सोमवार, नवंबर 26, 2007

मोको कहां ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में।




आज मिशीगन में पढ़ने वाली प्रिया का ब्लाग पहली बार देखा। उन्होंने अपने परिचय में लिखा है- मैं अभी पढ़ रही हूं। ये मेरी पहली हिंदी क्लास है। इसलिये स्पेलिंग में अभी बहुत गलतियां हैं। उन्होंने आज की पोस्ट में लिखा-
डिज्नी से एक ऐसी फिल्म जिसमे राजकुमारी लड़के को बचाती है। जो सब को संभालती है। यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इससे तमाम लड़का लड़कियों को पता चलेगा कि लड़कियाँ भी लड़ सकती है। सिर्फ दिमाक से ही नहीं बल्की बल के साथ भी। यह एक अपवाद नहीं है।
इसके पहले की एक पोस्ट में अपने मन की बात कहती हैं
मुझे लगता हैं कि मैं कर्तव्य का पालन कर रहीं हूँ। आख़िर बच्चे का भी तो कुछ कर्तव्य बंता है। हम छोटे हो यह बडे जितना कर सकते हैं उतना तो हमे करना ही चाहिए। मैं इस बात से बिल्कुल सहमत नही हूँ कि हमे सिर्फ अप्ना कैरियर सुधारना चाहिए।
यह देखकर अच्छा लगा कि आलोक यहां उनकी स्पेलिंग सुधारने के लिये मौजूद हैं।

कबाड़खाना देखते-देखते यह जानना मजेदार रहा कि दीपा पाठक को सबसे अच्छा लगता है खाली बैठे रहना।

यही खाली बैठना प्रमोदजी से तमाम खुराफ़ातें करवाता है। कभी वे हड़बड़ बेचैनी में अपनी फोटो बनाते हैं और कभी न जाने कैसी-कैसी उत्तर-आधुनिक हरकतें करते हैं।

कल अविनाश ने अपने पुराने दिन याद करते हुये भिखारी ठाकुर की ओरिजनल आवाज़ में उनका काव्यपाठ पेश किया। इस पर इरफ़ानजी की टिप्पणी थी-
भाई आपने तो इतिहास के एक टुकड़े को यहां जीवित कर दिया. बेहद मार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का काम.भूरि-भूरि प्रशंसा की जाने चाहिये आपके इस पॊडकास्ट की. बधाई.


बच्चन शताब्दी के अवसर पर प्रख्यात गीतकार स्व.पं.नरेन्द्र शर्माजी की सुपुत्री लावण्या कुछ अंतरंग यादें शेयर कर रहीं हैं अपनी तेजी आंटी के साथ की।

अनूप शुक्ल को आज कुछ समझ में नहीं आया तो अपनी अम्मा की लोरी सुनाने लगे। बताते हुये-
कभी-कभी बहुत दिन हो जाते हैं कायदे से अम्मा से बतियाये हुए। चलते-चलते गुदगुदी कर देना, गाल नोच लेना और उठा के इधर-उधर बैठा देना चलता रहता है। समय के साथ , तमाम बीमारियों के चलते, अपने अशक्त होने की बात उनको कष्ट कर लगती है। पहले वे हमारे यहां की सबसे एक्टिव सदस्य थीं। इधर उनको काम करने की सख्त मनाही है लेकिन जरा सा ठीक होते ही अपनी तानाशाही फिरंट में शुरू हो जाती हैं।


अम्मा इस बीच हमको आफ़िस जाने का समय याद दिलाकर गई हैं। इसलिये हड़बड़ चर्चा करते हुये कुछ वन लाइनर पेश हैं:-

१.मैं चिट्ठा पुलीस नहीं हूं! : वह तो हमें पता है लेकिन ई बतायें प्रभो कि आप हैं क्या!
२.जीवन मूल्य कहां खोजें? : मोको कहां ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में।
३. आदरणीय को ये, और फादरणीय को वो: अपना हिस्सा बताओ सादरणीय।
४.नारी मन के कुछ कहे , कुछ अनकहे भाव ! :अब तो कह ही दिये न!
५. मेरा पता:सुबह से शाम से पूछो, नगर से गाम से पूछो। मतलब हमसे न पूछो।
६.कोई तो बताये तस्लीमा की गलती क्या है? : ये अन्दर की बात है। किसी को पता नहीं।
७.संगीत का धर्म, सुर की जाति : किसी को पता नहीं है, सब गोलमाल है भई सब गोलमाल है।
८.जीवनसाथी से बढते विवाद - क्या करें 4 जीवनसाथी मिलने के बाद कोई कुछ करने वाला रहता नहीं क्योंकि इंडिया में मुफ़्त की एड्वाइस बहुत मिलती है।
९. भीड़ से नहीं निकलेंगे शेर जब तक: तब तक उनको पकड़ना मुश्किल है भाई!
१०.मौसेरे भाईयों का दुख- अजी सुनिये तो! : यहां अपना दुख सुनने का टेम नईं है और आप भाइयों का रोना रो रहे हैं वो भी मौसेरे।

११.आखिर वही हुआ... हेमन्त ने कविता पोस्ट कर दी।

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4 टिप्‍पणियां:

  1. हमारा यह कहना है की वन-लाइनर का अपना मजा है.

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  2. जबरदस्त वन-लाइनर है. ६.कोई तो बताये तस्लीमा की गलती क्या है? : ये अन्दर की बात है। किसी को पता नहीं।
    सबसे अच्छा लगा

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  3. आपका विषय-परिचय बहुत आकर्षित करता है.

    "मैं चिट्ठा पुलीस नहीं हूं! : वह तो हमें पता है लेकिन ई बतायें प्रभो कि आप हैं क्या!"

    हे प्रभु,
    चिट्ठाजगत में अभी भी
    कई लोगों को हमारे बारे में नहीं मालूम
    कि हम क्या हैं.
    इन लोगों का क्या होगा प्रभु !!!
    अब उत्तर दें प्रभु ही.

    -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
    मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
    लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??

    जवाब देंहटाएं

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