी बतलायेंगे


    19. अनुत्तरित प्रश्न: न जाने कब अपने जबाब पेश करेंगे


    20. यह मुल्क हमारा होकर भी हमारा क्यों नहीं लगता? : जाकी रही भावना जैसी/देश की सूरत तिन देखी तैसी


    21. फिर फटा गुजरात में बम : फ़िर एक पोस्ट लिखने बैठ गये हम


    22. आई है ईद, लेकर उदासियाँ कितनी.... :खुशियां ही लेकर आई है ईद जरा फ़िर से देखो


    23. कौन सफल है आतंकवाद या राजनीति? :राजनीतिक आतंकवाद


    24. सफाई में ही भगवान का निवास है : इसीलिये भाई लोग देश के माल पर हाथ साफ़ करते हैं, भगवान से मिलते हैं


    25. आतंकवाद : सर्वसुलभ है


    26. चिट्ठाकारों से एक छोटी-सी गुजारिश : कि वे शहर को जगाने में सहयोग करें


    27. गुब्बारे बताएंगे कब आएगा तूफान : लेकिन खबर आपको मिलेगी तूफ़ान के बाद


    28. तूने भी ज्यादती बनाने वाले मुझसे की.: इस ज्यादती की खबर जब चिट्ठाकारों को होगी तब देखना कित्ते लोग पोस्ट लिखते हैं


    29. अमेरिका का संकट, दुनिया की मुसीबत :ये होता है सनम बनाने का खामियाजा- वो तो डूबे हम भी ले डूबे


    और अंत में



    फ़िलहाल इत्ते में ही काम चलाइये। आज फ़िर लाइट ने धोखा दिया और तमाम धांसू च फ़ांसू पोस्ट रह गयीं। ब्लागर साथियों के सवालों के जबाब भी रह गये। नये चिट्ठाकार भी ।

    चर्चाकार साथियों ने तमाम चर्चा में बदलाव की बात कही है। मामला अभी कुछ तय नहीं हो पाया है। फ़िलहाल मुझे लगता है कि एक साथी दिन में सबेरे जैसे चर्चा करता है वैसे करता रहे। जित्ते चिट्ठे कवर कर सके कर दे। इसके बाद जिसको जैसा टाइम मिले वैसा करता रहे। इसी बहाने हम अपने वन लाइनर, तरुण अपने एक-दूजे के लिये और कुश अपने काफ़ी के सवाल और सुजाता अपने मुद्दे रोज ठेल सकते हैं। एकाध या जित्ते मन चाहे।

    बतायें इस बारे में क्या विचार है आपका!!

    कल की चर्चा करेंगे कुश। अब उनका मन है खुश।

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    सोमवार, सितंबर 29, 2008

    बेटी दिवस के बाद कद्दू दिवस

    कद्दू दिवस

  • कल इतवार को होने के कारण चिट्ठाबाजी लगता है कुछ कम हुई। टिपा-टिपौव्वल में भी मंदी सी दिखी। बहरहाल चलिये थोड़ा चर्चा हो जाये।


  • विभूति नारायण राय प्रख्यात पुलिस अधिकारी, साहित्यकार हैं। उनका उपन्यास’शहर में कर्फ़्यू’ काफ़ी चर्चित रहा। उन्हें हाल ही में महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय ,वर्धा का कुलपति बनाया गया है। कल हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान में उनका साक्षात्कार छ्पा। एक सवाल के जबाब में उन्होंने कहा:
    पुलिस सेवा किसी भी अन्य नौकरशाही की तरह रचनात्मकता विरोधी है। मैंने पिछले तैतींस वर्षों की सेवा के दौरान यह अनुभव किया है कि यदि आप नौकरी के अतिरिक्त दिलचस्पी के दूसरे क्षेत्र नहीं रखेंगे तो धीरे-धीरे आप जानवर में तब्दील होते जायेंगे।

    जो भाई लोग केवल नौकरी में मशगूल रहते हैं वे समझ लें। फ़िर न कहें कि बताया नहीं।


  • अनुराधा प्रसाद जिन अनुभवों से गुजरीं उनको साझा करते हुये लिखती हैं:
    ...लेकिन स्तन क्या इतने ही अवांछनीय और शर्मिंदगी का विषय हैं कि उनके बारे में चर्चा भी सहज होकर न की जा सके? दरअसल यह बात मुझे काफी देर हो जाने के बाद समझ में आई कि ये शर्मिंदगी का विषय तब हैं, जब छोटी-छोटी अनभिज्ञताओं की वजह से नवजात शिशु दूध न पी पाए। समय पर उनका वास्तविक इस्तेमाल न हो पाए।


  • दिनेश राय द्विवेदी बताते हैं आज कद्दू दिवस है। लो भैया खाओ कद्दू, मनाओ कद्दू दिवस। मतलब जिसको खाओ उसी का दिवस मनाओ। बलिहारी है। डर लग रहा है। गांधी दिवस आने वाला है!


  • अमेरिका में बड़े-बड़े बैंक दनादन दिवालिया होते जा रहे हैं। ई-स्वामी आज बता रहे हैं कि अमेरिका के आर्थिक संकट में फ़ेडरल रिजर्व की भूमिका क्या रही!:
    अत: अमरीका का अर्थ-तंत्र कर्ज आधारित है. उपभोक्तावाद का बोल-बाला है. वैसे तो काफ़ी कुछ है लिखने के लिये पर लब्बो-लुआब ये की पिछली उछाल वाली साईकल में उत्पादकता और तरलता की दर अधिक होने से बेरोजगारी और महंगाई अपेक्षाकृत नियंत्रित रही हैं. लोगों में सुरक्षा की भावना थी - यूं समझा जाए की इसका फ़ायदा उठाने वाली साईकल शुरु की गई थी


  • अभिषेक ओझा ने बताया कि सौंदर्य अनुपात दुनिया में सब जगह पाया जाता है। यह सूचना पाते ही समीरलाल चल पड़े अपने चेहरे में सौंदर्य अनुपात देखने।


  • हिंदी ब्लाग जगत को तमाम बेहतरीन आलेख पढ़वाने में कबाड़खाना की बेहतरीन भूमिका रही है। आज कबाड़खाने का एक साल पूरा हुआ। कबाड़खाना के बारे में अपनी राय व्यक्त करते हुये ई-स्वामी ने कहा:
    ब्लागस्पाट की अपनी कुछ सीमितताएं हैं - जिनके चलते कबाडखाना वर्डप्रेस या टाईप-पैड आधारित ब्लाग्स जितना ‘स्ट्रक्चर्ड’ नहीं हो पाता वर्ना यह सामूहिक ब्लाग अन्य हर मानक पर हिंदी में सर्वश्रेष्ठ है!
    कबाड़ाखाना को जन्मदिन मुबारक।

  • नये चिट्ठाकार



    1. Media Watch


    2. lovenewthinking


    3. Vijay Verma

    4. SWEET MEMORIES

    5. सचिन

    6. विचार संकलन

    7. President of isgsbvnn

    एक लाइना



    1. टीवी पर मास्टरमाईण्ड शब्द कई बार दिखाने से भडक गये स्कूल के मास्टर लोग :और बोले ससुर मास्टरी का माइंड से क्या लेना-देना?




    2. तय करो किस ओर हो
      इस ओर हो, उस ओर हो.

      बातों को मनवाना हो तो
      तर्कों में कुछ जोर हो.
      या फिर
      कुछ ऐसा कर जाओ कि
      सदियों तक उसका शोर हो.

      तय करो किस ओर हो
      इस ओर हो, उस ओर हो. साधवी

    3. भाग रे भाग, पुलिस:पकड़ के ले जायेगी


    4. भारत में चुनाव और पी-फैक्टर : के दिन बहुरने वाले हैं


    5. हम अपनी बेटियों को क्या सिखा रहे हैं? : यह हमें ही नहीं पता


    6. आज कद्दू खाएँ, कद्दू दिवस मनाएँ : कद्दू महाराज की पूरी देवी से शादी के किस्से भी सुने


    7. किताबों की खुसर-फुसर… :अच्छी, गुदगुदी लग रही है


    8. 2020 का ऑफिस यानी मौजां ही मौजां: दिल को बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है


    9. जिम्मेदारी रायते की है : उसे देखकर फ़ैलना चाहिये था


    10. बापू को बख्श दो, प्लीज :उनका तो कोई माई बाप भी नहीं बचा अब


    11. प्रोफ़ेसर मुशीरुल हसन के वक्तव्य पर इतनी बेचैनी क्यों ?: तब क्या आप दो वक्तव्य दे लो कोई रोकता है क्या!


    12. फ़िर से ३ : १३ के चक्कर में पड़ गये


    13. आशाजी की गाई एक गजल:तुम तो ऐसे न थे कभी पहले


    14. पीली क्यों हो ऋतंभरा ?:मैं बार-बार पूछ रही हूं तुम जबाब नहीं देती


    15. आप भले, जग भला : कह रही हैं रंजना भाटिया तो मान लो


    16. हिंदी ब्लागिंग और हमारी व्यवसायिक चिंता: के क्या होगा भैये कुछ बताते तो सही


    17. अमर उजाला में गूंजे लफ्ज:इस्लाम तो इन्सानियत का मजहब है


    18. रिश्तों की गरिमा ई कौन चीज होती है भाई कुमारेन्द्र :


    19. अब और लिखने को क्या बाकी रह गया योगेश...बिना कलम ,स्याही, दवात इत्ता लिख गये ये कम है क्या भाई! :


    20. जागों हिंदुस्तान.. जागो हिंदुस्तानियों :उठो और अपना-अपना ब्लाग लिखो


    21. भर्ती मे देरी हुई तो प्राचार्य दोषी माने जाएंगें...:और उनको उन्हीं के स्कूल में भर्ती करा दिया जायेगा।


    22. जब मैं लूँगा हिसाब! :तो सबके होश ठिकाने लग जायेंगे


    23. तू सी ग्रेट हो : कहते हो तो मान लेते हैं


    24. क्यों नहीं श्मशान चला जाता? :और वहीं से अपना ब्लाग लिखता


    25. मेरा 'चौथा खड्डा' नवभारत टाईम्स पर :नवभारत टाइम्स में भी खड्डा खोद दिया पासपोर्ट के लिये


    26. फायदेमंद है मुहब्बत :चल गुरु हो जा शुरु


    27. बाढ़ है, मजाक नहीं : जो मुंह फ़ाड़ के हंस रहे हो, हाथ पर हाथ धरे


    28. जीरो साइज ठानी बाबा:कैसी कही कहानी बाबा


    29. इक बार तेरा चेहरा फिर देख लूँ :इसके बाद एक बार फ़िर देखेंगे इसके बाद फ़िर...


    30. भगत सिंह की सुनो :वो तुम्हारी सुनेगा


    31. मेरी रंगत का असर :पड़ेगा जमाने पर


    32. अलविदा ब्लागरो, फीर कभी और मीलेंगे (आखरी बार मूलाकात) :अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं


    33. आज विश्व ह्रदय दिवस पर सचित्र कुछ शायरियां :दिल शायरी में भी कूद पड़ा


    34. प्लेन में धक्का :लगाना पड़ता है तब स्टार्ट होता है जी


    35. आजमगढ़- कासे कहूं मैं जिया की बतियां:कहो हम सुन रहे हैं यार


    36. भारत नहीं है बेटियों का देश नहीं फिर क्यों मना रहे हैं डाँटर्स डे ?:लेकिन मना लेने में हर्ज क्या है जी?



    मेरी पसन्द


    दर्द में भी जो हंसना चाहो,
    तो हंस पाओगे,
    टूटे फूलों को भी पानी में डालो,
    तो उनमें भी महक पाओगे।

    जिन्दगी किसी ठहराव में,
    कंही रुकती नहीं,
    हिम्मत जो करोगे तो
    मन्जिल में दोस्तों को पाओगे,
    टूटे फूलों को भी पानी में डालो,
    तो उनमें भी महक पाओगे।


    अरमान कभी पूरे नहीं होते,
    जो देखे जाते हैं,
    वो भी आंसुओं के साथ,
    आंखों से निकल जाते हैं,
    फिर भी, किसी की खातिर,
    खुद को सवांरोगे तो,
    सराहे जाओगे,
    टूटे फूलों को भी पानी में डालो,
    तो उनमें भी महक पाओगे।
    प्रीति बड़्थ्वाल’तारिका’

    और अंत में


  • बिरादर जीतेन्द्र भगत ब्लागिंग और मौजूद दोहरेपन के बारे में कुछ ज्यादा ही परेशान हैं और कहते हैं-ब्‍लॉग: रि‍श्‍तों की समानांतर दुनि‍या और दोहरी छवि‍!!

    हमने तो उनको समझाया कि-ब्लागिंग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। बस। दुनिया के लोग यहां भी हैं। वैसा ही होगा सब कुछ जैसा दुनिया में होता है। समझे बिरादर!

    और भी लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं। आप भी कुछ कहेंगे इस बारे में?


  • कुछ खास नहीं। हफ़्ता शुरू हुआ। धांस के काम करें। मौज मजे से रहें। ब्लागिंग तो चलती ही रहती है। है कि नहीं?
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    रविवार, सितंबर 28, 2008

    हौसलों की उड़ान क्या कहिये

    बेटियां

  • आज बेटी दिवस है। दुनिया की सारी बेटियों को यह दिन मुबारक।


  • बेटियों के साथ आज ब्लागर अनिल सिंह का भी दिन है। अनिल को जन्मदिन मुबारक।


  • जन्मदिन तो आज लता जी का भी है। उनके स्वर कोकिला से स्वर साम्राज्ञी बनने के सफ़र की तमाम यादें साथी लोग साझा करेंगे। लताजी को जन्मदिन मुबारक। वे शतायु हों। इस मौके पर युनुस खान सुनवा रहे हैं लताजी से हुई उनकी टेलीवार्ता


  • कल दिल्ली में फ़िर धमाके हुये। फ़िर इस पर कुछ पोस्टें आयेंगी। क्रिया होगी तो न्यूटन जी की दुआ से प्रतिक्रिया भी होगी।


  • मुसलमान नवयुवक परेशान न हों वे मुकाबला करें इस हालात का। अफ़लातून जी ने ऐसा संदेश दिया है।


  • प्रख्यात गायक महेन्द्र कपूर नहीं रहे। उनको हमारी विनम्र श्रद्धांजलि। इस मौके पर पढ़िये अनीता कुमार जी की महेन्द्र कुमार के बारे में लिखी ये पोस्ट


  • बाकी ब्लाग्स के बारे में हम कुछ न बोलेंगे। ब्लाग अपनी दास्तां खुद सुना रहे हैं, सो न जाना सुनते-सुनते।


  • मेरी पसन्द


    सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना
    सो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।

    पलको की ओट तोहे निंदिया पुकारे,
    देख रहे राह तेरी चन्दा सितारे,
    भोली-भाली बतियों का जादू न डालना,
    सो जा मेरी रानी मेरी कहना न टालना।

    जल्दी जो सोये और जल्दी जो जागे,
    जीवन की तौड़ पर सत्य रहे आगे,
    प्यारे है बच्चा मोहे कहना जो माने
    जुग-जुग जीवे झूले सोने का पालना।

    सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना,
    सो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।

    फ़ुरसतिया से

    एक लाइना



    1. मुंहपिल्लई :करके ही माने पंचायतवाले


    2. चमड़ी : का ख्याल रखना चाहिये भाई



    3. तुम सजल करो मेरे नयनों को
      दो अश्रु धार बह जाने दो
      भर सकूं हृदय को भावों से
      ऐसा अतुलित तुम प्यार करो राहुल उपाध्याय


    4. अब दीवालिया हुया वाशिंगटन म्युचुअल :मतलब भैस पानी में गहरे उतरी


    5. रानी रूठेंगी अपना सुहाग लेंगी: कविता से बात नहीं बनी का!


    6. तुम भी पुण्य कमालो गांव वालो ! : हम इकल्ले महान न बनेंगे


    7. शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले...:वहां हाजमे का चूरन और मर्दानगी की दवा बिकेगी


    8. लैहमैन से ले मैन तक:लालच के साथ बेवकूफ़ी का गठबंधन


    9. अविनाश जी...महरौली में बम मैंने फोड़ा, शुक्र है आपका मोहल्ला बच गया ! :सिर्फ़ इसलिये कि आप हमारे साथी ब्लागर हैं


    10. A-Z एक विद्युत अभियंता की ज़बानी:याद रखने में निपट जायेंगी नानी



    11. बचपन के दिन भी क्या दिन थे : उनकी याद में ही ये बचपना है



    12. हौसलों की उड़ान क्या कहिये!
      छोटा सा आसमान क्या कहिये !!

      दर्द से कौन अजनबी है यहाँ!
      दर्द की दास्तान क्या कहिये।डा.अमर ज्योति



    13. इस्लाम ने भारत को क्या दिया: बड़े हिन्दू को एक अदद पोस्ट


    14. मैं इंस्पेक्टर शर्मा को नहीं जानता : क्योंकि वो प्रचार पसंद नहीं करते थे


    15. जुये का अड्डा या कुश्ती का अखाड़ा : जो चहिये वो मिलेगा अजित वडनेरकर के यहां


    16. दिखता है छपता क्यों नहीं :छपेगा तो संजीत का करेंगे?


    17. विवादास्पद " रेड कोरिडोर "- यानि नक्सलीओं का अभ्यारण :नेपाल से भारत तक फ़ैला है


    18. भ्रष्टाचार का पूल: डिनर द्विवेदी जी के सौजन्य से


    19. सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे :थैली में थे पहले सब , थैली किधर गयी?


    20. बेबस हिन्दुस्तान, जनता परेशान, बेखबर हुक्मरान :क्योंकि यह है इंडिया भाईजान



    21. हंस उड़ जायेगा अकेला: अकेला क्यों? क्या हंसिनी से उसकी पटती नहीं?



    22. शादी के जो अफ़साने हैं रंगीन बहुत हैं,
      लेकिन जो हक़ीक़तें हैं संगीन बहुत हैं,ऋतेश त्रिपाठी

    23. भूतनाथ की हिटलर की प्रेमिका से मुलाक़ात !: और मिलते ही बोली आई मिस यू माई डियर भूतनाथ!


    24. गुरु आखिर कौन होता है?:ई त ससुर गुरुऔ न बता पईहैं


    25. श्राद्ध और पंडितजी: दिन अब बस खतमै समझौ


    26. धमाकों के पीछे दहसतगर्द-सिमी अध्यक्ष : और अंबरीश कुमार


    27. मैं आभारी हूं मुशीरुल, अर्जुन, लालू और मुलायम का : उनके सहयोग के बिना ये पोस्ट न लिखी जा सकती थी


    28. याद आता है मुझको:तू लजाती, शर्माती और झिझकती थी


    29. शिक्षित भी गुलाम होते हैं: और बढ़िया/वफ़ादार गुलाम होते हैं


    30. थोड़ा कुछ अपने बारे में :बता लें फ़िर दिल और दिमाग खोलें



    31. जीएम फ़ूड:दाने दाने पर लिखा होगा बनाने वाले का नाम : खाने वाले कहेंगे हाय कैसे दिन आ गये हैं राम!


    32. किताबों की खुसर-फुसर… एक और क्षेपक: और ये पचासवीं पोस्ट हो गयी


    33. मेरे घर चलोगे: माँ ने रोशनदान में थोड़ी धूप छुपा रखी है तुम्हें दिखायेंगे


    34. कांच की बरनी और दो कप चाय : का जुगाड़ हमेशा होना चाहिये


    35. बस :बहुत हुआ यार...अब रोना बंद करो अझेल कर देते हो


    36. हिन्दी :बुजुर्ग भाषा है इसकी पेंशन के लिये अप्लाई करो भाई


    37. हिंदू या मुस्लिम : के अहसासात को मत छेडिये वर्ना बवाल हो जायेगा


    38. सुनी -सुनायी:सुनाने का मजा ही कुछ और है


    39. अब तो डर लगता है: इत्ते में ही डर गये मनोज बाजपेयी


    40. रघुकुल रीति सदा चली आई :पोस्ट पढ़े जो सो टिपिआई


    41. क्योंकि तू बेकसूर है: ये कम बड़ा कसूर है?


    42. ...लो फिर विस्‍फोट हो गया : चलो फ़टाफ़ट एक पोस्ट लिखें


    43. मेरा वतन मुझे याद आ रहा है: मुझसे मेरे ब्लाग पर बड़ी सी फ़ोटो लगवा रहा है


    44. धन्यवाद अफलातून भाई, मुस्लिम नौजवान जरूर ध्यान देंगे :बाकी लोगों के मतलब का ये नहीं है का?


    45. कोई बुद्ध तुम पैदा करो: तब कुछ मजा आये


    46. मोह : दरवाजे पर दस्तक देता रहता है


    47. आखिर हाई एलर्ट का क्या मतलब ? : मतलब यही है- हाई फ़ाई लोगों का शब्दों से फ़्लर्ट


    48. ज्यों की त्यों धर दीनी :पोस्टिया



    49. मन में हैं दस बीस : भाव जो शांत नहीं बैठने देते


    50. न्यूज चैनलों में काम करने वाली वो लड़कियां.... : इसे पढ़ेंगी तो जरूर टिपियायेंगी


    51. तुम दूर चली क्यों जाती हो :हमें एक कविता लिखनी पड़ती है


    52. उनकी तरफ़ से मैं माफ़ी मांगती हूँ.: आप महान हैं विनीता जी


    53. वक्त सड़क पर उतर आने का :ताकि सड़क पर जाम लगे, देश का काम लगे


    54. नाम खुरच कर क्या साबित किया ????:यही कि अगले के पास एक अदद ब्लेड भी है


    55. मुसलिम नौजवानों-’भागो मत , दुनिया को बदलो !’:ट्राई करो मजा आयेगा


    56. जंगल जंगल आग लगी है, देव उगे हैं: देव उगे हैं फ़सल कटे है


    57. किस्मत की बलिहारी भईया : मेहनतकश को भूख नसीब पर, खाए जुआरी माल-मलइया


    58. हाले अमेरिका के बाद हम भी जायें संभल :वर्ना हम भी डूबेंगे- आज नहीं तो कल


    59. विदेशी पिस्टल रखने पर शहाबुद्दीन को 10 साल की सजा : देशी चीजों की वकत करते तो ठाठ से घूमते


    60. हमारी दोस्ती में अमेरिका का लाभ है तो हर्ज क्या है? :वो अपना मौज करें हम अपना


    61. हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है :इसीलिये आजकल लोग प्रतिक्रिया करने के लिये क्रिया का भी इंतजाम करते हैं


    62. गूगल के विज्ञापन - हिन्दी वाले - थरथराहट :सुधर जाओ, सालों


    63. बार कैम्प 4 आ रहा है चिट्ठाकारों के लिए जानकारियों का खजाना लेकर :लूट लो जो होगा देखा जायेगा


    64. मैं जिंदगी से आँख चुराता चला गया, बस मौत को गले से लगाता चला गया. : इसे कहते हैं याराना


    65. 3000 हजार रुपये की चपत के लिये आभार दोस्तों!!:आभार की क्या बात आखिर में इसे झेलना हमी को है


    66. डिजिट ब्लॉग अब हिन्दी में:काफ़ी विचार और मान-मनौव्वल के बाद



    67. जन्मदिन एक है तो क्या भगत सिंह बन जाओगे? :बन भी गये तो का कल्लोगे ? निपटा दिये जाओगे, जमाना जरा अलग तरह का है



    68. कहां के पथिक :हो जरा गीत सुने जाव


    69. चांद की सैर : कार के टायरों के बगैर!


    70. काम छोड़ो-महान बनो :दुनिया के कामचोरों एक हो


    टिप्पणी"स्मोकिंग मार्क्सवाद की तरह है. युवावस्था में आपको इसका अनुभव करना चाहिए. लेकिन आप महामूर्ख होंगे अगर समय रहते इससे बाहर नहीं निकल आते."
    बाचीकरकरिया

    प्रतिटिप्पणी
    जिन लोगों ने मार्क्सवाद और धुम्रपान दोनों का ही अनुभव नहीं किया। उन का यह विशेषज्ञ विचार वैसा ही है जैसे बन्दर अदरख के बारे में दे।
    बेनामी

    और अंत में



    ज्यादा टाइम न खायेंगे जी आपका। हमें पता है कि आज इतवार है और आप मौज मजे के मूड में हैं। हमें भी जाना है आफ़िस। हां भैया आफ़िस इतवार को भी। इसलिये ताकि उत्पादन काम में कोई बाधा न आये छुट्टी आने के कारण। जैसे-जैसे त्योहारों की छुट्टियां आती हैं हमारे इतवारों की हवा निकल जाती है।

    कल चिट्ठाचर्चा करते हुये तरुण ने सुझाव दिया कि चिट्ठाचर्चा के स्वरूप में बदलाव होना चाहिये। इसपर कुछ प्रतिक्रियायें आयी हैं।

    कई लोगों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियायें दी हैं। लेकिन यह तय नहीं हो पाया कि आगे क्या किया जाये। और सुझाव आयें तो शायद मामला साफ़ हो।

    आज नये ब्लागरों के बारे में परिचय रह गया। और भी बहुत कुछ रह गया लेकिन वह फ़िर कभी।

    फ़िलहाल तो आप मौज करें। धांस कर या खांसकर। लेकिन मुस्कराते रहियेगा वर्ना गाल पर झुर्रियां पड़ जायेंगी। फ़िर न कहियेगा हमने बताया नहीं।

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    शनिवार, सितंबर 27, 2008

    ... भेजा शोर करता है

    आज की चर्चा में अगर भाषा की गंदगी नजर आये तो उसे वैसे ही नजरअंदाज कर दें जैसे भारत के हर शहर की हर गली में बिखरे कूड़े को नजर अंदाज करते आये हैं। भारत की डेमोक्रेसी की सबसे बड़ी बात है कि जिसे जब मन करे कहीं भी थूक देता है जहाँ मन करे खड़े होकर मूत देता है। सड़क पर कूड़ा वैसे ही बिखरा होता है जैसे भारत की जनसंख्या। कुछ इसी दिशा की ओर अग्रसर होता जा रहा है हिंदी ब्लोगजगत, जिसके जो मन में आया छाप दिया बगैर ये सोचे की कलम की मार तलवार की मार से ज्यादा खतरनाक हो सकती है। एक घटना घटी, भेजे में शोर उठा, आव देखा ना ताव तड़ से पेल मारी पोस्ट। एक ने मोदी को गाली दी दूसरे ने गाली देने वाले को गाली दी, इसने उसकी बैंड बजायी, उसने इसकी बैंड बजायी, बस हो गयी ब्लोगिंग। फिर किसी चर्चाकार ने सुबह खराब की किसी ने शाम, कुछ इससे मौज ली कुछ उससे मौज ली, उसके बाद टिप्पणी करने कुछ गुणीजन आये थोड़ा पढ़ा, अहा आनंदम् आनंदम् कहा निकल लिये कुछ और तलाशने।

    चलिये आज की चर्चा शुरू करते हैं इन चंद लाईनों के साथ -
    मुसलमाँ और हिंदू की जान,
    कहाँ है मेरा हिन्दुस्तान,
    मैं उसको ढूंढ रहा हूँ,

    मेरे बचपन का हिन्दुस्तान,
    न बांग्लादेश, न पाकिस्तान,
    मेरी आशा मेरा अरमान,
    वो पूरा पूरा हिन्दुस्तान,
    मैं उसको ढूंढ रहा हूँ,

    वो मेरा बचपन, वो स्कूल,
    वो कच्ची सड़कें, उड़ती धूल,
    लहकते बाग़, महकते फूल,
    वो मेरे खेत और खलिहान,

    ...

    वो उर्दू ग़ज़लें, हिन्दी गीत,
    कहीं वो प्यार, कहीं वो प्रीत,
    पहाड़ी झरनों के संगीत,
    देहाती लहरा, पूरबी तान,

    ...

    जहाँ थे तुलसी और कबीर,
    जायसी जैसे पीर फ़कीर,
    जहाँ थे मोमिन, गालिब, मीर,
    जहाँ थे रहिमन और रसखान,
    मैं उसको ढूंढ रहा हूँ,

    मुसलमाँ और हिंदू की जान,
    कहाँ है मेरा हिन्दुस्तान,
    मैं उसको ढूंढ रहा हूँ.
    अज्मल साहेब की ये गजल ढूँढ निकाली अभिनव ने, इसे आप इनके यहाँ जाकर सुनिये जरुर। आजकल ऐसा लिखने वाले नही मिलते मैं भी उन जैसों को ढूँढ रहा हूँ।

    इसे सुनाने पढ़ाने के बाद क्या पढ़ाऊँ ये मुश्किल आन पड़ी है सभी खबरें या पोस्ट लगभग एक जैसी हैं लेकिन बताना तो पड़ेगा ही क्योंकि किसी का भेजा शोर करता है। इसी शोर से परेशान जा पहुँचे उस चांद को देखने जो निकला ही नही, चांद तो मिला नही लेकिन ये पढ़कर गंगा ढाबा जरूर याद आ गया जिसके सामने पड़े पत्थरों में बैठकर हमने भी कई शामें चाय की चुस्कियों और पराठों की खुशबूओं के बीच गुजारी।
    और हम दोनों ने देखा...उस लड़की को जिसकी बातें कभी रूकती ही नहीं थी, और उस लड़के को जो खिलखिला के हँसता था...वो लड़की जिसे हवा में दुपट्टा उड़ना पसंद था, आलू के पराठे, गुझिया और मामू के ढाबे से हॉस्टल तक रेस लगना पसंद था...और जिसे वो लड़का पसंद था जो खिलखिला के हँसता था।
    चांद को छोड़कर आदमी को देखता हूँ तो लगता है गोया आदमी ना हुआ क्रिकेट के मैदान में उछाले जाने वाला सिक्का हो गया यानि या तो हैड बोलो या टेल। ऐसा लगने की वजह है रूपाली से किसी का ये कहना - आप संघ के नही हैं तो आप सिमी के हैं। ज्यादा पुरानी बात नही है जब सुनने को मिलता था "तू हिंदू बनेगा ना मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा", ये तब था आजकल तो बस भेजा शोर करता है।

    शराब का नशा सुना था, यौवन का नशा भी सुना था लेकिन इस तरह का नशा पहली बार सुना और ये है बाढ़, बम और करार का नशा, अनुजा का लिखा माने तो ये फिलहाल तो सिर्फ मीडिया वालों का शौक है -
    बाढ़ का नशा उतरने के बाद अब मीडिया के सिर पर दो ही नशे सवार हैं। एक बम का नशा और दूसरा परमाणु करार का नशा।
    नशे के उतरते ही याद आया कि कभी पढ़ा था लोहे को लोहा काटता है, अगर ये सच है तो क्या आप बता सकते हैं कट्टरपंथ को कौन काटेगा या मारेगा? क्या कहा कट्टरपंथ? गलत क्योंकि अनिल रघुराज की माने तो उनका कहना है कि लोहिया ने बोला था हिंदू कट्टरपंथ देश को जोड़ता नहीं, तोड़ता है। सौलह आने सच लेकिन क्या किसी और धर्म का कट्टरपंथ देश को जोड़कर रख सकता है? समझ नही आता ये कोई क्यों नही बोल पाता।

    चलिये ये लगी बुझायी तो चलती रहेगी जब तक लोगों का भेजा शोर करता रहेगा आप बतायें क्या आपको मोटर साईकिल चलानी आती है, अगर हाँ तो समझिये आपकी तो निकल पड़ी। इब वो दर्जिन बोली -
    ताऊ मैं तो न्युं करके रौवू सुं कि इबी मरने के तीन दिन पहले ही वो मोटर साइकिल हिरोहोन्डा आली खरीद कै ल्याया था! इब उस मोटर साइकल नै कुण चलावैगा ?
    जरा जल्दी हाँ, अपना ताऊ सरपंच होने की दुहायी देकर जबरदस्ती से लाईन पर सबसे पहले खड़ा हो गया है।

    जहाँ सभी ब्लोगर जाति के प्राणी घर की उठापठक का गणित लगाने में लगे हैं वहीं बालेन्दु थोड़ा सा हटकर बात करते हैं, हो भी क्यों ना ये मतांतर जो है -
    हो सकता है कि धीरे-धीरे रूस और चीन के इर्द-गिर्द विभिन्न देशों के एकत्र होने की प्रक्रिया शुरू हो लेकिन अर्थव्यवस्था के प्राधान्य के इस युग में कोई देश अमेरिका की कीमत पर रूस-चीन के खेमे में नहीं जाएगा। न आसियान देश, न खाड़ी देश, न दक्षिण अमेरिकी देश, न नाटो के सदस्य और न ही पूर्व वारसा संधि के अधिकांश सदस्य देश। यही बात कमोबेश भारत पर भी लागू होती है।
    अब चलते चलते एक सामान्य ज्ञान का सवाल, क्या आप जानते हैं ब्रिटेन की सबसे पहली महिला डाक्टर होने का लाइसेंस किसे मिला, अगर नही तो ये पढ़िये एक सशक्त बेटी और एक स्नेहिल पिता की कहानी


    एक दूजे के लिये
    1. टिप्पणी हो तो ऐसी मालूम है लिखने की जरूरत नाही है दिख रेला है भाई सब

    2. वह चुप न रह सके, तो मैं भी चुप न रह सका इसलिये चिल्लाकर कहे देता हूँ HIIIIIII....I AM SUMIT
    झरोखा

    कहते हैं कि पति पत्नी एक दूसरे के प्रयाय होते हैं अगर यकीन ना आये तो इन दोनों के एबाउट मी पढ़िये। आप भी यही कहेंगे।
    अनुप भागर्व लिखते हैं - "ज़िन्दगी इक खुली किताब यारो, पुण्य हैं कम पाप बेहिसाब यारो" वहीं
    रजनी भागर्व लिखती हैं - "किताबों में कुछ किस्से हैं, मेरी उम्र के कुछ गुज़रे हुए हिस्से हैं"

    3. बच्चे भविष्य भारत के, गुडिया, रामू और श्याम के हाथ में कलम नहीं है कूड़े की बोरी क्या करें फिर भी शर्म हमको मगर नहीं आती

    4. अब टैबू नहीं रहा सेक्स और ना ही टैबू रहा क़त्लेआम

    5. आप सड़ें चाहे गलें, लेकिन अगर हमारा साथ छोड़ा, तो मिटा देंगे प्लीज ऐसा ना करें बिखर जाऊंगा

    6. पर्वतों की ओट में एक दिन ईश्‍वर जो गया फिर आया नहीं

    7. लघुकथा क्या है लघुकथा जैसे न्यायधीश बना सियार

    8. रांची में लड़कियों के निकलने पर पाबंदी पुरूषों जागो! ऐसे लोगों से जरा कड़क कर बोलो खबरदार! जो अब महिलाओं व बच्चों का दिल दुखाया

    9. आतंकवाद दुनिया का ढाँचा गिराता रहा और ये मुआ रेडियो गाता रहा

    10. सत्तू के मारे भईयाजी हमारे खाते हू सुनाने लगे पत्नी-पुराण

    11. फिर ज़िन्दगी के दांव पेंच चलने लगे हैं कहने वाले आप संघ के नही हैं तो आप सिमी के हैं कहने लगे हैं


    कुछ नये चिट्ठाकार
    1. विधोत्तमा का स्वंतासुखाय सर्वजनहिताय
    2. ड्रीम्स अनलिमिटेड का डीपेस्ट थॉट
    3. विनय जैन सुनाते हैं कुछ अपनी कुछ दुनिया की
    4. आदर्श राठोर पिला रहे हैं एक विचार भरा प्याला
    5. विरेन्द्र शर्मा की भी सुन लो राम राम भाई
    6. मनुज मेहता दिखा रहे हैं अपना कमरा


    चिट्ठाचर्चा का स्वरूप
    वैसे तो वक्त से पहले ही अपने को बदल लेना चाहिये, अगर ऐसा ना हो पाये तो वक्त रहते ही ऐसा करने की कोशिश करनी चाहिये। इस बात को कहने का सीधा आशय ये है कि चिट्ठाचर्चा जब इस फोर्मेट में शुरू हुआ था तब गिनती के चिट्ठे थे और चर्चा करने में इतना वक्त नही लगता था। लेकिन आजकल ऐसा नही है इसलिये मुझे लगता है कि हमें भी इसका स्वरूप बदल कर देशी पंडित जैसा कर देना चाहिये। इससे ज्यादा से ज्यादा लोग सहभागिता दिखा सकते हैं। आप लोग जरूर अपनी राय दीजियेगा।

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    शुक्रवार, सितंबर 26, 2008

    एक चोखेर चर्चा..

    कहने को आप कह सकते हैं कि इस मंच का इस्तेमाल किया जा रहा है , सो ठीक ही कहेंगे आप सुधिजन ! पर हम भी आदत से मजबूर ठहरे । इस मुश्किल वक़्त में जब कि कोसी विनाश लीला कर चुकी है,विस्फोटों की चिंगारी रह रह एंकाउंटरों मे सुलघ रही है ,जम्मू कश्मीर कर्नाटक अभी शांत से लग रहे हैं..और बाटला हाउस का सच जानने की कवायदें चल रही हैं हमें स्त्री की पड़ी है ,विमर्श की पड़ी है। ठीक ही कहेंगे आप सुधिजन !

    पर इस सब के बीच भी एक शाश्वत सवाल की तरह मुँह बाए खड़ी हैं महिला उत्पीड़न की खबरें जो पता नही कब खत्म होंगी ।टिप्पणियाँ परेशान हैं कि भई पुरुष उत्पीड़न पर भी कुछ बोलो आखिर तुम भी पुरुष हो ,कम से कम तुम्हें तो पुरुष के लिए बोलना चाहिये।

    प्रभा खेतान की हार्ट अटैक से मृत्यु एक दुखद समाचार रही ।वे 66 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता,साहसी दबंग महिला , लेखिका थीं ।चोखेर बाली पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गयी-



    जाने किस इंतज़ार मे स्त्री अपना समस्त जीवन ऐसे ही देह की दिया -बाती बनाते
    बनाते खप जाती है।नयनतारा बनने की कवायद भी उतनी ही आत्म पीड़क है जितनी कि चोखेर बाली कही जाकर अपने जीवन के शोध और प्रयोग की प्रक्रिया,पहचान की तलाश ।ऐसे मे आज तक स्त्री का कुल जमा हासिल क्या है?देह और देह के पार एक इंसान होने की चाहत को लिए एक विकल जीवन जीते जाना शायद डॉ
    प्रभा खेतान की आत्मकथा"अन्या से अनन्या" पढकर इन्हीं प्रश्नों के गिर्द मन चक्कर
    काटने लगता है कि वाकई स्त्री की देह के अलावा उसकी कोई और पूंजी नही
    है?अंतर्राष्ट्रीय आंकड़ो से पता लगता है कि दुनिया की 98% पूंजी पर पुरुषों का
    कब्ज़ा है। और अगर औरत की देह भी उसके लिए पूंजी है तो सोचिये कि स्थिति कितनी भयावह है।
    शायद इसलिए अपनी सम्पत्ति यानि स्त्री देह की चौकीदारी पुरुष के लिए ज़रूरी हो उठती है और विनय जोशी एक कटाक्ष को कविता मे ढाल कलम चला देते हैं -->
    तुम्हारा भाई मुक्त उन्मुक्त
    पर तुम्हे खिड़की से झांकना भी मना
    तुम्हारे कपडों का जाँच और बहस के बाद
    तय किया जाना
    मैं बाजार से आता तुम सहमी पढ़ती होती
    भाई कम्प्यूटर पर मोबाईल दोस्त
    अंतरजाल तुम्हें वार्जित,
    वर्जित तुम्हारा ऊँचा बोलना
    तेज आवाज मे गाना
    आरोपों का उत्तर देना---
    मैं रो नही रहा .....
    ...रोऊंगा तो तब जब तुम
    ससुराल चली
    जाओगी क्योंकि तब मैं तुम्हारी चौकसी किसी और का सौंप
    बेरोजगार हो जाऊंगा

    समाज पुरुष-प्रधान है, अतः पुरुष की दुर्बलताओं का दंड उन्हें मिलता है, जिन्हें देखकर वह दुर्बल हो उठता है।“ इस तरह स्त्रियों को दोहरा दंड मिलता है। महादेवी वर्मा के चिंतन पर आधारित पोस्ट - विवाह सार्वजनिक जीवन से निर्वासन न बने तो स्त्री इतनी दयनीय न रहेगी ”आधुनिक समय मे स्त्री की विडम्बना पर विचार करती है।
    ऐसे में शबाना का यह बयान देना कि उसे मंज़ूर नही है गुड़िया बनना और अब वह डॉ अबरार हो चुकी है जिसका अपना हंसता खेलता परिवार है।मानविन्दर कहती है-


    ‘शबाना अपने परिवार में ही रहेगी डा अबरार के साथ। तो क्या यह मुस्लिम महिलाओं की ये नई आवाज है, मुसलिम समाज में एक
    नया बदलाव है, क्या मानते हैं आप? धार्मिक उलेमाओं को क्या करना चाहिए, औरत
    की निजता भी कोई मायने रखती है या नहीं?




    एक नज़र में -
    {1}प्रेम मे कैलेंडरों का योगदान-और चप्पलों का ?
    {2}-सर{दार} आपकी क्लास है-अरे बिरादर सरदार जी तो अमेरिका मे 1 2 3 करने गये
    {3}गोली मार दो हिन्द के तमाम मुसलमानों को- क्यों भाई !
    {4}सिंगुर माने उर में सींग -ह्म्म ! दाढी मे तिनका भी है
    {5}जीना सिखाती हैं ये तस्वीरें - खूब हैं !
    {6}पुस्तक मेले में ब्लॉगर्स की धूम - वाह ! बधाई !हम सबको !
    {7}चुपाय रहव दुलहिन मारा जाई कउवा- चुपाय रहौ फ़ुरसतिया मारा जाई चिठेरा

    बहुत लिखे हैं ब्लॉगर लोग ,आधे दिन मे बस इतना ही चर्चा....

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    गुरुवार, सितंबर 25, 2008

    एक लाइना और कुछ टिप्पणी चर्चा

    हमने वायदा किया था कि एक लाइना पेश किये जायेंगे सो पेश कर रहे हैं। हालांकि हमें यह भी पता है तमाम साथियों ने रश्मी तौर पर लिखा होगा कि इंतजार है लेकिन हम उसे सच मान रहे हैं। अगर ऐसे मासूम भ्रम न पालें तो बड़ा मुश्किल हो जाये।

    कु्श ने आश्रम कथा लिखनी शुरू की और बेहतरीन लिखी। उसके किस्से सुनाकर हम मजा कम न करेंगे। आप खुदै बांच लो इधर।

    कुश उधर आश्रम में सोटेंबाजी कर रहे थे इधर किसी ने उनका जी दुखा दिया। सो उन्होंने कल चर्चा नहीं करी। बताओ ऐसा भी कहीं होता है। कोई कुछ कह देगा और आपको कुछ-कुछ होने लगेगा। अरे लोग-बाग तो कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं।

    हमने देखा है कि महिलाओं के ब्लाग के पात्र सिगरेट बहुत सुलगाते हैं। क्या कारण है इसका? धूम्रपान निषेध का ख्याल रखते हुये अपने पात्रों के फ़ेफ़ड़ों की हिफ़ाजत करनी चाहिये। आज प्रत्यक्षाजीकी पोस्ट पर, पूजाजी की पोस्ट पर और एक और पोस्ट पर सिगरेट का धुंआ दिखा। हम एक बात कह रहे हैं। अपने पात्रों को आप जैसे मन आये वैसे रखें लेकिन इसके लिये आप लोग हमको हड़काना नहीं भाई। हम डर जायेंगे।

    अविनाश वा्चस्पति के व्यंग्य लेख और कीर्तिश भट्ट की जुगलबंदी भला देखने को मिलती अगर नैनो बंगाल में अब तक बन गई होती।

    अब ज्यादा कहें? आप बांचिये एक लाइना। बीच-बीच में फ़िलर के रूप में और कुछ। आखिरी में टिप्पणियों के जबाब।
    वर्तिका नन्दा कहती हैं
    इतने सालों में बाढ़ का चेहरा तो वही है पर उसे देखने-दिखाने का नजरिया बदल गया है। अब बाढ़ प्रोडक्ट ज्यादा है- मानवीय भावनाओं का स्पंदन करता विषय कम। जब तक अगला प्रोडक्ट पैदा नहीं होता(यानी अगली ब्रेकिंग न्यूज नहीं आती), तब तक वह प्रोडक्ट लाइफलाइन बना रहता है लेकिन कुछ 'नया' आते ही पुराने का गैर-जरूरी हो जाना तो तय है। यह मीडियाई मनोविज्ञान ही है कि बड़े विस्फोटों के कुछ घंटों बाद ही फिर से हंसो-हंसाओ अभियान शुरू कर दिए जाते हैं और सास-बहुओं से किसी भी हाल में कोई समझौता नहीं किया जाता। सब अपने स्लाट पर दिखाई देते हैं और सब अलग-अलग रंग भरते हैं ताकि ट्रजेडी में भी बना रहे ह्यूमर और जीए टीआरपी।

    1. अनेक रूपों वाला आतंकवाद:है यहां बोलो कौन सा पैक कर दें?


    2. तलाश में भटक रही हैं, नदी सी बह रही हैं!! कोई एक चीज करिये रानी जी


    3. जामियानगर का आतंक और बाटला हाऊस की तीसरी मंजिल : से कैमरामैन के बिना ये हैं पुण्यप्रसून बाजपेयी


    4. राजू भाई, छुट्टन और घर के बेदखल बूढ़े । सब युनुस के ब्लाग पर पाये गये


    5. क्रांति से शान्ति का ज़माना ला रहा : लाने दो जो ला रहा है सबसे एक-एक कर निपटा जायेगा


    6. रात भर जागी आँखों को,
      ऐ काश वो तस्सली देता,
      "हम सोये क्युं नही" जो
      एक बार ही पूछा होता..
      सीमा गुप्ता

    7. चर्च के फादरों के चरित्र : धर्मयुद्ध के तहत


    8. अविवाहित प्रधानमंत्री के बारे में क्या विचार है?: उसको चैन से नहीं बैठने दिया जायेगा-व्याह कराया जायेगा


    9. बाढ़ क्या संवेदना भी बहा ले जाती है ? : बा्ढ़ के पानी को किसी व्याकरण में बांधा नहीं जा सकता।


    10. प्रीति कथन : में तो ठोकर खाता रहा


    11. प्यार या बेबसी:बूझो तो जानें।


    युनुस उवाच
    सवाल ये है कि छुट्टन या राजू भाई को अपने बुढापे में क्‍यों घर से बाहर रहना पड़ता है । पारिवारिक स्थितियां अच्‍छी होते हुए भी ये बूढ़े इसलिए काम कर रहे हैं क्‍योंकि उन्‍हें घर से बाहर रहने का बहाना चाहिए । बूढ़े बाप मुंबई में हमारे परिवारों का इस क़दर बोझ बन चुके हैं

    हिन्द युग्म की बैठक

    1. मॉजिल्ला फ़ॉयरफ़ॉक्स 3 का हिन्दी संस्करण जारी: मुफ़्त में है लपक लो


    2. एक शानदार प्रयास, वहीं अफसोस कहाँ है हिन्दी? : हिंदी हमीअस्तो, हमीअस्तो, हमीअस्तो!


    3. और वक्त पास खड़ा देखता रहा: थक गया बेचारा खड़े-खड़े


    4. किनारे छूट जाते हैं:अब भंवर में तैरने में ये तो होगा ही


    5. मेरे ख्वाबों का हर एक: नक्स मिटा दे जोई- हमसे मिटता ही नहीं


    6. बूरा जब वक़्त आता है, सहारे छूट जाते हैं।
      जो हमदम बनते थे हरदम, वो सारे छूट जातेहै।

      बड़ा दावा करें हम तैरने का जो समंदर से,
      फ़सेँ जब हम भँवर में तो, किनारे छूट जाते है।

      रजिया

    7. हमको नेता बनना है :इसीलिये शुरुआत ब्लागिंग से की


    8. कहीं ये देवी देवताओं वाली पुरानी स्‍कीम तो नहीं : जो चूना लगाकर चली जाये



    9. मैं इमरान हाशमी बनना चाहता हूं: सोच लो- बहुत चुम्बन लेने पड़ेंगे


    10. क्या कहूं रिश्ते जो हैं : कहानी की तारीफ़ करनी ही पड़ेगी


    11. अमेरिकी में बन चुका है फाइनेंस का बुलबुला : काहे से कि करेंसी हटी दुर्घटना घटी


    पद्मा राय के ब्लाग से:
    अब जब सोचतीं हूं तब समझ में नहीं आता कि उस समय की अपनी हरकतों पर हसें कि रोयें. हर साल तीज आती थी कई त्यौहार भी आते थे और तब आती थी चूडिहारिन. आलता और नहन्नी लेकर नऊनियाँ भी आती थी. भौजाई, चाची सभी रंग बिरंगी चूडीयाँ पहनते और फिर नऊनियां से अपने हाथ पैर के नाखून कटवाकर आलता से अपने पैर रंगवाते. पैरों पर नऊनियां रच रच कर चिरई बनाती. हम सबको यह सब करवाते हुये चुपचाप देखते और अपनी बारी का इंतजार करते लेकिन हमारी बारी जब अंत तक नहीं आती तब हम सारा घर सिर पर उठा लेते थे और अड जाते कि हमें भी भर हाथ चूडी पहननी है और पैरों में महावर लगवाना है.अम्मा हमें कुछ कहने के बजाय हमारे भाग को कोसतीं जातीं और अपने धोती के अचरा से अपने बह्ते आँसू पोंछती जातीं. लेकिन बडे होते जाने के साथ साथ हम सब कुछ अपने आप समझ गये थे.


    1. आपसे दोस्ती हम यूं ही नही कर बैठे: हमें आपकी टिप्पणी चाहिये


    2. इसलिए आज मैंने एक सिगरेट सुलगा ली : क्योंकि हमें पता है तुम कहोगे- सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है


    3. गडियाने को मन करता है : लेकिन हिम्मत नहीं पड़ रही है गुरू


    4. एक लड़का प्रेमाकुल सा :आजकल दिल्ली में दिल्ली में रहता है


    5. मेरा नीद से पुराना रिश्ता है,
      नींद कभी फैल जाती है,
      मेरे आकार लेते सपनों पर,
      सपने कभी लेट जाते हैं,
      मेरी नींद में,
      कुछ लोग कहते हैं,
      मैं नींद में समाता हुआ,
      एक सपना हूं।
      पंकज नारायण प्रेमाकुल


    6. अंतिम इच्छा : बुआ रसगुल्ला खायेंगी


    7. दिनकर की बात पर इतनी क्यों?: मुंहफ़टई कर रहे हो?


    8. हादसे के बाद ही क्यों आते हैं मोहब्बत के पैगाम: इसके पहले हादसों का इंतजाम करना पड़ता है न!



    9. ये नंगी फ़िल्में नहीं हैं :चल झूठे


    10. आज इन दो दवाईयों की दो बातें करते हैं : खिलायेंगे कल!


    11. नरेगा का पैसा अधिकारियों का विकास: इसमें कौन बात है खास?

    डा.प्रवीन चोपड़ा के दवाखाने से

    कईं बार गैस्ट्राइटिस के सिंप्टम इतने ज़्यादा होते हैं कि पेट का एसिड बार बार मुंह तक आता है, बहुत ही अजीब सी खट्टी डकारें रूकने का नाम ही नहीं लेती और छाती की जलन परेशान कर देती है ....ऐसे में एक एमरजैंसी तरीके के तौर पर इस OMEZ- Insta को ट्राई किया जा सकता है।


    1. हे ईश्वर : आकांक्षा पारे अपनी दोस्त हैं?


    2. आईएसओ चोर, आईएसओ दर्शक : बस एक अदद आईएसओ लेखक चाहिये



    3. उदासी भी बंटी
      पर
      छंटी नहीं

      छाती चली गयी
      हमारे बीच के अंतराल में
      अरुणा राय

    4. नडिया नईंया : सच्ची गुईंया


    5. ब्लागर कैसे कैसे!! : पीठ खुजाते हैं!!


    6. हम दोनों अपनी अपनी माँ से इतने नाराज़ थे कि आत्महत्या कर सकते थे : और हम एक ब्लागर खो देते


    7. पीले अंधेरे में वो बैठा चुप सिगरेट पीता है।


    8. प्यार बांटते चलो वर्ना धरे-धरे सब सड़ जायेगा



    9. ईश्‍वर!
      इतने बरसों से
      तुम्‍हारी भक्ति, सेवा और श्रद्धा में लीन हूं
      और
      तुम हो कि कभी आते नहीं दर्शन देने!!!आकांक्षा पारे



    10. समीर लाल की कहानी--आखिर बेटा हूं तेरा: टिप्पणी तो करनी ही पड़ेगी


    11. समाज को रास्ता दिखाने की ठानी बुजुर्गों ने : और जलवे दिखा दिये।


    12. क्या समाज कभी बदलेगा? : इस बारे में हम कुछ न कहेंगे


    .

    और अंत में



    पिछली चर्चाओं में कुछ साथियों की टिप्पणियों के जबाब इधर पेश हैं:

    आज की चर्चा में टिप्पणियों के जबाब

    १. सर्वेश्वर जी पर आलेख के उद्धरण का धन्यवाद | बस एक बात थी , दरअसल संशोधन था , कि कल उनका जन्मदिन नहीं पुन्युतिथि थी | उद्धरण हेतु पुनः आभार |साहित्य शिल्पीजी/दिव्यांशु शर्मा:
    आपकी तारीफ़ का शुक्रिया। गलतियां ठीक कर ली।

    २. एक लाइना का इन्तजार जारी है ..:रंजू भाटिया
    : पेश है एक लाइना। आपने अपने पहले क्रश को लेफ़्टिनेंट बना दिया।

    ३.बहुत आभार शुक्ल जी ! आपका यह मुश्किल और सराहनीय प्रयास हमारे जैसे नए चिट्ठाकारों को एक ही मंच पर सभी जानकारी न केवल मुहैया करा रहा अपितु आरम्भ से ही आप जैसे लोगों से जुड़ने, सीखने और अर्जित करने के लिए सतत् प्रेरणा भी दे रहा है. पुनः धन्यवाद् !समीर यादव:
    आप बस लिखते रहे हैं। प्रोत्साहन की यहां कौनो कमी नहीं है।


    ४.सच कहु तो चर्चा करने का मन ही नही हो रहा.. किस पोस्ट की चर्चा करू? उसकी जिसमे शहीद शर्मा को श्रद्धांजलि दी जा रही हो या उसकी जिसमे उन पर सवालिया निशान उठ रहे हो.. सच कहु तो चर्चा करने के लिए बैठा भी था कल.. पोस्ट पर नज़र डाली तो गिनती की चन्द पोस्ट मिली जिनके बारे में कुछ लिख सके..

    फिर ऐसा करता तो और इल्ज़ाम अलग लग जाता की कुश गुटबाजी करता है.. या फिर कोई टिप्पणी कर जाता की गुरु जल्दी में निबटा दिया इस बार... कुश

    कुश, इल्जाम/विल्जाम से डरे तो लोग दिग्जाम शूटिंग पहना के विदाई समारोह कर देंगे। लोगों का मुंह होता ही कहने के लिये है। आपको अपना मन साफ़ रखना चाहिये बस्स। इत्ता नाजुक मन रखोगे तो रोज लोग इस पर क्रिकेट पिच की तरह रोलर चलायेंगे। तुम्हारे सारे चाहने वाले यही समझा रहे हैं! समझ गये कि बुलवायें सोंटा गुरू को?


    ५.पिछले दो बार से तो पोस्ट डालने से पहले न चिटठा जगत खोलता हूँ न ब्लोगवाणी ...मन अजीब सा हो जाता है....अगर खोलू तो कुछ अजीब सी बातें पढने को मिलती है .फ़िर मन नही करता..कोसी का पानी अभी सूखा नही है की दूसरे धमाके अब तक दीवारों को हिला रहे है....कभी कभी मन में उब सी होने लगती है....कुश का नही सबका यही हाल है....सच तो ये है की अब हम सच बोलने से भी डरते है.डा.अनुराग:

    डा.अनुराग,अब क्या कहें? इत्ता डरके भी क्या कर लोगे?


    ६.मशहूर साहित्यकार डी.एन.झा या मशहूर इतिहासकार डी.एन.झा?
    @आदरणीय डॉक्‍टर अमर कुमार साहब, लेकिन मैंने सहज हास्‍य भाव से टिप्‍पणी की थी, आप इसे कहां ले जा रहे हैं :)अशोक पाण्डेय

    : चूक की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिये शुक्रिया। बाकी आप डा.अमर कुमार जी की चिन्ता न करिये। ऊ बात को कहीं ले न जा पायेंगे। हम ले न जाने देंगे। मस्त रहें।


    परसों की चर्चा से
    १.कृपया रोज़ाना दो चार लोगों की टाँग खिंचाई एसे ही जारी रहे . बहुत मजा आता है. शुक्रिया- विवेक सिंह

    बाकी का नहीं कह सकते लेकिन तुम्हारा ख्याल रखेंगे विवेक भाई।

    २.आकिरी तीन एक-लाईने पसंद आये, लेकिन वहां कुछ जोड दें तो तीन और चिट्ठाकारों का कल्याण हो जायगा !! शास्त्रीजी
    शास्त्रीजी कल्याण का काम आपके जिम्मे हैं। हम तो बस ऐसे ही मौज लेते हैं।


    ३.
    "वैसे वे बड़े घाघ किस्म के आदमी थे – जल्दी कुछ उगलते नहीं थे"
    ईश्वर को हाजिर-नाजिर रख कर कहता हूं कि ये शब्द मेरी पत्नी जी के ही हैं; और उन्होंने खास तौर से कहा कि मैं इन्हें तोड़ने-मरोड़ने का यत्न न करूं!

    कहें तो उनसे बात करा दूं? :-) ज्ञानदत्त पाण्डेय

    ज्ञानजी आखिर इमेज भी कोई चीज होती है। हम उनसे बात करके इत्ते मेहनत से बनाई आपकी इमेज अपने मन में नहीं तोड़ना चाहता।


    ४. धन्यवाद्,
    मुझे चिटठा चर्च में सबसे उपर दिखने के लिए...
    जब मैंने हिन्दी ब्लॉग्गिंग करे की सोची थी तब मेरा सबसे पहला लक्ष्य यहाँ पर स्थान पाना था और आज शायद वो पुरा हो गया.
    मै एक बार फिर से पुरे चिटठा चर्चा टीम को अपने तरफ़ से धन्यवाद कहूँगा.
    अंकित

    इत्ते से संतुष्ट हो लिये अंकित!!


    ५.
    अनूप जी सबसे पहले तो शुक्रिया। शायद आपने पहले ध्यान नहीं दिया कि मैंने अपनी फोटो पहले ही हटा दी थी। बहरहाल सिक्योरिटी कोड भी हटा रही हूं क्योंकि आप को तकलीफ ना हो, अगली बार टाइप ना करना पड़े। प्रीति बड़्थ्वाल

    प्रीतिजी, आपने फोटो पता नहीं क्यों हटाई लेकिन वह अच्छी लगती थी। उसके हटने से आपके ब्लाग का सौंन्दर्य अनुपात गड़बड़ा गया है।


    ६. ऎ भाई, एक दिन गेस्ट एपीयरेन्स में ज्ञान जी को बुलाइये ना! डा.अमर कुमार, ताऊजी

    ज्ञानजी सुन रहें हों तो जबाब दें, हुंकारी भरें एक दिन के हफ़्ते में।


    ७.पाण्डे जी की डिमांड की जा रही है. हमारा वाला दिन दे दो. समीरलाल
    हमें इस डिमांड में आपका भी हाथ दिख रहा है। आपका दिन हम उनको दे दें ताकि आप टिपियाने में व्यस्त रहो। ई न होगा। कुछ जिम्मेदारी से रहा करो भाई!


    बाकी सबकी तारीफ़ का थोड़ा शरमाते हुये शुक्रिया।

    अब कल मिलेंगे आपको मसिजीवी परिवार की चर्चा के जलवे इसके बाद तरुण के निठल्ले रंग।

    आज नये ब्लागर का जिक्र छूट गया लेकिन वह शामिल किया जायेगा आगे कभी।

    फ़िलहाल इत्ता ही। बाकी फ़िर।

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    100 % रीयल हाईस्कूल फेयरवेल स्पीच...

    आमतौर पर फेयरवेल स्पीच (अलविदा व्याख्यान?) बड़ी मेहतन से तैयार किए जाते हैं, मगर उनमें से कुछेक ही याद रखे जाते हैं. ये वाला फेयरवेल स्पीच भी ऐसा ही है, और अनंत मर्तबा, युगों युगों तक फारवर्ड होने का माद्दा भी रखता है. क्यों? क्योंकि यही है 100% रीयल. शतप्रतिशत असली फेयरवेल स्पीच. परंतु अकसर हम असलियत छुपा जाते हैं और मक्खन पालिश कर जाते हैं.

    इस असली फेरयवेल स्पीच के मजे लें:

    कुछ बीती बातों का छोड़ रहा हूँ फव्वारा,
    सायोनारा|
    दिल कि डायरी का है यह सार सारा,
    सायोनारा|
    इस कविता में अपनी पहचान ख़ुद से है करारा यह बेचारा,
    सायोनारा|
    सुबह घंटी बजने के ५ मिनट बाद नियमपूर्वक क्लास में है आरा,
    सायोनारा|
    बिना पास के साइकिल स्टैंड वाले को दस रुपये का किया इशारा,
    सायोनारा|
    बिन पॉलिश के जूतों और लंबे बालों को लिए क्लास में है घुसा जारा,
    सायोनारा|
    डायरी न लाने पर एक दोस्त के कवर व बाकी से पन्ने लेकर असेम्बली में जाने की जुगाड़ है बिठारा,
    सायोनारा|
    एडवर्ड सर की नजरों से बचने के लिए गंदे जूते पैंट से है घिसे जारा,
    सायोनारा|
    छोटे कद का होकर भी असेम्बली की लाइन में सबसे पीछे है लगा जारा,
    सायोनारा|
    प्रयेर के टाइम पे गर्लफ्रैंड के किस्से है सुनारा,

    आगे पूरा स्पीच पढ़ें अर्पित गर्ग के चिट्ठे पर

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    सर्वेश्वर, चक्रधर और जावेद अख्तर

     सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
    कल सर्वेश्वर दयाल सक्सेनाकी पुण्यतिथि थी (जन्मदिन 15 सितम्बर) । इस मौके पर दिव्यांशु शर्मा ने उनको याद किया। अन्य किसी मीडिया चैनेल ने उनको याद करने की जहमत नहीं उठाई।

    सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के विकिपेज पर उनका परिचय मात्र है। कविताओं के लिंक दिये हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के संजय द्विदेदीने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी के बारे में काफ़ी विस्तार से सामग्री जुटाई है। संजय जी के ब्लाग पर मौजूद सामग्री के आधार पर विकिपेज समृद्ध किया जा सकता है।

    कल रवीश कुमार ने दैनिक हिन्दुस्तान में अपने कालम ब्लागवार्ता में रविरतलामी के द्वारा चलाये जा रहे रचनाकार और लिटरेचर इंडिया का उल्लेख किया। उन्होंने हिंदी के साहित्यकारों को नयी तकनीक से जुड़ने का आवाहन करते हुये लिखा:
    ब्लागर न होते तो किस टीवी चैनल ने आपको बताया कि मशहूर साहित्यकार प्रभाखेतान नहीं रहीं। बताया भी तो क्या स्क्रीन के नीचे चलने वाली पट्टी से से ज्यादा बताया? इस बीच मशहूर इतिहासकार डी.एन.झा ने मुझसे कहा कि वे भी ब्लागर बनना चाहते हैं। मुझे सिखा दो। ब्लागर बनने की उम्र नहीं होती। हिंदी के साहित्यकार सुन रहे हैं न!


    अशोक चक्रधरजी जामिया मिलिया इस्लामिया कालेज से जुड़े रहे हैं। उन्होंने दिल्ली बम धमाकों के बाद जामिया के लड़कों के पकड़े जाने पर अपनी बात कहते हुये लिखा:
    लोग हमसे सवाल करते हैं कि क्या आप बच्चों को यही सिखाते हैं। पूछने वालों को क्या जवाब दें? किसी के माथे पर तो कुछ लिखा नहीं होता। लेकिन ये जो नई नस्ल आई है, हिंदू हो या मुसलमान, इसमें कई तरह का कच्चापन है। जामिआ के सभी कुलपतियों ने विश्वविद्यालय के विकास को लगातार गति दी और इस मुकाम तक ला दिया कि इसकी एक अंतरराष्ट्रीय पहचान बनी। तरह-तरह के सैंटर, नए-नए विभाग, बहुत तरक़्क़ी की जामिआ ने। और अब देखिए। बिगड़ैल बच्चों के कारण मां-बाप को भी शर्मिंदगी का सा सामना करना पड़ रहा है।

    वसीम बरेलवी ने कुछ ये लिखा था-
    नये जमाने की खुद मुख्तारियों को कौन समझाये
    कहां से बच निकलना है, कहां जाना जरूरी है।


    रंजना भाटिया के किस्से आप पढ़ रहे हैं। आज वे अपने पहले झटके के बारे में बता रही हैं- फर्स्ट क्रश- कपिलदेव। कल ही उनकी नयी किताब छपकर आई। उनको बधाई।

    आपने तमाम भाषण सुने होंगे। लेकिन जावेद अख्तर का ये भाषण कुछ अलग किस्म का है। दुर्गाप्रसाद जी इसे तमाम लोगों को पढ़ा चुके हैं-
    मान्यवर, यह काफी नहीं है कि अमीरों को यह सिखाया जाए कि वे सांस कैसे लें. यह तो अमीरों का शगल है. पाखण्डियों की नौटंकी है. यह तो एक दुष्टता पूर्ण छद्म है. और आप जानते हैं कि ऑक्सफर्ड डिक्शनरी में इस छद्म के लिए एक खास शब्द है, और वह शब्द है: होक्स(HOAX). हिन्दी में इसे कहा जा सकता है, झांसे बाजी!


    और अंत में


    कल कुश कहीं व्यस्त हो गये शायद इसलिये न चर्चा कर पाये न सूचना दे पाये। आश्रम में लगता है ज्यादा ही गुरु सेवा हो रही है।

    आज अभी सुबह पता चला कि समीरलालजी भी अस्पताल भागे हुये हैं। भाभीजी की तबियत कुछ बिगड़ गयी। सो चलते-चलते हड़बड़िया चर्चा कर दी। शाम तक एक लाइना पोस्ट करेंगे। कल की चर्चा मसिजीवी करेंगे, परसों निठल्ले तरुण।
    हम चलें। चिंता न करें फ़िर मिलते हैं शाम तक कभी अपने एक लाइना के साथ।

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    मंगलवार, सितंबर 23, 2008

    जहाँ में मुस्कुराना सीख लो तुम

    हिन्द युग्म की बैठक
    आज की चर्चा शुरू करने के पहले कल के अखबार की एक खबर। कल हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के दिल्ली संस्करण के वरिष्ठ स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी ने अपने एक लेख घटती साख वाला बुद्धि-विलास में लिखा- ब्लाग राइटिंग अच्छी भी हो रही है, पर उसकी तुलना में कचरा कहीं ज्यादा लिखा जा रहा है। कचरे की हमें चिंता नहीं लेकिन हम इसी में गच्च हैं कि ब्लाग राइटिंग को अच्छा भी माना जाने लगा है। लेकिन अगर आप सच्ची में अच्छे लेख लिखना चाहते हो तो आपके लिये दस ठो स्टेप्स इधर दिये हैं।

    कल चर्चा करके जब पोस्ट की तो पता चला कि अपने ताऊ के साथ ऊंच-नीच होते-होते बची। एक क्यूट सी छोरी ने ताऊ को रोक लिया और चीखने-चिल्लाने लगी इस लफ़ंगे ताऊ ने मुझे नही छेडा
    क्या मैं इसकी अम्मा लगती हुं ?
    वो तो कहो ताऊ का दिमाग काम कर गया वर्ना उसके तो लट्ठ बज जाते। ताऊ बोले:
    ताऊ बोल्यो अरे छोरी बात तो तू सांची कहवै सै
    पर मन्नै या बतादे
    यदि किम्मै उंच नीच हो जाती
    तो ताई लठ्ठ लेकै
    के थारै बाप के पास जाती ?




    नये चिट्ठाकार
    नरेश सिंह राठौड़

    1. मेरा शेखावटी : आपको अपना लगेगा


    2. प्रहार :धार्मिक रूढिवादिता और सामाजिक कुरीतियों पर


    3. :आनलाइन काव्य संगम: वाह-वाह जी वाह


    4. :पंचायतनामा नीरज सिंह का


    5. सतरंगे : के सब रंग गायब हैं


    6. अपनी ढपली : पर विनय का राग


    7. मेरी तलाश में : शोकाकुल न हों मैं अशोक हूं


    8. या मेरा डर लौटेगा:या फ़िर कोई और लेकिन लौटेगा


    9. विचारों का ट्रैफिक जाम: ब्लाग पर खुल रहा है


    10. जिंदगी इम्तहान भी लेगी क्या?


    11. विष्णु राजगढ़िया वाह भाई बहुत बढिया


    12. मेरी आवाज मेरे ब्लाग पर


     प्रकाश त्रिवेदी


    डा.अनुराग आर्य अपनी पोस्टों में अपना दिल उड़ेल के रख देते हैं। अपना बचपन याद करते हुये उन्होंने लिखा:
  • बचपन ऐसी अलमारी की तरह है जिसके हर खाने मे ढेर सारी बाते जमा होती है कुछ बाते उम्र के एक मोड़ पे जाकर अपना रहस्य खोलती है .....

  • "अपनी शक्ल पे कभी गरूर मत करना क्यूंकि इसके ऐसा होने मे तेरा कोई हाथ नही है " ,............ बड़े होके भी छोटे का हाथ ऐसे ही पकड़ना ओर............ "भगवान् तुम्हारी छत पे रोज आता है उससे डर के रहना "

  • बड़ा तो हो गया पर शायद मन उतना बड़ा नही रहा जरूरतों ओर ख्वाहिशों ने इसे मैला कर दिया है

  • प्रीति बड़थ्वाल के ब्लाग पर झील के साथ पहले उनकी फोटो भी हुआ करती थी। अब पता नहीं क्यों वह वहां से हट गयी है और ब्लाग का सौंन्दर्य अनुपात कुछ गड़बड़ा गया है। कल की उनकी कविता लोगों को बहुत पसंद आयी। उनके ब्लाग पर कापी-पेस्ट की सुविधा न होने के कारण उसे टाइप करके पेश करना पड़ रहा है:

    मैं एक आंसू हूं
    ठहर नहीं पाउंगी
    जब भी बुलाओगे मुझे
    मैं पास आ जाऊंगी


    शिवकुमार मिश्र दो दिन टीवी न्यूज चैनले के कान्फ़ेन्स हाल में रहे। वहां से निकले तो परमीशन के झमले में पड़ गये| तब उनको परमीशन बोध हुआ:
    अनुमति, जिसे बोल-चाल की भाषा में परमीशन कहते हैं, बड़ी जरूरी चीज होती है. जरूरी इसलिए कि लेनेवाले और देनेवाले दोनों को औकातोचित ऊंचाई प्रदान करती है. जिसे मिलती है, उसे कुछ करने की औकात का एहसास होता है और जो देता है वो यह सोचकर संतुष्ट होता है कि उसके पास भी औकात है कुछ देने की. लेकिन अगर परमीशन के लेन-देन का कार्यक्रम पूरी तरह से न संपन्न किया जाय तो बड़ी झंझट होती है.


    राज भाटिया जी ने गांधीजी के माध्यम से बताया
    ऎक ऎसी दुनिया मे.... जिसमे सर्वत्र वेभव-विलास का ही वातावरण नजर आता हे , वहां सादा जीवन जीना सम्म्भब हे या नही , यह सवाल व्यक्ति के मन मे हमेशा उठ सकता हे लेकिन सादा जीवन जीने योग्या हे तो यह प्रयत्र भी करने योग्या हे,चाहे वह किसी एक व्यक्ति या किसी एक ही समुदाय द्वारा क्यो ना किया जाये.


    ब्लागिंग के साथ कमाई भी हो क्या कहने। आप तरीके जानना चाहते हैं तो संजीव तिवारी की शरण में जायें। हालांकि संजीव तिवारी ने अपनी ब्लाग-कमाई का खुलासा नहीं किया।

    अभिषेक ओझा की कल की पोस्ट ब्लागरी और माड्रर्न आर्ट हमने बाद में दुबारा पढ़ी। उसमें बताया गया है कि
  • एक नए, साधारण छोटे ब्लोगर को ब्लॉग जगत माडर्न आर्ट की तरह दीखता है... संग्रहालय की एक-एक बात से जोड़ लीजिये सब कुछ मिल जायेगा यहाँ भी। दो लाइन की तुकबंदी पता नहीं चले की कविता है या गद्य और लोग कह जाते हैं...

    'आप महादेवी वर्मा के पाँचवे और निराला के बाइसवें अवतार की तरह लिखते हैं...'

  • छोटा ब्लोगर सोचता है चलो अभी लिखते जाओ... एक बार लोकप्रिय होने दो... फिर यही पोस्ट वापिस ठेला करूँगा... तब तो लोग पढेंगे ही, और पता नहीं तब समय मिले ना मिले !

  • इसको पढ़कर समीरलालजी ने उचित ही सवाल उठाया है कि टिपण्णी करने से पहले पोस्ट समझाना भी होता है क्या? ब्लागिंग से संबंधित तमाम भ्रम इसलिये भी पैदा होते हैं क्योंकि लोग ब्लागिंग के मूल सिद्धांतों का सही से पारायण नहीं करते और ब्लागरी करते रहते हैं। टिप्पणी की प्रकृति की व्याख्या करते हुये ब्लागिंग का सिद्धांत कहता है:
  • किसी पोस्ट पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।


  • अगर आपके ब्लाग पर लोग टिप्पणियां नहीं करते हैं तो यह मानने में कोई बुराई नहीं है कि जनता की समझ का स्तर अभी आपकी समझ के स्तर तक नहीं पहुंचा है। अक्सर समझ के स्तर को उठने या गिरने में लगने वाला समय स्तर के अंतर के समानुपाती होता है।


  • पोस्ट और टिप्पणियों को ध्यान से पढ़ने के पचड़े में न पड़नी की बात संजय पटेल की इस पोस्ट से भी साफ़ हुई। इसमें लावण्याजी का बड्डे कल मन गया जबकि उनका जन्मदिन २२ नवंबर को पड़ता है। लावण्या जी ने इस बारे में बताया भी टिपण्णी करके लेकिन भाई लोग आगे भी उनका केक कल ही काट गये।

    तरुण को आप खाली निठल्ला चर्चाकार ही न समझें। वो फ़िलिम विलिम देखकर उसकी वो भी कर देते हैं जिसे भाई लोग समीक्षा कहते हैं। वुधवार पिच्चर की करी है उन्होंने सोमवार को वो क्या कहते हैं समीक्षा। धांसू है जी। भाई लोग कह रहे हैं। देखिये न!

    ममताजी दिल्ली से गोवा जेट लाइट से गयीं। उन मुओं ने उनसे ५००० रुपये ऐंठे और खाने तक को नहीं पूछा। अगर सफ़र में दिखने को मनभावन बादल न होते तो भला बताइये वे क्या करतीं

    आप अगर पर्यावरण के प्रति तनिक भी जागरूक हैं तो आप सतीश पंचम का यह लेख बांचिये। इसमें पर्यावरण की चिंता करने की अभिनव तरकीब बताई गयी है। आप देखिये न मज्जा आयेगा।

    नीरज गोस्वामी ने खोपोली में हुये कवि सम्मेलन की आखिरी रपट पेश की। अपनी तारीफ़ से कित्ता शरमाते हैं नीरज देखिये जरा:
    मैं उनकी बातें सुन कर गर्म तवे पर रख्खे बर्फ के टुकड़े की मानिंद पानी पानी हो गया. इतनी भरी सभा में अपनी प्रशंशा सुनने का ये मेरा पहला अनुभव था. आसपास बैठे लोग मुझे शंकालु नजरों से घूरने लगे, बहुत सो ने अपनी गर्दन दूसरी और घुमा ली जैसे की जिसके बारे में कहा जा रहा है वो कोई और हो. कुछ एक ने बाद में कहा की नीरज जी आप तो ऐसे ना थे.हमने आपको क्या समझा...लेकिन आप तो शायर निकले च च च च....मेरा बैंड बजा कर अनीता जी मुस्कुराती हुई वापस अपनी जगह पर बैठ गयीं.


    फ़िडेल कास्त्रो के बारे में एक खबर ने देखिये लोगों को लाल-केसरिया कर दिया।

    अमित तकनीकी विषयों की अक्सर जानकारी देते रहते हैं। कल उन्होंने माइक्रोब्लागिंग के फ़ंडे बताये। देखिये शायद आपका मन भी माइक्रो-माइक्रो करने लगे।

    परसों २१ सितम्बर को इंडिया हैबिटेट सेंटर (भारत पर्यावास केन्द्र) में हिन्द-युग्म ने एक बैठक की। मीटिंग दोपहर २ बजे से संध्या ६ बजे तक चली। बैठक की रिपोर्ट यहां देखें। ऊपर की तस्वीर भी वहीं की है।

    भार्गव परिवार ने अमेरिकन डायरी लिखना शुरू किया है। पिछली बार अनूप भार्गव ने अपना काम किया और कहा- क्या तुम मुझ से शादी करोगी ? । अबकी बारी थी रजनीजी की। तो वे अपने साथ क्लास रूम ले गयीं। वहां तरह-तरह के बच्चे हैं। आप भी देखिये इस अनूठे संसार को:
    अमेरिकन डायरी
    गर्मी में घास के साथ बहुत सारे डैंडलाईन उग आते हैं, एक किस्म की वीड (मोथा) जिसमें पीले फूल निकलते हैं। केटी इन पीले फूलों के साथ दो तीन जंगली पत्तियाँ ला कर हाथ में देती है और कहती है ये सब मेरे लिये है। वो फूल उसके जाने से पहले मुरझा जाते हैं पर मैं सब बटॊर कर घर ले आती हूँ। जब स्कूल में थी तो हमारी बायोलोजी की टीचर मेरी पसंदीदा टीचर हुआ करती थीं पर मैं कभी भी हिम्मत नहीं जुटा पाई फूल पत्ती देने की। आज जब ये सब बच्चे करते हैं तो बहुत अच्छा लगता है।


    ज्ञानजी कल डंडी मारना क्या सीखे कि उनका पोस्ट लिखने का मन ही नहीं किया उनका। मजबूरी में भाभीजी ने अपनी कुछ यादें दीं पोस्ट करने को। लेकिन टाइप करते समय ज्ञानजी ने अपनी ’सद्य लर्नित विद्या’ का फ़ायदा उठाते हुये डंडी मार दी और नाना जी के बारे में लिखा- वैसे वे बड़े घाघ किस्म के आदमी थे – जल्दी कुछ उगलते नहीं थे

    रामायण संदर्शन का सितंबर अंक देखते चलिये- मिटई न मलिन सुभाव अभंगू

    अब अफ़लातून जी का पाडकास्ट सुनिये- हिंदू बनाम हिंदू

    एक और जरूरी खबर रविरतलामी सुना रहे हैं-ऑनलाइन हिन्दी प्रोग्रामिंग औजार हिन्दवी जारी|

    एक लाइना


    रात भर जागी आँखों को,
    ऐ काश वो तस्सली देता,
    "हम सोये क्युं नही" जो
    एक बार ही पूछा होता.. सीमा गुप्ता
    1. क्या बारात निकालना सही है : बारात न निकले तो सबका बैंड कैसे बजेगा?


    2. लघु कथा : अंधविश्वास और दर्शन :लघु कथा में हाल तो दीर्घ कथा में क्या होगा मिसिरजी


    3. तिरछी नजर हिंदी के एक सिपाई की


    4. माइक्रोब्लॉगिंग का फंडा फॉर डमीज़…: ये फ़ंडे हैं बड़े काम के


    5. दहशत भरा मास्टरमाइंड : वन आफ़ इट्स ओन काइंड


    6. जिन फूलों की खुशबू पर
      किताबों का हक़ था ,
      वही फूल भवरों को
      अब भरमाने लगे है ।
      जिनके लिए कभी वो
      सजाते थे ख़ुद को,
      वही आईने देख उन्हें
      अब शर्माने लगे है.....पूनम अग्रवाल



    7. सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट के पन्नों से भारत के आगामी वामपंथी सुशासन की एक झलक : दिखाने के लिये घोस्ट बस्टर बीस साल पहले चीन गये


    8. जब भी चाहा लिखूँ कहानी : लेकिन धो जाता है लिखी इबारत बहता हुआ आँख का पानी


    9. हिन्द-युग्म की बैठक सम्पन्न : अब सब लोग खड़े होकर फोटो खिंचायेंगे


    10. बहू और बेटी के प्रति हमारी मानसिकता एक सी क्यों नहीं है? : असल में मानसिकता में वैराइटी का मजा ही कुछ और है।


    11. रात के तीसरे पहर एक स्त्री जूड़ा बांधती है : असल में उसकी नींद टूट गयी थी न इसलिये!


    12. आतंकवादी : मकरंद से टक्कर


    13. जिंदगी मांगती रही है हिसाब : और तुम हमेशा मुंह चुरा के कविता लिखते रहे


    14. कुर्सी ही इनका सपना है,
      अरे देश कौन सा अपना है,
      चाहे देश हमारा..... ओये
      चाहे देश हमारा मिट जाए,
      पर कुर्सी इनको मिल जाए।डा. कुमारेंद्रि

    15. कितना बोलती हो सुनन्दा! :फुदक रही हो सुबह से


    16. टेस्ट चेंज करते हैं! : मज्जा आयेगा।


    17. हमसे अच्छे पवन चकोरे, जो तेरे बालों से खेलें : पवन से जलें नहीं आपका भी नम्बर लगेगा।


    18. झारखंड से निकली भोजपुरी पत्रिका 'परास': ये भला हुआ लेकिन रिपोर्ट भोजपुरी में न है!


    19. जो मुश्किलात में हंस कर यहाँ निभा लेगा
      मुझे यकीं है वो मंजिल जरूर पा लेगा

      तू हमसफ़र है मेरा मुझको कोई फ़िक्र नहीं
      मैं लड़खड़ाउं तो अब तू मुझे संभालेगासादिका नबाब

    20. सॉफ्ट कॉर्नर : आतंकवादियॊं के लिये मतलब देश के खिलाफ़ पेनाल्टी कार्नर


    21. आतंक वाद कबीलियाई सोच का परिणाम है: ये भी सही कही!


    22. ऐसा हो अनुशासन ! : किस सीधे ब्लाग पर पोस्ट हो जाये


    23. किताबों की खुसुर-पुसुर: के बीच फ़ंसा एक ब्लागर


    24. कुछ बाढ़ कथायें: मल्लिका प्रशंसक के मुंह से


    25. तोबा इन चैनलों से ! : इतनै में तोबा हो लिया!


    26. जब पूरा गांव ही बन गया भगीरथ : और गांव पानी से लबालब हो गया।


    27. आशा है--गुस्सा हमेशा रहेगा कम, चीनी ज्यादा हो या कम : अब आपके और आपकी आशा के बीच हमारा दखल देना शोभा नहीं देता।


    28. लहू सभी का है जब एक तो ये मज़हब क्या : लहू में भी बहुत ग्रुप हैं भाई


    29. मैं भी अगर लड़की होता...(पार्ट-2)एक जर्नलिस्ट का दर्द : हद से गुजर जाये तो दवा बन जाये


    30. नींबू, अमरूद का पेड़ और मुर्गियां : संभालते हुये रंजू ने आगे की कहानी सुनाई


    31. दुख की लोरी :सुबह से फटी हुई टोंटी की मानिंद पैसे बहा रहा हूं, फिर भी देखो, किस बेहयायी से दु:ख की लोरी गा रहा हूं!


    32. संस्कृत को समृद्ध नहीं करेंगे तो संस्कृति कैसे बचेगी? : बताओ भला है कोई जबाब इस बात का?


    33. अगर आप एक बेटी के पिता हैं तो इन प्रश्नों का उत्तर आप दे सकते हैं: बाकी लोग जबाब देने की कोशिश न करें


    34. तारीफ करूं क्या उसकी, जिसने तुझे बनाया :लेकिन हम तो करेंगे आपकी तारीफ़


    35. असली विजेता कौन, खिलाड़ी या शहीद: ये अंदर की बात है


    36. दलित हो तो मरो : मरने का तरीका चुनने की आजादी है


    37. गुरु ऐसे ही होते हैं : जैसे बता रहे हैं हरमिन्दर


    38. मैं उस टाइप की लड़की नहीं हूं...! : प्लीज आइंदा से मेरा पीछा मत करना


    39. कल टाऊन-हाल का घेराव करना है : और सबको अपना ब्लाग पढ़वाना है


    40. नहरों के भरोसे नदियों को जीवनदान : अब क्या होगा भगवान!


    41. सर, आप बहुत याद आएंगे.. : जाने के बाद यूं रुलायेंगे।


    42. राइमा बनना चाहती थी एयरहोस्टेस : लेकिन बेचारी हीरोइन बनकर रह गयी


    43. एक हिंदी विद्यालय की मौत : का शोकगीत


    मेरी पसंद

    रेखा रोशनी

    जहाँ में मुस्कुराना सीख लो तुम
    दिलों से दिल मिलाना सीख लो तुम

    न जाने कब कटे साँसों की डोरी
    किसी के काम आना सीख लो तुम

    दुआ बन कर के गूंजे हर जुबां से
    कोई ऐसा तराना सीख लो तुम

    सफर में काम आए वक्ते मुश्किल
    हुनर कोई सुहाना सीख लो तुम

    जहाँ में कोई भी दुश्मन नहीं हो
    सभी से दोस्ताना सीख लो तुम

    रेखा रोशनी

    और अंत में


  • कल की चर्चा में विवेक सिंह की शिकायत और उलाहना है -इसको प्रकाशित करने का समय नित्य नियत होना चाहिये . सुबह से इसके इंतज़ार में खोल खोल कर देखते रहते हैं . कुछ मिलता नहीं . आज पहली बार में ही मिल गया . आभार ! बहस का जवाब भी आना चाहिए (पर छोटों की बात सुनता कौन है ?) तो भैया पहले दूसरी शिकायत तो निस्तारित मानी जाये काहे से कि हम सुन भी रहे हैं और सफ़ाई भी दे रहे हैं। बकिया जहां तक रही पहली बात कि चर्चा नित्य-नियत होनी चाहिये। उसमें भी नित्य तो है लेकिन नियत वाला मामला लफ़ड़े में फ़ंस जाता है अक्सर। तमाम लफ़ड़े हैं इस चर्चा की राह में। घर-परिवार, इधर-उधर और न जाने किधर-किधर। हम सभी चाहते हैं कि ब्लागर का जब मन आये लिखे लेकिन हम नित्य-नियमित चर्चा करते रहें। लेकिन कहा है न! कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी,यूं ही कोई चर्चाकार नहीं होता। कभी हम लोग दिन में कई बार चर्चा ठेल देते थे। अब एक बार करते हैं। बहरहाल देखते हैं कैसे हम लोग नित्य-नियमित कर पाते हैं इसे। या तो ऐसा करें कि एक समय तक जित्ती हो सके उत्ती कर दें या फ़िर देशी पण्डित की तरह जब मन आये कर दें। कुछ और चर्चाकार आयें साथ में तो कुछ और मजा आये।


  • कल ज्ञानजी का कहना रहा - हमार टेनी तो बड़े सस्ते में बेंच दी जी आपने! :-) अब ज्ञानजी को कौन बताये कि कल उनके ब्लाग पोस्ट आखिरी में छपे। जैसे कोई स्टेशन मास्टर के घरवाले घर से गाड़ी पर चढ़ने के लिये तब चलते हैं मांग काढ़ते हुये जब गाड़ी पचास बार सीटी दे चुकी होती है। पोस्ट शामिल हो गयी ये क्या कम है। ज्ञानजी अपने अनुभवों से कुछ न सीखने की प्रति्ज्ञा सी कर चुके हैं। परसों उनको बताया एक रद्दी वाले ने कि वो डंडी कब मारता है लेकिन उनको समझ न आया।


  • आज छपते-छपते तरुण ने बताया कि अमित गुप्ता का जन्मदिन है। तभी कहें कि ये इत्ते कलाकार क्यों हैं। ये भी सितम्बरी लाल हैं। अमित हिंदी ब्लागिंग से काफ़ी दिन से जुड़े हैं। मस्त, मौजिया और तकनीकी उस्ताद को जन्मदिन मुबारक। फ़ोटो नीचे देखें।


  • कल कुश करेंगे बयान हाल, परसों आयेंगे समीरलाल, इसके बाद मसिजीवी लाल और तब फ़िर निठल्ले ठोंकेगे ताल। सतश्री अकाल।


  • फ़िलहाल इत्ता ही। पोस्ट करें नहीं तो विवेक फ़िर शिकायत ठोंक देंगे बहुत देर कर दी,पोस्ट चढ़ाते-चढाते।

  • अमित गुप्ता

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    सोमवार, सितंबर 22, 2008

    गड्ढा अपने साइज के हिसाब से खोदें

     परसौली के बाबा जी


    देश में विकट लफ़ड़ा मचा हुआ है। दिल्ली में आतंकी हमले हुये वहां आतंकवादी पकड़े गये। इंस्पेस्क्टर शर्मा मारे गये। टीवी पर दिन भर यही दिखता रहा। अखबार अमेरिका के बैंक का शटर डाउन होने के पोस्टमार्टम में जुट गये हैं। इधर मनोज बाजपेयी साम्प्रदायिक हिंसा से बचाव के तरीका बताते हैं:
    हर धर्म के अनुनायियों से मेरी प्रार्थना है कि धर्म को आप अपने तक सीमित रखें। वो आपका विश्वास है। वो आपकी श्रद्धा है। जरुरी नहीं कि वो दूसरी की भी आवश्यकता बने। कृपया अपने धर्म का लाउडस्पीकर लगाकर प्रचार करना बंद करें, और उसकी जगह अपने घर के चारदीवारी के अंदर अपनी आत्मा को जगाएं।


    सांप्रदायिकता पर अपने विचार व्यक्त करते हुये ज्ञानरंजन जी का मानना है:
    हमें एक मिथक से उबरना होगा की हिंदू तो बेचारा है, विनम्र है और मूलतः अहिंसक है। भारत के अहिंसक समाज में सर्वाधिक हिंसा है। सारे धर्मान्तरण हिंदू धर्म की असहिष्णुता और शोषण के कारण हैं।

    इस समय हिंदू की लडाई हिंदू से है। आप अपने को एक आदर्श हिंदू के रूप में बचाने में सफल हों , यही सबसे जरुरी है।


    नये चिट्ठाकार
    ज्योति सर्राफ़

    1. सच होंगे सपने सारे: आमीन



    2. कुछ मेरी कुछ तेरी: होती रहेगी अब तो


    3. अपना हिंदी साहित्य पेश है आपके लिये।


    4. आत्महंता आस्थावान भी है!


    5. सम्पूर्ण शिक्षा:अभियान ब्लाग पर भी!


    6. कुछ कहना है: पारुल को


    7. बिटवीन द लाइन्स:हाजिर हैं मकरन्द।


    8. वकील : संजय गोयल आपकी सलाह के लिये हाजिर।


    9. अरुण पाल सिंह:की कवितायें शुरू


     अरुणपाल सिंह


    बोलते समय एक बिहारी लिंग निर्धारण अपने हिसाब से करता है। लेडिस आ रहा है,गाड़ी खुल रहा है। बिहार में लेडिस, पुलिस, बस के लिए पुल्लिंग का प्रयोग आम बात है। विनीत कुमार इसी अंदाज में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता में कहते भये:
    जनसंख्या वृद्धि के लिए स्त्रियां ही जिम्मेवार है, इस विषय के विरोध में बोलते हुए जैसे ही मेरे मुंह से निकला कि - मैं मानती हूं कि, तभी सेमिनार हॉल में बैठे लोग ठहाके मारने लग गए।
    इस मजेदार संस्मरण को पढ़ने के बाद लगता है कि हर पुरुष के अंदर एक लेडिस ’रहता’ है।

    शादी व्याह में जम के पैसा खर्चना भारतीय समाज का सहज स्वभाव है। राधिका बुधकर समझाती हैं
    शादी को अविस्मरणीय बनाने के लिए रिश्तो में समझ की, प्रेम की,सादगी की, सरलता की जरुरत होती हैं ,न की पैसा फुकने की ,दिखावे की ,क्योंकि दिखावे के आधार पर बने रिश्तो की ईमारत ज्यादा नही टिकती,फ़िर भी पैसे खर्च करने हैं तो जरुर करे पर उसका अप्वय्य न हो इसका ख्याल रखा जाना चाहिए । नही तो शादी ,शादी कम बर्बादी ज्यादा लगती हैं ।


    दिल्ली में धमाके हुये। धरपकड़ शुरू हुयी तो पंगेबाज इलाहाबाद निकल लिये। वहां महाशक्ति की शरण में आये। सारा कच्चा चिट्ठा आप जानना चाहते हैं तो पढ़ लीजिये पंगेबाज जी महाशक्ति के शहर में!

    मांजी लोग भी सामान्य प्रसव और सीजेरियन बर्थ के हिसाब से बच्चों को प्यार करती हैं। समझ लीजिये।

      कपड़ा उद्योग
    रतन सिंह शेखावत जयपुर के कपड़ा उद्योग की संक्षिप्त लेकिन काम भर की जानकारी दे रहे हैं। प्रदूषण से बचाव का हिसाब भी रखा जाता है:
    कपडे पर छपे रंग सुखाने के लिए केवल पखों का ही सहारा लिया जाता है धुले हुए कपड़े को भी हवा व धुप मै सुखा लिया जाता है जबकि इसी कार्य की उर्जा के लिए अन्य शहरों के कारखानों मै बायलर की जरुरत पड़ती है जिससे प्रदुषण तो होता ही हे साथ मै लागत भी बढ़ती है जबकि जोधपुर के उद्योग मै वायु व ध्वनी प्रदुषण बिल्कुल नही होता सिर्फ छपने के बाद धुलाई का रंग युक्त प्रदूषित जल निकलता है जिसे उपचारित करने के लिए एक साँझा सरकारी उपक्रम लगा है जिसके रखरखाव का खर्च सभी कारखाने के मालिक चुका देते है |


    अगर आप अपनी बेबसाइट खरीदने के लिये मन बना चुके हैं तो कुन्नू सिंह की सलाहें पढ़ लीजिये ताकि आपको पछताना न पड़े।

    आप चिट्ठाचर्चा में हमारे पचीसों एकलाइना बांचते होंगे। लेकिन अमित बताते हैं कि जित्ते में हम एक लाइना लिखते हैं उत्ते में ट्विटर में एक पोस्ट लिखने का जुगाड़ हैं। ट्विटर गागर में सागर भरने का औजार लगता है।

    आपने सुना होगा कि लोग लाइब्रेरियों में प्रेम करने, बतियाने और गपशप करने जाते हैं। तमाम किस्से पढ़े होंगे। यही सब हुआ लाइब्रेरी में आज तक। लेकिन रवि रतलामी जैसे ही रवि भोपाली हुये वे लाइब्रेरी पहुंचे किताबें देखने। वहीं लफ़ड़ा हुआ। अब क्या हुआ ये सब उनकी ही माउसजबानी सुनिये।

    बिहार की बाढ़ के बारे में एक रिपोर्ट पेश कर रहे हैं डा.विजय कुमार।

    सफ़दर समूह के काम के बारे में जानकारी दे रही हैं आलोका!

    केदार नाथ अग्रवाल और रामविलास शर्मा समारोह के आयोजन की जानकारी दे रही हैं कविता जी।

    संजय पटेल के जन्मदिन पर केक पोस्ट करती हैं लावण्या जी। जन्मदिन मुबारक संजय जी।

    उधर आभा-बोधिसत्व की बिटिया भानी का भी आज जन्मदिन हैं। उसको भी जन्मदिन की मंगलकामनायें। बोधिसत्व इस बार अपनी घरवाली का जन्मदिन मनाना भी भूल गये थे।

    एक लाइना




      चुनाव के दिन पास आने लगे हैं
      इसलिए नेताजी गाँव आने लगे हैं
      हाथ जोड़ ले चुनावी झंडा
      जनता के गुण उन्हें याद आने लगे हैं जीतेन्द्र सूर्यवंशी

    1. टी वी सीरियल में नारी
      : बिना बलाऊज की पहनी हुई साडिया/ वस्त्र के अभाव से जूझती हुई नारिया


    2. आदमियों के शहर में आदमी ढूंडती हूँ : बड़ी मेहनत का काम है।



    3. काटोगे जो इसे : तो वोट कटेंगे!


    4. कुछ ऐसे दृष्य, जिन्हें आप पसंद नहीं करेंगे : लेकिन हम उसे जबरियन दिखा के रहेंगे।



    5. देश में धर्म के नाम पर होती राजनीति सांप्रदायिक हिंसा को क्या बढ़ा रही है?: तो और क्या करे बेचारी राजनीति?


    6. मानो या न मानो . डाक्टर भी ऐसे होते है : मान लिया इसीलिये तो कहा-डॉ शेट्टी जिंदाबाद ,लगे रहो डाक्टर



    7. हर ग़म को अपने गले लगाना कोई ज़रूरी तो नही,
      आँखों से आंसू पल पल गिराना कोई ज़रूरी तो नही,
      सौ दर्द रहा करते हैं इस सीने में छुप के,
      चेहरे पे उनकी नुमाइश सजाना कोई ज़रूरी तो नही, शेखर

    8. 'कैसा अनोखा अंग्रेज था' : जो उर्दू सीखता था।


    9. 700 प्रकाशवर्ष दूर जिंदगी : आपके सामने पेश है!


    10. दिवंगत प्रिय जन और हम : सबको खुश रहना चाहिये


    11. मंच नहीं विचार हैं महत्वपूर्ण : समझ लो। विचार नहीं तो कुच्छ नहीं!



    12. धर्मेन्द्र के इलाके से : एक बंदा टंकी पर चढ़ा!


    13. नदियों, पहाड़ो,जंगलों, खदानों और झरनों का प्रदेश है छत्तीसगढ़ : जे भली बताई भैया आपने। हम तो कुछ औरै समझे थे।


    14. भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
      प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब योगेन्द्र मोद्गिल


    15. इग्नू: परीक्षा शुल्क माफ: चलो सब लोग इम्तहान में बैठ लो।


    16. विचार आमंत्रित हैं : भेजिये जल्दी तो आगे काम शुरू हो।



    17. बाज़ार का गणित: हरेक के पल्ले नहीं पड़ता।


    18. सांप्रदायिक चश्मा उतारें: तो फ़िर देखेंगे कैसे?



    19. इतालवी माडल ने लगाई कौमार्य खोने की कीमत : एक घर खरीदने और एक्टिंग क्लासेस की फीस चुकाने के लिये।


    20. मैं भी अगर लड़की होता...एक जर्नलिस्ट का दर्द : तो लड़कियों के दर्द बताता!



    21. मैं कब बनूंगा आतंकवादी : सबको मौका मिलेगा, लाइन लगा लो।


    22. अनिता जी! मुझको पहचान ना पायेंगी आप, मैं हूं डॉन : ये भैया डॉन, कभी खाये हो पान?




    23. लोकतंत्र के खंभे पर
      ये टेड़े खड़े हो जाते हैं !
      जन्म से तो हैं वफादार
      पर संगत में बिगड़ जाते हैं ! मकरंद

    24. बाल्टी किसकी, हिन्दी या पुर्तगाली की : किसी की हो पानी तो बराबर भरेगी।


    25. बमात्मक चिंतन : कहीं बैरक चिंतन न करवा दे।



    26. ब्लॉगरी और माडर्न आर्ट : को समझने की कोशिश बेफ़ालतू है।


    27. टेनी (डण्डी) मारने की कला : में सीखने में इतवार बिताया ज्ञानजी ने!



    28. कस्बे की अदालत में कुछ घंटे :बिताने से उपजा यह पोस्ट ज्ञान!


    29. एक नेता की डायरी का पन्ना!! : समीरलाल की उड़नश्तरी से बरामद!


    30. जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है वह ख़ुद उसीमें गिरता है : इसलिये हर गड्ढा अपने साइज के हिसाब से खोदें।


    31. उम्र जलवों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं : लेकिन जितना है उतने में सबर हो ये जरूरी तो नहीं!


    32. करवट बदलने से टूट जाते हैं सपने :इसलिये हर करवट संभल के लेनी चाहिये।


    33. टूटते रिश्ते, दरकते संबंध : जिधर देखो उधर गंध ही गंध।


    34. क्या इनको लिफ़्ट देनी चाहिये थी? : दे दिये तो क्या पूछना?


    35. और भी गम हैं जमाने में गम के सिवा : और भी जाम हैं ढ़लकाने को आंसू के सिवा!



    मेरी पसन्द


    फिर क्या हो जाता है
    कि क्लास-रूम बन जाता है काफ़ी-हाउस
    घर मछली बाज़ार?

    कोई नहीं सुनता किसी की
    मगर खुश-खुश
    फेंकते रहते हैं मुस्कानें
    चुप्पी पर,
    या फिर जड़ देते नग़ीने !

    करिश्मे अजीबोग़रीब -
    और किसी का हाथ नज़र भी नहीं आता -
    पहलू बदलते ही
    जार्ज पंचम हो जाते हैं जवाहर लाल !

    गिरिधर राठी सौजन्य शिरीष

    ...और अंत में



    कल कुछ दोस्तों ने विकिपीडिया के बारे में जानकारी चाही। मैंने कल भी संबंधित लेख की जानकारी दी थी। काम भर की जानकारी इस लेख में दी है।

    यह सब काम जुनूनी होते हैं। मन लगे तो समय मौका सब निकल आता है। इनके कोई रिटर्न नहीं मिलते। आपका संतोष सबसे बड़ा रिटर्न है। चूंकि विकिपीडिया पर जो लिखा जाता है उसमें आपका नाम भी नहीं होता कि आपने लिखा तो नाम कमाई भी नहीं होती। लेकिन अगर करेगें तो मजा आयेगा।

    विकिपीडिया पर काम करने का एक तरीका जो हमें स्वामीजी ने सुझाया था वो यह है कि आप पहले कोई लेख या जानकारी विकिपीडिया पर डालें फ़िर उसे अपने ब्लाग पर डालें। देखिये करके शायद मजा आये।

    नारी ब्लाग पर सलाह (विचार आमंत्रित किये गये हैं)मांगी गयी है कि अपने विचार भेजे। शमाजी ने एक आम परिवार में औरत की दास्तान तमाम किस्तों में लिखी है। देखें कि उनके झेले हुये दर्द किस तरकीब से कम हो सकते हैं। ऐसे कौन से कदम उठाये जा सकते हैं कि किसी महिला को अपनी जिन्दगी में इस तरह के कष्ट न झेलने पड़ें।

    ब्लागजगत कल इतवार के दिन शान्त-शान्त सा रहा। बकलमखुद में रंजू की दास्तान पेश होनी शुरू हुई। उसी में काफ़ी टिप्पणियां आयीं। आज समीरलाल ने नेता की डायरी का पन्ना पेश किया। हमें लगता है कि अगर हमारे बीच नेता न हों तो हम शरम से डूब के मर जायें। नेता हैं तो सहारा रहता है कि अपने समाज की हर गंदगी नेता-गटर में उड़ेल के मस्त नींद सो जायें।

    ऊपर बाबाजी की फोटो मुंहफ़ट से साभार!
    फ़िलहाल इतना ही। नये हफ़्ते के लिये शुभकामनायें।

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