मंगलवार, नवंबर 27, 2007

बोलो कटर कट की जय


ज्ञानजी अपनी इमेज सुधारना चाहते हैं ऐसा मुझे लगा। आज उन्होंने अपनी पोस्ट के आखिरी में लिखा-
हत्या/मारकाट/गला रेत/राखी सावन्त के प्रणय प्रसंग/आतंक के मुद्दे पर लपेट/मूढ़मति फाउण्डेशन की निरर्थक उखाड़-पछाड़ आदि से कहीं बेहतर और रोचक है यह!

लगता है कि वे अपने साथ राखी सावन्त का जिक्र को आधुनिक कार के जिक्र से रफ़ा-दफ़ा करना चाहते हैं। लेकिन आलोक पुराणिक ने अभी अभी फोन करके बताया- सच्चाई तो यह है भाईजी कि ज्ञानजी इस कार में राखी सावन्त के साथ घूमने जायेंगे। लेकिन हम यह सबको बता नहीं सकते। आप भी अपने तक ही रखना।

पंकज बेंगाणी का अभी-अभी जन्मदिन गुजरा। और वे राजा बेटा की तरह एक सफ़लता की कहानी सुनाने लगे-
और यह सबकुछ हकिकत है. आज समाचार पत्र में देसाई के बारे मे पढकर लगा कि यदि इंसान के मन मे कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो कोई भी राह कभी मुश्किल नही हो सकती है. बकौल देसाई उन्होने अपनी चाय की टपरी दस पहले शुरू की, तब उनकी मासिक आय 1500 रूपये के करीब थे और वे इतनी कम आय से जाहिर तौर पर संतुष्ट नही थे. फिर उन्होने चाय की टपरी शुरू की और फिर कभी पीछे मुडकर नही देखा.


अभय तिवारी के व्यक्तित्व के कई हिस्से हो गये। लेकिन वे इधर-उधर नहीं गिरे। सब इसी पोस्ट में समा गये। सबसे ऊपर दिख रहा है नीत्से का यह वाक्य-
राक्षसों से लड़ने वालों को सावधान रहना चाहिये कि वे स्वयं एक राक्षस में न बदल जायं क्योंकि जब आप रसातल में देर तक घूरते हैं तो रसातल भी पलट कर आप को घूरता है..

ब्लाग में ब्लागर में शिवकुमार मिश्रजी ने कुछ मजेदार जुगाड़ी वाक्य लिखे। लेकिन अनूप शुक्ल को ऐसा लगा कि ये उनका ही महकमा है। सो मारे जलन के मिसिर जी के लिखे पर अपनी कहानी लिख मारी। यह जबरियन अपने को आगे दिखाने की छुद्र मनोवॄत्ति से न जाने कब उबर पायेंगे ये मूढ़मति। कभी उबर भी पायेंगे क्या। हमें तो नहीं लगता।

अनिल पुरोहित काफ़ी दिन बाद फिर से लौट कर आये और दनादन शुरू हो गये। पिछ्ली पोस्ट में उन्होंने लिखा-
लेकिन एक बात है कि सफर और दिल्ली प्रवास के दौरान इंसानी फितरत के बारे में काफी कुछ नया जानने का मौका मिला। कुछ मजबूरी और कुछ आदतन होटल में नहीं रुका। हिसाब यही रखा था कि जहां शाम हो जाएगी, वहीं जाकर किसी परिचित मित्र के यहां गिर जाएंगे। हालांकि कुछ मित्रों ने ऐसी मातृवत् छतरी तान ली कि कहीं और जगह रात को ठहरने ही नहीं दिया। फिर भी जिन तीन-चार परिवारों के साथ एकांतिक लमहे गुजारे, वहां से ऐसी अंतर्कथाएं मालूम पड़ीं कि दिल पसीज आया। लगा कि हर इंसान को कैसे-कैसे झंझावात झेलने पड़ते हैं और उसके तेज़ बवंडर में अपने पैर जमाए रखने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है। कहीं-कहीं ऐसे भी किस्से सुनने को मिले, जिनसे पता चला कि दिल्ली के तथाकथित बुद्धिजीवी और क्रांतिक्रारी कितने ज्यादा पतित और अवसरवादी हो चुके हैं।
इसी पोस्ट में सृजन शिल्पी की तारीफ़ भी है लेकिन हम उसे दे नहीं रहे। अपने अलावा किसी की भी तारीफ़ से जल-भुन कम राख हो जाते हैं और राख से लैपटाप खराब हो जायेगा। हमें यह भी डर नहीं कि सृजन गदा प्रहार से हमारा तियां-पांचा कर देंगे।

मामाजी के किस्सों में आलोक पुराणिक का मन रम सा गया है। हमें भी मजा आ रहा है। ज्ञानजी तो फ़रमाइश भी कर दिये-यह मामाजीब्लॉग का डेट ऑफ ओपनिंग पता करें। आलोक पुराणिक आगे किस्साये मामा-मामी बताते हुयेलिखते भये-
एक दौर था, जब पत्रकार हाथ से लिखता था। फिर वह टाइप होता था। हरिद्वार से अगर अर्जैंट मैटर दिल्ली भेजा जाना है, तो प्रेस तार के जरिये जाता था।



प्रेस तार भेजने का सिलसिला यूं होता था कि पहले हरिद्वार का तार दफ्तर उस पूरे मैटर को अपनी मशीन पर लेता था। एक पुरानी मशीन होती थी, जो कटर-कट, कटर-कट की आवाज के साथ चलती थी और मैटर को आत्मसात करती चलती थी।
फिर इस तरह का कटर-कटीकरण दिल्ली के डाक दफ्तर में होता था।
दो बार की कटर-कट के बाद फाइनल कापी अखबार के दफ्तर में पहुंचती थी।
एक दिन अखबार में मामाश्री की भेजी खबर छपी-
कांग्रेस प्रत्याशी के 33 कार्यालय बंद।
कैंडीडेट का तो विकट कटर-कट हो लिया।
भागा-भागा आया मामाश्री के पास –कहां 33 बंद हुए हैं।
मामाश्री ने बताया तीन दफ्तर तो बंद हो गये हैं। मैंने उसी की खबर भेजी थी, मशीन ने तीन नंबर पर दो बार कटर कट मार दिया और तीन का तैंतीस हो गया।
पर कैंडीडेट का विकट कटर-कट हो गया।
बोलो कटर-कट की जय।

चलते-चलते कुछ एक लाइना पेश हैं-
१.टाटा, क्रायोजेनिक तकनीक, हाइड्रोजन ईंधन और मिनी बस : सब राखी सावंत से पीछा छुड़ाने के मासूम बहाने हैं।
२. असली आतंकवादी!: आतंकवादियों को निपटा रहे हैं।
३.ब्लॉग सुधारक च निखारक गीत : लेकिन हम नहीं सुधरेंगे।
४. और यूनिवर्सिटी के दरवाजे सदा के लिये बंद हो गये :बच्चन की जन्मशती पर विशेष तौर पर
५. देश भर में फैलने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की ‘माया’:बातों-बातों में शुरू होती बतंगड़ है यह और कुच्छ नहीं।
६.याद है, तुमहें...:मेरे हंस जाने पर आप ही झेंपना!
७.आंधी ये हकीकत की :ले जायेगी उड़ा कर जाने कहां कुछ पता भी नहीं!
८. एक ओर नया दिन: 'ओर' नहीं 'और'। जो भी हो अब शाम हो चुकी है।
९. गोवा जोगर्स पार्क में खंबे को थामे एक तार अड़ा है:चलो उसे धकिया के गिरा दें और फिर एक पोस्ट और लिखें।
१०. उनसे उपयुक्त भगवान कोई नहीं:हे भगवान, अब तू कट ले इनको चार्ज देकर!
११.तो भई, भड़ास ने भी बात थोड़ी आगे बढ़ाई :फिलहाल इतना ही....बाकी फिर!
१२.गलती हमारी ही थी :अब पछताये होत क्या!
१३. शेख़जी थोड़ी-सी पीकर आइये: वर्ना मजा नहीं आयेगा!
१४.मोबीन भाई और अताउल्ला पेलवान :की पतंगबाज़ी चलती रहती थी।
१५.समकालीन जादुई यथार्थ जी रहा हूं... :क्या यह लाईन ज़्यादा बौद्धिक लग रही है? अब हम अपने मुंह से क्या कहें? क्या गुस्ताख बन जायें!
१६.पिता, समाज और पद-प्रतिष्ठा के मामले में ज्योतिष : बड़े काम की चीज है।
१७. ग्लोबल वार्मिंग: कपड़े उतार कर विरोध : करने से क्या होगा? ग्लेशियर पिघलना बंद कर देंगे?
१८.बच्चन परिवार द्वारिकाधीश के द्वार में : फोटो खिंचा रहा है, अच्छी आई हैं।
१९.खूबसूरत बनने का खतरनाक शगल : बेताल उवाच-सावधान हो जाएं!
२०.फायरफाक्स पर ब्लॉगिंग टूल :ये कौन बोला तुमको लिखने को जी। टाइम खोटी कर दिया।
२१.कृपया पिटारा के संपूर्ण हिंदीकरण में सहायता दें : अपील सुनते ही मुन्ना भाई जमानत पर रिहा।

मेरी पसंद



गर पेच पड़ गए तो यह कहते हैं देखियो
रह रह इसी तरह से न अब दीजै ढील को


“पहले तो यूं कदम के तईं ओ मियां रखो”
फिर एक रगड़ा दे के अभी इसको काट दो।

हैगा इसी में फ़तह का पाना पतंग का।।

और जो किसी से अपनी तुक्कल को लें बचा
यानी है मांझा खूब मंझा उनकी डोर का
करता है वाह वाह कोई शोर गुल मचा
कोई पुकारता है कि ए जां कहूं मैं क्या
अच्छा है तुमको याद बचाना पतंग का ||

(नज़ीर अकबराबादी साहब की ‘कनकौए और पतंग’ का एक हिस्सा)

लपूझन्ना ब्लाग से

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7 टिप्‍पणियां:

  1. अनूपजी
    ये ज्ञानजी वाला सार तत्व तो अच्छा खोजा आपने।

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  2. बहुत बढ़िया...

    (वैसे ये मैंने इसलिए लिखा है क्योंकि मेरे चिट्ठे की भी चर्चा हुई....केवल दूसरों के चिट्ठे की चर्चा पर हम बहुत जल-भुन जाते हैं...पता नहीं इस मनोवृत्ति से उबर पायेंगे या नहीं......:-)

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  3. राखी सावंत तो मिथ्या है। यह लपूझन्ना बढ़िया पकड़ा जी!

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  4. ज्ञानजी का वह बयान मिथ्या माना जाये, जिसमें उन्होने राखी सावंत को मिथ्या माना है।

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  5. अपने चिट्ठे की चर्चा हो ही, यह सोच मिथ्या है. वन-लाइनर का आनन्द ही सत्य है.

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  6. पहली बार आपके एक लाइना मी जगह मिली. कृतार्थ हो गया. धन्यवाद ग्रहण करे. और आगे भी इसी तरह शामिल करते रहें.

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  7. acha lagta hai jab meri rachna par kanchi chalti hai..shukriya mujhey yaad rakhney ke liye.....

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