शनिवार, जुलाई 02, 2011

यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ

[भाई लोगों ने बताया कि चिट्ठाचर्चा की यह पोस्ट उधर खुल नहीं रही है सो फ़िलहाल वहां मामला ठीक होने तक इधर ही सटा देते हैं। उधर ठीक होने पर उधर धर देंगे।]

सन दो हजार तीन से शुरु हुई ब्लाग यात्रा अब आठ साल पुरानी होने को आई। शुरुआत में किसी-किसी अखबार में कभी कहीं ब्लाग का जिक्र हुआ तो चिट्ठाकार उचके-उचके घूमते थे ब्लाग जगत में। ये देखो अलाने अखबार में फ़लानी किताब में हम छपे हैं। नाम की स्पेलिंग गलत है, फ़ोटो थोड़ा धुंधला है लेकिन ये है हमारा ही लेख।



बीते आठ साल में चिट्ठाजगत का हाल और हुलिया बदला है। आज लगभग हर अखबार नियमित रूप से ब्लागिंग पर कुछ न कुछ सामग्री देता है। कुछ अखबार तो अपने परिशिष्ट का मसाला ब्लागों से ही सीधे-सीधे ले लेते हैं। माले मुफ़्त दिले बेरहम। हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान बीच के पन्ने में एक पतला सा कालम किसी ब्लाग से लेकर ठूंस देता है। कालम में जगह की सीमा है सो अक्सर ब्लाग सामग्री कलम कर दी जाती है। पिछले दिनों निशांत की पोस्ट 10 बातें जो हम जापानियों से सीख सकते हैं हिन्दुस्तान में छपी तो कट-छंट के लेकिन ब्लाग और ब्लागर का नाम गायब था। लगता है अखबारों ब्लाग से कालम उठाने वाले ब्लागर से भी ज्यादा हड़बड़ी में रहते हैं।






पैसा-वैसा जान दो भाई। अखबार वाले बताते भी नहीं कि आपका लेख छापे हैं। वहीं साभार कह दिये। छाप दिया- कृतार्थ किया! मस्त रहो। अब कोई कह सकता है कि हम ब्लागर कौन अमूल के दूध के धुले हैं। इधर-उधर से ले-देकर सामान साटते हैं। लेकिन हम कह सकते हैं कि हम तो हिन्दी की सेवा कर रहे हैं -विनम्रता पूर्वक । कौनौ घर थोड़ी भर रहे हैं अपना। लेकिन आप तो हमारे लेखन को छाप के पैसा कमा रहे हैं। हमको पत्रम-पुष्पम देने में आप संकोच क्यों करते हैं। कुछ तो भेजिये। कम से कम चाय-पानी का खर्चा तो निकले जो दोस्तों ने छपने की खुशी में पी ली हमसे जबरियन। आप समझ नहीं रहे हैं कि अगर आप हमको मानदेय नहीं देते तो हमारे करप्ट हो जाने की खतरा है। यह बात विनीत ने कही है विस्तार से। वे कहते हैं-लेखक को पैसे नहीं मिलेंगे, तो वो पक्‍का करप्ट हो जाएगा!



सप्ताह भर पहले रचना जी ने ब्लागिंग के अपने पांच साल पूरे किये। इस मौके पर ब्लाग जगत के अपने अनुभव को कविता में लिखते हुये उन्होंने बयान जारी किया:

५ साल होगये पता भी नहीं चला , मै यहाँ खुश होने आयी थी , खुश करने नहीं और मै उस मकसद में कामयाब हूँ

रचना जी ने नारी ब्लाग के माध्यम से बीते पांच साल में हलचल मचा के धर दी। उनके अपने मुद्दे रहे। अपनी सोच रही। मूलत: नारी सम्मान के मुद्दों पर वे लिखती-टिपियाती-लड़ती-झगड़ती रहीं। इस मामले में उन्होंने अपनी समझ से बिना किसी से समझौता किये अपनी बात रखी। लोगों की शिकायत भी रहती रही कि उनको हर मुद्दे को नारी स्वाभिमान से जोड़ने की आदत है।

अपनी समझ के अनुसार अपनी बात कहने में रचना जी ने कभी किसी का लिहाज नहीं किया। न किसी दबाब में आईं। अपने ब्लाग से जुड़ी साथियों की बात का विरोध भी करने में भी उन्होंने कभी कोई संकोच नहीं किया। जिनके लिये कभी उन्होंने बहसें कीं ऐसा भी हुआ कि उन्हीं लोगों ने उनको अपने ब्लाग पर आने से बरज दिया। लेकिन वे इससे अप्रभावित रहीं।अपने अंदाज में लिखत-पढ़त करतीं रहीं। उनके तर्क कभी-कभी अटपटे भी लगते रहे और कभी यह भी लगता रहा कि वे बेफ़जूल हर मुद्दे की गाड़ी स्त्री-पुरुष वाली पार्किंग में ले जाकर खड़ी कर देती हैं। :)

अपने स्वभाव के चलते उनको हिन्दी ब्लाग जगत में बहुत विरोध भी झेलना पड़ा। तमाम लोगों ने उनके बारे में बहुत बेशर्म, बाहियात, अश्लील , दादा कोंडके की भाषा में फ़ूहड़ द्विअर्थी टिप्पणियां कीं। उनके खिलाफ़ अनामी नाम बाहियात पोस्टें लिखीं। लेकिन इससे रचनाजी बहुत दिन तक विचलित नहीं रहीं!

रचना जी के खजाने में ब्लाग जगत की तमाम घटनाओं के कच्चे चिट्ठों के सटीक पक्के लिंक मौजूद हैं। कब, किसने, उनके किसी मुद्दे या उनके या और किसी के खिलाफ़ क्या कहा था यह वे तड़ से पेश कर सकती हैं। कभी कोई ज्यादा शरीफ़ बनता दिखायी दिया टिपियाने में तो उसका भी कोई लिंक पेश कर सकती हैं कि आप का एक चेहरा यह भी था/है। :)

हमारे मौज-मजे वाले अंदाज की रचना जी अक्सर खिंचाईं करती रहीं। उनका कहना है कि ब्लागजगत के शुरुआती गैरजिम्मेदाराना रुख के लिये बहुत कुछ जिम्मेदारी हमारी है। अगर हम हा-हा, ही-ही नहीं करते रहते तो हिन्दी ब्लागिंग की शुरआत कुछ बेहतर होती। हम भी शुरुआत में रचना जी को खाली-मूली में जबरदस्ती लोहे की तरह सीरियस मानकर उनकी खिंचाई करते रहे। समय के साथ मुझे उनके मिजाज का अंदाज हुआ फ़िर मैंने उनकी खिंचाई बंद कर दी। हालांकि रचनाजी ने बाद में हमसे बल भर मौज ली। कभी अनूप शुक्ल की हिन्दी की योग्यता पूंछी, कभी ठग्गू के लड्डू के बहाने खींचा और मामाजी का जिक्र करते रहने के चलते। :)

तमाम बातों के अलावा जो एक शानदार च जानदार पहलू उनके व्यक्तित्व का लगता रहा वह यह कि वे बिना लाग लपेट के अपनी बात कहती रहीं। बहस करने के मामले में उनको महारत हासिल है। अपने ब्लाग से जुड़ी महिला साथियों को हमेशा मुद्दे की बात करने को प्रोत्साहित करतीं रहीं हमेशा। कुछ लोग तो उनके प्रोत्साहन से घबरा तक जाते रहे। :)

बहस-वहस जब चल रही हो तो रचना जी नहले पर दहला मारने के प्रयास से चूकने के चक्कर में कभी नहीं रहीं। अन्य लोगों के अलावा वैज्ञानिक चेतना संबंध अरविंद मिश्र जी और नारी चेतना की संवाहक रचना जी में गाहे-बगाहे बहस होती रही। उत्तर-प्रतिउत्तर भी। एक बार का वाकया मुझे याद आता है।

साल भर पहले अरविंद मिश्र जी ने अपनी एक मार्मिक पोस्ट में अपने साथ हुये अन्याय का विस्तार से वर्णन करते हुये बताया कि उनका नाम डार्विन के ऊपर छपी किताब से साजिशन हटवा दिया गया। अपनी पोस्ट में उन्होंने रचनाजी की पोस्ट जिक्र किया। रचनाजी के ब्लाग पर पोस्ट मजनून था :

साइंस का परचम लहराने वालो कि क़ाबलियत पता नहीं कहा चली गयी जब उनका नाम एक किताब पर से हटा कर किताब को छापा गया । किताब के लिये ग्रांट मिलाने कि शर्त यही थी कि उनका नाम हटा दिया जाये क्युकी उनके दुआरा प्रस्तुत तथ्यों को गलत माना गया । सो नाम हट गया हैं
मुगाम्बो खुश हुआ !!!!
कुल कुल दुर्गति हो रही हैं पर घमंड का आवरण पहन कर वो अपने को विज्ञानं का ज्ञाता बता रहे हैं और बताते रहेगे ।

सहज ही अरविंदजी के साथ हुये अन्याय से लोगों को उनके प्रति सहानुभूति हुई। सहानुभूति के प्रवाह में अरविंद जी का प्रकाशक पर कानूनी कार्यवाही करने का शुरुआती आक्रोश भी बह गया। अरविंद जी का गुस्सा बाढ़ के पानी की तरह होता है। आता है बह जाता है। :)

बाद में जब मैंने कुल कुल दुर्गति की खोज की तो पता चला कि दो दिन पहले ही अरविंद जी ने एक ब्लाग पर टिप्पणी की थी :

कुछ के तन मन दोनों ही अच्छे नहीं होते ..ये कुदरत से अपनी लड़ाई लड़ें !
और यही न तो तन की कद्र करते हैं और न मन की ….चलो देह पर तो बस नहीं
मगर मनवा तो सुधार लो ये मूढ़ !
ई जनम बार बार थोड़े ही आवेला -बड़े जतन मानुष तन पावा
सृष्टि की इस सुन्दरतम रचना (कोई दूसरा शब्द हो तो भैया रिप्लेस कर लो इस
पर कुछ लोग अपना कापी राईट समझ लिए हैं जबकि कुल कुल दुर्गति हो चुकी है
) को जो न सराहे उसके जीवन को धिक्कार है धिक्कार

दो दिन बाद ही रचनाजी उन्हीं की भाषा में उनको जबाब देकर हिसाब बराबर कर दिया। जैसे को तैसा जबाब देने की कोशिश करना रचना जी की सहज प्रवृत्ति है। खतरा ब्लागर हैं इस मामले में वे। :)

रचनाजी पिछले दिनों ब्लाग जगत के मठाधीशों की कालक्रम के अनुसार गणना की और अपने पसंद के ब्लाग बताये। कट्टर हिन्दूवादी रचना जी का पसंदीदा ब्लाग सुरेश चिपलूनकर का ब्लाग है। तेंदुलकर फ़ेवरिट खिलाड़ी।

न जाने कितने मुद्दों पर हमारे रचना जी से मतभेद हैं। लेकिन उनकी बहादुरी और जैसा महसूस करती हैं वैसा कहते रहने की हिम्मत और बेबाकी की मैं तारीफ़ करता हूं।

अपने ब्लागिंग के पांच साल होने की सूचना उन्होंने और लोगों के अलावा मुझे भी जलाने के लिये भेजी थी। लेकिन वे अपने मकसद में कामयाब न हुई। मैंने अपनी खुशी का इजहार करते हुये उनको बधाई दी और आगे के लिये शुभकामनायें भी। एक बार फ़िर से रचना जी को ब्लाग जगत में पांच साल पूरे करने की बधाई!

पांच साल पूरा होते ही रचनाजी ने नारी ब्लाग पर अपनी आखिरी पोस्ट की जानकारी दी। सहज ही लोगों ने इसके विपरीत अनुरोध किया और आगे भी लिखते रहने का अनुरोध किया। उन्मुक्तजी की सलाह सबसे उपयुक्त लगी मुझे:

मेरे विचार से यदि समय का अभाव हो तो कोई और सूत्रधार बन जाये पर विचारों को विश्राम देना ठीक नहीं। जब मन में कोई बात उठे तो अवश्य लिखें

ऐसे ही एक हफ़्ते पहले ज्ञानजी ने अपने दास्ताने टांगने का हल्का एलान सा किया लेकिन लोगों ने जोर से मना कर दिया तो फ़िर चालू हो गये।




पिछले दिनों सतीश सक्सेनाजी को न जाने क्या हुआ कि उन्होंने अपने ब्लाग पर कमेंट बन्द कर दिये। कोपभवन में बैठ से गये। हमने कहा फ़ोन करके कि अरे भाईसाहब आपके ब्लाग पर पढ़ने वाली चीज उन पर आये कमेंट ही तो होते हैं। उनको भी आप बंद करके बैठ गये। ये जुलुम किसलिये। कमेंट के नाम पर तो सक्सेनाजी नहीं पसीजे लेकिन बाद में टिप्पणियों पर पसीज गये और उनके लिये फ़िर से अपने ब्लाग के दरवाजे खोल दिये। अब उनका ब्लाग सहज लगने लगा। बिना टिप्पणियों के लग रहा उनकी पोस्ट का परिवार उजड़ गया है। अब हराभरा लग रहा है। :)

बहुत दिन बाद कुश ने एक मजेदार पोस्ट लिखी -कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की पोस्ट को जयपुरिया डिस्काउंट (कुश और नीरज जी जयपुर निवासी हैं) देते हुये नीरज गोस्वामी जी ने लेखक को वंदनीय बताया और पोस्ट को कालजयी। डा.अनुराग आर्य को पोस्ट पढ़कर हरिशंकर परसाई जी की कहानी एक हसीना चार दीवाने याद आई। डा.अनुराग ने एक दीवाना गोल कर दिया और लड़की को हसीना बना दिया। परसाई जी कहानी का शीर्षक है: एक लड़की, पांच दीवाने।

कुश ने अपनी पोस्ट में शीला का जिक्र करते हुये बताया:



शीला जब भी घर से बाहर निकलती कुछ आँखे उसका दामन थाम लेती.. उसको घर से निकालकर गली के लास्ट कोर्नर तक छोडके आती.. ( ऐसी आँखों का राम भला करे ) इधर शीला को मोहल्ले की आँखों ने छोड़ा और उधर बस स्टॉप पे खड़े लडको ने थामा.. साथी हाथ बढ़ाना की तर्ज़ पे शीला के दामन को थामती आँखों की रिले रेस चलती रहती.. और जैसे ही शीला बस में चढ़ती कि वो टच स्क्रीन फोन बन जाती..सब पट्ठे उसके सारे फीचर्स चेक कर लेना चाहते थे.. वैसे भी मोबाईल वही लेना चाहिए जिसमे सारे फीचर्स मौजूद हो..

परसाई जी ने एक लड़की, पांच दीवाने में लड़की का जिक्र करते हुये बताया था:

लड़की छरहरी है। सुन्दरी है। और गरीब की लड़की है।
मोहल्ला ऐसा है कि लोग 12-13 साल की बच्ची को घूर-घूर कर जवान बना देते हैं। वह समझने लगती है कि कहां घूरा जा रहा है। वह उन अंगो पर ध्यान देने लगती है। नीचे कपड़ा रख लेती है। कटाक्ष का अभ्यास करने लगती है। पल्लू कब खसकाना और कैसे खसकाना -यह अभ्यास करने लगती है। घूरने से शरीर बढ़ता है।

परसाईजी की कहानी में लड़की सारे दीवानों को झांसा देते हुये अपनी पसंद के लड़के के साथ घर बसाती है। अपने घर में ही रहती है। कुश के यहां शीला, मुन्नी, रजिया और शालू मजबूरी में समझौता करते हुये खुश रहने का जतन करती हैं। घर से दूर। एक लड़की और चार लड़कियों पालने में अंतर स्वाभाविक है।

कल स्व. कन्हैयालाल नंदन जी वर्षगांठ थी। इस मौके पर लखनऊ के पत्रकार दयानंद पाण्डेयजी ने नंदन जी जुड़ी अपनी यादों को विस्तार से लिखा। वे लिखते हैं:



एक पत्रकार मित्र हैं जिन का कविता से कोई सरोकार दूर-दूर तक नहीं है, एक बार नंदन जी को सुनने के बाद बोले, ‘पद्य के नाम पर यह आदमी खड़ा-खड़ा गद्य पढ़ जाता है, पर फिर भी अच्छा लगता है.’ तो सचमुच जो लोग नंदन जी को नहीं भी पसंद करते थे वह भी उन का विरोध कम से कम खुल कर तो नहीं ही करते थे. वह फ़तेहपुर में जन्मे, कानपुर और इलाहाबाद में रह कर पढे़, मुंबई में पढ़ाए और धर्मयुग की नौकरी किए, फिर लंबा समय दिल्ली में रहे और वहीं से महाप्रयाण भी किया. पर सच यह है कि उन का दिल तो हरदम कानपुर में धड़कता था. हालां कि वह मानते थे कि दिल्ली उन के लिए बहुत भाग्यशाली रही. सब कुछ उन्हें दिल्ली में ही मिला. खास कर सुकून और सम्मान. ऐसा कुछ अपनी आत्मकथा में भी उन्हों ने लिखा है. पर बावजूद इस सब के दिल तो उन का कानपुर में ही धड़कता था. तिस में भी कानपुर का कलक्टरगंज. वह जब-तब उच्चारते ही रहते थे, ‘झाडे़ रहो कलक्टरगंज!’ या फिर, ‘कलेक्टरगंज जीत लिया.’

कल ही हमारे साथी प्रियंकर पालीवाल जी का जन्मदिन था। उनको जन्मदिन की बधाई!

मेरी पसंद

यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ!

आसमान टूटा!
उस पर टंके हुये
ख्वाबों के सलमे-सितारे
बिखरे!

देखते-देखते दूब के रंगो का रंग
पीला पड़ गया!

फ़ूलों का गुच्छा
सूखकर खरखराया!

और यह सब कुछ मैं ही था
यह मैं
बहुत देर बाद जान पाया।

डा.कन्हैयालाल नंदन

और अंत में

काफ़ी दिन बाद आज चर्चा करने का मनऔर मौका बना! इसके पहले भी कई बार शुरुआत की लेकिन पोस्टें ड्राफ़्ट मोड में ही आकर रह गयीं। आज भी चर्चा शुरू सुबह की थी। लिंक लगाते-खोजते देर हो गयी सो बात शाम पर टल गयी। इस बीच कुछ बेहतरीन पोस्टें पढ़ीं। उनका जिक्र फ़िर कभी।

ब्लाग जगत में संकलकों की कमी के चलते पोस्टों का पता चलना मुश्किल हुआ है लेकिन यह तय है कि अच्छा लिखने वालो लोग बढ़ रहे हैं।

फ़िलहाल इतना ही। बाकी फ़िर कभी!

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49 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह चर्चा बिलकुल 'डैनामईट' रही !बहुत दिनों की कसर,जो दिल में हुलेरे मार रही थी,बलबला के निकल पड़ी है. कुछ नए लोगों और उनकी पोस्टों के बारे में जानकारी मुहैया कराई तो किसी को प्यार-प्यार में ही 'लपेट' भी दिया !बड़ी ही रंजक शैली में ई कमेंटरी करी है,आगे उम्मीद है कि जल्द ही अउर दो-चार को लठीयाओगे !

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  2. अनूप शुक्ल से गंभीर चर्चा पाकर ख़ुशी हुई।

    रचना जी पर विस्तृत विवरण अच्छा लगा।

    आशा है चर्चा की नियमितता ज़ारी रहीगी।
    ... और ...
    “इस बीच कुछ बेहतरीन पोस्टें पढ़ीं। उनका जिक्र फ़िर कभी।”

    आश्वासन को शीघ्र पूरा किया जाएगा।

    यह खुशी की बात है कि “ अच्छा लिखने वालो लोग बढ़ रहे हैं।”

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  3. बेशक आप ब्लोगर पी एच डी कर चुके हो अनूप भाई :-)
    महीने में एक हा हा ठी ठी में एक चिट्ठी लिख, लोगों को आग लगा फिर गायब हो जाते हो !
    बहरहाल इस चर्चा में आनंद आया !
    शुभकामनायें !!

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  4. *फुरसतिया अंदाज़ में लिखी रोचक चर्चा.
    ब्लॉग जगत में आप को आठ साल पूरे करने पर ओर रचना जी को ५ साल पूरे करने पर बहुत बहतु बधाई.
    *रचना जी की तारीफ है कि वह यहाँ अकेले ही सभी स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती हैं.किसी को गलत लगे या सही ,बिना परिणाम सोचे कम से कम खुलकर अपनी बात कह सकने का सामर्थ्य उन में है.
    *कमेन्ट ओर टिप्पणी में अंतर होता है .यह भी जाना.वैसे भी पोस्ट परिवार की सुख - सम्रद्धि टिप्पणी ही हो सकती है कमेन्ट नहीं.
    *'स्मायली 'का खूब उपयोग किया गया है.
    *डा.कन्हैयालाल नंदन जी को धर्मयुग में पढ़ा करते थे.
    *ब्लोग्वानी-चिट्ठाजगत संकलक के समान कोई संकलक अभी तक नहीं आया,यह बात भी सही है.

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  5. पूरे मनोयोग और फुरसत से लिखी गई चर्चा ,आभार

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  6. मैं काफी नया हूँ ब्लॉग जगत में, अनूप जी आपके ऐसे लेख निश्चित ही मार्गदर्शक बनेंगे ... कृपया इस गंगा को ऐसे ही बहाने दें...बहुत बहुत धन्यवाद....

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  7. kush ki post chhot gai thi ..bahut bahut dhanyawaad....

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  8. @ रचना !

    आम आदमी कभी समझदार नहीं होता , आम आदमी को भीड़ का अंग मानकर मनीषी लिखते रहे हैं !

    अगर यह पथप्रदर्शक नहीं होते तो शायद यह समाज भी नहीं होता ! आम पाठक से, लीक से हटकर चल सकने की क्षमता वाले एक लीडर का हटना , सामान्य और अविकसित समाज के लिए घातक होगा !

    बहुत सी बातों में , आपका आलोचक होने के बावजूद, मैं आपको इन्ही लोगों ( मनीषियों ) में से गिनता रहा हूं ! आपको, अपने आपको लेखन से अलग नहीं करना चाहिए !

    यहाँ ब्लॉग लेखन में एक से घटिया लोगों के मध्य निडर लेखन, वह भी एक महिला के द्वारा आसान नहीं है ! सामान्य महिला लेख़क एक या दो घटिया टिप्पणियों से घायल होकर या तो भाग खड़ी होती है अथवा घुटनों के बल बैठ जाती है !

    आपका तथाकथित जिद्दी स्वभाव और अपनी बनाई और सोंची लीक को न छोड़ना, आपका गुण है यह हजारों कमज़ोर बच्चियों को उनके मुंह में जबान दे सकने की क्षमता रखता है ! किसी भी कारण इस अच्छे कार्य को छोड़ कर भाग जाना मेरे जैसे, तुम्हारे प्रसंशकों को निराश करेगा !

    भारतीय नारियों को मज़बूत और निडर आवाज की बेहद जरूरत है और इस कमी को तुम्हारी जैसी नेत्री बखूबी पूरी कर रही है !

    बापस आ जाओ रचना !

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  9. आपके बहाने हमको भी संदर्भ पता लग गये।

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  10. ऐ जस्बाए दिल गर मै चाहूँ
    हर चीज़ मुकाबिल आ जाए
    मंजिल के लिये दो गाम चलूँ
    और सामने मंजिल आ जाए

    मंजिल के लिये दो गाम तो क्या
    एक गाम भी उठ कर क्यूँ जाऊं
    मै बैठी रहूँ इसी जगह
    और चलती हुई मंजिल आ जाए

    इस जज़्बाए दिल के सागर की
    कश्ती का खुदा खुद हाफ़िज़ हैं
    मुमकिन हैं इन्ही मौजो में कहीं
    बहता हुआ साहिल आजाए

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  11. अच्छा, चिठ्ठा चर्चा वाली चिड़िया ने पुराने घोंसले में अण्डे दिये इस बार! साल का ये सीजन निपटा दिया इससे शायद?

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  12. bache hue kuch lamhen....
    kharche hue is charche me.....

    hamesha ki tarah ummeed se jyada......

    pranam.

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  13. चलिए .....ओक्सीज़न मिली चर्चा को...फिर आपकी बदोलत !एग्रीगेटर के सहारे ब्लॉग पढने की आदत हमने कई समय से छोड़ रखी है ...अच्छी पढने वाली चीज़े मिल ही जाती है कैसे न कैसे ..परसाई की कहानी के नाम को करेक्ट करवाने के लिए शुक्रिया.....बहुत पहले पढ़ी थी कहानी याद है....पर नाम में लोचा रह गया ...
    ......ओर हाँ वैसे ब्लॉग जगत में कहने को लोग उम्रदराज है पर ..

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  14. व्यापक चर्चा,अच्छी लगी,आभार.

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  15. नंदन जी की कविता पढ़वाने के लिये धन्यवाद
    अच्छी चर्चा ,,बधाई हो

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  16. एक महाशय रुचि से 'हस्त रेखा विशेषज्ञ' थे. जब उन्होंने साहित्य के शिक्षक की नौकरी की तो स्कूल के सभी शिक्षक समय मिलते ही.. स्टाफरूम में, स्कूल से बाहर, हर कहीं उनको अपना हाथ दिखाते रहते थे. कुछ समय बाद उन्होंने अपना कारोबार कर लिया तो भी वहाँ अपने कस्टमर के हाथ देखने के शौक को नहीं छोड़ा. ........ मतलब कि व्यक्ति कहीं भी हो 'शौक' नहीं छोड़ पाता.

    एक और उदाहरण :
    हमारे क्षेत्र में एक मोटेराम हलवाई थे. हलवाईगिरी उनका पैत्रिक कार्य था. बच्चे पढ़-लिख गए तो उनके सुझाव से उन्होंने धंधा बदलने का सोचा.
    कुछ दिनों बाद उन्होंने 'बर्तन भण्डार' की दुकान कर ली.. लेकिन चार-छः महीनों तक मन मार कर दुकानदारी कि.. मन न लगा. तोंद भी घट गयी थी. पत्नी परेशान थी पति पतले जो गए थे.
    फिर उन्होंने 'बर्तन की दुकान' के आगे एक गैस चुल्हा और कढ़ाई रख ली. जलेबी बनाने लगे.. उनका मन फिर से लग गया.. अब उनको अच्छे से नींद आती है.

    मतलब हमारे पद छोड़ देने से कोई फर्क नहीं पड़ता... हम जहाँ भी रहेंगे... काम वही करेंगे... जो कर सकते हैं.

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  17. रचना जी को पांच वर्ष और आप को आठ वर्ष पूरे करने पर बधाई। नन्दन जी की कविता बहुत अच्छी लगी।

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  18. क्षमा बन्धु, रचना ने लिंक भेजी तो पहली बार चिट्ठाचर्चा तक पहुँच पाई. वैसे घर की चीज बहुत अच्छी लगती है फिर आप तो पड़ोस में ही पका रहे हैं. अब खुशबू लेती रहूंगी और चट करने के लिए तैयार रहूंगी. इससे तो मेरे जैसे अनाड़ियों के लिए बहुत से लिंक मिले क्योंकि मैं तो आप जैसे चर्चा करने वालों की दया पर निर्भर हूँ. खोजने की अक्ल कुछ काम है.बेबाक लेखनी को प्रणाम .

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  19. एक अर्से बाद चर्चा हुई भी तो रचना जी और डॉ.अरविंद मिश्र के नाम रही:) रचना जी की पंचवर्षीय योजना की सफलता पर बधाई॥

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  20. अरे मेरा कमेंटवा कहाँ चला गया ?

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  21. जाट देवता की टिप्पणी

    मैं शायद पहली बार इस साईट पर आया हूँ, अच्छे ब्लॉग के बारे में पता चला।

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  22. अरविंद मिश्र की टिप्पणी

    एक बेहतरीन और समग्र चर्चा जो केवल और केवल अनूप शुक्ल ही कर सकते हैं ….
    काफी कुछ छूटा भी समेटा आपने और अद्यतन भी लिया और अपनी लम्बी गैर मौजूदगी
    की भरपाई कर गए…
    रचना जी एक मिस्ट्री हैं ये मुझे थोडा विलम्ब से लगने लगा मुझे और मेरा तेवर बदलने लगा ..
    वे जो प्रत्यक्षतः हैं वास्तव में वैसी नहीं हैं मगर हाँ उन्हें कभी कैजुअली नहीं लिया जाना चाहिए …
    लोगों की कीमत तब समझ में आती है जब उनके इर्द गिर्द और लोग /लुगाई दीखते हैं जिनसे उनकी
    चाहे अनचाहे तुलना होती है ……इस बात को अभी और विस्तार नहीं देना चाहता ..
    आपने उस साहित्यिक चोरी की बात याद दिला कर मेरे जख्म फिर हरे कर दिए ..और अब तो वेदना और भी बढ़ गयी है
    कि उस शैतान ने दूसरी भी किताब प्रकाशन विभाग से मेरी ही रचनाओं से प्रेरित हो और बिना आभार के छपा ली है ..
    मुझे तो काठ मार गया है -क्या ब्लॉगजगत मेरी कुछ मदद करेगा?

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  23. @अरविन्दजी,
    शुक्रिया! आपकी तारीफ़ से तो हम शर्मा से गये। :)

    रचनाजी के बारे में मैंने लिखा ही कि वे एक बहादुर इंसान हैं। जैसा सोचती हैं वैसा अभिव्यक्त करती हैं। उनके पीछे लोग गोल बनाकर पड़े रहे तब भी, अकेले पड़ने के बावजूद, वे लगातार बहस, तर्क-वितर्क करती रहीं। यह अपने आप में तारीफ़ की बात है।

    जहां तक आपकी रचनाओं से प्रेरित होकर किसी के बिना आपको आभार दिये किताब छपवाने की बात है तो यह उसकी मर्जी है कि अपने प्रेरक को कितना भाव देता है।

    हां, अगर आपकी रचनायें आपकी बिना अनुमति के किसी ने छपवा ली तो आपके पास इसके प्रमाण होंगे। किसी भरोसे के वकील से जानकारी लेकर नोटिस-सोटिस भिजवाइये। कम से कम आभार तो मिल ही जायेगा।

    इस मामले में पहले ही ब्लागजगत ने आपको बम्पर समर्थन दिया था लेकिन आप उसई में अविभूत होकर रह गये। आगे कोई कार्रवाई न की आपने। ब्लागजगत आपको सहानुभूति और नैतिक समर्थन से अधिक तब तक और कुछ नहीं दे पायेगा जब तक आप अपनी लड़ाई नहीं खुद नहीं लड़ेंगे। आप सच्ची में आहत हैं तो न दैन्यम न पलायनम का सूत्र थामकर ठंडे मन से कानूनी कार्यवाही शुरू कर दीजिये।

    चाणक्य, परशुराम के वंशज और दिनकर के प्रशंसक को इतनी दीनता शोभा नहीं देती। आल्हा की लाइने आपका खून गरमाने के लिये:

    जिनके बैरी सम्मुख बैठे,उनके जीवन को धिक्कार! :)

    जवाब देंहटाएं
  24. रचना जी की टिप्पणी

    अनूप जी ने चर्चा करदी सो जवाब तो बनता हैं
    नारी ब्लॉग यानी ब्लॉग जगत के सो कोल्ड “पुरुष” के खिलाफ मोरल पोलिसिंग . तीन साल में ही दम निकल गया पुरुष समाज का मोरल पोलिसिंग से और मेरे देश की बेटियाँ , बहुये , माँ सदियों से इस मोरल पोलिसिंग को बर्दाश्त कर रही हैं . सोचिये , अपने अन्दर झांकिये कैसा लगता हैं उन सब को जब उन्हे ये समझाया जाता हैं , ये ये मत करो क्युकी तुम नारी हो . ये मत पहनो ये पहनो क्युकी ये भारतीये संस्कृति हैं . उनकी सहनशीलता को उनकी कमजोरी मान लेना क्या पौरुष हैं ????
    उल्ट दिया मैने वो यहाँ और देखती रही की किस प्रकार से मुझे संबोधन दिये जाते रहे . सोचिये ना जाने कितने ऐसे ही संबोधन आप के घरो में मौजूद आपकी बेटियाँ , पत्निया और माँ आप को “मन ” से अपने “मन ” में देती हैं . कहीं पढ़ा था अगर हर स्त्री एक दम सच बोलने लगे तो ये दुनिया पुरुषो के लिये नरक हो जाए .
    अब आते हैं अरविन्द मिश्र की किताब के प्रकरण पर . उन्होने मेरे ऊपर एक ब्लॉग पर वाहियात कमेन्ट किया मैने उनको जवाब दिया . दोनों का साक्ष्य इस पोस्ट पर अनूप ने उपलब्ध कर दिया . उनकी किताब नहीं छपी उनकी प्रॉब्लम हैं लेकिन इसके लिये मेरे ऊपर लांछन लगाना उनकी आदत . ऐसे बहुत से लिंक पडे हैं इसी ब्लॉग जगत में जहां उन्होने ग्रुप बना कर मुझ पर व्यक्तिगत कमेन्ट किये “क्युकी मुझे वो समझना चाहते थे ” जैसा वो यहाँ अपने कमेन्ट मै कह रहे हैं की मै उन्हे मिस्ट्री लगती हूँ . नहीं समझा तो सोचा मुझे “समझा दे” . उनकी किताब का न छापना उनकी अपनी योग्यता भी हो सकती हैं ये समझ लेते तो शायद दूसरी किताब जैसा वो यहाँ कह रहे हैं उनके नाम से छपती . ब्लॉग जगत में योग्यता दिखाना बड़ा आसान है . और ब्लॉग जगत के बहाने उनलोग से रसूख बढ़ाना जो आप को ग्रांट दिलवा सकते हैं !!!!!!!!
    जिन लोगो ने १०० कमेन्ट दिये हैं मेरे खिलाफ इनके ब्लॉग पर अपने अन्दर जरुर झाँक ले क्युकी आज उनको वास्तविकता पता चल गयी हैं . आप अगर किसी के दोस्त हैं तो दूसरे के दुश्मन नहीं हो और दूसरे का पक्ष तो पूछा जा सकता हैं . लेकिन हिंदी ब्लोगिंग तो महज सोशल नेटवर्क हैं इन सब के लिये .

    मै कभी किसी पर वार नहीं करती . मै वार का जवाब आंसू बहा कर नहीं रुला कर देती हूँ क्युकी अन्याय सहने वाला , अन्याय करने वाले से ज्यादा दोषी हैं . अब अनूप इस के लिये मुझे खतरा ब्लोग्गर कहले मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं .
    नारी ब्लॉग पर मेरी अंतिम पोस्ट आ चुकी हैं चर्चा मंच पर ये मेरा आखरी कमेन्ट हैं
    सभी को सादर सप्रेम नमस्ते आशा हैं आप सब वो कर सकेगे जो करना चाहते हैं .

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  25. डा.अमर कुमार की टिप्पणी

    विहँगम चर्चा..,,
    टुकड़ों में पढ़ा जायेगा, और सोच-विचार कर टिपियाया जायेगा ।
    अगली चर्चा इस पर होनी चाहिये कि आपके पीठ पीछे भी बहुत कुछ गुजरा !

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  26. फ़िर से अरविंद मिश्र की टिप्पणी
    @रचना ,आपके लिए इससे बेहतर और मौक़ा नहीं है भाग लेने के लिए ..क्योकि एक बड़ी मशहूर अंगरेजी की कहावत है कि गिल्टी माईंड इस आलवेज इन सस्पिसन -कहीं यही तो दर नहीं अब सता रहा -और जिस दिन मिस्त्री /असलियत पूरी तौर पर सामने आयेगी उस दिन मुंह दिखान भी दूभर न हो जाय ..मिस्ट्री का मतलब पारदर्शिता नहीं है -वह बहुत कुछ जो दिख न रहा ..और मेरी काबिलियित की सार्तिफिकेट आपसे ? कितना हास्यास्पद है यह :)

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  27. स्मार्ट इंडियन की टिप्पणी
    ये बाल धूप में सफ़ेद नहीं हुए हैं। आपके 8 और रचना जी के 5 साल पूरे होने पर शुभकामनायें!

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  28. @संतोषजी, हमने किसको लपेटा प्यार से यह तो अंदाज का विषय है लेकिन आपने हमें बड़े प्यार से निपटाया। शुक्रिया। :)

    @शुक्रिया अजित जी। :)

    @मनोज कुमार,
    आभार! नियमितता बनाये रखने का प्रयास करेंगे। वैसे आप किधर निकल लिये। चर्चा कम कर दी। :)

    @सतीश जी,
    आग लगाने वालों की कमी थोड़ी है दुनिया में। जैसा कि दुष्यन्त कुमार जी ने कहा भी है:

    मेरे सीने में न सही तेरे सीने में सही,
    हो कहीं आग लेकिन आग जलनी चाहिये।


    आपके आनंद की खबर जानकर आनंदित भये हम! :)

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  29. @मनु ,
    शुक्रिया।

    @अल्पनाजी,
    आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।

    रचनाजी के बारे में बहुत दिन से कुछ लिखने का था लेकिन टलता रहा। आज मौका मिला तो लिख मारा। उनके बारे में आपकी राय से सहमत हूं।
    कमेंट और टिप्पणी का अंतर समझने के लिये शुक्रिया। आपकी बात सही है समृद्धि टिप्पणी से ही हो सकती है। लेकिन कुछ लोग समाज में होते हैं जो कमेंट को ही पसंद करते हैं। :)

    इस्माइली मौज-मजे के लेखन में महत्व हेलमेट की तरह होता है। जब लिखो पहन लो। बचत रहती है।

    संकलकों के दिन अब गये शायद।

    नंदनजी धर्मयुग में तो मेहनत करके जमें इसके बाद पराग, सारिका, दिनमान के दिनों में उनकी उंचाइयां दिखीं।

    @अजय कुमार,
    शुक्रिया। आपके ब्लाग पर सबसे ताजी पोस्ट पर शेर बांचकर आनन्दित हुये। :)

    @बंधुवर आड़ी टेड़ी सी जिन्दगी,
    शुक्रिया! वैसे आप तो अगडम-बगड़म लिखते हैं। आपको किसके मार्गदर्शन की दरकार। गंगा बहाने का प्रयास करते रहेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  30. @सोनल,
    शुक्रिया। धन्यवाद!

    @सतीशजी,
    निराश न हों। रचनाजी कहीं न जायेंगी। आ जायेंगी कुछ दिन में वापस!

    @प्रवीण पाण्डेय,
    शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया के लिये। :)

    @रचनाजी,
    क्या शानदार कविता कही है। वाह!

    @ज्ञानजी,
    हां सोचा कुछ दिन इधर भी हिन्दी सेवा कल्ली जाये। विनम्रता पूर्वक!

    @सञ्जय झा,
    शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया के लिये।

    @दिनेशराय द्विवेदी,
    शुक्रिया। मुझे भी लिखने में आनंद आया। देखिये कितना नियमित रह पाते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  31. @डा.अनुराग, शुक्रिया। अब आप अगला सिलेंडर लगाइये आक्सीजन का।

    @काजल कुमार, शुक्रिया।

    @डा.मनोज मिश्र, धन्यवाद!

    संगीता स्वरुप,शुक्रिया।

    इस्मतजी, धन्यवाद!

    @Er. Diwas Dinesh Gaur, शुक्रिया।

    @प्रतुल, आपकी टीप के लिये आभार।

    @ देवेन्द्र पाण्डेय, शुक्रिया।

    @अनीताजी, शुक्रिया। वैसे आठ साल हमारे नहीं हिन्दी ब्लागिंग के हुये हैं।

    जवाब देंहटाएं
  32. @रेखाजी, चंद्रमौलेश्वरजी, जाटदेवता, अनुरागजी (स्मार्ट इंडियन) आपकी प्रतिक्रिया के लिये धन्यवाद।

    @डा.अमरकुमार, आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार है।

    @अरविन्दजी, उस बाले ब्लाग में कुछ तकनीकी लफ़ड़ा है सो आपकी टिप्पणी दिख नहीं रही। सो इधर प्रकाशित कर दिया।

    जवाब देंहटाएं
  33. @रचनाजी,
    ब्लागिंग में आमतौर पर प्रतिक्रियायें देखा-देखी दी जाती हैं। सहानुभूति वाली पोस्टों पर सब अपने फ़ूल चढ़ा देते हैं। सवाल नहीं पूछे जाते। :)

    हम आपको खतरा ब्लागर नहीं जबर खतरा ब्लागर मानते हैं। जिसकी उपस्थिति जरूरी है ब्लागजगत में। :)

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  34. @ अरविंद मिश्र जी आपकी दूसरी टिप्पणी जो आपने रचना जी के लिये कही देखकर यही लगा कि हम लोग अपना मूल स्वभाव बहुत देर तक नहीं छोड़ पाते। :)

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  35. ब्लॉगजगत में अनूपजी को आठ साल और रचना को पाँच साल पूरे होने की बधाई...नंनदजी की कविता अच्छी लगी..

    जवाब देंहटाएं
  36. अशुद्ध वर्तनी हुई....नंनदजी को नंदनजी पढ़ा जाए...(शुक्रिया रचना)

    जवाब देंहटाएं
  37. बहुत ही अच्छी रचना है आपकी

    जवाब देंहटाएं
  38. हिंदी ब्लॉगिंग के आठ वर्षीय सफ़र का बढिया लेखा-जोखा. इस सफ़र के ब्लॉग-स्तंभों के बारे में पढ के अच्छा लगा. नियमित चर्चा करें, तो अच्छा हो.

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  39. बहुत दिनों बाद आना हुआ।

    काहे पुराने जख्‍म खरोचने बैठ जाते हैं।

    ------
    TOP HINDI BLOGS !

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  40. नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।
    [यह नोट टिप्पणी बॉक्स के ऊपर लिखा है.]
    --इसमें कृपया टिप्पणी की वर्तनी ठीक कर लिजीये!:)

    जवाब देंहटाएं
  41. बहुत ही सार्थक चर्चा...
    http://lekhikagunjan.blogspot.com/
    ये एक नया ब्लॉग है मेरा, अप सभी से निवेदन है,
    यह आकर मेरे लेख पर भी अपने विचार जरुर दे!
    .सधन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं

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