बुधवार, दिसंबर 19, 2007

बुक फेयर है या सब्‍जी की दुकान




त्रिलोचन जी के बारे में बहुत अच्छा संस्मरण लिखा है इयत्ता वाले इष्टदेव सांकृत्यायन ने। त्रिलोचनजी के बारे में बताते हुये उन्होंने लिखा-
अपने समय में में उन्हें हिन्दी का सबसे बडा रचनाकार मानता हूँ. सिर्फ इसलिए नहीं कि उनकी रचनाएं बहुत उम्दा हैं, बल्कि इसलिए कि अपने निजी स्वभाव में भी वह बहुत बडे 'मनुष्य' थे. गालिब ने जो कहा है, 'हर आदमी को मयस्सर नहीं इन्सां होना', संयोग से यह त्रिलोचन को मयस्सर था. त्रिलोचन वह वटवृक्ष नहीं थे जिसके नीचे दूब भी नहीं बढ़ पाती. वह ऐसे पीपल थे जिसके नीचे दूब और भडभाड़ से लेकर हाथी तक को छाया मिलती है और सबका सहज विकास भी होता है. त्रिलोचन की सहजता उतनी ही सच्ची थी जितना कि उनका होना. वह साहित्य के दंतहीन शावकों से भी बडे प्यार और सम्मान से मिलते थे और उनके इस मिलने में गिरोह्बंदी की शिकारवृत्ति नहीं होती थी.
इस संस्मरण में इष्टदेव ने त्रिलोचन जी के अधूरे काम पूरे करने के प्रति चिंता जताई है कि उनको कौन करेगा? दो काम तो सिर्फ़ और सिर्फ़ इष्ट्देव ही कर सकते हैं:-
१. अपने सानेट पढ़वाने का और सानेट के बारे में जानकारी देना का।
२.अपने शरीर पर मांस चढ़ाने का।

ये दोनों काम उनको स्वयं त्रिलोचन जी सौंपे थे। उनके प्रति अपनी श्रद्धा ज्ञापित करने का यह तरीका होगा कि ये काम पूरे किये जायें।

मामाजी आज चंडूखाने पहुंच गये। हरिद्वार , जहां कि नशा-निषिद्ध है , में हर तरह के नशे की उपलब्धता बताते हुये वे चाय-नशे का विस्तार से व्याख्यान करते हैं। चाय गोपालजी की दुकान की है। एक लाख अस्सी हजार रुपये की चाय पिला चुके हैं अब तक गोपाल जी। पत्रकारों और उनके लगुये-भगुओं के लिये कतई मुफ़्त। इसी कारण इस चंडूखाने का हाल ये हुआ कि
धीरे धीरे यह चण्‍डूखाना प्रेसवालों का, पत्रकारों का अघोषित दफ्तर बन गया। हरिद्वार के पत्रकारों की संस्‍था 'भारतीय संवाद परिषद' जो कालान्‍तर में 'प्रेस क्‍लब हरिद्वार' हो गई, की स्‍थापना-संकल्‍पना की जन्‍मभूमि यही चण्‍डूखाना बना। आज जब प्रेसक्‍लब का अपना स्‍वतंत्र दफ्तर है और नया भवन भी बनकर तैयार है, तब भी पुराने पत्रकारों के लिए गोपाल का चण्‍डूखाना ही हरद्वारी पत्रकारिता का कलम का मक्‍का-मदीना है। जब हरिद्वार में गिनेचुने सात-आठ पत्रकार होते थे तब भी चण्‍डूखाना आबाद था और आज जब यह संख्‍या 'सेंचुरी अप' हो चुकी है तब भी इस चण्‍डूखाने का महत्‍व कम नहीं हुआ है।


मामाजी के हाल से बेखबर उनके लायक भांजे( हालांकि अपने में मामा और भांजे कित्ते भी लायक हों लेकिन मामा-भांजे का जोड़ा नालायक ही माना जाता है) यायावरी में जुटे हैं। वे आज
अत्यंत प्राचीनकाल से ही अपने अभियान अर्थात खोज यात्राएं की हैं। यायावरी का इसमे विशेष योग रहा। उस दौर में ऐसे सभी अभियान पदयात्रा के जरिये ही सम्पन्न होते थे। अभियान का निकटतम अंग्रेजी पर्याय है एक्सपिडिशन जिसका का मतलब है निकल पड़ने को तैयार या तेजी से आगे बढ़ना। अपने प्राचीन रूप में यह भी फौजी कार्रवाई से जुड़ा हुआ शब्द ही था जैसा कि अभियान।
प्यादे के बारे में जानकारी पर ज्ञानजी की टिप्पणी है-पैदल चलने वाला जितनी तेजी से चलता है; शायद उससे तेजी से शब्द अपना स्वरूप बदलता है। :-)

आज की अतिथि पोस्ट में ज्ञानजी ने पंकज अवधियाजी के माध्यम से दांतो की सड़न रोकने के उपाय बताये हैं। आजमायें। दांत चमकायें। दिखायें।

दिलीप मंडल जी ने ब्लागर-मिलन के खिलाफ़ अपने विचार रखे थे। उस पर अभय तिवारी ने अपना मत रखा। अब हर्षबर्धन उसी बात पर अपनी राय जाहिर कर रहे हैं। उन्होंने दिलीपजी से सवाल भी किया है-
जहां तक चमचागिरी/ चाटुकारिता की दिलीपजी की बात है तो, बस इतना ही जानना चाहूंगा कि किस संदर्भ में कौन सी तारीफ चमचागिरी/चाटुकारिता हो जाती है। और, ज्यादातर ऐसा नहीं होता कि अपने लिए की गई साफ-साफ चमचागिरी भी अच्छी लगती है लेकिन, दूसरे की सही की भी तारीफ चाटुकारिता नजर आने लगती है।


प्रत्यक्षाजी अपने रंग में हैं आजकल। आज की पोस्ट में तो उन्होंने साइज भी बढ़ा दिया है। न जाने कौन से कोने अतरे से वे नये-नये नाम ले आती हैं। के,कारमेन,सीमस और शुबर्ट (ये हमने पहली बार पढ़े)और भी न जाने क्या-क्या। कैसे हैं उनकी के आप देखिये-
उनकी आवाज़ में एक संगीतमय गूँज थी , ज़रा सी रेशेदार जैस्रे खूब सिगरेट पीने के बाद कुछ खराश हुई हो । फिर एकदम से उठकर चली गईं बिना ये कहे कि फिर आयेंगी या नहीं । छठा दिन बीता फिर सातवाँ । आठवें दिन थरमस से सूप ढाल कर पीने ही वाला था कि घँटी बजी । दरवाज़ा खोलते ही सर्द हवा के झोंके के साथ दाखिल हुई । ठंड से चेहरा ज़रा लाल था । बिना दुआ सलाम के कुर्सी खींच कर बैठ गईं । झोले से किताब निकाला । आज कवितायें नहीं है ऐसा आश्वासन दिया ।


अब कुछ बन लाइनर-
1.शिक्षा में अंग्रेजियत के डिस्टॉर्शन : के चलते ही भारत अध-पढ़ा है।
2.रेल कर्मी और बैंक से सेलरी : में अंतरंग सम्बन्ध हैं।
3.काश गन से गिटार बनाई जाए ! : और जैसे ही कोई दुश्मन कब्जा करने के लिये आये गिटार बजा दी जाये।
4. चालू चैनल पर मौत के सौदागर :दिखा रहे हैं अगड़म-बगड़म द ग्रेट आलोक पुराणिक!


5. ज़िंदगी कितनी हसीन है !: और उसे आप ब्लागिंग में चौपट कर रहे हैं।
6. दिलीप जी आपको टिप्पणी चाहिए या नहीं?: साफ़-साफ़ बताइये।
7. चर्चा चण्‍डूखाने की: मामाजी यही तो करेंगे।
8. शर्ट हेंगर ने बचाये करोडों रुपये :वे सब बाद में हमने गंवा दिये।
9. लाइलाज बीमारी बासिज्म: की चपेट में सारी दुनिया है। अपना भी चेकअप करायें।
10. बुक फेयर है या सब्‍जी की दुकान: किताबें किलो के भाव मिल रहीं हैं।

11. अपना चिट्ठा/जालस्थल लुटेरों से बचायें : अपना सब कुछ एक बार में लुटायें फिर चैन की बंसी बजायें।

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4 टिप्‍पणियां:

  1. भैया हम तो इम्प्रेस्ड हैं। सवेरे सवेरे सर्दी में यह पढ़ना और पोस्ट भी ठोक देना समग्रता से - कौन सी चक्की का खाते हो!

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  2. aaj kal kavita kae blog per chithaerae kee nazar nahin jaatee haen . chitharae chitharee kabhie un per koi charcha nahin kartae

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  3. ज्ञान जी सही कह रहे हैं. कमाल का खम है!!

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