गुरुवार, सितंबर 27, 2007

चिट्ठाचर्चा : शहादत विशेष

शहीद की जन्म शताब्दी का वर्ष है. भगतसिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को हुआ था, इसी उपलक्ष में चिट्ठाकार भला उन्हे अपने अपने शब्दों मे श्रद्धाँजलि देने से कैसे चुकते? बानगी देखिये.

महाशक्ति ने लिखा है:


बड़ी खुशनसीब होगी वह कोख और गर्व से चौडा हो गया होगा उस बाप का सीना जिस दिन देश
की आजदी के खातिर उसका लाल फांसी चढ़ गया था।

भगत सिंह और उनके
मित्रों की शहादत को आज ही नही तत्‍कालीन मीडिया और युवा ने गांधी के अंग्रेज
परस्‍ती गांधीवाद पर देशभक्ततों का तमाचा बताया था।

शहीदे-आज़म पर नसरूद्दीन भगतसिंह होने का मतलब बता रहें है.

28 सितम्‍बर को भगत सिंह का जन्‍म दिन है। और यह साल इस मायने में खास है कि यह
उनकी जन्‍म शताब्‍दी का साल है।

जब देश के सबसे बड़े नेताओं का तात्कालिक लक्ष्य स्वतंत्रता प्राप्ति था,उस समय भगत
सिंह,जो बमुश्किल अपनी किशोरावस्था से बाहर आये थे,उनके पास इस तात्कालिक लक्ष्य से
परे देखने की दूरदृष्टि थी। उनका दृष्टिकोण एक वर्गविहीन समाज की स्थापना का था और
उनका अल्पकालिक जीवन इस आदर्श को समर्पित रहा। भगत सिंह और उनके साथी दो मूलभूत
मुद्दों को लेकर सजग थे,जो तात्कालिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में
प्रासंगिक थे। पहला,बढ़ती हुई धार्मिक व सांस्कृतिक वैमन्स्यता और दूसरा,समाजवादी
आधार पर समाज का पुनर्गठन।


समकालीन जनमत भगत सिंह का वह बयान लेकर आयें है जो उन्होने न्यायाधीशों के आगे दिया था.

माई लॉर्ड, हम न वकील हैं, न अंग्रेजी विशेषज्ञ और न हमारे पास डिगरियां हैं। इसलिए
हमसे शानदार भाषणों की आशा न की जाए। हमारी प्रार्थना है कि हमारे बयान की भाषा
संबंधी त्रुटियों पर ध्यान न देते हुए, उसके वास्तवकि अर्थ को समझने का प्रयत्न
किया जाए।

इंकलाब जिंदाबाद से हमारा वह उद्देश्य नहीं था, जो आमतौर पर
गलत अर्थ में समझा जाता है। पिस्तौल और बम इंकलाब नहीं लाते, बल्कि इंकलाब की तलवार
विचारों की सान पर तेज होती है और यही चीज थी, जिसे हम प्रकट करना चाहते थे। हमारे
इंकलाब का अर्थ पूंजीवादी युद्धों की मुसीबतों का अंत करना है। मुख्य उद्देश्य और
उसे प्राप्त करने की प्रक्रिया समझे बिना किसी के संबंध में निर्णय देना उचित नहीं।
गलत बातें हमारे साथ जोड्ना साफ अन्याय है।

कल भगतसिंह की जन्मशताब्दी है. शहीद को सलाम. वन्दे मातरम.

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मंगलवार, सितंबर 25, 2007

अच्छा ही तो लिख पाते हैं

पूरे तीन पॄष्ठ पढ़ डाले किस किस की चर्चा करनी है
सुनें रेडियो पर कवितायें, कितना अच्छा लिखा आपने
हुए अगर मिसयूज करें क्या, ये सुबीर जी बतलायेंगे
लौकी के जो बने परांठे, कितने खाये कहिओ आपने

जो न कह सके वह करते हैं सपनों की कुछ सुन्दर बातें
रचनाकार लिये आये हैं नई कहानी की सौगातें
पंकज बतलाते प्रभाव कैसा कैसा होता फ़िल्मों का
बिना थैंक्यू-क्षमायाचना कटती हैं काकेशी रातें

पढ़ें सारथी और शुक्रिया अता शास्त्री जी को कर दें
फिर आलोक पुराणिकजी से नई जानकारी ले लेना
दर्जन भर चिट्ठे क्रिकेट की बातों में मशगूल मिलेंगे
बाकी जितने उनसे अपना अधिक नही है लेना देना

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मंगलवार, सितंबर 18, 2007

कौन कर रहा मटरगश्तियां

फ़ुरसतियाजी कहां कर रहे मटरर्गश्तियां हमें पता है
संस्मरण में रवि रतलामी ने देखो क्या आज कहा है
इंतज़ार में खड़े सारथी कोई कहीं धनुर्धर होगा
बता रहे आलोक पुराणिक सेंसेक्स का क्या क्या होगा

करें बिहारी बाबू आकर राम सेतु का लेखा जोखा
गीतकार की कलम बताये, भारत यात्रा का क्या होगा
उड़नतश्तरी चित्रकारिता करने को अब होती आतुर
मेरे पन्ने पर मिलता है रोज रोज ही नया एक गुर

अभिनव लिंक यहां लाये हैं सुनें रेडियो पर कवितायें
कहां खोमचा गया देखिये, ये काकेश यहां बतलायें
निशा खिलाने को लाईं हैं मेवे की यह खीर मनोहर
गूँज रहा है गीतकलश पर नये गीत का फिर से इक स्वर
,
मां की कलम और लावण्या, ज्ञानदत्तजी की तलाश है
हिन्दी की सेवा की मेवा देखें किसको मिली खास है
बाकी सारे चिट्ठों का अब यहां आप आनंद उठायें
चर्चा यह सम्पूर्ण हो गई, पब्लिश पर माऊस चटकायें

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रविवार, सितंबर 02, 2007

नये हिंदी ब्लाग में एग्रीगेटर

कादम्बिनी के नये अंक में यह लेख गौरी पालीवालजी का लिखा है। इसे हमें नीरज दीवान ने उपलब्ध कराया। साभार इसको आपकी जानकारी के प्रकाशित कर रहे हैं।
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