जिन चिट्ठाकार साथियों को लगता है कि चिट्ठाजगत की बहस-उहस में उजड्ड भाषा प्रयुक्त होती है उनको साहित्य जगत के महाविभूतियों की बहस बांचनी चाहिये। उनका अपराध बोध कम हो जायेगा। लगेगा कि अभी तो बहुत कुछ सीखना है । पतन की घणी संभावनायें हैं ब्लॉग जगत में। ऐसी ही एक बहस देखिये एक आदरणीय आलोचक और एक फादरणीय कवि-आलोचक-अनुवादक-पूर्व संपादक के बीच। इस बहस में आदरणीय और फ़ादरणीय दोनों एक दूसरे के प्रति फ़टाफ़टा प्रेमप्रकटीकरण में तल्लीन दिखते हैं। नमूने देख लीजिये:
इस उद्धरणों का फ़ुल मतलब समझने के लिये पोस्ट देखिये। जानकी पुल पर ही विनीत कुमार जोहन्सबर्ग में हुए विश्व हिन्दी सम्मेलन के वाकये को लेकर चली बहस में कहते हैं-वे व्यवस्थित और कलात्मक ढंग से हिन्दी का नाश करते हैं।
वहां टहलते हुये मुकुल राय की कविता मिली। बांचिये:
मेरी पसन्द
हम दोनों के बीच एक हारमोनियम है
हारमोनियम के उस तरफ़
सुरों को अपनी उंगलियों की थापों से
जगाती हुई तुम बैठी हो
और इस तरफ़
तुम्हारे सुरों में नाद भरने
पर्दे से हवा धोंकता हुआ मैं
हारमोनियम-
किलकारियां भरता, हाथ पैर चलाता
एक नया नवेला बच्चा है लगभग छः महीने का
हम दोनों उसे खिलाने में लगे हुए हैं
हम दोनों के बीच एक हारमोनियम है
मेरे तुम्हारे दरम्यान एक बरसाती नदी है
जिसमें राग अनंत लहरें उठाते हैं
हम डूबते हंै उस नदी में
तैरते हैं और गोते लगाते हुए
पकड़ते हंै संतरंगी मछलियों को
हारमोनियम हम दोनों के बीच उस नदी की तरह है
लेकिन क्या तुमने
’यमन’ की सरगम याद करते हुए
कभी ग़ौर से देखा है हारमोनियम को
क्या वह तुम्हें पुल की तरह दिखाई नहीं देता
जिस पर से दौड़-दौड़कर
हम एक-दूसरे के करीब तक पहुँचते हैं
और छुए बिना ही भीग-भीग जाते हैं
हम दोनों के बीच एक हारमोनियम है
उसमें शब्द नहीं हैं तो क्या
वह वही भाषा बोलता है
जो मेरी है, तुम्हारी है
हम दोनों के बीच हारमोनियम एक चरखे की तरह है
जो बुन रहा है
बहुत महीन और मुलायम धागे
हेमंत देवलेकर
- विष्णु खरे इस वक्त के सबसे बददिमाग लेखक हैं।- डा.विजय बहादुर सिंह
- वे साहित्य के मंच पर अपनी उपस्थिति कुछ वैसी जताते हैं जैसे छोटे परदे पर राखी सावंत। - डा.विजय बहादुर सिंह
- मुझे पिछले कुछ दिनों से इन्टरनेट, ईमेल और प्रिंट-मीडिया में कतिपय इतने ज़लील,नाबदानी तत्वों से निपटना पड़ रहा है। -विष्णु खरे
- मुझे अपने बदन से ही हिंदी के सन्डास की बू आने लगी है। -विष्णु खरे
- प्रतिक्रिया-पेचिश-पीड़ित आचार्य भिलसा भोपाल भंड--विष्णु खरे
- हमारी नाक़िस राय में निराला की जीवनी के प्रथम खंड को छोड़कर रामविलास शर्मा का लगभग सारा लेखन समसामयिक हिदी साहित्य के लिए अप्रासंगिक है।-विष्णु खरे
- भिभोभं की देखिबै-सुनिबै की बेला आन पहुँची है कि वे अपनी आँखें टीवी पर राखी सावंत से ही सेंक कर अपनी बुढ़भस काटने को विवश हैं लेकिन उसके बारे में जो उनकी राय लगती है उसे जान कर मैं उन्हें यही सलाह दूंगा कि उससे दूर ही रहें - मैंने सुना है ठरकी लम्पटों की धोती वह बिदास, सार्वजनिक रूप से गीली-पीली कर देती हैं। -विष्णु खरे
इस उद्धरणों का फ़ुल मतलब समझने के लिये पोस्ट देखिये। जानकी पुल पर ही विनीत कुमार जोहन्सबर्ग में हुए विश्व हिन्दी सम्मेलन के वाकये को लेकर चली बहस में कहते हैं-वे व्यवस्थित और कलात्मक ढंग से हिन्दी का नाश करते हैं।
वहां टहलते हुये मुकुल राय की कविता मिली। बांचिये:
घर में जाले, बाहर जालक्या बतलाएं अपना हाल?दिन बदलेंगे कहते-सुनतेबीते कितने दिन और साल!तुम ये हो, हम वो हैं, छोड़ोअब तो हैं सब कच्चा माल
आज निर्मलानन्द अभय तिवारी का जन्मदिन है। उनको जन्मदिन की बधाई।
मेरी पसन्द
हम दोनों के बीच एक हारमोनियम है
हारमोनियम के उस तरफ़
सुरों को अपनी उंगलियों की थापों से
जगाती हुई तुम बैठी हो
और इस तरफ़
तुम्हारे सुरों में नाद भरने
पर्दे से हवा धोंकता हुआ मैं
हारमोनियम-
किलकारियां भरता, हाथ पैर चलाता
एक नया नवेला बच्चा है लगभग छः महीने का
हम दोनों उसे खिलाने में लगे हुए हैं
हम दोनों के बीच एक हारमोनियम है
मेरे तुम्हारे दरम्यान एक बरसाती नदी है
जिसमें राग अनंत लहरें उठाते हैं
हम डूबते हंै उस नदी में
तैरते हैं और गोते लगाते हुए
पकड़ते हंै संतरंगी मछलियों को
हारमोनियम हम दोनों के बीच उस नदी की तरह है
लेकिन क्या तुमने
’यमन’ की सरगम याद करते हुए
कभी ग़ौर से देखा है हारमोनियम को
क्या वह तुम्हें पुल की तरह दिखाई नहीं देता
जिस पर से दौड़-दौड़कर
हम एक-दूसरे के करीब तक पहुँचते हैं
और छुए बिना ही भीग-भीग जाते हैं
हम दोनों के बीच एक हारमोनियम है
उसमें शब्द नहीं हैं तो क्या
वह वही भाषा बोलता है
जो मेरी है, तुम्हारी है
हम दोनों के बीच हारमोनियम एक चरखे की तरह है
जो बुन रहा है
बहुत महीन और मुलायम धागे
हेमंत देवलेकर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमुकुल राय की कविता सुन्दर तो है ही,प्रासंगिक भी है ।
जवाब देंहटाएंहेमंत जी की सभी कविताएँ मुझे बहुत अच्छी लगीं. ये वाली भी.
जवाब देंहटाएंये सचे है कि जब तथाकथित साहित्यकारों को लड़ते हुए देखती हूँ तो ब्लॉग जगत काफी साफ-सुथरा लगता है, लेकिन उस हद तक हमारा पतन न हो यही मनाती हूँ.
हिंदी न हुई गरीब की जोरू हो गई.जिसके जो मन में आया बोलता है.
जवाब देंहटाएं(:(:
हटाएंpranam.
कौन हैं ये विष्णु खरे? सलमान खुर्शीद खेमे के हैं या केजरीवाल के?
जवाब देंहटाएं!!!!(:(:
जवाब देंहटाएंआपकी शायरी किसी के भी पोस्ट को बेहतरीन बना सकती है सूत्रधार की सबसे बढिया भूमिका मैने आपकी भाषा में देखी है । लिंक तो बहुत लोग देते हैं पर उसे पढने के लिये रोचक बनाना आपसे देखा
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