गुरुवार, अगस्त 05, 2010

तेरे पास ये जो ज़मीर है यही तेरी दौलते ख़ास है- इस्मत जैदी

इस्मत जैदी’शेफ़ा’ ने अपने परिचय में लिखा है-
तेरे पास ये जो ज़मीर है यही तेरी दौलते ख़ास है
तू बचा के रखना इसे ’शेफ़ा’ यही ज़िंदगी का दवाम है

दवाम का मतलब मुझे ठीक-ठीक नहीं मालूम लेकिन इससे इस शेर को समझने में कोई दिक्कत नहीं होती। फ़िलहाल पणजी गोवा में रहने वाली इस्मत कम लिखती हैं, महीने में एकाध गजल लेकिन जब लिखती हैं तब उसकी कोई न कोई लाइन चुराने के लिये गौतम राजरिशी हाजिर हो जाते हैं। अब जैसे इस गजल को ही देखिये गौतम लिखते हैं:
"हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
अगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं"

इस शेर पे क्या कहूँ...एक कसक सी उठी मन में कि ये शेर मेरा क्यों नहीं है। इन तंग काफ़ियों पे एक बेहतरीन ग़ज़ल, मैम...ये शेर लिये जा रहा हूँ। आने वाले दिनों में कुछ हिचकियां आये तो समझ लीजियेगा कि आपका शेर सुना रहा हूँ अपने यर-दोस्तों को आपका नाम लेकर।

अब गौतम को यह शेर पसंद आने का कारण शायद यह हो कि वे आजकल हौसले से लबालब हैं और जहां-तहां ठोकर मारने के मूड में हों। लेकिन इसको पढ़ते हुये मुझे राहत इन्दौरी के ये शेर याद आये:
वो खरीदना चाहता था कांसा(भिक्षापात्र) मेरा,
मैं उसके ताज की कीमत लगाके लौट आया।
सुना है सोना निकल रहा है वहां
मैं जिस जगह पर ठोकर मारकर लौट आया।

इस गजल के सभी शेर एक से एक हैं। शुरुआत बच्चों के हाल से है:

न डालो बोझ ज़हनों पर कि बचपन टूट जाते हैं
सिरे नाज़ुक हैं बंधन के जो अक्सर छूट जाते हैं

घर परिवार टूटने की बात को इतना सलीके से कहना, कमाल है:

नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आंगन में
कि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं ,अपने छूट जाते हैं

और यह शेर तो समझाइस के लिये हमेशा इस्तेमाल किया जा सकता है !अद्भुत!!:

न रख रिश्तों की बुनियादों में कोई झूट का पत्थर
लहर जब तेज़ आती है ,घरौंदे टूट जाते हैं

वैसे जब इसका मतलब पढ़ रहा हूं तो लग रहा है कि दूसरी लाइन कुछ और भी हो सकती है( क्या हो सकती है मैं नहीं जानता)। घरौंदे में झूठ का पत्थर! तेज लहर में घरौंदे टूटेंगे तो क्या उसमें झूठ का पत्थर ही होगा।
इस गजल का सबसे प्यारा शेर मुझे सबसे आखिरी वाला लगा:

’शेफ़ा’ आंखें हैं मेरी नम, ये लम्हा बार है मुझ पर
बहुत तकलीफ़ होती है जो मसकन छूट जाते हैं

मुझे मसकन का मतलब पता नहीं था। इस्मत यह बहुत अच्छा करती हैं कि जिन शब्दों को कठिन समझती हैं उनके मतलब नीचे दे देती हैं। मसकन माने होता है -घर। घर छूटने की तकलीफ़ प्रवासी शायद शिद्दत से महसूस कर सकते हैं इसीलिये समीरलाल’कनाडा वाले’ ने इस शेर को दोहराते हुये लिखा:बहुत शानदार..वाह!
इसके पहले की गजल की शुरुआत ही इस्मत ने शानदार की:
बीती बातें फिर दोहराने बैठ गए
क्यों ख़ुद को ही ज़ख़्म लगाने बैठ गए

इस गजल का यह शेर लोगों ने बहुत पसंद किया:
अभी अभी तो लब पे तबस्सुम बिखरा था
अभी अभी फिर अश्क बहाने बैठ गए?


इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते नीरज गोस्वामी ने लिखा:
मतले से मकते तक के इस हसीन सफ़र में एक से बढ़ कर एक खूबसूरत शेरों के मंज़र देखने को मिले...ये कमाल सिर्फ आपकी कलम ही कर सकती है...इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कबूल करें...

इसी पर सर्वत एम की प्रतिक्रिया है:
किसी गुमनाम शायर के मिसरे हैं--- "तुम जिस चिंगारी को छू लो उड़े और जुगनू बन जाए", गजब की गजल पेश की. हालात, नफसियात, जज़्बात की जो अक्कासी आपने अशआर की शक्ल में पेश की है, दूसरों के लिए एक मुश्किल मरहला है. मैं हैरत और सकते का शिकार हूँ. समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या कहूं. फिलहाल, इस कामयाब गजल के लिए मुबारकबाद.


यह नज्म उनके प्रोफ़ाइल का विस्तार लगती है:
मेरे मालिक ख़यालों को मेरे
पाकीज़गी दे दे ,
मेरे जज़्बों को शिद्दत दे ,
मेरी फ़िकरों को वुस’अत दे,
मेरे एह्सास उस के हों ,
मेरे जज़बात उस के हों ,
जियूं मैं जिस की ख़ातिर ,
बस वफ़ाएं भी उसी की हों,

इस पर नीरज गोस्वामी की प्रतिक्रिया है:
अता कर ऐसी दौलत
जिस के ज़रिये, मैं
तेरे बंदों के काम आऊं
मुझे ज़रिया बना कर
उन के अरमानों को पूरा कर

इस्मत जी आपकी इन पंक्तियों में ज़ाहिर आपकी सोच को पढ़ कर मेरा सर आपकी शान में झुक गया है...सुभान अल्लाह...बेहतरीन नज़्म कही है आपने...आपको तहे दिल से दाद देता हूँ...


एक और गजल में इस्मत लिखती हैं:
जब तुम ही नहीं हो तो ज़माने से मुझे क्या
ठहरे हुए जज़्बात में जां है भी नहीं भी

इसी गजल पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये सर्वत एम ने लिखा:
इतनी शानदार गजल कहने के बाद भी यह इन्किसारी, पता नहीं आपको पसंद आए, अरे जिसे पसंद न आए वो आँखें रखते हुए भी....!!!
इतनी मुश्किल बहर और इतनी टिपिकल रदीफ़, मुझे तो पढ़ते हुए ही पसीने छूट गए, गर्मी की वजह से नहीं, बहर और रदीफ़ की हौलनाकी की वजह से. लेकिन निभाया खूब से खूब तर आपने.
मैं किन्हीं दो एक अशआर की बात क्या करूं, कोई भी शेर ऐसा नहीं, जिसे कमजोर कहा जाए.
यह मैं कह रहा हूँ...क्योंकि मैं झूट नहीं बोलता!!!
बहुत दिनों बाद आ सका हूँ, माज़रत की गुंजाइश है ना!

अब बहर, रदीफ़ का तो मुझे अंदाजा नहीं लेकिन गजल बहुत अच्छी लगी।
अब यह गजल देखिये और उस पर नीरज गोस्वामी जी की दो माह बाद की गयी टिप्पणी:
क़त्ल ओ ग़ारत ,ख़ौफ़ ओ दहशत के लिए
भूक ताक़त की ही ज़िम्मेदार है

हंस के मेरे सारे ग़म वो ले गई
ये तो बस इक मां का ही किरदार है

इस्मत जी आपके अशआर बड़ी उलझन में डाल देते हैं क्यूँ की उनकी तारीफ़ के लिए माकूल लफ्ज़ ही नहीं मिलते...ऐसे सूरते हाल में सिर्फ "लाजवाब" लफ्ज़ से ही काम चलाना पड़ रहा है, जो मुकम्मल नहीं है...आपके लिए दिल में जो इज्ज़त है उसे बयां करने को भी लफ्ज़ नहीं हैं मेरे पास...लिखती रहिये...


बहुत सारी गजलें हैं इस्मत की! कुछ अच्छी हैं कुछ बहुत अच्छी हैं। जब उन्होंने ब्लॉग पर लिखना शुरू किया था तब से मैं उनका प्रशंसक हूं। लेकिन ऐसा प्रशंसक कि उनकी तमाम रचनायें पढ़ीं नहीं सोचा कि आराम से पढ़ी जायेंगी। आज जब पढीं तो थोड़ा अफ़सोस हुआ कि इतनी अच्छी रचनायें अभी तक पढ़ीं नहीं थीं लेकिन साथ ही खुशी भी हुई कि इसी बहाने इंतजार नहीं करना पड़ना और एक के बाद एक तमाम रचनायें पढ़ने को मिल गयीं।

इस्मत की गजलें थोक के भाव लिखी जाने वाली मैगी गजलों से अलग ऐसी गजलें लगती हैं जिनके शेर याद करके दोहराने का मन करता है।

आप भी देखिये आपको भी पसंद आयेंगी इस्मत की रचनायें।

मेरी पसंद


चला भी जाऊं तो तुम इंतेज़ार मत करना
और अपनी आंख कभी अश्कबार मत करना

उलझ न जाए कहीं दोस्त आज़माइश में
कि ख़्वाहिशें कभी तुम बेशुमार मत करना

मैं जानता हूं कि तख़रीब है तेरी आदत
हरे हैं खेत इन्हें रेगज़ार मत करना

मेरी हलाल की रोज़ी सुकूं का बाइस है
इनायतों से मुझे ज़ेर बार मत करना

जो वालेदैन ने अब तक तुम्हें सिखाया है
अमल करो, न करो, शर्मसार मत करना

सड़क भी देंगे वो पानी भी और उजाला भी
सुनहरे वादे हैं बस,ऐतबार मत करना

मुझे तो मेरे बुज़ुर्गों ने ये सिखाया है
उदू की फ़ौज पे भी छुप के वार मत करना

तुम्हारे काम ’शेफ़ा’ गर किसी को राहत दें
बजाना शुक्र ए ख़ुदा इफ़्तेख़ार मत करना

तख़रीब= बर्बाद करना ; रेग ज़ार =रेगिस्तान ; बाइस =कारण ; ज़ेर बार =एहसान से दबा हुआ इफ़्तेख़ार =घमंड

इस्मत जैदी

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32 टिप्‍पणियां:


  1. ब्लॉग जगत में बहुत कम ऐसे रचनाकार हैं, जिनके लिए दिल से तारीफ निकलती है, इस्मत जी उन्हीं में से एक हैं। शुक्रिया उनकी गजलों की दिल से समीक्षा करने के लिए।

    …………..
    अंधेरे का राही...
    किस तरह अश्लील है कविता की भाषा...

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  2. जनाब अनूप शुक्ल साहब,
    मोहतरमा इस्मत साहिबा की शायरी का एक खास पहलू ये भी है कि उनके कलाम में राष्ट्रचिन्तन, सामाजिक हालात और छोटे-बडे सभी के लिए कोई न कोई संदेश होता है.
    इस्मत साहिबा का बहर और शायरी के फ़न पर पकड़ साफ़ नज़र आती हैं.
    उनके ब्लॉग से चुनी गईं बेहतरीन रचनाएं प्रस्तुत करने के लिए शुक्रिया.

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  3. अनूप जी, पढ़ते तो बहुत लोग हैं इस्मत जी को, मैं भी उनमे से एक हूँ लेकिन दिल में एक चाह सी थी कि कहीं इस हुनर को मिल कर दाद डी जाये वह आज पूरी हुई है. बहुत आभार.
    इस्मत जी की ग़ज़लों और नज़्मों में 'एक सदी पुरानी अदायगी' की बचा कर रखी हुई भाषा झांकती है.
    मुझे सबसे बड़े और चहेते शाईर याद आने लगते हैं. मीर तकी मीर से लेकर शाहिद मीर तक की हिन्दुस्तानी शायरी की पूरी पीढी याद आती है.
    इन ग़ज़लों में मतले से बढ़ते हुए हुस्ने शेर के पास से होते हुए आप जब मकते तक पहुंचते हैं, तब तक इस कदर अहसासों की खुशबू में डूब चुके हैं कि एक नई दुनिया के जान पड़ते हैं.

    उनकी ग़ज़लों पर कमेन्ट करने वाले भी नीरज साहब, ज़माल साहब, राजरिशी साहब... (यूं ये फेहरिस्त बहुत लम्बी हो जाएगी) जैसे ग़ज़लों के विद्वान लोग हैं. वे सब दिल से पढ़ते और दिल से ही दाद भी देते हैं.
    मैं उनकी ग़ज़लों का मुरीद हूँ, मेरी नज़र में मुख्य आभार वंदना अवस्थी दुबे जी का है जो उनको खींच कर ब्लॉग तक लेकर आई है.
    आपको फिर से धन्यवाद देने को जे चाहता है.
    धन्यवाद

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  4. अब क्या कहें? हम तो पहले ही कह चुके...:))
    नीरज

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  5. arre aapne shaam kaa intezaam kar diyaa aaram se padhenge
    shukriyaa

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  6. बहुत बहुत आभार यह लाजवाब लिंक देने के लिए...
    जाती हूँ पढने को...

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  7. इस्मत पर लिखने की कब से सोच रहा था ...मगर आपने पहल कर दी अनूप भाई !

    इस्मत की रचनाएं मुझे अपने सहज भाव के लिए अच्छी लगती हैं ,

    बेहतरीन मानवीय संवेदनाओं की मालिक इस्मत, की रचनाओं में गज़ब की अभिव्यक्ति, पायी जाती है ! सर्वत जमाल और नीरज गोस्वामी जैसे नैसर्गित प्रतिभा से धनी शायरों ने उनके बारे में जो कुछ भी कहा है वो मेरे भी विचार माने जाएँ !
    उनको मेरी हार्दिक शुभकामनायें !

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  8. इस्मत की किस्मत पर कौन न रश्क करे:) एक ही फ़नकार पर पूरी चर्चा कर दी। पर दवाम [हमेशा] की तरह अच्छी चर्चा के लिए बधाई॥

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  9. बहुत बहुत आभार यह लाजवाब लिंक देने के लिए..

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  10. "चिटठा-चर्चा" पर सुश्री इस्मत ज़ैदी 'शेफा' की शाइरी पर
    विश्लेषणात्मक समीक्षा पढ़ कर बहुत ख़ुशी हुई ...
    इस्मत जी की रचनाओं में हमारे अपने समुदायों और समाज की
    दशा और दिशा दोनों का भरपूर विवरण और चित्रण झलकता है ...
    'शेफ़ा' के अश`आर पढने वालों से खुद बात करते हैं
    और उन्हें अपने साथ वहाँ तक ले जाने की कोशिश करते हैं
    जहां तक के लिए उन्हें कहा गया होता है
    इंसान और समाज के हित के लिए रचा गया साहित्य
    हमेशा वन्दनीय होता है
    और यही एक वजह है...
    कि इस्मत जी की शाईरी को इस क़दर सराहा जाता है
    उनकी यही खूबी उनकी साहित्यिक कुशलता
    और दक्षता को रेखांकित करती है,,,
    उनकी नेक और पाकीज़ा सोच की तरफ इशारा करती है
    विद्वान् लेखकों दुआरा उनकी रचनाओं पर दी गयी टिप्पणीयाँ
    इस बात का स्पष्ट उदाहरण है....
    जिसमे मेजर गौतम राजरिशी भी शामिल हैं .

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  11. may I dare to lodge my protest against the notions expressed in this-very post quoting Major Gautam Rajrishi as.. लेकिन जब लिखती हैं तब उसकी कोई न कोई लाइन चुराने के लिये गौतम राजरिशी हाजिर हो जाते हैं।
    I competely, but respectfully differ with this statement which is likely to connote an unfair message to the readersand can amount ti inflictng a blame of "plagiarism" on him .
    To me , Gautam Rajrishi is , undoubtedly a man of class and distinct calibre .

    A positive compliance is awaited .

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  12. किसका ब्लॉग है ये...??

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  13. अनूप जी,
    बहुत बहुत शुक्रिया कि आप ने मेरे ब्लॉग का चयन चिट्ठा चर्चा में समीक्षा के लिए किया ,
    मैं स्वयं को इस योग्य नहीं समझती लेकिन आप ने और टिप्पणीकारों ने जो मेरा मान बढ़ाया है उस के लिये आप की और सभी ब्लॉगर्स की जो मेरी रचनाएं पढ़ते हैं आभारी हूं
    मैं किशोर जी की बात से सहमत हूं और वन्दना का विशेष रूप से आभार प्रकट करती हूं जिस के कारण मैंने इस जगत में क़दम रखा
    पुन: धन्यवाद सब को

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुप्रतीक्षित चर्चा आज पढने को मिली. हमेशा सोचती थी कि अनूप जी की नज़र इस्मत के ब्लॉग पर क्यों नहीं जाती? मुझे क्या मालूम था, कि यहां " देर आयद-दुरुस्त आयद" चरितार्थ होने वाला है :)
    जिस शिद्दत से इस्मत किसी के भी दर्द के साथ जुड़तीं हैं, उसी शिद्दत से सम्वेदनाएं उनकी गज़लों में मुखर होती हैं. इस्मत की कथनी और करनी में कोई फ़र्क नहीं है. वे केवल लिखने के लिये नहीं लिखतीं, बल्कि इस सब को गहराई से महसूस भी करतीं हैं. गोआ में हैं, लेकिन अपने कजगांव से दिल से जुड़ी हैं, अपने गांव से दूर होने की तकलीफ़ ही तो इस शेर में व्यक्त की है उन्होंने-

    ’शेफ़ा’ आंखें हैं मेरी नम, ये लम्हा बार है मुझ पर
    बहुत तकलीफ़ होती है जो मसकन छूट जाते हैं

    इस्मत की सभी गज़लें मुझे बहुत बहुत पसंद हैं लेकिन इस शेर के क्या कहने-

    उलझ न जाए कहीं दोस्त आज़माइश में
    कि ख़्वाहिशें कभी तुम बेशुमार मत करना
    और किशोर जी को क्या कहें, जिन्होंने मेरा आभार व्यक्त किया!! मैं किशोर जी की आभारी हूं:)
    और मुफ़लिस साहब, मुझे नहीं लगता कि शुक्ल जी ने किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर गौतम जी के लिये लिखा, बल्कि इसमें भी इस्मत की तारीफ़ और गौतम जी की पारखी नज़र को ही सराहा गया है. मुझे नहीं लगता कि कोई unfair message जा रहा है.
    अन्त में-
    अनूप सर की विहंगम दृष्टि को सलाम.

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  15. इस्मत दी को पहली बार गुरुकुल के मुशायरे में पढ़ा और अचंभित थी। इसके बाद जब भी उनकी तरफ गई कुछ अनूठा पाया और व्यक्तिगत रूप से ये भी कह सकती हूँ कि बहुत ही संवेदनशील महिला हैं वो... मेरे दुःख और सुख में उनकी शिरक़ते मुझे उनके बारे में यही विचार बनाने को कहती हैं....!

    इस पोस्ट का आभारा

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  16. मान गये आपकी पारखी नजर और निरमा सुपर दोनो को...

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  17. ओह यह ब्लॉग किधर था..कैसे चूक गया..किसे शुक्रिया करूँ?

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  18. इस्मत की किस्मत पर कौन न रश्क करे:)

    खुशकिस्मत हैं कि एक अच्छे ठिकाने का पता मिला। बहुत दिनों बाद फेरा लगा है ब्लाग जगत का और सबसे पहले चिट्टाचर्चा पर ही आए।
    यकीन मानये, बीते चार सालों में इतने व्यस्त कभी नहीं रहे, जितने इन दिनों हैं।

    बहुत आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  19. :)
    क्या कहें....?

    एक बार तो पढ़ते ही ग़लतफ़हमी में आ गए थे ..कि मेज़र गौतम ..और चोरी...!!!!!

    अब जोरों की हँसी आ रही है अपने ऊपर...

    मजेदार पोस्ट ...

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  20. तेरे पास ये जो ज़मीर है यही तेरी दौलते ख़ास है
    तू बचा के रखना इसे ’शेफ़ा’ यही ज़िंदगी का दवाम है..

    आभार ...!

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  21. सबसे पहले गुरूजी को प्रणाम...

    सच! में यह ब्लॉग किधर था.... ? आपका थैंकफुल हूँ... इतने अच्छे ब्लॉग से इंट्रो करने का...

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  22. masha allah......kabiletarif.....
    very very testy.....pure itminan se padhunga
    aur apki mehnat ki kimat oosooloonga.

    many many thanks bare bhaijee is blogs ko
    padhwane ke liye.

    is baat ka malal hai ki kam se kam itna kala
    hota ki aisi gazal na likkhta magar kaide se dad to de leta.

    pranam.

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  23. इस्मत की ग़ज़लें दर असल सादगी और पुरकारी की रिवायत को ही पुख्ता करती हैं.और यह रिवायत ग़ालिब की है मीर की है.आपने उन्हें अपनी पोस्ट के केंद्र में रख कर तगज्जुल को अहमियत दी है.शुक्रिया!
    समय हो तो अवश्य पढ़ें और अपने विचार रखें:

    मदरसा, आरक्षण और आधुनिक शिक्षा
    http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_05.html

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  24. हमारे डाटाबेस पर वाइरस का ज़बरदस्त हमला हुआ है और हमारा अनुमान है कि यह किसी टिपण्णी के द्वारा वाइरस भेजने से हुआ है. इस कारण हमारे सर्वर के एंटी वाइरस ने डाटाबेस को उड़ा दिया है, हम बैकअप के द्वारा फिर से डाटा वापिस लाने की कोशिश कर रहे हैं. आपसे भी अनुरोध है की टिपण्णी को जाँच कर ही स्वीकृत करें तथा अपने ब्लॉग पर फोटो भी एंटी वाइरस से जाँच करके ही अपलोड करें. आपका अकाउंट भी इस तरह हैक अथवा समाप्त हो सकता है. कृपया सावधान रहें, आपका अकाउंट बंद करवाने के लिए टिपण्णी में कोडिंग के द्वारा आपके ब्लॉग में वाइरस भेजा सकता हैं.

    जो लोग चाहते हैं की उनकी पोस्ट तुरंत "हमारीवाणी" में प्रदर्शित हो तो वह .........

    अधिक पढने के लिए यहाँ चटका (click) लगाएं!

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  25. इस्मत जी को थोडा पढ़ा है ..और बहुत पसंद आईं उनकी रचनाएँ ..आज यहाँ से लिंक लेकर हर गज़ल पर जाते हैं अब ..बहुत बहुत शुक्रिया अनूप जी .

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  26. शुक्रिया शुक्ल जी ......इस ब्लॉग का रास्ता दिखाने के लिए.....

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  27. इस्मत को तकरीबन शुरू से पढ़ रहा हूँ और मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि जिन चंद गजलकारों से मुझे खौफ महसूस होता है, उनमें इस्मत भी शामिल हैं.
    इस पोस्ट में इस्मत को जिस तरह से पेश किया गया, वो अनूप शुक्ल जी की मेहनत का नतीजा है. किसी रचनाकार के अशआर में से बेहतरीन का इन्तिखाब करना उस वक्त और ज्यादा मुश्किल हो जाता है जब सभी शेर अच्छे हों.
    इस्मत पर कमेन्ट के वक्त मेरी उंगलियाँ अक्सर रुक जाती हैं, कभी अल्फाज़ नहीं मिलते, कभी यह खतरा बना रहता है कि दुहराव न हो जाए.
    चिटठा चर्चा और अनूप शुक्ल जी दोनों ही बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने एक समर्थ रचनाकार चर्चा के लिए चुना और उम्मीद से बेहतर प्रस्तुति दी.

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  28. अपनी प्रिय शायरा की चर्चा यहां देखकर मुझसे ज्यादा खुश और कौन होगा। ईश्वर करे उनकी लेखनी हम्सब को यूं ही चमत्कृत करती रहें अपने लाजवाब शेरों से....my deep regards to ismat ma'm and heartfelt thanx to anoop shukl ji...

    बाकि मुफ़लिस जी का अपने प्रति स्नेह देखकर अभिभूत हूं। thank you sir...लेकिन जैसा कि वंदना जी ने स्पष्ट कर ही दिया और अनूप जी की खास मौज लेने वाली अदा से कौन नहीं वाकिफ़ है इस ब्लौग-जगत में। लेकिन आपका स्नेह सर-आँखों पर सर जी।

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  29. बहुत खूब...
    आज की चिट्ठा चर्चा पढ़कर लगा कि वाकई चर्चा हुई है किसी चिट्ठे की.

    ..ये शेर तो पहले भी थे कातिल मगर इतने न थे.
    पढ़ा था हमने पहले भी मगर सलीके इतने न थे.

    ..वाह! हम भी शायर बन गए..!

    जवाब देंहटाएं

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