मैंने टिप्पणी न कर पाने के कुछ मासूम बहाने जब लिखे थे उस समय चिट्टाचर्चा करना बंद था वर्ना एक बहाना और लिखता कि चर्चा करने के कारण चिट्ठे पर टिप्पणी करना हो नहीं पाता। पढ़कर यहां लिखने के कारण अलग से लिखना हो नहीं पाता। वो कहते हैं न फिराक साहब-
वो पास भी हैं,करीब भी,
मैं देखूं कि उनसे बात करूं।
आज जब संजीत त्रिपाठी की पोस्ट पढ़ रहा था जो उन्होंने अनाथाश्रम के बारे में लिखी तो उसके बारे में उसके बारे में कुछ वनलाइनर सूझा नहीं। बालाश्रम के बारे में पत्रकारीय अंदाज में बताते हुये उन्होंने लिखा-
इसका मूल उद्देश्य अनाथ, निराश्रित बच्चों का पालन पोषण कर , शिक्षा देकर उत्तम नागरिक बनाना। 1948 मे स्वतंत्रता के पश्चात इस अनाथालय का नाम बदलकर "बाल आश्रम" रखा गया। मध्यप्रदेश सरकार प्रति बच्चे सौ रुपए के हिसाब से इस संस्था को मदद करती रही फ़िर बाद में जैसे-जैसे संस्था स्वावलंबी होती गई नियमों के तहत वह सरकारी मदद बंद हो गई।
आज जब तमाम मीडिया पत्रकारों की तमाम ताकत नये-नये बने प्रेम संबंधों की ट्रेकिंग करने में लगती है तब इस तरह के लेख यह जाहिर करते हैं कि कुछ लोग और जगह भी लगे हैं। इस पोस्ट पर आलोक पुराणिक की धांसू टिप्पणी है-
मार्मिक है जी, जो अच्छे काम दिल में आ रहे हैं फौरन कर गुजरिये।
अच्छा मैने नोट यह किया है कि जब आप नजर का चश्मा लगाकर फोटू पेश करते हैं, तो पोस्ट बहुत सात्विक होती है।
जब धूप का चश्मा लगाकर पोस्ट लिखते हैं, तो खासी आवारगी भरी होती है। अगर चश्मे से इस तरह मनस्थिति में बदलाव आता हो, तो क्या कहने, यार ऐसे चार-चश्मे अपन को भी भिजवाओ ना।
टिप्पणी की बार चली तो बमार्फ़त टिप्पणीकार ही कुछ और मजेदार बात। भूपेन की पोस्ट पर लोगों की टिप्पणियां देखकर निर्मलानंद अभय तिवारी बोले- टिप्पणी करने वाले भाई लोग इतना फलफला क्यों रहे हैं.
देबाशीष ने काफ़ी दिन लिखा ब्लागिंग के बारे में। बेबदुनिया जैसे बड़े पोर्टल भले ही ब्लागिंग की शुरुआत करने वाले हैं लेकिन उनकी ब्लागिंग के बारे में उनकी समझ ऐसी है कि
अपनी प्रेस विज्ञप्ति में उन्होंने “प्लेटफार्म” की बजाय “ब्लॉग” लिखना उचित समझा जिससे ये समझ आता है कि बड़े समूहों को भी ब्लॉगिंग की वो बात समझ नहीं आ रही जो सामान्य चिट्ठाकारों को आ रही है और वजह वही पुरानी है, शाकाहारी लोग दूसरों के लिये मटन पका रहे हैं, इन लोगों के पास शायद एक भी ऐसा बंदा नहीं जो ब्लॉगिंग के बारे में जानता हो और इसे महसूस करता हो
कालेजियेट किस्से और विद्यार्थी जीवन के सुपर हिट संवाद अगर आपको फ़िर से याद करने हों तो बड़ी मुफ़ीद पोस्ट है दीपक की। इन्हीं सुपर हिट संवादों पर अपनी संवाद सेवा जारी रखते हुये प्रत्यक्षाजी ने लिखा- जो वर्ड समझ में आ रहा है वो लिख,...जो नहीं आ रहा उसकी ड्राईंग कर दे...." कल उन्होंने पट्ना की दुर्गा पूजा को याद करते हुये बयान किया-
नयी नवेली लड़कियाँ , कुछ पहली बार साड़ी में । माँ से गिड़गिड़ा कर माँगी , फटेगी नहीं , सँभाल लूँगी के आश्वासन के बाद , भाभी के ढीले ब्लाउज़ में पिन मार मार कर कमर और बाँह की फिटिंग की हुई और भाई से छुपाके लिपस्टिक और बिन्दी की धज में फबती , मोहल्ले के लड़कों को दिखी कि नहीं , इसे छिपाई नज़रों से ताकती भाँपती लड़कियाँ , ठिलठिल हँसती , शर्मा कर दुहरी होतीं , एक दूसरे पर गिरती पड़ती लड़कियाँ । ओह! ये लड़कियाँ ।
बात ओह! ये लड़कियां तक ही नहीं सीमित है भाई! लड़कों के डायलाग भी हैं-
लड़कों की भीड़ । बिना काम खूब व्यस्त दिखने की अदा , खास तब जब लड़कियों का झुँड पँडाल में घुसे ।
अबे , ये फूल इधर कम क्यों पड़ गये ,
अरे , हवन का सब धूँआ इधर आ रहा है , रुकिये चाची जी अभी कुछ व्यवस्था करवाते हैं
अरे मुन्नू , चल जरा , पत्तल और दोने उधर रखवा
जैसे खूब खूब ज़रूरी काम तुरत के तुरत करवाने होते । जबकि पंडिज्जी ने जब कहा था इन के बारे में तब सब उदासीन हो एक एक करके कन्नी काट गये होते ।
फिलहाल इतना ही। आप मौज करो। ये देखते जाइयेगा!
१.मनमोहना बड़े झूठे… : सांची कहूं मैं तोसे री गुंइयां!
२.मेघ और मड की रिश्तेदारी : दोनों गंदगी फ़ैलाते हैं।
३.रद़दी पेपरवाला ! अखबारों का कद्र्दान/शरणागत रक्षक!
४.जीवन ही मृत्यु है फिर जीने के लिये क्या मरना!
५.हमहूँ स्टूप डाउन करूंगा :कि ब्लॉगिंग भष्टाचार का अनुपम उदाहरण है।
६. कार्बन डाई ऑक्साइड कम सोख रहे हैं महासागर: हर जगह कामचोरी का माहौल है।
७.....मिलजुल कर एक सपना देखें :जय हिंदी---जय हिंद---जय गांव!
८.खाना, पीना, सोना कम्प्यूटर के साथ!:हम सोते हैं लेकिन बेचारा कम्प्यूटर जागता रहता है।
९.पुलिस,बच्चे ऒर लुच्चे-लफंगे : सब एक से बढ़कर एक हैं।
१०.क्या अफ़लातून गंदे गाने सुनना चाहते हैं? : जबाब दो भाई अफ़लातूनजी। चुप काहे हैं?
११.'मैं झूठ के दरबार में सच बोल रहा हूँ..' : अपने-अपने कान बंद करके सुनिये।
१२.गुलाबी शहर :में निशानेबाजी।
१३.कितने आदमी हैं? : गिनने पड़ेंगा बास!
१४.कल्लोपरी की आसिकी :तिल बनाना चाहा था स्याही बिखर गई!
१५.सरकारी मास्टर के रूप में मेरा सीटीसी क्या है? :जिसे बंगला, नौकर, अर्दली, सैलून कुछ नहीं मिलता।
१६.मैं खुद शर्मिंदा हूँ : कि मैं भी अभी ज़िंदा हूँ।
१७.जटिल लोकतंत्र में तो टिप्पणीकार अकारण फलफलाएंगे ही :टिप्पणी करने वाले भाई लोग इतना फलफला क्यों रहे हैं!
१८. विद्यार्थी जीवन के सुपरहिट संवादआपने कभी ऐसे संवाद बोले या नहीं?
१९.उंचाई नैनोमीटर में बताना है : अपने आप बढ़ जायेगी।
२०.सफल चिट्ठाकारी की गारंटी : फ़ैशन के दौर में गारंटी की बात करके शर्मिंदा मत हों।
२१.एक पुरानी पोस्ट का री-ठेल : आप तो ऐसे न थे।
आपके वनलाईनर तो धासूं च फ़ांसू!!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया व आभार!!
आजकल मै़ अपने दफ्तर से बाहर हूँ अत: जाल की सुविधा न के बराबर है. अत: टिप्पणिया़ कम हो पा रही हैं. लेख पहले से लिख लिये थे अत: सारथी पर नियमित छप रहे है.
जवाब देंहटाएंकई दिनों से चिट्ठाचर्चा सुप्त हो गया था, लेकिन दोतीन दिन से आप के चर्चे आने लगे हैं, पढ कर अच्छा लगा !!
-- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
बेहतरीन वन लाईनर-जारी रखें.
जवाब देंहटाएंमारु च चारु टिप्पणियां हैं जी। जारी रहिये।
जवाब देंहटाएंफोटू एकदम सटीकै है, माडर्न आशिक के दिल के माफिक, एक भी चोट दिल पर नहीं लेता टाइप।