शुक्रवार, मार्च 03, 2006
नवांकुरित चिट्ठे
चर्चाकारः
debashish
फिर बात कुछ नवांकुरित चिट्ठों की। पहले पहल बर्लिन स्थित क्षितिज कुलश्रेष्ठ का "एक और नज़रिया"। शायद जर्मनी की हवा ने क्षितिज को अपनी सेक्सुअल पसंद की खुलेआम चर्चा करने का साहस दिया है। क्षितिज आपकी साफगोई की प्रशंसा करते हुए हम उम्मीद करेंगे कि समलैंगिक संबंधों के विषय पर और लिखेंगे। ग्रेग गोल्डिंग का चिट्ठा स्टिलिंग स्टिल ड्रीमिंग विविध विषयों पर आधारित चिट्ठा है जिनमें कविताएँ भी शामिल हैं। आखिर में बंगलौर के विजय वडनेरे की कुलबुलाहट की चर्चा। विजय ने शुरुआत की हनुमान चालीसा से और आ पहुंचे चचा तक। आगे क्या रंग लाता है उनका चिट्ठा इसकी कुलबुलाहट तो बनी रहेगी!
4 टिप्पणियां:
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हिन्दी चिट्ठे बहूरंगी हो रहे हैं, इस से एक शिकायत तो दूर हो ही जायेगी कि हिन्दी चिट्ठे मात्र कथा कविताओं से भरे होटल हैं.
जवाब देंहटाएंग्रेग गोल्डिंग का चिट्ठा है स्टिलिंग स्टिल ड्रीमिंग...
जवाब देंहटाएंDebashish जी (हिन्दी में स्पेल्लिंग न जानता हूँ),
जवाब देंहटाएंआपका वर्णन के लिए धन्यवाद। और सच ही कि मेरे चिट्ठे का नाम स्टिलिंग स्टिल ड्रीमिंग है, लेकिन वह टुटी-फुटी अंग्रेज़ी है, एक जापान का रैप ग्रूप से, इसलिए समझता हूँ कि सिटिंग स्टिल ड्रीमिंग कुछ और आम लगता है... किसी भी तरह से हिन्दी चिट्ठे के लिए बुरा-सा नाम है; नया नाम चाहिए शायद...
रमण, ग्रेग भूल सुधार कर लिया गया है। लगता है मैंने कुछ ज़्यादा ही सरसरी तौर पर पढ़ लिया।
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