नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर सोमवार की चर्चा के साथ हाज़िर हूं।
आज एक ब्लॉग को थोड़ा गौर से देखा। वह भी इस लिए कि कन्ट्रीब्यूटर्स या योगदान कर्ता के लिए जिस शब्द का प्रयोग किया वह मुझ बंगालवासी को खींच ले गया साइड बार में और फिर बड़े गौर से सारे शीर्षक (साइड बार के) पढ़ डाले। ये क्रिएटिविटी भाती है। देखिए
१. कुछ दूर साथ चलें... = ई-मेल से सब्सक्राइब करने के लिए।
२. एइ पाथेर बंधू = योगदान कर्ता (पोथेर)
३. अंजुमन की रौनक = समर्थक (फॉलोअर)
४. अपनी बानी प्रेम की बानी.. = ट्रांशलेशन
५. ये तो खिड़की है... = ताज़ी टिप्पणियाँ
६. सैर के वास्ते... = कुछ पसंदीदा साइट्स के लिंक
७. बाज़ार से गुजरें तो... = बाज़ार हालचाल के लिंक
८. मंडप = इनके पसंद के ब्लॉग्स इसमें भी क्रिएटिविटी है देखिए = ज्ञान भाई की छुकछुकिया = मानसिक हलचल
९. तक्षदक्षम =
१०. अंदाज़-ए-बयां = लेबल
११. मालखाना = आर्काइव
१२. लेखा-जोखा = ब्लॉग के हिट्स
१३. चलो दिलदार चलें...
१४. ये दुनिया गोल है... = विजिटर्स
१५. फिलहाल साथ
इस ब्लॉग (इयत्ता) पर आज की पोस्ट बेरुखी को छोडि़ए (इयत्ता) में रतन जी कहते हैं
प्यार है गर दिल में तो फिर
बेरुखी को छोडि़ए
आदमी हैं हम सभी इस
दुश्मनी को छोडि़ए
सही कहा भाई रतन आपने। कहीं पढा था “नफ़रत की तो गिन लेते हैं, रुपया आना पाई लोग। ढ़ाई आखर कहने वाले, मिले न हमको ढ़ाई लोग।” ऐसे में आपका यह निवेदन लोगों पर असर करे यही दुआ है,
जानते हैं हम कि दुनिया
चार दिन की है यहां
नफरतों और दहशतों की
उस लड़ी को छोडि़ए
इसके लिए सकारत्मक सोच को विकसित करने की ज़रूरत है। हमारा एप्टीटय़ूड हमें औरों से अलग करता है। हमारे शिक्षामित्र भाषा,शिक्षा और रोज़गार पर कहते हैं एप्टीटय़ूड से किसी व्यक्ति की रचनात्मक क्षमता का आकलन किया जाता है। उसमें कलात्मक रुझान व रुचि का पता लगाया जाता है। उनका मानना है कि
एप्टीटय़ूड जन्मजात होता है। किसी का संगीत के प्रति तो किसी का पेंटिंग, नृत्य या लेखन के प्रति। किसी में इंजीनियर बनने का एप्टीटय़ूड है तो किसी में मैकेनिक।
साथ ही यह भी बताते हैं कि टैस्ट के बाद उन्हें उस क्षेत्र में ट्रेनिंग देकर उन लोगों से बेहतर बनाया जाता है, जो उस या क्षेत्र के प्रति जन्मजात एप्टीटय़ूड से लैस नहीं होते।
एक बहुत ही सारगर्भित और उपयोगी आलेख है। अवश्य पढें।
एक और बड़ा ही उपयोगी लिंक दे रहा हूं। यह है जगदीश भाटिया जी का आइना http://aaina.jagdishbhatia.com/। इस पर हिन्दी टाइपिंग संबंधी बहुत सी जानकारियां हैं। खास कर बरह में कैसे टाइप करें। इससे जुड़ीं कुछ प्रविष्ठियां नीचे दिए हैं, ज़रूर पढ़ें।
बरह में हिंदी टाइपिंग कैसे करें How to type in Hindi with Baraha
माइक्रोसॉफ्ट का हिंदी टाइपिंग टूल Hindi Typing Tool by Microsoft
गूगल क्रोम में हिंदी टाईप करने का आसान तरीका
गूगल ट्रांस्लिट्रेशन अब बना हिंदी का वर्ड प्रोसेसर
Google Script Converter-भारतीय लिपियों के लिये उपहार
एक क्लिक से हिंदी टाईपिंग How to type in Hindi
एक क्लिक से हिन्दी टाईपिंग - कैसे काम करता है
- अब हिंदी में क्वर्टी कीपैड मोबाईल Mobile with Hindi qwerty key pad
- कैसे पढ़ें मोबाइल से हिंदी चिट्ठे
- मोबाइल पर ब्राउजिंग का पूरा मजा- ओपेरा मिनी
- मोबाईल से पोस्ट ठेलने में मिली अधूरी सफलता
- मोबाइल से पोस्ट ठेलने का बेहतरीन मौका।
- अब बनाइये अपने चिट्ठे की मोबाइल से पढ़ी जा सकने वाली साईट
इसके अलावे भी कई खूबियां हैं, जैसे, हिन्दी पंजाबी साहित्य से कुछ चुने संकलन का होना।
साहित्य
- ’ओ हरामजादे ’ लेखक भीष्म साहनी
- ’ओ हरामजादे - 2’ लेखक भीष्म साहनी
- मंटो की कहानी - टोबा टेक सिंह
- मंटो की कहानी - "खोल दो"
- राजनीति के ’पिंजर’ में फंसा लोकतंत्र
पंजाबी साहित्य
- अमृता प्रीतम की एक कविता
- अमृता प्रीतम की कुछ कवितायें
- वारिस शाह नूं - अमृता प्रीतम
- “बिरह” का सुलतान - शिव कुमार बटालवी
सपने जब टूटते हैं तो इंसान जड़वत् हो जाता है। उसकी भावनाएं समय के क्रूर थपेड़ों की चोट से पत्थर की तरह हो जाती हैं। कुछ इन्ही भावनाओं को समेटे संगीता स्वरूप जी कह रही हैं पत्थर हो गयी हूँ ......!
डूब गयी नाव मेरी
ऐसी नदी में जो थी जलहीन ...
बिना पानी के आज मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी पर आज हो गयी हूँ ...
कई बार ऐसा होता है कि हमारा अस्तित्व अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य से जूझता हुआ खुद को ढूंढता रहता है। स्मृतियों और वर्तमान के अनुभव एक-दूसरे के सामने आ खड़े होते हैं। ऐसे में यह समझना कठिन हो जाता है कि हम जीवन जी रहे हैं या जीवन हमें जिए जा रहा है। या हमारी तरल संवेदना पत्थर-सी हो गई है।
अनामिका जी एक कवियित्री के तौर पर भीतर-बाहर से बहुत साधारण इंसान हैं। इतने साधारण कि इनका साधारण जीवन अपने लगभग सारे रूपों के साथ इनकी कविता/नज़्मों/ग़ज़लों की दुनिया मे अपने आप आ जाता है। यही कारण है कि बोलचाल के ढेरों अंदाज इनकी रचना तो कुछ और कहूँ... में है। कभी सवाल के अंदाज में पूछती हैं ......
अपने दिल की उदासी को छुपा लूँ तो कुछ और कहूँ
अपने लफ़्ज़ों से जज्बातों को बहला लूँ तो कुछ और कहूँ.
कभी व्यंग्य कसती बात....
अपनी साँसों से कुछ बेचैनियों को हटा लूँ तो कुछ और कहूँ
धूप तीखी है, जिंदगी को छाँव की याद दिला दूँ तो कुछ और कहूँ
एकाकी, जीवन की दुरूह परिस्थितियों का सच्चा लेखा-जोखा सामने रखती इस रचना को पढते हुए रोमांच, प्रेम, उदासी और प्रसन्नता से होकर गुजरना पड़ता है ! बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति।
पिछले दिनों दिल्ली में किसानो ने अपनी जमीनों के अधिग्रहण को लेकर प्रदर्शन किया। यह खबर पूरे मीडिया में छाई हुई थी। किसान अपनी जमीन पर आपने अधिकार खोने से नाराज है। यह सूचना दे रघी हैं प्रज्ञा पाण्डेय एक गली जहाँ मुडती है से। आलेख विकास और असंतोष में कहती हैं देश में विकास के नाम पर बन रही सड़के ,बहुमंजिली इमारतो और सेज इत्यादि जैसे बड़ी परियोजनाओ के दौरान किसानो की जमीने बड़े पैमाने पर अधिग्रहित की जाती है .इस अधिग्रहण से विकास की राह तो आसान हो जाती है या यूँ कहे कि हमारे चमचमाते इंडिया कि तस्वीर बनी रहती है लेकिन उन गरीब किसानो का क्या जिनकी जमीने कम दामो पर खरीद ली जाती है।
साथ यह विचार भी व्यक्त करती हैं कि न समस्याओं से निपटने के लिए सरकार को पुराने भूमि अधिग्रहण कानून १८९४ में परिवर्तन कर नया भूमि अधिग्रहण कानून लाना चाहिए .यह कानून किसान की हालिया परेशानीयों को ध्यान में रख कर बनाया जाना चाहिए।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी का गद्यात्मक काव्य की दुनियां मे सरस कविताओं का अनवरत पेशकश ज़ारी है और आज वो कह रहे हैं, "करते-करते यजन, हाथ जलने लगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") ।
उम्र भर जख्म पर जख्म खाते रहे,
फूल गुलशन में हरदम खिलाते रहे,
गुल ने ओढ़ी चुभन, घाव पलने लगे।
करते-करते यजन, हाथ जलने लगे।।
कहते हैं जब संसार प्रचण्ड तूफान का रूप धारण कर ले, तब सर्वोत्तम आश्रय स्थल ईश्वर की गोद ही है। पर जब यज्ञ करते ही हाथ जले तो उसे कौन बचाए!
एक बहुत ही अच्छी पोस्ट डाली है अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने छंद-प्रकरण [ १ ] : 'छंद' शब्द का अर्थ और आशय ।
'छंद' का व्युत्पत्तिमूलक अर्थ : बताते हुए कहते हैं इस शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। छंद शब्द संस्कृत के छंदस् शब्द का अर्द्ध-तत्सम रूप है। छंद शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के छद् धातु से मानी जाती है जिसका अर्थ परिवेष्टित करना , आवृत करना या रक्षित करने के साथ-साथ प्रसन्न करना भी है। प्रसन्नताप्रद अर्थ में छद् धातु निघंटु में भी मिलती है। स्पष्ट है कि अपने व्युत्पत्तिमूलक अर्थ में छंद 'बंधन' की रुढ़ि से मुक्त है।
चर्चा को निष्कर्ष देते हुए बताते हैं छंद वाणी के प्रस्तुतीकरण का वह सुव्यवस्थित रूप है जिसमें वाणी की अन्तर्निहित ऊर्जा सशक्त और दिक्-काल से परे अपनी पहुँच को स्थापित करने का भूरिशः यत्न करती है। इसमें मात्राओं और वर्णों की संख्या किसी रूढ़ि को पालित/पोषित नहीं करती बल्कि उस गेय-धर्म के निर्वाह की तरह है जिसमें कोई भाव ( 'भू' धातु के अर्थ में , 'जो है' वह ) रुचिर हो जाता है, शक्तिवान हो जाता है, कालातीत हो जाता है, स्वतंत्र हो जाता है, 'बंधन'-रहित हो जाता है!
और चलते चलते ये पढिए आओ न कुछ बात करें भड़ास blog पर baddimag की प्रस्तुति
किसका घूंसा - किसकी लात, आओ न कुछ बात करें...
होती रहती है बरसात, आओ न कुछ बात करें।
अगर मामला और भी है तो वो भी बन ही जाएगा,
छोड़ो भी भी ये जज्बात, आओ न कुछ बात करें।
नदी किनारे शहर बसाना यूं भी मुश्किल होता है,
गांव के देखे हैं हालात, आओ न कुछ बात करें।
बूंद-बूंद ये खून बहा कर क्यों प्यासे रह जाते हो,
बांटे जीवन की सौगात, आओ न कुछ बात करें।
नींदों को पलकों पर रख कर छत पर लेटे रहते थे,
फिर आई वैसी ही रात, आओ न कुछ बात करें।
Bahut achha margdarshan raha!
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा ब्लॉग चर्चा ! आभार !
जवाब देंहटाएंजगदीश भाटिया जी का पेज बुकमार्क कर लिया है. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसुंदर ,विस्त्रित चर्चा ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहिंदी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।
चिट्ठा चरेचा बहुत ही शानदार रही!
जवाब देंहटाएं--
सभी लिंकों का चयन उत्तम है!
रोचक और उपयोगी चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स के साथ अच्छी चर्चा!
जवाब देंहटाएं''गुल ने ओढ़ी चुभन, घाव पलने लगे।
जवाब देंहटाएंकरते-करते यजन, हाथ जलने लगे।।''
--- सुन्दर पंक्तियाँ लगीं !
और 'अंतिम-प्रणाम' के दौर में ये पंक्तियाँ और भी चारूत्व-पूर्ण हो उठती है ---
'' जानते हैं हम कि दुनिया
चार दिन की है यहां
नफरतों और दहशतों की
उस लड़ी को छोडि़ए ''
.....
'विकास और असंतोष पर प्रज्ञा पाण्डेय जी की लेखनी ने बढियां लिखा है !
संगीता स्वरूप जी ने जीवन के राकस यथार्थ को मार्मिक उकेरन दी है ! अनामिका जी की काव्य-आभ्यंतर-वेदना भी तकरीबन इसी के इर्द गिर्द है !
.....
'आओ न कुछ बात करें' , मुहावरे के ध्रुपद-धर्म को दिखाता सुन्दर रचाव दिखा रहा है !
....
सुन्दर चर्चा , आभार स्वीकारे !
विस्त्रित चर्चा ...
जवाब देंहटाएं"पिछले दिनों दिल्ली में किसानो ने अपनी जमीनों के अधिग्रहण को लेकर प्रदर्शन किया। यह खबर पूरे मीडिया में छाई हुई थी"
जवाब देंहटाएंतो फिर, दिल्ली में ही बैठा इनका सिपाही क्या कर रहा है? :)
रोचक व सार्थक चर्चा के लिए बहुत बहुत आभार.....
जवाब देंहटाएंअभी जाती हूँ आपके निर्देशित लिंकों पर..
रोचक व सार्थक चर्चा के लिए बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
बेहतरीन चर्चा!
जवाब देंहटाएंbadiya....
जवाब देंहटाएंabhar
काफी देर से आया। अपना पोस्ट देखकर तो प्रसन्नता हुई ही,अन्य लिंकों से भी वंचित रह जाता,अगर आपने ध्यानाकर्षण न किया होता। आभार।
जवाब देंहटाएंबढिया चिठ्ठा चर्चा । इसमें से कुछेक ब्लॉग्ज तो जरूर देखना ही है ।
जवाब देंहटाएंमनोज जी ,
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो क्षमा चाहूंगी ..यहाँ देर से उपस्थिति दर्ज कराने की ...
आप जब किसी पोस्ट की चर्चा करते हैं तो वो अपने में खास हो जाती है ...आपकी लिखी यह पंक्तियाँ की हम जीवन को जी रहे हैं या जीवन हमें जी रहा है ...कितना कठोर सत्य कह दिया है ...आभार
साहित्य के पाठकों के लिये बढ़िया जानकारी है ।
जवाब देंहटाएंमैं अपनी एक कविता पोस्ट कर रहा हूँ |
जवाब देंहटाएंवंचित और असहायों को भी साथ रखा होता तुमने
कभी किसी अनाथ के सर पर हाथ रखा होता तुमने
रोज बड़ी संख्या मैं प्रायः सोते हैं जो भूखे ही
उन भूखों के लिए कभी तो भात रखा होता तुमने
एक कार्य शुभ करते ही तुम , आशा करते पाने की
शुभ कर्मों के खाते को अज्ञात रखा होता तुमने
स्वार्थ सिद्धि मैं लगे रहे नहीं , परहित मैं कुछ कर पाए
परहित को भी कभी ध्यान मैं तात रखा होता तुमने
अर्पित ईश्वर को करने को , अर्जित करके पुन्य कोई
यदि रखा होता तो ना , बेबात रखा होता तुमने
मैं अपनी एक कविता पोस्ट कर रहा हूँ |
जवाब देंहटाएंवंचित और असहायों को भी साथ रखा होता तुमने
कभी किसी अनाथ के सर पर हाथ रखा होता तुमने
रोज बड़ी संख्या मैं प्रायः सोते हैं जो भूखे ही
उन भूखों के लिए कभी तो भात रखा होता तुमने
एक कार्य शुभ करते ही तुम , आशा करते पाने की
शुभ कर्मों के खाते को अज्ञात रखा होता तुमने
स्वार्थ सिद्धि मैं लगे रहे नहीं , परहित मैं कुछ कर पाए
परहित को भी कभी ध्यान मैं तात रखा होता तुमने
अर्पित ईश्वर को करने को , अर्जित करके पुन्य कोई
यदि रखा होता तो ना , बेबात रखा होता तुमने