मैं फिजिक्स का विद्यार्थी हूँ और होम साइंस की किताब चुपके से पढ़ रहा हूँ । पढने के बाद अंगडाई लेता हूँ जैसे हवाई जहाज कैसे बनता है, जान लिया हो । बाहर देहरी पर दस्तक हुई है, चुपके से किताब को यथास्थान रख देता हूँ और फिजिक्स के डेरीवेशन की किसी पंक्ति पर लटक जाता हूँ । उसकी होम साइंस
टिफिन रखती है और चल देती है । मुड़कर वापस आती है "अच्छा वैसे किसकी शक्ल बिगाड़ने की कोशिश थी" । मैं शरमा जाता हूँ । "देखो मुझे अपना चेहरा बहुत प्यारा है" कहती हुई बैठ जाती है । मैं गणितज्ञ होने की कोशिश में लग जाता हूँ । वो होम साइंस के शस्त्र निकाल लेती है । उसकी होम साइंस
कमरे में उसकी खुशबु घुल सी गयी है । लम्बी साँस लेता हूँ और सर्किल बनाकर रुक जाता हूँ । याद हो आता है, उसे उसका चेहरा बहुत प्यारा है । सोचकर मुस्कुरा उठता हूँ , हमारी पसंद कितनी मिलती है । उसकी होम साइंस
वो दोपहार को छत पर कपडे पसारने आई है । मैं उसका हाथ पकड़ लेता हूँ । वो कह रही है "हमारा हाथ छोडो" । हम प्रत्युत्तर में कहते हैं "अगर नहीं छोड़ा तो" । तो "अम्मा...." । वो तेज़ आवाज़ देती है । मैं हाथ छोड़ देता हूँ । "बस डर गए" कहती हुई, खिलखिलाकर चली जाती है ।फ़िक्शन
अँधेरा घिर आया है । छत पर महफ़िल जमी है । अम्मा आवाज़ देकर उसे बुला रही हैं । नीचे से आवाज़ आ रही है "आ रहे हैं" । सीढ़ियों पर मैं खड़ा हूँ । हमारा आमना-सामना हुआ है । वो आगे को बढ़ने लगती है । हम हाथ पकड़ लेते हैं । वो कुछ नहीं कहती । हम पास खींच लेते हैं । और उसके कानों के पास जाकर कहते हैं "आवाज़ दो फिर भी नहीं छोड़ेंगे" । वो मुस्कुरा उठती है ।फ़िक्शन
बारिश बीतती तो आसमान उजला-उजला निखर आता । और तब, जब भी आसमान में इन्द्रधनुष को देखता तो जी करता कि इन साहब के कुछ रंग चुराकर पेंटिंग बनाऊँ । तमाम कोशिशों के बावजूद में असफल होता और इन्द्रधनुष मुँह चिढ़ाता सा प्रतीत होता । नानी कहती "अरे बुद्धू, उससे भी कोई रंग चुरा सकता है भला" । मैं नाहक ही पेंटिंग करने का प्रयत्न करता । मैं मासूम उड़ती चिड़िया को देखता, तो मन करता कि इसको पेंटिंग में उतार लूँ । कई बार प्रयत्न करता और हर दफा ही, कभी एक टाँग छोटी हो जाती तो कभी दूसरी लम्बी ।मैं और बचपन का वो इन्द्रधनुष
कहती थी ना मैं "ईश्वर सबको कोई न कोई हुनर देता है । तुझे गणित जैसे विषय में उन्होंने अच्छा बनाया और अब देख कितने बच्चे तुझसे पढने आते हैं । तुझे आदर मिलता है, उनका प्यार मिलता है । दुनिया में जो सबसे अधिक कीमती है, वो तुझे बिन माँगे मिल रहा है ।" मैं और बचपन का वो इन्द्रधनुष
उसके गालों पर डिम्पल थे । कितनी क्यूट लगती थी, जब वो हँसती । गुस्सा तो जैसे नाक पर रखा रहता उसके, जब भी मोनिटर-मोनिटर खेलती । हाँ, वो हमारी क्लास की मोनिटर जो थी । और मेरा नन्हा-मुन्ना सा दिल धड़क-धड़क के इतनी आवाजें करता कि बुरा हाल हो जाता ।बचपन की मोहब्बत
वो एक दिन बोली "तुम मुझसे दोस्ती करना चाहते थे ना । अब तो हम दोस्त हैं न ।"
मैंने कहा "धत, दोस्ती ऐसे थोड़े होती है ।"
"तो कैसे होती है ?"
"गर्ल फ्रेंड तो गाल पर किस करती है ।"
"अच्छा तो लो" और उसने मेरे गाल पर किस कर लिया ।
यारों अपनी तो लाइफ सेट हो गयी । अब वो मेरी गर्ल फ्रेंड बन गयी....बचपन की मोहब्बत
उसका आज जन्मदिन है और ये बात मुझे उसके पिछले जन्म दिन के बाद से ही याद है । न मालूम क्यों, जबकि मैंने ऐसा कोई प्रयत्न भी नहीं किया । याद हो आता है कि अभी चार रोज़ पहले उसने मेरे गाल को चूमा था । उस बात पर ठण्डी साँस भरता हूँ । उसके होठों के प्रथम स्पर्श का ख्याल मन को सुख देकर चला गया है ।स्मृतियों से वो एक दिन
"हैप्पी बर्थ डे, माय लव" सुनकर वो खिलखिला जाती है । उसे गुलाब और कार्ड देते हुए गले लग जाता हूँ । एहसास होता है कि ना जाने कितने समय से हम यूँ ही एक दूजे से चिपके हुए हैं । मैं स्वंय को अलग करता हूँ । उसके गालों को चूम कर "हैप्पी बर्थ डे" बोलता हूँ । वो आँखों में झाँक कर प्यार की गहराई नाप रही है शायद । "अच्छा तो अब मैं चलूँ" ऐसा मैं कुछ समय बाद बोलता हूँ और पलट कर चलने को होता हूँ । वो हाथ पकड़ लेती है । हम फिर से एक दूसरे से चिपके हुए हैं । पहली बार उसकी गर्म साँसों और होठों को महसूस कर रहा हूँ ।स्मृतियों से वो एक दिन
हरी घास के एकतरफ बनी हुई पगडंडियों पर तुम नंगे पैर दौडे जा रही हो और मैं तुम्हारे पीछे-पीछे चल रहा हूँ । डर रहा हूँ कहीं तुम गिर ना जाओ । किन्तु तुम यूँ लग रही हो जैसे हवा ने तुम्हारा साथ देना शुरू कर दिया है । राह में वो सफ़ेद दाढ़ी वाले बाबा तमाम रंग-बिरंगे गुब्बारे लेकर खड़े हुए हैं । हरे, लाल, पीले, गुलाबी, नीले, हर रंग में रंगे हुए गुब्बारे । तुम उन्हें देखकर ऐसे खुश हो रही हो जैसे एक मासूम बच्ची हो । उन गुब्बारों में एक रंग मुझे तुम्हारा भी जान पड़ता है, मासूमियत का रंग या शायद प्यार का रंग या फिर ख़ुशी का रंग । तुम, मैं और हमारी असल सूरतें
खुशियाँ बिखेरती हुई तितलियाँ अपने अपने घरों को चली जाती हैं । तुमने मेरा हाथ फिर से पकड़ लिया है और हम चहलकदमी करते हुए अपने दरवाजे तक पहुँच गए हैं । फिर तुम अचानक से मेरे गाल को चूम कर दरवाजा खोलकर अन्दर चली जाती हो । मैं मुस्कुराता हुआ तुम्हारे साथ आ जाता हूँ ।
सुबह उठ कर तुम मेरे सीने पर अपने सर को रख कर बोल रही हो "कहाँ ले गए थे मुझे" । और मैं तुम्हारे बालों को चूमकर कहता हूँ "हमारी पसंदीदा जगह" । तुम मुस्कुरा जाती हो । तुम, मैं और हमारी असल सूरतें
एटीएम और क्रेडिट कार्ड पर खड़े समाज में ठहाकों के मध्य कभी तो तुम्हारा दिल रोने को करता होगा । दिखावे के उस संसार में क्या तुम्हारा दम नहीं घुटता होगा । चमकती सड़कों, रंगीन शामों और कीमती कपड़ों के मध्य कभी तो तुम्हें अपना गाँव याद आता होगा । कभी तो दिल करता होगा कच्चे आम के बाग़ में, एक अलसाई दोपहर बिताने के लिए । कभी तो स्मृतियों में एक चेहरा आकर बैचेन करता होगा ।
फिर भी अगर तुम्हें कहीं सुकून बहता दिखे, तो एक कतरा मेरे लिए भी सुरक्षित रखना । शायद कभी किसी मोड़ पर हमारी मुलाकात हो जाए । वैसे भी, अभी भी कुछ उधार बनता है तुम पर । सुकून
ये कुछ पोस्टों के अंश हैं –हसरतगंज ब्लॉग की। कल इनको देखा तो एक साथ सब पढ़ गया। बहुत अच्छा लगा। सोचा आपको भी पढ़वायें। मासूम मोहब्बत के प्यारे से किस्से।
मेरे जैसे unromantic लोगों का दिल जला देने वाली यादें. मुझे बहुत पसंद आयी . puri baad me aram se padhunga. dhanyavad.
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद इस अंदाज में दिखे है.. बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएं***ब्लॉग का नाम तो 'हसरतसंज 'है...आप की पोस्ट का शीर्षक 'हसरतगंज' ..के किस्से ...मुझे पढ़ने में लगा 'हज़रतगंज'..... के किस्से~!
जवाब देंहटाएं[....अभी तक यहाँ सूरज देवता के दर्शन हुए नहीं ..लगता है बेमौसम बारिश होगी..]
अलग रंग में रंगी आज की चर्चा..
@कुछ कहानियाँ पढ़कर वहाँ से लौटी हूँ...
जवाब देंहटाएंआप के बताये लिंक पर मिली ..'किसी अनाम की स्मृतियों की मोहक प्रस्तुति ' जो पाठक को ख्यालों की सैर पर ले ही जायेगी ..
-लेखक जो भी है उसे बधाई और आप का आभार
किसी ने ये ब्लॉग अपने ख़ास दोस्तों के अनुरोध पर बनाया है. वो जो कि उनकी भीनी-भीनी रोमैंस में भीगी पोस्ट को बहुत पसंद करते हैं. मैं भी उनके प्रशंसकों में से एक हूँ. उनकी ये छोटी-छोटी कहानियाँ परी लोक की सैर कराती हैं. पता नहीं उन्होंने अपना प्रोफाइल क्यों हटा दिया. इसीलिये मैं भी उनका नाम नहीं लिख रही हूँ.
जवाब देंहटाएंमुझे यकीन था की आक ना कल इसका जिक्र जरूर होगा और आप ही करेंगे पर इस तरह करेंगे ये पता नहीं था... यह खासिल मुस्कराहट लाने वाली पोस्ट है. छोटी छोटी कहानियां... ये लिखने वाला पिछले कई महीनो से बदल रहा है, खूब पढ़ रहा है और परिपक्व हो रहा है. ऐसे में इसके कमेंट्स तो घट ही रहे थे (ब्लॉग जगत के स्वभावानुसार) .. लेकिन उम्मीद है यहाँ सब ठीक होगा.
जवाब देंहटाएं@ मुक्ति साहिबा,
अब लिखने वाला खुद नहीं चाहता तो हम भी क्यों बताने की कोशिश क्यों करें वैसे शिल्प को देखें तो पहचानना उतना मुश्किल भी नहीं और यह भी सही है की उनको जरुरत भी नहीं थी प्रोफाइल हटाने की अभी उस पर और दिलचस्प किस्से आने हैं...
आपका इसके चर्चा करने का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंफुरसत के पलों के लिये आज एक अच्छा लिंक पकड़ाया है, अनूप सर !
उद्धरित गद्याँश आकर्षित करते हैं, और एक उम्मीद जगाते हैं कि
जब भी मिलें फुरसत के पल दो पल, हम चल दें उधर को
यह कहते हुये, " आओ थोड़ा सा रूमानी हो जायें ।"
मगर कहाँ है, कमबख़्त फुरसत ?
पहले जरा मिले तो सही
आभार आपका
यहाँ तो ना जाने कितनी हसरतों को मुकाम मिल गया होगा……………एक बार फिर किसी दूसरी ही दुनिया मे ले गयी ये हसरतें……………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंनींद की पिनक में कुछ शब्द गलत लिख गया (आदतानुसार)
जवाब देंहटाएंआक = आज
खासिल = खालिस
बहुत सही ब्लॉग लाये है आप इस बार चर्चा में.. जब कुछ दिन इस ब्लॉग पे पोस्ट नहीं आयी तो हमने इसके लेखक से खुद पोस्ट लिखने की सिफारिश भी की.. नायाब ब्लोग्स की लिस्ट में शुमार किया जा सकता है..
जवाब देंहटाएंउम्मीद है कभी सोचालय का भी जिक्र होगा चर्चा में.. वो भी हमारा पसंदीदा ब्लॉग है
abhi apko banchte huye .... hasratgunj ko bachne ki hasrat jagi hai ..... waqt nikal kar bakiya hasrat poora karoonga.....
जवाब देंहटाएंpranam.
छोटी छोटी रूमानी कहानियाँ एक अलग दुनिया की सैर करा लाती हैं .शुक्रिया इस चर्चा का.
जवाब देंहटाएंहसरतगंज ब्लॉग की बहुत अच्छी चर्चा ...पहली बार जाना हुआ उस ब्लॉग पर ...अच्छी चर्चा ..आभार
जवाब देंहटाएंआज़ तो निराले अंदाज़ में पेश की चर्चा आपने
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एक नज़र : ताज़ा-पोस्ट पर
मानो या न मानो
पंकज जी को सुरीली शुभ कामनाएं : अर्चना जी के सहयोग से
पा.ना. सुब्रमणियन के मल्हार पर प्रकृति प्रेम की झलक
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आज तो बडे रंगीन तेवर हैं :) कहीं यह हसरतसंज हज़रतगंज की कहानी तो नहीं कह रहा है:)
जवाब देंहटाएंबहुत रोमानी चर्चा है, मासूम भी, हसरतसंज की तरह.
जवाब देंहटाएंभैया ये अर्थात होम साइंस यदि हमारी भौजी ही हैं तो ठीक है अन्यथा तुम्हारी खैर नहीं .
जवाब देंहटाएंमृगांक
ek masoom mohabbat.
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder.
हसरतगंज ब्लॉग की बहुत अच्छी चर्चा ...पहली बार जाना हुआ उस ब्लॉग पर!
जवाब देंहटाएंअभी कल ही हजरतगंज घूम कर आये थे आज हसरतगंज की सैर भी हो गई ।
जवाब देंहटाएंमैंने आपके पास इन्हें भेजा है.... इन लोगों का अपने घर पर दीवाली ( 5 Nov 2010) शुक्रवार को स्वागत करें.
जवाब देंहटाएंhttp://laddoospeaks.blogspot.com/
दीवाली पर्व है खुशियों का, उजालों का, लक्ष्मी का…. इस दीवाली आपकी जिंदगी खुशियों से भरी हो, दुनिया उजालों से रोशन हो, घर पर महा लक्ष्मी का आगमन हो… दीपक का प्रकाश हर पल आपके जीवन मे एक नयी रोशनी दे, बस यही शुभकामना है हमारी आपके लिए दीवाली के इस पावन अवसर पार ...दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ
जवाब देंहटाएंदीवाली पर्व है खुशियों का, उजालों का, लक्ष्मी का…. इस दीवाली आपकी जिंदगी खुशियों से भरी हो, दुनिया उजालों से रोशन हो, घर पर महा लक्ष्मी का आगमन हो… दीपक का प्रकाश हर पल आपके जीवन मे एक नयी रोशनी दे, बस यही शुभकामना है हमारी आपके लिए दीवाली के इस पावन अवसर पार ...दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ
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