
कल प्रमोद जी के कुछ पॉडकास्ट आपने सुने। जिन्होंने सुने उनका भला , जिन्होंने नही सुने उनका डबल भला। इस बीच अपने खजाने से उन्होंने कुछ और पॉडकास्ट निकाले हैं और धर दिये हैं अपने ब्लॉग आंगन में। जिसको सुनना हो सुने आकर।
पहले उन्होंने तीन ठो रिकार्डिंग लगाई । उनमें से एक के बारे में जो दीदी के लिये लगाया गया है और जिसमें बाबू कहते हैं दीदी से -कि दीदी तुमने बाल कटा के अच्छा नहीं किया पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये पूजा मने पूजा उपाध्याय लिखती हैं-
दीदी...ऊ सूट को पहन के तुम कितनी अच्छी लगती हो तुम्हें मालूम है. और इसके पीछे बजता हारमोनियम...शाम में अचानक कितना अच्छा लगता है. लगता है जैसे पटना के घर में पहुँच गए वापस. भाई के साथ रियाज़ कर रहे हैं. आज भाई को राखी कुरियर किये हैं. मन कैसा कैसा भीज गया है.
दीदी...चलो न.
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थैंक यू. बहुत बहुत बहुत सारा.
उनका ’टिपरी’ बांचकर कुछ मन का भीगाभागी का खबर आता है और बताया जाता है कि :
शुक्रिया, पूजा, तुमरे मिठास से कुछ हमरो मन तरा. कौन-सी चीज़ कहां छू जाती है, क्यों छू जाती है यह भी जीवन का अनोखा प्रसंग है..
अब भाई ई भी एक संक्रमण है। जब पॉडकास्ट लगने लगा तो लोग कहने लगे कि ऊ वाला सुनाइये ऊ वाला सुनाइये। सागर बाबू बोले कि मकान मालिक किरायेदार वाला लगाइये। लगा दिया गया मकानो वाला। लगाया नही गया ’चरा’ दिया गया। सुनिये आप भी जीवन छूटता है मकान नहीं छूटता जिसमें किरायेदार पूरी जिम्मेदारी से कहता है:
"जब तक हम आपका एक-एक पइसा नहीं चुका देंगे तबतक आपके घर से नहीं निकलेंगे।”अब जैसे कोई कवी देख लेता है कि ’सरोता’ कब्जे में आ गया तो दू-चार अपनी पसंद की भी सुना देता है तो इहां भी ब्लॉगर ठेल देता है अपना रैपिडेक्स इंगलिश स्पीकिंग का रियाजी कोर्स। अंग्रेजी में किसी का रूमाल खोया किसी का जाने कौन रंग वाला अंतरवस्त्र। सुनिये। अंग्रेजी है लेकिन बुझायेगा। जुगलबंदी में है- लर्निंग इंग्लिश इन अ फ़ैमिली काइंड ऑफ़ वे, वाया रुमाल एंड द अदर वूमन..
ई सब अव्वल दर्जे के आवाजी नगमें इस अंतरजाल सिंधु के नायाम रत्न हैं। जो दिखाई सुनाई दे रहे हैं उसको सुनकर उनकी याद करिये जो निर्मोही नेट के नखरे के चलते बिला गये। मुफ़्तिया साफ़्टवेयर जिनमें वे ’चरे’थे वे मेले में अपना सामान बेंचकर ठेला बड़ा ले गये।
आज आगे हम और कुच्छ बात न करेंगे। करने को वैसे बहुत है लेकिन ऊ सब फ़िर कभी। फ़िलहाल आप ई पांच ठो पाडकास्ट सुनिये। तब तक हम दफ़्तर बजा के आते हैं।
ठीक है न। और ई ऊप्पर वाला स्केच भी बनाइन हैं वही सुखी कैसे हों की तकलीफ़देह पड़ताल में जुटे प्रमोद सिंह की नोटबुक.. वाले।
चलते-चलते सोच रहे थे कि आपको बेचैन आत्मा की कविता पढ़वायेंगे लेकिन ऊ जाने काहे के बदे अपने ब्लॉग पर ताला लगाये हैं। त खाली टाइटलै टाइप कर रहे हैं अनुप्रास हो न टाइटल टाइप में? शीर्षक है -चलो यार आंख लड़ाते रहें।
फ़िलहालआपको कट्टा कानपुरी का एकदम सामयिक सुनाते हैं। अधुनिक त नहीं है लेकिन है ताजा। सुनिये। सुनिये नहीं जी परिये।
सोना उचका, डालर भड़का,
नेता मेढक ,काक्रोच हुये।
डूब गयी पनडुब्बी सिंधु में,
सीमा पे कोशिश नापाक हुई।
प्याज के नखरे जारी हैं जी,
उचका उचका घूम रहा है।
ठेले-ठेले नंगा फ़िरता था ,
अब जाने कहां फ़रार हुआ।
देश बेचारा हलकान हुआ है,
घपले,विकास में लटक गया।
पानी रिमझिम बरस रहा है,
मौसम क्यूट-स्वीट सा है।
चाय पी रहे हैं सुबह-सुबह जी,
आपका कहिये स्टेटस क्या है?
-कट्टा कानपुरी
अब हम सच्ची में फ़ूटते हैं नहीं त ई सब पर के कोई ’हमारा प्रमुख समाचार’ कर देगा।
आप मस्त रहिये। शनीचर देव आप पर मेहरबान रहें।
प्रमोद जी का बिहारी टोन अच्छा लगता है..
जवाब देंहटाएंआज आपका चरचा में भी कुछ-कुछ बिहारी टोन झलक रहा है..
एहिसे अच्छा लग रहा है :)
पढ़ते हैं लिंक पर जाकर -चलाये रखिये चर्चा
जवाब देंहटाएंdevanshu babu ka abhar.........kafi dino baad pichli charcha kiye...........ib charcha karte rahen........
जवाब देंहटाएंpranam.
मार लिए एक नजर. इस्केचिंग अच्छा है. पता नहीं रहते-रहते लोक का हाथ में कलाकारी कहां से चल्ल आता है!
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर "ब्लॉग - चिठ्ठा" के पोस्टों की चर्चा में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा