शनिवार, अक्तूबर 29, 2005

सितारों की तरह झिलमिलाते रहो

कन्हैया रस्तोगी अहा जिंदगी की बातें बताते हुये चुटकुले सुनाने लगे।आशीष तिवारी दुबारा मेट्रो में घुमाने लगे।रवि रतलामी से आर.के.लक्ष्मण के कार्टून लाखों मेंबिकने की बात सुनकर ब्लागर की हालत खराब हो गई लेकिन अपने देबाशीष मुफ्त में टेम्पलेट बांटने लगे। यह देखकर स्वामी पतझड़िया गये।रवि रतलामी मौसम के मिजाज को भांपने की कोशिश करते हुये फ्लाक में संभावनायें तलाशने लगे जिसके बारे में पंकज ने बताया था।
स्वामीजी की समस्या है कि बैठे-बैठे की यही कुछ ख्याल आने लहते हैं लेकिन मजे की बात ख्याल आते ही जीतेन्दर उड़ने लगते हैं।इस बीच उज्जैन से शरद शर्मा का भी आगमन हुआ चिट्ठा जगत में धानी चूनर के साथ। रजनीश मंगला ने गाने सुनाये,जर्मन सिखाना शुरु किया,पतझड़दिखाया तथा अब बता रहे हैं पंजाबी का टूल दिखा रहे हैं।धन के धेले में बदल जाने की कहानी सुनिये हिंदी ब्लागर से तथा दिल्ली में पुलिस की कहानी सुनिये दिल्ली वालों से।

लक्ष्मीगुप्त जी आवाहन कर रहे हैं:-

सितारों की तरह झिलमिलाते रहो
चाँद निकले, न निकले मेरे साथियो
प्रेम की वर्तिका तुम जलाते रहो
प्रिय आयें न आयें, मेरे साथियो
तुम दिवाली में दीपक......

संजय विद्रोही भी झूमने लगे:-

प्रीतम की बात चली
स्वप्न जगा झूम उठा,
अभिलाषा महक उठी
रोम-रोम पुलक उठा.


लेकिन उड़ती चिड़िया का दर्द है :-

बासी हो गए गीत सभी वो
ऊब चुके हैं सब जन सुनकर
तड़प भले अब भी उतनी हो
ताजी नहीं रही वो मन पर।


इस सब से बेखबर निठल्ले लोग सोने की बात कर रहे हैं गज़ल सुनातेहुये।

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Posted by अनूप शुक्ला at 10/29/2005 07:06:00 AM

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मंगलवार, अक्तूबर 25, 2005

ये अच्छी बात नहीं है

नींद के मारे सुनीलजी को कुंभकर्ण से सहज सहानुभूति है इसीलिये लंबी गरदन बाली लड़कियों को देखते-देखते कुंभकर्ण के बारे में चिंतित हो गये। आशीष गर्ग कवि सम्मेलन के बारे में बता रहे हैं तो आशीष श्रीवास्तव कन्या पुराण बांच रहे हैं।वहीं अतुल धर्मेन्दर के अंदाज मे फिलाडेल्फिया में हुई नौटंकी के बारे में सुना रहे हैं। उधर काली भाई बकझक करते हुये कालेज के दिनों से होते हुये बाबर्चीखाने में घुस गये।पंकज लाये हैं खुशखबरी कि फ्लाक से सीधे आप चिट्ठाकारी कर सकते हैं। अब कहीं कापी पेस्ट की जरूरत नहीं। करिये तो सहीं हो जायेगा। भाई जी मुद्रा स्थानांतरण के विज्ञापन भी दे रहे हैं। रजनीश के गाने भी सुना रहे हैं।कौन रजनीश? अरे यार नये साथी हैं बच्चे समेत आये हैं। गीत संगीत के दीवाने हैं। स्वागत-सत्कार करो भाई। हनुमानजी एक बार फिर से छा गये बालीवुड में। उधर शशि (सिंह) ने शशि(चन्द्रमा) को बेच दिया। क्या जमाना आ गया गया? देशदुनिया में देखिये रोचक जानकारी कैटरीना ,रीटा से जुड़ी है-एपोफ़िस और तोरिनो पैमाना। प्रेम शंकर झा लगातार दिल्ली के माध्यम से दुनिया को देख रहे हैं।उनका एक और विचारोत्तेजक लेख महिलाओं की वर्तमान स्थिति पर-फोकस से बाहर इंडियन वुमन। सुमीर शर्मा देख रहे हैं फिर इतिहास को गोद लेने के सिद्धान्त से।जीतेन्दर की कलम कुछ चलने लगी है तो न लिखने वालों के खिलाफ खुली रिपोर्ट दर्ज करा दी।फिर खुद ही कह रहे हैं यह अच्छी बात नहीं है ,ये भी कोई बात हुई कि अपने छुट्टन को भिड़ा दिये बिपाशा बसु से?
प्रत्यक्षा का दुबारा लिखना शुरु हुआ। इस बीच उनको लगा कि तमाम लोग आये होंगे उनके यहां सो पूछ रहीं हैं -वो तुम थे क्या?:-

जब तक मैं हाथ
आगे बढाती
उँगलियों से पर्दे को
जरा सा हटाती
उस निमिष मात्र में
गाडी बढ गयी आगे
कहीं जो पीछे छूटा
वो तुम थे क्या ??

इस पर हिमालय पर खड़े लोग मुस्करा रहे हैं। फुरसतिया अपनी साइकिल मे दुबारा हवा भरवा के बोलते हैं आओ चलें घूमने। राजेश कहते हैं क्या फरक पड़ता है:-

सफर में,
क्या धूप,
कैसी छाँव...?

खेल में,
क्या जीत,
कैसी हार...?


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Posted by अनूप शुक्ला at 10/25/2005 08:48:00 AM

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शुक्रवार, अक्तूबर 21, 2005

दीवाने ने आकर फिर एक दीये की लौ जलाई

दिल्ली ब्लाग शुरु हुआ, लोग मैराथन दौड़े और हादसा हो गया हादसों के शहर में। यह सब देखकर भोपाली भाई का दूध उबलनेलगा और विद्रोही के यहां जलजला आ गया। इधर लक्ष्मी गुप्त जी ने एक पत्ती देखी, फिर कुछ देर बाद पूछने लगे कहां है तू?मीडिया से जुड़े हिंदी ब्लागर का मानना है कि महामहिम को बचकाना लफड़ों में नहीं पड़ना चाहिये। आशीष तिवारी बकवास के बाद बहस भी करना चाहते हैं। बालेंदु शर्मामीडिया की भाषा के अगड़म-बगड़मपन पर निगाह डाल रहे हैं। अखबारों के बेसिर-पैर शीर्षक और ईश्वर का पक्षपात भी इनकी निगाह में है।

जीतेन्दर पेश कर रहे हैं गड़बड़झाला शायरी बमार्फत निशाजी:
तुमको देखा तो ये ख्याल आया
पागलों के स्टाक में नया माल आया
कार्टून दिखाते हुये पीएचपी सिखाने के लिये जुटे हैं। जीतू के ब्लाग पढ़वाने की साजिशों का जबाब कालीचरन देते हैं-
ये जुगत लगाऊं या वो जुगत लगाऊं,
सोच रहा है लिखने वाला,
कलम घिस तू लिख चला चल,
मिल जायेगा पढ़ने वाला।


सुनील जी भारत से लौटे साथ में लाये ढेर सारी यादेंकविता सागर के सीने से रोज नये रत्न निकलने बदस्तूर जारी हैं। रविरतलामी जी बीएसएनएल के ब्राडबैंड केअनुभव बता रहे हैं हिंदी में ओपेरा की सहायता से आफलाइन चैट करते हुये। स्वामीजी बता रहे हैं (या पूछ रहे हैं) ये क्या जगह है दोस्तों! नीरज त्रिपाठी यौन शोषणमें लग गये और आशीष मना आये चुपके से अपना जन्मदिन । दूसरे आशीष कहने लगे जीवन भी क्या बला है। रचनाकार में कंप्यूटर गुरु स्टीव जॉब्स की सलाह देखें-भूखे रहो,मूर्ख रहो। छठी मइया के गीत सुने शशि से। फुरसतिया भी कुछ कहे हैं सो देखिये

अगर आपको भारतीय रेलवे की कार्यशैली जाननी हो तो अनिमेष पाठक की पोस्ट देखें कि कैसे माफ कर देने वाले के लिये कहा जाता है छोड़ दिया उसे बेचारा समझ कर। कुंडली मिलाते-मिलाते मानसी ने अचानक शमा-परवाने की कुंडली मिला दी:
एक चराग़ जल रहा था
लौ भी धीमे धडक रही थी
किसी हवा के झोंके से डर
धीर धीरे फ़फ़क रही थी

अंधेरा फिर से जाग उठा और
रात ने फिर से ली अंगडाई
मगर किसी दीवाने ने आकर
फिर एक दीये की लौ जलाई

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सोमवार, अक्तूबर 17, 2005

असम्भव हो हर कार्य जरुरी नही

देश-दुनिया की ब्लागिंग जेल तक पहुंचा सकती है। एक खिड़की आठ सलाखें पर पंद्रह कवितायें सुनिये रति सक्सेना जी से। नवरात्र गुजर गया लेकिन उसका महत्व भी तो जान लीजिये शशि सिंह से। स्नान-समस्या से ग्रस्त, आशियाना ढूंढते जीतेन्दर परेशान हैं आतंकवादी घटनाओं से, लेकिन इनकी कामेडी में कोई कमी नहीं आई इसीलये रंगदारी व्यवस्था का समाधान बता रहे हैं। उधर इंडियन आयडल पर नेपाल वाले लगा रहे हैं चोरी का आरोप। यह सुनते ही पक्षी उड़ लिये। उड़ते हुये पक्षी सपने देखने लगे। सब तरफ से हिंदी ही हिंदी दिख रही थी। इस पर रविरतलामी पूछने लगे क्या चिड़ियों में सौन्दर्य बोध होता है? फुरसतिया कहने लगे- मुझसे बोलो तो प्यार से बोलो । इसी पर रवि रतलामी अपना नजरिया बताने लगे कि कम्प्यूटर सामग्री कैसे आपकी जरूरत बनती जा रही है। फिर वे हिंदी संयुक्ताक्षरों की समस्या बताने लगे। मानसी को विभिन्न राशियों की विशेषतायें बताते हुये कुंडली मिलान बिंदु तक आते देखकर अतुल कसमसाने लगे, "जब हम जवां होंगे" कहकर। इस पर धनुष के एक रंग को ताव आ गया। स्वामी बोले ये सब झूठ है। इस पर लक्ष्मी गुप्त जी ने समझाया, नेताओं का चरित्र ऐसा ही होता है।

कुमार मानवेंद्र ने दुबारा लिखना शुरु किया। वरुण सिंह भी व्यायामशाला से लौटकर हिंदी में लिखने के बारे में सफाई देने लगे। देश दुनिया के माध्यम से पढ़िये ईरानी नेता का जो कि ब्लाग भी लिखते हैं का साक्षात्कार। आशीष गर्ग बता रहे हैं पारदर्शी धातु के बारे में। रचनाकार पर रचनाओं की लगातार प्रस्तुति जारी है-अब और नये मनोरम अंदाज में। कविता सागर से कविता मोती बदस्तूर निकल रहे हैं। फुरसतिया बता रहे हैं मौरावां के रावण के बारे में जो कि कभी नहीं मरता। सारिका बता रही हैं:
खुशबू की तरह तुमको रूह में उतारा है,
जाओ कहीं भी लेकिन रहता है साया साथ।
सूरज देव सिंह कह रहे हैं:
सार्थक हो हर प्रयास जरुरी नही
पूरी हो हर आस जरुरी नही
मगर सच है ये भी वही
असम्भव हो हर कार्य जरुरी नही

Posted by अनूप शुक्ला at १०/१७/२००५ १०:३९:०० पूर्वाह्न

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सोमवार, अक्तूबर 10, 2005

पंगा ना लै मेरे नाल!

यूथ करी की लेखिका रश्मि बंसल ने अपनी पत्रिका जैम में की मैनेजमेंट गुरु अरिंदम चौधरी के संस्थान आई.आई.पी.एम की निंदा, बस फिर क्या था। आई.आई.पी.एम के लोग इनके पीछे पड़ गये, गंदी टिप्पणियों के साथ। रश्मि का साथ देने वाले गौरव सबनिस को मिला कानूनी नोटिस और मानहानी का १२५ करोड़ रुपये हर्जाने का दावा। अपनी तो समझ नहीं आता कि सचाई क्या है पर यह वाकया हमारे सहिष्णु राष्ट्र की छात्र शक्ति के बारे में बहुत कुछ कहता है।

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रविवार, अक्तूबर 09, 2005

चिट्ठाचर्चा में उनका श्रीमुख

आज का चिट्ठाचर्चा उनके श्रीमुख की तरह। बतायें कैसा लगा?
  • प्रेमिका के बालिग होने का इंतजार करते करते इतना वक्त बीत गया कि वो एक सिलेंडर बेचने वाले के साथ भाग गई-अपनी ढपली
  • मास्टर्स तो रसायन शास्त्र में कर रही थी मगर किताबें ज्योतिष की पढती थी, मम्मी से छुपा कर मानसी
  • छोटे हो सपने किसी के, उसे हँसी में मत उडाना-कुछ कहना है
  • कम्प्यूटर के जरिए कलाकृतियों के निर्माण की संभावनाएँ अनंत हैंरवि रतलामी
  • अपने तो आगे पीछे सब तरफ से धुआँ निकलने लगता है- नितिन बागला
  • कुछ तो बचपना था, कुछ समझदारी थी /कुछ तो समझ ख़ुदग़र्ज़ी से हारी थी-एक यात्रा
  • हूक उठी दिल में कुछ ऐसी ,दूर क्षितिज तक चलता जाऊं- महावीर शर्मा
  • यहां हिंदी के प्रमुख जालघर दिखते हैं-सारिका सक्सेना
  • हम यहां वैदिक ज्योतिष की बात कर रहे हैं- मानसी
  • तोराजा एक विषेश आदिवासी जन जाति हैसुनील दीपक
  • सृष्टि झूमती है सभी,सर्वथा अकारण/मानव ही पूँछता,
    क्यों जीवन का कारण?- काव्यालय
  • कटुक वचन मत बोल रे-योगब्लाग
  • ओये देशी तेरी ऐसी की तैसी।हम अपने उत्पाद बनाने के बजाए हरे चारागाहों मे जा कर दोयम काम करते रह जाते हैं-ईस्वामी
  • जब औरत आइटम में तब्दील होगी तो उससे व्यवहार का व्याकरण भी उसी तरह बदलेगा।- फुरसतिया
  • शिक्षा के नाम पर बेहूदा प्रयोगों की यह इति-अति है-रविरतलामी
  • ये अपना गुगलवा क्या क्या करेगा?जीतेन्दरजो है,उसका होना सत्य है,/जो नहीं है, उसका न होना सत्य है -
    कविता सागर
  • आँसुओं के मौन में बोलो तभी मानूँ तुम्हें मैं,/खिल उठे मुस्कान में परिचय, तभी जानूँ तुम्हें मैं-कविता सागर
  • भोजपुरिया और भोजपुरी प्रेमी के स्वागत करे के चाहीं-भोजपुरिया
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Posted by अनूप शुक्ला at १०/०९/२००५ ०३:१५:०० अपराह्न

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शुक्रवार, अक्तूबर 07, 2005

उलटफेर जारी

ब्लॉग की दुनिया के उलटफेर जारी हैं। एओएल की वेब्लॉग्स ईंक की खरीद की खबर अभी बासी भी नहीं हुई कि अब वेरीसाईन ने डेव वाईनर के वेब्लॉग्स डॉट कॉम को खरीद लिया है। वेब्लॉग्स डॉट कॉम खासा प्रसिद्ध पिंग सर्विस है जो ताज़े ब्लॉग्स की खबर रखता रहा है और जिसे लगभग हर ब्लॉगवेयर नई प्रविष्टि करने पर पिंग करता है। वैसे वादा तो यही है कि यह मुफ्त सेवा आगे भी मुफ्त रहेगी।

इन सब के बीच बेहद हवा बनी रही पहले भारतीय ब्लॉग नेटवर्क इंस्टाब्लॉग, जिसमें कथित रूप से ५० चैनल है, यह दीगर बात है कि एक भी चैनल भारतीय पाठकवर्ग को ध्यान में रख नहीं बनाया गया। वैसे इंस्टाब्लॉग अपने कहे अनुसार ५ अक्टुबर को प्रारंभ नहीं हुआ और लोगों ने काफी हल्ला भी मचाया इस पर। अभी यहाँ तकरीबन ४६ चैलन ही अवतरित हुए हैं, कई खाली पड़े हैं और किसी भी प्रविष्टि के साथ लेखक का नाम नहीं है। खैर आगे आगे देखिये होता है क्या!

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गुरुवार, अक्तूबर 06, 2005

हवाएँ राह चलते भी हमें पहचाने लेती हैं

लोग पूजा कर रहे हैं लताजी की परेशान हैं देबाशीष। खेलों की देशभक्ति के विकेंद्रीकरण के बारे में भी विचार करते को कहते हैं। पड़ोसी के दुख को महसूसते हुये सुनील दीपक का ऐसा कहना है कि दुनिया सिमट रही है लेकिन हम अपने घर में अजनबी हो रहे हैं । पूरे नौ महीने (लिखने) के बाद स्वामीजी स्वामीजी बता रहे हैं वो हिंदी में क्यों लिखते हैं। गाली का भी सामाजिक महत्व होता है कुछ ऐसा कहना है फुरसतिया का। सूरजदेव के बढ़ते कदमों को देखकर मिर्ची सेठ उन्हें अपने यहांले गये। सानिया, समाचार और सनसनी की जानकारी मिलेगी देशदुनिया में। कंकर स्त्रोत पढ़कर चलो कनाडाजीतू के साथ आप भी कहोगे वाहक्या बात है। मयकसी में खुशी देखकर नारदजी भी व्यस्त हो गये।

रविजी ने लिखा निबंध लेकिन किसी ने भाव नहीं दिया । आप पढ़िये बतायें कैसा है। विषय है- धर्मनिरपेक्षता-एक नई सोच। देवेंद्र आर्य नेतूफानी गजल लिखी लेकिन संजय विद्रोही ने आत्मसमर्पण कर दिया इससे अशोक को शोक हुआ कि लोग लंबी कविता कैसे लिख लेते हैं। बाप भी अकेला हो सकता है यह बता रहे हैं शशि सिंह। इंद्रधनुष काफी दिन बाद दिखा लेकिन पता नहीं परदा झीना क्यों है।अनुगूंज १४ को समेटा आलोक ने तथा ए,बी,सी कथा कही। समाचार की दुनिया के कुयें में पड़ी है अंग्रेजी की भांग और दैनिक जागरण जैसे हिंदी दैनिक भी उसी के दीवाने हैं कुछ ऐसा बता रहे हैं आशीष। आपको देवेंद्र आर्य की एक गज़ल तो यहीं पढ़ा दें इसे टाईप करने में रविरतलामीजी का पसीना बहा है।
हवाएँ दो रुपए में एक कप तूफान लेती हैं
फिर उसके बाद राहत की मलाई छान लेती हैं।

कोई मौसम हो, जैसे औरतें जब ठान लेती हैं
ख़ला में भी हवाएँ अपने तम्बू तान लेती हैं।

बंधी तनख़्वाह वाले हम, छिपाना भी जो चाहें तो
हमारी जेब के पैसे हवाएँ जान लेती हैं।

ग़रीबी की तरह कमज़र्फ होती हैं हवाएँ भी
जरा सी सांस क्या मिलती है, सीना तान लेती हैं।

हवा को हम भले पहचानने में भूल कर जाएँ
हवाएँ राह चलते भी हमें पहचाने लेती हैं।

हम अपने घर में हैं, बाज़ार जाते भी नहीं लेकिन
हवाएँ फिर भी हमको अपना ग्राहक मान लेती हैं।

हमारी तरह थोड़े ही कभी तोला, कभी माशा
हवाएँ ठान लेती हैं तो समझो ठान लेती हैं।

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बुधवार, अक्तूबर 05, 2005

उई माँ!

वैसे इस मलयालम फोटोब्लॉग प्राणीलोकम के कीड़े इतने डरावने भी नहीं। मज़ा नहीं आया, लगता है आप विंडोज़ एक्सपी के बिहारी संस्करण का प्रयोग नहीं कर रहे?

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मंगलवार, अक्तूबर 04, 2005

क्या यही प्यार है?

बचपन में "उठो लाल अब आंखे खोलो" कविता सुनकर जागने की आदत बना चुके स्वामीजी अब परेशान हैं अलार्म घड़ी की आवाजों से। अतुल कुछ तरीके बता रहे हैं दुल्हिन को बस में रखने के। हिंदिनी पर अपनी पोस्टों का शानदार सैंकड़ा पूरा करते हुये रवि रतलामी ने अपना प्यार का किस्सा जिस जगह लाकर लटकाया है उससे लोग पूछ रहे हैं, क्या यही प्यार है? नीरज और अनुनाद बता रहे हैं जाल के आगे क्या? देबाशीष पर लगता है आलोक का भूत सवार हो गया है, टेलीग्राफिक पोस्ट लिखने लगे हैं।

सुनीलजी जब बाहर जाते हैं पूछने लगते हैं, "हम कहां आ गये हैं?" कहकशां में संगदिल (पत्थर दिल) सनम से एकतरफा बात शुरु हुयी। शशि सुना रहे हैं भोजपुरी कविता और भजन। इधर योगीजी दिखा रहे हैं माया के खेल, उधर तरुण बता रहे हैं एक और चौपाल के बारे में। जब से जीतेन्द्र ने नारद पर कलाकारी शुरु की है नारद का रोज रूप परिवर्तन हो रहा है। कभी तो पोस्ट पूरी की पूरी ही दिख जती है और आज की खबर के अनुसार नारदजी हर पोस्ट के दो विवरण दे रहे हैं - सरकारी अंदाज में; एक मूल प्रति, एक कार्बन कापी। कोई बात नहीं मियां, लगे रहो!

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