आ गया वापस, गताङ्क से आगे -
खुला चिट्ठा पता नहीं कब से खुला है, पर अभी तक गाली गलौज शुरू क्यों नहीं हुई, समझ नहीं आया। न सही, जीवन प्रभात ही सही। थोड़े अश्रु बहाएँ, और फिर कुछ क़ानून बाँचने मावलङ्कर हॉल पहुँचें, और विट्ठल प्रसाद जी की सत्यकथा पढ़ें, जिसमें, यीशु जी का अहम किरदार है। और कैसे भूलें मीडिया कॉलेज वालों को, आखिर कोमल कवियों के बाद सबसे बड़े लिखाड़ तो वही हैं न, भले ही सबसे लोकप्रिय न हों, न न नाराज़ न होना!
आपके भी बॉस हैं हम तो समझते थे कि आप ही बॉस हैं... :-)
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