मंगलवार, दिसंबर 13, 2005

ब्लॉगिंग के दौर में हिंदी वाले पीछे क्यों रहें?

आशीष ने अपनी चिरपरिचित अंदाज में बचपने को याद किया-वर्तनी की चिरपरिचित लेकिन कम होती अशुद्धियों के साथ। लाल्टू जी एक माह के लिये गये थे लेकिन लिखने का मोह उन्हें वापस फिर खींच लाया की बोर्ड पर । वे लिखते रहे गेट बंद होने तक। अपने जन्मदिन(१० दिसम्बर) के अवसर पर लिखा:-

उम्र दर उम्र
ढूँढते हैं
बढ़ती उम्र रोकने का जादू

भरे छलकते प्याले हैं
एक-एक टूटता प्याला
लड़खड़ाते सोच सोच कि
टूटने से पहले प्यालों में
रंग कुछ और भी होने थे


कविता लिखी जाये तो ऐसा बहुत कम होता है कि प्रत्यक्षा प्रतिकविता न लिखें। फाइलों से समय चुराकर उन्होंने प्रतिकविता लिखी:-

कई बार
दरकते प्याले भी
सहेजते रहे
छिपाते रहे
टूटे निशान
और ओढते रहे
चेहरे पर
एक नारा
मुस्कुराते रहो


मानसी के हाथ में कैमेरा आया तो कितने आसमान आ गये देखा जाये-अकेला आसमान ,उजला आसमान,जलता आसमान,लजाता आसमान,उलझा आसमान,हमसफ़र आसमानजीतेंदर तथा पंकज ने अपनी अनुगूंज की पोस्ट लिखीं। बमार्फत रमनकौल पता चला इंडिक ब्लागर अवार्ड के बारे में तथा रविरतलामी का भाषाइंडिया में छपा लेख भी- ब्लॉगिंग के दौर में हिंदी वाले पीछे क्यों रहे?सुनील दीपक लंदन घूमने निकले तो वहां के विवरण अपनी डायरी में दर्ज किये।सुनील दीपक की लंदन डायरी पढ़िये मनमोहक चित्रों के साथ।रविरतलामी दिखा रहे हैं भारतीय राजनीति के दो विरोधाभाषी चित्र।दिल्ली वालों को लगता है कि आज तक का यह खुलासा यह साबित नहीं करता कि सभी सांसद बेईमान हैं और न ही यह कि इस ऑपरेशन में जो नहीं पकड़ाए, वे ईमानदार हैं।देबाशीष का संदेश है:-
१५वीं अनुगूँज में पंकज ने विषय दिया था कि हम फिल्में क्यों देखते है? १५ प्रविष्टियाँ मिली अनूगूँज के एक वर्ष पूर्ण होने पर और घोषणानुसार हमें सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि को पुरस्कृत करना है। तो बतायें कि कौन सी प्रविष्टि आप को सब से अच्छी लगी? मतदान करने की अंतिम तिथि है १६ दिसंबर।

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