शनिवार, जून 30, 2007

यह चिट्ठाचर्चा है अनदेखा न करें !!

शुक्रवार के सारे चिट्ठे यहाँ देखें अब तलक न देखे हो तो ।
चिट्ठाजगत को सरकते हुए लोग बाग परीक्षण पोस्ट डाल रहे है और हम देख रहे है कि देखें कि अनदेखा कर दें । खैर यह तो सिद्ध हुआ कि जहाँ किसी किसी पोस्ट को केवल 2-3 हिट्स पर संतोष करना पडता है वही परीक्षण पोस्ट उससे ज़्यादा कमाऊ पूत है । पंगेबाज़ इसे लेख हिट करने के तरीकों में शामिल करें । J
कौन बनेगा राष्ट्रपति पर हमरा धोबी भी राय देने लगा है । उसकी अतरात्मा की आवाज़ है कि अगला राष्ट्रपति गोविन्दा को बनाना चाहिये । विस्फोट पर बिल्लू जी को राष्ट्रपति बनाने की कवायद चल रही है । कौन बिल्लू ?

वही अमेरिकवाला. बिल किलिंटन, पहले अमेरिका भी तो कितना अच्छा चला चुका है. तबियत का मस्त है और यहां आता-जाता भी रहता है।

एक गुलाब दिखा रा.च. मिश्र जी ने जिसे कैमर मे कैद किया है । पर भैय्ये , गुलाब की लाली के पीछे इत्ती सारी तकनीक है कि सर चकरा गया ।


प्रस्तुत चित्र मे Center AF फ़ोकसिंग विधि का प्रयोग किया गया है, Background मे अधिक रोशनी होने के कारण Spot Metering और Auto Settings वांछित परिणाम देने की स्थिति मे नही थे इसलिये CCD की संवेदन शीलता बढ़ाकर (४०० ए एस ए या आइ एस ओ) Flash (Slow Sync Mode) के साथ संतोषजनक परिणाम
प्राप्त हुए।
उधर मसिजीवी लौंडपने से बाज नही आ रहे है और ‘मेट्रोटाइम रीडर ‘ खरीद अपने झोले के सुपुर्द कर दी है । झोले में गूगल और ट-टा प्रोफेसर का घालमेल वही देखिये जाकर ।
विडम्बना पर जे सी फिलिप लिख रहे है -

उनके घर से करोडों बरामद हुए,पर वे बेफिकर हैं.यह तो सिर्फ बचाजूठन था.
हमने भी बुध बाजर मे रिलायंस वालो की एक रेह्डी देखी थी ।इसलिए प्रतीक की चिंता सही नज़र आती है कि


कल को रिलायंस मोची के काम में भी सेंध लगा सकता है। पता चला कि जूते सीना और पॉलिश करना पचास हज़ार करोड़ रुपये का बाज़ार है।
अड्डा शब्द मे निहित नकारात्मक बोध के बावजूद वह प्रिय स्थल हो सकता है । पढें मनोज सिंह को रचनाकार में --


चिंता न करें। यह पढ़ने-लिखने का अड्डा है, जहां मुझे अकेले रहने में मजा आता है।

वैसे नारद भी हम चिट्ठाकारों का अड्डा ही तो है ।क्यों?
सुबह –सुबह आजकल की स्नान -लीला पर ऐतिहासिक विकासवाद की कथा बांच कर संजय जी आज सो रहे हैं ।

नहाना अब केवल नहाना ही नहीं रहा, एक विधिवत किया जाने वाला कर्मकाण्ड हो गया है. विश्वास नहीं होता होतो पढ़ जाइये.
दृश्य एक, सरोकार अलग अलग. कैसे हो जाते है पढिये टूटी हुई बिखरी हुई मे ।
रमा द्विवेदी से सीखिये प्रेम में लहलहाना --


प्रेम पाना चाहते गर गुनगुनाना सीख लो।


प्रेम में झूमो तुम ऐसे लहलहाना सीख लो॥


मन की बातें घुघुती जी की सुन्दर कविता में ।यह मन है क्या ? खैर जो भी है बडा बलवान है --



अपने अन्तः की तेरे मन से


कितनी बातें कर आता है ,


जा पास तेरे, तेरे मन की


कितनी बातें सुन आता है




आज दिन भर की पोस्टे पढ कर यदि थक चुके हो और सैटरडे नाइट मनाने लेट नाइट शो देखने का मन हो तो असलियत जान लीजिये प्रत्यक्षा जी से ।

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बुधवार, जून 27, 2007

बदलते ईंधन (?) का असर

अब हुआ कुछ यूँ कि ऊद़्अनतश्तरी के फ़्यूल टेंक में प्लाज्मा की कमी होने के कारण वातावरण के हितेषियों की बात सुन कर e-85 का ईंधन डालागया. टैंक को पूरा भर दिया गया ये बिना सोचे कि आखिरकार E-85 में एल्कोहोल की मात्रा ही अधिक होती है. बस यही कारण था कि जो सन्देश वहाँ से चल कर आया वो यों था

निनाद गाथा के इज़हारे चिन्तन को सुन कर बस एक घटा रो गई.
रचनाकार ने दर्द के मारे कोई भी रचना करने से इंकार कर दिया और हम कुछ भी देखने सुनने से वंचित रह गये जो परीक्षण का प्रतीक था वह पर्यावरण के रंग में घुल गया

बाकी जोकुछ है वो नारद जी की वीणा में समाहित है

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मंगलवार, जून 26, 2007

उंगलियां गिन न पाईं कभी एक पल

कुछ चिट्ठे हैं एक दिवस मेंदस दस पोस्ट किया करते हैं
दुरुपयोग है संसाधन का ऐसा कुछ मुझको लगता है
और व्यर्थ के जो विवाद का झंडा लेकर घूमा करते
उन चिट्ठों की चर्चा से मेरा यह कुंजीपट बचता है
उंगलियों ने मेरी थाम ली तूलिका, चित्र बनने लगे हर दिशा आपके
चूम ली जब कलम उंगलियों ने मेरी नाम लिखने लगी एक बस आपके
पांखुरी का परस जो करेम उंगलियां, आपकी मूर्ति ढलती गई शिल्प में
किन्तु गिन न सकीं एक पल, उंगलियां जो जुड़ा है नहीं ध्यान से आपके
--


जो मुझको चर्चा के काबिल लगे, उन्ही की है ये चर्चा
मुझे विदित है कुछ पाठकगण मुझसे यहां असहमत होंगे
पर खयाल है अपना अपना औ; पसन्द भी अपनी अपनी
जो मैने देखा उससे कुछ भिन्न आप निश्चित देखेंगे


पीएचडी न मिले न सही, शोध पत्र तो लिख डाला है
फ़ुटपाथों पर संडे को देखें क्या क्या मिलने वाला है
मदन मोहन की मादक धुन को सुनिये आप यहां पर जाकर
कोई कल्पना के अंबर में आज पुन: उड़ने वाला है

बात चली जब उड़ने की तो उड़ी गगन में उड़नतश्तरी
रसभीनी संध्या यादों की, मिलने के पल रँगी दुपहरी
जल-प्रपात के दॄश्य सजाकर रखे हुए चिट्ठे पर लाकर
गीतकार की कलम,एक बस मुक्तक पर जाकर है ठहरी

जातिवाद के, क्षेत्रवाद के अनुभव हैं काकेश बताते
ई-पंडितजी पाडकास्ट की गहरी गुत्थी को सुलझाते
रचनाकार कहानी लेकर नई नई अवतरित हुआ है
वानर-सेना की बातों को पंकज बेंगाणी बतलाते

सुनिये सड़कें क्या कहती हैं मस्ती की बस्ती में जाकर
दिनचर्या को देखें कैसे होती आप यहाँ पर आकर
दिल के दर्पण में आशा के साथ निराशा भी दिखती है
लुभा रहे रंजन प्रसाद जी टूटे हुए शब्द बिखराकर

पल भी जब अनंत हो जाते, शब्द भ्रमित करते रहते हैं
क्या होगा ? बस इसी सोच में अब प्रतीक उलझे रहते हैं
कुछ चुनौतियों वाले पढ़िये याहाँ उद्धरण, आप क्लिक कर
बढ़ी भीड़ में कैसे कैसे दिल्ली के वासी रहते हैं

अपने मैं को हैं तलाशती, यहाँ साध्वी रितु रह रह कर
शीत लहर ऐसे भी आती, पढिये सुन्दर एक कहानी
टुटी हुई और बिखरी सी यादें लाये हैं सहेज कर
वह संगीत बिना नामों के दुनिया थी जिनकी दीवानी


दिल की बात रह गईं दिल में और नहीं कुछ हम कह पाये
ऐसा ही था कोई कारण, इसीलिये मैं मौन रह गया
बाकी चिट्ठे आप जानते नारद पर सारे हैं हाजिर
आप वहाँ जाकर पायेंगे, क्या कुछः कैसे कौन कह गया

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रविवार, जून 24, 2007

तो यूं हुआ अल्लाह और शिव के बीच संवाद

हिंदी ब्लॉगिंग अब धीरे धीरे युवा हो रही है ! यहां विवाद भी हैं , संवाद भी हैं ! सपने हैं अपने हैं , तकरार है , कटाक्ष है , कराह है –भक्ति ,धर्म, आध्यात्म, विज्ञान , सामाजिक सरोकार ,अपील, प्रेम, लालित्य मौसम क्या है जो यहां नहीं है! आज से सौ वर्ष पहले जब हिंदी साहित्य अपने नए रूप में जन्म ले रहा था तब भी यही महत्वपूर्ण था कि लिखा जाए , खूब लिखा जाए ! आचार्य द्विवेदी उस समय के लेखकों से कहते हैं कि ---चींटी से लेकर पहाड तक , मनुष्य से लेकर निर्जीव तक सब पर लिखा जा सकता है –आज हिंदी चिट्ठाजगत भी मानो इसी रास्ते पर चल रहा है और विषयगत विविधता इसे बचपन से यौवन की दहलीज पर ले जा रही है ! अस्तु ! यहां हमें कल के चिट्ठों की चर्चा करनी है सो यहां देखॆं कि कल क्या लिखा गया !

इयत्ता में बारास्ता मसिजीवी और अतानु डे बताया है कि असल फुरसतिया कौन है जरूर पढें ! रचनाकार मॆं अंतरिक्ष में अस्तित्वहीनता पर वैज्ञानिक नजरिऎ से लिख गया लेख प्रस्तुत किया है रवि जी ने ! रचनाकार के माध्यम से रवि जी के सारे प्रयास हिंदी ब्लॉग के गहरे हित की सोच को प्रकट करते हैं ! चक्रधर की चकल्लस मॆं एक नन्हीं बच्ची के पिता की मृत्यु को उसकी ही वाणी में कहा गया है ! लाल्टू जी के यहां कवि मोहन राणा की सिर्फ तस्वीरों को देखा जा सकता है टिप्पणी में उडन तश्तरी ने आग्रह किया है कि अब कविताएं भी सुनवाई जाएं ! अजदक वाले प्रमोद जी ने नेम ड्राप करने की प्रवृत्ति और बकरी द्वारा लॆंडी गिराने में अद्भुत साम्य दिखाया है क्या यही साम्यवाद तो नहीं प्रमोद जी ;) !


लेकिन कभी-कभी यह भी होता कि यह सधी सारंगी थोड़ा अनियंत्रित होकर फैल जाती.. बकरी की लेंड़ी की पट्-पट् की जगह- गाय के छेरने के कड़क-पड़ाक-ठां-डिड़ि‍क-ठेर्र का सुर प्रभावी सुर हो जाता.. और माहौल फिर तो एकदम ही बसाइन हो उठता.. लोग चौंकन्‍ना होकर जयराज को गालियां देने लगते.. तब उसे भी अंदाज़ हो जाता कि आज नेम ड्रॉपिंग थोड़ी ज्‍यादा हो गई..
अफलातून जी ने जीना से मिलवाया है आप भी मिलें ! जिंदगी के ख्वाबों का चेप्टराइजेशन लावण्या जी के चिट्ठे पर किया गया है ! जिंदगी में मरकर मजा लेने का हुनर-- यह सुभाष जी के चिट्ठे पर जाकर ही मालूम होगा ! उत्‍तराखंड के चिट्ठे पर इतनी पोस्‍ट हैं कि क्‍या बताएं, बस जाकर देख लें।

सुनीता विलियम्स का यान मोदी विरोधी खेमे में क्योंकर गिरा जीरो कॉलम में विचारा गया है जबकि भारत रत्न किसे व क्यों मिले पर थोडा चिंतन भानुमति के पिटारे से निकला हुआ भी देखनीय है ! राजेश रोशन जी के यहां सुनीता जी और भारत रत्न पर विचारा गया है! मसिजीवी जी के चिट्ठे पर आप जाऎगे तो जान पाऎंगे कि हम सब में से कौन हैं मंगलू –पग्गल और कौन हैं नॉनमंगलू – नॉनपग्गल ! यहां तो आप जरूर जाऎं! यदि आप इन नामों से नवाजा जाना पसंद नहीं करते तो अमित जी के चिट्ठे पर जाना न भूलें !
वोट डालकर ताज को बचाएं तो जरूर पर कामरान परवेज जी को भी पढ लें ! सुषमा कौल जी द्वारा सामान्य ज्ञान की क्लास लगाई गई है अटेंड करना न भूलें ! और यदि क्लास के बाद समय बचे तो दीपक बाबू को समझ आऎं कि शाश्वत प्रेम क्या होता है ( वैसे डर वाली बात है क्योंकि वे कह रहे हैं कि ‘पहले’ समझाओ कि शाश्वत प्रेम क्या होता है यदि समझा दिया फिर ? ) ;) माइ हिमाचल में शर्मा जी स्त्री- सशक्तिकरण के नए पहलू को दिखा रहे हैं ! जबकि कमल शर्मा जी मनी के जादू को दिखा रहे हैं शेयर वेयर मॆं मन रमता हो जरूर पढें!
और जाते जाते भोजपुरी में अल्लाह—शिव संवाद को सुनें और हो सके तो गुन भी लें ! और यदि भूखे पेट भजन -गुनन - मनन न हो रहा तो समीरलाल जी के घर फलाहारी दावत पर हो आएं -

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गुरुवार, जून 21, 2007

एक फुलकी खुश्बु है, कीसी दीलकी जुबानी है


कोई मलयाली, हिन्दी में चिट्ठा लिखेगा तो?

कोई केरली, कोई जापानी और कोई अमरीकी हिन्दी में चिट्ठा लिखेगा तो?

और कोई ख़ालिस गुजराती , हिन्दी में चिट्ठा लिखेगा तो?

वह कैसा लिखेगा?

जाहिर है, उसकी हिन्दी में उसकी अपनी मातृभाषा के अंश घुस आएंगे - जैसे कि हमारी अपनी हिन्दी में अंग्रेजी घुसपैठ कर चुकी है.

शुद्धतावादियों से आग्रह है कि वे भी अपनी उत्साहवर्धक टिप्पणियां ही दें, व शुद्ध हिन्दी लिखने के लिए तमाम ऐसे चिट्ठाकारों को थोड़ा सा समय अवश्य दें. समय सबको सिखा देता है.

तो, आइए, इस ग़ैर हिन्दी भाषी के इस हिन्दी चिट्ठा प्रविष्टि का स्वागत् करें व इनके प्रयासों की सराहना करें.

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मंगलवार, जून 19, 2007

संभव है इस बार सदी के बँधे हुए बन्धन खुल जायें

किसने किसको ठगा व्यर्थ अब चौराहे पर प्रश्न उठाना
कौन सही है कौन गलत है मुश्किल है ये भी कह पाना
कौन यहां निर्णयकर्ता है, और कौन वादी-प्रतिवादी
इन सब से हो परे, हाशिये पर हमको कर्त्तव्य निभाना

कल था
पितॄ-दिवस, तो आओ याद करें हर एक पिता को
इक मुद्दे पर
मसिजीवी ने एक और है प्रश्न उठाया
दर्द भरी यह आशंका है एक रोज यह देश बिकेगा
बनिये जरा सरल, यह फ़ुरसतियाजी ने सबको समझाया
-
छू गुलाबी रात का शीतल सुखद तन
आज मौसम ने सभी आदत बदल दी,
ओस कण से दूब की गीली बरौनी,
छोड़ कर अब रिमझिमें किस ओर चल दीं,
किस सुलगती प्राण धरती पर नयन के,
यह सजलतम मेघ बरबस बन गए हैं अब विराने।
प्रात की किरणें कमल के लोचनों में
और शशि धुंधला रहा जलते दिये में,
रात का जादू गिरा जाता इसी से
एक अनजानी कसक जगती हिये में,
टूटते टकरा सपन के गृह-उपगृह,
जब कि आकर्षण हुए हैं सौर-मण्डल के पुराने।
स्वर तुम्हारे पास पहुंचे या न पहुंचे कौन जाने!---------


नहीं व्यर्थ की चर्चा है जो , लिखा साधवी रितु ने देखें
आने वाले
कल में आशा और निराशा दोनों शामिल
शुभ्रा की रचना में बहती एक अनूठी सहज भावना
बारिश के मौसम का पंगेबाज चुकाने वाले हैं बिल

अभिनव की बेताबी बढ़ती, वापिस जाने को हैं आतुर
मेरी कलम याद करती है भीगे मौसम की फ़ुहार को
अद्भुत भाव शब्द में ढाले हैं
रंजन राजीव देखिये
महावीरजी बहा रहे हैं सावन की मादक बयार को

तेरे लिये नई आशायें लाई कलम आज बेजी की
कैसा है
अनुभव विकास का, उनसे जाकर आप पूछिये
तीन काव्य रचना,
रचना की,व्यथा,रेख व शब्द मौन की
और शेष चिट्ठों को चाहें आप जहां पर आज ढूँढिये

एक और
आशा संजीवित रह रह कर आश्वासन देती
संभव है इस बार द्वेष के घिरे हुए बादल खुल जायें
एक बार फिर खुलें खिड़कियां , बंद विचारों के कक्षों की
फिर फ़ागुन की रंगीं उमंगें, चिट्ठों की दुनिया पर छायें

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रविवार, जून 17, 2007

एक धुरविरोधी चिट्ठे का विदाई गीत

आज ऐसे एक चिट्ठे की चर्चा जो (अब) नहीं है-

लो प्रत्‍यक्षा तुम्‍हें छोटा सा बहाना चाहिए था खुश होने का, हम एक बड़ा सा कारण दे देते हैं, कारण यह है कि ये दुनिया आज सुबह सात बजे से एक बहुत अच्‍छी दुनिया बन गई है, सब बुरों और बुराइयों से मुक्‍त-
हमारी यह अच्छी-बुरे लोगों से भरी दुनिया, अब सिर्फ अच्छी, और अच्छी
बनने जा रही है. इसकी प्रक्रिया तो शुरु हो ही चुकी है, जहां असहमति का कोई जगह नहीं. अब आप इस दुनिया को एक आदर्श दुनिया बनाने वाले हैं, जहां सब अच्छा ही अच्छा हो. अच्छी बातें. अच्छे लोग. वाह! ऐसी आदर्श दुनिया में विरोध का क्या काम?धुरविरोधी का क्या काम? यहां तो सिर्फ सहमति की ही जगह है. इसलिये उचित यही है कि इस विरोध को विराम दिया जाय.


धुरविरोधी का परिचय देना एक कठिन काम है, वैसे अपनी एक पोस्‍ट में उन्‍होंने बता दिया था कि -मेरा नाम जे.एल.सोनारे है, मैं मुम्बई, गोकुलधाम के साईंबाबा काम्प्लेक्स में रहता हूं, उम्र उनतीस साल, एक फिल्म प्रोडक्शन कंम्पनी में थर्ड अस्सिस्टेंट हूं, मतलब, चपरासी जैसा काम। वे सुनीता फाल्‍के पर लट्टू थे जो उनसे कहीं ज्‍यादा कमाती थी, वहॉं इस ज्‍यादा कमाई ने धुरविरोधी को चुप कर दिया था। और यहॉं हम सब ने मिलकर धुरविरोधी की हत्‍या कर दी- जब विरोध का दम घुटता है तो धुरविरोधी को मरना ही पड़ता है।

‘धुरविरोधी कौन है’ की शुरूआत में ही धुरविरोधी ने बता दिया था कि- ये सब झूठ है. मैं जे एल सोनारे नहीं हू, न मुम्बई में रहता हूं. मैं ब्लाग की दुनिया में धुरविरोधी के नाम से हूं, यही मेरा परिचय है. इसी न जाने कौन धुरविरोधी ने हिदी चिट्ठाकारी को अब तक की कुछ सबसे दमदार पोस्‍टें दीं जो साल की सबसे लोकप्रिय पोस्‍टों में शुमार हैं किंतु नारद की इन सबसे लोकप्रिय पोस्‍टों के लिंक को क्लिक करके तो देखें- आज वे वहॉं ले जा रही हैं जहॉं वह नहीं है जो आप खोज रहे हैं।
असहमति की मौत पर विजयगान गाने वाले गिरीराज जी और महाशक्ति जाहिर है प्रसन्‍न होंगे कि धुरविरोधी हट गया (वरना वे हटवा देते), खुद मिट गया (वरना वे मिटा देते)। ई-पंडित तकनीकी पक्ष समझाकर कहेंगे कि चूंकि अपने चिट्ठे का पासवर्ड सिर्फ धुरविरोधी के पास था इसलिए वे खुद ही उसे मिटा सकते थे इसलिए इस अंत की जिम्‍मेदारी नारद, जितेंद्र या आपकी हमारी नहीं है- यह आत्‍महत्‍या है इसे हत्‍या कहना तकनीकी तौर पर गलत है। फिर वे उन दिक्‍कतों के विषय में बताएंगे जो किसी चिट्ठे के खुद हट जाने से एग्रीगेशन में होती हैं हालांकि धुरविरोधी को भी चिंता थी कि कहीं उनके चिट्ठे का शव जितेंद्र के नारद की एग्रीगेशन मिल में दिक्‍कतें पैदा न करे और इसके उपाय भी उन्‍होंने किए थे-
मैं सुनो नारद पर भी ई-मेल कर रहा हूं कि इसकी फीड नारद से कल हटा दें,
जिससे नारद को किसी तरह फीड की दिक्कत न आये.


अनूप भी कहेंगे कि धुरविरोधी नहीं रहा ये अप्रिय हुआ लेकिन गलत नहीं हुआ।

पर जो जानते हैं कि असहमति का बना रहना जीवन के बने रहने से भी ज्‍यादा जरूरी है वे मानेंगें कि धुरविरोधी का जाना गलत हुआ और राहुल को धकियाने, अविनाश को लतियाने की स्‍वाभाविक परिणति थी कि धुरविरोधी को जाना पड़ता। वे ये भी जान लें कि भले ही धुरविरोधी जे एल सोनारे की जगह के पी गुप्‍ता, तिलकद्वार, मथुरा बनकर वापस आ सकता है पर उसे भी जाना पड़ेगा- ओर ये भी कि वे सब पोस्‍टें जो टिप्‍पणियों सहित मिट गईं- उनका मिटना एक अध्‍याय का मिट जाना है। उनका मिटना भी जरूरी था क्‍योंकि वे लगातार खटकती रहतीं सहमति के पैरोकारों के समक्ष। धुरविरोधी ने कहा था कि ये प्रतिबंध हमें अंधी गली में अंधी गली में धकेल देंगे पर जिन्‍हें लगा था कि ऐसा नहीं है क्‍या उन्‍हें अभी भी अंधेरा नहीं दिख रहा।-

ॐ द्यौ शान्तिरन्तरिशँ, शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्ति
वनस्पतयः शान्तिविशवेदेवाः शान्तिब्रम्हा शान्तिँ, सवॅ शान्तिः शान्तिरेव शान्ति
सामा शान्तिः, शान्तिरेधि़,ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः




और हॉं मुझे लगता है संजय बेंगाणी गंदे नैपकिन कतई नहीं हैं। धुरविरोधी, अफलातून, मसिजीवी, अविनाश, रवीश, प्रियंकर, अनामदास, नसीर, राहुल, दुखदीन, विनोद.... ये सब गंदे नैपकिन हैं- इस गंदे नैपकिन नस्‍ल को हटाइए और साफ नैपकिनों की दुनिया बसाइए

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आइए, आज मालवी जाजम बिछाएं...


(मालवी जाजम के चिट्ठाकार - श्री नरहरि पटेल)

भाई ई-स्वामी ने कोई दो साल पहले ख्वाहिश जाहिर की थी कि कोई मालवी चिट्ठा शुरू करवाई जाए...

इधर कुछ समय से इक्का दुक्का मालवी चिट्ठे शुरु हुए हैं. देर से ही सही, उनकी ख्वाहिश अब पूरी हो गई.

आज चर्चा करते हैं मालवी जाजम की.

मालवी जाजम का पहला चिट्ठा 10 जून को प्रकाशित हुआ और आज 17 जून के आते तक उसमें 7 चिट्ठे मालवी में प्रकाशित हो चुके हैं. यदि रफ़्तार यही रही, जिसके लिए हमारी शुभकामनाएँ हैं , तो यह चिट्ठा मालवी भाषा-बोली की उपस्थिति इंटरनेट पर दर्ज कराने में मील का पत्थर साबित होगा.

प्रस्तुत हैं मालवी जाजम के कुछ चुनिंदा पोस्ट -

मालवी ग़ज़ल


कसी लुगायां हे...

सीधी सादी,कसी लुगायां हे
भोली भाली,कसी लुगायां हे

जनम की मां,करम की अन्नपूर्णा
भूखी तरसी, कसी लुगायां हे

पन्ना,तारा,जसोदा मां, कुन्ती
माय माड़ी, सकी लुगायां हे

कुंआरी बिलखे हे,परणी कलपे
घर से भागी,कसी लुगायां हे

गूंगी-गेली,वखत की मारी हे
खूंटे बांधी, कसी लुगायां हे

फ़ांसी-फ़न्दो,तेल ने तंदूर
लाय लागी,कसी लुगायां हे

टीप:

लुगायां:औरतें
माड़ी:मां
परणी:ब्याहता
लाय: आग

****

भाटो फ़ेकीं ने माथो मांड्यो..

मालवी का यशस्वी हास्य कवि श्री टीकमचंदजी भावसार बा अपणीं रंगत का बेजोड़ कवि था.घर -आंगण का केवाड़ा वणाकी कविता में दूध में सकर जेसा घुली जाता था.मालवी जाजम में या बा की पेली चिट्ठी हे....खूब दांत काड़ो आप सब.आगे बा की नरी(अनेक) रचना याद करांगा.

कविता को सीर्सक हे..
भाटो फ़ेकी ने माथो मांड्यो...

लकड़ी का पिंजरा में चिड़ियां बिठई
चोराय पे जोतिसी ने दुकान लगई
भीड़ भाड़ देखी ने एक डोकरी रूकी
लिफ़ाफ़ो उठायो तो चिट्ठी दिखी

साठ बरस की डोकरी ने बिगर भणीं
बंचावे भी कीसे भीड़ भी घणीं
अतरा में एक छोरो बोल्यो ला मां... हूं वांची दूंगा
जेसो लिख्यो वेगा वेसो कूंगा


लिख्यो थो...
प्रश्न पूछ्ने वाले तुम्हारी अल्हड़ता और सुंदरता पे
आदमी मगन हो जाएगा
और आते महीने तुम्हारा लगन हो जाएगा.

***-***

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बुधवार, जून 13, 2007

तीन साल की इगा का चिट्ठा


मासुमियत की दुनिया में, किलकारियों की गूँज के साथ आपका स्वागत है।....

तीन साल की इगा भी चिट्ठाकारी - हिन्दी चिट्ठाकारी में उतर चुकी हैं. ऊपर की पंक्ति उसके ब्लॉग का टैगलाइन है.

उनके चिट्ठे का नाम है - मेरा बचपन

इगा अपनी पहली भारत यात्रा पर उत्साहित है, और वह कुछ यूँ लिखती है -

मेरी पहली भारत यात्रा ( की तयारी )

सोमवार की सुबह तक (११ -जून) मुझे पता ही नहीं था कि इन्डिया जाना क्या होता है| पापा-मम्मी पिछले कुछ दिनों से लगातार व्यस्त चल रहे थे | ख़ूब प्लानिंग भी चल रही थी | पूरे घर मे सामान बिखरा हुआ , अटैचीयां खुली हुई| मेरे लिए तो अच्छा था , खेलने के लिए नए और अजीबो-गरीब खिलौने थे | मम्मी के कपड़े, सारियाँ , गहने , नया मोबाईल फ़ोन -हर चीज़ मुझे जैसे बुला रही हो, " आओ , मुझसे खेलो" |
लेकिन जैसा कि हमेशा होता है, मेरी माँ मुझे कभी भी मेरे पसंद वाले खिलोने से खेलने नहीं देती | कभी भी कुछ उठाया तो - Sami ! डोंट टच ( Sami Dont Touch!! ) की गुहार लगाने लगती हैं | अब उन्हें कैसे समझाया जाये कि बिना छुए हुये मैं कैसे खेल सकती हूँ खिलौनों से |

अब यदि अपने मोबाइल -कैमरे से आपने मेरी तस्वीर खींची है तो मेरा पुरा हक बनता है कि मैं देखूं कि फोटो कैसी आयी है | अलबत्ता , मुझे कैमरा(फोन) हाथ मे लेकर ही अपनी फोटो देखना पसंद है | अब यदि आपको फोन के गिर कर टूटने का डर है तो वो आपकी समस्या है | उसके लिए मैं क्या कर सकती हूँ |
सबसे ज्यादा गुस्सा मुझे तब आया जब ममा ने अपना पुराना फोन मुझे बहलाने के लिए दे दिया| मैं छोटी हूँ पर नए और पुराने फोन का भेद समझती हूँ | वो तो ढंग से चल भी नहीं रहा था | ना कोई कैमरा , ना रंगीन स्क्रीन | मैंने साफ जता दिया कि मुझे फालतू फोन दे कर टरकाने की उनकी सारी कोशिशें नाकाम होंगीं |
( पापा अभी काम कर रहा है, फुर्सत मे उससे और लिखावाउंगी )


आखिरी लाइन आपने सही पढ़ी. इगा अभी अपने पापा से लिखवाती है.

इगा, तुम जल्दी बड़ी होओ और फिर खुद लिखो. इन्हीं कामनाओं के साथ,

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मंगलवार, जून 12, 2007

धन्यवाद-मैं पी लेता हूँ

आज मिल कर हम करें हर एक उसका धन्यावाद
कर गया जो टिप्पणी जाकर कहीं भी, धन्यवाद
तुमने सब बातें पढ़ीं हैं जो कि चिट्ठे पर लिखी
लिख गये हो चार अक्षर, वक्त लेकर धन्यवाद
और जिनको आ नहीं पाया तनिक लिखना कभी
इसलिये वे टिप्पणी कर हीन पाये धन्यवाद
टिप्पणी ने जो बढ़ाया जोश चिट्ठाकार का
आज हर उस टिप्पणीकर्ता का करता धन्यवाद


( यह सूर्यास्त का सुन्दर चित्र- उन्मुक्तजी के चिट्ठे से )

और चिट्ठों के यहां अब देख लें क्या गुल खिले
माया की कड़ियाम लिये कुछ और मुक्तक बन गये
चन्द्रमुख के चित्र छायाचित्रकारी का विषय
लग रही सोमेश को गर्मी भयंकर देखिये

बिम्ब जो प्रतिबिम्ब में दिखला रहे ताऊ उसे
आप पायेंगे रखा मैने उसे फ़ूटनोट पर
और संजय भाई किसको जानते, किसको नहीं
खान जी क्या चीज हैं नायाब लाये खोजकर


-जब ढेरों टिप्पणी मिलती हैं
या मुश्किल उनकी गिनती है
जब कोई कहे अब मत लिखना
बस आपसे इतनी विनती है
जब माहौल कहीं गरमाता हो
या कोई मिलने आता हो
जब ब्लॉगर मीट में कोई हमें
ईमेल भेज बुलवाता हो.
तब ऐसे में मैं खुश होकर
बस प्यार की झप्पी लेता हूँ
वैसे तो मुझको पसंद नहीं
बस ऐसे में पी लेता हूँ.
---------------------


पान खायें और फिर कुछ प्रेरणायें लीजिये
दर्द ये हिन्दोस्तां का है समूचा देखिये
एक उलझी सी गज़ल के शेर भी पढ़िये हुज़ूर
जो सुना देखा नहीं है, अब उसे पढ़ लीजिये

गर्मियों की दोपहर में प्यार के किस्से सुनें
और तुम जो हो कवि तो क्या जरूरी सब सुनें
इक कहानी का विसर्जन हो रहा आरंभ में
जीना है दुश्वार दिल्ली में इन्हें भी तो सुनें

दुनियादारी की बातों को मोहिन्दर बतलाते हैं
जोगलिखी में मुम्बई के किस्से संजय बतलाते हैं
गर फ़िरदौस बररुए कहते जाते हैं उन्मुक्त कहां
मिला उन्हें सम्मान पुराणिक जी यह भी बतलाते हैं

मिर्ची सेठ हमेशा ही कुछ नई खबर लेकर आये
जीतू भाई बे फिर से कुछ अपने फोटू दिखलाये
डायबिटीज और उसके कुछ उपचारों वाले नुस्खे
एक गज़ल इरफ़ान साब की कोई यहाँ पर पढ़वाये



है खुली कहां पर मधुशाला
किसने पी क्यों पी है हाला
अब उड़नतश्तरी के बिन ही
देखो कैसे उड़ते लाला





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रविवार, जून 10, 2007

फुरसतिया टाईम्‍स न फुरफरिया टाईम्‍स- ये है चिट्ठाचर्चा टाईम्‍स


कृपया ध्‍यान दें कि किसी भी चर्चा की तरह ऊपर का मसाला लिंकों से लदा हुआ है, पूरे अखबार को माऊस से सहलाते हुए पढ़ें ताकि कोई लिंक छूट न जाए।
अब भाई लोग तरस खाएं,क्‍योंकि पारा 45 से ऊपर है पास रखा कूलर, हीटर हो गया लगता है। और माना कि चिट्ठा चर्चाकार हो जाना हमारे सद्य सशक्तिकरण का प्रमाण है पर फिर भी इससे ज्‍यादा इंक ब्‍लॉगिंग में हमारा दम फूल रहा है और वैसे भी कॉपी पेस्‍ट से उद्धरण देना अभी हमें इंक ब्‍लॉगिंग में आता नहीं हैं इसलिए कविताओं की चर्चा टाईप करके ही की जा रही है। ऊपर के हिस्‍से में भी यदि कोई लिंक गड़बडा गया तो हमें 'सशक्‍त अनाड़ी' समझ क्षमा करें।

हॉं तो काव्‍यचर्चा: गर्मी में कविताएं खूब लिखी जाती हैं और पढ़ भी ली जाती हैं- पढ़ें तो टिप्‍पणी भी करें कैसे ये बताया है हिंद-युग्‍म पर, सीखें और फिर तुषार की कविता दान पर टिप्‍पणी करें। अतीत की गहराईयों में खोना चाहें तो युनुस के साथ मेंहदी हसन व गुलाम अली या विजेंद्र के साथ जावेद अख्‍तर का आनंद लें।

मै बंजारा,
वक्त के कितने शहरो से गुजरा हूँ
लेकिन,
वक्त के इक शहर से जाते जाते
मुडके देख रहा हूँ
सोच रहा हूँ
तुमसे मेरा ये नाता भी टूट रहा है
तुमने मुझको छोडा था जिस शहर मे आके
वक्त का अब वो शहर भी मुझसे छूट रहा है..

या फिर सुनें गज़लें मुनीर न्‍याजी की, बहादुर शाह जफ़र की या निज़ाम रामपुरी की।

आज की चर्चा में बस इतना ही। भूल-चूक लेनी देनी।

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शनिवार, जून 09, 2007

एक अल्हड-अक्खड चिट्ठा चर्चा,, अन्धेरे में......

इस बार की चर्चा की प्रेरणा मुझे राकेश खंडेलवाल जी से प्राप्त हुई है । कई बार सोचा कि उनके अन्दाज़ में चर्चा करूँ सो आज अवसर लग ही गया :)
वैसे इसके लिए वे अंगूठा नही मांगेंगे , इसका मुझे विश्वास है :)
खैर , एक बडा अंतर यह है कि प्रस्तुत चर्चा अतुकांत है । राकेश जी की तरह तुक मिलाने की भी कोशिश की थी पर .......:)
और अपनी तरफ से कम से कम शब्द इस्तेमाल की कोशिश रही है ।
-*-*-*-*-*-*-*-*
आप मुझे जानते हैं ,
दिलबर जानी ,
गंगा के देश में
मैं एक पत्रकार हूँ ....A high caste hindu woman ……!

नयनो से भीगे जलकण
सुखी कौन ,विजयी कौन ?
life in a metro ………….

इसलिए
डी एल एफ के आई पी ओ में निवेश करने से पहले,
शुक्रवार ,8 जून ,2007
84 बीयर और 73 पव्वे ........अ समझे ?!
न्याय हम होने नही देंगे क्योंकि
व्यवस्था हमारे हाथ मे
है
और
गरीबी नही , मिटायी जा रही है गरीबों की पहचान !
इन झूठों का क्या होगा?
दुनिया किसकी मुट्ठी में?
मैं पत्थरों पर गुलाब उगाने चला था नही मालूम था .....
सरकारों ने की भगत सिंह की हत्या
1857 का स्वतंत्रता संग्राम या 1857 का गदर ?
आपका ध्यान किधर ?
धधक रहे हिमाचल के जंगल ,
सिहरन...
उजाले की परछाईं !
किसान पर एक कार्टून !!!
ह्ह !! यही होगा ।
चिट्ठों की भाषा में
उर्दू से हिन्दी ,
तुम से आप !
नीन्द और क्षणिकाएँ ...........
जब भी मुझे
डर लगता है
सोचता हूँ शोर किया जाए
या गायाजाए एक अल्हड गुजराती गीत
चीनी कम और सुकून ज़्यादा !!

इसे चर्चा ही माना जाए , कविता बहाना है ।चर्चा करते हुए , मन भी तो बहलाना है J
तो टिप्प्ण वर्षा आरम्भ हो .....................................

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बुधवार, जून 06, 2007

मैं भी इक दिन गीत लिखूँगा

आज विचार आया कि उल्टा चला जाये. जो सबसे बाद में पोस्ट किया है उसे पहले कवर करें. वजह साफ है. हम तो चिट्ठों की संख्या देखकर ही डर गये और सोचा कि चुप मार कर बैठ जाते हैं. उससे अच्छा है जितना हो जाये बाकि समझें कि हमने लिखा हि नहीं.फुरसतिया जी को भी नाराज होने का समय नहीं है, बच जायेंगे. वो तो फुटा जोड़ने की जुगत लगाने में व्यस्त हैं. (फुटा=फुरसतिया टाईम्स). बहाने बहाने से निकाले चले जा रहे हैं. कभी दूसरा अंक तो कभी स्पेशल एडीसन -भेंटवार्ता न हुई मानो विधान सभा भंग हो गई हो कि पूरा अखबार ही निकाल मारे. लोग बाग भी भरपूर ताकत से चढ़ाये हुये हैं निकालो निकालो ताकि बंदा उसी में व्यस्त रहे और लंबे लंबे लेख न झिलवाये. यही राजनीति हमारे साथ भी लोग किये हैं वो छोटी कविताओं की पोस्ट पर. एक बंधु तो कह गये अब यही लिखा करो, बहुत बढ़िया लिख रहे हो. अरे, टिप्पणी में छिपा मर्म हमसे ज्यादा कौन समझेगा. सारे बाल धूप में नहीं सफेद कर रहा हूँ, टिप्पणी कर कर के सफेद हुए जा रहे हैं और हमको ही ज्ञान, वो भी टिप्पणी के माध्यम से.

हमारे टिप्पणी पीर होने की चर्चा तो NCR ब्लॉगर मीट तक में हो गई. और तो और, घुघूती बासूती जी ने तो हमारे लिये अलग से नारद पर आरक्षण की माँग तक कर दी है. परेशान है तो इस तरह की माँग कर बैठीं. मगर की शांति से, न कोई तोड़ फोड़, न दंगा जैसा कि बाकि परेशान जनता करने लगती है. यही तो अंतर करता है आम परेशान जनता में और एक कविता वाले ब्लॉगर में. नमन करता हूँ उनकी शांति प्रियता को. पक्षी का नाम पक्षी का काम.

पक्षी की जगह हाथी होता, तो देता डंडे ही डंडे. मजाक नहीं कर रहा, सच में खबरची ने बताया है. बताने को तो अमित भी ब्लॉगर यात्रा और जुलाई ब्लॉगर भेंटवार्ता के बारे में बता गये और दीपक जोशी जी ने देखा कि सब हिमाचल की तरफ ही आ रहे हैं तो बता गये कि कहाँ ठहरे हिमाचल में. अब जब बतिया ही जा रहा है तो क्यारी भी बतियाये कॄषक आमिर के बारे में और रामा जी बतियाये कि अपराध और मौसम में गहरा रिश्ता है और हमारे राजेश रोशन तो अमर सिंग का शीर्षक देख कर ही प्रसन्न हुये जा रहे हैं. हम भी जाकर प्रसन्नता जता आये. आज कवितायें भी खूब आई. मगर हमारे गीत सम्राट राकेश खंडेलवाल जी परेशान हो उठे और लगे हैं कि एक दिन गीत लिखूँगा. अरे भाई, एक दिन क्या, रोज रोज लिखो. आपके गीतों के हम दीवाने हैं, मगर वो इतना व्यस्त हैं कि बस कहते ही चले गये कि एक दिन गीत लिखूँगा. खैर, हम भी आज ही नारा बुलंद किये दे रहे हैं कि एक दिन गीत पढ़ूँगा-तब तक बस ऐसे ही पढ़ता रहूँगा. :)

आज जीतू ने घोषणा की कि उनके परिवार में नया सदस्य जुड़ गया है. हम भी सोचे, यह बंदे को क्या हुआ. इस उम्र में जाकर यह उदंडता और उस पर खुशी खुशी घोषणा भी कर रहा है. शरमाते हुये चटकाये तो नजारा कुछ और ही निकला, नई कार खरीद लाये हैं और उसी का फोटो लगा कर सबको चमका रहे हैं. ऐसा चमकाये कि हमारे प्रमोद भाई तो काम्पलेक्स में ही आ गये.

अतुल श्रीवास्तव जी कहे कि आओ, बेहतरीन कहानी सुनायें. बड़ी सस्पेंस थ्रीलर टाईप कहानी सुनाये भाई- वो कौन थी. अब क्या जबाब दें, मिले तुम, खेले तुम, हम कैसे जानें कि कौन थी.

ब्लॉगर भेंटवार्ता तो ऐसी चल रही हैं कि जितने ब्लॉगर नहीं उससे ज्यादा भेंटवार्ता. हमारे परम शिष्य (नये वाले) संजीत त्रिपाठी ने भी बम्बई में भेंटवार्ता की रिपोर्ट पेश की बड़े चकाचक अंदाज में. मजा आ गया, आखिर हमारा शिष्य जो है, कोई यूँ ही थोड़े. अब जब शिष्य की सुनी गई तो गुरु कम थोड़े हैं तो हमारे गुरुवर आलोक पुराणिक को भी सुनो: हे प्रेम के गब्बरसिंह, हे च्यवनप्राश के मिसयूज-कर्ता.

अरुण की कथा दुम वाली कल ही कवर हो गई थी इसलिये आज नहीं कवर कर रहे. वरना पंगा हो जायेगा.
मगर ज्ञानदत्त जी की पोस्ट क्या केवल जुनून काफी है जीने के लिये को कवर करना जरुरी है, ऐसा उपर से आदेश आया है, भले ही पंकज बैगाणी की नई शुरु साईट शटर स्पीड छोड़ दें. क्या डिजाईन है भाई, मान गये. मगर छोड़ ही देते है उसको और विकास को भी जिसे सिंगल होने का घाटा हो रहा है. दोनों अपने बंदे हैं कि बुरा नहीं मानेंगे. रंजना भाटिया रंजू जी को भी छोड़ देते है जो स्मरण शक्ति के बारे में गरिमा जी के विचार बता रहीं हैं.

कविता के पसंदगारों के लिये गुरनाम सिंग जी खूब सारी कवितायें एक के बाद एक ले आये हैं और मोहिन्दर भाई भी कवि कुलवंत जी की और तुषार भाई की तरह लाये हैं. जब सब देखे हो तो हिन्द युग्म भी देख आओ.

अब थक गये, जितने कवर हुये कर लिये ऐसे ही बेतरतीब तरीके से..अब चलते है और आप पढ़िये अतुल अरोरा का अब तक छप्पन और सुषमा कौल जी की छोटी छोटी बतिया में बड़ी बड़ी बतिया.

अब हम चलते है. भूल चूक लेनी देनी.

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मंगलवार, जून 05, 2007

हम अपनी उस खुदकुशी का मातम

वो न मिलें तो है दम निकलता, मिलें तो खुशोय्यों से जान जाती
हम अपनी इस खुदकुशी का मातम, सजा के चिट्ठे में लिख रहे हैं

कभी तो कविता भटक गई है, मिली अगर तो वो टूटी फ़ूटी
बिठा तश्तरी उसे उड़ा कर, वो आज चिट्ठे में लिख रहे हैं

कहीं पे नौटंकियां हुईं हैं, कहीं हवाई सफ़र का चर्चा
उधर वो दुम की कथा उठाकर के आज चिट्ठे में लिख रहे हैं

जमाना गुजरा जुगाड़ करते, मगर न दाढ़ी बढ़ी जरा भी
मगर ये उसकी बड़ी महत्ता को आज चिट्ठे में लिख रहे हैं

जो बात करते तो वक्त रुकता, जो न करें तो हैं खुद को भूले
अजीब है बेकसी का आलम, जो आज चिट्ठे में लिख रहे हैं

लिखे बहुत गीत तो प्यार के अब, चलो नई धुन कोई बजाओ
ये हसरतें दिल की वे सजाकर के आज चिट्ठे में लिख रहे हैं

ब्लागरों ने जो मिल के बैठे, लिये हैं कैसे , कहां पे पंगे
उसी के फोटो सजा सजा कर ये आज चिट्ठे में लिख रहे हैं

लिये बसन्ती नये तराने, है शुक्रिया भी, औ' कुछ है शिकवा
उधर वे खबरी की ही खबरिया क्प आज चिट्ठे में लिख रहे हैं

लगे जो चर्चा के हमको काबिल, इन्हीं की हमने करी है चर्चा
लिखोगे तुम, ये लगी है कैसी. जो आज चिट्ठे में लिख रहे हैं


श्री मोहिन्दर जी ने व्यक्तिगत अनुभव
बताये कि पहले पत्र पत्रिकायें जिन लेखकों की
रचनायें अस्वीकृत कर देतीं थीं पर
ब्लागिंग के बाद ब्लागर्स के लेखन की मांग होने
लगी है .
सुश्री
सुनीता शानू ने इस तरह की बैठक के
सुखद माहौल देखते हुये एक
निश्चित अन्तराल पर करते रहने पर जोर दिया.
रंजना भाटिया रंजु ने ब्लागर एवं
टिप्पणियो के महत्व को रेखांकित किया . इस विषय पर श्री
समीर लाल जी के ब्लागर्स को
प्रोत्साहन को विशेष रूप से रेखांकित किया गया. सुश्री रंजु भाटिया ने कविता
में
रदीफ, काफिया और मीटर के महत्व पर भी चुटकी ली.







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शुक्रवार, जून 01, 2007

पेश है देसी गूगलवा...

दोस्तों अब से नियमित सोमवारी चर्चा के बजाए अब अनियमित, जिस वक्त कुछ उल्लेखनीय दिख गया या सूझ गया की तर्ज पर चर्चा जारी रहेगी. कोशिश रहेगी कि सप्ताह में कम से कम एकाध चर्चा गाहे बेगाहे तो मार ही दें...

इसे नियमित चिट्ठाचर्चाकार कतई व्यवधान स्वरूप न समझें. नियमित चर्चा जारी रहेगी. यदि किसी नियमित चर्चा में व्यवधान सा महसूस होता है तो अपनी राय अवश्य रखें.

तो चलिए आज से इस अनियमित चर्चा की शुरूआत देसी गूगल से करते हैं -

पियवा गइले परदेश फगुनवा रास ना आवे,
ना भेजले कउनो संदेश फगुनवा रास ना आवे।।

ननदी सतावे देवरा सतावे,
रही रही के जुल्मी के याद सतावे।
सासुजी देहली आशीष फगुनवा रास ना आवे।।

सखिया ना भावे नैहर ना भावे,
गोतीया के बोली जइसे आरी चलावे।
नींदियो ना आवे विशेष फगुनवा रास ना आवे।।

बैरी जियरवा कइसो ना माने,
रहि रहि नैना से लोरऽवा चुआवे
काहे नेहिया लगवनी प्राणेश फगुनवा रास ना आवे।।


आगे इस चिट्ठे पर पढ़ें, जहाँ और भी मजेदार चीजें पढ़ने और देखने के लिए हैं!

और, यहाँ भी एक नजर मार सकते हैं - यदि बॉलीवुड गॉसिप में आपको कोई तत्व नजर आता है.

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