मंगलवार, सितंबर 25, 2007

अच्छा ही तो लिख पाते हैं

पूरे तीन पॄष्ठ पढ़ डाले किस किस की चर्चा करनी है
सुनें रेडियो पर कवितायें, कितना अच्छा लिखा आपने
हुए अगर मिसयूज करें क्या, ये सुबीर जी बतलायेंगे
लौकी के जो बने परांठे, कितने खाये कहिओ आपने

जो न कह सके वह करते हैं सपनों की कुछ सुन्दर बातें
रचनाकार लिये आये हैं नई कहानी की सौगातें
पंकज बतलाते प्रभाव कैसा कैसा होता फ़िल्मों का
बिना थैंक्यू-क्षमायाचना कटती हैं काकेशी रातें

पढ़ें सारथी और शुक्रिया अता शास्त्री जी को कर दें
फिर आलोक पुराणिकजी से नई जानकारी ले लेना
दर्जन भर चिट्ठे क्रिकेट की बातों में मशगूल मिलेंगे
बाकी जितने उनसे अपना अधिक नही है लेना देना

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6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही है. कम से कम चिट्ठाचर्चा की प्रथा बरकरार है. शायद जल्द ही जोर पकड़े. :)

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  2. अच्‍छा है भई बहुत ही अच्‍छा है ये प्रयास तो वैसा ही है जैसे कोई महती काम हो जारी रखिये लोगों की परवाह कियें बगैर

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  3. बहुत अच्छा अवलोकन. कुछ और नियमित रूप से लिखा करें -- शास्त्री जे सी फिलिप


    हिन्दीजगत की उन्नति के लिये यह जरूरी है कि हम
    हिन्दीभाषी लेखक एक दूसरे के प्रतियोगी बनने के
    बदले एक दूसरे को प्रोत्साहित करने वाले पूरक बनें

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  4. आप इसी तरह स्मारक बनती जा रही चिट्ठा चर्चा के द्वार खोलते रहा करें.

    आपके प्रयास को साधुवाद.

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  5. अच्छा लगा आपका जारी रखना।

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  6. सही है श्रीमान जी
    तीखी नजर रखी हुई है आपने सब पर

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