कल आलोक पुराणिक ने पहले तो शरीफ़ों की तरह कहा लेकिन बाद में हमको धमकियाते हुये कहा -अगर वनलाइनर ने पेश किये तो समझ लो...।
हमने कहा -क्या समझ लें? क्या कल्लोगे?
वे बोले -हम कुछ भी कर सकते हैं। क्या करेंगे हमें खुद ही नहीं पता। लेकिन आपको पता होना चईये कि हमारे सल्लिका मेहरावत और साखी रावंत से अंतरंग संबंध हैं। अब तो घाट-घाट का पानी पिये मामू भी अपने हो गये। फिर मत कहियो पहले बताया नहीं
हम मारे डर के लिखने के लिये प्रस्तुत हो लिये। डरने के चक्कर में तमाम गलतियां हो गयीं। डर में आदमी गाना भले गा लेकिन सही टाइप नहीं कर सकता। लेकिन इसे आप समझ लीजियेगा। ब्लागर से भले न हो लेकिन पाठक से इत्ती उम्मीद तो रखी जा सकती है न!
पहले कुछ समाचार-
1. हाईकोर्ट के नीचे कल ज्ञानदत्त जी गाना गाते पाये गये। गाना सुनते ही मोहम्मद युनुस और ममता कन्फ़्यूज हो गये। बाकी लोग भी फ़्यूज हो गये। बाद में ज्ञानजी बोले -ये आवाज हमारी थी। लोग चुप साध गये। क्या कर लेते जब हाई कोर्ट ही कुछ नहीं कर रहा है।
2. मुंबई से हमारे संवाददाता अभय तिवारी ने सूचना दी है कि अनिल सिंह रघुराज ने अपने बाल छंटा लिये हैं। अफ़वाह है कि उन्होंने यह कवायद महेन्द्र सिंह धोनी की देखादेखी की। अब प्रमोद सिंह का पूछना है कि महेन्द्र सिंह धोनी ने तो दीपिका पादुकोण के कहने पर यह किया। अनिल ने किसके आग्रह पर बाल कटवाये? नाम की तलाश जारी है।
3.लोग मामाजी के आने से बड़े खुश थे कि चलो कोई तो कायदे का आदमी जुड़ा ब्लाग-जगत से। लेकिन वे भी विविध भारती निकले। घाट-घाट का पानी पिये हैं वे। उनके अखबारी घाट की तलाशी लेने पर पता चला कि उनके संबंध भी न जाने कैसे-कैसे लोगों से पाये गये। एक तो बेचारा उनसे मिलने के बाद छलनी भी हो गया।
4.अपनी शब्दसंपदा से लोगों का ज्ञान बढ़ाने वाले भांजे अजित अपनी खुद की पहचान तलाशते पाये गये। वे पूछ रहे हैं मैं कौन हूं? शर्मा या वडनेरकर?
5. तकनीकी गुरु रविरतलामी का कम्प्यूटर भी सड़ेला निकला। टंकी धड़ाम हो गयी। और न जाने क्या हो गया। देखिये आप भी। जब गुरुओं के ये हाल तो चेले का कौन हवाल होगा।
नौकरी करी-करी न करी। अजीब बात है एक अपनी हो चुकी नौकरी को गुलामी समझ कर कविता लिख रहा है। दूसरा नौकरी लगने के बारे में बताते हुये चहक रहा है, महक रहा है।
अब पेश हैं चंदवनलाइनर। बालकिशन का नाम ले रहे हैं वर्ना वे कहेंगे कि हमें छोड़ दिया। :)
1. चित्र-चोरी एवं चित्र उपयोग: करने की तरकीब शास्त्रीजी से सीखें।
2. मतदान: ऊंट के मुंह में जीरा|
3.गुजरात चुनाव के मायने : बताने के लिये जीतेन्द्र ने चुप्पी तोड़ी।
4. मैं कौन हूं? शर्मा या वडनेरकर: ये अंदर की बात है। कैसे बतायें?
5.बथुआ - सर्दियों की स्वास्थ्यवर्धक वनस्पति : रात को न खायें।
6. मौसम से परेशान सब:ये तो जी का जंजाल है।
7. सकारात्मक दृष्टिकोण:दारू पीना अच्छी बात है!
8.गाँठ बांधने का दौर [गठबंधन-1] : ये वाली तो बांध ली और कितनी गांठे हैं।
9.कोई अपना यहाँ : हो तो टिप्पणी करे भाई।
10. पल ने जो उपहार दिया था: वो अब सब सामने आ रहा है।
11.दुनिया भर के लोग औषधीय फसल स्टीविया पर चर्चा कर रहे हैं यहां पर : और यहां किसी को हवा ही नहीं।
12. नंदीग्राम में वामपंथ का पंथ गायब!: दामपंथ थाने में रपट लिखायें।
मेरी पसंद
(जूते चमकाने वाले बच्चों के लिए)
वे जूतों की तलाश में
घूमते हैं ब्रश लेकर
और मिलते ही बिना देर लगाए
ब्रश को गज की तरह चलाने लगते हैं
जूतों पर
गोया जूते उनकी सारंगी हों ।
दावे से कहा जा सकता है कि
उन्हें जूतों से प्यार है
जबकि फूल की तरह खिल उठते हैं
जूतों को देखकर वे ।
जब कोई नहीं होता
चमक खो रहे वे
जूतों से गुफ़्तगू करते हैं।
भरी
दोपहरी में वे
जमात से बिछुड़े जोगी की तरह होते हैं
जिसकी सारंगी और झोली
छीन ली हो बटमारों ने ।
उन्हें बहुत चिढ़ है उन पैरों से
जिनमें जूते नहीं ।
बहुत पुरानी और अबूझ पृथ्वी पर
उस्ताद बुंदू खाँ और भरथरी के चेलों की तरह
यश और मोक्ष नहीं
निस्तेज जूतों की तलाश करते हैं वे।
रचना तिथि-१९-०२-1996
बोधिसत्व
"चित्र-चोरी एवं चित्र उपयोग: करने की तरकीब शास्त्रीजी से सीखें।"
जवाब देंहटाएंअरे बाप रे, आप ने तो हम को चोरों का सरगना एवं "सारथी" बना दिया !!
आपका हर लेख पठनीय होता है. नियमित रूप से लिखते रहे !!
हर एक मामा विविधभारती होता है। यह अलग बात है कि हर नियम के कुछ ही अपवाद होते हैं।
जवाब देंहटाएंलगे रहिये जी। रेगुलर होईये जी। वनलाइनर का तो आपने महीने में वनटाइमर सा कर रखा है। बोधिसत्वजी की कविता का तो जवाब ही नहीं है। गहरी बात ऐसे सादे अंदाज में। क्या कहना।
जवाब देंहटाएंपूरे आधे घंटे तक चार बार पढी ये पोस्ट. क्योंकि मेरा नाम जो आगया है.
जवाब देंहटाएं"अब पेश हैं चंदवनलाइनर। बालकिशन का नाम ले रहे हैं वर्ना वे कहेंगे कि हमें छोड़ दिया। :)"
लेकिन ये तो लेकर बहुत ऊपर से छोड़ना हुआ जी अपनी तो हड्डी-पसली सब बराबर हो गई.
बहुत मजे आ रहे है न?
अनूपजी दा जवाब नई। निरमा सुपर वाली पारखी नज़र पाई है आपने। बहुत खूब । हमेशा की तरह बार बार पठनीय। ये क्रम तो साहब चलता रहने दें....
जवाब देंहटाएंबोधिभाई की कविता पसंद आई।
किसी ने पूछा मामा कबसे हैं (ब्लाग पर)। अर्ज किया है कि मामा तो सदियों से रहे हैं भोजों की लाग पर। जहां तक ब्लॉग का सवाल है अपनेराम नये नये ब्लॉगी हैं, पर दागी बहुत पुराने हैं यह सब भोजा लोग समझ लें।चबसलस
जवाब देंहटाएंआपकी पसंद में खुद को पाकर अच्छा लगा...
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