१. अमर उजाला कानपुर् की खबर है -हत्यारे हदस गये। कल कुल् साठ लोगों को उम्रकैद् की सजा सुनाई गयी। इसमें उप्र के बहुचर्चित मधुमिता हत्याकांड के आरोपी, पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और् उनकी पत्नी भी शामिल् हैं। १५ उन लोगों को भी उम्रकैद् मिले जिन्होंने सन १९९२ में अयोध्या का विवादित् ठांचा टूटने के बाद् कानपुर् में हुये दंगों में ११ लोगों को जिन्दा जला दिया था।
२.स्काटलैंड में एक भारतीय मूल के व्यक्ति को किसी ने अंग्रेजी न बोलने पर वर्ना गर्दन उड़ा देंने की धमकी दी। कोर्ट ने धमकी देने वाले को तीन् माह् की सजा सुनाई।
३. पोलैंड् में हिंदी के प्रति जबरदस्त् झुकाव।
४.अंतरिक्ष में एक् गर्भवती तिलचट्टी मां बनी।
५.अंग्रेजी न् जानने का अर्थ खुदकशी है।
ये जो अंतिम् समाचार है वह एक् लेख का शीर्षक है। इसी मुद्दे पर कल आशीष कुमार के ब्लाग पर बरखा दत्त का एक विचारणीय् लेख पढ़ा । इसमें बताया गया है कि किस तरह एक् टापर बच्ची को एक अंग्रेजी स्कूल् में दाखिले से मना कर दिया गया क्योंकि उसका अंग्रेजी उच्चारण् ऐं-वैं टाइप् था। बालिका ने उसे चुनौती के रूप् में लेते हुये दूसरे स्कूल् में दाखिला लिया यह् तय करते हुये-
लेकिन आहत होने का किंचित भी आभास दिए बगैर उसने दृढ़ता से कहा कि अब तो उसका लक्ष्य दिल्ली पब्लिक स्कूल को यह बताना मात्र है कि वह अपने किसी भी विद्यार्थी से बेहतर हो सकती है।
कल् बीबीसी में शशिसिंह् का हिंदी ब्लागिंग् के बारे में छपा लेख भी हिंदी ब्लागिंग् के लिये उल्लेखनीय् घटना है। इसमें शशि ने लिखा-
जानकार मानते हैं कि इंटरनेट के तेज़ी से हो रहे विस्तार में हिंदी चिट्ठाकारों का उज्ज्वल भविष्य छिपा है क्योंकि अब नेट पर अंगरेज़ी का एकछत्र राज नहीं रह गया है.
शब्दों का सफ़र वाले अजित वडनेरकर् को हम शब्द् चौधरी कहते हैं। बहुत् जल्द् ही अपनी पोस्टों का दूसरा शतक् पूरा करने जा रहे अजितजी ने एक् नयी योजना के बारे में आपकी राय् मांगी है। वे कहते हैं-
'सफर' पर एक नई पहल कर रहा हूं। इसमें हर हफ्ते एक शब्द पहेली होगी जिसमें आपको एक शब्द का रिश्ता दूसरे से बताना होगा। आधार धातु , ध्वनिसाम्यता अथवा अर्थ साम्यता - कुछ भी हो सकती है। मुझे लगता है कि 'सफर' को आपकी हरी झण्डी तो मिल चुकी है। आपका जुड़ाव भी इससे हो चुका है ऐसा मैं मानने लगा हूं। कई साथी यह ज़ाहिर भी कर चुके है। गुज़ारिश है, ये प्रयास कैसा लगा ज़रूर बताएं । ये सिर्फ आपके लिए है। आपकी प्रतिक्रियाओं से यह अनुमान मैं लगा सकूंगा कि इसे जारी रखना है या नहीं।इस् पर् रविरतलामी हमारे मन की बात अपनी टिप्पणी करते हुये कहते हैं-
हमारे ज्ञान की पोल खोलती पोल तो वाकई लाजवाब है. और इस सफर को समाप्त करने का मन न बनाएँ अब कभी भी नहीं तो हमें बहुत सफ़र होगा. यदि किसी हिन्दी चिट्ठे को मैं हमेशा जिन्दा देखना चाहूंगा, तो वो यही होगा - शब्दों का सफर.
आई.आई.टी. कानपुर् से अपनी पी.एच्.डी. कर रहे अंकुर् वर्मा ने भी आखिरकार् अपना चिट्ठा शुरू कर् ही दिया। नाम् है-
निंदा पुराण्। शुरुआत् नैनो टेक्नालाजी से करते हुये उन्होंने लिखा-
नैनोटेकनोलॉजी के बारे में सर्वाधिक प्रचलित भ्रांतियों में से एक है कि नैनोमीटर में होने वाली सभी क्रियायें नैनोटेकनोलॉजी के अंतर्गत आती हैं जो कि वास्तविकता से कोसों दूर है | दरअस्ल जब हम किसी वस्तु का आकार छोटा करते जाते हैं तो एक आकार के बाद उसके किसी विशेष गुण जैसे कि रंग, चुम्बकीयता, वैद्युत अथवा रासायनिक गुणों में अनियमित बदलाव देखने को मिलता है यदि इसी अनियमितता का प्रयोग करते हुए एक टेकनोलॉजी विकसित की जाती है तो उसे नैनोटेकनोलॉजी कह सकते हैं | लघुरूपण (miniaturization) मात्र ही नैनोटेकनोलॉजी नहीं है |
अनिल रघुराज् की कहानी अभिव्यक्ति में छपी है। अब् वे फ़क़त् हिंदुस्तानी ही न् रहे। कहानीकार भी गये हैं। देखिये कैसी है कहानी! बतायें।
कुछ् समय पहले मैंने शहीद् चंद्र्शेखर् के बारे में बताया था। उनकी मां के खत भी पढ़ाये थे। अनिल् रघुराज् शहीद् चंद्र्शेखर् की मां के उद्गार् बताते हैं-कभी-कभी तो मुझे अपने बेटे की हत्या में पार्टी का हाथ नजर आता है।
फिलहाल् इतना ही। आप् भी सतोंषम् परमम् सुखम् मानकर खुश हो लें।
अनूप जी, शहीद चंद्रशेखर के बारे में दर्ज लिंक में तो किन्हीं टंडन जी के दौलतखाने का जिक्र है?
जवाब देंहटाएंमारु च चारु
जवाब देंहटाएंअंतरिक्ष में एक् गर्भवती तिलचट्टी मां बनी।
जवाब देंहटाएंसबसे दिलचस्प खबर यही थी।
तिलचट्टा हुआ या तिलचट्टी? वैसे आजकल तिलचट्टियाँ किसी से कम नहीं हैं मैं तो ऐसे ही पूछ रहा हूँ।
आप आज खूब हल जोत रहे हैं, हलंतों पर काबू रखिए।
पहले आपने हल जोते थे अपने फ़ुरसतिया वाले चिट्ठे पर।
जवाब देंहटाएंआलोक
हमेशा की तरह कानपुरिया ठाठ वाला लेखन... जानकारियां भयीं। आपका शुक्रिया अनूपजी .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..जारी रहें. दिलचस्प लिखा जा रहा है.
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद चिट्ठाचर्चा देखकर अच्छा लग रहा है। जारी रखें, आभार।
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