आज चिट्ठाजगत में खेद , माफ़ी और मूढ़मतियों का दिन रहा। अविनाश ने नाहर के षडयन्त्र का खुलासा करते हुये जानकारी दी- अनूप शुक्ला मूढ़मति हैं। कुछ लोगों ने इस पर एतराज किया लेकिन अविनाश अपने मत पर पक्के रहे। विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि लोगों का एतराज इसलिये था कि अनूप शुक्ला जैसे 'बेअक्ल' को 'कम अक्ल' बताकर अविनाश ने उदारता दिखाई और अनूप शुक्ला की पौ-बारह हो गयी। :)
ब्लाग जगत में एक तरफ़ प्रमेन्द को ये अखरा कि सुनील दीपकजी ने उनसे माफ़ी मांग कर अच्छा नहीं किया वहीं पाण्डेयजी दिन भर निन्ने मुंह 'माउस पांवड़े' बिछाये इंतजार करते रहे कि संजय बेंगाणी आयें और खेद प्रकट करें। संजय बेंगाणी आये भी और सरे आम माफ़ी मांगकर चले गये और पाण्डेयजी की गलतफ़हमी दूर हो गयी। ये होती है चरित्र की ताकत। :)
यही सारे लफ़ड़े देखकर अभय तिवारी सोचने लगे :
मैं लगातार अपने आप से यही सवाल करता रहता था कि मैं इतना बड़ा बेवकूफ़ क्यों हूँ और अगर दूसरे लोग भी बेवकूफ़ हैं, और मैं पक्की तौर पर जानता हूँ कि वे बेवकूफ़ हैं तो मैं ज़्यादा समझदार बनने की कोशिश क्यों नहीं करता? और तब मेरी समझ में आया कि अगर मैंने सब लोगों के समझदार बन जाने का इंतज़ार किया तो मुझे बहुत समय तक इंतज़ार करना पड़ेगा.. और उसके भी बाद मेरी समझ में यह आया कि ऐसा कभी नहीं हो सकेगा, कि लोग कभी नहीं बदलेंगे, कि कोई भी उन्हे कभी नहीं बदल पाएगा, और यह कि उसकी कोशिश करना भी बेकार है। हाँ ऐसी ही बात है! यह उनके अस्तित्व का नियम है.. यह एक नियम है! यही बात है!
वैसे इस माफ़ी-वाफ़ी और वरिष्ठ-कनिष्ठ के लफ़ड़े में आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार का मानना है:-
१. लेखकों को वरिष्ठ और कनिष्ठ के खाँचों में न डालें। लेखक की (प्रकाशित) आयु का लेखन से बहुत कम लेना देना होता है।
२. यदि किसी अन्य द्वारा छेड़े गए विषय पर चर्चा करनी हो तो विषय को संबोधित करते हुए चर्चा करें, लेखक को संबोधित करते हुए नहीं।
अनूप शुक्ल को प्रत्यक्षाजी की पोस्ट कुछ समझ में नहीं आई। समझ में प्रमोदजी को भी उतनी ही आयी जितनी प्रत्यक्षाजी को आई होगी लिखते समय लेकिन वे अपनी समझ और ज्यादा साबित करने के लिये सवाल पूछने लगे-
क्या अनूपजी, रसप्रिया गीत समझ में आता है, रसतिक्त आधुनिकताभरा बोध नहीं? सठिया आप रहे हैं और बूढ़ा हमको बता रहे हैं? व्हाई? पंत के साथ-साथ ल्योतार्द और नंदलाल बोस की संगत में कैंडिंस्की और मुंच का अध्ययन करने से डाक्टर ने मना किया था? कि माध्यमिक के माटसाब ने? बोलिये, बोलिये!सवाल सुनते ही अनूप शुक्ला की बोलती बन्द हो गयी। और वे अपने वनलाइनर पेश करने लगे। :)
1. ये रहा नाहर के षड्यंत्र का खुलासा!: अनूप शुक्ला मूढ़मति हैं।
2.यदि हमारे पास यथेष्ट चरित्र न हो --- : तो काम नहीं चलेगा। चलिये संजय बेंगाणी जी खेद प्रकट करें। :)
3. वरिष्ठ चिट्ठाकारों से एक अनुरोध: माफ़ी मांगकर शर्मिन्दा न करें।
4.मैंने अपनी प्रेमिका से झूठ बोला है : सबको बोलना पड़ता है। इसमें कौन नयी बात है?
5. सभी चिट्ठा भाईयों से विनम्र प्रार्थना.....:पिछले दो दिनों से जो चल रहा है वह ठीक नहीं है, यह सब बंद होना चाहिए!
6. मनुष्य हर पल बदल रहा है..:इसी बीमारी के चलते नक्सल आंदोलन के अठहत्तर फाँके हो गईं।
7. राह दिखाती है भूल-भुलैया:इसी बात पर चलें कौनहारा....सोनपुर मेला घूम आएं
8.सल्फर का रोगी चीथड़ों में रहकर भी खुद को धनवान समझता है : धनवान बनने का सबसे सुगम उपाय, सल्फर का रोग पालें।
9. लेखकीय अधिकार से लिखें अनुयायी बनकर नहीं:वर्ना पाठक न मिलेंगे।
10.एकता बड़े काम की चीज :सही है। यही लिये एकता के सीरियल चल रहे हैं।
11.जब नर तितलियां ले जाए प्रणय उपहार : तो मादा तितलियां कहें लाओ जल्दी देर मत करो यार!
12. ये है सभ्य ब्लागर हिंदी समाज : जो आपस में मां-बहन करता है।
13.मैं कैसे पढ़ूं:जैसे सब पढ़ते हैं।
14.यह समय है धान से धन कमाने का न कि उसके नुकसान के दुष्प्रचार का : वैसे भी अफ़वाह फ़ैलाने वाले देश के दुश्मन होते हैं।
15.कहां गायब हुए वो लोग :सारे गायब हुये लोग बतायें।
16.मैं इस घर को आग लगा दूंगा :क्योंकि हम इश्क में बरबाद हो गये। फ़ायर ब्रिगेड बुला लो।
17.मोबाइल पर फोकट में बात होगी :जिसका मुझे था इंतज़ार ....जिसके लिये दिल था बेकरार...वो घडी आ गयी....आ गयी..|
18.सही जगह पर होना जरूरी :चलिये पहुंचिये अपनी जगह पर।
19.ओह ब्लेम इट ऑन द डीएनए बडी :रानी मधुमक्खी बैठी है अपने छत्ते के बीच में ।
20.बर्गर की तरफ, गद्दे की तरफ :कौन उतारे अपनी आफीशियल ड्रेस, जब सामने हो अलां-फलां मेट्रेस।
21.दो घंटे में ही चार मेंबर बने, संख्या पहुंची 54 : अब इसे एक बार फिर से बंद किया जाये क्या। :)
पौ बारह होने की बधाई, भैया.......:-)
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें ... आप सबसे ज्यादा उपाधियाँ प्राप्त करें।
जवाब देंहटाएंउत्तम विश्लेषण, अति उत्तम चुनाव !!
जवाब देंहटाएंआज तो आपका ही दिन था :-)
जवाब देंहटाएंआप तो मूढ़्मति पर चहकने का उत्सव मना लें, पर दिन सड़ा हुआ ही था।
जवाब देंहटाएंयह लेख बढ़िया रहा।
पाण्डेजी को एक पल प्रतिक्षा नहीं करनी पड़ती, मगर हमें पता ही नहीं था की उनका दिल दुखा है.
जवाब देंहटाएंज्ञानीयों द्वारा मुढ़बुद्धि कहलावाना वाकई पौ बारह होने बराबर है. बधाई. :)
वाह जी वाह आप तो सबकी छुट्टी करने पर तुले है. क्या जबरदस्त वनलाइनर है. मज़ा आगया है. और एक बात आपकी इस पोस्ट से आज सीखी कि कैसे खुरापतियों को हेंडल करना चाहिए.
जवाब देंहटाएं"आज चिट्ठाजगत में खेद , माफ़ी और मूढ़मतियों का दिन रहा। अविनाश ने नाहर के षडयन्त्र का खुलासा करते हुये जानकारी दी- अनूप शुक्ला मूढ़मति हैं। कुछ लोगों ने इस पर एतराज किया लेकिन अविनाश अपने मत पर पक्के रहे। विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि लोगों का एतराज इसलिये था कि अनूप शुक्ला जैसे 'बेअक्ल' को 'कम अक्ल' बताकर अविनाश ने उदारता दिखाई और अनूप शुक्ला की पौ-बारह हो गयी। :)"
"सवाल सुनते ही अनूप शुक्ला की बोलती बन्द हो गयी। और वे अपने वनलाइनर पेश करने लगे। :)"
दूसरों पर व्यंग्य करना तो सबको आता है, सुकुल जी ने अपनी खबर लेकर बड़ी हिम्मत दिखाई है. बधाई.
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