चिट्ठाचर्चा की शुरुआत आज से सात साल पहले हुई थी। चिट्ठाचर्चा कैसे शुरु हुआ और क्या-क्या घटनायें हुईं इसके संचालन के दौरान इसका
संक्षिप्त लेखा-जोखा यहां मौजूद है।
कुछ अंग्रेजी ब्लागरों के हिंदी विरोधी रवैये की प्रतिक्रिया स्वरूप
शुरु की गयी चर्चा इतने दिन का सफ़र तय करेगी यह उस समय सोचा भी नहीं गया
था।
यहां चिट्ठाचर्चा की कुछ पोस्टों के लिंक दिये है
1.
आइये स्वागत है आपका :यह
पोस्ट चर्चा की पहली पोस्ट है। कुछ दिन बाद न जाने कैसे चिट्ठाचर्चा हैक
हो गया था। उसकी पुरानी पोस्टें मय कमेंट्स गायब हो गयीं थी। फ़िर देबाशीष
इसे खोज-खाज के लाये। आप देखिये किन-किन ब्लॉगस की चर्चा की कल्पनायें थीं।
2.
अस्सी नब्बे पूरे सौ: 8 सितम्बर , 2005 को हिन्दी के सौ ब्लॉग पूरे होने की उत्फ़ुल्ल सूचना। टिप्पणी कुल जमा तीन।
3.
मराठी चिट्ठों का नायाब ख़जाना :देबू
की इस जानकारी पर जीतेन्द्र की प्रतिक्रिया थी- अमां यार! झकास, क्या इमेज
लगायी है यार!, शानदार है, लगता है बाबूराव ब्लागर कलम लेकर लिखने को
हाजिर है. आपने ये ग्राफ़िक्स बनाया है, या (मेरी तरह) कंही से छुआया है?
4.
यूजनेट के माध्यम से विचार-विमर्श :इस पोस्ट में आपस में विचार-विमर्श के लिये संभावनाओं पर विचार हुआ। देबाशीष के द्वारा।
5.
पहला असमिया चिट्ठा? :की जानकारी दी देबाशीष ने। 29 सितम्बर 2005 को।
6.
जुम्मे पर पेश है खिचड़ी !: पेश की अतुल अरोरा ने अपनी पहली चर्चा में। अतुल हर बार नये अंदाज में चर्चा करते रहे। मजेदार। रोचक।
7.
सिर मुडाते ही ओले पड़े…
समीरलाल को जब उन्होंने पहली चर्चा की। टिप्पणी मिलीं आठ! समीरलाल की
चर्चा में उनका हस्य बोध खुलकर खिलता था। इसीलिये हमने उनके बारे में उस
समय लिखते हुये उनको
हास्यव्यंग्य का किंग कहा था। मुंडलिया उनका मुख्य हथियार रहा चर्चा का। उनकी देखा-देखी एक
मुंडलिया हमने भी लिखी थी देखिये :
भोर भयी इतवार की, हम रहे बिस्तर पर अंगड़ाय,
सूरज आया गेट पर, हम उसको भी दिये भगाय,
उसको दिये भगाय कि अभी तो धांस के सोना है,
रात जगे हैं देर तक, उसका हिसाब भी होना है,
अभी पधारकर आप जी, मत करिये मुझको बोर,
जब हम जागेंगे नींद से, तभी होयेगी अपनी तो भोर।
8.
ना तो कारवाँ की तलाश है (गुजराती चिट्ठे)
: गुजराती चिट्ठों की चर्चा शुरू की पंकज बेंगाणी ने। संजय बेंगाणी के
छोटे भाई पंकज बेंगाणी मास्साब के नाम से मशहूर थे। संयोग से यह सौंवी
चर्चा थी। दिंन मंगलवार , तारीख 3 अक्टूबर, October 03, 2006। इस तरह पहली चर्चा से सौवीं चर्चा तक आते-आते एक साल नौ महीने लगे।
चिट्ठा चर्चा कीजिये, मुझे मिला आदेश
फ़ुरसतियाजी ने किया जारी अध्यादेश
जारी अध्यादेश, कुण्डली लें समीर से
और सजायें काव्य-सुधा रस भरी खीर से
लगे हर्द फिटकरी न होवे कुछ भी खर्चा
लेकिन करें सिर्फ़ कविता में चिट्ठा चर्चा
11.
बादलों में छिपा तारा : से चर्चा की शुरुआत की जीतेन्द्र चौधरी ने। इतवार की चर्चा का भार उनके कन्धे पर था। 15 अक्टूबर, 2006 ।
14..
मराठी चिठ्ठा जगत : की जानकारी देते हुये मराठी चिट्ठों की चर्चा शुरू की तरूण जोशी ने। यह उनकी एकमात्र चर्चा रही।
15.
चिट्ठागिरीः समझो हो ही गया :
से तरुण ने चर्चागिरी शुरू की। निठल्ला चिंतन के नाम से अपना ब्लॉग चलाने
वाले तरुण ने तमाम नये प्रयोग करने का काम किया चिट्ठाचर्चा में।
17.
शीर्षक.. बिना शीर्षक : दो सौंवी चर्चा पोस्ट की समीरलाल ने । वुधवार , 13 दिसम्बर, 2006 को। इस तरह सौंवी चर्चा से दो सौंवी चर्चा का सफ़र
पूरा हुआ मात्र तीन माह और नौ दिन में।
18.
ब्रह्मा के घर में हंगामा! :चिट्ठा चर्चा:
यह थी सागर चंद नाहर की पहली चर्चा। तारीख 16 मार्च, 2007| इसके बाद
उन्होंने गीत-संगीत के ब्लॉग की चर्चा भी की। सागर ने ही पहली बार टंकी
आरोहण किया जिसका बाद में तमाम नामी-गिरामी लोगों ने अनुसरण किया।
अइयो अम चेन्नई से आशीष आज चिठठा चर्चा कर
रहा है जे। अमारा हिन्दी वोतना अच्छा नई है जे। वो तो अम अमना मेल देख रहा
था जे , फुरसतिया जे अमको बोला कि तुम काल का चिठ्ठा चर्चा करना। अम अब
बचके किदर जाता। एक बार पहले बी उनने अमको पकड़ा था जे,अम उस दिन बाम्बे
बाग गया था। इस बार अमारे पास कोई चान्स नई था जे और अम ये चिठ्ठा चार्चा
कर रहा है जे।
आशीष की भाषा से कुछ लोगों को आपत्ति थी। अभय तिवारी की प्रतिक्रिया देखि्ये:
क्यों करते हैं आप लोग इस तरह की चर्चा..
मुझे समझ नहीं आया आज तक.. सामान्य भाषा में की गई चर्चा भी बेमतलब ही
लगती थी.. इस फूहड़ मद्रासी में इस का स्तर शक्ति कपूर के हास्य जैसा हो
गया है.. आप सब लोग धुरन्धर लोग हैं.. मैं नया हूँ..हो सकता है आपकी
परिपाटियों और परम्पराओं से अपरिचित हूँ.. लेकिन जिस तरह से मेरे गम्भीर
लेख का भद्दा मजाक यहां बनाया गया वो आप सब को पढ़ने में बड़ा मज़ा आया .. ये
जानकर थोड़ी हैरत हुई ..
21.
मध्यान्हचर्चा दिनांक : 07-03-2006 : तीन सौंवी पोस्ट थी संजय बेंगाणी नें। वुधवार , मार्च 07, 2007 को। दो सौंवी से तीन सौंवी चर्चा तक आने में तीन माह से भी कम समय लगा।
24.
एक डुबकी दार्शनिक व्यंग्यवाद की निर्मल स्रोतस्विनी में :
अगले ही दिन 22 अप्रैल, 2007 को नीलिमा भी जुड़ गयीं चर्चा मंच से। इसके
साथ ही एक परिवार के तीन लोग एक साथ चर्चाकार हो गये। मसिजीवी,नीलिमा और
सुजाता। कुछ लोगों ने इस पर एतराज भी किया। अब एतराज करने वाले और चर्चा
परिवार सब शांत हैं ब्लॉग जगत से काफ़ी दिनों से।
25.
खादिम, सारा दिन : से संजय तिवारी ने चर्चा शुरू की 10 जुलाई ,2007 से। ज्यादा दिन तक जारी नहीं रख सके संजय चर्चा को। शायद अब दुबारा शुरू हों।
26.
कविता की रसधार में : चार सौंवी पोस्ट नीलिमा के द्वारा। दिन था इतवार और तारीख 22, जुलाई 2007। इस बार सौ चर्चाओं के बीच का समय रहा साढे तीन माह।
28.
ए टी एम बोले तो एनी टाइम मगज मारी : पांच सौंवी पोस्ट अनूप शुक्ल के द्वारा। सोमवार 4 अगस्त, 2008 को। चर्चाकार व्यस्त होते चले गये और सौ चर्चायें पूरी होने में समय लगा लगभग ग्यारह माह।
29.
इस बार की चिट्ठा चर्चा ‘कुश’ की कलम से:पांच
सौ पोस्ट होने के पन्द्रह दिन बाद कुश जुड़ गये चिट्ठाचर्चा से । तारीख
रही 19 अगस्त, 2008| तबसे कुछ लगातार जुड़े हैं चिट्ठाचर्चा से। ब्लागस्पाट
से वर्डप्रेस का सफ़र तय करने में भी कुश का ही प्रयास और आग्रह मुख्य रहा।
कुश की चर्चा में हमेशा नयापन बना रहा। हर बार कुछ नये प्रयोग किये और जब
तक चर्चा करते रहे लोग इंतजार करते रहे इनकी चर्चा का।अब फ़िर से सक्रिय
होने वायदा किया है कुश ने।
31.
आज की चर्चा ताऊ के साथ: से विवेक सिंह ने चिट्ठाचर्चा शुरू की 25 अक्टूबर , 2008 को।विवेक में आशु कविता की जबरदस्त नैसर्गिक क्षमता है। पहली ही चर्चा में देखिये विवेक का अंदाज:
टीवी पर आकर समीर जी फूले नहीं समाते ।
पाठक भी पढ पोस्ट अधूरी टिप्पणियाँ बरसाते ॥
सिर्फ़ बमों से नहीं मरे कुछ मेट्रो ने भी मारे ।
व्यंग्य वाण क्यों सहें अकेले गृहमन्त्री बेचारे ॥
सुख दुख के दो रंग आज रंजना सिंह दिखलाएं ।
नयन नीर हर्षित मन दोनों ही अच्छी कविताएं ॥
पुसादकर जी समझ न पाए भेद न्यूज चैनल का ।
टीवी पर भी पढा जा रहा सिर्फ सामना कल का ॥
हिन्दू भाई जरा ध्यान दें लेख पढें यह पूरा ।
आज तरुण ने अनूप शुक्ला को शंका से घूरा ॥
32..
रविवार्ता का उत्तरपक्ष और `बीजल चिट्ठी’ : चर्चा शुरू करने कुछ दिन बाद ही छह सौंवी चर्चा कविता वाचक्नवी जी ने पोस्ट की। सोमवार , 3 नवम्बर , 2008 को। इस बार सौ चर्चायें पूरी हो गयीं मात्र तीन माह में।
33.
करता है फिर गुनाह क्यूं रब भी कभी-कभी:
से शिवकुमार मिश्र जुड़े चर्चा से 13 नवम्बर, 2008 को। उनकी चर्चा को मैं
जामे कुटुम समाय घराने की चर्चा कहता रहा। वे तीन-चार चिट्ठों की विस्तार
से चर्चा करते थे। शानदार। अब फ़िर से सक्रिय होने का वायदा ले लिया गया है
उनसे।
34.
सिगरेट पीती हुई लड़कियाँ:
अभय तिवारी की पहली चिट्ठाचर्चा थी। उन्होंने एक पोस्ट की चर्चा का
फ़ार्मेट तय किया था अपने लिये। उनकी पहली चर्चा के लिये यह कविता कारण बनी:
एक झूठ को सदी के सबसे आसान सच में बदलने की कोशिश करती हैं
सिगरेट पीती हुई लड़कियाँ …
उंगलियों में हल्के से फंसाकर
धुँएं की एक सहमी लकीर बनाना चाहती हैं
ताकि वे बेबस किस्म की अपनी खूबसूरती को भाप बना कर उड़ा सकें
41.
चर्चा विज्ञान आधारित चिठ्ठों की:
13 नवम्बर ,2009 को लवली गोस्वामी जुड़ीं चिट्ठाचर्चा से। उनको विज्ञान
आधारित चिट्ठों की चर्चा करनी थी। दो चर्चा के बाद अब फ़िर उनको आगे काम
शुरू करना है।
44.
निज कवित केहि लाग न नीका:
से मनोज कुमार ने चिट्ठाचर्चा की शुरुआत की। मनोज जी अन्य चर्चा मंचों से
भी जुड़े हैं। मेहनती चर्चाकार मनोजजी अपनी चर्चा में विविध प्रयोग करते
रहते हैं।
अपूर्व का कहना है गौतम की चर्चा पर:
चिट्ठा-चर्चा ने रोग पाल ही लिया..और क्या
खूबसूरत रोग पाला है..कि जैसे सर्दी की गुनगुनी धूप खिली हो..किसी दोशीजा
के आरिज़ पर..अब यह सूरज मसरूफ़ियत के बादलों की पीछे न छुपा रहे हो बात बने
..फिर अपना हाल तो बकौल शाद सा’ब
दिले-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनके-बज़्म
मै खुद आया नही लाया गया हूँ
इनके अलावा दो पोस्टें मैंने चिट्ठाचर्चा की जानकारी देते हुये लिखी थी।
48. दो कप चाय हो जाये!!:
उपरोक्त चर्चाओं के अलावा एक चर्चाकार और थीं रचना बजाज। वे समीरलाल के
साथ चर्चा करतीं थीं। इस चर्चा में रचनाबजाज का परिचय देते हुये समीरलाल ने
लिखा था:
रचना जी को देखिये, लिखती जाती आज
चर्चा कुछ हमहू करें, छोड़ा नहीं यह काज
छोड़ा नहीं यह काज कि अब आराम करेंगे
टिप्पणी बाजी जैसा अब, कुछ काम करेंगे
कहत समीर कविराय, हरदम ऐसे बचना
टिप्पणी करते जायें, बाकी लिखेगी रचना.
तो यह था हमारा पिछले छह सालों का सफ़र। इस
पोस्ट से हम ब्लॉगस्पॉट से वर्डप्रेस पर आ गये। आगे शायद और कुछ बेहतर कर
सकें। नियमित रह सकें। सभी पुराने साथी चर्चाकारों से अनुरोध है वे अपना
रजिस्ट्रेशन पुन: करके यहां भी सक्रिय हों। बहुत कुछ है चर्चा में करने को।
आप अभी की प्रतिक्रियाओं, सुझावों ,
सम्मतियों, असहमतियों का स्वागत है। फ़िलहाल अनुरोध है कि चिट्ठाचर्चा के
उपयुक्त टेम्पेलेट सुझायें।
चिट्ठाचर्चा के चर्चाकार
ऊपर से नीचे बायें से दायें पहली पंक्ति:
जीतेन्द्र चौधरी,
समीरलाल,
आलोक कुमार ,
सृजन शिल्पी,
रविरतलामी,
विपुल जैन,
तुषार जोशी,
अभय तिवारी,
पंकज बेंगाणी,
संजय बेंगाणी,
देबाशीष, राकेश खण्डेलवाल,
अतुल अरोरा,
तरुण,
मनीष कुमार,
रचना बजाज ,
आशीष श्रीवास्तव,
सागर चन्द नाहर,
कविता वाचक्नवी,
सुजाता,
मीनाक्षी,
नीलिमा,
मसिजीवी,
संजय तिवारी,
रमन कौल,
शिवकुमार मिश्र,
कुश,
विवेक सिंह, ,
प्रवीण त्रिवेदी,
गौतम राजरिशी ,
डा.अनुराग,
मनोज कुमार ,
लवली गोस्वामी और
अनूप शुक्ल ।
उन्मुक्त जी को चिट्ठाचर्चा के लिए निमंत्रित किया जाए व उन्हें भी दल में शामिल किया जाए. उनकी निगाह भी हिंदी चिट्ठों पर बारीकी से रहती है. उनका भी अंदाजेबयां निराला व उद्धरणयोग्य होगा ऐसा मेरा विश्वास है.
आज इस के इतिहास में जाने का अवसर प्राप्त हुआ। सभी लिंकों को तसल्ली से पढ़ता हूँ।
बहरहाल नये रंगरूप पर हम रीझ रहे हैं। ढेरों बधाइयाँ और एक फ्लाइंग किस मेरे बेटे सत्यार्थ की ओर से भी।
बेटे सत्यार्थ को दो ठो पुच्ची और खूब सारा आशीष!
सात साल!!! एक लम्बा अंतराल होता है …..इस दौरान उसी उर्जा के साथ काम करना निसंदेह प्रशंसनीय है….इश्वर आपकी सेन्स ऑफ़ ह्यूमर को इसी उर्जा के साथ बनाये रखे
सेंस आफ़ ह्यूमर कहां जाये ससुरा भाग के। इंनबिल्ट है वो तो हमारे साथ!
is platform ne bahut kuch diya hai.. na jaane kitne to logon se milwaya hai jo ab bahut achhe dost hain aur bahut kuch likhne/padhne/sochne ko bhi diya..
satven saal mein ye naya kalaver pasand aaya.. chitthacharcha youn hi din dooni raat chaugni tarakki kare, yahi kaamna hai..
Amen!!
पंकज उपाध्याय तो बाकयदा एक ठो कविता भी लिख चुके हैं पहिले ही। इस कविता से पता चलता है कि आज की पीढ़ी कित्ती धैर्यवान है:
उसकी बिंदी के तो हिलने का
मैं इंतज़ार करता था, की कब वो
हल्का सा हिले और मैं बोलूँ
की “रुको! बिंदी ठीक करने दो”।
तुम्हारी सारी पोस्टें उसके बाद एक साथ पढ़ीं थी। अद्भुत अनुभव रहा वह भी।
aur kabhi aapko khule manch par apni sau posts jhelne ke liye dhanyawaad bhi nahi kah paya.. kai posts par tippaniyon ka khaata aap khol gaye. shukriya is saare samman ke liye..
chitthacharcha ko youn bada hota dekh ek achha anubhav hota hai. shayad yahi ek wajah thi jisne hamein blogjagat ki pichli kaafi peedhiyan virasat mein di kyunki iske alawa hamare paas itna pracheen manch koi aur nahin tha aur ye sochkar ghanghor aascharya hota hai ki kitne to log ise kitne to samay se bakhoobi chalate rahe. roz naye naye judte bloggers ko is baat ka khayal rakhna chahiye ki yahan hamse pahle bhi kai log the, wo jinhone hamari neenv rakhi thi, wo jo saare sammanon se pare hain.. sach mein bada achha laga.. fir se dheron badhiyan..
B’day party honi chahiye. nahi?
लहसुन प्याज के साथ
पोस्ट टिप्पणी का साथ
ब्लॉग चर्चा का साथ
साथ यह ऊंगलियों का है
हमें तो मजबूत अंगूठा मिला है
pranam
ghar bhi tayar kar liye ….. aur bachhe ke ghar
ka tala laga hai uska bhi kuch kiya jaye bhaijee
pranam.
pranam.
सभी चिठ्ठाकार पूरी मेहनत व समर्पण से चर्चा करते हैं…
(हालांकि कुछ ऐसे चर्चाकार भी हैं जो “अतिरिक्त समर्पण” दिखाते हुए महिलाओं के चिठ्ठों को अधिक प्रमुखता देते हैं… he he he he he)
कल से दरवाज़े पे खड़े हैं, ऐसा मुरीद भी है कोई? कब से गुलदस्ता हाथ में लिये खड़े हैं.
बहुत शानदार सालगिरही चर्चा है. बड़ी मशक्कत हुई होगी इसे तैयार करते हुए. तमाम व्यस्तताओं के बीच इतनी लगन से चर्चा करना….hats off है जी. चर्चा का यह मंच साल दर साल हमें अच्छे लिंक्स उपलब्ध कराता रहे,[और हमारी पोस्टों की चर्चा करता रहे :)]
अरे!!!! सतीश भाईसाहब कहां गये? खड़े तो मेरे साथ ही थे ..आइये भाई साहब, दरवाज़ा खुल गया है
सतीश भाई साहब बस आते ही होंगे अभी टिपियाने।
गूगल क्रोम पर यह टेम्पलेट बिल्कुल ठीक दिख रहा। कोई शिकायत नहीं
सात साल पूरे करने की बधाईयाँ एवम ढेर सारी शुभकामनाएं।
आपका अनुज
जीतू चौधरी
इनते वर्षों में कई एग्रीगेटर विरोध के चलते बैठ गए मगर चिट्ठाचर्चा जारी रही.
अनुप शुक्ल पीछे न हो तो चिट्ठा-चर्चा सात साल तक निरंतर नहीं रह पाती. हमारी घणी घणी बधाई स्वीकारें. चिट्ठा चर्चा से जुड़ा हुआ होना भी एक सम्मान की बात हो गया है.
तमाम शुभकामनाएं.
बहुत बधाई!!!
सफारी: चकाचक
फायरफोक्स : अब ठीक है, जावास्क्रिप्ट समस्या भी चली गयी
क्रोम : अब ठीक है
लगता है अबा चिट्ठाकारी से संन्यास वापिस लेना पढेगा ! हम जल्दी ही वापिस आयेंगे !
भई मज़ा आया.. साँस रोके 38 मिलट बईठे रहे.. धीरे धीरे मचल ओ दिले बेकरार वाले अँदाज़ में !
खुला.. गेट-अप शेट-अप की बातें बाद में.. पायदान दर पायदान इतनी विहँगम चर्चा की भला कौन अनदेखी कर सकता है ?
आज जाना कि आप पक्के फुरसतिया हो, कितना समय दिया होगा, कितनी नोट्स बनायी होगी, सिलसिलेवार सजाया होगा,
फिर यहाँ परोसा होगा । अपना भाव बढ़ाने को अब यह न कहना कि यह तो बिना किसी विशेष प्रयास के यूँ ही बन गयी ।
आज की यह चर्चा पृष्ठाँकित कर ली है, चभला चभला कर एक के बाद एक पोस्ट की जुगाली करेंगे । तब तक आप टिप्पणी बक्सवे में अँत्याक्षरी खेलो । एक बार पुनः चर्चाकार टीम को बधाई , समीर भाई को मनाईये, मेरे दिवँगत होने से पहले ज्ञान जी से एक चर्चा करवाय देते, तो आत्मा पुलकित हो जाती । मुला विवेक सिंह पर टूल्टिप डालो तो अनूप शुक्ल चमकते हैं, यहू ठीक लेकिन लवली गोस्वामी पर भी आप ही नाम आता है.. जे गड़बड़ जी, इसको टीक करो जी !
Your comment is awaiting moderation.
येल्लो कल्लो इनसे बात… जबरजस्ती की तोहमत !
Your comment is awaiting moderation.
ई ज़ुलुम बात हम कब कहा ?
आने वाले वर्षों के लिये शुभकामनाएं
इतने सारे लिंक्स देखकर मज़ा आ गया कई दिन की पढ़ाई का इंतेज़ाम हो गया
बहुत उम्दा चर्चा और रिपोर्ट है
जिस दिन चिट्ठाचर्चा का पर्चा नहीं दिखता, उस रोज़ लगता कि ब्लाग देखने की प्यास मिटी नहीं। इसलिए प्रार्थना है कि इस ‘अफ़ीम’ से पाठकों को वंचित न रखें:)। बहुत बहुत शुभकामनाएं॥
———
पति को वश में करने का उपाय।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।
अनुपम चर्चा बाँचकर, मुँह से निकला वाह ।।
फ़िर से अब आ जाओ जी चर्चा करो विवेक।
एक साथ इतना न माल ठेल दिए हैं कि लगता है सनीचरे एतबार को पूरा होगा..
आप का अथक परिश्रम और कमिटमेंट बेमिसाल है और हम ब्लोगरों के मन में श्रद्धा जगाता है। चिठ्ठाचर्चा को और आप को बधाई
अचानक से इतना नयापन कैसे ? सबकुछ चकाचक है !! शुभकामनाएं !
अब तक अपनी खैर कैसे मना पा रहा हूँ ….मैं तो सोच कर ही प्रसन्न हूँ | जैसा सबने कहा इस मौके पर यह कहना ही पडेगा कि आप ना होते ….तो यकीनन यह सात साल इत्ती पोस्टत्पादक ना हो पाती ?
एक सुझाव : टेक्स्ट कलर थोडा से और डार्क किया जाए ….खास कर हम जैसे चश्मा-धारिओं के लिए !
अनूप जी के जवाब तो अब तक यहीं पड़े रहेंगे ……टिप्पणीकर्ताओं को तो मालूम ही नहीं चलेगा !
सात साल किसी भी विचारधारा का आगे सतत बहना लोगों को अपने से जोड़ते हुये ही अपने आप में एक बड़ी बात है आजकल शादियाँ, सरकार, सम्बंध कुछ भी नही टिकता और न ही टिकाऊ होने की ग्यारंटी कोई देता है।
यात्रा जारी रहे……….
शुभकामनायें
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आ रह्ह्ह्हा हूँ …..
बड़ी मुश्किल में दरवाजे खुले …पाबला जी की मदद लिया करो ! कब का खुल गया होता ….
दुबारा पुनर्जीवन लगता है ! उम्मीद करता हूँ बिना किसी पर ऊँगली उठाये चिटठा चर्चा प्यार और परस्पर सम्मान देता बांटता आगे बढेगा !
” गैरों ” को भी सम्मान कब देते हो इसका इंतज़ार रहेगा , वे भी बहुत अच्छे हैं एक बार गले तो लगाओ !!
भूले -भटके उन अपनों के ,
कैसे दरवाजे , खुलवाएं ?
जिन लोगों ने जाने कब से ,
मन में रंजिश पाल रखी है
इस होली पर क्यों न सुलगते दिल के ये अंगार बुझा दें !
कदम बढा कर दिल से बोलें, आओ तुमको गले लगा लें !
बरसों मन में गुस्सा बोई
इर्ष्या ने ,फैलाये बाजू ,
रोते गाते , हम दोनों ने
घर बबूल के वृक्ष उगाये
इस होली पर क्यों न साथियो आओ रंग गुलाल लगा लें !
भूलें उन कडवी बातों को , आओ हम घर -बार सजा लें !
आओ तुमको गले लगा लें – सतीश सक्सेना
दरवाजे खुलने के लिये पहले घर-मकान बनने जरूरी होते हैं। उसके लिये किसी का सहयोग नहीं चाहिये होता है। न किसी प्रायोजक का इंतजार!
जब हमने चर्चा की शुरुआत की थी सात साल पहले तब ब्लॉग बनाने के सिवा कोई तकनीकी जानकारी नहीं थी। सात साल में भी कुछ खास नहीं सीखे नया। लेकिन ब्लॉग चल रहा है और इंशाअल्लाह चलता भी रहेगा। इस सबके लिये हुनर से ज्यादा जुनून काम करता है। हमेशा। और वह काम भर का है अपन में।
मस्त रहिये। देखते रहिये। बिन्दास!
बहुत खुशी होती है चिट्ठाचर्चा की इस प्रगति पर। हमारी तरफ से ढेरों शुभकामनायें।
यह काम बहुत पहले हो जाना चाहिये था, देबु दादा ने काफी पहले यह सुझाव दिया भी था और हम सब ने उसका समर्थन किया था। यदि पहले ही यह कर लिया जाता तो .com या .in जैसा आसान पता होता।
इतने सालों तक उसी जीवट उर्जा से चर्चा करना हिम्मत का काम है. सारे चर्चाकार बधाई के पात्र हैं. हर साल कुछ नए लोगों के जुड़ने से चिट्ठाचर्चा को नया रंग मिलता है. डॉक्टर अनुराग और अब गौतम जी…और अनूप जी की चर्चा तो सदाबहार होती है.
कुछ वक्त पहले तक चिट्ठाचर्चा पर नियमित आना था…खबर लेने के लिए…कहाँ क्या चल रहा है एकदम एक जगह चकाचक खबर मिल जाती थी. इधर फिर से सब कुछ झकास चल रहा है…फिर से नियमित हो रही हूँ. इस मंच से बहुत से लोगों को जाना है…एक बार फिर ढेर सारी बधाई नए वेबपेज के लिए.
यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहे और बेहतरीन पोस्टें हमें ऐसे ही पढ़ने को मिलती रहें…
ईश्वर आपकी ऊर्जा और संक्रमण प्रवृत्ति को बनाए रखे और हर साल कई नए चर्चाकार इस मंच से जुड़ते रहें