गुरुवार, दिसंबर 20, 2007

झूठ के प्रयोग में ईमानदारी बरतें




कल की चर्चा में ज्ञानजी की टिप्पणी थी-भैया हम तो इम्प्रेस्ड हैं। सवेरे सवेरे सर्दी में यह पढ़ना और पोस्ट भी ठोक देना समग्रता से - कौन सी चक्की का खाते हो! अब क्या बतायें। ज्ञानजी हमसे इम्प्रेस्ड हैं और हम कल दिन भर डिप्रेस्ड रहे। जो फोटो कल की चर्चा में लगाई वो ठीक से लगी नहीं। दिखी नहीं। लिंक ठीक से लगे नहीं। फिर भी ज्ञानीजन इमप्रेस्ड हो गये। ये है अल्पसंतोषी मानस। साईं इतना दीजिये जामें कुटुम समाये वाला। :)

आज की चर्चा की शुरुआत नेक काम से। जगदीश भाटियाजी ने लिखा -
Esha - एक संस्था है जो कि नेत्रहीनों के लिये काम कर रही है। यह संस्था कई तरीकों से नेत्रहीनों की सहायता कर रही है। यहां विजिटिंग कार्ड्स पर ब्रेल में नाम लिख नेत्रहीनों को आत्मनिर्भर बनाने का काम भी किया जा रहा है। इन्होंने अब अपनी साइट बनायी है www.braillecards.org । संस्था के पास अपनी साईट को प्रचारित करने के लिये संसाधन नहीं हैं। आप सभी से अनुरोध है कि इस साईट का लिंक अपने अपने चिट्ठे पर लगायें। हो सके तो इस साईट के बारे में पोस्ट भी लिखें। जरूरत है कि इस तरह की साईट्स के बारे में लोग अधिक से अधिक जानें।


आलोक पुराणिक के शब्द उधार लेकर कहें तो नेकी कर चर्चा में डालने में बाद अब काम की बातें। दो दिन पहले हमें किसी ने बताया कि युनुस ने मनीषाजी से मुलाकात के बारे में एक पोस्ट लिखी है। उनको दस ब्लागर के बराबर है। आज ये पोस्ट देखी। आनंदित हुये बांच कर। हमें यह जानकर अच्छा लगा कि मनीषाजी ने युनुस से लहसुन भी छिलवा लिये।
लेकिन यह सवाल भी उठा कि क्या प्याज नहीं था वहां? उनसे बतकही की बयानी उन्हीं से सुनिये-
इस दौरान मनीषा ने खूब खूब सारी बातें कीं । कई दिनों बाद कोई ऐसा मिला, जिसने मुझे बोलने ही नहीं दिया । मतलब ये कि रेडियो वाला होने का अब तक फायदा ये था कि हम बोलते तो लोग सुनते, पर यहां ' दस के बराबर एक ब्‍लॉगर ' से मुलाकात में हमने सिर्फ सुना । हमें बोलने का मौक़ा ही कहां मिला । सब कुछ पूछ‍ लिया उसने, ब्‍‍लॉगिंग के बारे में, मेरी और ममता की शादी के बारे में, जिंदगी की दिक्‍कतों के बारे में, संगीत के बारे में, ना जाने किस किस बारे में । फिर मज़े लेकर बोली कि ममता जी ने मुझसे वादा किया है कि अगर मैंने कोई 'क्रांति' की तो वो सबसे आगे खड़ी होंगी मदद करने के लिए ।
इस बेहतरीन
मुलाकात के जिक्र में सबसे अटपटा इस पोस्ट का शीर्षक है। पता नहीं ये रेडियो वाले कब सीखेंगे ये सब। व्यक्तित्व इस तरह डिजिटाइज नहीं किये जाते भाई। सारे लेख की हिंदी कर दी। :)

उधर घुघुतीजी अपने शानदार मूड में हैं। अपने जीवन के अनुभव बता रहीं हैं आज। शादी किसकी है में अपनी शादी के मजेदार व शानदार किस्से उन्होंने लिखे हैं।

अब कुछ हड़बड़िया एकलाइना

1.गद्दों के इश्तहार में आडवाणीजी : रजाई वाले इश्तहार किसको मिले?

2.ब्लोग्वानी कि दिक्कत क्या है? : ये तो ब्लागवाणी को भी नहीं पता।

3.अंतर्जाल पर भी मनोरंजन की खोज :भूसे के ढेर में सुई खोजने सरीखा काम है।

4. श्री बुध प्रकाशजी के पूर्वजों की एक पीढ़ी: ने आज पाण्डेयजी की मानसिक हलचल बढ़ा दी।

5.गीता को समझने मैं बहुत समय लगता है। : क्या जरूरत है समझने-समझाने की? बेफ़ालतू का टाइम वेस्ट!

6.होंगे सैकडो पैदा शहीदों की रुधिर की धार से : अच्छा हुआ अब शहीद नहीं होते वर्ना देश की आबादी कित्ता और बढ़ जाती।

7.क्या-क्या रोकेगी सरकार व न्यायपालिका : रोकने का ऐसा कुछ नहीं है भाई जी लेकिन ट्राई तो मारना पड़ता है न!

8.अबे जंगली इंडियन तेरा गूस तो पक गया : और तू यहां कार्टून दिखा रहा है मसीजीवी कहीं का!

9. झूठ के प्रयोग: में ईमानदारी बरतें। वर्ना सारा फ़र्जीबाड़ा सामने आ जायेगा।

10. अब रेलवे टिकट खुशबू देंगे : खुशबू सूंघते ही यात्रा पूरी।

11.दुनिया भर के बहते हुए खून और पसीने में हमारा भी हिस्सा होना चाहिये :बंटाधार! हर जगह रंगदारी/ हिस्सेदारी के किस्से हैं।

12.अधर में लटका सा जीवन : लटका सा ही रहेगा क्या जी!

13. अगर ब्लाग के लिये पुरस्कार घोषित हुये तो : डर लगता है कि हमें भी न मिल जायें।

14. खड़ी बोली के लोकगीत: बैठकर पढें।

15. मैं, मौसी, बसंती और चंदन: सब इसी पोस्ट में हैं। जाड़ा है न सिकुड़ के बैठे हैं।

मेरी पसंद


कम कपड़े फैशन का पर्याय हो चले हैं,
भिखारी से कपड़े - ज्यादा महंगे हो चले हैं,
पूरे ढंके शरीर को
"दुनिया " हिकारत से देखती है
अब तो भाई को भी बहन " सेक्सी " ही लगती है!!!
बेटा नशा करता है,
इस बात से "बड़े" अनजान होते थे
अब तो पिता मुस्कुरा कर जाम बना देते हैं
बेटे को कौन कहे,
बेटी को थमा देते हैं !!!
नशे मे झूमना
आज पतिव्रता होने की निशानी है.....
रिश्तों की बुनियाद !!!
"ये बात बहुत पुरानी है....."

रश्मिप्रभा

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6 टिप्‍पणियां:

  1. यूनुस ने दस बराबर एक ब्लॉगर बता अच्छा किया। अब यह बोलते कि मनीषा ड्योढ़ा या अढ़ैया या कोड़ी ब्लॉगर हैं तो गणना करने में परेशानी होती।
    फिक्र न करो मित्र, उस स्केल पर आप सेंचुरिहा ब्लॉगर हैं!

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  2. मेरे लेख की चर्चा करने के लिए बहुत धन्यवाद ।
    घुघूती बासूती

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  3. धन्यवाद अनूप जी।

    कृप्या टिप्पणियों के लिये ओपन आईडी सक्रीय कर दें इससे टिप्पणी करने में आसानी होती है।

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  4. प्रिय अनूप,

    अब कुछ हड़बड़िया एकलाइना के लिये अच्छा चुनाव किया है. घुघूती बासूती जी का लेख विशेष है अत: उसकी चर्चा के लिये कुछ और पंक्तियां दे देते तो अच्छा रहता -- शास्त्री जे सी फिलिप

    आज का विचार: हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    इस विषय में मेरा और आपका योगदान कितना है??

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  5. ज्ञानजी मेरा मंतव्य यह है कि सबसे अच्छे ब्लागर भी
    दूसरे दस , बीस ,सौ ब्लागरों के बराबर नहीं होता। यह हो सकता है कि वह दस/सौ लोगों से अच्छा हो। मेरी बराबरी कैसे होगी किसी से? हम ऐसे हैं जिसके नाम की मतलब है जिसकी उपमा न हो सके। अनूठे लोग अनूठे ही होते हैं किसी से तुलना कैसी?

    घुघुतीजी आपका लेख वाकई शानदार है।

    शास्त्रीजी घुघुतीजी का पूरा ही लेख पढ़नीय है।

    जगदीशजी आपकी आज्ञा का पालन हो गया।

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  6. मैंने आज ही चिट्ठाजगत पर "मेरी भावनाएं" अधिकृत की हैं...और देखा की मेरी पसंद को आपने चुना है...इसके लिए मैं बहुत आभारी हूँ..बहुत ख़ुशी हुई....

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