रविवार, अगस्त 15, 2010

स्वतंत्रता की नई चादर फिर से बुननी होगी…

ऐसा नहीं लगता कि स्वतंत्रता की ये चादर नए सिरे से बुननी चाहिए? हममें से अधिकांश को ऐसा लगता होगा. पेश है स्वतंत्रता दिवस पर आम भारतीय की पीड़ा व्यक्त करती कुछ ऐसी ही ब्लॉग पोस्टें:

सन ४७ से

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धुनी कपास की बनी

पोनी को चरखे पर कात

बनाई थी खादी की

एक सफेद चादर

कुछ चूहे मिलकर

कुतरते रहे रात दिन

उसे सन ४७ से

और आज

छोटी छोटी कतरनों का ढेर

लगने लगा है जैसे

कच्ची कपास

उसे धुनना होगा

एक नई चादर

फिर से बुनना होगा.

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स्वतंत्रता दिवस पे एक सादा सा सवाल और वही पुराना सन्देश

सादा सा सवाल है, ऊँगली ही उठाते रहेंगे तो,
अपने गिरेबान में कब झाकेंगे?
गलती तो कोई भी निकाल लेता है,
उपाए सोचेंगे तभी तो आगे बढेंगे…

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भूख भरी स्वतंत्रता दिवस

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भगवान् तू ने ये बेरेहेम भूख क्यों दी?
सुखा पेट सूखी रोटी के लिए ज़िन्दगी कितना मजबूर कर रहा है,
और रूखी साँसों से सूखा गला बूँद पानी केलिए तरस रहा है ,
पर आज आज़ादी के आस और आरजूओं को सीच कर भारत माँ को
विनती का हार पहना रहे है !
स्वतंत्रता तो बस नाम का है पर जहा भी देखूं देश भर में बेबसी के दायरे है...
कही कोई बच्छा खेलते हुए आके खाली थाली में भरे पानी पर ,
छत के छेद से गिरे चाँद का प्रतिबिम्भ को निवाला समझ कर मुट्टी भरने का प्रयास करता है
पर चाँद को पानी में बिखरता देख तड़पता रह जाता है ..! और माँ अपने दिल को पत्थर बनाके ,
बच्चे की तसल्ली केलिए पत्थर को उबालती है और सीजने की इंतज़ार में उसे भूखा सुलाती है....

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१५ अगस्त के संदर्भ में - वन्दे मातरम और स्वतंत्रता दिवस के सही मायने क्या हम नई पीढ़ी तक पहुँचा पा रहे हैं ? [On the occasion of 15th August….]

क्या उम्मीद रखें हम अपनी नई पौध से, किस देशभक्ति की उम्मीद रखें हम इस नई पीढ़ी से, जबकि आज के स्वतंत्रता के मायने नई पीढ़ी के लिये इंडिपेन्डेन्स डे की ५० % से ७०‍ % तक की सेल होती है। सारे अखबारों में पन्ने इंडिपेन्डेन्स डे सेल से अटे पड़े हैं, परंतु कहीं भी यह नहीं मिलेगा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने कैसे ये स्वतंत्रता पाई और कैसे वे लोग ये स्वतंत्र आकाश में रह पा रहे हैं।

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देश के ठेकेदारों से आज़ादी कब

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आज हम आज़ादी की ६४वी वर्षगाँठ मना रहे है और देश के हर सदस्य देशभक्ति के गीत गुनगुना रहा है !लेकिन आज गुनगुनाने के बाद हम फिर कब देश को याद करेंगे और कब देश के बारे में सोचेंगे कुछ पता नही ...शायद २६ जनवरी को !हम आजाद है लेकिन हम अपनी आज़ादी को नहीं ले पा रहे है ..पहले हम गोरो के गुलाम थे लेकिन आज आजाद होने के बाद भी हम अपने ही देश में गुलाम है !गुलाम बनने में पहले भी कुछ न कुछ हमारी गलती थी और आज भी !पहले गोरे हमे आपस में लड़वाते थे लेकिन आज उनकी कमी को देश के ही कुछ ठेकेदार पूरा कर देते है ! सच बात तो यही है की आज़ादी है लेकिन वो नहीं जो हमे मिली थी ..आज जब हम अपनी शिकायत करने किसी सरकारी विभाग में जाते है तो हम सब को अपनी आज़ादी का अच्छे से पता चल जाता है !हमारी अपनी मेहनत की कमाई को पानी के लिए एक हिस्सा कही और भी देना होता है जिसे देकर हर व्यक्ति को अपनी आज़ादी की परिभाषा बहुत अच्छे से समझ आ जाएगी !देश में इतने तरह के भ्रष्टाचार है के आम आदमी की सोच से भी परे है ! गोरो के बाद अब हमे अपने ही देश के लोगो से आज़ादी छीनने की जरुरत है ..

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63 साल की आज़ादी और 36 का आंकड़ा

मनुष्य मात्र के लिए किसी भी स्वतंत्र देश में आजादी का अर्थ और व्यावहारिक अभिप्राय बहुआयामी होता है। किसी विदेशी शासन का जुआ उतार फेंकने भर से देश के नागरिकों को आजादी नहीं मिलती, बल्कि आजादी का मतलब है स्वदेशी शासन में प्रत्येक नागरिक को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने के समान अवसर उपलब्ध हों, लिंग, धर्म, जाति, संप्रदाय और नस्ल आदि में से किसी भी आधार पर भेदभाव न तो समाज में हो और ना ही शासन या व्यवस्था के स्तर पर। देश में उपलब्ध प्राकृतिक और आर्थिक संसाधनों का सामुदायिक हित में प्रयोग किया जाए और प्रत्येक नागरिक को बिना भेदभाव के इन संसाधनों के समुचित प्रयोग का अधिकार हो। अगर भारत की आजादी के विगत 63 सालों का विश्‍लेषण करें तो पता चलेगा कि हम भारतीय आज भी बहुत से मामलों में एक स्वाधीन लोकतांत्रिक देश के सच में स्वाधीन नागरिक नहीं हैं। हमारी आजादी आज भी अधूरी है, क्योंकि हमारे यहां जाति, धर्म और लिंग के अलावा प्रांत और अंचल जैसे कई आधारों पर आज भी जबर्दस्त भेदभाव है, जिसके शोले कश्‍मीर से कन्याकुमारी और मुंबई से सुदूर उत्तर-पूर्व तक सुलगते देखे जा सकते हैं। …….

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आजादी के साठ वर्षो के बाद भी आमजन मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं ...

“….कालोनी की सडकों पर बजबजाती गन्दगी . सडकों पर गन्दगी होने के कारण लोग सड़क पर ईट रखकर चलने को मजबूर हैं .

जिन करीबी रिश्तेदार का निधन हो गया था वे करीब दस दिनों पहले पूर्ण स्वस्थ थे . करीब पांच दिनों पहले मेरे साथ एक अन्य मरीज को देखने जबलपुर हॉस्पिटल गए थे . उनकी असामयिक मृत्यु का समाचार सुनकर एक क्षणों के लिए मै अवाक रह गया . जानकारी प्राप्त करने पर पता चला की परसों रात अचानक उन्हें पीलियाँ हो गया था और कुछ ही घंटों के पश्चात उनका देहावसान हो गया . कालोनी की नरक जैसी स्थिति को देखकर मैंने वहां के निवासियों से वहां के बारे में चर्चा की तो लोगो ने बताया की उनके क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं की भरी कमी है . क्षेत्र में कभी साफ सफाई नहीं होती है . पेयजल की सुविधा उपलब्ध नहीं है . सडकों में दूषित पानी भरा होने के कारण नलों से पीने का गन्दा पानी आता हैं . क्षेत्र में भीषण गन्दगी के कारण कीड़े मकौडों की बसाहट बढ़ गई है . क्षेत्र के जनप्रतिनिधि कभी इस क्षेत्र में झांकने तक नहीं आते है और जनता द्वारा की गई शिकायत की ओर वे कभी ध्यान नहीं देते हैं . कालोनी के निवासियों की परेशानियों को देख सुनकर मेरी ऑंखें डबडबा गई .

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जरा सोचिये जिन क्रातिकरियों ने अपने लहुसे इस धरतीको सीचा हैं,क्या हम उनके लहुके एक कतरेका हक अदा कर पाए हैं । 62 साल पहले अंग्रेज इस धरतीपर राज करते थे और आज कुछ राजनेता । क्या आपको लगता हैं दोनों में कोई अंतर हैं ?

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स्वतंत्रता के मायने...

भारतीय स्वतंत्रता दिवस की धूम हैं, पर स्वतंत्रता के क्या मायने हैं, शायद हम आज तक सीख नहीं पाये हैं और न ही सीखने की कोशिश की। हमारी केन्द्र और राज्य की सरकार का भी ध्यान इस ओर नहीं गया। जो काम अंग्रेज अपनी शासन के दौरान नहीं कर सकें, आजादी के बाद उन अंग्रेजों के सपनों को हमने अपने हाथों से पूरा करने का, ऐसा लगता हैं कि हमने मन बना लिया हैं। हमें आज की परिस्थितियों को देख लगता हैं कि गर अंग्रेज नहीं होते, तो हम शायद सभ्य भी नहीं बन पाते, क्योंकि आज भारतीयों में होड़ लगी हैं कि कौन सर्वाधिक भोगवादी प्रवृत्तियों को अपनाने में सबसे आगे हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन के समय हमारे नेता व जनता दोनों इस बातों को लेकर सजग थे कि वे किसी भी हालात में विदेशी वस्तुओं को स्वीकार नहीं करेंगे, पर आज क्या हैं, खुद सरकार ही भारत को विदेशी वस्तुओं का बाजार बना दी हैं और जनता इसमें डूबकी लगाते जा रही हैं, आज हमारा पड़ोसी चीन, पूरे भारत में अपनी वस्तुओं को ठेल रखा हैं, इन घटिया चीनी वस्तुओं को भारतीय खरीद कर स्वयं को धन्य धन्य कर रहे हैं, और भारतीय लघु उद्योग दम तोड़ता चला जा रहा हैं। शायद आज की पीढ़ी को पता नहीं या बताने की कोशिश नहीं की गयी कि आखिर पूर्व में अंग्रेजों ने भारत को अपना उपनिवेश क्यों बनाया।….

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क्या है आजादी का मतलब ??

आज स्वतंत्रता दिवस है. पर क्या वाकई हम इसका अर्थ समझते हैं या यह छलावा मात्र है. सवाल दृष्टिकोण का है. इसे समझने के लिए एक वाकये को उद्धृत करना चाहूँगीं-

देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-’’नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं।‘‘

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स्वतंत्रता दिवस

 

आज सारा देश
स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनायेगा
थोड़ी देर के लिए महगाई,
भ्रष्टाचार से ध्यान हटाएगा
आप भी आमंत्रित हैं,
…यदि आप वाकई स्वतंत्र है
वर्ना तो ये जश्न
सर से गठरी उतार,
छाये में बैठ
बीड़ी सुलगा लेने से अधिक
और कुछ नहीं.
फिर वही धूप, फिर वही बोझा
और मंजिल की तलाश..

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आज़ादी

एक बड़ा नेता, बड़ी बड़ी मूँछ वाला नेता, ऊँची नाक वाला नेता १५ अगस्त का तिरंगा झंडा लहराने के लिए परेड करने वाले जवानों से सलूट लेने के लिए जा रहा था, एक मंहगी कार में !

उसकी कार के आगे एक बूढ़ा असमर्थ लाचार भूखा आदमी आ खड़ा हुआ, दो रोटी के लिए पैसे माँगने लगा, "बाबू जी दो दिन से भूखा हूँ, दो रोटियों का जुगाड़ कर दीजिए"

नेता आग बाबूला हो गये, सुरक्षा गार्ड को बुलाकर कहने लगे,"इसे भगाओ" !

उसी समय सामने चार जवान लड़के नारे लगाते हुए सामने आ गए, "नेता की हाय हाय, देश भूखमरी, मंहगाई से गुजर रहा है और, ये जनता के पैसो पर ऐस कर रहे हैं, क्या इसी को आज़ादी कहते हैं ?"

नेता ने सुरक्षा गार्ड को बुलाया और कहा, "इन्हें पटाओ" !

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इसलिए, क्यों न -

अब लालकि़लेबाज़ी बंद कर ही दो.

15 अगस्त को लाल क़िले से प्रधान मंत्री के भाषण के समय जो लोग वहां होते हैं वे हैं:- सरकार के लोग और सरकारी कर्मचारी, विदेशी राजनयिक व स्कूलों के बच्चे. इनमें से कोई भी अपनी मर्ज़ी से खुशी-खुशी सुबह साढ़े 6 बजे लाल क़िले नहीं पहुंचा होता.
अब आज, जब आम आदमी किसी प्रधानमंत्री का भाषण सुनने अपने आप जाता ही नहीं तो क्यों ये जंबूरी चालू रखी जा रही है. सबसे बड़ी बात, इससे वोट भी नहीं मिलते.
आख़िर कौन कहेगा कि राजा नंगा है.

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(इस तेवर के और भी तमाम पोस्टें होंगी. आपकी निगाहों से गुजरे हों तो आग्रह है कि यहाँ हम सभी से साझा कीजिए. )

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26 टिप्‍पणियां:

  1. इस बार के तेवर कुछ ख़ास हैं...

    कुछ बेहतर पढ़ने को मिला...धन्यवाद....

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  2. स्वतंत्रता की ये चादर नए सिरे से बुननी चाहिए?
    कितनी चादरें बुनेंगे ?????
    -
    -
    -
    पुरानी चादर से काम चल जाएगा
    बस चादर ओढने वाले और चादर खींचने वाले दुरुस्त हो जाएँ !

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  3. पोस्ट को सम्मिलित करने और चिट्ठा चर्चा के माध्यम से सबके समक्ष रखने के लिए आभारी हूँ . .स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाये और ढेरों बधाई.

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  4. इस बार की चर्चा इस मायने में महत्वपूर्ण है कि आपने ऐसी पोस्टों का चयन किया जो अधिक चर्चित नहीं है लेकिन अच्छा लिख रहे हैं.

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  5. आज़ादी के कच्चे-चिट्ठों की पक्की चर्चा

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  6. बहुत अच्छी चर्चा ....

    स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. .... will be visible after approval. ?
    आज के दिन भी... फिर, स्वाधीनता के मायने ?
    पोस्ट-लेखक आज़ाद है, मनचाहा लिखने को... पर, टिप्पणीकार ?
    क्या यह चर्चा, यह बेहतरीन सँकलन बुद्दिविलास की लँतरानी मात्र है ?
    क्या बुरा है फिर.. जो परधान-मन्तरी जी बुलेट्प्रूफ़ के पीछे नुका के बोल रहे हैं ?
    अभिव्यक्ति की स्वतँत्र विधा के इस मुक्त मँच पर मेरा सैद्धान्तिक मतभेद जारी रहेगा ?
    स्पैम तो बहाना है, मुख्य मँशा तो विरोध असहमति के स्वर को दबाना और लगाना ठिकाना है !
    आप वरिष्ठ हैं, आप अनुकरणीय हैं, आप हमारे प्रकाश-स्तम्भ हैं... इसलिये खुल कर यह भी नहीं कह सकता..
    शर्म करो, शर्म करो, शर्म करो, अपने पाखँड पर शर्म करो !

    जवाब देंहटाएं
  9. स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ...!

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  10. jnaab men kyaa khun yeh nyaa andaz mene pehli baar dekhaa he or men is andaaz pr htprbh hun kitni mhnt se aazaadi or haalat ki tsvirkshi or mnzr kshi ki gyi hogi men smjh sktaa hun to bhaayi bdhaayi mujhe to aaj meraa mn psnd lekhn mil gyaa isliyen men to trpt ho gyaa. akhtar khan akela kota rajsthan

    जवाब देंहटाएं
  11. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आप एवं आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ!

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  12. लगभग हर पहलू को समेट लिया इस पोस्ट में...
    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  13. स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं.............

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  14. आजादी की इस वर्ष गांठ पर ये चर्चा प्रासंगिक है |

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  15. आगामी आगँतुक पाठक किसी गलत मुग़ालते में न रह जायें, अतएव.....
    और.... न ही मेरा उद्देश्य कोई विवाद या नाटक खड़ा करना है, यदि यह कम्यूनिटी प्राइवेट लिमिटेड नहीं है, तो यहाँ मॉडरेशन के शर्त की पूर्व सूचना अँकित रहनी ही चाहिये ! मैं समझता हूँ कि दुराषात्मक टिप्पणियों की समझ पाठकों के विवेक पर छोड़ देना चाहिये । क्या यह महज़ सँयोग है कि साधुवादी प्रशँसा की 5.01 PM पर दी गयी टिप्पणी 17.38 ( 5.38 PM ) पर दिखने लग पड़ी । जबकि ऍप्रूवल के विरोध स्वरूप 5.14 PM पर दी गयी टिप्पणी, पहली टिप्पणी के डिलीट कर देने के बाद 21.03 ( 9.03 PM ) पर रिलीज़ की गयी है ।
    A.
    fromडा० अमर कुमार
    todramar21071@gmail.com
    date15 August 2010 17:38
    subject[चिट्ठा चर्चा] स्वतंत्रता की नई चादर फिर से बुननी होगी… पर नई टिप्पणी.
    mailed-byblogger.bounces.google.com
    Signed byblogger.com
    hide details 17:38 (6 hours ago)
    डा० अमर कुमार ने आपकी पोस्ट "स्वतंत्रता की नई चादर फिर से बुननी होगी…" पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:
    स्वाधीनता के मायने ?
    बेहतरीन चर्चा.. झकझोर देने वाले लिंक !
    आन्दोलित करता है चहुँदिस व्याप्त आक्रोश !
    अफ़सोस कि सभी रो-धो कर कल से अपने काम में लग जायेंगे ।
    आज की चर्चा के लिये आप शत शत साधुवाद के पात्र हैं, सादर अभिवादन लें ।
    जय हिन्द !
    टिप्पणी पोस्ट करें.
    इस संदेश पर टिप्पणी से सदस्यता समाप्त करें.
    डा० अमर कुमार द्वारा चिट्ठा चर्चा के लिए August 15, 2010 5:01 PM को पोस्ट किया गया

    B.
    डा० अमर कुमार to me
    show details 21:03 (3 hours ago)

    डा० अमर कुमार ने आपकी पोस्ट "स्वतंत्रता की नई चादर फिर से बुननी होगी…" पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:
    .... will be visible after approval. ?
    आज के दिन भी... फिर, स्वाधीनता के मायने ?
    पोस्ट-लेखक आज़ाद है, मनचाहा लिखने को... पर, टिप्पणीकार ?
    क्या यह चर्चा, यह बेहतरीन सँकलन बुद्दिविलास की लँतरानी मात्र है ?
    क्या बुरा है फिर.. जो परधान-मन्तरी जी बुलेट्प्रूफ़ के पीछे नुका के बोल रहे हैं ?
    अभिव्यक्ति की स्वतँत्र विधा के इस मुक्त मँच पर मेरा सैद्धान्तिक मतभेद जारी रहेगा ?
    स्पैम तो बहाना है, मुख्य मँशा तो विरोध असहमति के स्वर को दबाना और लगाना ठिकाना है !
    आप वरिष्ठ हैं, आप अनुकरणीय हैं, आप हमारे प्रकाश-स्तम्भ हैं... इसलिये खुल कर यह भी नहीं कह सकता..
    शर्म करो, शर्म करो, शर्म करो, अपने पाखँड पर शर्म करो !
    टिप्पणी पोस्ट करें.
    इस संदेश पर टिप्पणी से सदस्यता समाप्त करें.
    डा० अमर कुमार द्वारा चिट्ठा चर्चा के लिए August 15, 2010 5:14 PM को पोस्ट किया गया
    चर्चा का लुभावन शीर्षक है.. स्वतंत्रता की नई चादर फिर से बुननी होगी…" :)
    कौन बुनेगा.. कैसे बुनेगा... और क्यों बुनेगा ? जबकि अह्मन्य मानसिकतायें स्वस्थ मन के प्रतीकात्मक विरोध पर ग़श खा जाती हैं । मैं पुनः दोहराऊँगा. जो वरिष्ठ हैं, अनुकरणीय हैं, और हमारे प्रकाश-स्तम्भ हैं... लेखकीय स्वतँत्रता को लेकर उन्हें स्वयँ ही दिग्भ्रमित नहीं रहना चाहिये । यह कैसा आदर्श है, यह कैसी नज़ीर है ?
    सभी को मेरा दुर्भावना रहित मुक्त हृदय अभिवादन !

    काश कि, इन्टरनेट झूठ बोलता होता ! :p

    जवाब देंहटाएं
  16. @खास डॉ. अमर कुमार के लिए -
    लगता है किसी दिन, जब आप घोड़े बेचकर सो रहे होंगे, तब (हो सकता है कि महज आपको फंसाने के लिए,) आपके किसी मॉडरेशन रहित ब्लॉग पर सौनीया गोंडाई (परिवर्तित नाम, :)) के नाम कोई नामी-बेनामी जब एक अच्छा खासा व्यक्तिगत दुराव, मानहानि वाली व्यक्तिगत गाली-गलौज युक्त टिप्पणी छोड़ेगा, और जब तक आपको कोई जगाएगा, कि भइए, इसे हटाएँ, और जब तक आप उसे हटाएँगे, तब तक चार जगह आपके विरूद्ध एफ़आईआर दर्ज नहीं हो जाएगा, आप यह बचकाना आग्रह नहीं छोड़ेंगे! :)
    इंतजार करें, किसी न किसी (के मॉडरेशन रहित ब्लॉग) के साथ ये हादसा हिंदी ब्लॉग जगत में भविष्य में होगा (एक भारतीय अंग्रेज़ी ब्लॉगर के साथ हो चुका है, माइंड यू!).
    इसलिए, मैं तो सभी सेंसिबल चिट्ठाकारों से (आपसे तो खास आग्रह है!) आग्रह करता हूं कि वे मॉडरेशन लगाएँ! स्पैम नहीं है तब भी!! सार्वजनिक जीवन में आपका किया कराया कौन (या आपका खुद का स्टूपिड एक्शन!) कब किस दिन गुड़गोबर कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता.
    दुर्घटना से सावधानी भली!!!!!!!!!!!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  17. (इसे भूल-चूक-लेनी-देनी समझा जाए - याहू! पर आपका ईमेल पाकर:))
    और, रही स्वतंत्रता की बात, तो ब्लॉग लेखक भी पूरी तरह स्वतंत्र है कि किस टिप्पणी को रखे, कब-कितना रखे (डैम, ब्लॉग लेखक को वर्डप्रेस में तो टिप्पणी को संपादित करने की भी स्वतंत्रता है, जो यहाँ नहीं, पर होना चाहिए, :() उसी तरह टिप्पणीकर्ता भी स्वतंत्र है कि वो अपनी टिप्पणी को पोस्ट-लिंक व पोस्ट-पाठ का संदर्भ देता हुआ तमाम फोरमों - ब्लॉग, ट्विटर, ईमेल समूहों में प्रकाशित कर दे. इस तरह से कम से कम पोस्ट-लेखक और टिप्पणीकर्ता अपनी-2 जवाबदारी से मुँह तो नहीं फेर सकेंगे!

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  18. @ Raviratlami ने कहा…

    गुरुवर श्री,
    आपके सलाह की सदाशयता शिरोधार्य है, गुरुवर !
    उलटबाँसियों से लड़ने-भिड़ने के सँघर्ष में ऎसे श्राप मुझे आशीर्वाद का फल देते रहे हैं ।
    किसी नज़ीर या ’ घरों में दुबकी हुई ज़िन्दगी ’ की उपेक्षा यदि कर भी दी जाये, तो भी मुझे यह स्पष्ट न हो सका कि...
    " ........ तो यहाँ मॉडरेशन के शर्त की पूर्व सूचना अँकित रहनी ही चाहिये ! " जैसे आग्रह में बाधा क्या है, याकि हर सभ्य समाज के सँविधान में ऎसे किसी निषेधाज्ञा की पूर्व सूचना देना क्यों उचित माना गया है ? किसी प्रान्त, ज़िले, कस्बे या ब्लॉग में प्रवेश करने के बाद यदि धारा 144 या ’ शूट ऍट साइट ’ के निर्णय का औचित्य ’ चयनात्मक निरँकुशता ’ भले ही न हो, पर वह सवाल छोड़ जाता है, जो ब्लॉगिंग की आत्मा के प्रतिकूल है ।
    हॉल्ट, व्हू इज़ देयर की चेतावनी और अनायास दबोच लिये जाने में नीतिगत मँशा का विशाल अँतर है, गुरुवर !

    साथ ही आपकी सलाह में "..... क्या यह महज़ सँयोग है कि साधुवादी प्रशँसा की 5.01 PM पर दी गयी टिप्पणी 17.38 ( 5.38 PM ) पर दिखने लग पड़ी । जबकि ऍप्रूवल के विरोध स्वरूप 5.14 PM पर दी गयी टिप्पणी, पहली टिप्पणी के डिलीट कर देने के बाद 21.03 ( 9.03 PM ) पर रिलीज़ की गयी है ।" जैसे तथ्य को सुविधापूर्ण ढँग से नज़रअँदाज़ किये जाने पर कोई भी व्यक्ति आश्चर्य ही प्रकट कर सकता है, या निन्दा कर सकता है । निश्चय ही आप दोनों के पात्र नहीं हैं, सर्वोपरि ऎसी परिधि में नहीं आते !

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  19. .
    सँयोगवश :
    Server logs
    Like most Web sites, our servers automatically record the page requests made when you visit our sites. These “server logs” typically include your web request, Internet Protocol address, browser type, browser language, the date and time of your request and one or more cookies that may uniquely identify your browser
    Sensitive information
    “Sensitive personal information” includes information we know to be related to confidential medical information, racial or ethnic origins, political or religious beliefs or sexuality and tied to personal information.
    Aggregated non-personal information
    “Aggregated non-personal information” is information that is recorded about users and collected into groups so that it no longer reflects or references an individually identifiable user.
    इस बहस के दायरे में राजा और प्रजा सभी आते हैं ।

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  20. "..क्या यह महज़ सँयोग है कि साधुवादी प्रशँसा की 5.01 PM पर दी गयी टिप्पणी 17.38 ( 5.38 PM ) पर दिखने लग पड़ी । जबकि ऍप्रूवल के विरोध स्वरूप 5.14 PM पर दी गयी टिप्पणी, पहली टिप्पणी के डिलीट कर देने के बाद 21.03 ( 9.03 PM ) पर रिलीज़ की गयी है ।"

    हुम्म... अमर जी, कुछ और (संभावित, क्योंकि मॉडरेशन मेरा नहीं है) तर्क पेश करने की इजाजत देंगे?
    1- नैसर्गिक आह्वान (अरे, वही नेचर काल,) भी कोई चीज है, पूरे टाइम कंप्यूटर पर चिपक कर मॉडरेशन फ़ोल्डर पर नजर नहीं न रखी जा सकती.
    2 - गूगल आजकल स्पैम में टिप्पणियाँ डाल रहा है. वहाँ भी 24X7 नजर नहीं रखी जा सकती.
    3 - मेरे जैसे लोग जो थंडरबर्ड का प्रयोग स्पैम मॉडरेशन के लिए करते हैं, वे थंडरबर्ड में एक क्लिक कर भूल जाते हैं कि टिप्पणी प्रकाशित हो गई होगी. इस बीच यदि नेट गड़बड़ हुई या कुछ और पंगा हुआ तो मॉडरेशन में बना रहता है. कई बार कई कई दिन बाद वहाँ जाना होता है. आप मेरे चिट्ठे पर टिप्पणियों की तिथि-समय का जायजा ले सकते हैं.
    4 - अंतिम से पहली बात, प्रशंसा तो ठीक है, आलोचना के लिए कुछ मंथन करने का समय (मंथन करने में समय लगता है ना,) देंगे कि नहीं?
    5 - और, अंतिम बात - चिट्ठा लेखक स्वतंत्र है कि वो कब किस टिप्पणी को प्रकाशित करे. आज या दो साल बाद!
    तो अब मुद्दा खतम समझें?
    :)

    जवाब देंहटाएं
  21. .
    @ Shri Raviratlami Jee

    गुरु जी, बड़े भाई, भीष्म पितामह
    ( यह सभी सँबोधन मैं पहले भी आपके लिये प्रयोग करता रहा हूँ )
    जहाँ तक आस्था का सवाल है, मेरी पूरी आस्था आपकी ईमानदारी में है... सो अपने तर्क उठा कर मैं अपनी ज़ेब में रख लेता हूँ । पर, मुद्दा खत्म तो नहीं ही है... जहाँ तक व्यैक्तिक एवँ वैचारिक स्वतँत्रता का सवाल है, तो मुद्दा खत्तम ! ऑब्जेक्शन ओवर-रूल्ड के ब्रह्मास्त्र से जेठमलानी भी आज तक जीत न पाये ।

    यदा-कदा मैं यह मुद्दा उठाता ही रहूँगा.. चाहे इसके लिये आप स्वयँ को ब्लॉगजगत का पी.बी. नरसिम्हाराव मान लें, और मुझे ममता बनर्जी । ठोस असहमतियों पर मैं टकराता ही रहूँगा ! सादर....
    तो मुद्दा खत्तम ? यॅस, इट इज़ खात्तम !
    सादर.., अगेन !

    जवाब देंहटाएं
  22. बहुत बढ़िया सिलेक्शन है ।

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