गुरुवार, अगस्त 24, 2006

उस पार न जाने क्या होगा!

आजकल चिट्ठाकारी में प्रवासी लोग छाये हुये हैं। इसकी आग लगाई मानसी ने। इसके बाद तो आग ब्लाग दर ब्लाग फैलती जा रही है। वैसे कुछ सूंघने वाले बताते हैं कि इस आग की चिंगारी स्वामीजी की लगाई हुई है। मन करे तो आप भी कुछ लकड़ियाँ लगा दो। वैसे भाई लोग अपने पुराने संताप और सपने दिखाना शुरू कर चुके हैं। राकेश खंडेलवाल यह वायदा कर करते हुये कि वे शीघ्र ही डा० अंजना संधीर की कविता अमेरिका सुविधायें देकर हड्डियों मे बस जाता है उपलब्ध कराने का वायदा करते हुये लिखते हैं:
याद है
तुमने कहा था
घाटियों के पार
सूरज की किरन का देश है
और मैं
रब से यह सोच रहा हूँ
कि मैं
घाटियों के
इस पार हूँ या उस पार
जहाँ एक तरफ प्रवासियों का जिक्र चल रहा है वहीं दूसरी तरफ वन्देमातरम पर आयुर्वेद कथा कह रहे हैं। जब तक हल्दी और चूने का संगम फायदा करे तब तक पताचलताहै कि बंदे मातरम पर पर आपत्ति उठ गयी। इस सबसे अलग लोग अपने रंग और कूची से खेलने में लगे हुये हैं। मैं और मेरी कूची शीर्षक से लगा कि आगे पैरोडी पढ़ने को मिलेगी -मैं और मेरी कूची अक्सर बातें करते हैं। लेकिन मामला कुछ बेहतर था। यह कैसा संयोग है कि किसी कुँवारे को हर कन्या लूट ले जाती है और दूसरी तरफ दूसरे कुँवारे संग-सुख पाते हैं-बादलों के उस पार।

Post Comment

Post Comment

2 टिप्‍पणियां:

  1. अनूप जी, सभी अच्छी प्रविष्टियों का एक जगह पर सार देने का अच्छा प्र्यास है यह।

    जवाब देंहटाएं
  2. वैसे विषय विशेष पर प्रकाशित समस्त प्रविष्ठियों को अनुगुंज के अवलोकन की तर्ज पर एक जगह मासिक आधार पर एकत्रित कर चिठ्ठा चर्चा मे प्रकाशित करने पर विचार किया जाना चाहिये, यह मात्र मेरा सुझाव है.
    --समीर लाल

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative