शनिवार, दिसंबर 29, 2007

आज तो स्वागत की कर लें अभी



आज की खास पेशकश ११ साल के अरिंदम कुमार ,कक्षा ६ की पहली पोस्ट। मोहल्ले और रिजेक्ट माल दोनों जगह यह पोस्ट प्रकाशित हुयी। अरिंदम ने लिखा है-
लेकिन फिल्म तो अच्छी तब बनती जब ईशान अच्छा पेंटर भी नहीं बनता या कुछ भी अच्छा नहीं कर पाता तो भी लोग उसे समझते और प्यार देते। हर बच्चा कुछ न कुछ बहुत अच्छा करे ये उम्मीद नहीं करना चाहिए। ये जरूरी तो नहीं है कि वो कुछ बढ़िया करे ही। कोई भी बच्चा एवरेज हो सकता है, एवरेज से नीचे भी हो सकता है। लेकिन इस वजह से कोई उसे प्यार न दे ये तो गलत है।
अरिंदम के इस विचार-विश्लेषण पर अजितजी का कहना है- अरिंदम के आबजर्बेशन में दम है। रा्जीव जैनजी ने तो आगे कहा है-
अरिंदम से परिचय तो करायें।

नये ब्लागर का स्वागत करने का आवाहन कर रहे हैं मसिजीवी। स्वागत करिये न!

कल की चर्चा में कोई सत्यवादी (इत्ते झूठे कि ब्लाग का पता गलत लिखा)कहते हैं कि मैं अपनी फोटो अपनी पत्नी के साथ दिखाने के लिये मेरी पसंद में दूसरे का जिक्र करता हूं। हमारे दो बयान हैं-
१. काश हम इतने हसीन होते। वो शानदार फोटो अनूप भार्गव-रजनी भार्गव दम्पति की है जिनका प्रचार मैं पहले ही कर चुका।
२. हम अपने बारे में क्या प्रचार करेंगे? लोग ही इत्ती झूठी तारीफ़ करके कोटा पूरा कर देते हैं।

आज की वन लाइनर शाम को। पाण्डेयजी बंक मार गये। ये अच्छी बात नहीं है। :)

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शुक्रवार, दिसंबर 28, 2007

बेनज़ीर की हत्या यानी पश्चिमी मीडिया के हैप्पी हॉलीडेज़!



कल पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी गयी। ब्लागर साथियों ने इस घटना पर अपने विचार व्यक्त किये हैं।
मुखियाजी कहते हैं-

हमे आज भी याद है १९९० का दौर जब उनका दुपट्टा और मुस्कान भारत मे भी काफी मशहूर हुआ था ! हम सभी उनको एक खानदानी और सभ्य महिला के रुप मे जानते थे ! उनके पिता भी काफी कड़क मिजाज थे और पाकिस्तान की राजनीती के शिकार हुए !
किसी भी राष्ट्र की तरक्की वहाँ की राजनीती स्थिरता मे है - यह बात अब पाकिस्तानी राजनेताओं को समझ लेनी चाहिऐ वरना २१ वी सदी की चाल मे वह कहीं अफगानिस्तान न बन जाएँ !
इरफ़ान के लिये मोदी की जीत और बेनजीर भुट्टो की हत्या एक ही जैसा दुखद प्रसंग है। इस दुख की घड़ी में वे मशहूर पाकिस्तानी शायरा फ़हमीदा रेयाज़ की नज़्में सुन-सुना रहे हैं। रीतेश को तो इस खबर पर यकीं ही नहीं हो रहा है कि बेनजीर भुट्टो चली गयीं। इस मौके पर विजय शंकर का दिमाग फ़िदायीन हो गया। दीपक भारतीय ने बेनजीर को नजीर के रूप में पेश किया।


संजय का मानना है कि अमेरिका परस्ती बेनजीर की मौत का कारण बनी। वहीं अमेरिका से ई-स्वामी इस घटना को एकदम अलग अन्दाज में देखते हैं-
३० दिसम्बर २००६ को सद्दाम की हत्या की गई थी; २७ दिसम्बर २००७ को बेनज़ीर को निपटा दिया गया! इस क्रिसमस और नये साल की छुट्टियों के बीच तीन दिनों में किये जाने वाले सनसनीखेज़ कामों की टाईमिंग बडी जानदार है. ठीक पिछले साल जैसा माहौल बना दिया गया है. इस मौसम में कोई भी टीवी नही देखता, घूमना-फ़िरना, शॉप्पींग-वॉप्पींग सैंटा-फ़ैंटा यू नो! ऐसे में घर में कोई लफ़डेवाली खबर बना सकते नहीं तो बाहर ही सही! ये अपनी कांस्पीरेसी थ्योरी है!

अपने देश के हालात बदलने के लिये लालयित, जनता में लोकप्रिय पश्चिमी मानसिकता वाली स्त्री पात्र के आतंकवादियों द्वारा मार दिये जाने की खबर, फ़िर उसकी लगातार जुगाली - आपको साल के सबसे आनन्ददायक समय में ये याद दिलवाने के लिये, की आपके अमरीका के बाहर की दुनिया कितनी सडी जगह है, और आपको कितना भयभीत रहने की जरूरत है. ये याद दिलवाने के लिये की आपके धर्म के लोग कितने सहिष्णु हैं और बाहरी दुनिया कितनी हैवानियत से भरी पडी है. “थैंक गॉड फ़ार अमेरिका” जपो की आप का एक और साल सहीसलामत निपट गया और टीवी बांचो.



पाकिस्तान के ताजा घटनाक्रम को देखने के लिये पिटारा की शरण में जायें।

महाशक्ति पर मनुष्य को महान बताया गया-
धरती की शान तू भारत की सन्तान
तेरी मुठ्ठियों में बन्द तूफ़ान है रे
मनुष्य तू बडा महान है भूल मत
मनुष्य तू बडा महान् है ॥धृ॥


आप अक्सर अपने ब्लाग में बड़ी-बड़ी फ़ोटुयें लगाकर पाठकों को बिदकाते होंगे। इस बिदकन से निजात पाने रविरतलामी बता रहे है एक नहीं दो-दो जुगाड़। ज्ञानजी के भरतलाल के तमाम किस्से आपने पढ़े आजतक। अब आप एक और इलाहाबादी पन्नालाल के किस्से बांचिये अनीताजी के ब्लागपर। वे लिखती हैं-
पन्नालाल अपने हिसाब का बड़ा पक्का है, बिना पैसे लिए वो कोई काम नहीं करता, अगर उसकी लाई हुई बाई आपने रक्खी तो वो बाई से कमीशन लेता है काम दिलाने का, अगर आपने उसे नीचे से गुजरते ठेले वाले को रोकने को कहा तो जो कुछ भी खरीदो उसे नजराना देना पड़ेगा। है तो दसवीं फ़ैल पर अग्रेजी काफ़ी समझ लेता है। ऊपर लिखे सब काम वो पैसे ले कर ही करता है।


मेरे नव-वर्ष संकल्प ! : करके भूल जायें ताकि साल के अन्त में कह सकें बेकार गया।

जमीन, भैंसें और शिलिर-शिलिर परिवर्तन: से उकताकर ज्ञानजी दो दिन के लिये छुट्टी पर गये।

धमकी पुराण : का पहला अध्याय बांच रहे हैं पंडित शिवकुमार मिश्र कलकत्ता वाले।

तसलीमा : अतिथि देवो भव! : हम तुम्हें पूज सकते हैं लेकिन रहने के लिये कैसे कहें? हमें अपने कट्टरपंथियों का भी तो लिहाज करना है।


माया एकैदम ठोस:उनके आगे बाकी सबकी पालिटिक्स तरल हो गयी है।

चलिये अब मेथी उगाये डायबीटीज के लिये:डायबिटीज का जुगाड़ इसके बाद करेंगे, अवधियाजी?

मैं रोज़ अख़बार पढ़ता हूँ : उसमें सब तमाम लफ़ड़ा आता है। दुनिया भर का। आपौ बांचिये न!

भारत का इन्कलाब - चाय और पान के दुकान पर : दो रुपये में स्पेशल चाय साथ में इंकलाब मुफ़्त में। आइये मुट्ठी भींच के।

फ़ुग्गों की बिरादरी : में
शामिल होइये। मिर्च पानी में डालिये, तितलियों को तंग कीजिये।

आप किससे लेते हैं राय: लेते कहां है सब अपने आप देते हैं। दुनिया में तमाम रायचंद हैं।

मेरी पसंद


सपनो के खिचडी पका
भोर किरनों का दे छोंका
भरी दुपहरी का उबाला
साँझ हवा का मसाला
इंद्रधनुषी रंगो से सज़ा
निहार रही तुम्हारी राह!


कीर्ति वैद्य

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गुरुवार, दिसंबर 27, 2007

आजा्दी एक्स्प्रेस की मुफ़्तिया सैर


आज की सबसे रोचक पोस्ट ममताजी की आजादी एक्सप्रेस के बारे में लगी। पहले भी अनीताजी और संजीत इसमें घुमवा चुके हैं लेकिन शायद इत्ती फोटो नहीं दिखाये थे। :)

नीरज रोहिल्ला भी प्रेरित होने लगे हैं। उन्होंने अपने चिठेरा-चिठेरी सम्वाद अनूपजी प्रेरित बताये। अनूपजी कहते हैं कि ये साजिशन है कि उनको प्रेरणादायी भी बताया जाये। पहले ही उन पर मूढ़मति, सज्जन और मेहनती होने के आरोप लग चुके हैं। अब ये नयी आफ़त ! यही सब झेलना बदा था।

पाण्डेयजी के आफिस का तबादला हुआ तो वहां तमाम परेशानियां है। लगता नहीं दिल इस नये दरबार में। सो वे हमें
परेशान करना चाहते हैं। कहते हैं समय बताओ कब पोस्ट लिखी।

ये पोस्ट सबेरे कानपुर समय के अनुसार सात बजकर दस मिनट पर शुरू हुयी और अब सबेरे के आठ बजकर पांच मिनट पर पोस्ट की जा रही है। इस बीच दोबार चाय पी गयी, तीन बार डांटे गये, चार बार सोचा छोड़े शाम को लिखेंगे। पांचवी
बार कहा और किया अब बस्स! आफिस बुला रहा है।


एक साल बेकार गया : ये तो हर साल होता है, कुछ नयी सुनायें।

जीरो धमकी : सरकारों की मजबूती का एकमात्र आधार।

देश को जरूरत है 77,664 जजों की: जो न्याय का हथौड़ा मेज पर ठोंकते हुये न्याय कर सकें।

मैना ? मिन्ना ? मेनका ? मुनमुन या फिर मून्स ? : सब धान बाइस पसेरी। 50% क्रिसमस सेल डिसकाउन्ट। हरी अप। हुर्री अप।

कैसे लाऊं जिप्सियाना स्वभाव : मोको कहां ढूंढे से बंदे मैं तो तेरे पास में।

उड़ीसा में गुजरात: एक ही नशे के दो नतीजे हैं।

नोनी, कृषि अमृत और प्रलोभन भरे फोन: दाल मे कुछ काला है।

उस अनाम रेलवई वाले को धन्यवाद !: ऐसा फ़ेंका कि वकील साहब गांधीजी हो गये।

बड़े दिन के बाद :मैं शहर में टहलने को निकला।

बक-बक वकील की , अधिवक्ता के वचन.... : हर मुकदमा लड़ने वाले को झेलने पड़ते हैं।

अंतिम गीत :लिख ही दिया न! एक और लिखें।

विनपेनपैक:हर तरह के फ़्री साफ़्टवेयरों का संग्रह : मुफ़्त का चंदन है घिस लो भैया। पेन ड्राइव में जगह रखना है बस्स।

एक और प्रकार का चिठेरा चिठेरी संवाद (अनूपजी से प्रेरित) !!!: उड़ी बाबा! अनूपजी प्रेरित भी करने लगे। इस पोस्ट को पढ़ कर भक्क से रियलाइजेशन हुआ। :)

आजादी एक्सप्रेस एक झलक : शानदार है जी। जानदार भी।

अक्षरधाम दुनिया का सबसे विशाल हिंदू मंदिर परिसर :अब इससे बड़ा भी बनवाया जाये। नया रिकार्ड बनना है न!

चवन्नी सर्वेक्षण-२००७ सर्वोतम फिल्म : चंद चवन्नी विकल्पों में न फ़ंसे। चवन्नी आपको फ़ंसाना नहीं चाहता।

बिग बी का पण्‍डा : घाट हरिद्वारी पर मामाजी डुबकी लगवा रहे हैं इस भयंकर जाड़े में।

हम तो ऐसे हैं भइया,,,,,,,,: अब क्या करें जो हैं ठीकै हैं।

क्‍योंकि वे नहीं जानते क्‍या कर रहे हैं.....: इसीलिये सब काम योजना बद्ध तरीके से करते हैं।

छोटा आदमी-बड़ा आदमी : नाप के देखना चाहिये।

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बुधवार, दिसंबर 26, 2007

बर्लिन दीवार का टूटना और दिलों का मिलना



आज की चर्चा की शुरुआत एक सवाल से-
बर्लिन दीवाल का टूटना, पूर्वी-पश्चिमी जर्मनी का आपस में विलय, होना यह एक भावनात्मक बात थी। मुझे जर्मन लोगों ने बाताया कि उन्हें इसकी प्रसन्नता है। हमारे भी - दो टुकड़े हुए हिन्दुस्तान और पाकिस्तान। बाद में पाकिस्तान के भी दो। यानि कि हम दो से तीन हो गये हैं। हम में एक खून है, एक सभ्यता है - क्या कभी हम तीन मिल कर एक हो सकेगें।
ये सवाल है उन्मुक्तजी का। इस सवाल में उनकी ही नहीं तमाम लोगों की चाहना की झलक है।



1.कुछ टिप्पणी चर्चा : चिट्ठाचर्चा से चैन नहीं मिला!

एक कॉस्मिक छींक : समय को जुकाम हो रखा है। विक्स की गोली लें। खिच-खिच दूर करें।

हँसना मना है:हंसे तो समझ लो। जो हमसे टकरायेगा, चूर-चूर हो जायेगा।

बर्लिन दीवार का टूटना और दिलों का मिलना: एक ही सिक्के के दो पहलू थे , हैं और रहेंगे।

वह तारा क्या था? तारा था और क्या ?

रक्त की शुद्धता के लिये ग्वार पाठा (एलो वेरा): लें कि न लें। साफ- साफ़ बतायें।आप तो डाक्टरों की तरह अबूझ नुस्खे लिखने लगे।

कुछ नये मुहावरे गढो़ : नया गढ़ने के लिये मिट्ठी किधर से लेनी है त्यागीजी ?


चुनाव : चाहे रामलाल जीते चाहे श्यामलाल हमसे क्या मतलब? कौन हमें वोट डालने जाना है।

भोला बचपन ...भोले चेहरे: आप भी देखिये भोलेपन से।

आहट सुनने तरसती रहती हूँ लेकिन तुम हमेशा दबे पांव आते हो। जरा धड़ल्ले से आया करो।

एक साल में पांच हजार बार क्रैश देख तो जरा बेटा गिनीज का रिकार्ड कित्ता है?

इडियट बॉक्स तो नहीं है टेलीविज़न .. :काहे को हमारा मुंह खुलवाते हैं ? आप तो सब जानते ही हैं।

कपट न हो बस मै तो जानूँ ! तुष्ट न क्यों तुम मैं न जानूँ, सुनते हो जानूँ!

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मंगलवार, दिसंबर 25, 2007

ज्यादा फिलासफ़ी न झाड़ें तो अच्छा...


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गुजरात में हुये चुनावों में मोदीजी जीत गये। आज टीवी पर बताया गया कि वे भावुक भी हैं और अपनी पार्टी के लोगों को विनम्र रहने की अपील भी की। मोदीजी ने कहा भी वे सीएम(कामन मैन) थे, हैं और रहेंगे। इससे हमें एकाएक रागदरबारी की लाइनें याद आ गयीं- वैद्यजी थे ,हैं और रहेंगे। लेकिन एक और आम आदमी है जो शायद मोदीजी को ही सम्बोधित करते हुये कहता है- आपको नयी चुनाव आचार संहिता का शुक्रिया अदा करना चाहिये। अगर आपने उसका उल्लंघन न किया होता तो चुनाव न जीत पाते।

मोदीजी की इस जीत के मौके पर तमाम पोस्टें आयीं। इस मौके पर अनिल रघुराज ने भी अपने विचारव्यक्त किये। उन्होंने लिखा-
मैं अपनी सीमित जानकारी के आधार पर कह सकता हूं कि व्यक्तिगत जीवन में मोहनदास कर्मचंद गांधी जितने पाक-साफ थे, नरेंद्र दामोदरदास मोदी उतने ही पाक-साफ हैं। गुजराती होने के अलावा इन दोनों में एक और समानता है। जिस तरह गांधी ने पूरी आज़ादी की लड़ाई के दौरान हमेशा संगठन और संस्थाओं की अनदेखी की, कभी भी निचले स्तर के संगठनों को नहीं बनने दिया, उसी तरह मोदी ने भी सरकारी संस्थाओं की ही नहीं, बीजेपी और संघ तक की अनदेखी की है। जिस तरह जनता और गांधी के बीच कोई भी कद्दावर नेता नहीं आता था, उसी तरह मोदी ने भी अपने आगे सभी नेताओं को अर्थहीन और बौना बना दिया है। इस मायने में मुझे लगता है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी ही आज मोहनदास कर्मचंद गांधी के असली राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं।
इस लेख में उन तमाम लेखों के लिंक भी हैं जो गुजरात में मोदीजी की जीत के सिलसिले में लिखे गये।




आज ज्ञानजी ने अपनी तीन सौं वी पोस्ट लिखी। उनको सबकी तरफ़ से बधाई। वे नियमित ब्लागिंग करने वालों के लिये ईर्ष्या करने लायक ब्लागर हैं। कामना है आगे भी वे नियमित ईर्ष्या के आदर्श प्रतीक बने रहें।

कल ज्ञानजी ने अनूप शुक्ल को एक उपाधिजबरिया थमा दी- मेहनती सज्जन की। इस तरह हमें दो उपाधियां मिल गयीं।मूढ़मति और मेहनती सज्जन की। मुझे पता है कि पहले से लाइन में लगे शिवकुमार हमारी इस उपाधि पर जलभुनकर टेनिस वाली विलियम्स बहनें हो जायेंगे। लेकिन हम तो यही कहेंगे- जलने वाले जला करें। जाड़े का मौसम है।

कल ज्ञानजी ने एक फोटो भी अनूप शुक्ल के नाम की दिखाई। आलोक पुराणिकजी ने फोन करके राय जहिर की सच में कित्ते क्यूट लग रहे हैं। एकदम चिठेरा-चिठेरी की तरह। अब आप बताओ कहीं ये उत्ते क्यूट लगते हैं जित्ते चिठेरा-चिठेरी हैं?


कभी बोले तो वन्स अपान ए टाइम अतुल अरोरा नियमित ब्लागर हुआ करते थे। उन्होंने एक अधूरी सीरीज भी लिखी थी-क्योंकि भैंस को दर्द नहीं होता। समय के साथ उनकी प्राथमिकतायें बदली और ब्लागिंग में वे गली के चांद की जगह ईद के चांद होते गये।
आज उन्होंने अपने सुपुत्र को गाय दुहने के काम में लगा दिया। फोटो लग नहीं रही है। आप इधरिच देख लीजिये न! सात समंदर के पास जाकर।

आज क्रिसमस है। इस अवसर पर सभी को बधाई और मंगलकामनायें। कल शास्त्रीजी ने लिखा था बड़ा दिन न मनायें। मुझे लगता है इस तरह की पोस्टों से भ्रम फ़ैलता है।

आज के दिन ही अटल बिहारी बाजपेयीजी का जन्मदिन पड़ता है। राजनीति में उनकी विचार धारा के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना लेकिन भारतीय समाज के एक अद्भुत वक्ता के रूप फिलहाल कोई जोड़ नहीं दिखता। आजकल फ़ायर ब्रांड वक्ताओं का बाजार उठान पर है तब उनके जैसे हाजिर जबाब की कमी खलती है। उनको जन्मदिन की मंगलकामनायें।

अनुगूंज 23 की घोषणा हो गयी है। बहुत दिनों से यह हो रही है। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी है। अब कल की ज्ञानजी कीपो स्ट से आलोक का उत्साह फिर जगा और वे बाकियों को भी जगा रहे हैं। आप भी भाग लीजिये न! विषय है- कम्प्यूटर प्रयोग। ये तो आप करते हैं- लिख डालिये न!




इसी समय संजय बेंगाणी ने आवाज लगाई है -सुनो… सुनो… सुनो…| तरकश के द्वारा आयोजित 'सुवर्ण कलम' (स्वर्ण कलम नहीं भाई) में आप भी चुने जा सकते हैं वर्ष 2007 के सर्वश्रेष्ठ चिट्ठाकार। दौड़-धूप शुरू कीजिये।

वन लाइनर शुरू करने से पहले अजय झा ने द्वारा बताये गये चिट्ठाकारी के कुछ खास नुस्खे देख लें। सबसे अहम नुस्खा जो मुझे लगा वह है-
ज्यादा फिलासफी ना झाडें तो अच्छा , क्योंकि शायद आज के जमाने में किसी के पास इतना वक़्त नहीं होता कि वो आपके आदर्शों को झेलने के लिए समय निकाल सके।




1. करुणामूर्ति ईसा की जयंती मुबारक! : किसको? हमको, आपको सबको न!कि उनको भी?

2.और ये अनुगूँज २३ शुरू! : कब से चल रही है! फ़ीता काटो आगे भी बढो भाई।

3. "बडा दिन" न मनायें !! : हम तो जबरिया मनइबे यार हमार कोई का करिहै!

4. चमचा: मार्ग में बाधा है, बन जाओ।

5. बस यूं ही: गुनाह करते रहो, अच्छा लगता है।

6.रागों में जातियां : यहां भी जातिवाद पसरा है !

7. एलियंस का अस्तित्व स्वीकार रहे हैं वैज्ञानिक: एस.एम.एस. से वोटिंग करके नतीजे पर पहुंचे होंगे।

8.मोबाइल, आईपॉड, लैपटॉप, सब पर्यावरण के दुश्मन : ये दुश्मन जो दोस्तों से भी प्यारा है।

9. चिट्ठाकारी के कुछ खास नुस्खे: कबाड़खाने में मिले।

10.बापी दास का क्रिसमस विवरण : पार्क स्ट्रीट पर छेड़खानी करने के तरीके।

11.अख़बार पढ़ते पढ़ते :
धच्च की आवाज के साथ स्वयं अखबार हो जाती हूं।

12.हाईबर्नेशन की अवस्था में ही सभी पर्वों पर शुभकामनायें : ये हाईबर्नेशन बड़े काम की चीज है।

13.अपने लेख अखबारी लेख की शक्ल दें : और सागरजी को महानतम ब्लागर मानने से मत हिचकें।

14.हे गुमशुदा ’उडन-तश्तरी’ तुम कहां हो? : अपनी रपट जबलपुर थाने में लिखायें।

15. खुशियों को गले लगायें: गम से अपने आप मिल लेंगे क्योंकि खुशी और गम एक ही सिक्के दो पहलू हैं।

16.*कुम्बले कम्पनी दे रही है गालियो की कोचिंग* : आप भी दीजिये न हिंदी का प्रचार-प्रसार होगा।

17.क्यो हमसे ज्यादा प्रामाणिक मानी जाती है मोदी की आवाज? : आपने बताया न नक्कारखाने में तूती वाला मामला है।

18.ईसाई भारतीय नहीं हैं क्या? : कौन कहता है नहीं हैं?

19. सुबह जब आंख खुलती हैं: तो निगोड़ी नींद आ जाती है।

20.हिंदी चिट्ठाकारों से एक विनम्र आग्रह : कि वे अपना सम्मान कराने में सहयोग करें।

21.सत्तर के दशक का कार्टून : इत्ती देर में सामने आया! लखनौवा है- पहले आप,पहले आप में फ़ंस गया होगा।

22. गुजरात की जनता और नरेन्द्र मोदी ने दिखाई मौन की ताकत: बहुत दहाड़ना पड़ा इसे दिखाने के लिये।

23.आत्मा की ज्योति : जलायें, बिजली का खर्चा बचायें।

24.चुनाव के बाद मतदाता के विवेक पर आक्षेप करना अनुचित : लेकिन ये तो अगले चुनाव से पहले कर रहे हैं भाई।

25. दस्तक के तकनीकी लेख अब नई जगह पर: नयी जगह पर लिख्खेंगे ये फिर से वही कहानी।

26. अपने दिमाग़ को बचाएं ! अगर अभी तक बचा रह गया हो!

27.मोकालू गुरू का चपन्त चलउआ : पर ट्रक का पहिया चढ़ा।

28. सांता जो न कर सका:वह आलोक पुराणिक ने कर डाला।

29.अपन के मोदी कुंवारे या शादीशुदा : किसको पता है जी ये अन्दर की बात!

30.कोलकाता को किसने बसाया ? : हमने तो नहीं बसाया।

31. चुनाव हिटलर ने भी जीता था, चुनाव बुद्धदेव भी जीतते हैं: यही लफ़ड़ा है चुनाव में- कोई न कोई जीत ही जाता है।

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सोमवार, दिसंबर 24, 2007

आह, पुलाव..... वाह, पुलाव- आनंदम् आनंदम्



शुरआत एक सुन्दर से चित्र से। आप देखिये इसे। आलोक पुराणिक बताते हैं कि ये बगल वाला बन्दर बाद में बड़ा दंतिस्ट बनेगा। इसकी नोटबुक उन्होंने अभी से अपने पास रख ली हैं।

नया चिट्ठा देखिये प्रतिमा वत्सजी का। देखिये लोकरंग के लोग लिखना शुरू कर रहे हैं।

कुछ लोग खासकर ज्ञानजी और शास्त्रीजी चिट्ठाचर्चा से कुछ ज्यादा ही इम्प्रेस्ड हैं। एक घंटे में यह पोस्ट लिखी गयी। आप भी इम्प्रेस्ड होइये न!


हिन्दु आतंकवाद – नहीं आता मुझको : फिर कैसे चलेगा? सीखिये भाई! सबको आ जाता है।

क्रिसमस की छुट्टियाँ: शुरू हो गयीं।

बड़ा दिन न मनायें: सब दिनों को काट कर छोटा कर लें तब मनायें शान से।

मेरा घर का कम्प्यूटर और संचार नेटवर्क : हमको समझ में ही नहीं आता। पर वह काम कर रहा है! क्या मौज है। :)

प्लीज शट अप, मैं था डान :आप लोग न जाने कहां -कहां पुलिस दौड़ाते रहे जबकि हम नच बलिये में थे।

मौत का सौदागर:की नयी दुकान चालू जल्दी ही!

मोदी के तारे आसमान में : तारे आसमान में रहते हैं अगर आमिर खान के न हॊं।

व्यक्ति पूजा : करिये। बड़े काम की चीज है।



बन्दर : झांक रहा है मुंह के अन्दर। गोरी लगती बेसी सुन्दर।

पैसे वसूल : वेलकम, लेकिन पैसे थे किसके?

बचपन: देखने के लिये सुबह-सुबह अलसाई आंखों से ताजी ओस की बूंद देखें।

आह पुलाव, वाह पुलाव: मुंह में पानी आ गया आनंदम,आनंदम।

लोकदेव करमा : की जय हो।


किराये पर खुशी और गम : आसान किस्तों में। बुकिंग करायें। फ़ेस्टीवल आफर में विशेष छूट।

बधाई नरेन्द्र भाई:आदमियों से बने कितने गलीचे बनाये हैं इसने।

गुजरात में फिर खिला कमल : कीचड़ बहुत अच्छा फ़ैला था न इसीलिये।

अंधेरे का व्यापार : बहुत चमक रहा है उजाले में।

मसखरों को अन्तरिक्ष में मत ले जाओ : वर्ना वो चुटकुला सुनाने लगेगा। हंसी आयेगे, फ़ंस जाओगे।

दांये हाथ की नैतिकता : सफ़ाई के लिये जरूरी है। इसे सिर्फ़ बायां हाथ ही समझ सकता है।

मेरे शब्द : सीधे हैं, सपाट हैं आपकी टिप्पणी इनकी सच्चाई को सहलाती है। टिपियाइये न!

परिवार में कि‍चकिच से लगती है तंबाकू की लत : विक्स की गोली लें किचकिच दूर करें।

अगर इंग्लिश से परहेज है तो इन फॉर्मेलिटीज़ को क्यों गले लगाते है ??? हिन्दी ब्लोग्गेर्स !!!!!!!!!!!!!!!!! गला होता ही है लग जाने के लिये। आ तू गल्ले लग जा रे हमराही।

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रविवार, दिसंबर 23, 2007

झल्लर का सत्ता विमर्श -शुरुआत मां-बहन से






1. विधायक, सांसद टाई-सूट में नज़र आएंगे!: भले ही वे कुछ पहने या न पहनें? क्या कमाल है!

2.झल्लर का सत्ता विमर्श : आलोक पुराणिक के साथ पदों के बटवारे के पर बहस!शुरुआत मां-बहन से।

3.इस्लामिक एपॉस्टसी की अवधारणायें : पाण्डेयजी के सर के ऊपर से गुजरीं।

4.समय की डायरी में दर्ज हैं तटस्थों के अपराध : मतलब समय पढ़ा-लिखा है। डायरी भी लिखता है। उसको ब्लागिंग सिखाओ भाई।

5.मियाद के दिनों की चोरी : करें। इसके लिये कोई सजा नहीं मिलती।

6.लंबी उमर चाहिए तो थोड़ा सा मोटे हो जाइए : अदनान सामी बेफ़ालतू में दुबला हो गया।

7. हमारी संस्कृति और जाति व्यवस्था को मत छेड़ो प्लीज़...:वर्ना हम कहीं मुंह दिखाने लायक न रहेंगे।

8.एक निजी पोस्ट :पोस्ट निजी है इसीलिये सबको पढ़ाना पड़ रहा है। मजबूरी है।

9.जब से गये परदेस, कोई भेजे ना सनेस : सैंया जुटे हैं ब्लागिंग में।

10. बन में बोलन लागे हैं मोर: बढ़िया। सुनाओ वन्स मोर!

11.चलला मुरारी छौरी फ़ंसबय! पकड़ा जाई त पता चली।

12.एक स्त्री का दर्द : शास्त्रीजी ही समझ सकते हैं।

13. हिन्दुस्तान जंगलियों का देश है?? जंगल तो सब कटवा दिये आपने। अब कौन जबाब दे इसका?

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शनिवार, दिसंबर 22, 2007

पाडभारती, प्रार्थना और पतलून पुजारीजी की



पाडभारती शानदार है। ये हम नहीं आप भी कहेंगे एक बार सुन तो लें।

देबाशीष और शशि सिंह ने एक बार फिर शानदार प्रस्तुति की पाडभारती की। आठ मिनट की इस आडियो हलचल में जीटाक पर अपना स्टेटस लगाने के बारे में बतकही है, दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनाव के किस्से हैं और है युनुस खान की खनकती आवाज। अगर हम पाडभारती नहीं सुनते तो हमें पता नहीं चलता कि ये देबू, शशि और युनुस आवाज के मामले में इत्ते बड़े युवराज सिंह हैं। आप भी सुनिये न! काहे के लिये सर्वहारा बने हैं।

जब हम आशीष के साथ पूना से नासिक गये थे तो त्र्यम्बकेश्वर मंदिर से शाम के समय लौटते हुये रचनाबजाज परिवार की सम्मिलित प्रार्थनायें सुनते हुये आये। एक के बाद दूसरी प्रार्थना का सिलसिला चलता रहा। रचनाजी कुछ दिनों से अपनी प्रार्थनाऒं की पाडकास्टिंग करना चाह रही थीं। हो नहीं रही थी। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और प्रार्थना की फ़ाइल अपलोड करके ही मानी। इसी को कहते हैं- कोई काम नहीं है मुश्किल जब किया इरादा पक्का। हम तो यही कहेंगे- वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो।

लावण्याजी की तेजी आंटी ९३ साल की होकर चली गयीं। हमेशा के लिये। मामाजी ने बच्चन परिवार के साथ बहुत समय गुजारा है। उनके संस्मरणॊ पर एक किताब भी लिखी है। आज उन्होंने तेजीजी से जुड़े कुछ संस्मरण बयान किये। वे लिखते हैं
-डॉ. प्रभाकर माचवे मौज में अक्‍सर कहा करते थे, 'भई बच्‍चन तो तेजी के साथ बढ रहे हैं।'' इस वाक्‍य का श्‍लेष बहुत गहराई तक सच बयान करता है। सही मायनों में वे बच्‍चन जी का बल थीं। सहयात्री का जाना यूं भी कष्‍टकर होता है, फिर साठ सालों से अधिक तक सहयात्री रहे बच्‍चनजी जैसे भावुक, समर्पित कलमकार, कलाकार सहयात्री का बिछोह निस्‍संदेह तेजी जी के लिये पीडादायी था। बच्‍चन जी के जाने के बाद उन्‍होंने खाट क्‍या पकडी, बच्‍चन जी की राह ही पकड ली।


आज भी आफ़िस जाना है सो चंद हड़बड़िया एकलाइना पेश करके फ़ूटना है-

पश्चिम का तलुवा, काले अंग्रेजों की जीभ !: दिखा रहे हैं शास्त्रीजी!

देश पै घोड़े-गधे राज करैं सै:राजेन्द्र त्यागी का सनसनीखेज खुलासा।

बिजली के टॉवर, व्यक्तिगत जमीन और स्थानीय शासन: एक साथ बने ज्ञानीजनों के मानसिक चिन्तन का शिकार।

बोझ: भारी है, संभलकर उठाना।

दुपट्टा मीन्स क्या : ये किसी फ़ेलियर छात्र से पूछो, टापर न बता पायेगा।

संत की पतलून : अजित वडनेरकर ने उतारी, धोयी और टांग दी, यायावरी के दौरान।

याद मुझे है अब तक : इसीलिये आप को भी बता देते हैं-क्योंकि मगर खून बहे है अब तक!

एकदम परफेक्‍ट है ‘तारे जमीन पर’ : चलो देखकर आते हैं।

घायल हुई सोने की चिड़िया: जल्दी फ़र्स्ट-एड बाक्स लाओ।

भारतीय समाज का दा विंची कोड: मोहल्ले वालों ने तोड़ डाला, शरारती हैं।

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गुरुवार, दिसंबर 20, 2007

झूठ के प्रयोग में ईमानदारी बरतें




कल की चर्चा में ज्ञानजी की टिप्पणी थी-भैया हम तो इम्प्रेस्ड हैं। सवेरे सवेरे सर्दी में यह पढ़ना और पोस्ट भी ठोक देना समग्रता से - कौन सी चक्की का खाते हो! अब क्या बतायें। ज्ञानजी हमसे इम्प्रेस्ड हैं और हम कल दिन भर डिप्रेस्ड रहे। जो फोटो कल की चर्चा में लगाई वो ठीक से लगी नहीं। दिखी नहीं। लिंक ठीक से लगे नहीं। फिर भी ज्ञानीजन इमप्रेस्ड हो गये। ये है अल्पसंतोषी मानस। साईं इतना दीजिये जामें कुटुम समाये वाला। :)

आज की चर्चा की शुरुआत नेक काम से। जगदीश भाटियाजी ने लिखा -
Esha - एक संस्था है जो कि नेत्रहीनों के लिये काम कर रही है। यह संस्था कई तरीकों से नेत्रहीनों की सहायता कर रही है। यहां विजिटिंग कार्ड्स पर ब्रेल में नाम लिख नेत्रहीनों को आत्मनिर्भर बनाने का काम भी किया जा रहा है। इन्होंने अब अपनी साइट बनायी है www.braillecards.org । संस्था के पास अपनी साईट को प्रचारित करने के लिये संसाधन नहीं हैं। आप सभी से अनुरोध है कि इस साईट का लिंक अपने अपने चिट्ठे पर लगायें। हो सके तो इस साईट के बारे में पोस्ट भी लिखें। जरूरत है कि इस तरह की साईट्स के बारे में लोग अधिक से अधिक जानें।


आलोक पुराणिक के शब्द उधार लेकर कहें तो नेकी कर चर्चा में डालने में बाद अब काम की बातें। दो दिन पहले हमें किसी ने बताया कि युनुस ने मनीषाजी से मुलाकात के बारे में एक पोस्ट लिखी है। उनको दस ब्लागर के बराबर है। आज ये पोस्ट देखी। आनंदित हुये बांच कर। हमें यह जानकर अच्छा लगा कि मनीषाजी ने युनुस से लहसुन भी छिलवा लिये।
लेकिन यह सवाल भी उठा कि क्या प्याज नहीं था वहां? उनसे बतकही की बयानी उन्हीं से सुनिये-
इस दौरान मनीषा ने खूब खूब सारी बातें कीं । कई दिनों बाद कोई ऐसा मिला, जिसने मुझे बोलने ही नहीं दिया । मतलब ये कि रेडियो वाला होने का अब तक फायदा ये था कि हम बोलते तो लोग सुनते, पर यहां ' दस के बराबर एक ब्‍लॉगर ' से मुलाकात में हमने सिर्फ सुना । हमें बोलने का मौक़ा ही कहां मिला । सब कुछ पूछ‍ लिया उसने, ब्‍‍लॉगिंग के बारे में, मेरी और ममता की शादी के बारे में, जिंदगी की दिक्‍कतों के बारे में, संगीत के बारे में, ना जाने किस किस बारे में । फिर मज़े लेकर बोली कि ममता जी ने मुझसे वादा किया है कि अगर मैंने कोई 'क्रांति' की तो वो सबसे आगे खड़ी होंगी मदद करने के लिए ।
इस बेहतरीन
मुलाकात के जिक्र में सबसे अटपटा इस पोस्ट का शीर्षक है। पता नहीं ये रेडियो वाले कब सीखेंगे ये सब। व्यक्तित्व इस तरह डिजिटाइज नहीं किये जाते भाई। सारे लेख की हिंदी कर दी। :)

उधर घुघुतीजी अपने शानदार मूड में हैं। अपने जीवन के अनुभव बता रहीं हैं आज। शादी किसकी है में अपनी शादी के मजेदार व शानदार किस्से उन्होंने लिखे हैं।

अब कुछ हड़बड़िया एकलाइना

1.गद्दों के इश्तहार में आडवाणीजी : रजाई वाले इश्तहार किसको मिले?

2.ब्लोग्वानी कि दिक्कत क्या है? : ये तो ब्लागवाणी को भी नहीं पता।

3.अंतर्जाल पर भी मनोरंजन की खोज :भूसे के ढेर में सुई खोजने सरीखा काम है।

4. श्री बुध प्रकाशजी के पूर्वजों की एक पीढ़ी: ने आज पाण्डेयजी की मानसिक हलचल बढ़ा दी।

5.गीता को समझने मैं बहुत समय लगता है। : क्या जरूरत है समझने-समझाने की? बेफ़ालतू का टाइम वेस्ट!

6.होंगे सैकडो पैदा शहीदों की रुधिर की धार से : अच्छा हुआ अब शहीद नहीं होते वर्ना देश की आबादी कित्ता और बढ़ जाती।

7.क्या-क्या रोकेगी सरकार व न्यायपालिका : रोकने का ऐसा कुछ नहीं है भाई जी लेकिन ट्राई तो मारना पड़ता है न!

8.अबे जंगली इंडियन तेरा गूस तो पक गया : और तू यहां कार्टून दिखा रहा है मसीजीवी कहीं का!

9. झूठ के प्रयोग: में ईमानदारी बरतें। वर्ना सारा फ़र्जीबाड़ा सामने आ जायेगा।

10. अब रेलवे टिकट खुशबू देंगे : खुशबू सूंघते ही यात्रा पूरी।

11.दुनिया भर के बहते हुए खून और पसीने में हमारा भी हिस्सा होना चाहिये :बंटाधार! हर जगह रंगदारी/ हिस्सेदारी के किस्से हैं।

12.अधर में लटका सा जीवन : लटका सा ही रहेगा क्या जी!

13. अगर ब्लाग के लिये पुरस्कार घोषित हुये तो : डर लगता है कि हमें भी न मिल जायें।

14. खड़ी बोली के लोकगीत: बैठकर पढें।

15. मैं, मौसी, बसंती और चंदन: सब इसी पोस्ट में हैं। जाड़ा है न सिकुड़ के बैठे हैं।

मेरी पसंद


कम कपड़े फैशन का पर्याय हो चले हैं,
भिखारी से कपड़े - ज्यादा महंगे हो चले हैं,
पूरे ढंके शरीर को
"दुनिया " हिकारत से देखती है
अब तो भाई को भी बहन " सेक्सी " ही लगती है!!!
बेटा नशा करता है,
इस बात से "बड़े" अनजान होते थे
अब तो पिता मुस्कुरा कर जाम बना देते हैं
बेटे को कौन कहे,
बेटी को थमा देते हैं !!!
नशे मे झूमना
आज पतिव्रता होने की निशानी है.....
रिश्तों की बुनियाद !!!
"ये बात बहुत पुरानी है....."

रश्मिप्रभा

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बुधवार, दिसंबर 19, 2007

बुक फेयर है या सब्‍जी की दुकान




त्रिलोचन जी के बारे में बहुत अच्छा संस्मरण लिखा है इयत्ता वाले इष्टदेव सांकृत्यायन ने। त्रिलोचनजी के बारे में बताते हुये उन्होंने लिखा-
अपने समय में में उन्हें हिन्दी का सबसे बडा रचनाकार मानता हूँ. सिर्फ इसलिए नहीं कि उनकी रचनाएं बहुत उम्दा हैं, बल्कि इसलिए कि अपने निजी स्वभाव में भी वह बहुत बडे 'मनुष्य' थे. गालिब ने जो कहा है, 'हर आदमी को मयस्सर नहीं इन्सां होना', संयोग से यह त्रिलोचन को मयस्सर था. त्रिलोचन वह वटवृक्ष नहीं थे जिसके नीचे दूब भी नहीं बढ़ पाती. वह ऐसे पीपल थे जिसके नीचे दूब और भडभाड़ से लेकर हाथी तक को छाया मिलती है और सबका सहज विकास भी होता है. त्रिलोचन की सहजता उतनी ही सच्ची थी जितना कि उनका होना. वह साहित्य के दंतहीन शावकों से भी बडे प्यार और सम्मान से मिलते थे और उनके इस मिलने में गिरोह्बंदी की शिकारवृत्ति नहीं होती थी.
इस संस्मरण में इष्टदेव ने त्रिलोचन जी के अधूरे काम पूरे करने के प्रति चिंता जताई है कि उनको कौन करेगा? दो काम तो सिर्फ़ और सिर्फ़ इष्ट्देव ही कर सकते हैं:-
१. अपने सानेट पढ़वाने का और सानेट के बारे में जानकारी देना का।
२.अपने शरीर पर मांस चढ़ाने का।

ये दोनों काम उनको स्वयं त्रिलोचन जी सौंपे थे। उनके प्रति अपनी श्रद्धा ज्ञापित करने का यह तरीका होगा कि ये काम पूरे किये जायें।

मामाजी आज चंडूखाने पहुंच गये। हरिद्वार , जहां कि नशा-निषिद्ध है , में हर तरह के नशे की उपलब्धता बताते हुये वे चाय-नशे का विस्तार से व्याख्यान करते हैं। चाय गोपालजी की दुकान की है। एक लाख अस्सी हजार रुपये की चाय पिला चुके हैं अब तक गोपाल जी। पत्रकारों और उनके लगुये-भगुओं के लिये कतई मुफ़्त। इसी कारण इस चंडूखाने का हाल ये हुआ कि
धीरे धीरे यह चण्‍डूखाना प्रेसवालों का, पत्रकारों का अघोषित दफ्तर बन गया। हरिद्वार के पत्रकारों की संस्‍था 'भारतीय संवाद परिषद' जो कालान्‍तर में 'प्रेस क्‍लब हरिद्वार' हो गई, की स्‍थापना-संकल्‍पना की जन्‍मभूमि यही चण्‍डूखाना बना। आज जब प्रेसक्‍लब का अपना स्‍वतंत्र दफ्तर है और नया भवन भी बनकर तैयार है, तब भी पुराने पत्रकारों के लिए गोपाल का चण्‍डूखाना ही हरद्वारी पत्रकारिता का कलम का मक्‍का-मदीना है। जब हरिद्वार में गिनेचुने सात-आठ पत्रकार होते थे तब भी चण्‍डूखाना आबाद था और आज जब यह संख्‍या 'सेंचुरी अप' हो चुकी है तब भी इस चण्‍डूखाने का महत्‍व कम नहीं हुआ है।


मामाजी के हाल से बेखबर उनके लायक भांजे( हालांकि अपने में मामा और भांजे कित्ते भी लायक हों लेकिन मामा-भांजे का जोड़ा नालायक ही माना जाता है) यायावरी में जुटे हैं। वे आज
अत्यंत प्राचीनकाल से ही अपने अभियान अर्थात खोज यात्राएं की हैं। यायावरी का इसमे विशेष योग रहा। उस दौर में ऐसे सभी अभियान पदयात्रा के जरिये ही सम्पन्न होते थे। अभियान का निकटतम अंग्रेजी पर्याय है एक्सपिडिशन जिसका का मतलब है निकल पड़ने को तैयार या तेजी से आगे बढ़ना। अपने प्राचीन रूप में यह भी फौजी कार्रवाई से जुड़ा हुआ शब्द ही था जैसा कि अभियान।
प्यादे के बारे में जानकारी पर ज्ञानजी की टिप्पणी है-पैदल चलने वाला जितनी तेजी से चलता है; शायद उससे तेजी से शब्द अपना स्वरूप बदलता है। :-)

आज की अतिथि पोस्ट में ज्ञानजी ने पंकज अवधियाजी के माध्यम से दांतो की सड़न रोकने के उपाय बताये हैं। आजमायें। दांत चमकायें। दिखायें।

दिलीप मंडल जी ने ब्लागर-मिलन के खिलाफ़ अपने विचार रखे थे। उस पर अभय तिवारी ने अपना मत रखा। अब हर्षबर्धन उसी बात पर अपनी राय जाहिर कर रहे हैं। उन्होंने दिलीपजी से सवाल भी किया है-
जहां तक चमचागिरी/ चाटुकारिता की दिलीपजी की बात है तो, बस इतना ही जानना चाहूंगा कि किस संदर्भ में कौन सी तारीफ चमचागिरी/चाटुकारिता हो जाती है। और, ज्यादातर ऐसा नहीं होता कि अपने लिए की गई साफ-साफ चमचागिरी भी अच्छी लगती है लेकिन, दूसरे की सही की भी तारीफ चाटुकारिता नजर आने लगती है।


प्रत्यक्षाजी अपने रंग में हैं आजकल। आज की पोस्ट में तो उन्होंने साइज भी बढ़ा दिया है। न जाने कौन से कोने अतरे से वे नये-नये नाम ले आती हैं। के,कारमेन,सीमस और शुबर्ट (ये हमने पहली बार पढ़े)और भी न जाने क्या-क्या। कैसे हैं उनकी के आप देखिये-
उनकी आवाज़ में एक संगीतमय गूँज थी , ज़रा सी रेशेदार जैस्रे खूब सिगरेट पीने के बाद कुछ खराश हुई हो । फिर एकदम से उठकर चली गईं बिना ये कहे कि फिर आयेंगी या नहीं । छठा दिन बीता फिर सातवाँ । आठवें दिन थरमस से सूप ढाल कर पीने ही वाला था कि घँटी बजी । दरवाज़ा खोलते ही सर्द हवा के झोंके के साथ दाखिल हुई । ठंड से चेहरा ज़रा लाल था । बिना दुआ सलाम के कुर्सी खींच कर बैठ गईं । झोले से किताब निकाला । आज कवितायें नहीं है ऐसा आश्वासन दिया ।


अब कुछ बन लाइनर-
1.शिक्षा में अंग्रेजियत के डिस्टॉर्शन : के चलते ही भारत अध-पढ़ा है।
2.रेल कर्मी और बैंक से सेलरी : में अंतरंग सम्बन्ध हैं।
3.काश गन से गिटार बनाई जाए ! : और जैसे ही कोई दुश्मन कब्जा करने के लिये आये गिटार बजा दी जाये।
4. चालू चैनल पर मौत के सौदागर :दिखा रहे हैं अगड़म-बगड़म द ग्रेट आलोक पुराणिक!


5. ज़िंदगी कितनी हसीन है !: और उसे आप ब्लागिंग में चौपट कर रहे हैं।
6. दिलीप जी आपको टिप्पणी चाहिए या नहीं?: साफ़-साफ़ बताइये।
7. चर्चा चण्‍डूखाने की: मामाजी यही तो करेंगे।
8. शर्ट हेंगर ने बचाये करोडों रुपये :वे सब बाद में हमने गंवा दिये।
9. लाइलाज बीमारी बासिज्म: की चपेट में सारी दुनिया है। अपना भी चेकअप करायें।
10. बुक फेयर है या सब्‍जी की दुकान: किताबें किलो के भाव मिल रहीं हैं।

11. अपना चिट्ठा/जालस्थल लुटेरों से बचायें : अपना सब कुछ एक बार में लुटायें फिर चैन की बंसी बजायें।

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बुधवार, दिसंबर 12, 2007

मामाजी तो विविध भारती निकले





कल आलोक पुराणिक ने पहले तो शरीफ़ों की तरह कहा लेकिन बाद में हमको धमकियाते हुये कहा -अगर वनलाइनर ने पेश किये तो समझ लो...।

हमने कहा -क्या समझ लें? क्या कल्लोगे?

वे बोले -हम कुछ भी कर सकते हैं। क्या करेंगे हमें खुद ही नहीं पता। लेकिन आपको पता होना चईये कि हमारे सल्लिका मेहरावत और साखी रावंत से अंतरंग संबंध हैं। अब तो घाट-घाट का पानी पिये मामू भी अपने हो गये। फिर मत कहियो पहले बताया नहीं

हम मारे डर के लिखने के लिये प्रस्तुत हो लिये। डरने के चक्कर में तमाम गलतियां हो गयीं। डर में आदमी गाना भले गा लेकिन सही टाइप नहीं कर सकता। लेकिन इसे आप समझ लीजियेगा। ब्लागर से भले न हो लेकिन पाठक से इत्ती उम्मीद तो रखी जा सकती है न!

पहले कुछ समाचार-

1. हाईकोर्ट के नीचे कल ज्ञानदत्त जी गाना गाते पाये गये। गाना सुनते ही मोहम्मद युनुस और ममता कन्फ़्यूज हो गये। बाकी लोग भी फ़्यूज हो गये। बाद में ज्ञानजी बोले -ये आवाज हमारी थी। लोग चुप साध गये। क्या कर लेते जब हाई कोर्ट ही कुछ नहीं कर रहा है।

2. मुंबई से हमारे संवाददाता अभय तिवारी ने सूचना दी है कि अनिल सिंह रघुराज ने अपने बाल छंटा लिये हैं। अफ़वाह है कि उन्होंने यह कवायद महेन्द्र सिंह धोनी की देखादेखी की। अब प्रमोद सिंह का पूछना है कि महेन्द्र सिंह धोनी ने तो दीपिका पादुकोण के कहने पर यह किया। अनिल ने किसके आग्रह पर बाल कटवाये? नाम की तलाश जारी है।

3.लोग मामाजी के आने से बड़े खुश थे कि चलो कोई तो कायदे का आदमी जुड़ा ब्लाग-जगत से। लेकिन वे भी विविध भारती निकले। घाट-घाट का पानी पिये हैं वे। उनके अखबारी घाट की तलाशी लेने पर पता चला कि उनके संबंध भी न जाने कैसे-कैसे लोगों से पाये गये। एक तो बेचारा उनसे मिलने के बाद छलनी भी हो गया।

4.अपनी शब्दसंपदा से लोगों का ज्ञान बढ़ाने वाले भांजे अजित अपनी खुद की पहचान तलाशते पाये गये। वे पूछ रहे हैं मैं कौन हूं? शर्मा या वडनेरकर?

5. तकनीकी गुरु रविरतलामी का कम्प्यूटर भी सड़ेला निकला। टंकी धड़ाम हो गयी। और न जाने क्या हो गया। देखिये आप भी। जब गुरुओं के ये हाल तो चेले का कौन हवाल होगा।

नौकरी करी-करी न करी। अजीब बात है एक अपनी हो चुकी नौकरी को गुलामी समझ कर कविता लिख रहा है। दूसरा नौकरी लगने के बारे में बताते हुये चहक रहा है, महक रहा है।

अब पेश हैं चंदवनलाइनर। बालकिशन का नाम ले रहे हैं वर्ना वे कहेंगे कि हमें छोड़ दिया। :)

1. चित्र-चोरी एवं चित्र उपयोग: करने की तरकीब शास्त्रीजी से सीखें।

2. मतदान: ऊंट के मुंह में जीरा|

3.गुजरात चुनाव के मायने : बताने के लिये जीतेन्द्र ने चुप्पी तोड़ी।

4. मैं कौन हूं? शर्मा या वडनेरकर: ये अंदर की बात है। कैसे बतायें?

5.बथुआ - सर्दियों की स्वास्थ्यवर्धक वनस्पति : रात को न खायें।

6. मौसम से परेशान सब:ये तो जी का जंजाल है।

7. सकारात्मक दृष्टिकोण:दारू पीना अच्छी बात है!

8.गाँठ बांधने का दौर [गठबंधन-1] : ये वाली तो बांध ली और कितनी गांठे हैं।

9.कोई अपना यहाँ : हो तो टिप्पणी करे भाई।

10. पल ने जो उपहार दिया था: वो अब सब सामने आ रहा है।

11.दुनिया भर के लोग औषधीय फसल स्टीविया पर चर्चा कर रहे हैं यहां पर : और यहां किसी को हवा ही नहीं।

12. नंदीग्राम में वामपंथ का पंथ गायब!: दामपंथ थाने में रपट लिखायें।

मेरी पसंद
(जूते चमकाने वाले बच्चों के लिए)

वे जूतों की तलाश में
घूमते हैं ब्रश लेकर
और मिलते ही बिना देर लगाए
ब्रश को गज की तरह चलाने लगते हैं
जूतों पर
गोया जूते उनकी सारंगी हों ।

दावे से कहा जा सकता है कि
उन्हें जूतों से प्यार है
जबकि फूल की तरह खिल उठते हैं
जूतों को देखकर वे ।

जब कोई नहीं होता
चमक खो रहे वे
जूतों से गुफ़्तगू करते हैं।

भरी
दोपहरी में वे
जमात से बिछुड़े जोगी की तरह होते हैं
जिसकी सारंगी और झोली
छीन ली हो बटमारों ने ।


उन्हें बहुत चिढ़ है उन पैरों से
जिनमें जूते नहीं ।

बहुत पुरानी और अबूझ पृथ्वी पर
उस्ताद बुंदू खाँ और भरथरी के चेलों की तरह
यश और मोक्ष नहीं
निस्तेज जूतों की तलाश करते हैं वे।

रचना तिथि-१९-०२-1996

बोधिसत्व

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रविवार, दिसंबर 09, 2007

एग्रीगेटर चर्चा

चिट्ठा चर्चा पर यह थोड़ी अलग टाईप की समीक्षा है. नये स्वरूप में चिट्ठाजगत आप सबने देखा ही होगा. मैंने भी देखा एक ब्लागर के नजरिये से कहूं तो थोड़ी निराशा सी हो रही है. चिट्ठाजगत का जैसा स्वरूप बना है अगर ब्लाग एग्रीगेटरों का यही भविष्य है तो यह न तो एग्रीगेटरों के लिए शुभ है और न ही ब्लागरों के लिए.

आप पूछेंगे मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं? क्या परिवर्तन मुझे स्वीकार नहीं? इन दोनों सवालों का जवाब मेरे पास यही है कि हिन्दी एग्रीगेटरों का वर्तमान स्वरूप जैसा बन गया था वह सहज मांग को पूरा करनेवाला था. अपने-आप में अनूठा तो था ही. अब इतने वर्गीकरणों के बीच चिट्ठे तक पहुंचना और उस तरह गुत्थम-गुत्था में शामिल हो जाना जैसा परंपरागत स्वरूप के कारण होता था, अब संभव नहीं होगा.

चिट्ठाजगत का नया स्वरूप हिन्दी ब्लागिंग के नैसर्गिक स्वरूप को तोड़कर नये तरह की अवधारणा प्रस्तुत करता है जिसके लिए अपनी हिन्दी जमात मानसिक रूप से शायद ही तैयार हो. वैसे तो आरएसएस फीड और न जाने कैसे-कैसे हथियार हैं जिसके जरिए आप अपने पसंद के चिट्ठे तक पहुंच सकते हैं लेकिन फिर भी एग्रीगेटरों की भूमिका खत्म तो नहीं हो जाती? इसी तरह अगर वर्गीकरणों का ऐसा जाल हमारे सामने बिछा दिया जाए तो शायद हम उधर जाना भी नहीं चाहेंगे. कम से कम मेरा मन तो खटक ही गया है. आपकी आप जानें.

एग्रीगेटर चलानेवाले बंधु कहते हैं क्या करें ब्लाग्स बढ़ रहे हैं तो कुछ नया तो सोचना ही पड़ेगा. परंपरागत स्वरूप से काम नहीं चलेगा. आपकी क्या राय है?

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मंगलवार, नवंबर 27, 2007

बोलो कटर कट की जय


ज्ञानजी अपनी इमेज सुधारना चाहते हैं ऐसा मुझे लगा। आज उन्होंने अपनी पोस्ट के आखिरी में लिखा-
हत्या/मारकाट/गला रेत/राखी सावन्त के प्रणय प्रसंग/आतंक के मुद्दे पर लपेट/मूढ़मति फाउण्डेशन की निरर्थक उखाड़-पछाड़ आदि से कहीं बेहतर और रोचक है यह!

लगता है कि वे अपने साथ राखी सावन्त का जिक्र को आधुनिक कार के जिक्र से रफ़ा-दफ़ा करना चाहते हैं। लेकिन आलोक पुराणिक ने अभी अभी फोन करके बताया- सच्चाई तो यह है भाईजी कि ज्ञानजी इस कार में राखी सावन्त के साथ घूमने जायेंगे। लेकिन हम यह सबको बता नहीं सकते। आप भी अपने तक ही रखना।

पंकज बेंगाणी का अभी-अभी जन्मदिन गुजरा। और वे राजा बेटा की तरह एक सफ़लता की कहानी सुनाने लगे-
और यह सबकुछ हकिकत है. आज समाचार पत्र में देसाई के बारे मे पढकर लगा कि यदि इंसान के मन मे कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो कोई भी राह कभी मुश्किल नही हो सकती है. बकौल देसाई उन्होने अपनी चाय की टपरी दस पहले शुरू की, तब उनकी मासिक आय 1500 रूपये के करीब थे और वे इतनी कम आय से जाहिर तौर पर संतुष्ट नही थे. फिर उन्होने चाय की टपरी शुरू की और फिर कभी पीछे मुडकर नही देखा.


अभय तिवारी के व्यक्तित्व के कई हिस्से हो गये। लेकिन वे इधर-उधर नहीं गिरे। सब इसी पोस्ट में समा गये। सबसे ऊपर दिख रहा है नीत्से का यह वाक्य-
राक्षसों से लड़ने वालों को सावधान रहना चाहिये कि वे स्वयं एक राक्षस में न बदल जायं क्योंकि जब आप रसातल में देर तक घूरते हैं तो रसातल भी पलट कर आप को घूरता है..

ब्लाग में ब्लागर में शिवकुमार मिश्रजी ने कुछ मजेदार जुगाड़ी वाक्य लिखे। लेकिन अनूप शुक्ल को ऐसा लगा कि ये उनका ही महकमा है। सो मारे जलन के मिसिर जी के लिखे पर अपनी कहानी लिख मारी। यह जबरियन अपने को आगे दिखाने की छुद्र मनोवॄत्ति से न जाने कब उबर पायेंगे ये मूढ़मति। कभी उबर भी पायेंगे क्या। हमें तो नहीं लगता।

अनिल पुरोहित काफ़ी दिन बाद फिर से लौट कर आये और दनादन शुरू हो गये। पिछ्ली पोस्ट में उन्होंने लिखा-
लेकिन एक बात है कि सफर और दिल्ली प्रवास के दौरान इंसानी फितरत के बारे में काफी कुछ नया जानने का मौका मिला। कुछ मजबूरी और कुछ आदतन होटल में नहीं रुका। हिसाब यही रखा था कि जहां शाम हो जाएगी, वहीं जाकर किसी परिचित मित्र के यहां गिर जाएंगे। हालांकि कुछ मित्रों ने ऐसी मातृवत् छतरी तान ली कि कहीं और जगह रात को ठहरने ही नहीं दिया। फिर भी जिन तीन-चार परिवारों के साथ एकांतिक लमहे गुजारे, वहां से ऐसी अंतर्कथाएं मालूम पड़ीं कि दिल पसीज आया। लगा कि हर इंसान को कैसे-कैसे झंझावात झेलने पड़ते हैं और उसके तेज़ बवंडर में अपने पैर जमाए रखने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है। कहीं-कहीं ऐसे भी किस्से सुनने को मिले, जिनसे पता चला कि दिल्ली के तथाकथित बुद्धिजीवी और क्रांतिक्रारी कितने ज्यादा पतित और अवसरवादी हो चुके हैं।
इसी पोस्ट में सृजन शिल्पी की तारीफ़ भी है लेकिन हम उसे दे नहीं रहे। अपने अलावा किसी की भी तारीफ़ से जल-भुन कम राख हो जाते हैं और राख से लैपटाप खराब हो जायेगा। हमें यह भी डर नहीं कि सृजन गदा प्रहार से हमारा तियां-पांचा कर देंगे।

मामाजी के किस्सों में आलोक पुराणिक का मन रम सा गया है। हमें भी मजा आ रहा है। ज्ञानजी तो फ़रमाइश भी कर दिये-यह मामाजीब्लॉग का डेट ऑफ ओपनिंग पता करें। आलोक पुराणिक आगे किस्साये मामा-मामी बताते हुयेलिखते भये-
एक दौर था, जब पत्रकार हाथ से लिखता था। फिर वह टाइप होता था। हरिद्वार से अगर अर्जैंट मैटर दिल्ली भेजा जाना है, तो प्रेस तार के जरिये जाता था।



प्रेस तार भेजने का सिलसिला यूं होता था कि पहले हरिद्वार का तार दफ्तर उस पूरे मैटर को अपनी मशीन पर लेता था। एक पुरानी मशीन होती थी, जो कटर-कट, कटर-कट की आवाज के साथ चलती थी और मैटर को आत्मसात करती चलती थी।
फिर इस तरह का कटर-कटीकरण दिल्ली के डाक दफ्तर में होता था।
दो बार की कटर-कट के बाद फाइनल कापी अखबार के दफ्तर में पहुंचती थी।
एक दिन अखबार में मामाश्री की भेजी खबर छपी-
कांग्रेस प्रत्याशी के 33 कार्यालय बंद।
कैंडीडेट का तो विकट कटर-कट हो लिया।
भागा-भागा आया मामाश्री के पास –कहां 33 बंद हुए हैं।
मामाश्री ने बताया तीन दफ्तर तो बंद हो गये हैं। मैंने उसी की खबर भेजी थी, मशीन ने तीन नंबर पर दो बार कटर कट मार दिया और तीन का तैंतीस हो गया।
पर कैंडीडेट का विकट कटर-कट हो गया।
बोलो कटर-कट की जय।

चलते-चलते कुछ एक लाइना पेश हैं-
१.टाटा, क्रायोजेनिक तकनीक, हाइड्रोजन ईंधन और मिनी बस : सब राखी सावंत से पीछा छुड़ाने के मासूम बहाने हैं।
२. असली आतंकवादी!: आतंकवादियों को निपटा रहे हैं।
३.ब्लॉग सुधारक च निखारक गीत : लेकिन हम नहीं सुधरेंगे।
४. और यूनिवर्सिटी के दरवाजे सदा के लिये बंद हो गये :बच्चन की जन्मशती पर विशेष तौर पर
५. देश भर में फैलने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की ‘माया’:बातों-बातों में शुरू होती बतंगड़ है यह और कुच्छ नहीं।
६.याद है, तुमहें...:मेरे हंस जाने पर आप ही झेंपना!
७.आंधी ये हकीकत की :ले जायेगी उड़ा कर जाने कहां कुछ पता भी नहीं!
८. एक ओर नया दिन: 'ओर' नहीं 'और'। जो भी हो अब शाम हो चुकी है।
९. गोवा जोगर्स पार्क में खंबे को थामे एक तार अड़ा है:चलो उसे धकिया के गिरा दें और फिर एक पोस्ट और लिखें।
१०. उनसे उपयुक्त भगवान कोई नहीं:हे भगवान, अब तू कट ले इनको चार्ज देकर!
११.तो भई, भड़ास ने भी बात थोड़ी आगे बढ़ाई :फिलहाल इतना ही....बाकी फिर!
१२.गलती हमारी ही थी :अब पछताये होत क्या!
१३. शेख़जी थोड़ी-सी पीकर आइये: वर्ना मजा नहीं आयेगा!
१४.मोबीन भाई और अताउल्ला पेलवान :की पतंगबाज़ी चलती रहती थी।
१५.समकालीन जादुई यथार्थ जी रहा हूं... :क्या यह लाईन ज़्यादा बौद्धिक लग रही है? अब हम अपने मुंह से क्या कहें? क्या गुस्ताख बन जायें!
१६.पिता, समाज और पद-प्रतिष्ठा के मामले में ज्योतिष : बड़े काम की चीज है।
१७. ग्लोबल वार्मिंग: कपड़े उतार कर विरोध : करने से क्या होगा? ग्लेशियर पिघलना बंद कर देंगे?
१८.बच्चन परिवार द्वारिकाधीश के द्वार में : फोटो खिंचा रहा है, अच्छी आई हैं।
१९.खूबसूरत बनने का खतरनाक शगल : बेताल उवाच-सावधान हो जाएं!
२०.फायरफाक्स पर ब्लॉगिंग टूल :ये कौन बोला तुमको लिखने को जी। टाइम खोटी कर दिया।
२१.कृपया पिटारा के संपूर्ण हिंदीकरण में सहायता दें : अपील सुनते ही मुन्ना भाई जमानत पर रिहा।

मेरी पसंद



गर पेच पड़ गए तो यह कहते हैं देखियो
रह रह इसी तरह से न अब दीजै ढील को


“पहले तो यूं कदम के तईं ओ मियां रखो”
फिर एक रगड़ा दे के अभी इसको काट दो।

हैगा इसी में फ़तह का पाना पतंग का।।

और जो किसी से अपनी तुक्कल को लें बचा
यानी है मांझा खूब मंझा उनकी डोर का
करता है वाह वाह कोई शोर गुल मचा
कोई पुकारता है कि ए जां कहूं मैं क्या
अच्छा है तुमको याद बचाना पतंग का ||

(नज़ीर अकबराबादी साहब की ‘कनकौए और पतंग’ का एक हिस्सा)

लपूझन्ना ब्लाग से

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सोमवार, नवंबर 26, 2007

मोको कहां ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में।




आज मिशीगन में पढ़ने वाली प्रिया का ब्लाग पहली बार देखा। उन्होंने अपने परिचय में लिखा है- मैं अभी पढ़ रही हूं। ये मेरी पहली हिंदी क्लास है। इसलिये स्पेलिंग में अभी बहुत गलतियां हैं। उन्होंने आज की पोस्ट में लिखा-
डिज्नी से एक ऐसी फिल्म जिसमे राजकुमारी लड़के को बचाती है। जो सब को संभालती है। यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इससे तमाम लड़का लड़कियों को पता चलेगा कि लड़कियाँ भी लड़ सकती है। सिर्फ दिमाक से ही नहीं बल्की बल के साथ भी। यह एक अपवाद नहीं है।
इसके पहले की एक पोस्ट में अपने मन की बात कहती हैं
मुझे लगता हैं कि मैं कर्तव्य का पालन कर रहीं हूँ। आख़िर बच्चे का भी तो कुछ कर्तव्य बंता है। हम छोटे हो यह बडे जितना कर सकते हैं उतना तो हमे करना ही चाहिए। मैं इस बात से बिल्कुल सहमत नही हूँ कि हमे सिर्फ अप्ना कैरियर सुधारना चाहिए।
यह देखकर अच्छा लगा कि आलोक यहां उनकी स्पेलिंग सुधारने के लिये मौजूद हैं।

कबाड़खाना देखते-देखते यह जानना मजेदार रहा कि दीपा पाठक को सबसे अच्छा लगता है खाली बैठे रहना।

यही खाली बैठना प्रमोदजी से तमाम खुराफ़ातें करवाता है। कभी वे हड़बड़ बेचैनी में अपनी फोटो बनाते हैं और कभी न जाने कैसी-कैसी उत्तर-आधुनिक हरकतें करते हैं।

कल अविनाश ने अपने पुराने दिन याद करते हुये भिखारी ठाकुर की ओरिजनल आवाज़ में उनका काव्यपाठ पेश किया। इस पर इरफ़ानजी की टिप्पणी थी-
भाई आपने तो इतिहास के एक टुकड़े को यहां जीवित कर दिया. बेहद मार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का काम.भूरि-भूरि प्रशंसा की जाने चाहिये आपके इस पॊडकास्ट की. बधाई.


बच्चन शताब्दी के अवसर पर प्रख्यात गीतकार स्व.पं.नरेन्द्र शर्माजी की सुपुत्री लावण्या कुछ अंतरंग यादें शेयर कर रहीं हैं अपनी तेजी आंटी के साथ की।

अनूप शुक्ल को आज कुछ समझ में नहीं आया तो अपनी अम्मा की लोरी सुनाने लगे। बताते हुये-
कभी-कभी बहुत दिन हो जाते हैं कायदे से अम्मा से बतियाये हुए। चलते-चलते गुदगुदी कर देना, गाल नोच लेना और उठा के इधर-उधर बैठा देना चलता रहता है। समय के साथ , तमाम बीमारियों के चलते, अपने अशक्त होने की बात उनको कष्ट कर लगती है। पहले वे हमारे यहां की सबसे एक्टिव सदस्य थीं। इधर उनको काम करने की सख्त मनाही है लेकिन जरा सा ठीक होते ही अपनी तानाशाही फिरंट में शुरू हो जाती हैं।


अम्मा इस बीच हमको आफ़िस जाने का समय याद दिलाकर गई हैं। इसलिये हड़बड़ चर्चा करते हुये कुछ वन लाइनर पेश हैं:-

१.मैं चिट्ठा पुलीस नहीं हूं! : वह तो हमें पता है लेकिन ई बतायें प्रभो कि आप हैं क्या!
२.जीवन मूल्य कहां खोजें? : मोको कहां ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में।
३. आदरणीय को ये, और फादरणीय को वो: अपना हिस्सा बताओ सादरणीय।
४.नारी मन के कुछ कहे , कुछ अनकहे भाव ! :अब तो कह ही दिये न!
५. मेरा पता:सुबह से शाम से पूछो, नगर से गाम से पूछो। मतलब हमसे न पूछो।
६.कोई तो बताये तस्लीमा की गलती क्या है? : ये अन्दर की बात है। किसी को पता नहीं।
७.संगीत का धर्म, सुर की जाति : किसी को पता नहीं है, सब गोलमाल है भई सब गोलमाल है।
८.जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 4 जीवनसाथी मिलने के बाद कोई कुछ करने वाला रहता नहीं क्योंकि इंडिया में मुफ़्त की एड्वाइस बहुत मिलती है।
९. भीड़ से नहीं निकलेंगे शेर जब तक: तब तक उनको पकड़ना मुश्किल है भाई!
१०.मौसेरे भाईयों का दुख- अजी सुनिये तो! : यहां अपना दुख सुनने का टेम नईं है और आप भाइयों का रोना रो रहे हैं वो भी मौसेरे।

११.आखिर वही हुआ... हेमन्त ने कविता पोस्ट कर दी।

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शनिवार, नवंबर 24, 2007

खेद , माफ़ी और मूढ़मतियों का दिन




आज चिट्ठाजगत में खेद , माफ़ी और मूढ़मतियों का दिन रहा। अविनाश ने नाहर के षडयन्त्र का खुलासा करते हुये जानकारी दी- अनूप शुक्ला मूढ़मति हैं। कुछ लोगों ने इस पर एतराज किया लेकिन अविनाश अपने मत पर पक्के रहे। विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि लोगों का एतराज इसलिये था कि अनूप शुक्ला जैसे 'बेअक्ल' को 'कम अक्ल' बताकर अविनाश ने उदारता दिखाई और अनूप शुक्ला की पौ-बारह हो गयी। :)

ब्लाग जगत में एक तरफ़ प्रमेन्द को ये अखरा कि सुनील दीपकजी ने उनसे माफ़ी मांग कर अच्छा नहीं किया वहीं पाण्डेयजी दिन भर निन्ने मुंह 'माउस पांवड़े' बिछाये इंतजार करते रहे कि संजय बेंगाणी आयें और खेद प्रकट करें। संजय बेंगाणी आये भी और सरे आम माफ़ी मांगकर चले गये और पाण्डेयजी की गलतफ़हमी दूर हो गयी। ये होती है चरित्र की ताकत। :)

यही सारे लफ़ड़े देखकर अभय तिवारी सोचने लगे :
मैं लगातार अपने आप से यही सवाल करता रहता था कि मैं इतना बड़ा बेवकूफ़ क्यों हूँ और अगर दूसरे लोग भी बेवकूफ़ हैं, और मैं पक्की तौर पर जानता हूँ कि वे बेवकूफ़ हैं तो मैं ज़्यादा समझदार बनने की कोशिश क्यों नहीं करता? और तब मेरी समझ में आया कि अगर मैंने सब लोगों के समझदार बन जाने का इंतज़ार किया तो मुझे बहुत समय तक इंतज़ार करना पड़ेगा.. और उसके भी बाद मेरी समझ में यह आया कि ऐसा कभी नहीं हो सकेगा, कि लोग कभी नहीं बदलेंगे, कि कोई भी उन्हे कभी नहीं बदल पाएगा, और यह कि उसकी कोशिश करना भी बेकार है। हाँ ऐसी ही बात है! यह उनके अस्तित्व का नियम है.. यह एक नियम है! यही बात है!


वैसे इस माफ़ी-वाफ़ी और वरिष्ठ-कनिष्ठ के लफ़ड़े में आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार का मानना है:-
१. लेखकों को वरिष्ठ और कनिष्ठ के खाँचों में न डालें। लेखक की (प्रकाशित) आयु का लेखन से बहुत कम लेना देना होता है।
२. यदि किसी अन्य द्वारा छेड़े गए विषय पर चर्चा करनी हो तो विषय को संबोधित करते हुए चर्चा करें, लेखक को संबोधित करते हुए नहीं।


अनूप शुक्ल को प्रत्यक्षाजी की पोस्ट कुछ समझ में नहीं आई। समझ में प्रमोदजी को भी उतनी ही आयी जितनी प्रत्यक्षाजी को आई होगी लिखते समय लेकिन वे अपनी समझ और ज्यादा साबित करने के लिये सवाल पूछने लगे-
क्‍या अनूपजी, रसप्रिया गीत समझ में आता है, रसतिक्‍त आधुनिकताभरा बोध नहीं? सठिया आप रहे हैं और बूढ़ा हमको बता रहे हैं? व्‍हाई? पंत के साथ-साथ ल्‍योतार्द और नंदलाल बोस की संगत में कैंडिंस्‍की और मुंच का अध्‍ययन करने से डाक्‍टर ने मना किया था? कि माध्‍यमिक के माटसाब ने? बोलिये, बोलिये!
सवाल सुनते ही अनूप शुक्ला की बोलती बन्द हो गयी। और वे अपने वनलाइनर पेश करने लगे। :)

1. ये रहा नाहर के षड्यंत्र का खुलासा!: अनूप शुक्ला मूढ़मति हैं।
2.यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र न हो --- : तो काम नहीं चलेगा। चलिये संजय बेंगाणी जी खेद प्रकट करें। :)
3. वरिष्‍ठ चिट्ठाकारों से एक अनुरोध: माफ़ी मांगकर शर्मिन्दा न करें।
4.मैंने अपनी प्रेमिका से झूठ बोला है : सबको बोलना पड़ता है। इसमें कौन नयी बात है?
5. सभी चिट्ठा भाईयों से विनम्र प्रार्थना.....:पिछले दो दिनों से जो चल रहा है वह ठीक नहीं है, यह सब बंद होना चाहिए!
6. मनुष्य हर पल बदल रहा है..:इसी बीमारी के चलते नक्सल आंदोलन के अठहत्तर फाँके हो गईं।
7. राह दिखाती है भूल-भुलैया:इसी बात पर चलें कौनहारा....सोनपुर मेला घूम आएं
8.सल्‍फर का रोगी चीथड़ों में रहकर भी खुद को धनवान समझता है : धनवान बनने का सबसे सुगम उपाय, सल्फर का रोग पालें।
9. लेखकीय अधिकार से लिखें अनुयायी बनकर नहीं:वर्ना पाठक न मिलेंगे।
10.एकता बड़े काम की चीज :सही है। यही लिये एकता के सीरियल चल रहे हैं।
11.जब नर तितलियां ले जाए प्रणय उपहार : तो मादा तितलियां कहें लाओ जल्दी देर मत करो यार!
12. ये है सभ्य ब्लागर हिंदी समाज : जो आपस में मां-बहन करता है।
13.मैं कैसे पढ़ूं:जैसे सब पढ़ते हैं।
14.यह समय है धान से धन कमाने का न कि उसके नुकसान के दुष्प्रचार का : वैसे भी अफ़वाह फ़ैलाने वाले देश के दुश्मन होते हैं।
15.कहां गायब हुए वो लोग :सारे गायब हुये लोग बतायें।
16.मैं इस घर को आग लगा दूंगा :क्योंकि हम इश्क में बरबाद हो गये। फ़ायर ब्रिगेड बुला लो।
17.मोबाइल पर फोकट में बात होगी :जिसका मुझे था इंतज़ार ....जिसके लिये दिल था बेकरार...वो घडी आ गयी....आ गयी..|
18.सही जगह पर होना जरूरी :चलिये पहुंचिये अपनी जगह पर।
19.ओह ब्लेम इट ऑन द डीएनए बडी :रानी मधुमक्खी बैठी है अपने छत्ते के बीच में ।
20.बर्गर की तरफ, गद्दे की तरफ :कौन उतारे अपनी आफीशियल ड्रेस, जब सामने हो अलां-फलां मेट्रेस।
21.दो घंटे में ही चार मेंबर बने, संख्या पहुंची 54 : अब इसे एक बार फिर से बंद किया जाये क्या। :)

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मंगलवार, नवंबर 20, 2007

खेत खायें गदहा, बांधें जायें कूकुर!



पाण्डेयजी कल कार की बात किये थे। आज साइकिल पर उतर आये। यही हो रहा है अपने देश में। बात खेत की करेंगे अगले क्षण खलिहान में मिलेंगे। अनीताजी को कौनौ दोस्त नहीं मिला तो किताबों से बोलीं-मुझसे दोस्ती करोगी। लुच्चई करें
आलोक पुराणिक और डंके की चोट कहें भी लेकिन भाई लोग हमको बता देते हैं वही जो आलोक पुराणिक कहते हैं। इसे कहते हैं खेत खायें गदहा, बांधें जायें कूकुर!

कहां तक सुनायें यार! ये देखो आज की परसादी।

१. कहां से कसवाये हो जी! पांड़ेजी की दुकान से। ऊहां सब कसता है, फोटो सहित।
२. थर्टी परसेंट बनाम हंड्रेड परसेंट: जोड़ लेव दोनों मिलाकर एक सौ तीस हो गया।
३. ब्लॉग समाज के सदस्यों से अपील- सचिन को रास्ता दिखाये: इंडिया में मुफ़्त के रास्ते दिखाने वाले बहुत मिलते हैं।
४.
लाल झंडे का असली रंग
:...हे प्रभु जी, बचालो !!!!!
५.मधुमेह, विस्तृत रपट और नये अनुभव : मधुमेही होइये आइये फ़िर आपका इलाज करें।
६.कादम्बिनी में भड़ास :अभी तक बची है!
७.नैनीताल पहली बार :सन ८२ में याद अभी तक है।
८.तो :आप किताबों से दोस्ती करना चाहती हैं। करिये!
९. सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं.....:हर हंगामेबाज यही कहता है।
१०. ब्लाग पर त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाने वालों का आभार:लेकिन अब मैं उनको ठीक कर दूंगा।
११.उसे सामने लाओ ज़रा :इधर कबाड़खाने में।

आज की टिप्पणी:
1.बहुत बढ़िया है जी। आलोक पुराणिक का सिर्फ चश्मा नहीं, वो तो समूचे ही लुच्चे हैं जी।
सही पकड़ा है जी।
इसे रेगुलर क्यों नहीं करतेजी।
कम से कम साप्ताहिक तो कर ही दीजियेजी। आलोक पुराणिक

2.

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सोमवार, नवंबर 19, 2007

लुच्ची नजर, चुनिंदा नजारे- चश्मा आलोक पुराणिक का



अभय तिवारी की तमाम हसरतें पूरी होने को बेचैन रहती हैं। कानपुर में मिले तो बताइन कि उनके कोट पहनने की तमन्ना अधूरी रह गयी। एक दिन पाण्डेयेजी के ब्लाग में बोले -आप फ़ीड पूरी नहीं देते, आप तो ऐसे न थे। और आज सबसे नया दुखड़ा उनका यह सुना कि मनीषाजी ने उनको जीजू न कहा कभी। मनीषाजी ने तड़ से उनकी मांग पूरी कर दी यह कहते हुये:
अरे अभय, मुझे नहीं पता था कि आप इस बात को लेकर सेंटी हो जाएंगे। अभी भी क्‍या बिगड़ा है, अभी बुलाए देती हूं, जीजू। ठीक ना.....
वैसे अभय बोलना ज्‍यादा अच्‍छा लगता है। लगता है बड़ी हो गई हूं, बड़े लोगों के बराबर। इतनी कि सबको नाम लेकर बुलाती हूं।
लेकिन जीजा जी से यह न हुआ कि शरमाते हुये शुक्रिया कह दें।

इस बीच पुनीत ओमर जो हमारे कान्हैपुर के हैं ने पूना के किस्से लिखने शुरू किये हैं। आज उन्होंने पूना डायरी के किस्से बयान किये-
आसमानी रंग की सलवार, सुर्ख गुलाबी रंग का बूटी दार कुर्ता, और उसपर आसमानी रंग का ही दुपट्टा जिसपर हलके गुलाबी रंग के सितारे जड़े हुए हैं। अपने लंबे खुले बालों को आगे की ओर कुछ इस तरह से डाला हुआ है मानो की जैसे कुछ छिपाने की कोशिश हो. एकदम रंग पर जाती बिंदी, लंबे झुमके, और घुंघरू वाली चूडियाँ आसमानी-गुलाबी के इस "परफेक्ट गर्ली कौम्बीनेशन" पर और भी गजब ढा रही थीं.
आगे हम क्या बतायें। आप खुदै बांच लो।

कल पांडेयजी इतवार के दिन कोर्ट पहुंच गये और आज कार बनाने लगे। जुगाड़ू वाहन है यह।

सागर कभी रहे होंगे बात-बात पर टीन-टप्पर की तरह गर्म हो जाने वाले। लेकिन आजकल बड़े ज्ञानी हो गये हैं। पुलकोट लगाने का तरीका सिखाया कल। जिसे ज्ञानजी अमल में भी ले आये।
नीचे के एक-लाइना बांचने के पहले अर्चनाजी का ये पहला पाडकास्ट सुनेंगे!
आसमानी रंग की सलवार, सुर्ख गुलाबी रंग का बूटी दार कुर्ता, और उसपर आसमानी रंग का ही दुपट्टा जिसपर हलके गुलाबी रंग के सितारे जड़े हुए हैं। अपने लंबे खुले बालों को आगे की ओर कुछ इस तरह से डाला हुआ है मानो की जैसे कुछ छिपाने की कोशिश हो|
1.: इस पर भी न काम बने तो धीरे से दायरा बढ़ा लें|
2.
सवाल नंदीग्राम ही है..: सवाल तो समझ गये लेकिन जवाब क्या है?
3.लड़की की दिखाई रवीश कुमार के ब्लाग पर हो रही है।
4.ओह! तो अब ताजमहल नहीं रहेगा... अच्छा तो आप उस लिहाज से कह रहे हैं।
5. दुनिया के 200 अच्छे विश्वविद्यालयों में एक भी भारत का नहीं है: का जरूरत है। वहीं जाके पढ़ लेंगे।
6.बस जिये जाना! :अभय तिवारी ने नितान्त मूर्खता में ऐसा सोचा है।
7.बढ रहा देह व्यापार :और बड़ी तादाद में लड़कियां इस कारोबार की आ॓र आकर्षित हो रही हैं।
8. "भारत एक बिकाऊ और गया गुज़रा देश है, ये सच है": आओ इस सच को झुठला दें! एक पोस्ट लिखकर!
9.अपने लेख को अखबारी लेख की शक्ल दें : कौन से अखबार की शक्ल दें? फ़ुरसतिया टाइम्स!
10. आज रात होगी उल्का पिण्डों की बारिश:सबेरे उठकर बटोर लेना!
अभय तिवारी की तमाम हसरतें पूरी होने को बेचैन रहती हैं। कानपुर में मिले तो बताइन कि उनके कोट पहनने की तमन्ना अधूरी रह गयी। एक दिन पाण्डेयेजी के ब्लाग में बोले -आप फ़ीड पूरी नहीं देते, आप तो ऐसे न थे। और आज सबसे नया दुखड़ा उनका यह सुना कि मनीषाजी ने उनको जीजू न कहा कभी।

11. खिचड़ी उपदेश कुशल बहुतेरे: जे बनावहिं ते ब्लागर न घनेरे।
12. क्या सारथी एक खिचडी चिट्ठा है?: हां , लेकिन बीरबल कहां निकल लिये!
13.हार का जश्न:हार के बादशाह ने महाशक्ति पर मनाया!
14.$2500 की कार भारत में ही सम्भव है!(?) : हम हर सम्भव को असम्भव बना देंगे।
15.लुच्ची नजर, चुनिंदा नजारे : आलोक पुराणिक के चश्मे से देखो। न दिखे तो बताओ, टिपियाओ।
16.क्रांति से ईश्वरों की गुहार : फ़ायर-फ़ाक्स पर दिखती नहीं हो जी!
17. कोहरा या अम्बर की आहें !: ये क्या है जरा देखकर बतायें, मुझे दिख नहीं रहा है पांच मीटर से।
18.सिसकते भाव : खिसक गये कोहरे में।
19. यात्रा ए हवाई: आइये तीसरी बार यात्रा पर चलें।
20.ब्लागिंग के साइड इफ़ेक्ट… : साईड इफेक्ट्स….और वाईड इफेक्ट्स तो इतिहास तय करेगा आप तो मौज लीजिए|

आगे अब आपके लिये छोड़ दिया मौज कीजिये। मौज लीजिये। जरा सा मुस्कराइये देखिये कित्ते हसीन लग रहे हैं आप। ये भी ब्लागिंग का एक साइड इफ़ेक्ट है।

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शुक्रवार, नवंबर 16, 2007

हिन्दी का पहला ब्लॉग गीत और ब्लॉग गान...

आज जब ये ब्लॉग गान पढ़ने में आया तो हिन्दी का पहला ब्लॉग गीत याद आ गया.

ब्लॉगिंग बिना चैन कहाँ रे....

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शुक्रवार, अक्तूबर 26, 2007

कितने निर्मम और निराले हैं राजनीति के खेल!

पुरानी रामलीला नया अंदाज
हमें पता ही न था कि अनिल रघुराज का नाम अनिल सिंह है। सच में। यह बात हमको पता चली आज बेवदुनिया में छपे उनके ब्लाग के परिचय से। अभी उनकी पहली कहानी भी अभिव्यक्ति में छपी है। आजकल उनका लेखन धड़ल्ले से चल रहा है। सबेरे कुत्ते का ब्रह्मज्ञान दिया तो शाम को स्टिंग आपरेशन का स्टिंग आपरेशन किया यह कहते हुये-
तहलका के जिस रिपोर्टर आशीष खेतान ने संघ परिवार के दंगा सेनानियों से बात की, उसने उन्हें बताया कि वह खुद हिंदूवादी है और हिदुत्व के उभार पर शोध कर रहा है। सारे सेनानियों को पता था कि वह एक ऐसे शख्स से बात कर रहे हैं जो इस जानकारी का कहीं न कहीं इस्तेमाल करेगा। तकनीक के जानकार लोग बताते हैं कि स्टिंग ऑपरेशन में जुटाई गई फूटेज की ऑडियो-वीडियो क्वालिटी देखकर यही लगता था कि खुलासा करनेवालों को खुद पता था कि उनकी बातों को रिकॉर्ड किया जा रहा है। उफ्फ, ये राजनीति कितनी बेरहम और जालसाज़ है!!


इस कलंक आपरेशन के बारे में राजेश कुमार का मत है कि
जो भी आज तक ने दिखाया वो अधूरा सच था और आधा सच कई बार झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होता है।
उनकी यह चिंता भी है कि ऑपरेशन कलंक कहीं टीवी पत्रकारिता के लिये ही कलंक न बन जाये।

आज प्रत्यक्षाजी का जन्मदिन था। उनके बारे में लेख यहां पढिये। बधाई दीजिये। :)

पुरानी रामलीला नया अंदाज देखिये पल्लव क. वुधकर के चाय चिंतन में।

एक लेख जो कि अभी छपने वाला है का शीर्षक है बेटियों की जिस्मफरोशी से जिंदा समाज|

१.दो प्रजातियों में बंट जाएगा इंसान : एक ब्लागर दूसरा नान-ब्लागर!

२.कितने निर्मम और निराले हैं राजनीति के खेल! : और बहौत पापुलर भी हैं।

३.रिमोट के कुछ और करीबी इस्तेमाल : अपने रिस्क पर अपनायें, दूर से बता रहे हैं।

४. लोग अपराधी क्यों बनते हैं:यही पता चल जाये तो क्या बात है!

५. आप इसे देख कर हस पड़ेंगें: फिर सोचेंगे बेफिजूल हंसे।

६.चाणक्य नीति:मुर्गे, कुत्ते और कौवे से गुण ग्रहण कर :इसके बाद अपने ब्लाग् में पोस्ट करें।

७.जब फूलों को देखने के लिए पैसे देने होंगें : जबकि भौंरे बिन पैसे मजा मारेंगे।

८.सबूत लपेटकर फांसी पर लटकाया : ताकि सनद रहे।

९.कौन बनाएगा मीडिया का कोड ऑफ कंडक्ट : बोलो,बोलो कुछ् तो बोलो!

१०.काम के हिंदी फीड : हमारे किस काम के?

११.दोस्ती और विश्वासघात में अन्तर होता है : इसीलिये अलग-अलग तरह से लिखा जाता है।

१२.फीड एग्रेगेटर - पेप्सी या कोक? : कुछ भी हो अति सर्वत्र वर्जयेत!

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गुरुवार, अक्तूबर 25, 2007

अंग्रेजी न् जानने का अर्थ खुदकशी है!

चिट्ठों की बात् करने के पहले कुछ समाचार सुर्खियां:-
१. अमर उजाला कानपुर् की खबर है -हत्यारे हदस गये। कल कुल् साठ लोगों को उम्रकैद् की सजा सुनाई गयी। इसमें उप्र के बहुचर्चित मधुमिता हत्याकांड के आरोपी, पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और् उनकी पत्नी भी शामिल् हैं। १५ उन लोगों को भी उम्रकैद् मिले जिन्होंने सन १९९२ में अयोध्या का विवादित् ठांचा टूटने के बाद् कानपुर् में हुये दंगों में ११ लोगों को जिन्दा जला दिया था।

२.स्काटलैंड में एक भारतीय मूल के व्यक्ति को किसी ने अंग्रेजी न बोलने पर वर्ना गर्दन उड़ा देंने की धमकी दी। कोर्ट ने धमकी देने वाले को तीन् माह् की सजा सुनाई।

३. पोलैंड् में हिंदी के प्रति जबरदस्त् झुकाव।

४.अंतरिक्ष में एक् गर्भवती तिलचट्टी मां बनी।

५.अंग्रेजी न् जानने का अर्थ खुदकशी है।

ये जो अंतिम् समाचार है वह एक् लेख का शीर्षक है। इसी मुद्दे पर कल आशीष कुमार के ब्लाग पर बरखा दत्त का एक विचारणीय् लेख पढ़ा । इसमें बताया गया है कि किस तरह एक् टापर बच्ची को एक अंग्रेजी स्कूल् में दाखिले से मना कर दिया गया क्योंकि उसका अंग्रेजी उच्चारण् ऐं-वैं टाइप् था। बालिका ने उसे चुनौती के रूप् में लेते हुये दूसरे स्कूल् में दाखिला लिया यह् तय करते हुये-
लेकिन आहत होने का किंचित भी आभास दिए बगैर उसने दृढ़ता से कहा कि अब तो उसका लक्ष्य दिल्ली पब्लिक स्कूल को यह बताना मात्र है कि वह अपने किसी भी विद्यार्थी से बेहतर हो सकती है।


कल् बीबीसी में शशिसिंह् का हिंदी ब्लागिंग् के बारे में छपा लेख भी हिंदी ब्लागिंग् के लिये उल्लेखनीय् घटना है। इसमें शशि ने लिखा-
जानकार मानते हैं कि इंटरनेट के तेज़ी से हो रहे विस्तार में हिंदी चिट्ठाकारों का उज्ज्वल भविष्य छिपा है क्योंकि अब नेट पर अंगरेज़ी का एकछत्र राज नहीं रह गया है.

शब्दों का सफ़र वाले अजित वडनेरकर् को हम शब्द् चौधरी कहते हैं। बहुत् जल्द् ही अपनी पोस्टों का दूसरा शतक् पूरा करने जा रहे अजितजी ने एक् नयी योजना के बारे में आपकी राय् मांगी है। वे कहते हैं-
'सफर' पर एक नई पहल कर रहा हूं। इसमें हर हफ्ते एक शब्द पहेली होगी जिसमें आपको एक शब्द का रिश्ता दूसरे से बताना होगा। आधार धातु , ध्वनिसाम्यता अथवा अर्थ साम्यता - कुछ भी हो सकती है। मुझे लगता है कि 'सफर' को आपकी हरी झण्डी तो मिल चुकी है। आपका जुड़ाव भी इससे हो चुका है ऐसा मैं मानने लगा हूं। कई साथी यह ज़ाहिर भी कर चुके है। गुज़ारिश है, ये प्रयास कैसा लगा ज़रूर बताएं । ये सिर्फ आपके लिए है। आपकी प्रतिक्रियाओं से यह अनुमान मैं लगा सकूंगा कि इसे जारी रखना है या नहीं।
इस् पर् रविरतलामी हमारे मन की बात अपनी टिप्पणी करते हुये कहते हैं-
हमारे ज्ञान की पोल खोलती पोल तो वाकई लाजवाब है. और इस सफर को समाप्त करने का मन न बनाएँ अब कभी भी नहीं तो हमें बहुत सफ़र होगा. यदि किसी हिन्दी चिट्ठे को मैं हमेशा जिन्दा देखना चाहूंगा, तो वो यही होगा - शब्दों का सफर.


आई.आई.टी. कानपुर् से अपनी पी.एच्.डी. कर रहे अंकुर् वर्मा ने भी आखिरकार् अपना चिट्ठा शुरू कर् ही दिया। नाम् है-
निंदा पुराण्। शुरुआत् नैनो टेक्नालाजी से करते हुये उन्होंने लिखा-
नैनोटेकनोलॉजी के बारे में सर्वाधिक प्रचलित भ्रांतियों में से एक है कि नैनोमीटर में होने वाली सभी क्रियायें नैनोटेकनोलॉजी के अंतर्गत आती हैं जो कि वास्तविकता से कोसों दूर है | दरअस्ल जब हम किसी वस्तु का आकार छोटा करते जाते हैं तो एक आकार के बाद उसके किसी विशेष गुण जैसे कि रंग, चुम्बकीयता, वैद्युत अथवा रासायनिक गुणों में अनियमित बदलाव देखने को मिलता है यदि इसी अनियमितता का प्रयोग करते हुए एक टेकनोलॉजी विकसित की जाती है तो उसे नैनोटेकनोलॉजी कह सकते हैं | लघुरूपण (miniaturization) मात्र ही नैनोटेकनोलॉजी नहीं है |


अनिल रघुराज् की कहानी अभिव्यक्ति में छपी है। अब् वे फ़क़त् हिंदुस्तानी ही न् रहे। कहानीकार भी गये हैं। देखिये कैसी है कहानी! बतायें।

कुछ् समय पहले मैंने शहीद् चंद्र्शेखर् के बारे में बताया था। उनकी मां के खत भी पढ़ाये थे। अनिल् रघुराज् शहीद् चंद्र्शेखर् की मां के उद्गार् बताते हैं-कभी-कभी तो मुझे अपने बेटे की हत्या में पार्टी का हाथ नजर आता है।

फिलहाल् इतना ही। आप् भी सतोंषम् परमम् सुखम् मानकर खुश हो लें।

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