उधर प्लूटो का निष्काशन हुआ इधर लोगसभा में हाथापाई के ग्रहयोग बन गये। कल हुई जम के। निठल्लों की सलाह है कि संसद को एक दिन के लिये अखाड़ा बना दिया जाये लेकिन मुझे नहीं लगता कि कोई इसे मानेगा। अरे भाई जो मजा रोज पहलवानी में है वो साल में
एक दिन में कहाँ मिलेगा।भाटिया जी इसीलिये संसद को केवल वयस्कों के लिये बताते हैं।
इधर प्लूटो का रुतबा छिना उधर उत्तरांचल वाले 'अंचल' त्यागकर 'खंड' में जा रहे हैं। ये होते हैं जवानी के जलवे। अंचल से लगता है कि आंचल में हैं खंड से लगता है कुछ कि अपना अलग इंतजाम कर लिया है। इधर अपने पति को छील-छाल कर आदमी बनाने के किस्से सुना रही हैं निधि उधर राकेश खंडेलवालजी अपनी कविता में कह रहे हैं:>
जाने किसके चित्र बनाती आज तूलिका व्यस्त हुई है
जाने किसकी यादें पीकर यह पुरबा मदमस्त हुई है
किसके अधरों की है ये स्मित, जंगल में बहार ले आइ
किसके स्वर की मिश्री लेकर कोयल गीत कोई गा पाई
किसकी अँगड़ाई से सोने लगे सितारे नभ आते ही
पूर्ण स्रष्टि पर पड़ी हुई है जाने यह किसकी परछाई
आशा किसके मंदहास की स्वीकॄति पा विश्वस्त हुई है
जाने किसकी यादें पीकर यह पुरबा मदमस्त हुई है
जाने किसके कुन्तल ने की हैं नभ की आँखें कजरारी
लहराती चूनर से किसकी, मलयज ने वादियां बुहारीं
क्या तुम हो वह कलासाधिके, ओ शतरूपे, मधुर कल्पना
जिसने हर सौन्दर्य कला की, परिभाषायें और सँवारी
बेचैनी धड़कन की, जिसका सम्बल पा आश्वस्त हुई है
तुम ही हो वह छूकर जिसको यह पुरबा मदमस्त हुई है
मुझे तो लगता है कि यह सवालप्रत्यक्षाजी की कूची से पूछा गया है। अब देखें कि वहाँ से कोई जवाब आता है कि नहीं। जब तक कुछ जवाब आये तब तक फुरसतिया अपनी कहानी सुनाने लगे।
अनूप जी
जवाब देंहटाएंयह संकलन और अवलोकन का कार्य जारी रखें, कृप्या. बड़ा अच्छा प्रयोग है.
बधाई,
समीर लाल