
कल अजित वडनेरकर ने शब्द-सफ़र की जगह शख्सियत-सफ़र कराया। अनीता खरबंदा के अनीताकुमार में बदलने की कथा सुनाई। अनीताजी लिखती हैं-
कॉलेज के जमाने से ही हमें किताबों से बहुत प्यार था, लायब्रेरी हमारे लिए दूसरे घर जैसी होती थी। ऑफ़िस की नौकरी में हम किताबों से दूर हो गये थे, अब वो दिन फ़िर से लौट आए और हमें ऐसा लगा कि हम जैसे बहुत सालों बाद अपने घर लौट आये हों।
और भी बहुत कुछ कहती हैं वे और उनके लेख पर आयी टिप्पणियां। अजितजी की मेहनत की तारीफ़ वही करें।
दो दिन पहले मुम्बई के ही शशि सिंह का भी हल्ला हुआ। शशिसिंह हिंदी ब्लागिंग भले न करें लेकिन ब्लागिंग की चिंता जरूर करते हैं। और कहते हैं-
नि:संदेह बहस एक सार्थक प्रक्रिया है, मगर बहस के नाम पर जो आये दिन निरर्थक बातें होते रहती है वो मेरी नजर में सिर्फ और सिर्फ 'बेवकूफी' है। इससे हिन्दी ब्लॉग जगत की बहुत सारी रचनात्मक ऊर्जा जाया हो रही है। इस तरह की बहसों के प्रतोस्ताओं से अनुरोध है कि विरोधाभासों के बीच जीने की आदत डालिए और उन ब्लॉगर से अपील जो अपने लेखन से अपना या समाज का कुछ भला करना चाहते हैं कि वे इस तरह की निरर्थक बातों में न फंसे।
ऊपर के दोनों लेख ब्लागरों के संबंधित थे। अनीताजी के सफ़र पर आई प्रतिक्रियाओं की मात्रा शशि सिंह के इंटरव्यू से काफ़ी अधिक है। इसके कारण शायद बोलहल्ला का अनियमित और लोगों द्वारा कम पढ़ा जाना हो!
चोखेरवाली के बारे में अमर उजाला में लेख छपा। संपादकीय कैंची के चलते कुछ नाम कट गये होंगे। रचनाजी ने इसपर अपना मत रखा। आप दोनों देख लें। इसके बाद चंद एक-लाइना बांचे।
१.स्त्रियों को अपढ रखें, और देखें परिणाम : वही ढाक के तीन पात!
२. शादी पर आउटसाइड सपोर्ट:मांगते हुये आलोक पुराणिक ने महिला दिवस की शुरुआत की।
३.स्वामी जी और गब्बर सिंह :दोनों एक साथ काकेश के अड्डे पर दिखे। पुलिस सतर्क!
४.नारी तुम केवल सबला हो । :गाने वाला नर अगला हो!
५.विवाहेतर संबंधों पर झूठ बोलना स्वीकार्य!? :मतलब कि झूठ बोलने के लिये भी विवाहेतर संबंध बनाने जरूरी हैं!
६.चार चिट्ठा चोर और आठ दस नंबरी :इनकौ इतिहास कौन लिखै!
७. क्या सचिन से जलते हैं धोनी? :सचिन इस बात को बखूबी समझते हैं! आपको क्या बतायें!
८.चोखेरबालियॉं अमरउजाला में : छा गयीं। लेकिन रचना सिंह छूट गयीं!रचना बजाज भी जी!
९.संघी ऊपर से नीचे तक इतने फ्रॉड क्यों हैं? :ये अन्दर की बात है जी।
१०.मेरी व्यस्तता और मंत्री का मुण्डन :दोनों प्रायोजित हैं!
११. और होली मनाने के बारे में ये लिखते हैं....: इनकी छ्वाडौ कुछ अपन सुनाओ!
१२.चोर बलैया ले :आलोक पुराणिक की।
मेरी पसंद
आज हमने छु लिया, तो वो गुलाबी हो गए |
देखकर उस रूप को, हम भी शराबी हो गए ||
मेरे सीने में सिमटकर, गिनते हैं वो धड़कने |
सांसे पढ़ पढ़ कर जरा हम भी किताबी हो गए ||
महफिले तेरी इनायत, चर्चा भी सरे आम है |
जिक्र तेरा कर के हम, हाजिर जवाबी हो गए ||
अब तो चेहरा बाँट कर, सच दिखा दो तुम प्रिये |
होगी मुश्किल गर् ये, आंसू भी नवाबी हो गए ||
विनोद कुमार