प्रकृति खूबसूरत है क्योंकि वह लीनीयर नहीं है, वह व्यवस्था व गैर व्यवस्था (केओस) का मिला जुला रूप है। मसलन एक बागीचे में कतार से लगे पौधों में व्यवस्था है पर इन पौधों की विविधता एक प्रकार के केओस से उपजती है।एक बार पढ़ने के बाद दुबारा मैं इस लेख को खोजता रहा, मिला नहीं। आज फ़िर बमार्फ़त दिनेशजी जब
अभिषेक ओझा की यह गणितीय पोस्ट पढ़ी तो मसिजीवी का यह लेख फिर खोज के पढ़ा।
अभिषेक ओझा गणित की बातें सरल,सहज अंदाज में बताते हुये कहते हैं-
एक बंद कमरे में बैठ कर ऐसे गणित को जन्म देना जिसका वास्तविक दुनिया से कोई लेना देना नहीं... और उसका इतना उपयोग होने लगे की उसके बिना कई काम ठप हो जाए... शायद इसीलिए गणित और सत्य की खोज एक जैसे होते हैं... सत्य है, सर्वव्यापी है तभी तो दशकों बाद ही सही... उपयोगी हो जाता है।
रवीशकुमार आजकल ब्लाग के बारे में नियमित रूप से लिखते हैं दैनिक हिन्दुस्तान में। पिछले दिनों उन्होंने प्राइमरी का मास्टर ब्लाग का जिक्र किया अपने स्तम्भ में| प्रवीन त्रिवेदी ने इस पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुये कहा
एक प्राथमिक विद्यालय का अध्यापक होने के नाते सामाजिक छवि के विपरीत होने की बात करने का साहस करना कभी - कभी बड़ा कठिन लगता है। हिन्दी टाइपिंग न जानना ,लिखने में संकोच, सरकारी मास्टर होने के बाद किस हद तक लिख सकता हूँ इस बात का डर? इस तरह के बहुत सारे डर के बावजूद भी आप यकीन जानिए की कुछ उपस्थिति का एहसास होना बड़ा ही सुखदायक व प्रेरणास्पद लगता है। आप यकीन जानिए की समाचारों की सुर्खियों में पढ़कर बड़ा आश्चर्य होता है , अपनी सामाजिक छवि के बारे में ।
महाकवि अंद्रेई दानिशोविच और अझेल कास्त्रो का जिक्र पढ़कर ही शायद पल्लवीजी का कवि विरही का दर्द बांटने का मन बना। उन्होंने बांटा और अपने ब्लाग पर भी पोस्ट किया-
अरे...पहले के प्रेमी मूर्ख और अनपढ़ हुआ करते थे..नहीं जानते थे कि इस उदासी से कैसे निकला जाए पर हम मॉडर्न लवर हैं...पढ़े लिखे भी हैं सो जानते हैं कि डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को खाली नहीं बैठना चाहिए...इसलिए बस किसी तरह मन लगा रहे हैं ताकि उसकी यादें कुछ पल को दिल से दूर जा सकें वरना तो जरा सा खाली बैठे नहीं कि उसकी यादें दिल में मकां कर लेती हैं...
ब्लागिंग पर नामवरजी के वक्तव्य ने शिवकुमार मिश्र को उकसा दिया और वे यह भूल गये कि समीरलाल के ब्लाग पर टिपियाना बिसरा कर ब्लागिंग चर्चा में रत हुये।
देर हो गयी गुरू दुकान जाना है। इसलिये फ़टफ़टिया वन लाइनर। बकिया फ़िर:
मुझे पहला प्रमोशन मिला: ढेरो काम करने के लिये।
पुरानी जीस और गिटार : का आपस में गठबंधन हुआ।
ऊंची अटरिया में ठहाके : लगाओ लेकिन फ़ेफ़ड़ा बचा के।
कुलीनता का भौकाल : जो बोले सो निहाल।
हाथ-घड़ी की क्या जरूरत है? : जब दीवार पर कैलेन्डर है।
नेता उर्फ एग्जास्ट फैन: तुलना पर एग्जास्ट फ़ैन बिफ़रा। मानहानि का दावा करने की धमकी।
जनम जनम के फेरे: हम तो हो गये साथी तेरे।
मेरी पसन्द
हालांकि ज्ञानजी का कहना है कि हमको मेरी पसन्द में गद्य देना चाहिये। लेकिन आजकल कविताओं का मौसम है सो कविता ह सुना रहे हैं। कविता और गणित का मेल होगा तो कैसा होगा , सरस्वती वंदना से इसका अंदाजा लगा सकते हैं-
वर दे,
मातु शारदे वर दे!
कूढ़ मगज़ लोगों के सर में
मन-मन भर बुद्धि भर दे।
बिंदु-बिंदु मिल बने लाइनें
लाइन-लाइन लंबी कर दे।
त्रिभुज-त्रिभुज समरूप बना दो
कोण-कोण समकोण करा दो
हर रेखा पर लंब गिरा दो
परिधि-परिधि पर कण दौड़ा दो
वृत्तों में कुछ वृत्त घुसा दो
कुछ जीवायें व्यास बना दो
व्यासों को आधार बना दो
आधारों पर त्रिभुज बना दो
त्रिभुजों में १८० डिग्री धर दो।
वर दे,
वीणा वादिनी वर दे।
पूरा पढ़ने के लिये फ़ुरसतिया पोस्ट पढ़ें
जीवंत एवं सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंभई घणी वृत्ताकार पोस्ट थी।
जवाब देंहटाएंफ़ुरसतिया घुट्टी,
जवाब देंहटाएंअहा मीथी मिथी
ब्लॉगिंग ज्यामितीय/ट्रिगनामेट्रीय होती जा रही है!:D
जवाब देंहटाएंअरे बाप रे..समीर भाई का कल वाला पोस्ट पर कमेन्ट नहीं किया...भारी मिस्टेक हो गया....अभी टिपियाता हूँ.
जवाब देंहटाएंऔर आपकी पसंद हमेशा की तरह शानदार...
ये कमेन्ट नहीं कर पाने के पीछे नामवर जी का हाथ है...:-)
हमारा ये कहना है कि आप इत्ता सारा कैसे पढ़ लेते हैं ?बढ़िया है । शुक्रिया .....
जवाब देंहटाएंब्लागिंग की दुनिया की खबर रखना और उसे दर्ज भी करना, एक महत्वपूर्ण काम कर रहें हैं आप. एक लम्बे समय बाद किसी भी एक दिन की पोस्टों को देखना होगा तो चिटठा चर्चा एक जरूरी कडी के रूप में हमारे पास होगा ही. बधाई एवं शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंआ गई टिप्पणी...:) बहुत बढ़िया चर्चा रही. जारी रखें नित.
जवाब देंहटाएंबढ़िया।
जवाब देंहटाएंganitiya kavita ne to bara gajab dha diya
जवाब देंहटाएंअनायास ही मन सुबह से उलझन में था पर ये कविता -वंन्दना पढ़ कर मन आनन्दित हुआ...।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद् आपको
जवाब देंहटाएंचिटठा चर्चा में जगह देने के लिए
प्रवीण त्रिवेदी "मनीष"
http://primarykamaster.blogspot.com/
सही कहा.. प्रमोशन मिला, ज्यादा काम करने के लिये..
जवाब देंहटाएंउस दिन नहीं पढा था इसे आज पढ रहा हूं सो टिपिया रहा हूं.. :)
सर जी (क्योंकि लेखक का नाम नहीं दिख रहा)
जवाब देंहटाएंबाकी सब तो ठीक है।
'पढ़ने के लिए चटकाए' वाले चित्र पर चटका लगा कर देखिए, वह चित्र तो गायब है!
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