बुधवार, दिसंबर 26, 2007

बर्लिन दीवार का टूटना और दिलों का मिलना



आज की चर्चा की शुरुआत एक सवाल से-
बर्लिन दीवाल का टूटना, पूर्वी-पश्चिमी जर्मनी का आपस में विलय, होना यह एक भावनात्मक बात थी। मुझे जर्मन लोगों ने बाताया कि उन्हें इसकी प्रसन्नता है। हमारे भी - दो टुकड़े हुए हिन्दुस्तान और पाकिस्तान। बाद में पाकिस्तान के भी दो। यानि कि हम दो से तीन हो गये हैं। हम में एक खून है, एक सभ्यता है - क्या कभी हम तीन मिल कर एक हो सकेगें।
ये सवाल है उन्मुक्तजी का। इस सवाल में उनकी ही नहीं तमाम लोगों की चाहना की झलक है।



1.कुछ टिप्पणी चर्चा : चिट्ठाचर्चा से चैन नहीं मिला!

एक कॉस्मिक छींक : समय को जुकाम हो रखा है। विक्स की गोली लें। खिच-खिच दूर करें।

हँसना मना है:हंसे तो समझ लो। जो हमसे टकरायेगा, चूर-चूर हो जायेगा।

बर्लिन दीवार का टूटना और दिलों का मिलना: एक ही सिक्के के दो पहलू थे , हैं और रहेंगे।

वह तारा क्या था? तारा था और क्या ?

रक्त की शुद्धता के लिये ग्वार पाठा (एलो वेरा): लें कि न लें। साफ- साफ़ बतायें।आप तो डाक्टरों की तरह अबूझ नुस्खे लिखने लगे।

कुछ नये मुहावरे गढो़ : नया गढ़ने के लिये मिट्ठी किधर से लेनी है त्यागीजी ?


चुनाव : चाहे रामलाल जीते चाहे श्यामलाल हमसे क्या मतलब? कौन हमें वोट डालने जाना है।

भोला बचपन ...भोले चेहरे: आप भी देखिये भोलेपन से।

आहट सुनने तरसती रहती हूँ लेकिन तुम हमेशा दबे पांव आते हो। जरा धड़ल्ले से आया करो।

एक साल में पांच हजार बार क्रैश देख तो जरा बेटा गिनीज का रिकार्ड कित्ता है?

इडियट बॉक्स तो नहीं है टेलीविज़न .. :काहे को हमारा मुंह खुलवाते हैं ? आप तो सब जानते ही हैं।

कपट न हो बस मै तो जानूँ ! तुष्ट न क्यों तुम मैं न जानूँ, सुनते हो जानूँ!

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5 टिप्‍पणियां:

  1. उन्मुक्तजी तक पहुँचने के लिए कड़ी को सुधार लें ।

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  2. बहुत खूब जोड़ियां मिलाई हैं , वाह...

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  3. आज भी आपकी एक-वाक्य-टिप्पणियां पढीं. अच्छा लगा. काम के कई लेख नजर आ गये.

    लिखते रहें, पाठकों को आम के आम गुठली के दाम मिल जाते हैं.

    टीम के साथियों को जरा जगा दें. काफी समय से "हाईबरनेशन" मे पडे हैं!!!

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  4. आप पोस्ट पब्लिश करने की तारीख के साथ समय का ऑप्शन भी एक्टीवेट कर दें। सवेरे इतनी जल्दी पढ़ कर चिठ्ठाचर्चा ठोक देते हैं - उसका दस्तावेजी सबूत देखने में अच्छा लगेगा मुझे।

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  5. उन्मुक्त जी के सवाल पर सवाल।

    ये तीनों के अन्दर भी जो बर्लिन की दीवारें खड़ी हैं और रोज उन को सीमेंट पिलाया जा रहा है, उन का क्या?

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