हिंदी जाल जगत:आगे क्या आलोक द्वारा आयोजित
चौदहवीं अनुगूंज विषय है. साथियों के आलेख आना शुरु हो गये हैं. इसके पहले राजेश ने तेहरवीं अनुगूंज का विषय दिया था - संगति की गति. अपने लेख भेजिये अभी भी देर नहीं हुई है. परिचय की कडी में राजेश के जन्मदिन के अवसर पर उनको
शुभकामनायें दी गयीं. इस बीच अनुनाद ने
हिंदी सुभाषित का काम पूरा किया. जीतेन्द्र नौ महीने (साल के) पूरे होने के बाद कैलेंडर बनाने का तरीका बता रहे हैं.
नींद के बारे में बताने के बाद सुनील दीपक जी
दोस्तों के बारे में बता रहे हैं. अक्षरग्राम पर
आवाजाही के बारे में बताने वाले पंकज अपना सारा काम अपने साथियों को सौंप देने का मन बना चुके हैं. नारद पहले जीतेन्द्र ने
झपट लिया अब सर्वज्ञ को
थमा रहे हैं ये रमण कौल को. कवितायें भी लिखी गयीं इस बीच. फ़ुरसतिया
लिखते है:
आओ बैठें, कुछ देर साथ में,
कुछ कह लें, सुन लें, बात-बात में।
गपशप किये बहुत दिन बीते,
दिन साल गुजर गये रीते-रीते।
ये दुनिया बड़ी तेज चलती है,
बस जीने के खातिर मरती है।
पता नहीं कहां पहुंचेगी,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।
संजय विद्रोही
कहते हैं:
जीने को हैं बहुत जरूरी,
आधे सपने, नींदें पूरी.
चाहा जिसको उसे ना पाया,
साध हमारी रही अधूरी
प्रत्यक्षा
सपनों की सोनचिरैया से रूबरू हैं:
सपनों की वह सोनचिरैया
छाती में दुबकी जाती थी
उसकी धडकन मुझसे मिलकर
बरबस मुझे रुलाती थी
सपनो की भर घूँट की प्याली
मन मलंग बन उडती थी
याद को तेरी फिर सिरहाने रख
चैन की नींद सो जाती थी
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शुक्ला जी - आप का अक्षरग्राम में कोई हाथ नहीं है कहिए तो "केतली" आप को थमा दें :D
जवाब देंहटाएं:: Pankaj Narula
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भइया हमें न थामना किसी का कुछ। केतली से आप ही बढ़िया चाय पिलाते रहो हम उसी में खुश।
:: अनूप शुक्ल