शनिवार, दिसंबर 22, 2007

पाडभारती, प्रार्थना और पतलून पुजारीजी की



पाडभारती शानदार है। ये हम नहीं आप भी कहेंगे एक बार सुन तो लें।

देबाशीष और शशि सिंह ने एक बार फिर शानदार प्रस्तुति की पाडभारती की। आठ मिनट की इस आडियो हलचल में जीटाक पर अपना स्टेटस लगाने के बारे में बतकही है, दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनाव के किस्से हैं और है युनुस खान की खनकती आवाज। अगर हम पाडभारती नहीं सुनते तो हमें पता नहीं चलता कि ये देबू, शशि और युनुस आवाज के मामले में इत्ते बड़े युवराज सिंह हैं। आप भी सुनिये न! काहे के लिये सर्वहारा बने हैं।

जब हम आशीष के साथ पूना से नासिक गये थे तो त्र्यम्बकेश्वर मंदिर से शाम के समय लौटते हुये रचनाबजाज परिवार की सम्मिलित प्रार्थनायें सुनते हुये आये। एक के बाद दूसरी प्रार्थना का सिलसिला चलता रहा। रचनाजी कुछ दिनों से अपनी प्रार्थनाऒं की पाडकास्टिंग करना चाह रही थीं। हो नहीं रही थी। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और प्रार्थना की फ़ाइल अपलोड करके ही मानी। इसी को कहते हैं- कोई काम नहीं है मुश्किल जब किया इरादा पक्का। हम तो यही कहेंगे- वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो।

लावण्याजी की तेजी आंटी ९३ साल की होकर चली गयीं। हमेशा के लिये। मामाजी ने बच्चन परिवार के साथ बहुत समय गुजारा है। उनके संस्मरणॊ पर एक किताब भी लिखी है। आज उन्होंने तेजीजी से जुड़े कुछ संस्मरण बयान किये। वे लिखते हैं
-डॉ. प्रभाकर माचवे मौज में अक्‍सर कहा करते थे, 'भई बच्‍चन तो तेजी के साथ बढ रहे हैं।'' इस वाक्‍य का श्‍लेष बहुत गहराई तक सच बयान करता है। सही मायनों में वे बच्‍चन जी का बल थीं। सहयात्री का जाना यूं भी कष्‍टकर होता है, फिर साठ सालों से अधिक तक सहयात्री रहे बच्‍चनजी जैसे भावुक, समर्पित कलमकार, कलाकार सहयात्री का बिछोह निस्‍संदेह तेजी जी के लिये पीडादायी था। बच्‍चन जी के जाने के बाद उन्‍होंने खाट क्‍या पकडी, बच्‍चन जी की राह ही पकड ली।


आज भी आफ़िस जाना है सो चंद हड़बड़िया एकलाइना पेश करके फ़ूटना है-

पश्चिम का तलुवा, काले अंग्रेजों की जीभ !: दिखा रहे हैं शास्त्रीजी!

देश पै घोड़े-गधे राज करैं सै:राजेन्द्र त्यागी का सनसनीखेज खुलासा।

बिजली के टॉवर, व्यक्तिगत जमीन और स्थानीय शासन: एक साथ बने ज्ञानीजनों के मानसिक चिन्तन का शिकार।

बोझ: भारी है, संभलकर उठाना।

दुपट्टा मीन्स क्या : ये किसी फ़ेलियर छात्र से पूछो, टापर न बता पायेगा।

संत की पतलून : अजित वडनेरकर ने उतारी, धोयी और टांग दी, यायावरी के दौरान।

याद मुझे है अब तक : इसीलिये आप को भी बता देते हैं-क्योंकि मगर खून बहे है अब तक!

एकदम परफेक्‍ट है ‘तारे जमीन पर’ : चलो देखकर आते हैं।

घायल हुई सोने की चिड़िया: जल्दी फ़र्स्ट-एड बाक्स लाओ।

भारतीय समाज का दा विंची कोड: मोहल्ले वालों ने तोड़ डाला, शरारती हैं।

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3 टिप्‍पणियां:

  1. पॉडभारती पर खटका मारने पर आपके मामाजी नज़र आ रहे हैं । युनुस की खनकती आवाज़ की कड़ी दें , सर्वहारा बनाने पर तुले हैं ?

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  2. आज भी आफ़िस जाना है
    *********************
    सहानुभूति है!

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  3. उपलब्ध समय में आप इस चिट्ठे के लिये काफी कुछ कर लेते हैं. साधुवाद्!!

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