महाशक्ति ने लिखा है:
बड़ी खुशनसीब होगी वह कोख और गर्व से चौडा हो गया होगा उस बाप का सीना जिस दिन देशशहीदे-आज़म पर नसरूद्दीन भगतसिंह होने का मतलब बता रहें है.
की आजदी के खातिर उसका लाल फांसी चढ़ गया था।
भगत सिंह और उनके
मित्रों की शहादत को आज ही नही तत्कालीन मीडिया और युवा ने गांधी के अंग्रेज
परस्ती गांधीवाद पर देशभक्ततों का तमाचा बताया था।
28 सितम्बर को भगत सिंह का जन्म दिन है। और यह साल इस मायने में खास है कि यह
उनकी जन्म शताब्दी का साल है।
जब देश के सबसे बड़े नेताओं का तात्कालिक लक्ष्य स्वतंत्रता प्राप्ति था,उस समय भगत
सिंह,जो बमुश्किल अपनी किशोरावस्था से बाहर आये थे,उनके पास इस तात्कालिक लक्ष्य से
परे देखने की दूरदृष्टि थी। उनका दृष्टिकोण एक वर्गविहीन समाज की स्थापना का था और
उनका अल्पकालिक जीवन इस आदर्श को समर्पित रहा। भगत सिंह और उनके साथी दो मूलभूत
मुद्दों को लेकर सजग थे,जो तात्कालिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में
प्रासंगिक थे। पहला,बढ़ती हुई धार्मिक व सांस्कृतिक वैमन्स्यता और दूसरा,समाजवादी
आधार पर समाज का पुनर्गठन।
समकालीन जनमत भगत सिंह का वह बयान लेकर आयें है जो उन्होने न्यायाधीशों के आगे दिया था.
माई लॉर्ड, हम न वकील हैं, न अंग्रेजी विशेषज्ञ और न हमारे पास डिगरियां हैं। इसलिए
हमसे शानदार भाषणों की आशा न की जाए। हमारी प्रार्थना है कि हमारे बयान की भाषा
संबंधी त्रुटियों पर ध्यान न देते हुए, उसके वास्तवकि अर्थ को समझने का प्रयत्न
किया जाए।
इंकलाब जिंदाबाद से हमारा वह उद्देश्य नहीं था, जो आमतौर पर
गलत अर्थ में समझा जाता है। पिस्तौल और बम इंकलाब नहीं लाते, बल्कि इंकलाब की तलवार
विचारों की सान पर तेज होती है और यही चीज थी, जिसे हम प्रकट करना चाहते थे। हमारे
इंकलाब का अर्थ पूंजीवादी युद्धों की मुसीबतों का अंत करना है। मुख्य उद्देश्य और
उसे प्राप्त करने की प्रक्रिया समझे बिना किसी के संबंध में निर्णय देना उचित नहीं।
गलत बातें हमारे साथ जोड्ना साफ अन्याय है।
कल भगतसिंह की जन्मशताब्दी है. शहीद को सलाम. वन्दे मातरम.