गुरुवार, मई 31, 2007

चिट्ठाजगत में चटपटिया का प्रवेश

नये चिट्ठाकारों में एक नाम और जुड़ गया है, मुकेशजी सोनी अपनी चटपटी शैली में चिट्ठाजगत को चटपटा बना देने का प्रयास कर रहें है, उनके चिट्ठे पर “कागलो” पढ़िये, राजस्थानी भाषा में है, समझ ना आये तो टिप्पणी कर पूछ लिजियेगा, दो फायदें होगें, एक तो आपके राजस्थानी ज्ञान में वृद्धि होगी दूसरा नये चिट्ठाकार की हौसला अफ़जाई। अतुल भाई तो उनका स्वागत कर ही चुके हैं, साथ ही नसिहत भी दे आयें की नारद पर पंजीयन करवा लो, अतुल भाई! चर्चाकारों का तो ख्याल किया करो। अनामदास जी आज अपने चिट्ठे पर लेख़न और खेलन में फ़र्क समझाते पाये गये, मगर खरी-खरी कहने से नहीं चुके –

तरह-तरह के प्रगतिशील, अप्रगतिशील, तुक्कड़-मुक्कतड़, जनवादी-मनवादी आदि-आदि लेखक संघों का वर्चुअल कन्फ़ेडरेशन है नारद. इसके बाद आप कुछ रियल बना लीजिए, पर्चे छापिए, नए लोगों को प्रोत्साहन दीजिए, वाह-वाह करिए, बीस-तीस लोगों को आप लेखक कहिए, बीस-तीस लोग पढ़कर या बिना पढ़े आपको लेखक होने का सर्टिफ़िकेट दे देंगे, हो गया काम.

शिरिल मैथिली गुप्त अंतरजाल पर अपने अनुभवों को आपके समक्ष लेकर हाज़िर हैं, अब आप सीख लें कि कैसे गधों को सम्मान देना है और कैसे धन्यवाद देना है?

राजस्थान जल रहा है, ऐसे में ज्ञानदत्तजी को मानसिक हलचल ना हो, संभव नहीं है, वे आहत हैं कि जब पटरियाँ उखाड़ी जा रही है तो उनकी ट्रेन कहाँ चलेगी, क्या कहना है उनका इस पूरे घटनाक्रम पर, देखिये उन्ही के चिट्ठे पर। अपनी मौजुदगी का एहसास करवाने के बाद अचानक गायब हुए अशोकजी अब पुन: लौट आयें है और घर-घर दस्तक देकर अपने लौटने का समाचार सुना रहे हैं, आप भी सुन लिजिये।

आज की सबसे बड़ी ख़बर, जिससे सम्पूर्ण चिट्ठाजगत आश्चर्य में डूबा है, “पंगेबाज ने आज कोई पंगा नहीं लिया” रही, वे आज राजनितिज्ञों को आवाज देते रहें तो गुरूदेव आज अपने अनुज अभिनव शुक्ल की प्रस्तुती “हास्य-दर्शन” की समीक्षा में व्यस्त दिखें, अच्छा लगा, “गुरूदेव! कभी हम पर भी नज़र मारों ना...”


अब आप जल्दी से चटपट को अपने चिट्ठे से लिंकित कर लें, नया चिट्ठाकार है, अभी जोश में भी होगा, क्या पता जोश में आकर आपको लिंकित कर लें, लिंकित होने का मतलब काकनरेश अर्थात काकेशजी ही बेहतर बता सकते हैं, सुना है कि वे आजकल इसी विषय पर पी.एच.डी. कर रहें है।

हिन्द-युग्म पर कवि गौरव सौलंकी अपने युग को अपनी शैली में बयां कर रहें है –

शब्द पावन, धुन भी पावन
गीत सब नापाक हैं
चेहरे हैं चंचल सभी
पर हृदय अवाक हैं

मौन है मानवता सारी
सर्वहित तो स्वार्थ हैं
स्निग्ध भावों वाले तो
अब अनिच्छित मार्ग हैं

चलिये अब थोड़ा दार्जिलिंग घूम आते हैं अभिषेक ओझा के संग, अच्छा है कि दार्जिलिंग जाने का रास्ता दौसा होकर नहीं जाता, वरना मैं तो घूमने की सोच भी नहीं पाता, बहुत पंगा है, होना भी चाहिये, भारतीयता की सच्ची पहचान ही पंगा और जुगाड़ है, ये दोनों नहीं हो तो लगता है कि हम भारतीय ही नहीं है, देखिये ना, अभिनव शुक्लजी के शब्दों में -

ये जानना कठिन है कि मासूम कौन है,
हम सब ही गुनहगार हैं लाठी उठाइए,

नन्दी का ग्राम हो भले दौसा के रास्ते,
आवाम पे बेखौफ हो गोली चलाइए,

राजस्थान में इतनी आग लगी है कि बेचारी धूल भी उड़ने से कतरा रही है, क्या मालूम हवा में भी जाम लगा हो, खेर माया के राज में लगता है यूपी में धूल पर कोई रोक नहीं, वह आराम से उड़ सकती है, भले ही रचना सिंह को परेशानी होती हो।

हिन्द-युग्म पर काव्य-पल्लवन का तृतीय अंक प्रकाशित हो गया है, इस बार स्मिताजी और शैलेशजी को नेट गच्चा दे गया, सभी कवियों को कृतियों को रंगीन नहीं बनाया जा सका। तुषार जोशी (वही, नागपुर वाले) के विषय “परिवर्तन का नाम ही जिन्दगी” पर कवियों का यह प्रयास कैसा रहा, देखियेगा।

दर्द में आज रूस्तम शहगल वफ़ा जी की ग़ज़ल – “क्या ख़बर थी इस तरह से वो जुदा हो जायेगा”

रेडियो-वाणी पर एस.डी. बर्मन साहब के गाये गीतों पर आधारित श्रृंखला की दूसरी कड़ी आ चुकी है।

ममता टीवी पर ताज़ा ख़बर – “फिसड्डी से नम्बर वन

गुगल का नया धमाका “गुगल गियर क्या है?” जान लें और चलते-चलते आज का जुगाड़ भी देख लें।

(बहुत से चिट्ठे रह गयें है, उन्हें कल संजय भाई कवर करेंगे)

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बुधवार, मई 30, 2007

किस किस का अब ज़िक्र करें हम

कितनी चिट्ठों की चर्चायें कीं, पर किसने पढ़ी बताओ
और अगर न चर्चा हो तो कोई शोर नहीं होता है
फिर फिर कर यह प्रश्न उठा जब मैं चर्चा करने बैठा हूँ
क्यों मैं जाग जाग लिखता हूँ, जब सारा आलम सोता है

आठ दिनों में चार बार ही हो पाईं चिट्ठों की चर्चा
चर्चा की खातिर चिट्ठों में कोई बात नहीं है शायद
इधर उधर की छेड़ाखानी, कुछ शिकायतें, कुछ हंगामे
चिट्ठाकारी की लगता है सचमुच में हो रही कवायद

लिखा कभी था गया प्रशंसा कैसे चिट्ठों की होती है
वही चित्र दिख रहा आजकल, केवल झूठी तारीफ़ों का
बात बेतुकी गज़ल कहाती, आडंबर कहलाता चिन्तन
पत्ता भी जो देख न पाये, ज़िक्र किया करते शाखों का

पंकज ने नकाब उलटा है, देखो यहां असलियत कोई
दिल के दर्पण में दिखता है आंसू वाला गहरा रिश्ता
यौवन की अभिलाषा लेकर खड़े हुए हैं गीत सुनहरे
कठपुतली खुद एक पहेली और भला मैं क्या कह सकता

सभ्य आदमी और बहादुर भी ये रचनाकार बताये
गायत्री ने रिश्तों को दीवारों को रिसते देखा है
परमजीत को बस फ़रेब ही देते यहां मोहल्ले आये
विज का चित्र देखिये जाकर और बता आयें कैसा है

किससे वादा करती रचना, कौन राजधानी में आया
कितने गीत और लिखने हैं, प्रश्न एक फिर गया उठाया
हैं समीरजी, चाचाजी के साथ व्यस्त, बाकी सकुशल है
इसीलिये चर्चा का मैने आज यहाँ दायित्व निभाया


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मंगलवार, मई 29, 2007

कौन हो तुम ?

तीन दिनों की छुट्टी से जब वापिस लौटे, नारद गायब
चिट्ठा चर्चा फिर भी अक्रनी, कैसे हो ये बड़ा अजायब
तंग आ चुके तो साहिर की गज़लों को फिर पढ़कर देखा
कोई कहता उसकी लाइफ़ हुई महासागर में नायब

कितनी बार गई दुहराई, जो रोटी की एक कहानी
एक बार फिर दुहराते सत्येन्द्र कथा हो गई पुरानी
अच्छी बातें बतलाते हई, कभी कभी करते हंगामा
शादी के बाजारों की चर्चा मनीश की सुनें जुबानी

किसके कदम सफ़लता चूमे, बतलाते हैं फ़ुरसतियाजी
लाये रचनाकार यहाँ वीरेन्द्र जैन की छह रचनायें
उनसे परिचय तीस वर्ष से, जब वे रहे भरतपुर में थे
भाई रतलामीजी, सोचा बात आपको यह बतलायें

कविता कोश निरन्तर गतिमय, नये नाम जोड़े जाता है
अपने गम का मुझे कहाँ गम, ये फ़िराक़ की रही बयानी
जिन्हें न लिखना आता, वे भी कुछ न कुछ लिखते रहते हैं
चिपलुनकरजी सुना रहे हैं, मजेदार इक और कहानी

हम तो लिखते आप, मगर वे लिख कर लाये तुम के नग्मे

और कौन हो तुम इसकी परिभाषायें बस पढ़ कर जानो

कुछ चिट्ठे जो छूट गये हैं, उन्हें आप पायें नारद पर

हमको घड़ी कह रही उठ कर चलो और अब लम्बी तानो

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सोमवार, मई 28, 2007

मैं जलकुकड़ी


दोस्तों, इन संकलित चिट्ठों की ख़ासियत ये है कि इनमें से अधिकतर नारद से जुड़े नहीं हैं, हिन्दी में नए नवेले हैं और प्रायः दूसरी भाषाओं - मसलन अंग्रेज़ी से हिन्दी लेखन की ओर नए-नए आकर्षित हुए हैं. आपसे गुज़ारिश है कि इनकी हौसला आफ़जाई अपनी धुआंधार टिप्पणियों के माध्यम से करें. हां, हो सकता है इनमें से कुछ की हिन्दी शोचनीय या शौचनीय जैसा कुछ हो (लिखते पढ़ते वे शीघ्र सीख जाएंगे - यकीन मानिए, कोई भी व्यक्ति शौकिया रूप से गलत भाषा में नहीं लिखता) परंतु आइए, उनके प्रयासों की सराहना करें.


ये नए नवेले हिन्दी चिट्ठे मुझे कहाँ से मिले? मेरे टंबलर से! ये टंबलर क्या है ? जल्दी ही आपको बताता हूँ!, तब तक आप मेरा टंबलर देखें.

शब्द सागरना किनारे...

भाषाई दीवार ढहती हुई -

उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक़
वह समझ्‌ते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

તે મારી સામે જુવે છે અને મારા ચહેરા પર ચમક આવી જાય છે, અને તેઓ સમજે છે કે આ બિમારની હાલત હવે સારી છે.

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द इनरमोस्ट फ़ीलिंग...

एक गांव में एक स्त्री थी । उसके पती आई टी आई मे कार्यरत थे । वह आपने पती को पत्र लिखना चाहती थी पर अल्पशिक्षित होने के कारण उसे यह पता नहीं था कि पूर्णविराम कहां लगेगा । इसीलिये उसका जहां मन करता था वहीं पुर्णविराम लगा देती थी ।उसने चिट्टी इस प्रकार लिखी--------

प्यारे जीवनसाथी मेरा प्रणाम आपके चरणो मे । आप ने अभी तक चिट्टी नहीं लिखी मेरी सहेली कॊ । नोकरी मिल गयी है हमारी गाय को । बछडा दिया है दादाजी ने । शराब की लत लगा ली है मैने । तुमको बहुत खत लिखे पर तुम नहीं आये कुत्ते के बच्चे ।.... आगे यहाँ पढ़ें


लस्ट फ़ॉर लाइफ़

होती है मुझे ईर्ष्या !!

उन हवाओं से,

जो तुम्हारे बाल सहलाती हैं,

उन खुशबुओं से,

जो तुम्हारे करीब आती हैं ।

.... आगे पढ़ें

सृजन

आज फ़िर...

आज फ़िर हमने एक सपना देखा,

हो जायेगा पूरा, वो अरमान है सोचा ।

खुश हो जाये दिल का हर एक कोना,

फ़िर आरजू की कलियो को खिलता देखा ॥

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मैं जलकुकड़ी (जेलसमी)

हेल्लो!! क्या चल रहा है?? सब मस्त?

मेरा नाम आरुशी है!!

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चदुवरि

अब हिंदी मे भी लिख सकते है। लेकिन ए सुविधा तेलुगु भाषा केलिये कब आयेगी?

जल्दी ही आएगी, तब तक आप भोमियो का इस्तेमाल कर सकते हैं!

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अग्नि की खोज

आप पूछोगे कि यह आदमीयों कि ज़मात मे गधा कहा से आ गया?

इसका जवाब अपने रामलाल जी शरमाते-लजाते-मुस्कराते हुए देते हैं। कहते है " अजी गधा भी तो आख़िर आदमी होता है।" तो हाज़रीन रामलाल जी का गधा कोई मामूली गधा नही-वो तो शेर है अपने दरवाज़े का, अब चुंकि राम्लाल्जी के लिए बकौल शायर आस्मान छत और धरती ठिकाना है, गधे को दरवाज़े कम ही मिलते हैं और बेचारा अपनी मनमोहन जी जैसे शेर होके भी गधे वालो काम चलाऊ सर्कार कि जिन्दगी जीं रहा है।

लेकिन इन सारी बातों का शायरी से क्या वास्ता? तो जनाब शायरी से मेरा ही कौन सा बहुत वास्ता है, मैं तो बस सुहाने मौसम और भीगी भीगी शाम के लपेटे मे आ कर भावुक हो उठा था, जैसे जंगल का मोर हो उठता है।....

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ऑक्शन

अपको एबय से कैसे पैसा कमाना है ये सीकना है?

तो आगे पढ़ें -


स्प्लैटक्रैश

फिर आज मुझे तुमको

...बस इतना बताना है,

हंसना ही जीवन है, हंसते ही जाना है।

यह शब्द सुनके मेरको पहले सुख मिलता था, मैं सोचती थी की सब कुछ ठिक हो जायगा, पर अब लगता है, की जिंदगी में केवल दुख है, और खुशियाँ सब एक सपना।

हसीं का कुछ मतलब था, और हसीं मजाक में समय निकल जाता था, बिना सोचे ना समझे, पर अब यह तो चलता ही नहीं, ना तो मन माने ना तो जी समझे। सब दोस्तों के साथ ऐसा क्यों होता है। समझ में ही नहीं आता की हम क्या कर सकते है, सच समझे तो कुछ नहीं हो सकता है, बस इंतजार। पर कब तक इंतजार करे, जबतक, सब दोस्त अपने अपने घम में गुम ही जाये? क्या यह ही जीवन है, बस इतनी ही कोशिश?...

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हाल-ए-दिल

धड़कन है साँसे हैं ,

पर वो जिन्दगी नहीं

मेरा चांद आज मेरे साथ है,

पर वो चांदनी नहीं

मुद्दत से चाहा है उनको,

कभी छीना भी नहीं

नशे में गम को भुला दे,

ऐसा वफाई सीना भी नहीं...

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इनफ़ोविनिटी

एक बार हमें शादी करने का ख्याल आया।

हमने तुरन्त जाकर पिता जी को बताया।

पिता जी ने अगले दिन ही;,

बिना दहेज के शादी के लिए

अखबार में इश्तिहार छपवाया।

महीने भर तक घर पर कोई नहीं आया।

तब पिता जी ने अपनी समस्या

एक प्रार्पटी डीलर को बताई।

उसने तुरन्त एक तरकीब सुझाई।

बोला

झुमरी तलैया में दूल्हों की सेल लगी है।

वहां लड़कियों की बहुत लम्बी लाईन लगी है।

आप तुरन्त वहां चले जाइए।

जैैसी चाहें वैसी वधू पाइए।

पिता जी बोले

पर मुझे दहेज नहीं लेना।

वो बोला लड़की तुम रख लेना।

दहेज मुझे दे देना।....


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जीवन पुष्प

हे मेरे गुरुदेव करुणा-सिंधु .. - भजन

हे मेरे गुरुदेव करुणा-सिंधु करुणा किजीये,

हुं अधम आधीन अशरण, अब शरणमें लिजीये...

खा रहा गोते हुं मैं भव-सिंधु के मझधारमें,

दुसरा है आसरा कोई ना ईस संसारमें,

हे मेरे गुरुदेव करुणा-सिंधु करुणा किजीये...

मुझमें नहि जप-तप व साधन, और नहि कुछ ग्यान है,

निर्लज्जता है एक बाकी, और बस अभिमान है,

हे मेरे गुरुदेव करुणा-सिंधु करुणा किजीये...

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काव्य संग्रह

आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।

आराम सुधा की एक बूंद, तन का दुबलापन खोती है।

आराम शब्द में 'राम' छिपा जो भव-बंधन को खोता है।

आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है।

इसलिए तुम्हें समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो।

ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर, आराम करो, आराम करो।

....... आगे पढ़ें


ऑरबिट मैक्स

आना है तो आ, राह में कुछ फेर नही है

भगवान के घर देर है, अन्धेर नही है।

जब तुझसे न सुलझे तेरे उलझे हुए धन्दे

भगवान के इन्साफ़ पे सब छोड़ दे बन्दे।

खु़द ही तेरी मुशकिल को वो आसान करेगा

जो तू नहीं कर पाया वो भगवान करेगा।

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तथा यह भी -

उत्सव का मतलब है:

पूस कि रात
चार दोस्त
एक बरसात
चार कप चाय

(या)

१०० रु का पेट्रोल
एक खटारा मोटरगाड़ि
एक खाली सड़क

(या)

म्यागि नूड़ल्स
हास्टल का कमरा
सुबह कि ४:२५

(या)

तीन पुराने साथि
तीन अलग शेहेर
तीन काफ़ी के प्याले
एक इन्टर्नेट मेसेन्जर

(या)

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हैप्पीनेस

....इसीलिये मेरी मां ने मुझे

अशिक्षा की, भाग्यशीलता की

धर्मान्धता की और जांत- पांत की

अफीम चटा दी है...

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बस यूँ ही

हीय में उपजी,

पलकों में पली,

नक्षत्र सी आँखों केअम्बर में सजी,

पल‍ ‍दो पलपलक दोलों में झूल,

कपोलों में गई जो ढुलक,

मूक, परिचयहीनवेदना नादान,

किससे माँगे अपनी पहचान।

नभ से बिछुड़ी,

धरा पर आ गिरी,

अनजान डगर परजो निकली,

पल दो पलपुष्प दल पर सजी,

अनिल के चल पंखों के साथरज में जा मिली,

निस्तेज, प्राणहीनओस की बूँद नादान,

आगे पढ़ें ....


आज फिर


आज फिर याद कर तुम्हें
रोने का मन करता है
पर इसपर भी मेरा अधिकार नहीं
तुमने क़सम जो दी है मुझको

आज फिर याद कर तुम्हें
वो पेड़ की छाँव याद आती है
तुम्हारी गोद में सिर रख कर
सोने का फिर मन करता है

आज फिर याद कर तुम्हें
चूड़ी की खनक सुनाई देती है
वो कंगन और बाली की आधी झलक
मन हर कोने में खोजता है...

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ओबेदुल्ला अलीम की ग़ज़लें

अजीज़ इतना ही रखो कि जी संभल जाये
अब इस क़दर भी ना चाहो कि दम निकल जाये

मोहब्बतों में अजब है दिलों का धड़का सा
कि जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाये

मिले हैं यूं तो बोहत, आओ अब मिलें यूं भी
कि रूह गरमी-ए-इन्फास* से पिघल जाये

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मिस्टर इंडिया के बीस साल

२० साल पहले शेखर कपूर कि groundbreaking फिल्म "मिस्टर इंडिया" release हुई थी। उस समय शायद मेरी toilet training चल रही थी। इस पिक्चर को मैंने early nineties में अपने VCR पर देखा था। फिल्म इतनी पसंद थी कि इसका cassette भी खरीद लिया था। उस समय कंप्यूटर तो था नही और video game तब खरीदा नही था।केबल काफी नया था। VCR पे picture ही देखी जा सकती थी। आज कल तो दिन भर net पे बैठा रहता हूँ । Torrents से दुनिया भर कि picture और TV shows download कर के देखता हूँ. by chance, आज एक video Youtube पर मिला :

आगे यहाँ पढ़ें...

यहीँ पर एक पोस्ट में लिखा है -

नारद वाले काफी दादागिरी करते हैं। मोगाम्बो जैसे आदमी को रजिस्टर करने के लिए तीन पोस्ट क्यों लिखना ज़रूरी है। बड़ा तोडु introduction लिखा था। सोचा था एक बार aggregate हो जाये, लिस्ट पे नाम आजाये तो पोस्ट करूंगा। अब तो उसे जल्दी ही लगना पड़ेगा।

तो, बंधु अगर आप ऐसी खिचड़ी लिपि में लिखेंगे तो नारद का प्रसाद आपको क्योंकर मिलेगा? अंग्रेज़ी के शब्द खूब लिखें, पर लिखें देवनागरी लिपि में. नारद हो या कोई भी संस्था - उसके अपने कुछ उसूल नियम कायदे कानून तो होंगे कि बस मोगेम्बो की अक्खा, उलटी, बेनियम-बेकायदा दुनिया ही चलेगी?

और, अंत में स्थानीयकृत (लोकलाइज्ड) गुजराती ग़ीक - कार्तिक मिस्त्री का ब्लॉग - यहाँ ब्लॉग पर कुछ पढ़ने ढूंढने के लिए आपको कमांड लाइन के जरिए बैश कमांड देने पड़ सकते हैं! लिनक्स कमांड सीखने का बेहतरीन आइडिया. कमांड लाइन पर help कमांड देकर देखें!

(चित्र - मैं जलकुकड़ी से!)

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रविवार, मई 27, 2007

चरचा चलिबे की चलाइए न

कल की शनीचरी चिट्ठाचर्चा का घोटाला देखकर बहुत हैरानी नही हुई क्योंकि हम इस दर्द और दौर से परिचित हैं । फिर भी साहस बटोर बटोर कर काम करने बैठते हैं । :)
खैर रविवारी चर्चा के लिए समस्त चिट्ठों को यहाँ देखें ।
पैसा जीवन का केन्द्र बन चुका है और पैसा बनाने की तरकीबों की हम सबको ज़रूरत है :) पर हम सोचते रह जाते हैं और बनाने वाले पैसा बना ले जाते हैं । मिर्ची सेठ बता रहे है -देखो बडी बडी कंपनियाँ कैसे पैसा बनाती हैं

पिछली अगस्त में टाटा वालों ने अपनी दूकान का सामान बढ़ाने के लिए यही कुछ 677 मिलियन डालर (2700 करोड़ रुपए से भी ज्यादा) में यहाँ अमरीका की ग्लेस्यू एक रसीला (विटामिन वाला) पानी बनाने वाली कम्पनी का करीब एक तिहाई हिस्सा खरीद लिया था। टाटा वालों का मानना था कि इस से एक तो दूकान का सामान बढ़ेगा व यह खरीद लम्बी दौड़ का घोड़ा साबित होगा।

दूसरी ओर बाल मन इस मया से अनजान अपनी अपनी जुगाड में लगे हैं । चाहे चोरी ही करनी पडे । माखनचोर की तरह ।श्री कृष्णम !

यार कोई तरक़ीब बता
तरक़ीब बता,
पच्चीस पैसे की जुगाड़ की।
वो वाले पच्चीस पैसे,
जिसकी चार संतरे वाली गोलियाँ आती थीं।
तरक़ीब बता,
चोरी करनी है!
अपने ही घर में कटोरी भर अनाज की...।
आज सपने में भोंपू वाली बर्फ़ बिकी थी!
सभी सडकें अब गाँव से शहर की ओर भागती है पर अब कोई सडक गाँव की ओर लौटती नही है। सत्येन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव बता रहे हैं उस युवा की व्यथा जो अपने गाँव- घर से दूर शहर में है ।

वैसे सच तो यह है मां
कि
शहर
अब आदमी के रहने लायक नहीं रहा
सोचता हूं
गांव वापस लौट आऊं।


मस्तराम की आवारा डायरी से विरह और इंतज़ार की अभिव्यक्ति । फुर्सत से । आजकल वे भी फुरसतिया हैं । अजीब है विरह भी फुरसत वाले ही मना सकते हैं ।राह में बरसों खडे रहने के लिये वक्त चाहिये भाई :) :)--

बरसों से खडे हैं हम
राह पर उनके इन्तजार में
उम्मीद है वह कभी आएंगे
हमारा काम है इन्तजार करना
तय उनको करना है कि
कब हमारे यहां आएंगे
बाब नागर्जुन की कविता खिचडी विप्लव देखा हमनें से विप्लव का वास्तविक अर्थ समझकर शिवराम कारंत के एक उपन्‍यास - मूकज्‍जी। पर बात हुई है मोहल्ला में ।
उपन्‍यास के इस प्रसंग को सुनाने का मतलब यही है कि बहुतों के लिए यथार्थ का होना कोई मतलब नहीं रखता। उड़ीसा, संतालपरगना, छत्तीसगढ़ या गुजरात के गांवों का सच अपनी जगह है, लेकिन अगर उस सच का हमारे जीवन से कोई तार नहीं है, तो उसकी बात नहीं करेंगे। हमारे मन में जो इन भूगोलों की कल्‍पना है, उसके अलावा वो बेचैनियां हमारे लिए ज़रूरी हैं, जिनका वास्‍ता हमारे एकदम पड़ोस से होता है।

तो शिल्पा शर्मा बाबा के एक अन्य कविता -कम्यूनिज़्म के पंडे ले आयी हैं-

आ गये दिन एश के!
मार्क्स तेरी दाड़ी में जूं ने दिये होंगे अंडे
निकले हैं, उन्हीं में से कम्युनिज्म के चीनी पंडे

जब बुद्धिजीवी कहलाने वाला व्यक्ति अन्ध समर्थन करने तैयार रहेगा , बुद्धि को ताक पर रख कर तो ऐसी ही स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं ।संजय बेंगाणी पडताल कर रहे हैं --

मल्लिका साराभाई जैसे बुद्धिजीवी लोग जैन की पेंटिंग हटाने के विरूद्ध विरोध प्रदर्शन के लिए आये हुए थे. मीडियाकर्मी ने उनसे पूछा,”क्या आपने पेंटींगे देखी है?”. जवाब था,”ना”. फिर दूसरे बुद्धिजीवी से यही सवाल पूछा,”क्या आपने पेंटींग देखी है?” उनका जवाब भी था, “ना”. पेंटींग देखी नहीं मगर समर्थन जरूर करना है. अंधे समर्थन में विरोध रेली निकाल कर पेज थ्री पर छप जाना है. प्रोफाइल बढ़ा लेनी है.
और शूट आउट में मारा मारी के साथ साथ कम चीनी वाला फीका हेल्थ? कॉंशस रोमांस तारा रम पम पम बच्चों के हुडदंग --------अज़दक ..प्रमोद ...सिंह ... लोहा नहीं मिलता लोखंडवाला में. सभ्‍यता के कादो में फंसा छूटा रहा गया हो कोई इमारती बेड़ा जैसे.आतंकवादी है जाने कौन है, आंख खुलते बुदबुदाता है आदमी- ओ मां की आंख, एक सिगरेट पिलाना बे!
एक कार्टून है 'शिनचैन', बच्चा है हमारे बच्चों जैसा ,जिसे बिलकुल चैन नही । वह गाता है " जब भूख सताने लगे नाचो नाचो नाचो .... बस हम कह रहे हैं जब भूख सताने लगे स्पाइसी आइस देखो देखो देखो और फुँको फुँको फुँको ,क्योंकि सिर्फ देख पाओगे बच्चा!चाइनीज़ खाओगे ?



और इंतज़ार की चिंचिन चू भी सुनिये :) नही सुन पाए तो असुविधा के लिए खेद है :(

यहाँ हमे कई जगह " असुविधा के लिए खेद है" लिखा मिला। हालाकि ये असुविधा हमारी सुविधा के लिए थी। लेकिन गम्भीरता से सोचा जाये तो हिमाचल प्रदेश मे विकास के नाम पर paharo के सिने पर बारूद से विस्फोट करना कहा तक सही है। हमारे विकास कि गरमी से जहा एक तरफ हिमशिखर पानी बन बहते जा रहे है। वही दुसरी तरफ सुविधा के नाम पर "असुविधा के लिए खेद है" का खेल बचे खुचे हिमशिखर को भी लील जाएगा।

इंटरनेट सेंसर्शिप के मसले पर लेख पढिये समाजवादी परिषद में। खुले विश्व के बन्द होते दरवाज़े ।

एक लक्ष्य था कि इससे अधिक से अधिक व्यक्ति और समूह अपने विचार और सृजन को प्रकट कर सकेंगे ।विश्व के एक कोने में कम्प्यूटर के एक ‘क्लिक’ से दूसरे कोने में सृजित वेबसाइट का सम्पर्क स्थापित हो जाएगा , निर्विघ्न और निष्पक्ष सूचना के आदान - प्रदान हेतु । इन आदर्शों को क्रान्तिकारी माना जा सकता है ।फिलहाल इन महान आदर्शों की पूर्ति में कई किस्म की प्रतिक्रांतिकारी वर्जनाएं रोड़ा बनी हुईं हैं । ये वर्जनाएं भाषा , वित्त और तकनीकी संबधी तो हैं ही , सेंसरशिप के कारण भी हैं ।


चलते तो अच्छा था - असग़र वजाहत के ----ईरान और आज़रबाईजान के यात्रा संस्मरण पढिये रचनाकार में । अगर आप यह चिट्ठाचर्चा पढते - पढते यहां तक पहुंच ही चुके हैं तो आपसे इतनी गुजारिश का तो हक बनता ही है कि एक छोटी या मोटी सी टिप्पणी करते जाइए और बिना टिपाए तो चरचा चलिबे की चलाइए न ! ;)

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शनिवार, मई 26, 2007

ज्वालन के जाल बिकराल बरसत है


दिल्ली की गर्मी सर घुमा देती है । आज चर्चा को लू लग गयी या शनिदेव की कुदृष्टि? समझ नही आया।यहाँ हमारे लाल ने छुट्टियाँ होते ही घर में हडकम्प मचा दिया है।खैर अंत भला सो सब भला। हमारा लाल सोया और हमने मौका पाया चर्चा का।

तो यह रहे 25मई के चिट्ठे सारे।

गर्मीहमे लग रही है ,और गर्मीके संस्मरण सुना रहे है प्रमोद जी।


तपते चेहरे के साथ मनोज घर में ऐसे दाखिल होता मानो बेहोश होकर गिर पड़ेगा. दांत के
बीच जीभ दाबे बाबूजी भी लकड़ी वाला काला छाता बंद करके ऐसे अंदर आते जैसे युद्ध से
लौट रहे हों. मुन्नी भागकर सुराही से लोटा भर पानी लेकर लौटती

और हिमाचल् न्यूज़ ब्यूरो नेकाव्य शैली मे खबर सुनाई ----



आधी रात - रोशनी गुल - पंखें बन्द!
एक मच्छर नाक पर,आंख पर, गाल पर, बार-बार आक्रमण
……….एक ख्याल,एक मच्छर हिल गया, खूं खोरी पर,खायेगा नही, तब तक जायेगा नहीं
मैं इस अन्याय के, अंधियारे में,बेबस हूं लाचार हूं

पर हैरानी कि हिमाचल में भी अगर गर्मीका यह आलम्है तो ......................खैर नीलिमा जी हम जैसे पीडितो के लिये ठेले पर हिमालय रख कर ले आयी है किन्नौर

दीपक बाबू याद दिला गये मज़दूर की जो आत्मसम्मान से जाता है।



रोजी-रोटी की तलाश मेंनिकल जाता है
अपने घर से दूर
दूसरों के लिए महल बनाता
खुद झौंपडी में रहता
कहलाता है मजदूरअपने ख़ून-पसीने से
सींचता है विकास का वृक्ष
पर उसके लिए लगे
फल होते अति दूर
बचपन में पढी एक कविता याद आ गयी -"मैं मज़दूर,मुझे देवों की बस्ती से क्या/अगणित बार धरा पर मैने स्वर्ग बनाए......"


इसलिये राज लेख सन्देश दे रहे हैं सदा चलने का क्योंकि चलना है नाम ज़िन्दगी का -----



उनके क़दमों पर सुख और आनन्द
बिछ्ता है कालीन की तरह
वह नहीं थामते
कभी दामन
बेबसी का
उनके लिए
चलना नाम है जिन्दगी का


रचना सिंह अपनी कविता में प्यार से ऊपर विश्वास को महत्व दे रही हैं।



प्यार नहीं विश्वास हूँ मै तुम्हारा
क्योकि प्यार के बिना तो रहा जा सकता है
पर विश्वास के बिना जीना व्यर्थ है



समाज वाद की वास्तविकता को बताया जा रहा है सुमनसौरभ में सौरभ मालवीय द्वारा----


वहीं समाजवाद कोई निश्चित विचारधारा नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि समाजवाद वैसी
टोपी है, जिसको सब पहनना चाहते हैं जिसके फलस्वरूप उसकी शक्ल बिगड़ गई। समाजवाद
विचारधारा कहीं सफल नहीं हो सकी। यह समाज में समानता की बात जरूर करता, लेकिन जो
परिणाम विभिन्न देशों और अपने देश में देखने को मिले वे बिल्कुल विपरीत हैं। इसी
प्रकार समाज में समता की बात करने वाले साम्यवाद ने लोगों की आशाओं पर पानी फेरा।
साम्यवाद एक शोषणविहीन समाज का सपना दिखाता है। उसका साध्य अवश्य पवित्र है, लेकिन
साधन ठीक उसके उल्टे अत्यंत गलत हैं। वह हिंसा को सामाजिक क्रांति का जनक मानता है
और दुनियाभर में साम्यवादी विचारधारा के नाम पर जितनी हत्याएं की गईं उसका विवरण
दिल दहला देता है।

पंडिज्जी , यानी संजीव तिवारी जी ने नवतपा की जानकारी दी है ----



जेष्ठ माह में जब सूर्य सबसे ठंडा ग्रह चंद्र के नक्षत्र रोहिणी ( ईस पर सूर्य
का भी अधिकार है ) वृष राशि मे प्रवेश करता है तभी नवतपा शुरु होता है । आज शाम
सूर्य रोहिणी में प्रवेश करेगा उसी समय से नवतपा शुरू हो जायेगा जो ९ दिन
चलेगा।

पर हमें तो बढिया लगा सेनापति की कविता जो उन्होने साथ दी है । काश वे गर्मीसेबचने का भी कोई उपाय हमें बत देते ।


और प्रतिबिम्ब में बाईस्कोप दिखाया रतलामी जी ने ,बादलो को घिरते देखा मसिजीवी ने और अतुल ने बडे होकर समुद्र में तैरने की इच्छा जताई [अभी पता नही वे और कितने बडे होना चाहते हैं :) ]आर सी मिश्रा प्रेमी युगल को कैद करते है कैमरा में


विहिप उपाध्यक्ष गिरिराज्किशोर से बातचीत को दर्ज किया है मोहल्ला ने। उपाध्यक्ष की बातें अजीब हैं ।अविनाश कहते हैं----




आमतौर पर हम मोहल्‍ले में वैसी आवाज़ों को जगह देते रहे हैं, जो अल्‍पसंख्‍यक के
सुर की होती है। अभिव्‍‍यक्ति की आज़ादी के सुर को भी आप इसमें से जोड़ सकते हैं।
इन्‍हीं वजहों से हमें अपनों से भी लानतें मिलीं, क्‍योंकि उन्‍हें लगता है कि
दो-तीन सौ लोगों की इस ब्‍लॉग केंद्रित वर्चुअल दुनिया में सांप्रदायिकता जैसे
मुद्दों का क्‍या मतलब है।



साथ ही मसिजीवी आगाह करते है कि इसे आम हिन्दू के विचारो का प्रतिनिधित्व न माना जाये ।





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गुरुवार, मई 24, 2007

हम तो आवाज़ हैं दीवारों से छन जाते हैं

हम तो आवाज़ हैं दीवारों से छन जाते हैं”, आपको ये पंक्तियाँ याद होगी, आज मजरूह सुल्‍तानपुरी की बरसी पर उनके जीवन-काल का संक्षिप्त ब्योरा लेकर हाज़िर हुए हैं श्री यूनुस ख़ान अपने चिट्ठे रेडियो-वाणी में तो गौरव प्रताप गुनगुना रहें है “मिदहतुल अख्तर” की ग़ज़ल -

आग पूरी कहाँ बुझी है अभी
दीदा-ए-तर में तिश्नगी है अभी

यदि आप चिट्ठा लिखते है तो भोमियो की शरण में अवश्य जायें, भाषा का बंधन ही खत्म हो जायेगा, आपको जो भाषा आती है आप उसी में लिख डालें, भोमियो है ना! काकेशजी को भोमियो के शरण में जाते ही उड़िया में टिप्पणी मिली है, क्या पता आपके चिट्ठे पर भी अन्य भाषाई पाठकों की बाढ़ आ जाये। साथ ही देखियेगा क्या है आज का जुगाड़ भी, आखिर चिट्ठाकारी में जुगाड़ों का भी तो महत्व है।

अक्षरग्राम समूह छायाचित्रकारों के लिये एक ख़ुशख़बरी लेकर हाज़िर हुआ है, अब छायाचित्रकार सामूहिक रूप से अनुपम तस्वीरें एक ही जगह पर संकलित कर सकेंगे। प्रतिबिम्ब हिन्दी चिट्ठाकारों के लिए एक सामूहिक फोटोब्लॉग का कार्य करेगा; जिसमे ब्लॉगर स्वयं रजिस्टर करके, अपने द्वारा खींचे गए चित्र डाल सकता है। सभी छवियों (फोटोग्राफ़्स) को विभिन्न श्रेणियों मे बाँटा गया है, ताकि देखने वाले अलग-अलग तरीके से चित्रों का अवलोकन कर सकें। यदि आपको फोटोग्राफी का शौक है तो रजिस्टर करने मे देर मत करिए।

भौतिकी के नियमों की नई व्याख्या लेकर अपने बिहारी बाबू भी “मस्ती की बस्ती” में आ धमके है, बस्ती में चार चाँद लगा दिये है उनकी इस पोस्ट ने -

'जौं जौं मुर्गी मोटानी, तौं तौं दुम सिकुड़ानी।' कहने का मतलब यह कि जब मुर्गियां छोटी होती हैं, तो उनकी दुम (अगर होती है, तो) मोटी होती है, लेकिन जैसे-जैसे वे बड़ी व मोटी होती जाती हैं, उनकी दुम सिकुड़ती चली जाती है। आजकल के बच्चों को ही, समय के साथ मुर्गियों जैसे ही उनकी दुम भी सिकुड़ रही है। नए जमाने के बच्चे अभिमन्यु की तरह गर्भ से हीबहुत कुछ सीखकर आते हैं। आज के तीन-चार साल के बच्चों में जितनी अक्ल होती है, आज से बीस-तीस पहले अगर इस उम्र में इतनी अक्ल होती, तो पता नहीं अपना देश कहां चला गया होता!

कुछ समय पहले गुजरात सुलग उठा था आज ऐसी ही स्थिति पंजाब में बन रही है, ऐसे में कवि कुलवंत जैसे व्यक्तियों का ऐसी इंसानी फितरत पर दुखी होना जायज ही लगता है -

भाषा, मजहब, जात के नाम,
ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य हो काम,
मक्का, मदीना, तीर्थ हो धाम।
लड़ना ही है क्या इंसान की फितरत?
.
बांग्ला, द्रविण, उर्दू, हिंदी,
मुस्लिम, हिंदू, इसाई, यहूदी,
सिया, सुन्नी, वहाबी, विर्दी,
लड़ना ही है क्या इंसान की फितरत?

नोडपेड पर फिर से हलचल शुरू हो गई है, इस बार कुड़ादान की कविता (जो कुड़ा में जाने से पूर्व साईबर पिता को सौंप दी गई है) के साथ अपने भाव दर्शाने का प्रयास, साथ ही गैर काव्य-प्रेमियों के प्रकोप से बचने की व्यवस्था भी (भूमिका में)...लगता है हमारे गुरूदेव से विशेष ट्रेनिंग ली है।

संजीव तिवारी अंतर्जाल के हिन्दी चिट्ठों और उनके पाठकों की संख्या को लेकर विश्लेषण करने लगे। एक अच्छा विश्लेषण किया मगर एक चूक कर गये, नारद पर लोकप्रियता को लेकर लगा डिस्कलेमर नहीं पढ़ा (शायद), बस फिर क्या था, ताऊ आ गये वहीं पर डिस्कलेमर लेकर –

आपने पूरा लेख तो लिख दिया, लेकिन लोकप्रियता वाले उस लिंक पर लिखा डिसक्लेमर नही पढा:

साथियों हम पेश है लोकप्रिय लेख की कडियों के साथ। लेकिन इसके पहले हम कुछ कहना चाहेंगे। लोकप्रिय लेख का पैमाना नारद के हिट्स काउन्टर कभी नही हो सकता, हम यहाँ पर सिर्फ़ वही दिखा रहे है जो कम्पयूटर के गणना के अनुसार हमारे पास है। इस गणना का आधार नारद के हिट्स काउन्टर है, अर्थात नारद की साइट से आपके ब्लॉग पर भेजे गए लोगों की संख्या के अनुसार लोकप्रिय लेख।

अगली बार आप किसी विषय पर लेख लिखें, तो पूरी जानकारी अवश्य लें, किसी पूर्वाग्रह या कुंठा से लेख मत लिखें।

डॉ. गरिमा आजकल जीवन-ऊर्जा को चिट्ठे में संजोकर रखने का प्रयास कर रही है, आज जब हम देखने गये कि वहाँ नया माल क्या है, चर्चा करने को, तो हमें वहीं बैठना पड़ गया। प्रभामंडल की क्लास लगी थी, हम तो ध्यान में लग गये। मगर चर्चा भी करनी थी, क्या करता? डॉ. साहिबा को भेज दिया जिन्दगी का सार पता करने के लिये। अब आप देखिये, जिन्दगी का सार, डॉ. गरिमा की नज़र में -

जिंदगी कई आयामो से मिलकर बनी हैं, सुना है कि सुख और दुख का ही मेल है जिन्दगी... पर उनका क्या जो सुख के अभिव्यक्ति से भी दूर है, शायद सुख ही उनकी इहलीला समाप्त होने का कारण भी बन जाता है... इसे दैवयोग कहेंगे कि हमारे सामाजिक व्यवस्था कि दुर्बलता.. या किसी और प्रसंग का नाम देंगे। आपके खयाल मे क्या आया जरूर बताईयेगा... पर जैसा कि मैने कहा जिंदगी कई आयामो से मिलकर बनी है.. ऐसे आयाम का एक गुदगुदाता हिस्सा यह भी है... जो लेखक और लेख के बीच मे जन्मदात्री और बच्चे
का सम्बन्ध
स्थापित कर रहा है... आगे खूद जानिये


अगडम बगडम जादु का तिगडम ऐसे बहुत से कहानियाँ सुनी थी और उसे अपने तरीके से समझा भी था... पर ये क्या यहाँ तो तरीको की बौशार हो गयी... और मेरे तरीके गायब... मै चलती हूँ आगे वरना मै भी गायब... डरिये नही मजेदार कहानी है... आप पढिये और देखिये...


आप आनन्द ले और हम आगे बढे, जिंदगी के नये आयम समझने ... जिंदगी के विभिन्न आयामो को समझा रही हैं रंजना जी .. प्यार, विरह, प्रेरणा सबकुछ तो है यहाँ ...

अब जिंदगी की अभिव्यक्ति की जा रही है और उसके मुहावरो को मेल ना हो तो अभिव्यक्ति अधुरी सी लगेगी.... अधुरा ज्ञान हमेशा खतरनाक होता है... तो हम पूरे ज्ञान को ही पायें अधुरे मे क्यूँ रह जाये... आईये इस दुनियाँ मे भी सैर कर आयें।

कहते हैं, जिन्दगी मे पैसा ही सबकुछ नही होता, पर इसके बिना भाई कुछ भी नही होता, ये बात तो अजदक जी के लेख से साबीत हो चुका है, अब आसानी से पैसे कैसे कमाये... देखिये और जानिये... पैसे कमा लिये अब पेठिया (बजार) से कुछ समान भी लाये.. लेकिन संभलकर सिर्फ समान ही लाईयेगा... पारो की खोज मे मत जाईयेगा :)

लगता है मनी कुछ ज्यादा हो गयी, इसलिये तो पेठिया मे समान खरीदने के बाद भी शराब पर उडाने के लिये है... ममता जी को धन्यवाद की ऐसे बिगडैल लोगो को सुधारने के काम मे जुटी है और उनके जिंदगी को नये आयाम देने के कोशिश मे हैं... उनकी कोशिश को जरूर देखें

अच्छी सराहनीय कोशिश... पर कुछ कोशिशे इतनी बेकार क्यूँ... और उस पर भी उनकी
(मिडिया) कि जो हमे अपनी आपाधापी जिन्दगी मे देश-विदेश से समचारो से जोडने का काम करती है... इनके कुछ कोशिशो से तिलमिला कर उमा शंकर जी ने जो लिखा है.... सच का आईना है... किसी का जीवन, किसी का तमाशा..और उस तमाशा से चिढे एक और जन ... जिंदगी सिर्फ तमाशा ही नही, आशा भी है और निराशा भी... वफा भी है, बेवफाई ही है.. गम से अपनी लडाई भी है... जिंदगी समझौता भी है, जिंदगी सोच भी है.. और नयी सोच को जन्म दे कारण भी है, जिन्दगी विश्वास है, और जिन्दा और खुस रहने का प्रयास है, सुकून की तलाश है... और शायद कला जिंदगी मे कुछ पल सुकून के दे जाने मे समर्थ भी है, तभी तो यहा कितने लेखक विचारक कवि कवियत्री है... पर कला का कुछ ऐसा भी रूप होता जा रहा है, जिन पर उठे ऐसे विवाद की अब तक शांत न हूए ना ही किसी किनारे लगे।


विवादो मे उलझकर ही तो नही रह गये... जरा यहा नजर दौडाईये और कुछ मजेदार पल (समाचार) पाईये क्यूँकि जो एक ठौर ना रूके वही तो जिन्दगी है... है ना मजेदार... अर्रे र्रे ये क्या.. खिन्न ना हो.. जिंदगी है.. यहा कब किस मोड पर किसे कौन सी बात लग जाये कौन जानता है, पर मुझे इनका अपनी खिन्नता प्रदर्शन करने का ढंग पसन्द आया... जैसा की कहा एक ठौर जो ना रूके वो ही जिन्दगी है... तो एक नये दौर मे चलते है...(तकनीकी क्षेत्र मे) और जानते है कि हमारे ये पन्ने गुगलदेव के किस पन्ने पर आते हैं

चलते-चलते कैसे हम खिन्न हो जाते, अपनी बात बताने के लिये या यूँ कहिये छुपाने के लिये मुखौटे तक लगा लेते है... इन मुखौटो से भी खिन्नता जो दिखती है देखिये .. ओह! ये कडी थमी नही फिर वही! जिंदगी पर लिखते लिखते हम थक गये भईया... आप भी पढ पढ के थक गये होंगे, तो थोड विश्राम करते हैं और एक कविता सुनते हैं , फिर आगे बढेंगे... कविता सुन ली तो आओ थोडा तेहरान घुम भी आते हैं।

अब हम फ्रेश है घुम-फिरकर फिर अपने जिंदगी वाले मुद्दे पर आते है... हाँ तो हम जिंदगी के मायने बता रहे थे, और बता रहे थे कि रास्ते से देखिये और अपनी प्रतिक्रिया भी बताइये.. बात बात तक रहे तो काफी होती है, आप कहेंगे.. हद हो गयी... लेकिन नही.. अगर इंसान दुखी ही रहे तो जो अच्छा कर सकता है वो भी नही कर पायेगा। जो खूद रोयेग दुसरो को क्या हँसायेगा, इसलिये तो हम पिक्चर देखने जा रहे हैं, फिर आके आगे का हाल बतायेंगे.. आप भी सुनिये कौन सी पिक्चर है.. इसके साथ एक कविता बिलकुल मुफ़्त है।

मजा आया ना... कुल मिलाकर यही तो जिन्दगी है... गम, खुशी, आप, हम... मिलकर बनाते है जिंदगी।

दीपक भारतदीप बता रहें है कि हमें परनिन्दा क्यों नहीं करनी चाहिये।

बात पते की में पंजाब में अमन की कामना

हरिरामजी बता रहें है तपती गर्मी में बहुमंजिली इमारतों को शीतल रखने का सरल उपाय

वोल्फोवित्ज के प्रेम को प्रमोट करना जायज है, देखियेगा बिहारी बाबू का व्यंग्य “बदनाम का हुए, नाम हो गया!

आईये अब चलते हैं गुरूदेव के मयख़ाने में, दो घूंट उतारकर गला तर कर लिया जाये।

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मंगलवार, मई 22, 2007

टोरंटॊ में मिले महारथी

शुरू कहाँ से करूँ आज की चिट्ठा चर्चा सोच रहा हूँ
खबर छपी है महारथी दो, मिले चाय की प्याली पर
एक आस की डोरी लेकर कहीं छटपटाहट होती है
एक कहानी लिखने की कोशिश अब भी है जारी पर

हिन्दी के प्रेमी का परिचय ? हुआ शहर में कवि सम्मेलन
गीता गांधी, गप की बातें, और देश का पूरा चित्रण
जीने का विश्वास जगाती पुन: घुघूती बासूतीजी
पांडेयजी का चिट्ठे के बारे में होता आत्म विलोड़न

हैं जुगाड़ की लिन्क यहाँ पर, यहाँ चौदवीं रात
किसे गली में रहे पुकारी दर्द भरी आवाज़ ?
जोगलिखी भाषा की गुत्थी सुलझाने की कोशिश
और कराची ने देखा है किस कवि का अंदाज़

प्रगतिशील मित्रों की अद्भुत होती हैं निनाद गाथायें
देशप्रेम का नारा देते गीत सुनहरे आ चिट्ठे पर
आज हुआ आरंभ मगर कविता तीनों रह गईं अधूरी
पीनी चाय अगर तो जायें अब गोरखपुर की सड़कों पर

चलते चलते देखा दिन भी फ़िरे गधे के आखिर
उड़नतश्तरी पर सवार हो दौड़े घोड़ा बन कर
सहन नहीं कुछ होता अब तो ये अनामजी कहते
प्रियदर्शी की रचना लाये रचनाकार पकड़कर

मुक्त विचारों का संगम, फिर भी उन्मुक्त कहाता
देखें अरुण अरोड़ा नस्ती में डूबा क्या गाता
तरकश का मंतव्य पढ़ें या पौराणिक गाथायें
और देखिये झाड़ू सब पर आकर कौन लगाता

यों तो चिट्ठे ढेर यहाँ हैं, किस किस की हो चर्चा
राजनीति के, खबरों वाले, कोई कुछ न कहता
धन्यवाद का एक चित्र है, आप यहां पर देखें
इससे ज्यादा चर्चा आगे आज नहीं कर सकता

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सोमवार, मई 21, 2007

25 सर्वाधिक प्रसिद्ध चिट्ठे


इंटरनेट पर उपलब्ध तमाम चिट्ठों में से 25 सर्वाधिक प्रसिद्ध चिट्ठों को छांटा गया है. जाहिर है इसमें हिन्दी चिट्ठे तो आने वाले दो-चार सालों में भी नहीं आ पाएंगे - वजह है पाठकों की अत्यंत सीमित संख्या. उदाहरण के लिए, पंचम स्थान प्राप्त बोइंगबोइंग के चार लाख से ऊपर नियमित फ़ीडबर्नर सब्सक्राइबर हैं!

इस सूची में कुछ जाहिरा तौर पर प्रसिद्ध चिट्ठे तो हैं ही जैसे कि क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थल पर गिज़्मोडो.कॉम तथा एंगेज़ेट्स है जिसमें कि नए-नए गॅज़ेट्स और उपकरणों के बारे में तमाम ब्लॉग पोस्ट लिखे जाते हैं. नए गॅज़ेट्स हर किसी को आकर्षित करते हैं! है ना?

बोइंग-बोइंग का नाम भी इसमें है तो लाइफ़-हैकर भी 6 वें क्रमांक पर है. टेकक्रंच को दसवें स्थान पर रहकर संतोष करना पडा है. ऑटो-ब्लॉग भी 13 वें स्थान पर घुसने में कामयाब रहा है जो यह बताता है कि लोगों का कारों और मोबाइक का आकर्षण कभी भी खत्म नहीं होगा. यू-ट्यूब के वीडियो से भरा पूरा क्रुक्स एंड लायर्स 17 वें स्थान पर है जो दिखाता है कि लोग लाफ़्टर चैलेंज जैसी चीजों को अच्छी खासी तरजीह देते हैं. आर्सटेक्निका तथा माशेबल क्रमशः 19 वें तथा 24 वें स्थान पर हैं जिन्हें मैं नियमित पढ़ता हूँ. पेरिज़ हिल्टन नाम का सेलिब्रिटी ब्लॉग 15 वें स्थान पर है जो यह दिखाता है कि अपने बॉलीवुड की तरह फ़िल्मों के हीरो हीरोइनों के बारे में भी जानने को जनता उत्सुक रहती है और इन ब्लॉगों को खूब पढ़ती है.

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बुधवार, मई 16, 2007

मध्यान्हचर्चा दिनांक: 16-3-2007

धृतराष्ट्र तथा संजय आमने-सामने बैठे थे. संजय की नज़रें लैपटॉप की स्क्रीन पर जमी हुई थी. धृतराष्ट्र ने कोफि का घूँट भरते हुए पूछा...

धृतराष्ट्र : लगता है चिट्ठा दंगल में जिस प्रकार रोज नए महारथी आ रहे है, उनका हाल सुनाना तुम्हारे वश का काम नहीं रहेगा.

संजय : महाराज जहाँ तक देख सकूँगा सुनाऊँगा....बाकी....

धृतराष्ट्र : ठीक है सुनाओ.

संजय : महाराज, पुराने महारथी तो अपना कौशल दिखा ही रहे हैं, कुछ नए शामिल हुए यौद्धा भी प्रभावी लग रहे है. इनमें आलोक पुराणिक जी छोटे मगर प्रभावी व्यंग्य लेख लिख रहे है.

काकेश पंगेबाज की पोशाक में अरूणजी भी उत्साही चिट्ठाकार के रूप में उभरे है. एक हलचल सी बनी रहती है.

इधर सारथी बने शास्त्रीजी प्रोजेक्ट पाणिनी पर मुहिम चला रखी है.

धृतराष्ट्र : काम तो सराहनीय है मगर ऐसी मुहिम इससे पहले भी चल चुकि है. अतः साथी इनकी सहायता करे तथा जितना काम हो चुका है, उसके पीछे समय खराब न कर इसे आगे बढ़ायें. अब तुम आगे बढ़ो....

संजय : जी, महाराज. आर्थिक मामलो को लेकर चिट्ठाजगत लगभग सुना-सा था. जगदीश भाटीयाजी जरूर कुछ लिखते रहते थे. मगर अब कमल शर्मा जी खास इसी विषय पर वाह मनी लेकर आए हैं. तो कोमोडिटी मित्र जबरदस्त मोलतोल कर रहें हैं.

धृतराष्ट्र : अब कोई नहीं कह सकता हिन्दी चिट्ठों द्वारा माल बनाने के अवसर नहीं है.

फिर हँसते हुए काफि का घूँट भरा.

संजय : कवियों को भी निराश होने की आवश्यकता नहीं. नए साथी के रूपमें हिन्दी-युग्म पर डो. कुमार विश्वास का स्वागत करें.

महाराज बाकि धुरंधर तो कूँजी-पटल खटखटा ही रहें है. सागर चन्द नाहरजी का पुनरागमन भी हुआ है.

नारदजी सब पर नजर रखे है, कृपया नारदजी का बिल्ला अपने चिट्ठे पर चिपकाए रखे.

 इधर हिन्दी चिट्ठो की नई निर्देशिका पर भी चिट्ठा महारथी अपने चिट्ठे पंजिकृत करवा रहें हैं.

संजय ने कोफी की आखरी चुस्की ली और लोग-आउट हो गए.

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आप गदहा लेखक नहीं हैं

आज रचना जी ने प्रण किया है कि कोई भी चिट्ठा छूटने न पाये चर्चा से और वो भी पद्य में. हमने सोचा कि यह तो बहुते उत्तम विचार है उत्तम प्रदेश की तरह. तो हमने सारी सत्ता उन्हें सौंप दी यूपी की जनता की तरह. मगर अंत तो देखो, आखिर में हमें आना ही पड़ा. मगर उनकी चर्चा में कोई कमी नहीं निकाल पाये, भले ही जहाँ तक की हो, की बेहतरीन है. उत्तम विचार. पढिये: यह रचना जी हैं, वरिष्ट महिला चिट्ठाकारा:

सबसे पहले करूं प्रणाम,
अब करती चर्चा का काम!
चिट्ठो‍ की मै सैर कराऊं,
इसकी, उसकी बात बताऊं!
दुखी कौन है, खुश है कौन?
कौन है बोला, कौन है मौन?
गीतकार की करते बात,
मुक्तक से करते शुरुवात!

आप की प्रीत ने होके चंदन मुझे इस तरह से छुआ मैं महकने लगा
एक सँवरे हुए स्वप्न का गुलमोहर, फिर ओपलाशों सरीखा दहकने लगा
गंध में डूब मधुमास की इक छुअन मेरे पहलू में आ गुनगुनाने लगी
करके बासंती अंबर के विस्तार को मन पखेरू मेरा अब चहकने लगा


ख्यालो‍ मे सवाल की मार,
यहां लिखे है‍ सत्यविचार!

न तकनीक, न ही कानून,
न ही गा रहे "लिनक्स" के गुण!
उन्मुक जी आज कुछ भटके!
मोक्ष की चिन्ता मे है‍ अटके!!
न इतिहासविद न आलोचक
फ़िर् भी बात की है रोचक!

जहाँ एक ओर विद्वान हैं जो मानते हैं कि हिन्दू धर्म लाखों करोडों वर्ष पुराना है तो वहीं दूसरी ओर के लोग सभी धार्मिक ग्रन्थों को मात्र कल्पना की उडान से अधिक नहीं समझते। मेरी समझ में सत्य इन दोनों रास्तों के कहीं बीच में है पर विडम्बना है इस बीच के रास्ते पर कोई चलना ही नहीं चाहता। यहाँ तक तो ठीक था लेकिन इस अंतर्जाल ने सब गडबड कर दिया है। अब तो हर कोई इतिहासकार बन सकता है, आपकी योग्यता भले ही कुछ भी न हो लेकिन एक वेबसाईट बनाइये और अपना सारा अधकचरा ज्ञान वहाँ पटक दीजिये।


आंख की देखे‍ एक् झलक भर
तीन किस्तो‍ की कथा यहां पर्!

जाने आज क्यों वो सब याद आ रहा है, हमारा घर, उससे बस 3 गलियाँ दूर तुम्हारा घर, मिताली दीदी, तुम, चाचा जी, चाची, माँ, पिता जी, बुआ और भी बाकी सारे भी। और हाँ वो मैथ के सर क्या नाम था. . .हाँ, मिश्रा जी, वो जाने कैसे होंगे। सच पूछो तो ऐसे कितने लोग हैं जिनकी याद आनी चाहिए पर नहीं आती। मिश्रा सर का वो चेहरा तो अभी तक याद है, जब कितनी खुशी से वो पिता जी को बता रहे थे कि मैं मैथ्स में बहुत तेज़ हो गई हूँ और मुझे बी.एस.सी. करनी ही चाहिए, पर पिता जी का कहना था क्या करेगी, इसकी तो शादी की बात भी चल ही रही है।

पुराणिक जी से सीखिये कुछ नये धन्धे,
जानिये सुदर्शन जी कहते है‍ हिदू जिन्हे!

अभी कल पड़ोस में शादी हुई, श्रीवास्तवजी के यहां।
बड़ी-बड़ी किरकिरी हुई उनकी, कोई भी रिश्तेदार नहीं पहुंचा। ना साला, ना जीजा, ना बड़ा भाई, ना छोटा भाई।
श्रीवास्तवजी भी नहीं पहुंच पाये थे, किसी रिश्तेदार के परिवार में शादी में।
हर शादी में श्रीवास्तवजी को कोई काम पड़ गया था, सो जब श्रीवास्तवजी के यहां शादी हुई, तो सबने मिलकर श्रीवास्तवजी का काम लगा दिया।
बहुत परेशान थे। उनकी परेशानी में मुझे एक नये धंधे की संभावनाएं नजर आयीं-रिश्तेदार प्रोवाइडिंग सर्विस।



उच्च वर्ण के लोगों द्वारा बनाए गए ऐसे ही जानवरों की समानता के लिए ही बुद्ध ने अपनी पदयात्रा शुरू की थी। उद्देश्य था एक समतामूलक समाज की स्थापना। और फिर एक समय तो ऐसा आया जब भारत के अधिकांश भूभागों पर बौद्ध राजाओं का शासन था। जिसे जे.सी.मिल ने हिंदू काल कहा है उसमे से ज्यादातर बौध्ध्काल ही है और मिल ने जानबूझकर इसे हिंदुकाल कहा जिससे भारत मे यह स्थापित हो सके कि यहाँ पहले तो हिंदू थे और बाद में उन्हें भगाकर मुस्लिम शासक बन गए।

मामले एक नही! है‍ पूरे तीन दर्जन!
हिन्दी हो ललित तो पढने को करे मन!!

इस रचनात्मक आंदोलन से जुड जाईये. आम अंग्रेजी शब्दों के लिये सहज हिन्दी शब्द सुझाईये. हम हर दिन एक नया शब्द आपसे मांगेगे, लेकिन उसका इंतजार किये बिना भी ई-पत्र द्वारा आप पाणिनि को सुझाव भेज सकते हैं. अगली पीढी आपका ऋणी होगी. हिन्दी के प्रचार-प्रसार में यह एक और कदम होगा. – शास्त्री जे सी फिलिप

सारथी जी को हिन्दी सुझाईये,
इन शब्दो‍ के अर्थ बताइये!

Software
Frustration
Netizen
Net-culture
Surfing

अच्छे दिन नही रहे तो बुरे भी नही रहे‍गे

आपने ये कहा है, तो हम भी यही कहे‍गे!!
कही एसा न हो जाये
चमचा महात्म्य कोई गाये !!
क्या ये खजुराहो को उडाये‍गे?
या फ़िर् कान्क्रीट का दरख्त गिराये‍गे??

बड़ी मुश्किल हो गयी है। जिसे देखिये वही खजुराहो, अजंता एलोरा, कोनार्क या फिर काम सूत्र का हवाला दिये जा रहा है। हुसैन का मामला हो या फिर बडौदा के एमएस यूनिवर्सिटी के कला विद्यार्थी चन्‍द्रमोहन की गिरफ्तारी का ... तर्क देने वाले जब देखो, यह बात उठा दे रहे हैं। यह तो हिन्‍दुत्‍ववादियों (हिन्‍दू मजहब मानने वाले नहीं) के गले की फांस बन गया है। भई, उस वक्‍त तो ये शक्तिमान थे नहीं, तो कलाकारों के मन में जो आया, बना डाला। जिंदगी के जो खूबसूरत तजर्बे थे, उनकी अभिव्‍यक्ति अपने कला माध्‍यमों के ज़रिये कर डाली। उनकी नीयत क्‍या थी, वो तो वही जाने लेकिन ये पंगेबाज उस वक्‍त रहते तो यकीन जानिये न तो खजुराहो के कलाकार बचते और न ही वात्स्यायन साहब।

हर तरफ़् अब् यही अफ़साने है‍!
मां के और् भी गीत गुनगुनाने है‍!!

दौर-ए-जुनू मे....

कवियो‍ को भी लग जाता है रोग्!

जिसे लिखना नही आता वो क्या कहता है!
यही कि अब् वो भी कुछ लिखता रहता है!!
रचनाकार लेकर आये है‍'मुझे कुछ याद नही
पढिये हरिसि‍ह जी ने जो कथा कही!

"संभावना व संघर्ष" दोनों में है जबर्दस्त दम
यही तो मानते है ना आप और हम?


*********************************************************

अब रचना जी थक गई. कोई भी थक जायेगा, इतने सारे चिट्ठों की चर्चा करके. तो आगे का कार्य जो थोड़ा सा बचा है रचना जी की नजर में, वो हम करना शुरु करते हैं. अब हम उनकी और हमरे गुरु राकेश भाई की तरह पद्य में करने की काबिलियत नहीं रखते तो गद्य में ही लिखे देते हैं. :) उसमें तो हम हमेशा ही लिखते आये हैं.

विनय पत्रिका में बोधिसत्व जी लाये हैं अपनी निराला जी पा लिखी एक बहुत बेहतरीन कविता:

जितना नहीं मरा था मैं
भूख और प्यास से
उससे कहीं ज्यादा मरा था मैं
अपनों के उपहास से ।

जरुर पढ़े यहाँ पर .

अब जब हम खुद को गदहा लेखक घोषित कर चुके हैं तो उस आलेख पर अभी भी जारी टिप्पणी महायज्ञ में भाई पंगेबाज अरुण जी दो बार आहूति डाल गये. बस फिर क्या था, गदहों ने आकर उनको घेर लिया है और कल मिटिंग के लिये बुलवाया है. काकेश भी साथ जायेंगे, ऐसी सूचना मिली है. इसी लिये काकेश नें आज कुछ नहीं लिखा.वहीं जाने की तैयारी में सज रहे हैं. :)

बात करामात में विशेष सोशल इंजीनियरिंग का सच: ज्ञानेन्द्र दद्दा से प्रेरणा लेकर लिख रहे हैं और बिना किसी से प्रेरणा लिये महाशक्ति प्रमेन्द्र बता रहे हैं कि बेहतरीन टेनिस प्लेयर किम क्लाइस्टर्स पर क्या गुजरी और अब उनका क्या प्लान है. यह होता है बड़ी जगह पहचान रखने का नतीजा, अंदर की खबर लाये हैं जो किसी को नहीं मालूम थी. साधुवाद प्रमेन्द्र को. जब पढ़ लो तो पढ़ने का आभार व्यक्त करने के लिये आपको मुफ्त दिखायेंगे हमारे महाशक्ति स्पाईडर मेन ३ .

गद्य गद्य-काहे बोर हो रहे हो भाई. लो सुनो दो दो बेहतरीन मुक्तक मालायें: एक तो भाई परमजीत बाली जी से और एक हमारे गीत सम्राट और मेरे गुरु राकेश खंडेलवाल जी से. दिव्याभ भाई तो खैर जब भी लिखते हैं, ऐसा लिखते हैं कि हम बिछ बिछ जाते हैं. भाई की लेखनी है ही ऐसी गजब की. तो उन्हें पढ़ें डिवाईन इंडिया पर...तू ही मेरी प्रतीक्षा है . कविताओं में हाशिया पर देखिये राजेश जोशी जी की एक से एक रचनायें

अब वापस, वाह मनी ने बताया कि फिलिप्स कार्बन ब्लैक में पैसा ही पैसा . मगर अपना संयम बनाये रखना भाई, उतना ही खेलो या अटकाओ कि डूब जाये तो उबर पाओ. मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि कमल भाई को भी इस तरह की कोई चेतावनी हर पोस्ट के साथ लगाना चाहिये ताकि लोग भ्रमित न हो जायें. :) मात्र मेरी सोच है बाकि कमल भाई जानकारी अच्छी दे रहे हैं और ब्लॉग में साईड में फोटू भी, हा हा!!!.

आज हमारे भतीजे जी उत्कर्ष महाराज की भी छुट्टी शुरु हो गई. अब वो आपको रोज चुटकुले सुनाया करेंगे. आज भी सुनाया है. अरे भाई जाओ और बालक का उत्साह बढ़ाओ. आज के इस परेशान जमाने में इससे बड़ी कौन सी समाज सेवा हो सकती है कि कोई आपके चेहरे पर मुस्कान ले आये. आप मुस्करायें. बच्चे को क्या चाहिये, बस आपका उत्साहवर्धन. जरुर करें. मेरा निवेदन है. भले ही उसके चाचा पंकज को टोना टोटका जादू मंतर पर न टिपियाओ, चलेगा. वो तो टिप्पणी प्रूफ हो चुका है. :)

अभय भाई निर्मल आनन्द पर बिल्लू भाग ३ ले आये हैं-कहानी सही जा रही है और हर बार कुछ प्रश्न छोड़ जाती है अगली कड़ी के लिये. पढ़िये. सुषमा कौल जी टेलिग्राफिक पोस्टों का दौर चालू है, यह एक समाचार माना जाये.

अनिल रघुराज जी से सुनिये जिसकी जितनी संख्या भारी और खैरात या हिस्सेदारी, क्या देंगी बहनजी . दोनों ही विचारोत्तेजक लेख है मगर हमारे पास तो जबाब नहीं है. आप लोग देखें, हम थोड़े दूर देश में रहते हैं न!!

बरसाती रिमझिम का संस्मरण सुन लें प्रमोद भाई से और हनुमान जी काहे वापस नहीं आये, जानने के लिये लक्ष्मी गुप्त जी का आलेख हरि अनंत हरि कथा अनंता पढ़ें. बड़ी रोचक कथा है. अब चलते चलते इसे काहे छोडे दे रहे हैं: धर्म के नाम पर फिर बवाल मचने के प्रयास जिसे लाये हैं शब्द लेख सारथी. बढ़िया है. :)

अब चलते हैं. आज प्रयास रहा कि कोई न छूटे हमेशा कि तरह. अगर कोई छूटा हो तो रचना जी गल्ती. अगर कोई कवरेज से खुश हुआ, तो धन्यवाद के लिये मैं हाजिर हूँ, मैने ही रचना जी को कहा था कि आपको कवर जरुर कर लें. अब चलें राम राम. वैसे चिट्ठों की संख्या बढ़ती जा रही है. हर रोज दो चर्चा की जरुरत है. आगे आओ न चिट्ठाकारों. बनो न चर्चाकार, आप तो बेहतरीन लिखते हैं, यहाँ भी लिखो न!!!

सूचना: मुक्तक माहोत्सव चालू है, यहां देखिये

टिप्पणी दें ताकि रचना जी अपनी चर्चा जारी रखें. :)

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मंगलवार, मई 15, 2007

लिखो नहीं रोमन में हिन्दी

लेखन के शैदाई कैसे लेखक की कर रहे प्रशंसा
उड़नतश्तरी पर मिलता है असमंजस का इक अफ़साना
पढ़ कर यदि गर्मी चढ़ जाये, तो इसका इलाज़ भी हाज़िर
मेथी की तासीर यही है दिल दिमाग तक ठंडक लाना

संगम कथा पोपली की है,व्यंग्य त्रिपाठी जी का लाये
कोशिश हर नाकाम रही है हम अपने मैं को पहचानें
ई-स्वामीजी अब खुशियों के लड्डू सबको बाँट रहे है
धन्यवाद दें आप उन्हें फिर रुकें साथ में जश्न मनाने

रतलामीजी के चिट्ठे पर नई नई बातों को सीखें
शब्द चित्र मे अपने मन की बातें ले तुषार आये हैं
नई कल्पना लगी छलकने आज यहां अनुभूति कलश से
रमा द्विवेदी ने क्लोन के नये फ़ायदे समझाये हैं

परमजीत ने आज लिखी हैं सुन्दर नई नई क्षणिकायें
अगड़म एक विचारक की हैं लोकतंत्र पर लिखी कथायें
ताऊजी के पन्ने पर सादर मिलता सम्पूर्ण समर्पण
कौन अकल का कितना अंधा, ये बस संजयजी बतलायें

यों तो यह गुरनाम कहे हैं, लिखना नहीं उन्हें कुछ आता
लेकिन कोई कोई मौका अच्छे भाव स्वयं लिखवाता
आसमान बातें दहेज की, प्रश्न उठाता ढाई अक्षर
यमुना की हालत पर देखें कितने आंसू कौन बहाता

कायर की क्या कथा, शहर है कैसा, बस बस और नहीं
पूछ रहे हैं ज्ञानदत्तजी किस स्पैमर का है डर
एक डायरी हिन्दुस्तानी, और एक तकनीकी चिट्ठा
एक और कविता को देखें, लिखी गई जो मातॄ दिवस पर

रोमन में हिन्दी लिखने से सारे अर्थ बदल जाते हैं
बतलाया समीर ने देखो जीता इसका एक नमूना
कुछ चिट्ठे जो छूट गये हैं, उन्हें आप नारद पर देखें
अपने अपने चुनें आप सब, मजा आयेगा तब ही दूना

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सोमवार, मई 14, 2007

मेरी दुनिया है मां तेरे आँचल में...



आइए, आज मातृ दिवस पर केंद्रित चिट्ठों की चर्चा करें.

यदि आप मल्टी टास्किंग कर सकते हैं - यानी कि चिट्ठे पढ़ते पढ़ते संगीत या वार्ता सुन सकते हैं तो आपके लिए ये हैं दो कड़ियाँ.

रेडियोवाणी पर मां के लिए कुछ बेहतरीन गीत हैं तो वहीं पॉडभारती पर मन को द्रवित करने वाली प्रस्तुति. या तो इन्हें पहले से डाउनलोड कर लें, या विनएम्प में इनके एमपी3 यूआरएल को एनक्यू में लगा दें (रेडियोवाणी के कुछ गानों को ऑनलाइन प्लेयर से ही सुनना होगा) और हो जाएं तैयार चिट्ठा चर्चा पढ़ने.

पसंद पर मां कुछ यूं पालना में झूले दे रही हैं -

फूलों का पालना सा,

लगता था तेरा आँचल।

तेरा हाथ फिरता सर पर,

देता था मन को ताकत।

दिशाएँ में मां की ममता की पावन बयार कुछ यूं बह रही है -

आओ आँगन मे हम खेलें

माँ का प्यार मुदित हम लेलें

माँ तुम दॊडों मै पकडूँगी

अथवा तुम संग मै झगड़ूँगी

खेलो ना इक बाजी

ओ माँ,तुम भी हो मतवाली।

मेरी मां की ममता मैंने कैसे जाना? पढ़िए मन पखेरू फ़िर उड़ चला में -

माँ बनकर ये जाना मैनें,

माँ की ममता क्या होती है,

सारे जग में सबसे सुंदर,

माँ की मूरत क्यूँ होती है॥

जब नन्हे-नन्हे नाजु़क हाथों से,

तुम मुझे छूते थे...

कोमल-कोमल बाहों का झूला,

बना लटकते थे...

मां - कितना छोटा मगर कितना महान है ये लफ़्ज. कुछ पल जिन्दगी जैसे... में कविता ये और बहुत कुछ बयान कर रही है-

इस लफ्ज़ में छुपी हैं

वो दो ऑंखें,

जो देखती हैं हमे हर पल,

जिनके सपनो में बसें है

हमीं पल पल

मां को आत्मा से आप कितने दिन परे रख सकते हैं? शायद एक पल भी नहीं. शब्दलेख सारथी के शब्दों में-

पल-पल मेरे दिल में बसने वाली माँ के लिए बस एक दिन ! मुझे लगता है कि पशिच्मी देशों की संस्कृति में जिस क़दर भौतिकता वाद का बोलबाला है उसको देखते हुए ऐसे दिनों की जरूरत पड़ती होगी। मैं नही जानता कि गलत हूँ या सही, पर मैंने अपने माता-पिता को अपने आत्मा से परे कभी नहीं माना, और मैंने अपने माता-पिता की उनके मुहँ पर कभी प्रशंसा नहीं की क्योंकि उनके संस्कारों ने ही मुझमें यह संकोच भरा है।। मैंने उनसे क्या सीखा कभी यह उन्हें बताया नहीं। मेरे पिता अब इस दुनिया में नहीं है पर हर हालत से जूझना, अपने कार्य को निष्ठा और लगन से करना और सदैव दूसरों की सहायता करना मैंने अपने पिता से ही सीखा है । माँ से सीखा है अपने धर्म में अगाध आस्था रखना और भगवान की भक्ती और सदैव सहज रहने का भाव। हालतों ने हमें अलग अलग शहरों में पहुंचा दिया पर इसी दौरान मेरे को यह पता लगा कि मैं अपने माता-पिता से सीखा क्या था-क्योंकि अकेले में उनका ज्ञान ही मेरा सारथी बना ।संघर्ष के पलों में मैं आज भी अपने पिता का स्मरण करता हूँ तो लगता है कि दिल में एक स्फूर्ति आ रही है....

मां के लिए एक ई-मेल फ़ॉरवर्ड-

जब आप 1 वर्ष के थे, उसने आपको दूध पिलाया, नहलाया धुलाया. आपने उसका धन्यवाद रात भर रो-रोकर दिया.

जब आप 2 वर्ष के थे, उसने उँगली पकड़ कर आपको चलना सिखाया. जब उसने आपको पुकारा तो आपने दूर भाग कर उसका धन्यवाद दिया.

जब आप 3 वर्ष के थे, उसने स्नेह पूर्वक आपके लिए पकवान बनाया. खाने से भरे अपने प्लेट को फर्श पर बिखेर कर आपने उसका धन्यवाद दिया.....

हिन्द युग्म में - मां को समर्पित ग़ज़ल : वो सिर्फ मां है -

ममता की गहराई से हार गया समन्दर भी

देख तेरी मुस्कान, जी रही तुम्हारी "माँ" है

तेरे कदमों की आहट से बढ़ जायेगी धड़कनें,

जाने कब से इंताजर में बैठी तुम्हारी "माँ" है

मां - छुपा लो ना मुझे अपने ही आँचल में कहीं... बिटिया का मां को लिखा पत्र :

नये ख्वाबों की नयी मंज़िल सामने देख

तुमने हाथ पकड़ कर मुझे चलना सिखाया होगा

मुझे बार बार गिरते देख,

तुम्हारा दिल भी दर से कंपकापाया होगा

और अपने प्यार भरे आँचल में छुपा कर

कई ज़ख़्मो से मुझे बचाया होगा

मातृदिवस पर गीतकलश का गीत -

दर्द की तुम दवा

पूर्व की तुम हवा

चिलचिलाती हुई धूप में छाँह हो

कष्ट की आह में

कंटकी राह में

तुम सहारे की फैली हुई बाँह हो

और, मां के लिए एक मुक्तक:

कोष के शब्द सारे विफ़ल हो गये भावनाओं को अभिव्यक्तियाँ दे सकें

सांस तुम से मिली, शब्द हर कंठ का, बस तुम्हारी कॄपा से मिला है हमें

ज़िन्दगी की प्रणेता, दिशादायिनी, कल्पना, साधना, अर्चना सब तुम्हीं

कर सकेंगे तुम्हारी स्तुति हम कभी, इतनी क्षमता न अब तक मिली है हमें

ममता टीवी में मां का स्वरूप कुछ यूं दिख रहा है -

उसको नही देखा हमने कभी ,पर उसकी जरुरत क्या होगी

ए माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी.

एक मां की अपनी खुद की मां के लिए ये हैं कुछ पंक्तियाँ:

माँ की कुछ बातें आज तुमको बताऊँ,

पहले प्रभु के शीश माँ को झुकाऊँ!

वो सब याद रखती, जो मैं भूल जाऊँ,

वो मुझको सम्हाले, जो मैं डगमगाऊँ!

वो सब कुछ है सुनती, जो भी मैं सुनाऊँ,

वो चुप रह के सहती, अगर मैं सताऊँ!

भूखी वो रहती, जो मैं खा न पाऊँ,

रातों को जागती, जो मैं सो न पाऊँ!

वही गीत गाती, जो मैं गुनगुनाऊँ,

संग मेरे रहती, जहाँ भी मैं जाऊँ!

ईश्वर से एक ही मैं मन्नत मनाऊँ,

हर एक जनम में यही माँ मैं पाऊँ!!!

मां : तीन रूप -

1-

सूरज एक नटखट बालक सा

दिन भर शोर मचाए

इधर उधर चिड़ियों को बिखेरे

किरणों को छितराये.....

2-

बेसन की सोंधी रोटी पर

खट्टी चटनी जैसी माँ

याद आती है चौका-बासन

चिमटा फुकनी जैसी माँ....

3-

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार

दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार

छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार

आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार...

मां क्या है? मां की परिभाषा:

अपने आगोशोँ मेँ लेकर मीठी नीँद सुलाती माँ

गर्मी हो तो ठंडक देती ,जाडोँ मेँ गर्माती माँ

जब बच्चे चीखेँ चिल्लायेँ एक खिलोना दे देती

बच्चोँ की किल्कारी सुनकर फूली नहीँ समाती माँ

हम जागेँ तो हमेँ देखकर अपनी नीँद भूल जाती

घंटोँ ,पहरोँ जाग जाग कर लोरी हमेँ सुनाती माँ

पहले चलना घुटनोँ घुट्नोँ और खदे हो जाना फिर

बच्चे जब ऊंचाई छूते बच्चोँ पर इठ्लाती माँ

वो लम्हा जब मेरे बच्चे ने मां कहा मुझको:

वो लम्हा जब मेरे बच्चे ने मां कहा मुझको

मैं एक शाख से कितना घना दरख्त हुई

अपने बच्चे के लिए चिंतित मां का एक रूप यह भी:

ताबीज घर में लाकर बहुत मुतमइन है मां

बेटा बहू की बात में हरगिज न आएगा

मां अपने दैवीय रूप में - मां बमलेश्वरी :

माँ बम्लेश्वरी सबकी इच्छाएं पूरी करती है। हर समस्या का निदान मां के चरणों में है। सभी धर्म और आध्यात्मिक गुरुओं ने ये स्वीकार किया है कि "आराधना और प्रार्थना अद्भत तरीके से फलदायी होती है। या तो यह मानसिक तौर पर प्रार्थना करने वाले को संबल प्रदान करती है या फिर चमत्कार करती है।"

दैवीय स्वरूपा मां का एक और रूप:

जय माँ बमलेश्वरी

तोला सुमरंव बारम्बार हो,

मोर देवी भवानी, जय होवय तोर,

मोर माता भवानी,जय होवय तोर।

तोर लीला अपरंपार हो,

जय मां बम्लेश्वरी जय होवय तोर,

टीप पहाड़ म तोर मंदिरवा,

दिखय चारों ओर।

मोर माता भवानी जय होवय तोर।

दैवीय स्वरूपा मां का एक और रूप:

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

और, अंत में-

मां तुझे सलाम...!

मां को आप कितना चाहते हों.....हो सकता है आप बता न पाएं या फिर अपने दोनों हाथों को पीठ पीछे ले जाएं और दिखाएं इतना....लेकिन इतना तय मानिए आपकी मां का प्यार आपके लिए इससे कई गुना होगा । वो भी तब जब आपका प्यार, प्रेम या श्रद्धा अकेले सिर्फ अपनी मां पर केंद्रित हो रहा होता है लेकिन आपकी मां का प्यार, यदि आप अकेली संतान नहीं हैं तो सभी संतानों के लिए समान बरसता है। इतना मुश्किल संतुलन एक मां के ही वश की बात है।

//*//

चित्र - डेस्टिनेशन से

मां विषय पर केंद्रित कोई चिट्ठा यदि छूट गया हो तो कृपया मुझे क्षमा करें व अपनी टिप्पणियों के द्वारा अवश्य सूचित करें, ताकि पाठकों के लिए सारी कड़ियाँ यहीं उपलब्ध हो सकें.

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शनिवार, मई 12, 2007

ये आज़माना है तो सताना किसको कहते है ....

पिछले शनिवार शनिदेव की किरपा से दुई चिट्ठाचर्चा हुई गयी। तब सोचे थे कि अगली बार देबू दा से पहिले ही बात कर लेंगे ताकि कंफूज़ ना हो। पर ब्लॉग जगत की माया देखो ,भूल गये और अब कोन्हू सा भी ऑनलाएन नही है। सो चलो कर ही दें चर्चा। वैसे ई-पन्ना प्रभो हमे गरिया के जने कहा लोप हुई गये और ई धुरविरोधी जी शानदार टिप्पनी चर्चा करिके हमारे किये धरे पर पानी फेर रहे हैं। सो हम सकुचा सकुचा के कुछ लिख रहे है

कमोडिटी मित्र बोले पीले हाथ ना होंगे हल्दी से [हमने जो सोचा उससे उलट पाया वे तो हल्दी के मार्केट की चिंता में हैं
घरेलू और निर्यात मांग के अभाव में हल्‍दी के दाम हाजिर बाजार में जहां घटते जा रहे हैं वहीं वायदा में यह अभी भी मजबूत बनी हुई है। इस विपरीत रुझान से कारोबारियों को समझ ही नहीं आ रहा है कि हल्‍दी में अब क्‍या होगा। फंडामेंटल्‍स के आधार पर बात की जाए तो हल्‍दी में अब तेजी के कोई आसार नहीं बनते क्‍योंकि 19 अप्रैल को अक्षय तृतीया के बाद घरेलू बाजार में मांग लगभग बंद हो जाती है और बाजारों में आने वाली हल्‍दी केवल स्‍टॉकिस्‍टों के गोदामों में जाती है।

पर फुरसतिया जी भतीजी के हाथ पीले कर दिये है और बाली उमिर में श्वसुर हुई गये है। उनका बधाई! पर एक पोस्ट् से चार् सिकार कर लिये हैं। ब्लागर मीट भी उहां कानपुर मे कर लिये मसिजीवे और राजीव टंडन जी के साथ।
मसिजीवी की जब हमने पहले रेलवे ट्रैक के पास वाली फोटो देखी थी तब लगता था कि ये महाराज कोई लम्बे शरीर के मालिक होंगे। इसके अलावा जो अभी कुछ दिन पहले की फोटो देखी थी जो इन्होंने अपने ब्लाग में लगायी थी उससे लगता था कि मसिजीवी कुछ ज्यादा ही सांवले हैं! आवाज का भी अंदाज था कि शायद कुछ धीर-गम्भीर सी आवाज होगी। लेकिन मुलाकात होने पर हमारे तीनों अनुमान हवा हो गये। मसिजीवी सामान्य कद के स्लिम-ट्रिम टाइप के जिसे लम्बा तो नहीं कह सकते, अपनी फोटो से कहीं ज्यादा खूबसूरत और आवाज भी मधुरता की तरफ़ झुकी हुयी। मुलायम टाइप की।

सुआमी जी को कुछ समझा दिये। और दो तीर और भी। अब आगे स्वयं पढिये। सब हम बताएँ का? लो जी हमारी मिठाई मार के बैठे है मसिजीवी और ब्लॉगर मीट मे उसकी गन्ध भी नही आने दे रहे। उन्हे तो फुरसतिया जी के उबटन लगे गोदी की कंम्प्यूटर पर पोस्ट बनानी थी।ये सज्जन हर स्थान पर एक पोस्ट ढूंढते हैं।

ई देखिये पंगेबाज़ को भी कहिन नाही है। बिदेसी तरीका से भोजन करने के ढंग की ऐसी कम तैसी कर दी है।
१९.तरीका:-अपना एक हाथ साफ रखने की कोशिश करें, ताकि गिलास वग़ैरा उठाते समय उन पर निशान न पड़ेप्रयोग:-भाई हम खाना खा रहे है की कोई वारदात करने आये है काहे डरा रहे हो क्या बता रहे हो जरा साफ़ साफ़ बताओ ये इस तरह से खाना खाना कोई भारतीय संविधान की किसी धारा का उल्लंघन तो नही,जॊ यहा भी बाद मे फ़िंगर प्रिंट लेने पुलिस वाले आने का डर है
कल जब मुहल्ला वाले सोये रहे थे हम राजकिशोर जी के एक पुराने लेख के हवाले से पत्रकारिता की गैर ज़िम्मेदारी पर बाज़ार के सन्दर्भ मे बात कर रहे थे। सोचा था अविनाश जी जरूर अपने विचार बताएँगे पर वे नही आये अब चर्चा देखे तो जरूर टिपियायें। कमल जी भी गलत नीयत संपादको को कोस रहे हैं।

कुछ सुनदर ,सम्वेदंशील कविताएँ ,यहाँ जाकर टिपियाएँ ---शुभा की एक कविता, बूढी औरत का एकांत

बूढी औरत को
पानी भी रेत की तरह दिखाई देता है
कभी-कभी वह ठंडी सांस छोड़ती है
तो याद करती है
बचपन में उसे रेत
पानी की तरह दिखाई देती थी।

देवनागरी में पढिये गालिब के मेरे पसन्दीदा शेर यहाँ सच्चे मोती मिलते हैं। यही है आज़माना तो सताना किस को कह्‌ते हैं

अदू के हो लिये जब तुम तो मेरा इम्तिहां क्यूं हो (महबूब कभी कभी कहता है 'मैं तो तुम्हे आज़मा रहा था'. अगर वो रक़ीब का हो ही लिया, तो भला मेरा 'इम्तिहान' लेने का क्या मतलब?)

अंकित शायद अपने विवाह की आस में है और तीन कविताएँ लिख डाली है। मुलाहिज़ा फरमाएँ , पूरी पढने उनके ब्लॉग पर जाएँ----

है जुनून कि उनको मीत हम बनाएँगे....है यकीन वो मेरा गीत गुनगुनाएँगे....हर कदम
उनका साथ मिलने पायेगा....हर नज़र में विश्वास झिलमिलायेगा....माँ शादी का जोडा उनको
भिजवायेगी....उनकी रौशनी इस घर में जगमगायेगी....

आलोक पुराणिक अपने व्यंग्य लेख में पानीपत युद्ध मे मराठो की हार का करण समझा रहे हैं

पानीपत की तीसरी जंग की तैयारियां चल रही थी। सुपरटाप मोबाइल कंपनी के मोबाइल मराठा सरदारों को दिये गये थे। मराठा सरदारों को बता दिया गया था कि इस मोबाइल सर्विस में सब कुछ मिल जाता है। किसी भी किस्म की हेल्प चाहिए, तो 420 नंबर पर फोन करो। हेल्प फौरन हो जायेगी। आगे का किस्सा यूं है कि पानीपत में लंबे अरसे तक लड़ाई की तैयारी चल रही थी, लड़ाई नहीं हो रही थी। सैनिक बोर हो रहे थे। वो दिल्ली आ गये इंडियन टीम का कोई क्रिकेट मैच देखने, ताकि कुछ अलग तरह से बोर हो सकें।
उन्मुक्त एक पुस्तक के माध्यम से समझा रहे है प्रेम के मायने ---
इस कहानी को एक दूसरे रूप में, एरिक सीगल ने Love Story नामक पुस्तक में लिखा है। यह पुस्तक १९७० में छपी थी। यह ऑलिवर बैरेट और जेनी कैविलरी की प्रेम कहानी है। ऑलिवर अमीर, बहुत अच्छा खिलाड़ी, और हावर्ड में पढ़ता था। जैनी गरीब, संगीत से प्रेम रखने वाली, और रेडक्लिफ में पढ़ती थी।
प्रतीक टी वी सीरियलो पर कककककुपित है ---
ये सभी 'क' अक्षर से शुरू धारावाहिक वक़्त बर्बाद करने के लिए बेहतरीन ज़रिया हैं।
संजय बेंगाणी कहते है - अच्छे हिन्दी कैसे लिखु ।उनकी पोस्ट तो छोटी है टिप्पणियाँ 16 है।इससे पता लग्ता है -पर उपदेश कुशल बहुतेरे। वैसे उन्हे बिन्दास रहने की ही सलाह मिली है. ममता जी गोवा जा बैठीपर वहाँ भी गर्मी से राहत नही है -------
वैसे यहाँ का तापमान २८-३० डिगरी ही है पर उमस की वजह से ही सारी परेशानी होती है। और उस पर रोज सुबह बादल भी आ जाते है ,पर बरसते नही है। अंडमान मे भी गरमी ज्यादा होती है पर वहां बारिश हो जाती है जिस से गरमी का असर कुछ कम हो जाता है।
आसमान ने लोकोक्तियाँ अपने ब्लॉग पर छपी है। आपको जो भली लगे अपना लें----

पृथ्वी पर जनसंख्या का नहीं, पापियों का भार होता है। नम्रता सदगुणों की सुदृढ़ बुनियाद है। दुनिया में रहो,दुनिया को अपने में मत रहने दो।

सुरेश चिपलूनकर अनजान जी के गीत के माध्यम से कहते है---
मादकता भी पवित्र हो सकती है और अश्लील हुए बिना भी अपने मन की बात बेहद उत्तेजक शब्दों में कही जा सकती है
सत्य की वादी को बताएँ कि आप ब्लॉगिंग क्यो करते है। रामचरित मानस के कुछ अद्वितीय प्रसंग बत रहे है लक्ष्मी गुप्ता
।१। वाटिका प्रसंगः धनुषयज्ञ के पूर्व सीता जी गौरीपूजन के लिये पुष्पवाटिका में आती हैं और राम लक्ष्मण वहीं पूजा के लिये पुष्पचयन करने के लिये आते हैं। यहाँ पर वे दोनों ही एक दूसरे को देखते हैं और राम अपने विचलित मन के बारे में लक्ष्मण को बताते हैं। गोस्वामी जी ने बड़ी कुशलता से सीता और राम की मनोदशा के चित्र खींचे हैं।
अज़दक जी के विनम्र निवेदन के बाद भी वहाँ कोई टिपियाया नही। बुरी बात जाकर पढिये।

समीर जी ने 11 मई को नही लिखा है :) और किसी की जगा दी है बहन जी ने उम्मीदें --

ई पन्ना जी को यह ढंग ठीक लगा हो तो कृपया टिपियाएँ :)

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बुधवार, मई 09, 2007

आ जा मेरी गाड़ी में बैठ जा

एक बार कुछ समय पहले महाशक्ति प्रमेन्द्र प्रताप सिंग ने एक तस्वीर पेश की थी आ जा मेरी गाड़ी में बैठ जा .बड़े लोग गाड़ी में चढ़ने को उत्सुक थे मगर गाड़ी रुकी ही नहीं, वो तो अपनी गति से भागती रही. जो भी दिखा, बस कह दिया आ जा मेरी गाड़ी में बैठ जा. अरे, जब रोकोगे नहीं तो बैठेंगे कैसे और किसी ने भी उसकी रफ्तार से रफ्तार मिलाकर भाग कर उसे पकड़ने की कोशिश नहीं करता, बस एक ही रोना, गाड़ी रुकी नहीं तो चढ़ें कैसे.

वैसी ही गाड़ी चिट्ठा चर्चा भी बन गई. अपनी गति और अपने रंग रुप में भागी चली जा रही है. सबसे कह रही है, आओ, चर्चा करो. मगर लोग हैं कि बस चढ़ना ही नहीं चाहते. रफ्तार से रफ्तार कोई मिलाता ही नहीं. बस कहते है कि बस रुकी ही नहीं, कैसे चढ़ें. लेकिन बस की चाल ठीक नहीं दिखती. लोग अपनी खुद की गाड़ी लेकर उसी दिशा में निकल पड़े मगर चलती गाड़ी में रफ्तार मिला कर बैठे नहीं. पहली गाड़ी में जगह है मगर फिर भी अपनी गाड़ी लेकर निकले. राष्ट्रीय संसाधनों का कितना बड़ा दुरुपयोग. मगर क्या करना यह सब सोच कर. चल पड़ो किसी भी दिशा में. खैर, हम इस विषय में क्या कहें, बस यही कह सकते हैं कि भईया, आप आमंत्रित हैं, आप युवा हैं. आप की नई सोच है. आप में बदलाव लाने की क्षमता है. हमें आपका चिट्ठाचर्चा मंडली में इंतजार है और आपका स्वागत है. ट्रेन में बैठकर मच्छर के काटे को भी भारत सरकार का दोष मानकर कोसना तो अब आदत सी बात हो गई है, मगर चलो, इसमें कोइ बदलाव लायें. थोड़ा फ्लिट हमीं छिड़क दें अगर सरकार नहीं छिड़क रही है तो.

अरे, मैं भी इतने खुशनुमा दिन पर ऐसी बात लेकर बैठ गया.

आज फुरसतिया जी बाली उमर में (बकौल ई-स्वामी) ससुर हो गये. आज उनकी भतीजी स्वाति चि. निष्काम के साथ परिणय बंधन में बंध गई. उन्होने समस्त चिट्ठाकारों को खुला निमंत्रण दिया और अमिताभ की तरह का कोइ बंधन नहीं डाला. अब सब को निमंत्रित किया है तो सब की तरफ से स्वाति और निष्काम को अनेकोम शुभकामनायें.


एक और खुशखबरी: आज से पॉडभारती की शुरुवात हुई है. जैसे मानो कि आप सुनते थे विविध भारती, वैसी ही. शशि सिंह कहते हैं:

पॉडपत्रिका पॉडभारती का पहला अंक जारी कर दिया गया है। कार्यक्रम का संचालन किया है देबाशीष चक्रवर्ती ने और परिकल्पना है देबाशीष और शशि सिंह की।


इसमें आपको फुरसतिया, रवि रतलामी, देवाशीष, शशि सिंह, संजय बेंगाणी, रविश और यहाँ तक कि अविनाश की, सबकी आवाज सुनाई देगी फिर भी आपको खेद रहेगा कि आप हमारी आवाज नहीं सुन पाये. शायद हमारी किस्मत ही खराब है जो शशि भाई ने हमें इस लायक नहीं समझा कि हमारी एक कविता ही डाल देते इस अंक में. मगर मैं नाराज नहीं हूँ इसीलिये तो कवर कर रहा हूँ यहाँ पर. :) मेरी किस्मत कि मैं इतिहास का हिस्सा बन ही नहीं पाता.


सब छोडो, यह देखो कि डॉ. प्रभात टंडन जी, कुछ दोहे लेकर जिन्हें आवाज़ दी है जगजीत सिंग ने, हमारी खिदमत में लेकर हाजिर हुये हैं, यह तो शशि सिंह से बेहतर कहलाये कि हमारी पसंद लाये.

कवि बड़ा या कविता के बारे में घघूति बसुति जी ने बात क्या की और साथ ही अभय तिवारी मंत्र कविता..लेकर आये ...कहते हुये कि सदी की सबसे महान कविता जिसे लिखा है बाबा नागार्जुन नें. हमें तो बहुत पसंद आई, यह अभय की आदत खराब है कि हमेशा हमें पसंद आने वाली ही बात करते हैं. मगर इस पर काकेश को सुनें, कविता तो बेहतरीन है: कवि कविता और इन्ची टेप..सदी की सबसे बरबाद कविता

और ममता जी को सुनें, माँ बुरा न मान गई हों, उस पर दुखी हैं. अरे माँ भी कभी बच्चों की बात पर बुरा मानती है क्या. हद कर दी:. भूल जाओ ये सब. कह भी रही हैं:

ये एक ऐसा शब्द है जिसकी महत्ता ना तो कभी कोई आंक सका है और ना ही कभी कोई आंक सकता है। इस शब्द मे जितना प्यार है उतना प्यार शायद ही किसी और शब्द मे होगा। माँ जो अपने बच्चों को प्यार और दुलार से बड़ा करती है। अपनी परवाह ना करते हुए बच्चों की खुशियों के लिए हमेशा प्रयत्न और प्रार्थना करती है और जिसके लिए अपने बच्चों की ख़ुशी से बढकर दुनिया मे और कोई चीज नही है।


शहाबुद्दीन को सजा मिल गई जो सबकी इच्छा थी, इस पर बिहारी बाबू कहिन कहते है कि शहाबुद्दीन को सजा: कानून नहीं, सत्ता की जीत है. अब उनकी मरजी, जो कह दें.

अमित चल गई...चल गई चिल्लाये. हम समझे कि गोली वगैरह चल गई. भागे देखने तब मालूम चला कि मोबाईल पर हिन्दी चल गई. वाह भई, शीर्षक महात्म.

अच्छा अब मन भर गया हो तो ऐसे ही बहलावे के लिये कविता नुमा रीतेश की बात सुनो. बेचारे, हमेशा मेहनत कर आपके लिये कुछ न कुछ लाते रहते हैं. आज ला्ये हैं श्रीमान श्रीमती...

ऐसा और कहाँ.... अतुल श्रीवास्तव (लखनऊ वासी..अब अमेरीका में..) अब लिखें हैं दिल्ली से वो भी बहुत दिन बाद.


सिरफिरा है वक्त सजीव सराठे की रचना भी जरुर पढ़ियेगा.

उदासी की नर्म दस्तक ,
होती है दिल पे हर शाम ,
और गम की गहरी परछाईयाँ ,
तनहाईयों का हाथ थामे ,
चली आती है -
किसी की भीगी याद ,
आखों मे आती है ,
अश्कों मे बिखर जाती है ।


पुरकैफ-ए-मंजर की रचना भी हम यहॉ पेश कर रहे हैं: एक बाप की मौत

राकेश खंडेलवाल गीत कलश पर : दो कदम जो चले तुम मेरे साथ में...यह तो जरुर ही जरुर पढ़ें, हम भी पढ़ेंगे:


ये जो दीवार पर है कलेंडर टँगा
आज भी बस दिवस वो ही दिखला रहा
तुमने मुझसे कहा था कि"मैं प्रीत के
कुछ नये अर्थ तुमको हूँ सिखला रहा"
वह दिवस वह निमिष अब शिलालेख हैं
मेरी सुधियों के रंगीन इतिहास में
मेरी परछाईयों में घुल हर घड़ी
तुम रहो दूर या मेरे भुजपाश में

अब समझने लगा, अर्थ सारे छुपे
और अभिप्राय, हर अनकही बात में........


आगे वहीं जाकर पढ़िये.

प्रगीत कुँअर जी का संस्मरणात्मक आलेख जोशी जी पेश किया है भावना कुँवर जी ने. मजा आ जायेगा पढ़कर.

अभिनव को सुनो, लो जी पतले हो जाओ. यह वही हैं जो कभी मोटों की शान में कशीदे कसा करते थे मुट्टम मन्त्र सुना कर. कवि हैं कि नेता. बस पलट गये बात से. अब पतलम मंत्र दे रहे हैं. कहीं रामदेव टाईप कुछ बनने के जुगाड में तो नहीं.

नापोली की चित्रमय झलकियाँ देखिये राम चन्द्र मिश्र जी के ब्लॉग पर.

इंडिया टीवी की खिचडी हिन्दी से परेशान पंकज बेंगाणी अपनी गाथा का बखान कर रहे हैं.

हमारे रवि रतलामी जी बबली तेरो मोबाइल की टिप्पणियों की संख्या गिनाते गिनाते इतने छ्त्तीसगढ़ी यूट्यूब पेश किये बस उसी में सारा वक्त निकल गया और अभी भी दो बाकी हैं, फिर भी झूठ ही टिपिया आये कि सब देख लिये, मजा आया. मजा फिर कभी समय मिलते ही ले लेंगे. आज जिनके भी चिट्ठे छूटें वो रवि भाई को पकड़ें, उन्होंने ही फंसा कर रखा था यूट्यूब में, वरना तो हम सोचे थे कि आज एक भी नहीं छोड़ेंगे.

मनीषा किसी सर्वेक्षण की रिपोर्ट पा गई हैं और कहती है कि व्यभिचार में आगे हैं पुरुष. पता नहीं इस पर सर्वेक्षण की आवश्यता किस भद्र पुरुष को हुई. उम्मीद करता हूँ कि कुछ ऐसा ही कदम कोई महिला सर्वेक्षण कर्ता भी उठायेंगी, दूसरे पक्ष की भूमिका दर्शाने को.

मस्ती की बस्ती पर राजेन्द्र त्यागी का व्यंग्य : बुद्धिजीवी बनाम बुद्धूजीवी और हमारे प्रिय व्यंग्यकार आलोक पुराणिक जी का सद्दाम और चार कट्टे यहाँ पढ़ें.

रमा जी की रचना क्या खोया? क्या पाया? का दर्शन देखना न भूलें और साथ ही मोहिन्दर जी रचना भी: तेरा खत हम पर इनायत होगी.

अब चला जाये, आवश्यकतानुरुप कवरेज हो गई है बाकि गाड़ी चल रही है, रफ्तार मिलाओ और लद लो और टिपियाते चलो...सिर्फ पढ़्ना बस काफी नहीं है, बताओ भी तो कि पढ़ लिया है.

पता नहीं अपने गुट का कोई छूट तो नहीं गया?? बताना जरा!!!

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