रविवार, अक्तूबर 21, 2007

तुम मुझे यूं जला न पाओगे

रावण

रावण

आज के देश भर में जब रावण दहन हो रहा है और कुछ रावण ऐंठते हुये कह रहे हों कि तुम मुझे यूं जला न पाओगे तब चिट्ठाचर्चा करना अपने आप में अहमकपने का काम है। लेकिन करने में हर्ज भी क्या है? सो करते हैं! भले ही आप कहें -तुम मुझे यूं झिला न पाओगे।

लेकिन पहले बात कल की। कल दनादन क्रिकेट में जब भारत आस्ट्रेलिया को पटरा कर रहा था और उत्थपा 'बिस्क वाकिंग'सी करते हुये ली की गेंदों को उड़ा रहा था तब हमें गत्यात्मक ज्योतिष में कल के मैच के बारे में की गयी भविष्यवाणी याद आ रही थी। उसमें भारत की हार की भविष्यवाणी की गयी थी। ज्योतिष वाले बतायें कि ऐसा कैसा हुआ कि उनकी भविष्यवाणी वाइड हो गयी? क्या पत्रा गलत हो गया था?

कल अनीताजी की पोस्ट बड़ी धांसू टाइप की रही। वे कन्फ़्यूज्ड थीं कि
पता नहीं मैं कौन सी सदी में जी रही हूँ , क्या मैं पिछ्ड़ गयी हूँ और मुझे पता भी नहीं चला कि जमाना कितना आगे निकल गया है।
साथी लोग उनको अपने हिसाब से सलाह देते पाये गये। दुर्गाप्रसाद जी ने टिपियाते हुये कहा:
अनिता जी, आपने कार्यक्रम की सूक्ष्मताओं को बहुत बढिया तरह से शब्द बद्ध किया है. बधाई. ज़माना वाकई बदला है. कम से कम समाज के एक हिस्से के लिए. दर असल हमारा भारत एक साथ ही कई काल खण्डों में जीता है. एक तरफ ये चन्द सन्नारिया6 हैं जो बूगे-बूगी के मंच पर नाच कर अपना जन्म सार्थक् करती हैं तो दूसरी तरफ ऐसी भी अनेक अभागी महिलाएं होंगी जो अपनी सासों ससुरों की इज़ाज़त के बगैर सर से पल्लू भी नहीं हटने दे सकती. उनकी तो बात ही मत कीजिए जिनके लिए ये सारी बातें कल्पनातीत हैं. लेकिन, मुझे तो इस बात की खुशी है कि चलिए भारतीय महिला समाज का एक बहुत छोटा-सा वर्ग ही सही, अपने मन की दबी-छिपी तमन्नाओं को ज़ाहिर और पूरा तो कर पा रहा है.


बेजी की कल की कविता की ये लाइने देखिये-
जाना कहाँ
किसको है क्यों
यह तो कुछ भी पता नहीं
उड़ान का मज़ा लूटने
पँख पहन कर उड़ गये

प्रसन्न खानाबदोशों का एक झुण्ड
प्रसन्न खानाबदोशों का एक झुण्ड


आपको शायद पता हो कि आज शम्मी कपूर का जन्मदिन है। शम्मी कपूर सिनेमा जगत के ऐसे शक्स हैं जो सबसे ज्यादा इन्टरनेट का इस्तेमाल करते हैं। वे नेट की शुरुआत से ही इसके शौकीन बने। 'याहू' ने जब अपनी दुकान भारत में खोली थी तब उनको खास तौर से बुलाया था। आज वे शम्मी कपूर ७७ वर्ष के हो गये। इस अवसर पर खुशी का खुशनुमा पाडकास्ट सुनिये और आनन्दित होइये।

साम्यवाद वैसे तो बड़ा जटिल दर्शन वाला माना जाता है लेकिन संजय बेंगानी एक आम भारतीय की तरह इसकी सुगम व्याख्या भी करते हैं:
जब इंजिन बनाने वाले और उसे चलाने वाले को एक ही धरातल पर तौला जाता है समझो साम्यवाद स्थापित हो गया. मैंने कहा अरे! तब तो समझो साम्यवाद का सपना सच हो गया.


अभयतिवारी ने अपनी माताजी का ब्लाग बनाया था। पहले पता कुछ और दिया था अब श्रीश जैसे ज्ञानियों की संगत में उनको पता चला कि पता सरल सा होना चाहिये। सो सरलीकरण की सूचना दे दी। आपौ ग्रहण करें।

आलोक पुराणिक जैसा कि आपको मालुमै है कि हमेशा अगडम-बगड़्म बात करते हैं। आज बोले कि रामायण में सीधा पन है। ब्लैक एंड व्हाइट टाइप का जबकि महाभारत कलरफ़ुल है। वे महाभारत की तारीफ़ करते हुये करते हैं-
महाभारत कांपलेक्स है, जिंदगी की तरह।
महाभारत के पात्र उन सब ऊहापोहों से गुजरते हैं, जिनमें हम सभी को गुजरना होता है।
अदरवाइज अच्छे कर्ण के अपने अंधेरे हैं, पर इसमें उसके चरित्र की रोशनी भी साफ दिखायी देती है। मामला कुछ-कुछ ग्रे कैरेक्टर का हो जाता है। कोई पूरा अच्छा नहीं है, कोई पूरा खराब सा भी नहीं है। धर्मराज भी जुएबाजी में पत्नी को हार रहे हैं। कृष्ण द्रोणाचार्य को मारने के लिए जो कर रहे हैं, उसे फरेब के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता है। भाई-भाई का हक मारने में जुटा है।
गौर से देखें, आसपास महाभारत कथाएं बहुत आसानी से मिल जायेंगी।


रावण
रावण

महाभारत का समर्थन करने के तुरंत बाद हमसे बोले- हमको वनलाइनर मांगता। जिसका आदर्श महाभारत हो उसकी बात मान लेने में ही भलाई है। यह विचार करते हुये यहां प्रस्तुत हैं कुछ ब्लाग पोस्ट का जिक्र।

1.प्रसन्न खानाबदोशों का एक झुण्ड :करछना स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहा है। "भित्तर आवइ द हो!"

२. पाकिस्तान: जब-तब पटरी से उतरा लोकतंत्र:एक फ़ौजी बैठ गया।

३. जुमलों की झुमरी-तलैया बन गया साम्यवाद: और तलैया में पूजीवादी भैंसे लोट लगा रहे हैं।

४.125 साल पुरानी मांग है शिक्षा का अधिकार : हम तो कहते हैं डबल सेंचुरी हुई के रही।

५.छोटे लेखों का जादू : शास्त्री जी के सर पर चढ़ा। 'नयनो टेक्नालाजी' का जमाना है।

६.प्राग में -- दो साल पहले ! :खरीदा कप कबाड़खाने में मिला।

७.रावण बनाम ग्रे कैरेक्टर :आलोक पुराणिक का रोल माडल!

८. मेरे सीने अपना सिर रखकर :दिन दहाड़े वो डाका डालेगा ! कोई तो पुलिस को बुलाये!

९.मोदी का पानी मांगना..क्या संकेत देता है :यही कि मोदी को भी प्यास लगती है और उनको बाहर का पानी जमता नहीं।

१०. "ट्रांसफ़र का काम है" कहना पर्याप्‍त नहीं है _:जगह भी बताओ और पैसे भी लाओ!

११.दर्द बनकर समा गया दिल में : लगता है कुछ दिन टिकेगा।


१२.समाचारपत्रों में गन्दगी : साफ़ करने के लिये जागरुकता का साबुन लगायें।

१३.संघर्ष निखारता है आदमी को :और आदमी को आरामदायक पायजामा बना के छोड़ देता है।

१४.अल्लाह जानता है : कि कितने स्वार्थी हो गए हैं रिश्ते!

१५. रावण का इंटरभ्यू:देख लो हर चैनल पर कराइम शो चलता है, इंसानियत पर शो चलते कभियो देखा है!

१६.सैकडों रावण सज-धज कर तैयार हैं दहन के लिए : गिन-गिन के जलाइये कोई बच के जाने न जाये।

१७.लंकेश को एक खुली चिठ्ठी.... : लंकेश तक पहुंचने के पहले ही लीक!

१८.मुझे भी तो जीवन से प्यार है : सच्ची! लेकिन जीवन में प्यार की क्या दरकार है!

१९.विज्ञापन कैसे-२ : देख कर मुस्कराते रह जायेंगे।

२०.इस तरह बनना : कि कहीं कुछ छूट न जाये।

२१.क्या पाठक का लाभ अखबारों की चिन्ता है ? : ऐसे ही अखबारों की चिन्तायें क्या कम हैं जो पाठक के लाभ की चिंता करें।

*कार्टून बामुलाहिजा से साभार

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7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया चर्चा. बधाई सुक्ल जी को.

    वो भारत की धड़ाधड़ क्रिकेट पर हम भी किये थे भविष्यवाणी कि भारत जीतेगा. छापने से रह गई थी. सॉरी!!! :)

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  2. अनूप जी इस लंबी फ़ेरिस्त के लिए शुक्रिया अब अग्रिगेटर पर नही जाना पढ़ेगा, पूरी की पूरी खिचड़ी हियां परोस दिये हो चट्नी , पापड़, अचार के साथ, खाइके मजा आ गया

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  3. चलिये यह संतोष हुआ कि समीर जी के अलावा भी कोई है आम चिठ्ठाकारो की सुध लेने वाला। आपने जो लिखा वह बडी मेहनत का काम है। हम सब को यह कार्य करना चाहिये समय-समय पर। आभार।

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  4. हम भी पंकज अवधिया जी से सहमत हैं।
    आजकल एक टिप्पणीचर्चा भी निकलती है - टिप्पणीकार जी की। वह भी मस्त होती है। सुकुलजी, वह भी आप तो नहीं निकालते?

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  5. मैने तो स्पष्ट लिखा था कि भविष्यवाणी करने में कई तरह की बाधाएं आती हैं . दरअसल मैं अभी किसी प्रकार की भविष्यवाणी ब्लॉग में डालने के पक्ष में ही नहीं थी , किन्तु एक दोस्त के अनुरोध पर कल डाल दिया , जो कई मैचों से मेरी भीविष्यवाणियों पर ध्याान दे रहें थे। इस एक भविष्यवाणी से मेरे आधार को 100 प्रतिशत गलत माना जा सकता है , किन्तु मेरा अनुरोध है कि आप मेरी क्रिकेट चर्चा को आगे भी पढ़ते रहें , जो और स्वयं फैसला करें कि मेरे सिद्धांत में सफलता और असफलता का प्रतिशत कितना-कितना है।

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  6. भई भौत खूब।
    यह जानकर कुछ गलतफहमी हुई कि कोई तो है जो हमरी बात को सीरियसली लेता है।

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  7. चिट्ठाचर्चा>..!! भोट सही. मुबारक. याद आ गया गुजरा जमाना :)

    नए साहसी लोगो के भरोसे छोड़ा था, बन्द ही हो गई...चर्चा.

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